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अवएण ]
(४१५)
[अवत्तब्ध
अवराण. त्रि. (अवर्ण-न विद्यते वर्णः पंच विधः सितादिरस्येत्यवर्णम् ) पर्णखित; रंगरहित; अभूनद्रव्य. वर्ण रहित; बिना रंग का; अमूर्त द्रव्य. Colourless; having no colour; formless (substance). भग० २, १०, ११, १; २०, ५; (२) निral. निन्दा. censure; obloquy. पिं. नि० भा० २७;-कर. त्रि० (-कर) A4गुर मोसवावा; नि- ४२ना२; निन्दा करने वाला. ( one ) who detracts or censures. भग० ६, ३३;-कारमय. त्रि. (-कारक ) सगुण मोसनार; अपवाद बोलना२. अवगुण कहने वाला. ( one ) who detracts or censures.भग० १५, 1;-बाइ. पुं०(-वादिन् अवर्ण घदितुं शीलमस्येत्यवर्णवादी ) ५५ीति १२ना२; निन्६४. अपकीर्ति करने वाला;निन्दक. (one) who detracts or censures. " माई अवएणवाई, किविस्सियं भावणं कुणइ " उत्त०३६, २६३, दमा०४, १०१; प्रव० ६६५०;---वाय. पुं० (-वाइ) सवर्ण मोसात; निन्दा ४२वी ते. निन्दा करना; भवर्णवाद बोलना. detracting; censuring. “अधरणवायं च परंमुहस्स" प्रव.
३१७; ६४५; अवएणवं. नि. (अवर्णवत् ) निन्६४. निन्दक.
(One ) who detracts or censures. दसा. ६, १८; अवरणवंत. त्रि० (अवर्णवत्) अपएंपादन
मोसनार; नि४. अवर्णवाद बोलने वाला; निन्दा करने वाला. ( One ) who de
tracts or censures. सम० ३०; अवरणा. स्त्री. (अवज्ञा ) मपमान; मना६२. अपमान; अनादर. Insult; dis-respect. | ओव० ४१; पंचा. १, ३५; प्रव० ८७२;
प्रवराहाण. न० (अपस्नान ) तयाविध सं२४१રિત જળથી સ્નાન કરવું તે શરીરની ચિકાશ દૂર કરનાર વ્યમિશ્રિત જળથી સ્નાન કરવું તે. तथाविध संस्कारित जल से स्नान करना; शरीर की चिकनाहट दूर करने वाले द्रव्यों के मिश्रित जल से स्नान करना. A bath with water mixed with a dirtremoving substance. farqlo 9; नाया. १३; अवतह. त्रि० (अवसष्ट) छ।तीने पातणु रेगुं.
छीलकर पतला किया हुआ. Made slender by chopping off the
outer parts. सूय० १, ५, २, १४; अयत्त. पुं० (अध्यक्त) मा १२सानी संदरने। બાળકનું અપરિણત-કાચી વયને બાળક. आठ वर्ष से कम उम्र का बालक; अपरिणत अवस्था का बालक. A boy under eight years of age; a boy of immature age. भोघ० नि० ४६७; अवत्तव. त्रि० (प्रवक्तग्य ) ४ा यो नति
यनियनीय. न कहने योग्य; अनिर्वचनीय. Inexpressible; indescribable; unspeakable. दस० ७, ४३; पन्न० १०; अणुजो ० ७४; भग० १२, १०; प्रव० १२१३; क० प० ७, ५२;-बंध. पुं० (-बन्ध ) અવક્તવ્ય બંધ; જે કમપ્રકૃતિને અબબ્ધ થયા પછી પુનઃ બંધ થાય તે પ્રથમ સમયે सातव्य पन्ध वाय. जिस कर्मप्रकृति का प्रबन्ध होने के बाद पुनः बंध हो वह प्रथम समय में प्रवक्तव्य बंध कहलाती है. that Karmic nature which binds a man again after once freeing him from bondage is at its initial stage called Avaktavyabandha. क. प० ५, २२;
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