Book Title: Ardhamagadhi kosha Part 1
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 375
________________ अपत्थण ] ( २६५) [ अपमज्जणासील (-प्रार्थित-अपथ्यं प्रार्थितं येन स तथा) ४२. देष न करता हुआ. Not hating; सपथ्य-अनिष्टने ना२. अपथ्य-अनिष्ट not despising. अंत• ४; की इच्छा करने वाला. desirous of अपदेस, पुं० (अप्रदेश ) निन्ध प्रदेश-२यण. (things) unwholesome or evil. निन्द्य स्थल. A bad place ; an inजं० प० ३, ४५; निर० १, १; ___famous quarter. पंचा० ७, ११; अपत्थण. न० (अप्रार्थन ) २७ - ४२वी अपदवंत. व. कृ. त्रि. (भपद्रवत्) भ२९५ ५। ते; प्रार्थनाने। समार. इच्छा का न करना; | भता. मरण पाता हुआ.Dying; departप्रार्थना का अभाव. Absence of prayer | ing the world. भग० २, १; or desire. “अदसणं चेव अपत्थणं च" अपप्पकारित. न. (अप्राप्यकारिस्व) विषयउत्त० ३२, १५; ગ્રાહ્યવસ્તુના સ્થળપ્રયે ગયા વિના વિષયને अपत्थिय. त्रि० (अप्रार्थित) छेतुं; न પરિચ્છેદ કરનાર ઈદ્રિયોને ધર્મ; આંખ અને भागे. अनिच्छित; नहीं मांगा हुआ. Not મન એ બે શિવાય ચાર ઈન્દ્રિય પ્રાયિકારી sought ; not wished. नाया० १६; છે ત્યારે આ બે અપ્રાકારી છે માટે એ --पत्थिय. त्रि० (-प्रार्थक) जुन्या. 'अप्प- मेमा मायरित्र २ छ. विषय-प्राह्यवस्तु त्थियपत्थय' श६. देखो · अप्पत्थियपत्थय ' स्थल के प्रति गये बिना विषय का परिच्छेद करने शब्द. Vide'अप्पस्थियपत्थय'. नाया०८%3B याला इन्द्रियों का धर्म; आँख और मन ये दो : निर० १, १; इन्द्रियाँ अप्राप्यकारी हैं और बाकी की चार अपत्थेमाण. व. कृ. त्रि० (अप्रार्थयमान) प्रार्थना प्राप्यकारी हैं, इसलिये इन दो में अप्राप्यकारित्व न १२तो; 24 ता. प्रार्थना न करता हुआ; धर्म है. The property of a senso. इच्छा न करता हुआ. Not entreating; organ by which it can cognise not wishing. उत्त० २६, ३३; its object without actual अपद. पुं० ( अपद-न विद्यते पदमवस्थाविशेषो contact with it. The eye and यस्य सोऽपदः) भुतात्मा; सिमवान्. the mind have this property. नदी० मुक्तात्मा; सिद्ध भगवान्. A liberated soul; Siddha. “अपदस्स पयं णस्थि" अपमज्जण. न. ( अप्रमार्जन ) jorj नहि पाया० १, ५, ६, १७०; (२) भि, मामा, ते; अमानन न २j ते. परिमार्जन नहीं मान्ने। वगेरे ७. श्राम, अनार, बिजोरा करना; जीब, जन्तु, रज आदि को नहीं हटाना. आदि वृक्ष. a variety of trees Not removing away; not cleanslike mango, pome-granate, ing of dust etc. सम० १५; Bijora etc. भग० १८, ४; अपमज्जणासील. त्रि. ( अप्रमार्जनशील ) अपदार. न० (अपद्वार ) नानी मायोरे; રજોહરણ, ગુચ્છા વગેરેથી પ્રમાર્જિન ન કરવાના २०५६।२;६४मार्ग. दुष्ट मार्ग;नाला-मलमूत्र बहने वावा ( साधु साथी). रजोहरण आदि ait arcit. A passage for draining से प्रमार्जन न करने वाला (साधु, साध्वी).( A filth etc.; a gutter etc. नाया० ८; monk or a nun) not given to or अपदुस्समाण.व० कृ. नि. (अप्रद्विप्यत्) ३५न । disposed to cleanse vessels, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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