Page #1
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥अथ श्री नव पद महिमावर्णनरूप॥ ॥श्रीश्रीपाल राजानो रास प्रारंनः॥
Sain Education Intemational
For Personal and Private Use Only
Page #2
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
रास.
श्रीविनयविजयजी तथा यशोविजयजी विरचित श्रीश्रीपाल राजानो रास
(श्री नव पद महिमावर्णनरूप)
KOROSCONCLEARNERACANC450CMAGES
आ पुस्तक श्रीचतुर्विध संघने जणवा वांचवा अर्थे उपयोगी जाणी रंगीन चित्रोनो सुधारो वधारो करी यथाशक्ति शुरू करावी
उपावी प्रसिद्ध करनार श्रावक भीमसिंद माणेक, जैन पुस्तक वेचनार तथा प्रसिद्ध करनार.
मांमवी, शाकगल्ली, मुंब.
॥१
॥
आवृत्ति पांचमी.
वीर संवत् २४४३.
विक्रम संवत् १९७३ भादरवा सुदि पंचमी.
सने १९१७.
स
Sain Education Intemational
For Personal and Private Use Only
Page #3
--------------------------------------------------------------------------
________________
POZORIA
R
4455445-555
॥प्रस्तावना॥ एक समये जैन धर्मनी अवर्णनीय जाहोजलालीनो सूर्य मध्याह्नमां प्रकाशमान् हतो, ज्यां महाराज जैन धर्मनी आणा शिरोधार्य करता हता अने तन, मन, धन अर्पण करी जैन शासनने शोलाप्रद बनावता हता. खरेखर ते जिनशासनना अलंकारोज हता के जेनां बनावेल जिन
नुवनो, जैन प्रतिमा श्रने जैन नंडारो श्रापणने दृष्टिगोचर थाय . तऽपरांत तेश्रीनां आचरणो Bाएवां तो महान् , शुक, दृढ अने शौर्यवान् , हतां के तेनुं अनुकरण करवा शास्त्रकारो श्रापणने ||
जलामण करे अने ते कारणे तेऊनां श्रद्जुत, अलौकिक चरित्रो सुंदर गद्य अने पद्यमां संस्कृत, मागधी अने गुजराती नाषामा पोतानी विछत्ताथी रचता गया . जैन धर्म प्रतिपालक राजें कुमारपाल, महाराजा संप्रति, मंत्रीश्वर वस्तुपाल, तेजपाल अने धर्मचुस्त महाराजा श्रीपाल जेवा श्रावको क्या ले के जे जिनशासननी उन्नति माटे शक्ति अनुसार खपराक्रमवडे न्यायोपार्जित करेल अव्य वापरी वसुंधरा पर लीधेलो जन्म कृतार्थ मानता हता. तेमांना श्रीपाल महाराजानुं था पद्यरूपे चरित्र के अने ते चरित्रनी श्रीविनय विजयजीए पहेला बे खंग तथा त्रीजा खमनी चार पूरी श्रने पांचमी अधुरी दाल संवत् १७३७ मां रांदेर करेला || चोमासामा लखी अने चरित्र पूरुं कर्या पहेला ते कालधर्म पाम्या. त्यारपबी तेमनाज कहेवाथी । श्रीयशोविजयजीए था चरित्रनो उत्तरार्ध नाग संपूर्ण कस्यो ने. श्रीविनयविजयजी अने यशोविजयजी समकाले थया हता. विनयविजयजीए आशरे संस्कृतमां पांच अने, गुजरातीमां वीशेक ग्रंथ रचेल . यशोविजयजीनो जन्म संवत् १६७० नी आसपास होवो जोइए, पण ते संबंधी हकीशकत चोकस रीते मली शकती नथी. तेमणे लगन्जग १७७ ग्रंथो रचेला जे एम कहेवाय ने एटले || 2000 (बे लाख ) श्लोक बनाव्या . एवी रीते गुजराती भाषामां ग्रंथो लखीने गुर्जर बंधु उपर मोटो उपकार कस्यो बे. कोइ एम कदेशे के तेमना ग्रंथो जैन धर्मने लगता तो कहेQ
CARACTERISTICA
Sain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #4
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रामशे के जेम प्रेमानंद श्रादि अन्यना रचेला ग्रंथो वैष्णव या हिंदु धर्मने लगता हता तोपण प्रस्ता
गुर्जर जापाना पोषक हता तेम श्रीमद् यशोविजयजीना ग्रंथो जैन धर्मने लगता हता तोपण गुर्जर वना. ॥ ॥
नापाना पोषक हता. जैन कविठुना गुर्जर जाषापोषक ग्रंथोमा मागधी वा संस्कृत शब्दो श्रावी ? जाय बे तेनुं कारण ए ले के जैन सादर मुनिने संस्कृत अने मागधी जापानो अभ्यास करवो पडे ने अने तेमां जैनाचार्योए हजारो ग्रंथो लखेला बे तेना आजे पुरातन नंमारो ठेकाणे ठेकाणे दृष्टिगोचर थाय ने, तेथी मागधी या संस्कृत जापाना शब्दो आवी जाय ए बनवा योग्य बे. | ही नव पदनी पूजारूप या रास (पद्यरूपे चरित्र) जे. नव पदनी उत्तम रीते पूजा करनार तरीके मुख्य
उदाहरण श्रीपाल राजानुं जे. तेमनुं चरित्र था कृतिनी पूर्वे संस्कृतमां अने प्राकृतमां अनेक आचारोए लखेबुं अने ते सर्वनो आधार लश्ने श्रा रास रचवामां आव्यो हशे. नव पद ते श्रीअरिहंत, सिक, आचार्य, उपाध्याय, सर्व साधु, दर्शन, चारित्र, झान अने तप .श्रा नव पदनो महिमा अगाध :
अने तेथी तेनुंथा रासमांजणाव्या प्रमाणे यथाविधि अनुसरण करवाथी मुक्तिमार्ग साधीशकाय बे. ॐ था रास शास्त्री गुजराती बंने अक्षरोमां पाववामां श्रावेल ने अने बंनेनी मली कुल दश
श्रावृत्ति थ बे. या शास्त्री अक्षरमांबापेल रासनी पांचमी श्रावृत्ति अने तेमां घणो सुधारो वधारो करेल . वली चित्रो पण रंगीन घणा सुधारा वधारा साथे नाखेला जे.यावा बारीक वखतमां कागल, बोर्ड ने कपमाना नाव बेचार गणा वधी जवाथी या ग्रंथनी किमतमा रु०-१२-०नो वधारो करेल एटले प्रथम किमत रु. २-४-० हती तेने बदले रु.३-०- राखी ते ग्राहक महाशयो सहन करी एवा बीजा ग्रंथो प्रगट करवा अमोने उत्साहवंत करशे. यावा ग्रंथो जैन प्रजामां
॥२॥ |वधारे प्रगट थाय अने बूटथी वंचाय तो अमारो श्रम सफल थयो मानीशं.
। था ग्रंथनां प्रुफ तपासवामां नजरदोषथी अथवा मतिदोषथी जे कांश जूलचुक रही होय ते 8 पक्षमा करी लखी जणाववाथी नवी आवृत्तिमा सुधारो करीशुं. किंबहुना ! ली. प्रकाशक.
****************
***
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #5
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ श्रीपंचपरमेष्ठिन्यो नमः॥ ॥ श्रीवीरपरमात्मने नमः॥ श्रीगौतमाय नमः ॥ ॥ अथ श्री नवपद महिमा वर्णनरूप
श्रीपाल राजानो रास ॥ प्रथम ग्रंथारं नमां ग्रंथकर्ता मंगलाचरण करता बता श्री तीर्थंकरनी वाणी जे सरस्वती देवी तेनी प्रार्थना करे .
॥दोहा॥ कल्पवेलि कवियण तणी, सरसति करि सुपसाय ॥
सिचक गुण गावतां, पूर मनोरथ माय ॥१॥ अर्थ-जेम कल्पवृक्ष युगलियाने मनोवांडित वस्तु पूरे , तेम सरस्वती देवी पण कविजने मनोवांडित पूरवाने पदानुसारिणी लब्धिरूप , माटे कवियण तणी कल्पवेली एटले कविनी कल्पवेलि एवी हे सरस्वति (माय के०) माता ! तुं मारा उपर सुपसाय एटले रुडो उत्तम प्रकारनो प्रसाद करीने सिद्धचक्रना गुण गावतां श्रका मारा मनोरथ (पूर के०) पूर्ण कर ॥१॥ अथ सरस्वतीवर्णनम् ॥ चुतविलंबितवृत्तम् ॥ प्रकटपाणितले जपमालिका, कमलपुस्तकवेणुवरा-- धरा ॥ धवलहंससमा श्रुतवाहिनी, हरतु मे छरितं जुवि नारती ॥१॥
' हवे कवि देव गुरुने नमस्कार करे बे. अलिय विघन सवि उपशमे, जपतां जिन-चोवीश ॥
नमतां निज गुरु पयकमल, जगमां वधे जगीश ॥२॥ अर्थ- चोवीश जिननो जाप जपतां थका (अलिय के० ) अलीक एटले मार्ग खोटां एवां ||
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #6
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम.१
सीताजे पापरूप विघ्नो ते सर्वे उपशमी जाय, नाश पामे थने (निज गुरु के० ) पोताना गुरुना पद-
॥४॥ कमलने नमस्कार करता थका जगत महेि (जगीश के०) यश थने शोना वास पारसने वसने श्रशने, परपरिवादे प्रपंचवाचाले ॥ जिन इत्यदरयुगलं, न वदति मुग्धे वृथैवास्ति ।
एवी रीते देव गुरुनु नमस्काररूप मंगल करीने हवे कथानी उत्पत्ति कहे जे. गुरु गौतम राजगृही, आव्या प्रज्जु आदेश ॥ श्रीमुख श्रेणिक प्रमखने. शणि परे दे उपदेश ॥३॥ नपगा। अरिहंत प्रनु, सिह नजो नगवंत॥ आचारिज उवकाय तिम, साधु सकल गुणवंत ॥४॥दरिसण पुर्खन
झानगुण,चारित्र तप सुविचार ॥ सिक्ष्चक्र ए सेवतां,पामीजे नवपार ॥५॥ अर्थ-प्रजु श्री वीर जगवाननो आदेश एटले याज्ञा लश्ने गुरु श्री गौतमखामी राजगृही नगरीने विषे पधास्या. तिहां श्रेणिक राजा प्रमुख वांदवा माटे आवेला एवा सर्व सजाजनोने (श्रीमुख के०) पोताना मुख थकी इणि परे एटले पागल कहेवाशे ते प्रमाणे उपदेश देता हवा॥३॥ के हे जव्य जनो!! तमे प्रथम पदे उपकारना करनार श्री अरिहंत प्रजुनुं अने बीजे पदे श्रीसिकनगवंतनुं जजन स्मरण करो, त्रीजे पदे श्राचार्य प्रजु, चोथे पदे श्री उपाध्यायजी तेमज पांचमे पदे (गुणवंत के) सत्यावीश गुणे करी सहित एवा ( सकल के० ) सर्व साधु जाणवा ॥४॥ बहे पदे जे पामवं| महा उर्लन डे एवं (दरिसण के०) समकित दर्शन, सातमे पदे ज्ञानगुण, थाउमे पदे चारित्रा अने नवमे पदे जे ( सुविचार के) रुमा विचारपूर्वक करवू, एटले कषायरहितपणे करवु एवं तप जाणवू. ए नव पदने सिझचक्र कहीए. ए सिद्धचक्रने सेवतां थका नव जे संसार तेनो पार पामीए॥ उक्तं च ॥ जत्तिजुत्ताण सत्ताण मण कामणं, पूरणे कप्पतरु कप्पधेणूवमं ॥ पुरक दोहग्ग दारिद |निन्नासयं, सिहचकं सया संथुणे सासयं ॥ १॥ इति ॥५॥
॥१॥
Jain Educat
i onal
For Personal and Private Use Only
ainelibrary.org
Page #7
--------------------------------------------------------------------------
________________
इद जव परजव एदथी, सुख संपद सुविशाल ॥ रोग सोग रौरव टले, जिम नरपति श्रीपाल ॥ ६ ॥ पूबे श्रेणिक राय प्रभु, ते कुण पुण्य पवित्र || इंद्रभूति तव उपदिशे, श्री श्रीपालचरित्र ॥ ७ ॥
