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अणरण ]
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अगरण. त्रि० (अनम्य ) भोक्ष भार्गधी लिन नह ते; ज्ञानाहि. मोक्ष मार्ग से अभिन्न. Knowledge etc. falling with the path leading to salvation. अणण्यं चरमाणे से या इराणे ण छयावर 'श्राया• १,३, २, ११४; विशे० ३४; १५६; - श्राराम. त्रि० (-धाराम-मोक्षमार्गादन्यत् न रमत इति ) मोक्ष भार्ग सिवाय पीने नहि २भना२. मुक्ति मार्ग के अतिरिक्त आनंद न मानने वाला. (one) who finds delight in nothing except the path that leads to final bliss. आया० १, २, ६, १०१ – चेह. त्रि० (-वेष्ट ) अन्य - मी येष्टा- अवृत्ति वगरना अन्य प्रवृत्तिहीन. ( one ) having a single activity or business. पंचा० ४, १६; — दंसि . त्रि० (-दर्शिन् ) यथायोग्य पार्थ नेनार; अन्यथा मेनार नहि ते पदार्थ को यथार्थं रीति से ( अन्यथा रीति से नहीं) देखने वालाजानने वाला. looking at a thing from the right point of view. आया० १, २, ६, १०१; नेय. त्रि० (- नेय ) अन्यथी-मीलथीन होरवाय तेवे; स्वयंयुद्ध. स्वयंबुद्ध; दूसरे का अनुसरण न करने वाला. self-enlightened. “येतारो अनेसिं भणण्यनेया, बुद्धा हु ते अंतकडा हवंति " ( नच स्वयंवुद्धस्यादन्येन नीयन्ते तत्वावबोधं कार्यन्त इत्यनन्यनेयाः) सू० १, १२, १६; परम. पुं० (-परम- न विद्यतेऽन्यः परमः प्रधानो यस्मादित्यनन्यपरमः ) संयम, न्यास्त्रि. संमय; चारित्र; character; self-restraint. "अवययपरमं याथी, यो पमाए कयाइ वि" आया० १, ३, ३, ११६; – मण. | त्रि० ( -मनस्-न विद्यते श्रन्यद् धर्मध्यान वचणान्मनो यस्य सोऽनन्यमनाः ) એકાગ્રચિત્તવાળા. एकाप्र चित्त वाला.
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[ अणतिविलंबित्त
with concentrated mind श्रोव● अणणणत. न० ( अनन्यत्व ) अनन्यपगुं; तन्भयता. अनन्यपना; तन्मयता. Identity. विशे० ६४७;
श्ररहय. पुं० (अनाश्रव ) न्याश्रवनिरोध; नवां ने यातां वां ते. आश्रव का आश्रव रोकना. influx of परह० १, १;
निरोध; नवीन कर्मों का Stoppage of the Karma. भग० २, ५; - कर. त्रि० ( - कर ) याश्रवनिशेध કરનાર; નવાં કને આવતાં અટકાવનાર. आश्रम का निरोध करने वाला; नये कर्मों का श्राश्रव रोकने वाला stopping the influx of Karma. भग० २५, ७; श्रणराहयत न० ( अनंहस्कत्व - न विद्यते संहः पापं यस्मिन् तत् अनंहस्कं तस्य भावोऽनंहस्कत्वम् ) पायरहित; श्रवन 24आप पाप रहितपना; आश्रव का अभाव. Absence of sin; freedom from sin. उत्त० २६, २६;
श्रणतिक्कमणिज्ज. त्रि० ( अनतिक्रमणीय ) અતિક્રમણ કરવા યોગ્ય નહિ; ઉલ્લંઘવા યાગ્ય नडि. न उलांघने योग्य. Improper to be transgressed. श्रोव० ३८ भग० २, ५; वयण त्रि० (-वचन - श्रनतिक्रमणीयं वचनं येषां ते ) भेा वयन उलंधन उवा योग्य नथी ते; भाता, पिता, गुड़ वगेरे. जिसका वचन उल्लंघन करने योग्य न हो; जैसे माता, पिता, गुरु आदि. whose words cannot be transgressed, e. g. parents etc. “अम्मापिउणं श्राइकमणिज्जवयस्था” श्रोव० ३८
श्रणतिविलंबियन्त न० (अनतिविलम्बितत्व )
અતિવિલંબરહિત ખેલવું તે; વચનના ૩૫ अतिशयमांना भे5. विना विलंब किये बोलना; वचन के ३५ अतिशयों में से एक
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