Book Title: Ardhamagadhi kosha Part 1
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 452
________________ अमणामतर ] ( ३७२) [ अमम मनने अगमती २१२. मनोहरता रहित स्वर; | Highly disagreeable; highly अप्रिय स्वर; मन को न रुचने वाला स्वर. unpleasant. विवा० १, १; unpleasant sound; harsh voice. | श्रमणुस्स. पुं० (अमनुप्य) मनुश्य नहि तेवता भम० १,७; माहि. जो मनुष्य न हो वह; देव वगैरह. Not मनापानसत. man,i.e.gods etc. नंदी०(२)नपुंस४. शय सभामा. मन को अत्यंत अप्रिय. नपुंसक. an impotent. भग० ८, ६; Highly displeasing to the | अमत. न. (अमृत) सुधा; ममृत. अमृत. mind. नाया० १२; १६ Nectar. नाया० १; (२)क्षीरावि समुद्र .क्षीरोदधि समुद्र का जल. water of श्रमणामत्ता. स्त्री० (अमनोमता ) भनने the Ksirodadhi ocean. जीवा० ३,४; अनिष्टया मननी प्रतिसता. मन का प्रति | श्रमत. त्रि. (श्रमत) संमत नाह; अमान्य. कूलपना; मन का अनिष्टपन. Disagree असम्मत; अमान्य. Not assented to; ableness to the mind; mental not acceptable. भग० १८, ७; disrelish. भग० ६, ३, श्रमति. स्त्री० ( अमति) भति; भुद्धि. श्रमणुएण. त्रि. (अमनोज्ञ-मनसोऽनुकूलं | कुबुद्धि; दुर्मति. Wickedness of thouमनोज्ञं न मनोज्ञममनोज्ञम्, अथवा न मनसा ght. “समाययंति श्रमति गहाय" उत्त. ज्ञायतेऽसुन्दरतया इत्यमनोज्ञम् ) भनने गमતું નહિ; મનને આનંદદાયક નહિ; અશભન; | श्रमत्तान०(अमत्र) पात्र; मान. पात्र; बरतन; ससुंदर; मनिष्ट, भनने प्रतिस. मन को जो भाजन. A vessel; a utensil. सृय, १, अप्रिय हो वह; मनोहरता रहित; अनिष्ट; अशो- ६, २०; श्रीव० १७, भन; मन के प्रतिकूल. Not agreeable श्रममा त्रि. (अमन-नास्ति मम ममत्वं यस्य स to the mind; not charming; तथा)10 वस्तु १५२ ने भा२।५Y ugly. प० २८, ओव० २०; निसी० ७, नथी ते; ममत्वहित; नितीनी. किसी भी २७; सूय० १, १, ३, १०; नाया. १; १२; वस्तु पर जिसका ममत्व नहीं है वह. Self१६; जीवा० १; भग० १, ५, ७, ३, २, ६, less; free from attachment to ३; १, ३३, २५, ७, जं. प० २, ३६; any object; free from greed. -पाणियग. न० (-पानीयक ) अनिष्ट ओव० १०; १७; दस० ६, ६६; ८, ६४;भग. ખરાબ પાણી; ન પીવા ગ્ય પાણી. ६, ७ (२) पूरीपना मरतक्षेत्रमा खराब पानी; न पीने योग्य जल. bad આવતી ચોવીસીમાં થનાર બારમા તીર્થંકર. water; water unfit for drink. जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में आगामी चौवीसी में ing purposes. भग० ५, ६-स्सर. होने वाले बारहवें तीर्थंकर. the wouldपुं० (-स्वर ) ५२० २०२: समधुर सवार. be twelfth Tirthankara in the अनिष्ट-खराब स्वर. bad voice; harsh coming Chovisi in the Bhavoice. भग० १,७; rataksetra of Jambudvipa. अंत. अगणुराणतर. त्रि. (अमनोज्ञतर ) अतिशय ५, १; सम० प० २४१; प्रव० २६६; ( 3 ) समनाश-मनिष्ट. अत्यन्त अनिष्ट-श्रमनोज्ञ. हिवसन। २५ मा मुखतर्नु नाम. दिवस के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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