अर्थ- हथी एटले ए नव पदना सेवनथी या जवने विषे तथा परजवने विषे सुविशाल एटले अत्यंत मोटां एवां सुख छाने ( संपद के० ) दोलत पामीए, तथा रोग, शोक अने ( रौरव के० ) महा बिहामणा विकट एवा दुष्काल प्रमुखना जय अथवा रौरव एटले नरक तेनुं दुःख ते टली जाय, जेम श्रीपाल राजा ए नव पदना सेवन थकी शद्धि सिद्धि प्रत्ये पाम्यो, तेम तमे पण पामो ॥ ६ ॥ एवं सांजलीने श्रेणिक राजा श्री गौतमस्वामीने पूढवा लाग्या के हे प्रभु ! ए पवित्र पुण्यनो धरनारो एवो श्रीपाल राजा ते कोण थयो ? तेनी कथा अमोने कही संजलावो. ( तव के० ) ते वारे इंद्रभूति श्री गौतमस्वामी ते श्रेणिक राजा प्रमुखने (श्री के० ) कल्याणरूप लक्ष्मीवंत एवं श्रीपाल | राजानुं चरित्र ते प्रथमथी मांगीने ( उपदिशे के ० ) कहे बे ॥ ७ ॥
॥ ढाल पहेली || देशी ललनानी ॥
॥ देश मनोदर मालवो, प्रति उन्नत अधिकार ॥ ललना || देश प्रवर मानुं चिहुं दिशे, परवरिया परिवार || ललना || दे० ॥ १ ॥
अर्थ - अत्यंत (उन्नत के०) उंचुं वे अधिकारी पणुं जेनुं एटले सर्व देशोमां मोटो एवो मनोहर सुंदर मालव नामे देश बे, ते देश बीजा सर्व देशोनी मध्यमां आवेलो बे, माटे कवीश्वर कहे बे के ते मालव देशने ( वर के० ) बीजा जे चारे दिशाए रहेला देशो बे, ते सर्व ( मानुं के० ) जाएं बुं जे मालव देशनो परिवार बे, ते देशोना परिवारे परवस्यो थको, वींट्यो थको शोने बे. यामां " ललना" ए पद जे बे ते वाक्यालंकारने अर्थे बे. जेम आभूषणे करी माणस शोने, तेम ललना ए पदे करी वाक्य शोने बे ॥१॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #8
--------------------------------------------------------------------------
________________
रा
तस शिर मुगट मनोहरु, निरुपम नयरी उजेण ॥ ललना ॥लखमी खंफ.१ लीला जेठनी, पार कलीजे केण ललना॥दे॥२॥सरगपुरी सरगेगा, आणी जस आशंक ॥ ललना ॥ अलकापुरी अलगी रही,जलधि ऊंपावी लंक ॥ ललना ॥ दे॥३॥ प्रजापाल प्रतपे तिहां, नूपति सवि शिरदार ॥ ललना ॥राणी सौनाग्यसुंदरी, रूपसुंदरी जरतार ॥ ललना ॥ दे॥ ४ ॥ सहेजे सोहगसुंदरी, मन माने मिथ्यात ॥ खलना ॥ रूपसुंदरी
चित्तमा रमे, सूधी समकितवात ॥ ललना ॥ दे ॥५॥ & अर्थ-जेम मस्तकने विषे मुकुट शोने ,तेमते मालव देशना मस्तकने विषे मुकुट समान शोनानी धरनारी तथा जेने कोई वस्तुनी उपमा श्रापी तेनी बराबरी करी शकीए एवी चीज जगतमां नथी । तेथी निरुपम , तथा जेनी लक्ष्मीनी लीलानी कलना करी कोण पार पामी शके ? एवी उजायणी नामे है नगरी ॥२॥ते उड़ायणी नगरीनी शोना जोश्ने खर्गपुरी नगरीए विचाखु जे ढुं जो अहींयां रहीश तो एनी बागल मने कोश्वखाणशे नहीं,एवी मनमां श्राशंका लावीने ते खर्गने विषेजती रही, तथा अलकापुर। जे धनद लोकपालनी नगरी ते पण थाशंका थाणीने उजायणीथीथलगी एटले वेगली। जती रही, अने संका नगरीथी तो उड़ायणी नगरीनु तेज खमायुं नहीं, माटे ठमक करवा सारु जलधि जे समुज तेमां (ऊंपावी के०) कंपापात कस्यो॥३॥ तिहां ते उड़ायणी नगरीने विषे सर्व राजानो शिरदार एवो प्रजापाल नामे राजा ते (प्रतपे के) प्रकर्षे करीने तपे तेने प्रतपे कहीए, एटले ते राज्य करे . ते राजा एक सौनाग्यसुंदरी अने बीजी रूपसुंदरी ए वे ॥२॥ पट्टराणीउनो ( जरतार के ) स्वामी ॥४॥ हवे ते वे राणीमां जे सौजाग्यसुंदरी राणी , ते तो सहेजे एटले वनावे पोताना मनने विषे मिथ्यात्वीना धर्मने मानी रहेली बे, अने रूप-14।
Sain Educationa
l
al
For Personal and Private Use Only
Page #9
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुंदरीना चित्तने विषे तो ( सूधी के० ) पाधरी एटले सारी रीते सम कितनी बात रमी रही बे ॥ ५ ॥ सुर परे सुख संसारना, जोगवतां नूपाल ॥ ललना ॥ पुत्री एकेकी पामीये, राणी दोय रसाल ॥ ललना ॥ दे० ॥ ६ ॥ एक अनुपम सुरलता, वाधे वधते रूप ॥ ललना ॥ बीजी बीज तणी परे, इंडुकला प्रनिरूप ॥ ललना ॥ दे० ॥ ७ ॥ सोहग्ग देवसुता तणुं, नाम ठवे नरनाद ॥ बलना ॥ सुरसुंदरी सोदामणी, आणी अधिक उच्चाह || ललना ॥ दे० ॥ ८ ॥ रूपसुंदरी राणी तणी, पुत्री पावन अंग ॥ ललना ॥ नाम तास नरपति व्वे, मयणासुंदरी मन रंग ॥ ललना ॥ दे० ॥ ९ ॥
अर्थ - (सुर परे के०) देवतानी परे एटले देवतार्ज जेम पोतानी देवांगनार्जनी साथै सुखविलास जोगवे तेनी पेरे राजाने पण ते बेदु राणी उनी साथै संसार संबंधी सुखविलास जोगवतां थका ते बेदु राणीने ( रसाल के० ) सुंदर मनोहर एवी एकेकी पुत्री ( पामीये के० ) प्राप्त थइ ॥ ६ ॥ तेमां एक पुत्री तो अनुपम एवी जे ( सुरलता के० ) कल्पवृक्षनी वेलि तेनी पेरे दिवसे दिवसे वधते वधते रूपे करी ( वाघे के० ) वृद्धि पामे बे, एटले कल्पवृनी वेलि जेम दिवसे दिवसे वृद्धि पामती जाय तेम ते कुंबरी पण वधते रूपे करी वृद्धि पामती जाय बे, अने बीजी कुंवरी जे बे, ते बीजना | झंडु के० ) चंद्रमा तेनी कलानी ( निरूप के० ) तुल्य एवी वृद्धि पामे बे, एटले जेम शुक्लपक्षनी बीजना दिवसथी मांगीने दिन दिन प्रत्ये चंद्रमानी कला वधती जाय, तेम ते कुंबरी पण वृद्धि पा - | मवा लागी ॥ ७ ॥ हवे ( सोहग्ग के० ) सौभाग्यसुंदरी नामे राणी तेनी पुत्री तो ( देवसुता के० ) देवतानी सुंदरीना जेवी सोदामणी बे, माटे ( नरनाह के० ) नरनो नाथ जे राजा ते पोताना मनमां अधिक उत्साह आणी ( तनुं के० ) तेनुं सुरसुंदरी एवं नाम (ठवे के० ) स्थापे, पाडे ॥ ८ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #10
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम अने रूपसुंदरी नामे राणीनी जे पुत्री तेनां अंगोपांग सर्व ( पावन के ) पवित्र सुलक्षण||
जोड्ने ( नरपति के ) राजा ते पोताना मनने विषे (रंग के०) हर्ष आनंद आणीने (तास केला ॥३॥ तेनुं मयणासुंदरी एवं नाम ( उवे के० ) स्थापे, पाडे ॥ ५ ॥
वेदविचक्षण विप्रने, सोंपे सोदग्ग देवी ॥ ललना ॥ सकल कलागुण शीखवा, सुरसुंदरीने देवी ॥ खलना ॥ दे० ॥१०॥ मयणाने माता ग्वे, जिनमत पंडित पास ॥ ललना ॥ सार विचार सिक्षांतना, आदरवा अन्यास ॥ ललना ॥ दे ॥ ११॥ चतुर कला चोसठ नणी, ते बेहु बुद्धिनिधान ॥ ललना ॥ शब्दशास्त्र सवि आवड्यां, नाम निघंटु निदान ।
॥ललना ॥ दे० ॥१२॥ अर्थ-(सकल के०) सर्व कलागुण शीखवाने अर्थे वेद मांहे विचक्षण एटले माह्यो एवो जे शिव-II नूति नामे (विप्र के०) ब्राह्मण, तेने (सोहग्ग देवी के०) सौजाग्यसुंदरी नामे राणीए पोतानी पुत्री जे| लासुरसुंदरीतेने (हेवीके) तरत सोपी.अर्थात सरसंदरीने ब्राह्मण पासेजणवा मोकली॥१०॥हवे
मयणासुंदरीनी माता तो जैनसिकांतो संबंधी (सार के०)प्रधान जला एवा जे विचार तेनो अभ्यास श्रादरवाने श्रर्थे श्रीजैनमतना जाण एवा सुबुझिनामे पंमित जे अध्यापक तेमनी पासे (उवे के०) स्थापे ने एटले मोकले ॥११॥ ते कुंवरी स्त्रीनी चतुराई संबंधी जे चोस कला तेने नणीने बेहु जणी घणी एवी जे बुद्धि तेनो ( निधान के०) नंमार थर, तेने अनेक प्रकारनां 3 शब्दशास्त्र जे व्याकरण तथा नाममाला, निघंटु, आदान, निदान अने चिकित्सादिक ते सर्व श्रावड्यां, एटले ते पूर्वोक्त सर्व प्रकारनां शास्त्र जणी ग ॥ १५ ॥
4054XAAAAAAAAAA SASARANA OSOBA
Sein Education remational
For Personal and Private Use Only
Page #11
--------------------------------------------------------------------------
________________
कवित कलागुण केलवे, वाजिन गीत संगीत ॥ ललना ॥ ज्योतिष वैद्यक विधि जाणे, राग रंग रसरीत ॥ललना ॥ दे ॥ १३ ॥सोल कलापूरण शशी, करवा कला अभ्यास ॥ ललना ॥ जगति नमे जस मुख देखी, चोसठ कलाविलास ॥ ललना ॥ दे॥१४॥ मयणासुंदरी मति अति जली, जाणे जिनसिक्षांत ॥ ललना ॥ स्थाबाद तस मन वस्यो, अवर
असत्य एकांत ॥ ललना ॥ दे ॥ १५॥ अर्थ-ते कुंवरी कवित करवानी कलारूप गुणने केलवती थकी एटले सुधारती थकी वाजिंत्र वगामवां गीत ते स्वरबद्ध गीत गावां तथा संगीत ते वाजिंत्र नाटकनां गीत तालबछ जाणवां तथा ज्योतिष-18 शास्त्र, वैद्यकशास्त्र तेना विधि जे प्रकार, ते सर्वने जाणे, अने ब राग तेना रंग तथा नव रस तेनी रीत ए सर्वने जाणे एटले ए पूर्वोक्त सर्व शास्त्रना रहस्यनीजाणनारी थ॥१३॥श्हां कवि उत्प्रेक्षा करे के (जस के०) जे कुंवरीनु मुख देखीने सोल कलाए करी पूर्ण एवो जे (शशी के०) चंद्रमा 0 ते विचार करवा लाग्यो जे था मयणासुंदरी तो संपूर्ण चोस कलानो विलास , अने हुँ तो मात्र सोल कलाए करी सहित बुं, माटे हुँ पण जो चोसठ कलानो अज्यास करूं तो एना जेवो था, एवं चिंतवीने वधारे कलाउनो अज्यास करवा माटे मयणानुं मुख देखीने जगतमां भ्रमण करवा लाग्यो, एटले आकाशमां नमतोज फरे बे, तोपण ते सोलथी वधती को सत्तरमी कलाने पामतो नथी ॥ १४ ॥ वली मयणासुंदरीनी (मति के० ) बुद्धि ते अत्यंत नली , श्रीजिनराजना सिझ-13 तने ते जाणे बे तथा जगवंते जे स्याहादरूप अनेकांत मार्ग प्ररूप्यो , ते तेना मनमां वसी रह्यो । शा, अने (अवर के०) बीजा जे एकांतवाद मतनी प्ररूपणा करनारा मार्गो , ते सर्वने असत्य करी जाण्या बे, एवी ते कुंवरी थबे ॥ १५॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
ainelibrary.org
Page #12
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
॥४॥
नय जाणे नवतत्त्वना, पुजल गुण पर्याय ॥ ललना॥ कर्मग्रंथ कंठे कस्खा, खंम.१ समकित शुझ सुदाय ॥ ललना ॥ दे॥१६॥ सूत्र अर्थ संघयणनां, प्रवचनसारोधार ॥ खलना ॥ त्रिविचार खरा धरे, एम अनेक विचार ॥ खलना ॥ दे० ॥ १७ ॥रास नलो श्रीपालनो, तेदनी पदेली ढाल
