Book Title: Ardhamagadhi kosha Part 1
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 457
________________ श्रमियगर ] C " 66 मेस २नार बार बार ठिकाना बदलाने वाला; एक स्थानपर न रहने वाला. one changing his seat frequently. कप० १, ५०; -- याणि पुं० (- ज्ञानिन् ) अनंतज्ञानी; सर्वज्ञ; ठेवणज्ञानी. अनंत शान वाला; सर्वज्ञ; केवली. one having perfect knowledge. सम० प० २४०; -मेह पुं० (मेघ) लुखो मयमेह शह देखो अमयमेह ' शब्द vide अमयमेह. “ एत्थणं श्रमियमेहे यामं महामेहे पाउ भविस्सइ " जं० प० श्रमिपगइ. पुं० ( श्रमितगति ) हक्षिणु हिशाना દિશાકુમાર જાતિના દેવતાને ઇન્દ્ર; ભવનपतिना २० न्द्रमांना मे. दक्षिण दिशा के दिशाकुमार जाति के देवों का इन्द्र भवनपतियों के २० इन्द्रों में से एक इन्द्र. The Indra of the Disākumāra gods of the south; one of the twenty Indras of Bhavanapatis. ठा० २, ३; पन्न० २; सम० ३२; भग० ३, ५ जं० प० ७, १६६; अमियभूय. त्रि. ( श्रमृतभूत ) अमृत तुझ्य अमृत के समान. Nectarious. ‘जिण्णवयणसुद्यासियं अमियभूयं' आउ० ६३; श्रमियवाहण. पुं० ( श्रमितवाहन ) उत्तर દિશાના દિશાકુમાર દેવતાના ઇન્દ્ર; ભવનपतिना २० घन्द्रभान येऊ. उत्तर दिशा के दिशाकुमार देवों का इन्द्र भवनपतियों के २० इन्द्रों में से एक इन्द्र. The Indra of the Disākumāra gods of the north; one of the twenty Indras of Bhavanapatis. सम० ३२; ठा० २, ३; पश्च० २; भग० ३, ८ ( ३७७ ) Jain Education International " अमिल. न ० ( श्रमिल ) अभिल हेशनी मनावटनुं वस्त्र; उननुं वस्त्र मिल देश का बना हुआ वस्त्र; ऊन का कपड़ा. A cloth made in the Amila country; a wollen cloth आया० २, ५, १, १४५; अमिलक्खु. पुं० (अम्लेच्छ) से२० भाषा न [ मुद्द नार; पार्थ म्लेच्छ भाषा न जानने वाला; आर्य. A civilized man ; an Arya. सू० १, १, २, १५; श्रमिला. स्त्री० ( श्रमिला ) २१ मा नमिनाथ तीर्थंनी मुख्य साहेवी इक्कीसवें नमिनाथ तीर्थंकर की मुख्य साध्वी. The chief female ascetic of the twenty first Tirthankara Naminatha. सम० प० २३४; श्रमिलाण. त्रि० ( अम्लान ) ३२मा गयेल नहि मसिन थमे नहि; तालु ताज़ा; बिना मुरझाया हुआ, जो मलिन न हुआ हो वह. Unwithered ; fresh. ओव० श्रमिलाय. त्रि० (अम्लान) लुग्भे। ‘अमिलाण’ ६. देखो 'अमिलाण' शब्द. Vide श्रमिलाय. ” भग० ११, ११; जं० प० - मल्लदाम न० ( - माल्यदामन् ) न उरभामेल सनी भाषा. न मुरझाये हुए फूलों की माला. a garland of unwithered flowers, भग० ११, ११, कप्प ० १०१; ५, 66 श्रमिलि. त्रि० ( श्रमिलित ) सूत्रां બીજાં સૂત્રા મેળવી-ભેળ સંમેળ કરી ખેાલવું તે भिसित होष, ते होष भां नथी मे. एक सूत्र में दूसरे सूत्रों को मिलाकर - गट पट करके बोलना मिलित दोष कहलाता है, यह दोष जिसमें नहीं है ऐसा. Free from the fault of causing confusion by intermixing one Sutra with another. अणुजो० १३; भग० ४२, १; विशे० ८५४; अमुह. त्रि० ( श्रमोचिन् ) सीधेस अर्थने न छोड़नार - अधययन मुनार उठाये हुए काम को बीच में न छोड़ने वाला. (One ) not leaving a work half done. विशे• ३४०२; For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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