Book Title: Ardhamagadhi kosha Part 1
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 558
________________ सुत्त ] (४७८) न० अपवित्र मांस. impure flesh; filthy flesh. तंडु० - जायकम्मकरण. (- जातकर्मकरण ) जन्मती वषते नाइચ્છેદન વગેરે કર્મ કરવું તે; અશુચિ-જન્મ 3. जन्म के समय नालच्छेदन वगैरह अशुद्ध कर्म करना; अशुचि - जन्मकर्म. the act of cutting the umbilical cord at the time of birth; an impure ceremony performed at the birth of a child. भग० ११, ११; —– बिल. न० (-बिल) अशुभि नीणवाना छिद्र; શરીરમાંથી અશુચિ વહેવાનાં ६२. अशुचिद्वार ; भलमूत्र निकलने का द्वार. a hole or aperture in the body to discharge its filth. तंडु• - वेस. त्रि० (-विश्र ) भज भूत्राहि डरी लिप्त थमेतुं अथवा मीलत्स थमेलुं. मल मूत्रादि से लिप्त अथवा बीभत्स. smeared and made dirty with filth. दसा• ६, १; - संकिलिङ त्रि० (-संक्लिष्ट ) अपवित्र पहार्थी थी दूषित थमेसुं (शरीर ). पवित्र पदार्थों से दूषित ( शरीर ) (body) polluted with impure things. भग०६, ३३; - समुप्पराण. त्रि० (समुत्पन्न) अपवित्रतामां उत्पन्न घमेल. अपवित्रता में उत्पन्न. born in the midst of impurities. तंडु० सामंत. त्रि• ( - सामन्त ) अपवित्र वस्तुनी सभीय रहे (शरीर ). अपवित्र वस्तु के समीप रहा हुआ (शरीर ). ( body ) remaining in the vicinity of filthy things. ठा० १०; श्रसुइत्त न० ( अशुचित्व ) अशुभ भावना; ‘આ શરીર અશુચિનું ભાજન છે,એમ ચિંતવવું ते. 'यह शरीर गन्दा है' ऐसा सोचना. The meditation that the body (one's Jain Education International [ श्रसुरणकाल body ) is full of impuritios. प्रव० ५७६ ; - भावणा. स्त्री० (-भावना ) આ દેહ અશુચિમય છે' એમ ચિંતવનું ते; प्यार भावनाभांनी छडी भावना. देह की अशुचिता का चिंतन करना; बारह भावनाओं में से छटी भावना. meditation upon the filthiness of the body; the sixth of the twelve Bhāvanās or meditations. प्रव• ५८० ; कृ० अ० ( असुवा ) असुइत्ता. सं० अगुसुधने; सुता वग२. बिना सोये; शयन न करके. Without having slopt; without sleeping. ठा०३, २ असुइय त्रि० ( अशुचिक ) अशुचिरूप; भगभूत्राहि अशुचिरूप; मल मूत्र आदिक. Filthy; impure; urine etc. तंडु० ठा० १०; असुक्क. त्रि० ( अशुष्क ) न सुम्प्रमेतुं सु नडिते; सी. बिना सूखा हुआ; हरा. Not dry; green. पिं० नि० २७६ असुज्झमाण. व० कृ० त्रि० (अशुध्यमानअशुध्यत् ) शुद्धि न पामतो; अशुद्ध थतो. शुद्धि को प्राप्त न होता हुआ; अशुद्ध होता हुआ. Not getting purity; becoming impure; not being purified. 66 सुज्झमाणे देयविसेसा विसोहंति " पंचा० १६, १८६ असुरणकाल. पुं० ( अशून्यकाल ) विवक्षित સ્થાનમાં કાઇ બહારથી નવા જીવ આવી ઉત્પન્ન ન થાય અને તેમાંથી મરીને કાઇ બહાર જાય નહિ–જેટલા વખત સુધી વિવક્ષિત નારકી આદિની આવી સ્થિતિ રહે તેટલેા કાળ; विरा. जितने समय तक विवक्षित नारकी आदि की ऐसी स्थिति रहे कि, विवक्षित For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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