॥ ललना॥विनय कदेश्रोताघरे, होजो मंगलमालाललना ॥दे॥१७॥ | अर्थ-वली नवतत्त्वने निश्चय तथा व्यवहार नये करीयुक्त जाणे , तथा पुजल व्यना गुण अने पर्याय सर्व जाणे , श्रने कर्मग्रंथ जणीने जेणे कंठे कस्या , एटले मुखपाठे कस्या बे. एवी रीते ते कुंवरी शुष समकिते करी (सुहाय के०) शोजायमान यश् ॥ १६ ॥ वली संघयणीनां सूत्र एटले मूलपाठ तथा तेना अर्थ, ते सर्वने जाणे , तथा प्रवचनसारोकार ग्रंथने जाणे बे. वली देत्रसमास संबंधी जे क्षेत्रना विचार, तेने खरेखरा धारी राख्या . ए रीते अनेक प्रकारना| विचारोने मयणासुंदरी जाणे ॥ १७ ॥( जलो के० ) रुडो एवो जे श्रीपाल राजानो रास, | तेनी ए पहेली ढाल संपूर्ण थर. श्री विनयविजय उपाध्यायजी कहे के श्रोता एटले सांजलनाराजनां घरने विषे मांगलिकनी माला होजो ॥ १७ ॥ इति ॥
॥दोहा॥ इक दिन अवनीपति इस्यो, आएयो मन उल्लास ॥
पुत्री-जो पार, विद्या विनय विलास ॥१॥ __ अर्थ-हवे एक दिवसे श्रवनी जे पृथ्वी तेनो पति जे प्रजापाल नामे राजा, तेणे मांहेली सनामांEng बेतां थका पोताना मनने विषे एवोज उदास श्राण्यो जे हुँ मारी बेहु पुत्रीनुं पारखं तो जो जे | ए केवी विद्या नणेली ? तथा वली विनयनो विलास पण एमनामां केवो ?॥१॥
SACANCACADACANASANASAMACOCOCOCC4
Sain Educati
o
nal
For Personal and Private Use Only
nelibrary.org
Page #13
--------------------------------------------------------------------------
________________
सजा मांदे शणगार करी, बोलावी बिहु बाल ॥ यावी अध्यापक सहित, मोहन गुणमणिमान ॥ २ ॥ अर्थ अगोचर शास्त्रना, पूवे नूपति जेद ॥ बुबले बेहु बालिका पे उत्तर तेद ॥ ३ ॥ प्रध्यापक आणंदीया, सऊन सवे सुख पाय ॥ चतुर लोक चित्त चमकीया, फल्या मनोरथ माय ॥ ४ ॥ विनय वल्ल निज बालनी, शास्त्र सुकोमल जाख ॥ सरस जिसी सहकारनी, साकर सरसी साख ॥ ५ ॥
अर्थ - एव निर्धार करीने ते बेदु बालिकाउने बोलावी एटले तेमावी, ते वारे ते बेदु कुंवरीज सोल शणगार करीने तेमना पोतपोताना अध्यापक जे जणावनारा गुरु, तेणे सहित सजाने विषे यावी. ते कुंवरी केवी बे ? तो के मोहने पमागनारी एवी गुणरूप मणिनी माला | सरखी बे, अने वली रूप लावण्ये करीने शोजावी बे सजा जेणे एवी बे ॥ २ ॥ ॥ हवे जे जे | शास्त्रना अगोचर एटले कोइने खबर न पडे एवा अर्थ राजा पूबे बे, तेना उत्तर ते बेहु बालिका पोतपोताना बुद्धिबले करी आपे बे ॥ ३ ॥ ते उत्तर सांजलीने अध्यापक जे जणावनारा ते घणो श्रानंद पाम्या, तथा सकन लोक सर्व सुख पाम्या, अने चतुर लोकनां चित्त | चमत्कार पामी गयां, तथा ते बन्ने कुंवरीनी ( माय के० ) मातार्जुना मनोरथ पण फल्या, | एटले सफल यया ॥ ४ ॥ विनये करी युक्त माटे वल्लन एवी पोतानी बालिकार्जुनी शास्त्रे करीने सुकोमल एवी ( जाख के० ) वाणी, ते केवी मीठी लागे बे ! के जेवी ( सरस के० ) रसे करीने सहित एवी ( सहकार के० ) यांबानी ताजी साख तेने विषे जेम साकर नेली होय अने ते जेवी मीठी लागे, तेवी लागे ॥ ५ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
inelibrary.org
Page #14
--------------------------------------------------------------------------
________________
ॐ
=
॥५
॥
॥ ढाल बीजी॥ राग धोरणी ॥ पुण्य प्रशंसीये ॥ ए देशी॥ प्रश्नोत्तर पूरे पिता रे, आणी अधिक प्रमोद ॥ मन लागे अति मीठमां रे, बालक वचन विनोद रे॥ वत्स विचारजो ॥ देश उत्तर एद रे, सांसो वारजो ॥१॥ ए आंकणी ॥ कुण लक्षण जीवित तणुं रे, कुण मनमथ घरनारी ॥कुसुम कुण उत्तम कां रे, परणी शंकरे कुमारी रे ॥ वत्स विचारजो॥२॥ एके वयणे एदनो रे, उत्तर एणी परे थाय ॥
सुरसुंदरी कदे तातजी रे, सुणजो "सासरे जाय" रे॥ नृप अवधारजो॥ __ अरथ सुणी अम एद रे॥ मोदत वधारजो ॥३॥ | अर्थ-हवे बालकनां वचननो ( विनोद के०) जे आनंद ते माता पितानां मनमां अत्यंत मीठो लागे , माटे कुंवरीउनो पिता जे प्रजापाल राजा, ते पोताना मनमां अधिक (प्रमोद के०) हर्ष आणीने प्रश्नना उत्तर पूजे जे के हे वत्सो ! हे पुत्री ! तमे तमारा हृदयने विषे विचारजो, अने अमे जे प्रश्न पूडीए, तेना उत्तर थापीने अमारा मननो संदेह निवारण करजो
उक्तं च ॥ न तथा शशी न सलिलं, न चंदनं नैव शीतला छाया ॥ आह्लादयंति पुरुषं, यथा , हि मधुरादरा वाणी ॥ १॥ इति ॥ हवे राजा पूजे जे जे हे वत्स ! एक तो जीववानुं लक्षण शुं
? बीजु मन्मथ जे कामदेव तेना घरनी स्त्री कोण ?त्रीजुं सर्व जातिनां फूलमांहे उत्तम फूल कयुं कहीए ? चोथु कुमारिका परणीने शुं करे ? एवा चार प्रश्न पूच्या ॥२॥पूर्वे कहेला चार प्रश्नना उत्तर ते एक वचने करीनेज आपो, ते वारे प्रथम सुरसुंदरी कहे जे के हे पिताजी !( सुणजो के) सांजलजो ( सासरे जाय)ए एकज वचनमां चारे प्रश्नना उत्तर समा गया . ते आवी रीते | के (सास) (रे) थने (जाय) ए पूर्वोक्त एक वचनमांश्री त्रण पद नीकले बे, तेमां प्रथम
॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #15
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवितव्यनुं लक्षण सास एटले श्वास बे, केमके ज्यांसुधी श्वास होय त्यांसुधी ते जीवतुं वे एम कहेवाय. ए पहेला प्रश्ननो उत्तर जाणवो. तथा कामदेवनी स्त्री (रे के०) रति एवे नामे बे. ए बीजा प्रश्ननो उत्तर समजवो. वली सर्व जातिनां पुष्पमां ( जाय के० ) जाइनां फूल ते उत्तम कहेवाय बे. ए त्रीजा प्रश्ननो उत्तर कह्यो, अने ( सासरे जाय ) ए संपूर्ण वचने करी कुमारिका परणीने शुं करे ? तो के ते पोताने सासरे जाय. ए चोथा प्रश्ननो उत्तर जाणी लेबो. ए रीते हे। पिताजी ! तमे जे अर्थ पूठ्यो, तेनो एकज वचने करीने में उत्तर आप्यो बे. ते हे नरपति तमे अवधारजो, एटले मानजो. ए में जे अर्थ कला, ते सांजलीने मारो ( मोहत के० ) महत्त्व वधारजो ॥ ३ ॥
मणाने मदीपति कदे रे, अर्थ कदो म एक ॥ जो तमे शास्त्र संजा - लतां रे, वाध्यो हृदय विवेक रे ॥ व ॥ ४ ॥ यदि अक्षर वि जेद वे रे, जग जीवाडणहार ॥ तेदिज मध्यादर विना रे, जग संदारणदार रे ॥ ६० ॥ ५॥
- हवे महीपति जे राजा, ते मयणासुंदरीने कहे बे के मे एक प्रश्न पूढीए बीए ते जो तमे शास्त्र जरयां ढो अने तेने संजालतां थका तमारा हृदयने विषे विवेकनी वृद्धि करी बे, तो अमने एनो अर्थ कहो ॥ ४ ॥ एक शब्दनो ( आदि के० ) पहेलो जे अक्षर बे, ते अक्षर विना बीजा जे अक्षरो बे, ते सर्व जगतने जीवाडनारा बे, वली तेज शब्दनो मध्याक्षर एटले वचमांनो अक्षर, तेणे करी रहित ते शब्दने जो करीए तो शेष जे अक्षर रहे बे, ते जगतने संहार करनारा बे ॥ ५ ॥
Jain Educationa Intemational
For Personal and Private Use Only
jainelibrary.org
Page #16
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ६॥
अंत्याक्षरविण प्रापणुं रे, लागे सहुने मीठ ॥ मयणा कदे सुणजो पिता रे, ते में नयणे दीरे ॥ नृप० ॥ ६ ॥ सगुण समस्या पूरजो रे, नूपति कदे धरी नेद ॥ प्रर्य उपाइ अभिनवो रे, पुण्ये पामीजे एद रे ॥ व ॥ ७ ॥
अर्थ- वली तेज शब्दना अंत्यनो अक्षर काढी नाखतां बाकीना जे अक्षर रहे बे ते ( आपणुं के० ) पोतानुं जे काज ते सदु कोइने मीतुं लागे बे. एवं राजानुं वचन सांजलीने मयणासुंदरी कहे बे के हे पिताजी ! सांजलजो, ते तो में मारां नयणे दीव एटले चक्षुने विषे दीतुं बे, एटले चकुमां (काजल) अंजाय वे तेमांची आद्यनो ( का ) अक्षर काढी नाखीए, ते वारे (जल ) ए वे अक्षरो रहे, ते जल एटले पाणी सर्व जगतने जीवामनाएं बे, अने मध्यनो (ज) अक्षर काढी नाखीए, ते वारे ( काल ) एवा बे अक्षर रहे, ते काल तो जगतने संहार करनार बे, तथा बेल्लो (ल) अक्षर काढी नाखीए, ते वारे ( काज ) एवा बे छाक्षर रहे, ते काज एटले कार्य ते तो पोतानुं सहु कोइने मीतुं लागे ते. इत्यर्थः ॥ यदुक्तं ॥ किं लव सदर हियं, किंच यदिहं च वल्लहं होइ ॥ किंच श्रहिं मिठ, जग्गं किं सुंदरं होइ ॥ १ ॥ श्रा गाथामां लखेला चारे प्रश्ननो उत्तर ॥ नामी, जीव, अमृत घने कोष ॥ इति ॥ उक्तं च ॥ प्रथमाक्षर विण नूपति सोहे, मध्याक्षर विण स्त्रीयां मोहे ॥ अंत्याक्षर विष पंकित प्यारो, ए हरियाली पंकित विचारो ॥ १ ॥ उत्तर ॥ वादल जाणवुं ॥ प्रथमाक्षर विण घर घर दीवी, मध्याक्षर विष सुरा मीठी ॥ अंत्याक्षर विए योगी जाणे, त्रिहुं अक्षर शिर नारी वखाणे ॥ २ ॥ उत्तर ॥ राखमी ॥ प्रथमाक्षर विष सहुने जावे, मध्याक्षर विष जग श्रसुहावे ॥ अंत्याक्षर विण पंखी मेलो, सो साजन मोकलजो वहेलो ॥ उत्तर ॥ कागल जावो ॥ ३ ॥ ६ ॥ वली एक ( अनिवो के० ) नवो अर्थ उत्पन्न करीने नूपति जे राजा ते ( नेह के० ) स्नेह धरीने बेहु पुत्रीउने समकाले कहे वे के हे
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa Intemational
खंरु. १
॥ ६॥
Page #17
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुगुण वत्सो ! तमे मारी एक समस्या पूर्ण करजो, जे पुण्य थकी था अमुक वस्तु पामीए एटले पुण्यश्री शी शी वस्तु पामीए ते कहो ॥७॥
सुरसुंदरी कहे चातुरी रे, धन यौवन वर देव ॥ मनवल्लन मेलावडो रे, पुण्ये पामीजे एद रे॥ नृपः॥॥ मयणा कहे मति न्यायनी रे, शीलशुं निर्मल देह ॥ संगति गुरु गुणवंतनी रे, पुण्ये पामीजे एह रे॥नृप०॥ ॥ ए॥णे अवसर नूपति नणे रे, आणी मन अनिमान ॥ हुँ तूगे तुम नपरे रे, देखें वांबित दान रे ॥व ॥ १०॥ हुँ निर्धनने धन देखें रे, करुं रंकने राय ॥ लोक सकल सुख भोगवे रे, पामी मुज पसाय
