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करना; ३२ योगसंग्रहों में से इकवीसवाँ योगसंग्रह. removing one's own faults; the twenty-first of the thirtytwo Yogasangrahas. सम० ३२; - पराणेसि पुं० ( - प्रज्ञान्वेषिन् - श्रात्मनः प्रज्ञामन्वेष्टुं शीलं यस्य स तथा ) आत्मज्ञानના શેાધક; આત્મહિતની ગવેષણા કરનાર જીવ. श्रात्मज्ञान की शोध करने वाला; आत्महित की गवेषणा करने वाला जीव. (one) seek ing after the knowledge of the soul for one's spiritual evolution. वीरा जे अत्तपणेसी, धितिमता जिइंदिया " सूय० १, ६, ३३; - परहह. पुं० ( - प्रश्नहन् - आत्मनि प्रश्न श्रात्मनस्तं हन्तीत्यात्मप्रश्नहा ) आत्म સંબંધી પ્રશ્નને હણનાર-ઉડાવનાર; પાપશ્રમक्षण. आत्मसंबन्धी प्रश्र का हनन करने वाला; पापश्रमण का एक लक्षण. one who evades a question relating to the soul; a mark of Pāpaśramana. अहम्मे प्रत्तपराहहा उत्त० १७, १२; - लद्धिय. पुं० ( - लब्धिकश्रात्मन एव सत्का लब्धिर्भक्तादिलाभो वा यस्यासावात्मलब्धिकः ) पोतानी लम्बिवाओ. आत्मलब्धि वाला; निज की लब्धि वाला. (one) possessed of one's own Labdhi or attainment. पंचा० १२, ३५; - लाभ. पुं० (-लाभ ) स्वरूपनो साल. स्वरूप का लाभ. attainment of (one's own) real or essential form or nature. क० गं० २, २६: – संपग्गहिय. त्रि ० ( - संप्रगृहीत ) हरे अर्थभां पोतानी ઉત્કૃષ્ટતા—શ્રેષ્ઠતા બતાવનાર; આત્મપ્રશંસા
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२२. प्रत्येक कार्य में अपनी श्रेष्ठता बताने वाला; आत्मप्रशंसा करने वाला given to self-praise in all matters. "नय भ
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दस ० ६, ४, १;
वह श्रत्तसंपग्गहिए -सम. त्रि० ( -सम આત્મતુલ્ય; પોતા समान; आत्भवत्. श्रात्मतुल्य; अपने समान; आत्मवत् like one's self'; equal to oneself. " त्तसमे मसेज्ज छप्पिकाये" दस० १०, १, ५ – समाहिश्र. पुं० (-समाधिक) स्वपक्षनी सिद्धि अश्वामाटे પણ મધ્યસ્થપણે રહી પરતે દુઃખ ન ઉપજાवते. स्वपक्ष की सिद्धि करने के लिए भी मध्यस्थभाव से रहकर दूसरे को दुःख न उपजाना. not defending one's own side for fear of giving pain to others. “ कुजा अत्तसमाहिए " सूय० १, ३, ३, १६; -- समाहिश्र - य. त्रि० ( समाहित ) सहा स्वउपयोगमा भेडायेस; निर्विदपसभाधियुक्त सदा आत्मोपयोग में लगा हुआ; निर्विकल्पसमाधियुक्त absorbed in Nirvikalpa meditation i. e. one in which there is no distinction between the knower and the known. एवं त्तसमाहियअणिहे " आया० १, ४, ३, १३५; हिय. न० (-हित ) आत्महित; आत्मानुं हितश्रेय. आत्मा का हित कल्याण. well-being of the soul; one's own welfare. दस० ४; अत्तग. त्रि० ( श्रात्मग- श्रात्मनि गच्छतीत्या
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त्मगः) आंतरि; यात्मि. आन्तरिक; आत्मिक. Inward; relating to the soul. चिच्चारण अत्तगं सोयं " सूय० १, ६, ७; अत्तः पुं० ( श्रात्मार्थ ) आत्मानो अर्थस्वर्ग, मोक्षाहि आत्मा का अर्थ-स्वर्ग, मोक्ष आदि. Final goal of the soul such as heaven, emancipation from births etc." इह कामनियट्टस्स, श्रतद्वे नावरज्झइ ” उत्त०७, २६; ( २ ) पोताना
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