Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text
________________
नायाधम्मकहाओ
विसप्पमाणहियया व्हाया कयवलिकम्मा कप कोउप-मंगल पायच्छिता अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा हरियालिय-सिद्धत्ययक्यमुद्धामा सएहिं सएहिं गेहेहिंतो पडिनिक्खमति, परिनिक्वमिता रायगिहस्स नगरस्त मज्झमझेगं जेणेव सेगियस्स भवगवगदुवारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता एगयओ मिलंति, मिलित्ता सेणियरस रण्णो भवणवडेंसगद्वारेण अणुष्पविसंति, अणुष्यविसित्ता जेणेव बाहिरिया उवद्वाणसाला, जेणेव सेणिए राया, तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छिता सेणियं रायं जएणं विजएणं वद्धावेंति, सेणिएणं रण्णा अच्चिय-वंदिय-पूय-माणिय-सक्कारिय सम्माणिया समाणा पत्तेयं-पत्तेयं पुव्वन्नत्येसु भद्दासणेसु निसीयत । ।
२८. लए णं से सेणिए राया जवणियंतरियं धारिणि देवि ठवे वेता पुप्फफलपsिपुण्णहत्थे परेणं विणएणं ते सुमिणपाढए एवं क्यासी एवं खलु देवाणुनिया! धारिणी देवी अज्ज तसि तारिससि सयणिज्जंसि जाव महासुमिणं पासित्ता णं पडिबुद्धा । तं एयस्स णं देवाप्पिया! उरालस्स जाव सस्सिरीयस्स महासुमिणस्स के मण्णे कल्लाणे फलवित्तिविसेले भविस्सद् ? ।।
सुमिणफल-कहण-पदं
२९. तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रण्णो अंतिए एयमट्ठ सोच्चा निसम्म हट्ठट्ठ-1 -चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया तं सुमिगं सम्मं ओगिण्हति ओगिण्डित्ता ईहं अणुप्पवितति, अणुप्पविसित्ता अण्णमण्णेण सद्धिं संचालेंति, संचालेत्ता तस्स सुमिणस्स लद्धडा पुच्छिया गहिया विणिच्छियट्ठा अभिगवा सेनियस रण्णो पुरजो सुमिणसत्याई उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा एवं वयासी एवं वतु अम्हं सामी! सुमिणसत्यंसि वायातीसं सुमिणा, तीसं महासुमिणा -- बावत्तरिं सव्वसुमिणा दिट्ठा ।
तत्य णं सामी! अरहंतमायरो वा चक्कवट्टिमायरो वा अरहंतसि वा चक्कवट्टिंसि वा गब्भं वक्कममाणसि एएसिं तीसाए महासुमिणाणं इमे चोदस महासुमिणे पासित्ता णं पडिबुज्नंति, तं जहा-
संगहणी-गाहा
१. गय २. वसह ३. सीह ४ अभिसेय ५. दाम ६. ससि ७. दिणयर ८. झयं ९. कुंभं । १०. पउमसर ११. सागर १२. विमाणभवण १३. रयणुच्चय १४. सिहिंच ।। वासुदेवमायरो वा वासुदेवंसि गब्भं वक्कममाणंसि एएसिं चोदसहं महासुभिणाणं अण्णयरे सत्त महासुमिणे पासित्ता गं पडिबुज्झति ।
बलदेवमायरो वा बलदेवसि गब्भं वक्कममाणसि एएसिं चोद्दसहं महासुभिणाणं अण्णयरे चत्तारि महासुविणे पासित्ता नं पडिवुज्झति ।
Jain Education International
११
"
प्रथम अध्ययन : सूत्र २७-२९ स्वप्नपाठकों ने स्नान, बलिकर्म और कौतुक मंगलरूप प्रायश्चित्त किया। अल्पभार और बहुमूल्य आभरणों से शरीर को अलंकृत किया। मस्तक पर दूब और श्वेत सर्षप रख वे अपने-अपने घरों से निकले निकलकर राजगृह नगर के बीचो बीच जहां श्रेणिक के भवन का मुख्य द्वार था, वहां आए। आकर परस्पर मिले, मिलकर राजा श्रेणिक के भवन के मुख्य द्वार में प्रवेश किया। प्रवेशकर जहां बाहरी सभा मण्डप था, जहां राजा श्रेणिक था, वहां आए। वहां आकर राजा श्रेणिक का जय-विजय की ध्वनि से वर्द्धापन किया। राजा श्रेणिक द्वारा अर्चित, वन्दित, पूजित, मानित, सत्कारित और सम्मानित " होकर अपने-अपने पूर्व स्थापित भद्रासनों पर बैठ गए।
१५
२८. राजा श्रेणिक ने धारिणी देवी को यवनिका के भीतर बिठाया। बिठाकर फूलों और फलों से भरे हुए हाथों वाले राजा श्रेणिक ने परम विनय पूर्वक उन स्वप्नपाठकों से इस प्रकार कहा- देवानुप्रियो! आज धारिणी देवी अपने उस विशिष्ट शयनीय पर सोई हुई थी यावत् वह हाथी के महास्वप्न को देख कर जागृत हो गई। अतः देवानुप्रियो ! इस उदार यावत् श्रीसम्पन्न महास्वप्न का क्या कल्याणकारी विशिष्ट फल होगा?
स्वप्न फल कथन-पद
२९. वे स्वप्नपाठक राजा श्रेणिक के पास इस अर्थ को सुनकर, अवधारण कर दृष्ट तुष्ट चित्त वाले, आनन्दित यावत् हर्ष से विकस्वर हृदय वाले हो गए। स्वप्नपाठकों ने उस स्वप्न का भली-भांति अवग्रहण किया, अवग्रहण कर ईहा में अनुप्रवेश किया। अनुप्रवेश कर परस्पर पर्यालोचना की। पर्यालोचना कर उस स्वप्न के अर्थ को स्वयं जाना, उस विषय में प्रश्न किया, अर्थ का ग्रहण किया, उसका विनिश्चय किया, अर्थ को हृदयंगम किया, राजा श्रेणिक के सामने स्वप्नशास्त्रों का पुनः पुनः उच्चारण करते हुए इस प्रकार कहा-स्वामिन्! हमारे स्वप्नशास्त्रों में इस प्रकार बयालीस स्वप्न, तीस महास्वप्न कुल मिलाकर बहत्तर स्वप्न निर्दिष्ट हैं।
स्वामिन्! उनके अनुसार अर्हत् की माता और चक्रवर्ती की माता अर्हत् और चक्रवर्ती के गर्भावक्रान्ति के समय इन तीस महास्वप्नों में से ये चौदह महास्वप्न देखकर जागृत होती है, जैसे-संग्रहणी गाथा
१. गज २. वृषभ ३ सिंह ४ अभिषेक ५ माला ६. चन्द्रमा ७. दिनकर ८. ध्वज ९. कलश १०. पद्मसरोवर ११ सागर १२. विमान भवन १३. रत्न राशि १४ अग्नि ।
१८
वासुदेव की माता वासुदेव के गर्भावक्रान्ति के समय इन चौदह महास्वप्नों में से कोई सात महास्वप्न देखकर जागृत होती है।
बलदेव की माता बलदेव के गर्भावक्रान्ति के समय इन चौदह महास्वप्नों में से कोई चार महास्वप्न देखकर जागृत होती है।
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org