रे॥व०॥१२॥ अर्थ-एवं राजानुं वचन सांजलीने प्रथम तो चतुरपणाथी सुरसुंदरी कहे जे के हे पिताजी ! एक धन, बीजु यौवन, त्रीजो (वर के० ) प्रधान सुंदर एवो ( देह के०) शरीर तथा चोथो | मनववन जे जरि तेनो मिलाप, एटलां वानां पुण्य थकी पामीए ॥ ७॥ हवे मयणासुंदरी उत्तर कहे जे के हे पिताजी ! एक तो न्यायनी (मति के०) बुद्धि, बीजुं शीले करीने निर्मल (देह के०) शरीर, त्रीजी रुमा गुणवंत गुरुनी संगति एटले समागम, ए वस्तु पुण्यना योगे
पामीए ॥ ए ॥ एवा अवसरने विषे राजा मनमां अनिमान आणीने (जणे के० ) कहे जे जे हुँ हातमारा उपर संतुष्ट थयो बुं, माटे तमोने मनोवांछित दान श्रापुं ॥ १० ॥ हुँ केवो ढुं ? तो के
जे निर्धन पुरुष होय तेने धन आपीने धनवंत करु, तथा रंकने राजा करूं, अने सर्व लोक जे सुख |जोगवे , ते मारो पसाय पामीने जोगवे ने ॥ ११॥
Sain Education heational
For Personal and Private Use Only
Page #18
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥७
॥
सकल पदारथ पामीए रे, में तूरे जग मांदि ॥ में रूठे जग रोलीए रे, खंग.१ जनो न रहे कोइ गदि रे ॥ व ॥ १२ ॥ सुंदरी कहे साचुं पिता रे, एहमां किश्यो संदेह ॥ जग जीवाडण दोय ने रे, एक महीपति दूजो मेद रे॥ नृप० ॥ १३ ॥ साचुं साचुं सहु कहे रे, सकल सना तेणी वार ॥ ए सुरसुंदरी जेदवी रे, चतुर न को संसार रे॥नृप० ॥ २४ ॥ राजा पण मन रंजियो रे, कदे सुंदरी वर माग ॥ वांवित वर तुज मेलवी रे, देखें
सकल सौनाग्य रे ॥ व ॥ १५॥ अर्थ-जगतमा जेनी उपर ढुं संतुष्ट था तो तेने सर्व पदार्थ- पामवापणुं बे, श्रने जेनी उपर हुं रूतुं, तो तेने रोली ना, तेथी को प्राणी तेनी बायामां पण उन्नो रहे नहीं ॥ १५ ॥ एवं राजानुं वचन सांजली सुरसुंदरी कहे जे के हे पिताजी ! तमे जे कहो लो ते साचुं ले. एमां शो संदेह ? जगतने जीवामनारा बेजबे, तेमां एक तो महीपति एटले राजा श्रने बीजो मेह एटले वर्षाद ॥ १३ ॥ ते वारे तिहां सहु को सजाना लोक ते सर्व साधु साधु कहेता दवा, श्रने 8 एम कहेवा लाग्या के संसारने विषे बीजी को था सुरसुंदरीना जेवी चतुर स्त्री नथी ॥ यह है साची सवहीं कहे, राजा करे सो न्याय ॥ ज्यों चोपरके खेलमें, पासा परे सो दाय ॥१॥बनती। देख बनाये, परत न दीजे खोट ॥ जैसो वाजे वायरो, तैसी लीजे उंट ॥२॥ सजा सोहंतुं बोलीये, जैसी सजा सोहाय ॥ जैसो वानर पेखणो, जैसी शिला तणाय ॥३॥ १४ ॥ राजा पण 81 |मनमा रंजित थश्ने कहेवा लाग्यो के हे सुरसुंदरि ! तुंवर माग. हुं तुजने मनोवांबित वर मेलवीने सर्व सौजाग्य श्रापुं ॥ १५ ॥
*ISSAASSSSSSSSSSSSSSS
॥७॥
For Personal and Private Use Only
Page #19
--------------------------------------------------------------------------
________________
तिहां कुरुजंगल देशथी रे, आव्यो अवनीपाल ॥ सन्ना मांदे सोहे घणो रे, यौवन रूप रसाल रे॥नृप० ॥१६॥ शंखपुरी नयरी धणी रे, अरिदमन तस नाम ॥ ते देखी सुरसुंदरी रे, अंगे उपनो काम रे ॥ व० ॥ १७ ॥ पृथिवीपति तस नपरे रे, परखी तास सनेद ॥ तिलक करी अरिदमनने रे, आपी अंगजा तेद रे ॥ व०॥ १७ ॥रास रच्यो श्रीपालनो रे, तेदनी बीजी ढाल ॥ विनय कदे श्रोताघरे रे, होजो मंगलमाल रे॥व०॥१५॥ अर्थ-एवा अवसरने विषे कुरुजंगल नामे देश थकी दमितारि राजानो पुत्र (अवनी के०) पृथ्वी तेनो (पाल के० ) पालनारो एवो ते राजा उजायणीना राजानी सेवा करवाने अर्थे त्यां श्राव्यो . ते यौवन अवस्था तथा रूपसौंदर्य तेणे करी( रसाल के संदर. माटे सजा मांहे बेगे थको घणुं शोने ॥ १६ ॥ ते शंखपुरी नामे नगरीनो स्वामी ने, अने अरिदमन एवं तेनुं नाम बे. तेने देखीने सुरसुंदरीना अंगने विषे काम उत्पन्न थयो ॥ १७॥ ते वारे पृथिवी-15 पति जे राजा तेणे अरिदमननी उपर सुरसुंदरीनो स्नेह परखीने तिलक करी पोतानी सुरसुंदरी नामे अंगजा जे पुत्री, ते तेने थापी ॥ नयन नयनकी पारसी, नयन नयनको हेत ॥ नयन 8 नयनके नयनमें, नयन नयन कह देत ॥१॥ १७ ॥ ए श्रीपाल राजाना रासनी रचना करी तेनी बीजी ढाल पूर्ण थ२. विनयविजय उपाध्यायजी कहे जे के सांजलनाराने घेर मांगलिकनी माला होजो ॥ १॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
ainelibrary.org
Page #20
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥ ८ ॥
॥ दोहा ॥
मयणा मस्तक धूणती, जव निरखी नरराय ॥ पूढे पुत्री वात ए, तुम मन किम न सुहाय ॥ १ ॥ सकल सनाथी सोगुणी, चतुराई चित्त मांहि ॥ दीसे ते दाखवो, आणी अंग उत्सादि ॥ २ ॥ उचित नहीं इदां बोल, मया कदे महाराय ॥ मोदे मन माणस तणां विरुच्या विषय कषाय ॥ ३ ॥ निर्विवेक नरपति जिदां, अंश नहीं उपयोग ॥ सजालोक सदु दाजीया, सरिखो मध्यो संयोग ॥ ४ ॥
अर्थ - एवा समयने विषे मस्तक धूणावती एवी मयणासुंदीने जे वारे प्रजापाल राजाए दीवी, ते वारे राजाए पूब्धुं जे हे पुत्र ! ए वात तमारा मनने विषे केम सोहाती नथी, एटले गमती नथी ? ॥ १ ॥ या सर्व सनाथी सोगुणी चतुराई तमारा चित्त मांदे देखाय बे, तो अंगमां उत्साह आणीने जे संजव वात होय ते कही देखाडो ॥ २ ॥ एवं राजानुं बोलवं सांजलीने मयणासुंदरी कहे बे के हे महाराज ! इहां था सजाने विषे बोलवु उचित नथी, संसारमां ( विरुया के० ) माग एवा जे विषयाने कषाय बे, तेना योगे माणसोनां मन मोहने पामे बे ॥ चालतां कुलवहडी, बोलतां कुलन्याय ॥ श्रहवा लही सांपमो, छावा लछी जाई ॥ १ ॥ अवसर देखी बोलीये, एके अक्षर सार ॥ अवसर विण जे बोलवु जण जण कहे गमार ॥ २ ॥ इति ॥ ३ ॥ जे ठेकाणे राजाने विवेक नथी तथा एक अंशमात्र पण शास्त्रनो उपयोग नथी, अने वली सजाना लोक तो सर्व हाजी हाजी करनारा हाजीया बे, एवी रीते सर्व संयोग सरखो मल्यो बे, तेवी सजाने विषे बोलतुं उचित नथी ॥ ४ ॥
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa International
खंग. १
|| 6 |
Page #21
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ढाल त्रीजी ॥ राग केदारो ॥ कपूर होवे अति उजलो रे ॥ए देशी॥ मन मंदिर दीपक जिस्यो रे, दीपे जास विवेक ॥ तास न कहिए परानवे रे, अंग अज्ञान अनेक ॥ पिताजी ॥ म करो जूठ गुमान ॥ ए शदि अथिर निदान ॥ पिताजी॥ जेदवो जलधि जधान ॥ पिताजी ॥ म करो० ॥१॥सुख दुःख सहुए अनुन्नवे रे, केवल कर्म पसाय ॥अधिक न उबुं तेदमां रे, कीथं कोणे न जाय ॥ पिताजी॥म करो ॥२॥राजा कोपे कलकल्यो रे,सांनलतां ते वात ॥वहालीपण वेरण थश्रे,कीधो वचनविघात रे॥बेटी॥नली रे नणी तुं आज॥ तें लोपी मुझ लाज रे॥4॥ विणसाड्यु निज काज रे॥ बे॥ तुं मूरख शिरताज रे॥बे॥०॥३॥ अर्थ-मनरूप मंदिरने विषे दीपक जेवो जेने विवेक दीपे , तेना अंगमां अनेक जातिनुं जे अज्ञान दे ते केवारे पण परानव करी शके नहीं, माटे हे पिताजी ! तमे जूटुं अनिमान म करो. ए सर्व डि जे , ते ( निदान के०) निश्चे जेवो (जलधि के०) समुप तेनो ( उधान है |के० ) जरती छंट बे, एटले समुपमा पाणी चढे ले अने जेम आवीने पातुं वली जाय , तेनी पेरे
अथिर ॥ धन जोबनका म करो गुमाना, जानो तरुवर पाकां पानां ॥ लगत वायु अंते जमा पमनां, तो ते पर एता क्या करनां ? ॥१॥ संसारने विषे सहु को सुख तथा पुःखने अनुजवे 3 एटले जोगवे , ते केवल एकलां पोतानां कर्मना पसायथीज लोगवे , तेमां अधिकुं तथा उद्धं एटले न्यूनाधिक कोश्थी की, जाय नहीं ॥२॥ एवी मयणासुंदरीनी वातने सांजलतांज राजा, क्रोधे करी कलकल्यो थको कहेवा लाग्यो के तुं मने घणी वहाली हती, पण वेरण थ. जे का-15 रणे तें मारा वचननो विघात कस्यो, माटे हे बेटी ! तुं तो आज जली (जणी के०) बोली
in S
antana
For Personal and Private Use Only
wwwtainelibrary.org
Page #22
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राजे तें मारी लाज लोपी अने तारं पोतानुं कार्य ( विणसाड्यु के० ) बगाड्यु, तेथी तुं सर्व मूर्ख खम.१
जनोनी शिरताज बगे ॥३॥
पोपीने पोढी करी रे, नोजन कूर कपूर ॥रयण हिंडोले दींचती रे, नोग जला नरपूर रे॥ ॥ ॥४॥पाट पटंबर पढेरणे रे,परिजन सेवे पाय॥ जगमां सहु जी जी करे रे, ए सवि मुज पसाय रे ॥बे ॥ना ॥५॥ तत्त्व विचारो तातजी रे, मत प्राणो मन रोष ॥ कर्मे तुम कुल अवतरी रे, में किहां जोयो जोष ॥ वि०॥म ॥६॥ मल्हावो मोटे मने रे, नव नव करो निवेद॥ते सवि कर्मपसानले रे, ए अवधारो नेद॥पि॥म॥७॥ जो दवाद तुझने घणो रे, कर्म उपर एकंत ॥ तो तुझने परणावशें
रे, कर्मे आएयो कंत रे॥ बे० ॥०॥ ७॥ अर्थ-कपूर सरखा उजला कूरनां नोजन करावी पाली पोषीने ( पोढी के० ) मोटी करी , तथा रत्ने जमित हिंडोलाखाट मांहे हींचे एवा (जला के० )रुमा नरपूर एटले परिपूर्ण नोग नोगवे ॥४॥ वली एक पाटनां (पटंबर के० ) रेशमी उंचां चीर पटकूलादि वस्त्रो पहेरवाने मले अने परिजन जे चाकर लोक ते तारा पगनी सेवा करे , जगतमा ज्यां जाय डे त्यां। सर्व को जी जी करीने बोलावे , ते सर्व मारा पसायथी जाणजे॥५॥ते सांजली मयणासुंदरी बोली के हे पिताजी ! ए वातनुं तत्त्व विचारो, तमारा मनने विषेरोष म आणो. में तमारा कुलमां उपजवानो क्यां जोष जोयो हतो? परंतुपूर्वकृत कर्मना संयोगथी तमारा कुलमां श्रावी अवतरेली ढुं॥६॥2॥ तमे मने मोटे मने करी महावो गे, श्रने नवा नवा ( निवेद के०) खान पान करावो बो, ते सर्व मारा कर्मना पसायथी , ए (नेद के ) तत्त्व ते (अवधारो के०) अवधारण करीने मानो ॥७॥
