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कोष देखने के नियम।
(१) प्रथम मूल शब्द मोटे टाइप में दिया गया है और उसके बाद उस शब्द का लिह अथवा जाति दर्शक संक्षिप्त वर्ण दिया गया है। तदनन्तर उस मूल शब्द का संस्कृत प्रतिशब्द दिया है, और फिर उस शब्द के अर्थ गुजराती, हिन्दी और अंग्रेजी भाषाओं में क्रमशः दिये गये हैं। ये अर्थ पूर्ण हो जाने पर मूल शब्द जिन जिन सूत्रों में या ग्रन्थों में प्रयुक्त हुआ है उन २ सूत्रों के या प्रन्थों के संक्षिप्त नाम और जिस जगह वह शब्द आया है उस गाथा (श्लोक ) या अध्ययन आदि का निर्देश अङ्कों द्वारा किया गया है, जिनका पूर्ण खुलासा कोपान्तर्गत सूत्रों की सूचि से तथा व्याकरण के संक्षेप की सूचि से हो सकता है । कई शब्दों के साथ सूत्रों के प्रमाणवाक्य ( अवतरण ) भी दिये गये हैं । जिन शब्दों के अनेक अर्थ होते हैं उनके भिन्न २ अर्थ १, २, ३, इत्यादि अकों द्वारा क्रमशः बताये हैं।
( २ ) जहां कहीं मूल शब्द अर्थान्तर की दृष्टि से लिङ्गान्तर में प्रयुक्त हुआ है. वहां उस प्रर्थ के साथ जाति का निर्देश भी कर दिया है।
( ३ ) सामासिक शब्द मल शब्द के पेटे में दिये हैं और उन्हें भी मूल शब्द के समान मोटे टाइप में रखकर उनके पूर्व यह–चिन्ह किया है और इसी प्रकार सामालिक संस्कृत प्रतिशब्दों को भी ऊपर निर्दिष्ट चिन्ह के साथ रक्खा है ।
( ४ ) धातु को पहिचानने के लिये उसके पूर्व यह / चिन्ह किया है और उसके जितने रूप प्रायः उपलब्ध हो सके, वे सब लकारादि क्रम से दिये हैं अथवा विशेष प्रतिपत्ति के लिये तत्तल्लकार का निर्देश भी किया गया जैसे विधि लकार, प्राज्ञार्थ लकार ।
( ५ ) जो मूल शब्द अर्ध-मागधी का नहीं है किन्तु पैशाची आदि अन्य सवर्ण भाषाओं का है, उसके पूर्व यह * चिन्ह किया है और ऐसे शब्दों के संस्कृत-प्रतिरूप उपलब्ध न होने के कारण उनका अनुवादमात्र संस्कृत में दिया है, जैसे:-- * श्रगड ( प ) आदि ।
(६) जिस मूल शब्द का संस्कृत पर्याय तो यों का त्यों हो सकता है किन्तु वह पर्याय संस्कृत- साहित्य में प्रसिद्ध नहीं है अथवा पूर्व काल में प्रसिद्ध होगा और अब प्रचलित नहीं है, ऐसे संस्कृत पर्यायों को पहिचानने के लिये उनके पूर्व यह चिन्ह लगाया है, जैलेः-श्रवलुय. (* अवलुक-नौकादण्ड), अगड. (* अगत-अज्ञात ), श्राभिसरमाण. (*अभिसरमाणअभिसरत् ), श्रववरोवित्ता. (* अव्यपरोपिता-श्रब्यपरोपण ) श्रादि । कहीं कहीं मूल शब्द और संस्कृत -पर्याय में बृहद् अन्तर देखने में आता है, जैसेः-फास. ( स्पर्श ), नारण. ( जान )
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