Book Title: Ashtpahud
Author(s): Kundkundacharya, Shrutsagarsuri, Pannalal Sahityacharya
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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विषयानुक्रमणिका
दसणपाहुड
मङ्गलाचरण और प्रतिज्ञा वाक्य धर्म दर्शन मूलक है दर्शन भ्रष्ट को निर्वाण नहीं है सम्यक्त्व से भ्रष्ट जीव संसार में भ्रमण करते हैं सम्यक्त्व से भ्रष्ट जीवों को बोधि की प्राप्ति दुर्लभ है ५ उत्कृष्ट ज्ञानी कौन होते हैं ? भ्रष्टों में भ्रष्ट कौन है ? दोषवादी चारित्र से पतित है चौरासी लाख गुणों का वर्णन शील की दश विराधनाएं आलोचना के दश दोष मूल विनष्ट जीव सिद्ध नहीं हो सकते
१०-११ सम्यग्दृष्टि जीवों की पाद वन्दना न करने का
१९-२०
२३-२७
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२८ ___ २९
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सम्यग्दर्शन के मेदों का वर्णन सम्यक्त्व से रहित जीवों की पाद वन्दना का कुफल कौन से मुनियों को सम्यक्त्व रहता है ? बाह और अन्यन्तर परिग्रह के भेद सम्यक्त्ववान् जीव हो श्रेय और अश्रेय को जानता है निर्वाण कोन प्राप्त करता है? जिन वचन रूप बोषध की महिमा विनधर्म में तीन ही लिङ्ग विष) हैं सम्यग्दृष्टि का लक्षण व्यवहार और निश्चय से सम्यग्दर्शन का लक्षण सम्यक्त्व ही मोक्ष की प्रथम सीढ़ी है महालवान् जीव को सम्यक्त्व होता है । पापणा करने योग्य कौन है?
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