Book Title: Ardhamagadhi kosha Part 1
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 381
________________ परिणिव्वाण ] શિષ્ય પૈકી પ્રથમ પ્રકારના શિ; અપપરશ્રામ-અપ બુદ્ધિવાળા અને જિનવચનના रेडस्यना अन्नष्यु शिष्य. तीन प्रकार के शिष्यों में से प्रथम प्रकार का शिष्य; अल्पबुद्धि वाला और जिनवचन के रहस्य को न जानने वाला शिष्य. A dull-headed disciple unable to grasp the real meaning of the words of Tirthankara etc; a disciple of the first of the three sorts of disciples. | विशे० २२६२; परिणिव्वाण न० ( श्रपरिनिर्वाण न परितः समन्तान्निर्वाणं सुखमपरिनिर्वाणम् ) यारे તરફની શારીરિક અને માનસિક પીડાદુઃખ. चारों ओर की शारीरिक और मानसिक पीडा. All-round misery of mind and body. सव्वे सत्ताणं श्रस्सायं अपरिशिव्वाणं महत्रभयं दुख श्राया० १, १, ( ३०१ ) 26 Jain Education International 23 ६, ५०, अपरिणाय त्रि० ( अपरिज्ञात- ज्ञपरिश्या स्वरूपतोऽन्वगतः प्रत्याख्यान परिज्ञया याख्यातः ) रापरिज्ञा समर्थी स. મને પ્રત્યાખ્યાન-રિજ્ઞાથી પચ્ચખાણ रेनडि. ज्ञपरिज्ञा ( समझ) से प्रत्याख्यान न किया हुआ अर्थात् बिना समझे बूझे प्रत्याख्यान किया हुआ. Not consciously or intelligently given up भग० ८, ५ आया० १, १, १, ८, १, २, ५, ६४, ठा०५ २ दसा० ६, २; परितंत. त्रि० ( श्रपरितान्त ) थोडेस नভি; परिश्रम न पामे, नहीं थका हुआ. Not fatigued; not tired अणुत्त ३, १; विशे० ३४०२; — जोगि. त्रि० ( योगिन् अपरितान्तोऽविश्रान्तो योगः समाधिर्यस्य स तथा ) 13-में- 5टा विना योग-समाधिવાળે; અવિશ્રાન્ત સંયમવાળા. थकावट खेद रहित योग- समाधि वाला; अविश्रान्त संयम वाला. one ) with tireless meditation or self-control. अणुत्त० [ परिनिव्वाण ३, १; परा० २, १; अपरितावण्या स्त्री० (* श्रपरितापनता - श्रपरितापन ) शरीरमां परिताप संताप न 34 ते. शरीर में संताप का उत्पन्न न होना. Freedom of the body from mental distress. भग० ५, ६; अपरिताविय. त्रि० (अपरितापित) पोताथी } બીજાથી જેને કાર્ષિક અને માનસિક તાપहुः नथी थयुं ते. अपने से अथवा दूसरे से जिसे मानसिक और शारीरिक कष्ट न हुआ हो वह Free from montal or physical pain self-intlicted or otherwise. भग० ३, २ परित्त पुं० ( अपरीत ) अनंतत्र वस् अनंत એક રાધારણ શરીરવાળે છે. जीवों के बीच में एक साधारण शरीर वाला जीव. A soul sharing & common body with idinite soils. ठा० ३, २) जीवा० १०: ( २ ) अनंत प्रणसुधी સંસારમાં પરિભ્રમણ કરનાર જીવ, અનંત संसारी व अनंतकाल तक संसार में परिभ्रमण करने वाला जीव; अनंतसंसारी जीव. & soul eternally wandering in the worldly existence. “ श्रपरिते बंधइ " भग० ६, ३; " अपरिचे दुविहे प० तं काय श्रपरिचे य संसार परि य संसारअपरि दुविहे प० तं श्रणादिए अपजवसिए अणाइए सपज्जवसिए" पन्न० १८; जीवा ० २; विशे० ४११; अपरिनिव्वाण न० ( श्रपरिनिर्वाण ) भेो “अपरिणिव्वाण" श६. देखो अपरिणिव्वाण शब्द. Vide “ श्रपरिणिन्वाण.” आया० १, ४, २, १३३; ܕܐ For Private Personal Use Only 66 www.jainelibrary.org

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