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उद्भवी प्रा प्रश्ननो हजु निर्णय थयेलो नथी. तेनुं मूळ उत्पत्तिस्थान प्राचीन मगधदेशना पश्चिम भागथी अथवा नैर्ऋत ( दक्षिण-पश्चिम ) भागथी बहु दूर न होतुं एवी मान्यता संभावत जणाय छ ।
मौर्य सार्वभौम राजाओना समयमा पूर्व तरफनी पटणानी भाषा पश्चिम तरफ फेलाती गई; पछी तेनो फेलाव मात्र राजमहेलोमां अने बजारोमांज थयेलो होय अने गामडाओमां न थयेलो होय ।
ज्यारे मौर्यवंशी राज्यनी पडती थई त्यारे कदाचित् आ पूर्वनी भाषानो उपयोग कम थई गयो होय. ज्यारे पाछला समयमा सार्वभौम सत्तानुं केन्द्र पश्चिम तरफ थयु त्यारे प्राकृत भाषानुं शौरसेनी स्वरूप गंगानदानी अासपासना प्रदेशोमां वधारे वधारे प्रचलित थयु होय ए स्वाभाविक छे. या प्रमाणे भाषानां मुख्य रूपान्तरोनी एक प्रदेशमांधी बीजा प्रदेशमां थयेली गतिओने लोधे भाषाना अमुक रूपान्तरतुं स्थान निश्चित करवं ए, ( जोके ते समयना लेखको क्वचित्ज तारीखनो निर्देश करे छे) लेखकोए बराबर तारीखनो निर्देश करेलो होय तो पण सुसाध्य नथी।
परंपराए चाली भावती दन्तकथा उपरथी श्रापणे जारणी शकीए छीए के महावीरे अर्ध-मागधीमां उपदेश को हतो. तेज प्रमाणे दन्तकथा द्वारा श्रापणे जाणवा पााए छइए के गौतम बुद्धे मागर्धामां उपदेश कर्यो हतो (जो के गौत्तमबुद्धनो उपदेश मागधीमा लखायेलो नथी परन्तु पालीमा लखायेलो छे) परन्तु बन्ने समकालीन हता अने एकज प्रदेशमा रहेता हता एवं वर्णन करवामां आवे छ ।
जो बन्ने धर्मोपदेशकोए एका भाषानो उपयोग करेलो होय अने श्रा भाषा शौरसेनी अने मागधी भाषाना प्रदेशोनी वञ्चना बनारसनी श्रासपासना प्रदेशनी अर्धमागधीने मळती श्रावती प्राकृतर्नु कोई प्राचीन रूपान्तर होय तो एम कही शकाय के आ भाषा बन्ने धर्मोनां शास्त्रो, ग्रन्थोमां लखायां ते पहेला विकृत थयेली होवी जोइए (अर्थात् रूपान्तरने पामेली हावी जोइए); आ रूपान्तर क्यारे थयु अने केटले अंशे थयु ए निश्चित कर, ए शक्य जणातु नथी ।
जे स्वरूपमां अर्ध-मागधी श्रापणा जोवामां आवे छे ते स्वरूप ( पाली प्रमाणे ) नाटकोनी प्राकृत भाषाशोथी वधारे प्राचीन छे. मागधीनी पेठे तेमां प्र. ए. ब. पुं. एकारान्त थाय छे, षष्ठी. एक वचनमा “ तव " नो उपयोग करवामां आवे छे, रकारान्त धातुओनुं भूत कृदन्तनुं रूप “त" ने वदले “ द" थी करवामां आवे छे. ( परन्तु आम सर्वत्र थतुं नथी ) 'क' ने बदले "ग" थई जाय छे उदाहरण 'असोग' ( परंतु मागीमा प्रा बहु न्यून प्रमाणमां थाय छे)।
अर्ध-मागधीनी अंदर'र' अने 'स' नुं रूपान्तर न थतुं होवाथी ते मागधीथी श्रा बाबतमा स्पष्ट रीते जुदी पडे छे. अर्ध मागधी, महाराष्ट्रीथी घणी बाबतोमा जुदी पडे छे. उदाहरणार्थ अर्ध-मागधीनी अंदरनो सप्तमीनो प्रत्यय 'अंसि' (महाराष्ट्री अंदर 'म्मि' छे) चतुर्थीनो तश्रे, हेत्वर्थक कृदन्तनो तो 'इत्तए' संबंधक कृदन्तनो 'ता' 'तणम्' इत्यादि । __ अर्ध-मागधी भाषानी घटनानुं वधारे विस्तृत वर्णन श्री बनारसीदासे तैयार करेल अने अत्रे जोडवामां आवेल व्याकरणनी रूपरेखामां करवामां आवेल छे. पा रूपरेखा मूळग्रन्थोमा वापरवामां श्रावेलो नाम, धातु इत्यादिनां रूपो ऊपरथी तैयार करवामां आवेल छे. केवळ प्राकृत व्याकरणोमा आपेल सिद्धान्तो उपरथी नहि । ओरियंटल कॉलेज लाहोर.
ए. सी. वूलनर.
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