Sain Educatio
n
al
For Personal and Private Use Only
INETimelibrary.org
Page #23
--------------------------------------------------------------------------
________________
ते वारे राजा कड़ेवा लाग्यो के जो तुजने एकांतपद कर्म उपरज घणोज हठवाद बे, तो कर्मे आणी आपेलो जे ( कंत के० ) नर्त्तार तेज तुमने परावसुं ॥ ८ ॥
मानदण्युं जो एपीए रे, मादरुं सना समक्ष ॥ फल देखाडुं एहने रे, सकल प्रजा प्रत्यक्ष रे ॥ बे० ॥ ० ॥ ए ॥ सखीए ए शुं शीखव्यं रे, अध्यापक ज्ञान ॥ सन लोक लाजे सहु रे, देखी ए अपमान रे ॥ बे ॥ ज० ॥ १० ॥ नगरलोक निंदे सहु रे, जयं एदनुं धूल ॥ जूर्ज वातनी वामां रे, पिता को प्रतिकूल रे ॥ बे० ॥ ज० ॥ १२ ॥ मिथ्यात्वी कदे जैननी रे, वात सवे विपरीत || जगतनीति जाणे नहीं रे, अवला ने विनीत रे ॥ ० ॥ ० ॥ १२ ॥
अर्थ - राजा विचारे बे के जो ए मयणाए सर्व सना समझ मारुं मान इण्यं बे, तो तेनां फल पण सर्व प्रजा देखतां थका प्रत्यक्ष एहने हुं देखाडुं ॥ यदुक्तं ॥ श्राज्ञानंगो नरेंद्राणां गुरूणां |मानमर्दनम् ॥ पृथक्शय्या च नारीणा, - मशस्त्रवध उच्यते ॥ १ ॥ इति ॥ ए ॥ अरे ! एना सोबतीए एने श्रावुं ते शुं शीखव्युं ? तथा एनो अध्यापक जे जणावनार ते पण अज्ञानी देखाय
! एवी रीते राजानुं अपमान थयेलुं देखीने सऊन लोक जे सगां संबंधी ते सर्व लका पाम्यां ॥ १० ॥ नगर निवासी लोक पण सर्व निंदा करवा लाग्यां, अने कदेवा लाग्यां के ए मयणानुं जणवं ते धूल जेवुं ययुं, जूनुं तो खरा ? जे सेजसाज वातनी वातमां पोताना पिताने प्रतिकूल करयो ॥ यतः ॥ स्वस्तुतिं परनिंदा वा, कर्त्ता लोकः पदे पदे ॥ परस्तुतिं स्वनिंदा वा, कर्त्ता कोऽपि न विद्यते ॥ १॥ ११ ॥ वली मिथ्यात्वी लोको कहेवा लाग्यां के जैननी वात सर्वे विपरीत एटले वली बे, जगतनी नीति कांइ पण ए जाणता नथी, तेथी छावला बे ने विनीत एटले विनयाचार रहित बे १२
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only)
ainelibrary.org
Page #24
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
खम.१
॥१०॥
अवसर पामी रायनो रे, रोष समावण काज ॥ कदे प्रधान पधारीये रे, रयवाडी महाराज रे ॥ बे ॥ ॥ १३ ॥ रास नलो श्रीपालनो रे, तेदनी त्रीजी ढाल ॥ विनय कदे मद परिदरो रे, जेदथी बहु जंजाल रे
॥बे ॥न ॥१४॥ अर्थ-एवा समयने विषे अवसर पामीने राजानो क्रोध शमाववा माटे प्रधान कहे ले के महा-18 राज ! रयवामीनो अवसर थयो, माटे रयवामीए पधारो ॥ १३ ॥ जलो श्रीपाल राजानो रास, तेनी ए त्रीजी ढाल पूरी थश्. रासना कर्त्ता विनयविजयजी उपाध्याय कहे डे के जे यकी संसारमा बहु जंजाल थाय डे एवो जे मद एटले अहंकार तेने परिहरो, त्यागो॥ यतः॥जाश्कुल रूव बल सुय, तव लान सिरिय अह मय मत्तो॥ एआई चिय बंधेश, असुहाई बहु च संसारो ॥१॥ इति ॥१४॥5
॥दोहा॥ राजा रयवामी चढ्यो, सबल सेन परिवार॥ मदमाता मयगल घणा, सदसगमे असवार ॥१॥ सुन्नट सिपाइ सामटा, जिस्या पंचायण सिंद ॥
आयुध आगंबर अधिक, अटल अनंग अबीद ॥२॥ अर्थ-हवे बले करी सहित एवं सैन्य अथवा सबल एटले घणो एवो जे सैन्यनो परिवार,
साथ लश्न राजा रयवामाने थर्थे चढ्यो. हवे ते परिवार कहे . एक तो मदे करी जन्मत्त || थयेला एवा मयगल एटले हाथी घणा , अने (सहसगमे के०) हजारोगमे अखारो ॥१॥वली सामटा एटले थोकबंध सुजट तथा सिपाळ ते जेवा पंचानन सिंह होय नहीं ? तेनी सरखा ॥१०॥ बलवान् , ते सिपाच श्रायुध जे हथियार तेनो अधिक श्रागंबर तेणे करीने सहित थका चाले . ते केवा ? तो के अटल एटले कोश्थी पागा टले नहीं, तथा अन्नंग एटले कोश्ना |
तेने
an Education
For Personal and Private Use Only
www.pinelibrary.org
Page #25
--------------------------------------------------------------------------
________________
जगाव्या लागी जाय नहीं, अने अबीह एटले कोश्ना वीवराव्या बीए नहीं अर्थात् कोश्ना डराव्या मरे नहीं, एवा सुलटो ३ ॥२॥
वाघा केसरिया कीया, रढियाला रजपूत ॥ मूगला मरायता, योध जिस्या यमदूत ॥३॥ पाखरिया पंखी परे, उडे अंबर जाम ॥ पंच वरण नेजा नवल, गयण चोक चित्राम ॥४॥ सरणा वाजे सरस, घूरे घोर निसाण ॥ पुर बादिर नृप आवीया, नालां ऊलदल नाण ॥५॥ अर्थ-तथा तेणे केसरीया वाघा करेला , अने रढियाला एटले जे हर लीधो ते मूके नहीं एवा ते रजपूत ने, तथा मूगला एटले मोटी मूवाला डे, वली मबरायता एटले मत्सर जे पार-18 की महत्ता सहन न करी शकवी, एवी ईर्ष्याने धरता थका साक्षात् जेवा यमराजाना पूत होय तेवा ते योगा ॥३॥ तथा पाखरीया घोमा ते (जाम के०) जे वखते पंखीनी पेरे अंद जे आकाश तेने विषे उडे वे, ते वखते ते घोमानी उपर बेठेला जे अस्वार , तेना हाथमा पांच रंगवाला ( नवल के०) नवा नेजा एटले वावटा रह्या वे, ते वावटाए करीने गयण जे श्रा-18 काश तेरूप चोक, तेने विषे जाणे चित्रामज कस्यां होय नहीं ? एवी शोना देखाय ॥४॥वली सरस सरणा वाजी रही , तथा (घोर के०) गंजीर शब्दे करीने निसाण एटले नगारां| घूरे एटले घोर करी रहेलां बे, एवा आमंबरे करी राजा पुरनी बाहिर श्राव्या. तिहां बरबीउनां नालांनो फलहलाट ते जाणीए बीजो (जाण के०) सूर्यज होय नहीं? एवो देखाइ रह्यो ॥५॥
॥ ढाल चोथी ॥ रामचंद्रके बाग, चांपो मोरी रह्यो री ॥ ए देशी ॥ मारग सनमुख ताम, नमे खेद घणी री॥ पूरे नृपति दृष्टि, देश मंत्री नणी री॥१॥
Sain Education international
For Personal and Private Use Only
nelibrary.org
Page #26
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ-हवे आगल मार्गे जतां थका सन्मुख घणी धूल उमती दीजी (ताम के० ) ते वारेखम.? नूपति जे राजा ते पोताना प्रधान सामी दृष्टि करी पूजे ॥१॥
कुण आवे ने एद, एवडां लोक घणां री ॥ कदे मंत्री रहो दूर, दरिसण एद तणां री॥२॥ए कुष्ठी सय सात, थाइ एकमणारी॥थापी राजा एक, जाचे राय राणा री॥३॥ मारग मूकी जाम, नरपति दूर टले री॥ गलितांगुलि तस दूत, आवी ताम मलेरी ॥४॥ उत्तम मारग कांइ, जाये दूर तजी री ॥ उजेणीना राय, हारे कीर्ति सजी री॥॥ निर्मुख
आशान्नंग, जाचक जास रह्या री ॥ नारनूत जग मांदि, निर्गुण तेह कह्या री॥६॥शी जाचो गे वस्तु, विगते तेद नणो री॥राय कदे अम ।
आज, कीरति कांश हणो री॥७॥ अर्थ-हे प्रधान ! आ एटलां घणां लोक ते कोण श्रावे ? ते वारे प्रधान कहे जे के ए लोको जे श्रावे डे, तेनां दर्शन थकी तमे दूर रहो ॥२॥ए सातसे कोढीया ते सर्व एकमना थर पोतानी उपर एक राजा स्थापीने राजा तथा राणाउने याचे ॥३॥ते सांजली जे वारे राजा मार्ग मूकीने | पूर टले एटले बीजे मार्गे चाले, ते वारे ( गलितांगुलि के०) गली गयेली एटले खवाइ ग ने
गली जेनी एवो ते कोढीयानो त तिहां आवीने ते राजाने मल्यो॥४॥अने कहेवा लाग्यो के हे उङोपीना राजा ! श्रा उत्तम राजमार्ग तजीने तुंधर का जाय , एटले बीजे मार्गे केम जाय ॥१॥
ने ? अने तारी घणा कालनी सजेली कीर्तिने श्राज तुं केम हारी जाय जे ॥५॥ (जास के०) जेनी बापासे याचक आवीने निर्मुख श्राशानंग थक्ष रहे, ते प्राणी जगतमा पृथ्वीने नारनूत जेवा निर्गुणी
कह्या ॥६॥ ते वारे राजा दूत प्रत्ये कदेवा लाग्यो के तमे शी वस्तुनी याचना करो बो ? ते
Sain Educati
o
nal
For Personal and Private Use Only
ICODainelibrary.org
Page #27
--------------------------------------------------------------------------
________________
विगते की जणो एटले कहो, पण याज श्रमारी कीर्त्तिने शामाटे दणो बो ? यतः ॥ वरं प्राणपरित्यागो, न मानपरिखंकनम् ॥ मृत्योश्च कणिकं दुःखं, मानजंगा दिने दिने ॥ १ ॥ इति ॥ ७ ॥ दूत कम राय, सघली शद्धि मली री ॥ राजवट्ट परगट्ट, कीधी अमे मिली री ॥ ८ ॥ पण सुकुलिणी एक, कन्या कोइ दीये री ॥ तो तस राणी होय, म एद दर्ष दिये री ॥ ए ॥ मन चिंते तव राय, मयणा देनं परी री ॥ जगमां राखुं कीर्त्ति, अविचल एद खरी री ॥ १० ॥ फल पामे प्रत्यक्ष, मया कर्म तणां री ॥ साले दियडा मांदि, वयणां तेढ घणां री ॥ ११ ॥ वले रुंख घनवुड, दाधां जेद दवे री ॥ कुवयण दाधां जेद, न वले ते नवे ॥ १२ ॥
- सांगली डूत कहे वे के अमारा राजाने सर्व शुद्धि मली बे, घने राजवह एटले राजकीर्द ते प्रगटपणे अमे सर्वेए एकता मलीने नेली कीधी बे ॥ ८ ॥ पण अमारा राजाने रुमा | कुलमां उत्पन्न थयेली एवी जो एक कन्या कोइ थपे, तो तेनी राणी थाय, अमारा हैयामां ए हर्ष बे, ए उत्कंठा रही बे ॥ ए ॥ ते वारे राजाए मनमां विचाखुं जे मयणाने परी देउं ए शब्द मारवादी जापानो बे, एटले ए कोढीयाना राजाने मयणासुंदरी श्रापीने जगतमां ए मारी अविचल खरेख कीर्त्ति राखुं ॥ १० ॥ वली मयणासुंदरी पण प्रत्यक्षपणे कर्मनां फलने पामे, मयणा जे कर्मना पसाय थाश्रयी कुवचन बोली बे, ते मारा हैयामां झाडां श्रवलां घणां साले बे ॥ यतः ॥ डाढ खटके कांकरो, नयण | खटके रेण ॥ वयण खटके वाउलो, गयो खटके से ॥ इति ॥ १ ॥ ११ ॥ जेम रुख जे वृक्ष ते ( दव के० ) अग्नि की बयां होय ते ( घनवुड के ० ) मेघवृष्टि थवाथी वले एटले फरी नवपल्लव थाय, पण कुवचने करीने जेनां मन (दाधा के०) बल्यां होय, तो ते फरी या जवमां नवपल्लव थाय नहीं १२
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Jainelibrary.org
Page #28
