________________
श्रतित्थ 1
( २४० )
अतित्थ न० ( चतीर्थ ) तीर्थं रे तीर्थ स्थाय्या પહેલાંને સમય અને તીર્થવ્યવòદ્ર થયા પછીતેા સમય; તીર્થ-સંઘસ્થાપનાને અભાવ. तीर्थंकर के द्वारा तीर्थस्थापित होने के पहिले का और तीर्थविच्छेद के पीछे का समय; तीर्थ- संघस्थापना का अभाव. Time preceding the establishment of Tirthas or orders of community by Tirthankara & also the time succeeding their break-down, भग० २५, ६, ७; नाया० १३ पन्न० १; सिद्ध. पुं० (-सिद्ध ) તીર્થંકરે સંધસ્થાપના કર્યાં પહેલાં અથવા તીર્થં વ્યવÛદ થયા પછી સિદ્ધ થાય તે; તીર્થને અભાવે સિદ્ધ થાય તે, જેમ મરુદેવી માતા वगेरे. तीर्थंकर के संघ स्थापन करने के पहिले या तीर्थ विच्छेद होने के बाद सिद्ध होना; तीर्थ के प्रभाव में सिद्ध होना; जैसे कि, मरुदेवी आदि. one who became Siddha when the orders of community were not founded or had suffered a break-down, e. g. Marudevi etc. पन० १;
श्रुतित्थगर. पुं॰ ( श्रुतीर्थकर ) तीर्थ१२ नहि
તે; તીર્થંકરની પદવી ન પામનાર કેવળી; गौतमस्वामी वगेरे. जो तीर्थंकर न हो वह; तीर्थंकर की पदवी न पाने वाला केवली; गौतम स्वामी वगैरह. One not entitled to be called Tirthankara e. g.; a Kevali; Gautamasvami etc. पन्न० १; सिद्ध. पुं० ( - सिद्ध) तीर्थ २ प પામ્યા વિના સિદ્ધ થયેલ, ગાત મ સ્વામી આદિ. तीर्थंकर की पदवी पाये बिना जो सिद्ध हुए हों वे; गौतमस्वामी आदि. one who has | attained salvation without
being Tirthankara; e. g. Gauta
Jain Education International
masvāmi
etc. पन० १; नंदी ● अतित्थयर. पुं० ( श्रतीर्थंकर ) तीर्थं५२ नहि पशु तीर्थकर ने देवणी वगेरे. तीर्थकर नहीं किन्तु उनके जैसे केवली आदि A person who is not a Tirthankara but who is like one; oga Kevali. प्रव० ४७६;
[ अतिपास
7
"C
श्रतिदुक्ख न० (अतिदुःख) भुमे । “अइदुक्ख " शह देखो ' इदुक्ख शब्द Vide अदुक्ख " " पिहिया व सक्खामो अति दुक्खेहिमगसंफासा " आया० १, १, २, १४; - धम्म. पुं० (-धर्म ) अत्यंत दुःख आपવાના જેને ધર્મ-સ્વભાવ છે તે; જ્યાં નિમિષ માત્ર પણ વિશ્રાંતિ નથી તેવાં નરકાદિ સ્થળ. अत्यन्त दुःख देने का जिसका स्वभाव है वह; जहाँ निमिष- क्षणमात्र भी विश्रान्ति नहीं है ऐसे नरकादि स्थान. that, the nature of which is to give extreme pain (hell etc., in which there is acute and incessant misery).
सया य कलु पुर्ण धम्मठाणं, गाढोवणीयं श्रतिदुक्खधम्मं” सू० १, ५, १, १२, अतिधुत्त. त्रि० ( अतिधूत - श्रतीव धूतमष्ट
प्रकारं कर्म यस्य सोऽतिधूतः ) सारे र्भी; महुस भ. कर्म के बहुत भार से युक्त; बहुल कर्मी. Heavily loaded with Karmas. अभिकूरकम्मे खलु श्रयं पुरिसे प्रतिधुते " सूय० २, २, ३२; प्रतिपंडुकंबला. स्त्री० ( अतिपाण्डुकम्बला ) જુ " श्रइपंडुकंबलसिला देखो 'अइपंडुकंबलसिला' शब्द Vide 'अइपंडुकंबलसिला. 'ठा० २,३; अतिपास. पुं० ( प्रतिपार्श्व ) लुभे। अइपास ६. देखो 'अइपास' शब्द.
६.
""
""
Vide 'अइपास'. सम० प० २४०;
८८
For Private Personal Use Only
"
www.jainelibrary.org