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श्रीभिक्षुमहाकाव्यम् उसके अधरों ने मानों अपने परिसर में फैले हुए पिशुनता और चाटुकारिता आदि दोषों को समाप्त करने के लिए यह ठुड्डी अर्थात् खड्ग धारण कर रखी है। यह कुमार एक उच्च कोटी का चरित्र सम्पन्न व्यक्ति होगा क्या ऐसा सूचित करने के लिए ही इसकी ठुड्डी सुंदर गोलाकार बनी
९५. श्रीपद्मरागमणिविद्रुमबद्धपालि
स्तीरेद्विज स्फटिकरत्नविबद्धतीर्थः । पूर्णामृतलहरितोऽद्भुतभारतीनां, क्रीडातडाग इव यस्य मुखारविन्दम् ॥
पद्मराग एवं विद्रुम मणियों से बन्धी हुई पाल वाले, तट पर द्विज (दांत, पक्षी) रूप स्फटिक रत्नों से बने हुए घाट वाले और पूर्णामृत (पानी, थूक) से लहराते हुए अद्भुत भारती के क्रीडा तडाग की तरह इसका मुखारविन्द सुशोभित हो रहा था। ९६. येनाऽऽहंती त्रिभुवनान्तरसत्यसत्या
मुद्घोषणां घनरवां यदुदारघोषाम् । कर्ता यतोऽस्य भयवजितवीरवृत्तेरेखात्रयं समभवत् किमु कम्बुकण्ठे ?॥
यह निर्भीक और वीरवृत्ति वाला शिशु जिस कण्ठ से तीन भुवन में घनाघन घोष के समान उदार घोषवाली वीतराग वाणी की घोषणा करने वाला होगा, क्या ऐसा संकेत करने के लिए ही इसकी ग्रीवा पर ये तीन रेखाएं खचित हुई हैं ? ९७. पीनौ दृढौ मसृणमांसलसन्धिबन्धौ,
स्कन्धौ महाककुदमत्ककुदोपमेयौ । यस्याऽक्लमो जिनपधर्मधुरन्धरत्वसंसूचको किमिति मानवमेदिनीषु ?।।
महान् वृषभ के ककुद के समान पुष्ट, दृढ, स्निग्ध एवं मांसल सन्धि वाले इसके ये स्कन्ध क्या इस मानव मेदिनी पर अश्रान्त रूप से जैन धर्म की धुरा को वहन करने की सूचना दे रहे हैं ?
१. द्विजा:--दांत (द्विजा रदा:-अभि० ३।२४७) _ द्विजः-पक्षी (द्विजपक्षिविष्किर अभि० ४।३८२) २. कम्बुकण्ठः -- तीन रेखायुक्त गर्दन (अभि० ३।२५०) ।