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण
॥१२॥
रोष तणे वश राय, सुद्धि बुद्धि सर्व गरी ॥ कदे दूत तुझ राय, अम खंग. घर आण जरी ॥ १३॥ देखें राजकुमारी, रूपे रंन जिसी री ॥ दूत तणे मन वात, विस्मय एद वसीरी ॥१४॥ किस्युं विमासे मूढ, में जे वात कहीरी॥न फरे जगमां तेद, अविचल साची सही री ॥१५॥ श्री श्रीपालनो रास, चोथी ढाल कही री ॥ विनय कहे निरवाण, क्रोधे
सिदि नहीं री॥१६॥ __ अर्थ-रोष जे क्रोध तेना वश थकी राजानी शुद्धि बुद्धि सर्व जती रही , तेथी इतने कहे , ने के तुं जश्ने तारा राजाने अमारे घेर तेडी लाव ॥ १३॥ तेने रंजा नामनी जे अप्सरा तेना जेवी रूपवाली एवी राजकुंवरी हुं श्रापुं. ए वात पूतना मनमां विस्मय जेवी थर वसी एटले लाग। ॥ १४ ॥ तनुं विस्मित चित्त जोश राजा कहेवा लाग्यो के हे मूढ ! तुं तारा मनमां शुं विमासे ने ? जे में वात करी ते जगतमां फरे नहीं, एटले केवारे पण चले नहीं, ( सही के०) निश्चे। साची जाणवी ॥ १५॥ ए श्री श्रीपाल राजानो रास तेनी चोथी ढाल कही. श्री विनयविजयजी कहे ते के ( निरवाण के ) निश्चे क्रोध थकी सिद्धि नथी ॥ १६ ॥
॥दोहा॥ कोप कग्नि नूपति हवे, आव्यो निज आवास ॥ सिंहासन बेगे अधिक, अति अनिमान विलास ॥१॥
॥१२॥ अर्थ-हवे क्रोधे करी कठिन थयेवू ने हृदय जेनुं एवो राजा रयवाडीथी पागे फरी पोताना है आवासने विषे आवीने सिंहासन उपर वेगे, पण तेना मनमा अत्यंत अधिक एटले घणो अनि
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #29
--------------------------------------------------------------------------
________________
माननो विलास ॥ यतः॥को पश्को देह घर, तिन्नु विकार करेय ॥श्राप तपे पर संतपे, धननी हाण करेय ॥ इति ॥१॥
मयणाने तेडी कहे, कर्म तणो पख गेम ॥ मुज पसाय मन आण जिम, पूरुं वांबित कोम ॥२॥मयणा कदे दूरे तजो, ए सवि मिथ्यावाद ॥ सुख ऊःख जे जग पामीए, ते सवि कर्मप्रसाद॥३॥ बालकने बतलावतो, हठे चढावे राय ॥ वाद करंतां बालशु, लघुता पामे न्याय ॥ ४ ॥ को कहे ए बालिका, जुर्ज दठीली थाय ॥ अवसर उचित न उलखे, रीस
चढावे राय ॥५॥ अर्थ-माटे मयणासुंदरीने तेमीने कहेवा लाग्यो के हजी तुं तारा कर्मनो पद गेमी श्राप, अने मारा पसायने विषे मन आण, जेम हुँ तारा मनोवांडित कोड सर्व पूर्ण करुं ॥॥ ते वारे मयणासुंदरी कहेवा लागी के हे पिताजी ! ए सर्व मिथ्यावाद , माटे एने तमे पूरे तजो एटले ए तमारुं बोल सर्व दूर राखो, तत्व एज के जगतमा जे सुख दुःख पामीए बीए, ते कर्मनोज प्रसाद जाणजो ॥ यतः ॥ सेवितोऽपि चिरं खामी, विना नाग्यं न तुष्यति ॥ जानोरा-18 जन्मनक्तोऽपि, नित्यं निश्चरणोऽरुणः ॥ १॥ इति ॥३॥ हवे केटलाएक लोक एम कहे के बालकने वारंवार बतलावतो एटले कहेतो थको राजा हवे चढावे , बालकनी साथे वाद करता थका न्याय लघुताने पामे , अथवा बालकनी साथे वाद करतां लघुता पामीए एवो न्याय ने
॥ यतः॥ निर्दयत्वमहंकार,-स्तृष्णा कर्कशलाषणम् ॥ नीचपात्रप्रियत्वं च, पंच स्त्रीसहचारिणः॥१॥ शाइति ॥ ५॥ वली कोश्क एम पण कहे जे के या बालिका जुर्म केवी डे ? के जेम जेम एने
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #30
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम ॥ १३॥
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
राजा कहे जे तेम तेम वधारे हठीली थाय ठे, पण या अवसरे आमज बोलवु उचित ने, घटे बे एवी योग्यताने उलखती नथी, उलटी राजाने रीस चढावे ॥५॥
॥ ढाल पांचमी ॥ श्डर आंबा आंबली रे, इमर दाझिम झाख ॥ ए देशी॥ राणो जंबर तिणे समे रे, आव्यो नयरी मांदि ॥ सटित करण सूपड जिस्यो रे, उत्र करे शिर गंहि ॥ चतुर नर ॥ कर्म तणी गति जोय ॥ कर्मे सुख उःख होय ॥ चतुर ॥ कर्मे न बूटे कोय ॥ च ॥ कर्म॥ए
आंकणी ॥१॥श्वेतांगुलि चामर धरे रे, अविगत नास खवास ॥ घोर
नाद घोघर स्वरे रे, अरज करे अरदास ॥ च ॥ कर्म ॥२॥ | अर्थ-एवा अवसरने विषे उंबर जे कोढीयानो राणो ते पण नगरी मांहे आव्यो. ते केवो ने ? तो के जेनो ( करण के० ) कान ते ( सटित के ) समीने सूपमा जेवो मोटो थर गयो | एवो पुरुष ते जंवर राणाना मस्तक उपर बांयमो करवाने अर्थे नत्र धरी रह्यो , माटे हे चतुर पुरुषो ! तमे कर्मनी गति तो जुर्ज, श्रा संसारमा कर्मे करीनेज जीवने सुख दुःख थाय डे, पण कर्मथी को बूटी शकतो नथी॥ यतः॥ नगति करिय वमानी सेव कीजे जी कांश, अधिक फल || न श्रापे कर्मथी तेति कां ॥ जलधि तरिय लंका सीत संदेश लावे, हनुमत करमें ते राम कछोट|| पावे ॥१॥ इति ॥ १॥ तथा धोला कोढना रोगे करीने श्वेत एटले सफेद थ गयेली अंगु-18 ली जेमनी तेने श्वेतांगुलि कहीए एवो पुरुष चामरधारक थको चामर धरी रह्यो डे, एटले चामर वीजे , तथा जेनी रोगे करीने (खवास के ) खवा ( अविगत के० ) गयेली जे ( नास ॥ १३ ॥ के) नासिका, तेथी (घोर के० ) जयंकर ने ( नाद के०) शब्द जेनो एवो पुरुष घोघरे खरे करी उमीदार थको आगल नेकी पोकारे डे, आगल उनो थको अरज करवाने अरदास करे .181
Sein Education n
ational
For Personal and Private Use Only
Page #31
--------------------------------------------------------------------------
________________
केटलेक ठेकाणे अवगत एटले माठी गतिना सुखनो वास बे एवो अर्थ करेलो ले ॥२॥
वेसर असवारी करी रे, रोगी सवि परिवार ॥ बले बावलीये परिवस्यो रे, जिस्यो दग्ध सहकार ॥ च ॥ कर्म० ॥ ३॥ केश टुंटा केश पांगला रे, केइ खोमा केइ खीण ॥ केश खसिया केइ खासिया रे, केइ दर के दीण ( दीण ) ॥ च॥ ॥ कर्म ॥ ४ ॥ एक मुखे माखी बणबणे रे, एक मुख पडती लाल ॥ एक तणे चांदां चगे रे, एक शिर नाग वाल
॥च ॥ कर्म ॥५॥ अर्थ-जेणे वेसर एटले खच्चर तेनी उपर असवारी करी ने तथा जेनो परिवार सर्व रोगी | एवो जंबर राणो कोढीयाना परिवारे परिवस्यो थको केवो शोने के ? तो के जेम (बले बावलीये के ) वन मांहे घणां बावलनां वृदो होय ते सर्व बलीने तुंग थर गयां होय, तेवां घणां वावलनां वृदोए करी परिवस्यो एटले वीट्यो थको ( दग्ध के० ) बलेलो एवो सहकार एटले यांवानुं वृद जेवू शोने, तेवो उंबर राणो कोढीयाने परिवारे परिवस्यो थको शोने ने ॥३॥ ते उंबरनो परिवार केवो ? ते कहे जे. केटलाएक तुंग , केटलाएक पांगला , केटलाएक खोमा बे, केटलाएक दीण थर गया बे, केटलाएक खसिया एटले अंग उपर खस थयेली एवा , माटे खाजीयारा , केटलाएकने खांसी थयेली ने, केटलाएकने दपुर एटले दादर थ ने अने, केटलाएक तो रोगने प्रनावे करी (दीण के० ) रांक जेवा थर गयेला ॥ पागंतरे ( हीण के ) रोगे करीने हीण शरीरवाला थइ गया ॥४॥ एकना मुख उपर तो माखी वणवणाट करी रही बे, एकना मुखमाथी लाल पडे , एकना शरीर उपर चांदा एटले चागं चगचगी। रह्यां ने अने एकना शिर उपरना वाल जे मोवाला ते पण रोगना प्रजावे नासी गया वे ॥५॥
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
ww.jainelibrary.org
Page #32
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥ १४ ॥
चहटा मांदे चालतां रे, सोर करे सय सात ॥ लोक लाख जोवा मल्यां खंम.१ रे, एह किस्यो उतपात ॥ च ॥ कर्म ॥६॥ ढोर धसे कूतर नसे रे, धिक धिक कहे मुख वाच ॥ जन पूजे तुमे कोण बगे रे, चूत के प्रेत पिशाच ॥ च ॥ कर्म ॥७॥ कदे रोगी तुम रायनी रे, पुत्री रूपनिधान ॥ ते अम राणो परणशे रे,एद जाये तस जान ॥ च ॥ कर्म॥०॥ नगरलोक साथे थयां रे, कौतुक जोवा काज ॥ जंबर राणो आवीयो रे, जिहां बेग महाराज॥च॥कर्म ॥॥ मयणाने नूपति कहे रे, ए आव्यो तुम नाद ॥
सुख संपूरण अनुनवो रे, कर्मे कयो विवाद ॥ च ॥ कर्म० ॥१०॥ __ अर्थ-एवा ( सय सात के ) सातसें जण कोढीया ते चौटा मांहे चालतां थका सोर बकोर , करे . तेने लाखोगमे लोक जोवां मध्यां , एकगं थयां , ते जोवावाला कहे जे के आ ते श्यो उत्पात वे ? ॥६॥ ढोर धसे एटले सामां शिंगडां मांडे , अने कुतरां जसवा लाग्यां 18 तथा धिक्कार बे, धिक्कार बे, एवी मुख थकी वाणी कहेतां थका लोक तेमने पूजे जे के तमे ते कोण बो ? नूत बगे ? के प्रेत हो ? के पिशाच ठो ? ते अमने कहो ॥७॥ तेने रोगीया उत्तर आपे ले जे । तमारा राजानी पुत्री जे रूपनुं निधान बे, खजानो , तेने अमारो राणो परणशे, तेनी आ जान | जाय ॥७॥ ते सांजली नगरनां लोक पण कौतुक जोवा माटे तेमनी साथे थयां. एम करतां जंबर राणो पण जिहां प्रजापाल राजा बेगे , तिहां श्राव्यो॥ ए॥ ते वारे मयणासुंदरीने राजा कहे डे के ए तमारो ( नाह के०) नाथ आव्यो. हवे एनी साथे संपूर्ण सुखनो अनुनव करो. ए तमारे कर्मे विवाह कस्यो बे, माटे कर्मनो पसाय जोश व्यो ॥ १० ॥
Sain Education Wednal
For Personal and Private Use Only
Page #33
--------------------------------------------------------------------------
________________
मणा मुख नवि पालटे रे, अंश न आणे खेद ॥ ज्ञानीनुं दीतुं हुवे रे, तिदां नहीं किस्यो विद ॥ च० ॥ कर्म० ॥ ११ ॥ जेद पिताए पांचनी रे, साखे दीधो कंत ॥ देव परे प्राराधवो रे, उत्तम मन ए खंत ॥ च० ॥ कर्म० ॥ १२ ॥ करी प्रमाण निज तातनुं रे, वयण विमल मुख रंग ॥ प्रवीने उभी रही रे, नंबरने वामंग ॥ च० ॥ कर्म० ॥ १३ ॥ तव जंबर परेणेरे, अनुचित ए नूपाल ॥ न घंटे कंठे कागने रे, मुक्ताफलनी माल ॥ च० ॥ कर्म० ॥ १४ ॥
