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श्रपट्टि ]
hell“अप्पइट्ठाणे नरए एवं जोयणसय सहस्सं श्रायामविवखंभेण ' ठा०५, ३; पन्न० २; जीवा ० ३, १; भग० १३, १; सम० प० २०६; sourse. त्रि० ( श्रप्रतिष्ठित ) प्रतिष्ठानરહિત; પાયા વિના-નિમિત્ત વિના સ્વભાવે
वेस प्रतिष्ठान रहित; बिना निमित्त के अपने आप उत्पन्न Self-born. ठा० ४, १ ( २ ) प्रतिगंधरहित; अशरीरी. प्रतिबंध रहित; अशरीरी free from obstruction; bodiless; unembodied. आया० २, १६, १२, श्रपइरणपसरियत न० ( अप्रकीर्ण प्रसृतत्व ) જેમાં અસંબદ્ધપણું અને અતિવિસ્તાર નથી એવી વાણી; તીર્થંકરની વાણીના ૩૫ अतिशयमांना मे जिसमें असंबद्धता और विस्तार नहीं है ऐसी वाणी; तीर्थंकर की वाणी के ३५ अतिशयों में से एक अतिशय. Speech free from irrelevance and prolixity; one of the thirty-five Atishayas of a Tirthankar's speech. सम० ३५; अप्पउलिश्र. त्रि० ( श्रप्रज्वलित ) पडव; परामर रंधास नहि, बिना पका हुआ; अच्छी तरह से न सीमा हुआ. Raw; inperfectly cooked. अप्पउलिश्रो
सहिभवखाया" उवा० १, ५१; अप्पकंप. त्रि० ( अप्रकम्प ) अश; अयल;
ये नहि नहि तेयुं; ६७. हलन चलन रहित; अचल; दृढ. Firm ; steady. "मंद इव अप्पकंपे" ठा० १०; ओव० १७; अप्पकम्म. त्रि० ( श्रल्पकर्मन् ) हसवा उर्भी;
थोड लोगववानां छे ते. जिसे थोड़े कर्मों का फल भोगना है वह. Having slight Karmas. ठा० ४, ३; पच्चायाय. त्रि० (-प्रत्यायात श्रल्पैः स्तोकैः कर्मभिः प्रत्यायातः प्रत्यागतो मानुषत्वमित्यरूपकर्मप्र
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[ श्रपकिम्म
त्यायातः) भोगवतां पावतां थोडी उभी ખાકી રહ્યાં તેથી શ્રી મનુષ્યયેનિમાં જન્મેલ; थोडी उभी साथै मनुष्यरूपे भेस. थोड़े कमाँ सहित मनुष्ययोनि में उत्पन्न; भोगते या क्षय करते २ जो थोड़े कर्म शेष रहे हों उनसे फिर मनुष्ययोनि में उत्पन्न, born again in the human womb on account of a few remnants of Karmas. ठा० ४, १; अप्पच्चक्खाण. न ० ( श्रप्रत्याख्यान) लुखो " अपश्चक्खाण " शब्द देखो' अपञ्चक्खाण' शब्द Vide अपश्चक्खाण. क० गं० १, १७ ठा० २, १; विशे० १२३१; - वत्तिया. स्त्री० ( - प्रत्यया ) परमाणु न वाथी सागती क्रिया-कुर्भगंध. पच्चक्खाणप्रत्याख्यान न करने से जो कर्मबंध हो वह. Karma arising from not taking a vow of giving up sense - pleasure etc. ठा० ४, ४ stoपच्चखाय. सं० कृ० अ० ( श्रप्रत्याख्याय) પચ્ચખાણ ન કરીને; ત્યાગ ન કરીને. प्रत्याख्यान न करके; त्याग न करके. Without having given up or abandoned. इहमेगे उ मन्नति, अप्प वक्खाय पावगं " उत्त० ६, ६;
* अप्पजूहिश्र त्रि० ( सिद्ध ) पाडीने तैयार थयेस, रंधा रहेस. पककर तैयार; सांझ चुका हुआ. Cooked ; ripe for eating.
प्राया० २, १, ४, २३;
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अप्पडिकंटय. त्रि० ( श्रप्रतिकण्टक- न विद्यते प्रतिमह्नः कण्टको यत्र तद्प्रतिकण्टकम् ) नो अतिपक्षी नथी ते. जिसका कोई प्रतिपक्षी नहीं हो वह Unrivalled ; having no rival. राय • अप्पडिकम्म न० ( श्रप्रतिकर्मन् ) नेमां अतिउभं- शरीर-संस्कार, शरीरयेष्टा- संप्रय,
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