Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Nayadhammakahao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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प्रथम अध्ययन सूत्र २४-२७
२५. तए गं से सेणिए राया अप्पणो अदूरसामंते उत्तरपुरत्थिमे दिसीभाए अट्ठ भद्दासणाई - - सेयवत्थ - पच्चुत्थुयाइं सिद्धत्थयमंगलोवयार-कय-संतिकम्माइं-रयावेइ, रयावेत्ता नाणामणिरतणमंडियं अहियपेच्छणिज्जरूवं महग्घवरपट्टणुग्गयं सह बहुभत्तिसय- चितठाणं ईहामिय-उसभ तुरय-नर-मगरविहग वालग किन्नर रुरु- सरभ- चमर-कुंजर वणलय- पउमलयभत्तिचित्तं सुखचिपवरकणगपवरपेरंत-देसभागं अन्धितरियं जवणियं अंछावेइ, अंछावेत्ता अत्थरग-मउअमसूरग-उत्थइयं धवलवत्थपच्चत्यं विसिट्ठअंगसुहफासयं सुमउयं धारिणीए देवीए भद्दासणं यावे, रावेत्ता कोडुबियपुरिसे सद्दावेद, सहावेत्ता एवं क्यासीविप्पामेव भी देवाणुप्पिया! अगमहानिमितसुतत्यपाठए विविहसत्यकुसले सुमिणपाढए सदावेह, सद्दावेत्ता एयमाणत्तिय विप्पामेव पच्चपिगह ।।
२६. तए णं ते कोडुबियपुरिसा सेणिएणं रण्णा एवं वृत्ता समाणा हट्ठ-1 -चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्टु एवं देवो! तह ति आणाए विणएणं वयणं पडिसुर्णेति, सेणियत्स रण्णो अंतियाओ पटिनिक्समति, रायगिहस्स नगरस्स ममझेणं जेणेव सुमिणपाड वगिहाणि तेणेव उपागच्छति, उवागच्छित्ता सुमिणपाढए सद्दावेंति । ।
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सेणियस्स सुमिणफल- पुच्छा-पदं
२७. तए णं ते सुमिणपाढगा सेणियस्त रण्णो कोडुबियपुरिसेडिं सद्दाविया समाणा हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस
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नायाधम्मकहाओ
उसने कटसरैया के फूलों की मालाओं से युक्त छत्र धारण किया, जिसके दोनों ओर दो-दो चामर डुलाए जा रहे थे । उसको देखते ही जन-समूह मंगल जय - निनाद करने लगा ।
अनेक गण-नायक, दण्ड नायक, राजा ईश्वर, तलवर (कोटवाल) माम्बिक, कौटुम्बिक, मंत्री, महामंत्री कोषाध्यक्ष, द्वारपाल, अमात्य, सेवक, राजा के पास रहने वाला सखा, नागरिक, व्यापारी श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, दूत और सन्धिपालों के साथ ", उनसे घिरा हुआ धवल महामेघ पटल से निर्गत, ग्रह, नक्षत्र और तारकों के मध्य देदीप्यमान शशि की भांति प्रियदर्शन नरपति स्नान घर से बाहर निकला। निकलकर जहां बाहरी उपस्थानशाला (सभा मण्डप) थी वहां आया और प्रवर सिंहासन पर पूर्वाभिमुख हो, बैठ गया।
२५. राजा श्रेणिक ने अपने से न अति दूर, न अति निकट, ईशान कोण
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में आठ भद्रासन स्थापित करवाए। उन पर श्वेत वस्त्र बिछे हुए थे। सरसों डालकर मंगल उपचार और शान्ति-कर्म किये गये उस उपस्थानशाला ( सभा मण्डप) में नाना मणि-रत्नों से मण्डित अतिप्रेक्षणीय रूपवाली, बहुमूल्य, प्रवर पत्तन में ढकी हुई, चिकने, सैंकड़ों भांतों से चित्रित भेड़िया, बैल, घोड़ा, मनुष्य, भगरमच्छ, पक्षी, सर्प, किन्नर, मृग, अष्टापद, चमरी गाय, हाथी, अशोक लता, पद्मलता आदि की भांतों से चित्रित, किनारों पर शुद्ध सोने के तारों की कढ़ाई से युक्त भीतरी यवनिका लगवाई। यवनिका लगाकर धारिणी देवी के लिए एक भद्रासन स्थापित करवाया। जो बिछौने और कोमल उपधानों से युक्त था। जिस पर धवल वस्त्र बिछे हुए थे। जो शरीर के लिए विशिष्ट, सुखद स्पर्शवाला और अतीव सुकोमल था। भद्रासन स्थापित करवाया। करवाकर कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया। बुलाकर इस प्रकार कहादेवानुप्रियो! अष्टांग महानिमित्त" के सूत्र और अर्थ के पाठक, विविध शास्त्रों में कुशल स्वप्नपाठकों को शीघ्र बुलाओ। बुलाकर इस आज्ञा को शीघ्र ही मुझे प्रत्यर्पित करो ।
२६. राजा श्रेणिक से वह आदेश पाकर दृष्ट तुष्ट चित्त वाले, आनन्दित यावत् हर्ष से विकस्वर हृदय वाले कौटुम्बिक पुरुषों ने जुड़ी हुई सटे हुए दस नख वाली दोनों हथेलियों से निष्पन्न संपुट आकार वाली अंजलि को सिर के सम्मुख घुमाकर मस्तक पर टिकाकर जैसी आपकी आज्ञा यह कहकर विनयपूर्वक आदेश-वचन को स्वीकार किया। राजा श्रेणिक के पास से (उठकर) बाहर आए। राजगृह नगर के बीचोंबीच होकर, जहां स्वप्न पाठकों के घर थे, वहां आए। वहां आकर स्वप्नपाठकों को निमंत्रित किया ।
श्रेणिक द्वारा स्वप्नफल-पृच्छा पद
२७. राजा श्रेणिक के कौटुम्बिक पुरुषों द्वारा निमंत्रित किए जाने पर दृष्ट-तुष्ट वित्त वाले, आनन्दित यावत् हर्ष से विकस्वर हृदय वाले
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