अर्थ - एवां पितानां वचन सांजलीने मयणाना मुखनो रंग कांइ पण पलटाणो नहीं, तथा अंश मात्र लगार मात्र खेद पण मनमां श्राणती नथी, अने विचारे वे जे ज्ञानीए दीतुं वे तेज ( दुवे के० ) थाय बे, बने बे, तेमां कांइ पण नेद नथी ॥ ११ ॥ जे पिताए पांचनी साखे नर्त्तार आयो ते राजानो जायो होय, किंवा रंकनो जायो होय तोपण तेने देवनी परे याराधवो. उत्तम कुलनी स्त्रीना मनमां एज खंत होय ते ॥ यतः ॥ संतो न यांति वैवएर्य, - - मापत्सु पतिता श्रपि ॥ दग्धोऽपि वह्निना शंखः, शुचत्वं नैव मुंचति ॥ १ ॥ १२ ॥ एम विचारी मयणासुंदरी पोताना पितानुं वयण जे वचन, ते प्रमाण करीने पोताना मुखनो रंग ते शरद पूनमना चंद्रनी पेरे ( विमल के० ) उज्ज्वल निर्मल बे एवी थकी पोते शास्त्रने बले जे वखते शुद्ध लग्ननी वेला जाणवामां यावी, ते वखते जंबर राणाना वामंग एटले मावी बाजुए यावीने उभी रही, अने पोतेज पोताने हाथे हाथमेलावो कस्यो ॥ १३ ॥ ते वारे जंबर राणो यावी रीते कहे बे के हे भूपाल ! हे राजन् ! या वात उचित नयी एटले अनुचित बे, केमके कागमाने कंठे कां मुक्ताफल जे मोती तेनी माला शोने नहीं, तो या कन्यारूप रत्ननी माला ते हुं जेवा वायसने गले शोने नहीं. हुं एक तो पूर्वलुं कीधुं कर्म
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #34
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराणा कोढ रोगनी पीडा पामीने जोगबुं बुं. वली था तमारी पुत्रीनो जन्म मुबावीने कर्म बांधुखम. १
नहीं, माटे मने मारा रूप जेवी कोश् दासी प्रमुखनी कन्या होय तो ते परणावी आपो, नहीं की। ॥१५॥
कल्याण , श्रमे जता रहीशुं. तेमज एक तरफ कन्यानो मामो अश्रुपात करतो समजावे , एक तरफ एनी माता रूपसुंदरी अश्रुपात करती समजावे , एक तरफ कुटुंब परिवारनां लोक सर्व मली| समजावे बे, रोवे ने, खेद करे , एक वीजाने कहे के श्रा पुत्रीनो संबंध जुर्ड, केवो अयोग्य थियो !!! तोपण राजा पोताना क्रोधथी चढ्यो नहीं. घणुंज कठण मन करी बेठो ने मयणा पण तत्त्वनी जाणनारी , माटे धैर्य मूकती नथी ॥ १४ ॥
राय कहे कन्या तणे रे, कर्मे ए बल कीध ॥ घणुं कडं में एदने रे, दोष न को में लीध॥च०॥कर्म ॥१५॥रोगी रलियायत थया रे, देखी कन्या पास॥परमेसर पुरण करी रे,आज अमारी आश॥च॥कर्म॥१६॥ सुगुण रास श्रीपालनो रे, तिहां ए (तेहनी) पांचमी ढाल ॥ विनय
कहे श्रोताघरे रे, दोजो मंगलमाल ॥च॥ कर्म ॥१७॥ अर्थ-ते सांजली राजा कहेवा लाग्यो के हे उंबर ! या कन्याना कर्मे ए बल कयु , में तो एने घणुंए कह्यु, पण ए कांश मारुं कडं माने ले ? ए तो निश्चय पोताना कर्मनेज माने , माटे 8 में कोई वातनो दोष मारे माथे लीधो नश्री ॥ १५ ॥ उंबरनी पासे कन्याने देखीने रोगी पुरुष सर्व रलियायत थया एटले खुशी थया अने विचारवा लाग्या जे परमेश्वरे आज अमारी श्राशा !
॥ १५ ॥ पूर्ण करी ॥ १६ ॥ रुडा गुणे करी शोनित एवो श्रीपालनो रास तिहां ए पांचमी ढाल थर. विनय-12 विजयजी कहे डे के श्रोताने घेर मांगलिकनी माला होजो ॥१७॥
Sain Education neational
For Personal and Private Use Only
Page #35
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥दोहा॥ कोइ कहे धिक रायनो, एवडो रोष अगाध ॥ कोइ कहे कन्या तणो, ए सघलो अपराध ॥१॥ उतारे आव्या सहु, सुणतां श्म जन वात ॥ अनुचित देखी आथम्यो, रवि प्रगटी तव रात॥२॥ यथाशक्ति उत्सव
करी, परणावी ते नार ॥ मयणा ने जंबर मली, बेगं जवन मकार ॥ ३॥ अर्थ-हवे एवं कृत्य जोडने कोडक तो कहे के पोताना फरजंद उपर एटलो अगाध रोष राखे डे माटे ए राजाना रोषने धिक्कार , वली कोश्क तो एवं कहे जे के ए सर्व अपराध कन्या-18 नोज ॥ यतः ॥ उत्तमस्य दणं क्रोधो, हियामं मध्यमस्य तु ॥ अधमस्य त्वहोरात्रं, चिरको-18 धोऽधमाधमः ॥१॥१॥ एम (जन० के० ) लोकोना मुखथी वातो सांजलतां थका सर्व पोताने, उतारे एटले स्थानके श्राव्या. ते वखते ( रवि के०) सूर्य पण ए अनुचित एटले अणघटतुं कार्य थयुं देखीने (श्राथम्यो के०) अस्त पाम्यो, ते वारे रात्रि प्रगट थ॥२॥ राजाए वर्ष विना ते कन्या कोढीयाने जलावी, अने कोढीयाए पण यथाशक्तिए उत्सव करीने ते कन्या पोताना |जंबर राजाने परणावी दीधी. पड़ी मयणा अने लंबर ए बेहु स्त्री नगर मलीने उतारानुं नवन जे घर, तेमां जश् बेगं ॥३॥
॥ ढाल बची ॥ कोश्लो पर्वत धुंधलो रे लो॥ ए देशी ॥ चंबर मनमां चिंतवे रे लो, धिक धिक मुज अवतार रे ॥ बबीली ॥
मुज संगतथी विणसशे रे लो, एदवी अनुत नार रे ॥ रंगीली ॥१॥ अर्थ-हवे उंबर राणो पोताना मनमां चिंतघे जे के धिकार , धिक्कार , मारा अवतारने! था
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #36
--------------------------------------------------------------------------
________________
दाखंग.
श्री राबवीली सुंदर अनुत रूपवाली रंगीली एवी स्त्री जे जे ते मारी संगतिथी विणसशे एटले विनाश
पामशे, एनुं शरीर बगमशे ॥१॥
सुंदरी दजीय विमासजो रे लो, नंडो करी आलोच रे ॥30॥ काज विचारी कीजीए रे लो, जेम न पडे फरी शोच रे॥रंगी० ॥ सुं० ॥२॥ मुज संगे तुज विणसशे रे लो, सोवन सरखी देव रे॥॥तुं रूपे रंना जिसी रे लो, कोढीशुं श्यो नेद रे॥रंगी० ॥ सुं० ॥ ३॥ लाज इहां मन नाणीए रे लो, लाजे विणसे काज रे॥30॥ निज माता चरणे जश् रे
लो, सुंदर वर कर राज रे॥ रंगी० ॥ सुं० ॥४॥ | अर्थ-एम पोताना मनमां चिंतवीने सुंदरीने कहेवा लाग्यो जे तमे उंडो थालोच एटले विचार करीने विमासी जुर्ज, केमके जे कांश काम करवं ते विचारीने करवं,जेम फरीने ते काम मांहे काश् शोच करवो पडे नहीं, तेवी रीते करवू ॥२॥ तारी सोना सरखी देह बे, ते मारी संगति थकी विनाश पामशे. तुं तो रूपे करीने रंजा जेवी जो, माटे तारे मारा जेवा कोढीयानी साथे श्यो स्नेह करवो ? यतः ॥ कुसंगात्संगदोषेण, परं वैराग्यकारणं ॥ एकरात्रिप्रसंगेन, काष्ठघंटा विटंबना ॥१॥३॥ माटे था ठेकाणे मनमा लाज श्राणवी नहीं. जो लाज करीए तो तेथी पोतानुं कार्य बगडे , अने तारे तो तारा पितानी साथे बिगाम थयेलो , तो हवे तुं तारी माताने चरणे जश्ने जे सुंदर 8॥१६॥ रूपवंत राजा होय, तेने ( वर के० ) जर्त्तार कर ॥ यतः ॥ गीते नृत्ये पठे वादे, संग्रामे वैरिघातने ॥ श्राहारे व्यवहारे च, खजामष्टसु वर्जयेत् ॥ १॥४॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #37
--------------------------------------------------------------------------
________________
मयणा तस वयणां सुणी रे लो, हियमे उख न माय रे ॥ वालेसर ॥ ढलक ढलक आंसु पमे रे लो, विनवे प्रणमी पाय रे॥ वालेसर ॥ वचन विचारी उच्चरो रे लो, तुमे गे चतुर सुजाण रे॥वाले॥वचन ॥५॥ एद वचन केम बोलीए रेलो, एणे वचने जीव जाय रे॥वाले ॥ जीवजीवन तुमे वालदा रे लो, अवर न नाम खमाय रे ॥ वाले०॥ वचन ॥६॥ पबिम रवि नवि जगमे रे लो, जलधि न लोपे सीम रे ॥वाले० ॥ सती
अवर श्छे नहीं रे लो, जां जीवे तां सीम रे ॥ वाले ॥वचन ॥७॥ - अर्थ-एवां जंबर राणानां वचन सांजलीने मयणासुंदरीना हैयाने विषे पुःख समातुं नथी, ते वारे आंखमांथी ढलक ढलक आंसु पमते थके जंबर राजाने पगे लागीने ए रीते विनंति करे
जे हे वालेसर ! तमे चतुर बो, सुजाण बो, माटे जे वचन ( उच्चरो के०) बोलो ते विचा-13 रीने बोलो. जे वचन थकी मारो जीव ःखित न थाय एवं वचन बोलो तो सारं ॥५। स्वामिन् ! एवां वचन मुखमांधी केम बोलो हो ? ए वचनथी तो माणसनो जीव जाय. हे जीवना जीवन ! मारे तो तमेज वाहा डो, परंतु (अवर के०) वीजा पुरुषतुं तो माराथी नाम पण खमाय नहीं ॥ यतः॥ कमलिनी जलमां वसे, चंदो वसे आकाश ॥ जे जिहारे मन वसे, ते तिहारे पास ॥ १॥ तथा ॥ गतियुगमथ चाप्नोत्यत्र पुष्पं वरिष्टं, त्रिनयनतनुपूजां, वाऽथ वा नूमि-18 पातम् ॥ विमलकुलनवानामंगनानां शरीरं, पतिकरकमलं वा, सेवते सप्तजिह्वम् ॥ ॥ प्रमाणं यो न जानाति, नोजने वचनेषु च ॥ अतिनोक्ता चातिवक्ता, प्राणी स प्राणघातकः ॥३॥ इति । ॥६॥ जेम रवि जे सूर्य बे, ते को वारे पण पश्चिम दिशाए उगे नहीं, तथा जलधि जे समुज जे, ते पोतानी सीम एटले मर्यादा लोपे नहीं, तेम जे सती ने ते पण जिहां लगे आ शरीरमा
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #38
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
खम.१
॥१७॥
जीवती रहे, तिहां लगे पंचनी साखे परणेला जरि विना (अवर के० ) बीजा पुरुषने श्चे नहीं ॥ दोहा ॥ जिहां जीवे जी अप्पणा, तिहां जीवे सब कोय ॥ दीवे तेल घटी गयु, तव अंधियारा होय ॥१॥ इति ॥७॥
उदयाचल उपर चढ्यो रे लो, मानुं रवि परनात रे ॥ वाले ॥ मयणामुख जोवा नणी रे लो, शील अचल अवदात रे ॥ वाले ॥ वचन ॥७॥ चक्रवाक उःख चूरतो रे लो, करतो कमल विकास रे ॥ वाले ॥ जगलोचन जब उगीयो रे लो, पसयो पुदवी प्रकाश रे ॥ वाले० ॥ वचन ॥ए॥ आवो देव जुदारीए रे लो, रुपनदेव प्रासाद रे॥वाले०॥
आदीसरमुख देखतां रेलो,नासेउख विषवाद रे॥वाले०॥वचन ॥१॥ अर्थ-एम स्त्री जरिने पोतपोतामा वातो करतां रात्रि वीती गश्, श्रने प्रजातनो (रवि के०) सूर्य ते उदयाचल पर्वतनी उपर चढी श्राव्यो. इहां कवीश्वर उत्प्रेदा करे के सूर्य जे उद-18 याचल उपर चढ्यो, ते हुँ एम मार्नु बु के जेना चलायमान न थाय एवा अचल शीलनां (श्रवदात के ) वखाण एवी जे मयणासुंदरी, तेनुं मुखरूप जोवाने अर्थेज जाणे चढ्यो होय नहीं ?
