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अक्खीणमहाणसी ]
[अक्खेत
food contains matter with life अक्खुअाभारचरित. पुं० (अक्षताin it. “ आजीबियसमयस्स णं अयमहे कारचारित्र-अक्षताकारमतिचारैरप्रतिहतं स्वपण्णसे अक्खीणपडिभोइणो सम्बसता " रूपं चरित्रं येषां ते तथा. ) मतियार २खित भग० ८, ५;-महाणसिय. पुं० (-महान- | ચારિત્ર પાળનાર; અખંડિત ચારિત્ર પાળનાર. सिक-महानसमनपाकस्थानं तदाश्रितस्वा- अतिचार रहित चारित्र पालने वाला; अखंडित द्वाऽन्नमपि महानसमुच्यते; ततश्चाक्षीणं पुरु- चारित्र पालने वाला. One who observपशतसहस्त्रेभ्योऽपि दीयमानं स्वयमभुक्तं सत् os unbroken right conduct. तथाविधलब्धिविशेषादत्रुटितं, तच तन्महा- बव० ३, ३; नसं भिक्षालब्धं भोजनमक्षीणमहानसं तद | *श्रपरखुडिअ. त्रि. ( स्खलित ) ससाणेस; स्ति येषां ते तथा) सन्धिना प्रभारी साडेस. ठुकराया हुआ. Obstructed; હજારો માણસને જમાડે તે પણ પિતે ન _stumblei. सु. च० ४, २२६; ખાય ત્યાં સુધી અન્ન ખુટે નહિ તેવી ! अक्नुह. पुं० ( अद्र ) नी२-१२-या समियागे। भास-साधु. जिस लब्धि के શ્રાવક, શ્રાવકના એકવીસ ગુણમાનો પહેલો प्रसाद से जब तक स्वयं कुछ न खाय तब तक गुण. उदार-गंभीर-दयालु श्रावक; श्रावक के हजारों मनुष्यों को जिमाने पर भी भोजन न इकास गुणों में से पहिला गुण. A kind खुटे ऐसी लब्धि वाला मनुष्य-साधु. a and generous Srāvaka; the first person whose store of food is of the 21 qualities of a Srāvaka not exhausted, even though (Or Jains Inymal. पंचा० ३, ४; प्रक० he feeds thousands of men, until he himself has not taken अक्खुपुरी. स्त्री. ( अपुरी) मे नामना it, by virtue of a particular એક નગરી, કે જ્યાં સૂર્યના અગ્ર મહિલા તરીકે Labdhi or spiritual acquisition. ઉત્પન્ન થવાની સૂર્યપ્રભ ગૃહસ્થની સુરપ્રભા प्रव० १५१८; भोव०१६
सहि पुत्रीमे। ती ती. एक नगरी का अक्खीणमहाणसी. स्त्री० (अक्षीणमहानसी) नाम, जहां कि, सूर्यप्रन गृहस्थ की सूरप्रभा જેનાથી ડા અન્નમાં હજારો માણસોને
श्रादि कन्याएं रहती थीं और जो सूर्य की माही शाय तेवा सम्धि. थोड़े से अन में
पटराना होनेवाली थी. The name of a हज़ारों मनुष्यों को भोजन करा सकने वाली
othcity where Súraprabhā and लब्धि . A spiritual attainment by other daughters of Suryaprabha which thousands of men can were living destined to become be given food from a small the crowned queens of the Sun quantity of it. प्रव० १५०६;
god. नाया० ५० अवस्वीरमहुसप्पिय. पुं० ( प्रदीरमधुस- अक्खुमित्र. त्रि० (अक्षुभित) झालन पामेस. पिक ) दूध, घी आदि वनार-अभियह क्षोभ रहित.Undistracted; unagitatधारी साधु. दूध, घी आदि का त्यागी साधु. ed. “ अतत्थे अणुन्विग्गे अक्षुभिए" An ascetic abstaining from उवा० २, ६६; नाया०६; milk, ghee etc. परह. २, १; अक्खे त्त. न० ( प्रक्षेत्र) पार भीन; पाउने
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