Book Title: Ardhamagadhi kosha Part 1
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Motilal Banarasidas

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Page 368
________________ अपज्ज ] ( २८८ ) वामां आवतुं तयविशेष-संथारे. मृत्यु के समय कषाय का उपशमकर और देह में मूर्छा न रखकर जो तपविषेश किया जाता है वह - संथारा an austerity prac tised at the approach of death, consisting in assuaging evil passions and giving up food and water etc. उवा० १, ७३; भग० ७, २; अपज्ज. त्रि० (अपर्याप्त ) पर्यामनुं हुं रूपनाम अपर्याप्त का छोटा नाम An abbreviation of 'अपर्याप्त.' क० गं० १, २०; ३, १३; -- बायर न० (- बादर ) बाहर भेजेंપ્રિયને અપર્ધામા; જેણે પર્યાપ્ત પૂરી નથી भांधी व जाहर खेडेंद्रिय. जिसने पर्याप्ति पूरी न बांधी हो ऐसा बादर ऐकेन्द्रिय. an undeveloped one-sensed Jiva (living being) with a gross body. क० गं० ४, १०, -- सन्नि त्रि० (-संशिन् ) સંની પંચદ્રિયો અપર્યાપ્ત; અપર્યાપ્ત સંરી. अपर्याप्त संज्ञी, संज्ञी पञ्चेन्द्रिय का अपर्याप्त.an undeveloped five sensed rational living being. क० गं० ४, ७; अपज्जग. त्रि० ( अपर्याप्त ) पर्यामी; જેણે મહારાદિ છ પર્યાપ્તિમાંની પર્યાપ્ત પુરી नथी री ते जिसने आहारादि छः पर्याप्तियों में से पर्याति पूरी न करा हो वह Undeveloped; ( the soul) that has not developed the six Paryaptis viz Ahāra etc. क० प० २, ५३; अपज्जत. त्रि० ( पर्याप्त पर्याप्तयो विद्यन्ते यस्य सोsपर्याप्तः ) अपर्याप्ति-नामर्मना ઉદયથી આહારાદિ પર્યાપ્તિ બાંધીને પુરી કરી ન હોય તે; તે એ પ્રકારના હાય-એક લબ્ધિ અપર્યાપ્તે બીજો કરણઅપર્યાપ્તે, જે પોતાની Jain Education International [ अपज्जन्त જાતિ યોગ્ય પતિ પૂર્ણ કર્યા વિના મરણુ પામે તે લઘ્ધિ અપર્યાપ્તે અને જેણે હજી પમિ પૂર્ણ કરી નથી પણુ અવશ્ય પૂર્ણ કરી પર્યા થશે તે કરણુપર્યામા; દરેક જીવ ઉત્પન્ન થવાને પહેલે અંતર્મુહુñકરણઅપર્યાપ્ત थाने पर्याप्त थाय छे. अपर्याप्ति--नामकर्म के उदय के कारण आहारादि पर्याप्ति का बंध करके जिसने उन्हें पूर्ण न किया हो वह उसके दो प्रकार होते हैं-एक लब्धि अपर्याप्त, दूसरा करणअपर्याप्त. ओ अपनी जाति योग्य पर्याप्ति पूर्ण किये बिना मरण को प्राप्त हो वह लब्धि पर्याप्त और जिसने अभी पर्याप्ति पूर्ण न की हो पर अवश्य पूर्ण करके पर्याप्त होगा वह करण पर्याप्त. प्रत्येक जीव उत्पन्न होने के पहिले अंतर्मुहूर्त्त तक करणअपर्याप्त अवस्था में रहकर फिर पर्याप्त होता है. (A soul) without a full development of the characteristics of the body into which it is to incarnate. It is of two sorts : ( 1 ) Labdhi-Aparyāpta i. e. dead in an Aparyapta state; ( 2 ) Karana - Aparyāpta i. o. sure to attain to the Paryapta state. भग० ४ ४ ८ १ २ २४, २०; ३३, १; पद्म० १; नंदी० १७; क० गं० २, ३३; ३, १०, ४, ५, प्रव० ११६५६ (२) पूर्ण; पूर्ण नहि ते जो पूर्ण न हो वह. imperfect. " सव्वं पि ते अपजन्तं, नेव ताय्याय तं तव उत्त० १४, ३६; राय ० २५७; – णाम. न० ( - नामन् ) नामर्मनी એક પ્રકૃતિ, કે જેતા ઉદયથી જીવ પેાતાને યેાગ્ય પર્યાપ્તિ પૂર્ણ કરવામાં સમર્થ થતા નથી. नामकर्म की एक प्रकृति, जिसके उदय से जीव अपने योग्य पर्याप्ति पूर्ण करने में समर्थ नहीं होता. a variety of Nima " For Private Personal Use Only www.jainelibrary.org

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