॥ (चक्रवाक के०) चकवा चकवीना विरहःखने चूरतो अने सूर्यविकासी कमलने विक-18 स्वर करतो एवो जगतना लोचन सरखो सूर्य जे वारे उग्यो ते वारे पृथ्वीने विषे (प्रकाश के० ) अजवालु सर्वत्र पसखु ॥ ए ॥ त्यारे मयणासुंदरी जंबर राणाने कहेवा लागी के हे स्वामिन् ! तमे मारी साथे ( आवो के) चालो तो श्रापणे श्रीशषजदेवजीना प्रासादने विषे जश्ने देव जुहारीए. त्यां श्रीश्रादीश्वर नगवाननुं मुख देखता थकाज फुःख अने विषवाद सर्व नाश पामे ॥ यतः ॥ धर्मारने कणोदे, कन्यादाने धनागमे ॥ शत्रुघाताग्निरोगे च, काल देपं न कारयेत्॥१॥इति ॥१०॥
॥ १७
Sain EducationG
ar
Frpaisonal and Raivate Use only....
vw.jainelibrary.org
Page #39
--------------------------------------------------------------------------
________________
मयणावयणे आवीयो रे लो, जंबर जिनप्रासाद रे॥ जिणेसर ॥ आदीश्वर अवलोकतां रे लो, उपनो मन आह्लाद रे॥ जिणेसर ॥ तिहुअणनायक तुं वडो रे लो, तुम सम अवर न कोय रे॥जिणेसर॥ तिहु० ॥ ११॥ मयणाए जिन पूजीया रे लो, केसर चंदन (कुसुम) कपूर रे ॥ जिणे ॥ लाखीणो कंठे ठव्यो रे लो, टोडर परिमल पूर रे ॥ जिणे ॥ तिहु ॥ १२॥ चैत्यवंदन करी नावना रे लो, नावे करी काउस्सग्ग रे ॥ जिणे ॥ जय जय जगचिंतामणि रे लो, दायक शिवपुर मग्ग रे ॥ जिणे ॥ तिहु० ॥ १३ ॥ इद नव परनव तुज विना रे लो, अवर न को आधार रे॥ जिणे ॥ सुःख दोहग दूरे करो रे लो,
अम सेवक साधार रे ॥ जिणे ॥ तिहु० ॥१४॥ अर्थ-एवां मयणासुंदरीनां वचने करी जंबर राणो श्रीजिनराजना प्रासादने विषे आव्यो. तिहां जिन जे सामान्य केवलीना ईश्वर, श्रीश्रादीश्वर नगवान् तेने अवलोकतां एटले जोतां 5 थका मनने विषे (श्राह्लाद के० ) हर्ष उपन्यो तेथी कहेवा लाग्यो के हे जिनेश्वर ! हे (तिहुश्रण-18 नायक के० ) त्रण जुवनना नायक ! तुं मोटो हो, तारा सरखो बीजो कोइ देव नथी ॥ ११ ॥ केसर, चंदन अने कपूरे करी मयणाए जिनेश्वरने पूज्या, अने परिमल जे सुगंध तेना पूरे करी सहित एवो लाखीणो एटले लाख फूलनो ( टोडर के० ) हार प्रजुने कंठे उव्यो एटले स्थाप्यो ॥१॥ ते वार पड़ी चैत्यवंदन करी, नावना नावीने,जावे करी कानस्सग्ग कस्यो,तेमां एम चिंतव्यु जे जय जय हे स्वामिन् ! तमे जगतमां चिंतामणि रत्न समान बो. वली मोदमार्गना दायक एटले देवावाला
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #40
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम
श्री राबो ॥३॥श्रा नव तथा परजवने विषे तुज विना बीजो को आधार नथी, माटे श्रम सेवकने आधार
सहित थश्ने अमारां कुःख दौर्जाग्य पूरे करो ॥ १४ ॥ ॥१७॥
कुसुममाल निज कंठथी रे लो, हाथ तणुं फल दीध रे॥ जिणे ॥ प्रनुपसाय सहु देखतां रे लो, जंबरे ए बेहुलीध रे॥ जिणे ॥ तिहु० ॥१४ामयणा कानस्सग्ग पारीयो रे लो, हियडे हर्ष न माय रे॥ जिणे॥ एसदी शासनदेवता रे लो, कीधो अम्द सुपसाय रे ॥ जिणे ॥ तिहुन ॥१६॥ सुगुण रास श्रीपालनो रे लो, तिहां एउही ढाल रे ॥ जिणे॥ विनय कहे श्रोताघरे रे लो, होजो मंगलमाल रे॥जिणे ॥ तिहु ॥१०॥ अर्थ-ते वारे प्रजुना कंठ थकी फूलनी माला तथा प्रजुना हाथ तणुं फल एटले प्रजुना हाथ, मांदे रहेढुं जे बीजोरं फल ए बे वस्तु, ते शासनदेवताए परमेश्वरना पसायथी सर्व लोकने दे-18 खतां उंबर राजाने दीधी, एटले बे वस्तु उंबर राजाना हाथ नजीक श्रावी, तेने जंबरे लीधी. हां प्रजुनो पसाय जे कह्यो , ते उपचारथी कह्यो ३ ॥ १५ ॥ मयणाए पण काउस्सग्ग पाख्या, तेना हैयामां हर्ष समातो नथी, अने मनमां एम चिंतवे जे ए निश्चयथी शासनदेवताए ।
अमने रुमो पसाय कस्यो ॥ १६ ॥ रुमा गुणे करी सहित एवो ए श्रीपालनो रास, तेने विषे ए बही ४ढाल पूर्ण थ२. श्हां श्रीविनयविजयजी उपाध्यायजी कहे जे के श्रोता जनोना घरने विषे मांग-| लिकनी माला होजो ॥ १७ ॥
॥दोहा॥ पासे पोसहशालमां, बेग गुरु गुणवंत ॥ कहे मयणा दीये देशना, आवो सुणीए कंत ॥१॥
॥ १० ॥
inelibrary.org
JainEducacin
Page #41
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ- हवे मया कहे वे के देरासरनी पासे पोसहशालामां गुणवंत गुरु बेठा बे, ते देशना आपे बे, माटे हे ( कंत के० ) जर्त्तार ! तिहां मारी साथे वो तो आपणे धर्मोपदेश सांजली ए ॥१॥ नर नारी बेहु जां, व्यां गुरुने पाय ॥ विधिपूर्वक वंदन करी, बेगं बेसा ॥ २ ॥ धर्मलाज देइ धुरे, प्राणी धर्मसनेह ॥ योग जीव दवे, धर्मक गुरु तेद ॥ ३ ॥
अर्थ- स्त्री ने जर्त्तार ए बेदु जण गुरुना पग वागल श्रावी, विधिपूर्वक वंदन करीने बेसवाने स्थान के जइ बेठां ॥ २ ॥ गुरुए पण तेमने प्रथम धर्मलाज देइ धर्मस्नेह लावी, योग्य जीव जाणी हवे धर्मोपदेश कहेवा मांड्यो ॥ ३ ॥
|| ढाल सातमी ॥ वात म काढो हो व्रत ती ॥ ए देशी ॥
मतां एद संसारमा, डुलदो नरजव लाधो रे ॥ बांमी निंद प्रमादनी, आप सवारथ साधो रे ॥ चेतन चेतो रे चेतना, आणी चित्त मकार रे ॥ १२ ॥
अर्थ- हे व्यप्राणी ! या पारावार संसारमां चोराशी लाख जीवने उपजवानी योनि बे, तेने विषे जमतां थका दोहेलो मनुष्यनो जव पाजी ने निद्रा तथा प्रमाद जे आलस अथवा प्रमादनी माता जे निद्रा, तेने बांकी धर्ममार्ग यादरीने पोतानो स्वार्थ साधो; कारण के मनुष्यजव सिवाय | वली अन्य तिर्यंचादिकना जवमां धर्मसामग्री मलवी तमोने दुर्लन थशे; माटे प्राप्त थयेला मनुव्यजवने व्यर्थ न गुमावो, ए वात तमारा चित्तने विषे लावीने चेतननी चेतनाने चेतो, अथवा हे चेतन ! तमे तमारी चेतनाने चेतो. इहां “मद्या विसय कसाया " ए गाथा कहेवी ॥ तथा ॥ प्रमादः परमं द्वेषी, प्रमादः परमं विषं ॥ प्रमादो मुक्तिदस्युश्च प्रमादो नरकायनम् ॥ १ ॥ निद्रा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #42
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग.१
श्रीरामूलमनर्थानां, निझा श्रेयोविघातिनी ॥ निझा प्रमादजननी, निझा संसारवर्धिनी ॥ ५॥१॥ ॥१ ॥ सामग्री सवि धर्मनी, आले जे नर खोइ रे॥माखीनी परे हाथ ते, घसतां
आप विगो रे ॥ चेतन ॥२॥जान लश् बहु युक्तिशु, जेम को परणवा जाय रे ॥ लगनवेला गर जंघमां, पडे घj परताय रे॥ चेतन ॥३॥ एणी पेरे देश देशना, करे नविक उपगार रे ॥ गुरु मयणाने
उलखी, बोलावे तेणी वार रे ॥ चेतन ॥ ४ ॥ अर्थ-जे (नर के० ) मनुष्य धर्मनी सर्व सामग्री पामीने (आले के०) मिथ्या फोगट खोइ नाखे । | ते प्राणी मधपुमानी माखीनी पेरे हाथ घसतो पोताने विगोवे , एटले डेवट पश्चात्ताप करे ॥3 | यतः ॥ पप्पासूं परचो नहीं, ददो रहियो दूर ॥ लवासू लागी रह्यो, नन्नो रह्यो हजूर ॥१॥ हाथ घसे सुश थाहणे, जीने तालुं दीध ॥ मरणवेलाए सांजरे, हा ! में धर्म न की । ॥२॥पांचे नूलो चारे चूको, त्रिहुं न जाएयुं नाम ॥ जग ढंढेरो फेरव्यो, श्रावक महारं नाम ॥३॥२॥ तेनी उपर दृष्टांत कहे जे. जेम कोश्क पुरुष घणी मोटी युक्तिथी जान लश्ने परणवा माटे जाय, तिहां जे वारे लग्ननी वेला आवे, ते वारे तेने उघ श्रावी जाय, तेथी तेनी लग्नवेला तो उघमां जती रही, पनी जे वखत जाग्रत थाय, ते वखत घणोज पश्चात्ताप करे. तेम जे प्राणी मनुष्यजवरूप सामग्री पामीने प्रमादमा पड्यो थको धर्मकरणी नहीं करे तो पड़ी तेने पश्चात्ताप करवो पडे ॥३॥ ए रीते गुरुए धर्मदेशना श्रापी जव्यजीवोनो उपकार कस्यो, अने देशना है समाप्त थया पठी जे वारे गुरुए मयणाने उलखी, ते वारे तेणीने बोलावता हवा ॥ यतः॥ जलदो नास्करो वृक्ष,-चंडमा धर्मदेशकः ॥ एतेषामुपकाराणां, नास्ति सीमा महीतले ॥१॥४॥
Sain Educati
o
nal
For Personal and Private Use Only
Page #43
--------------------------------------------------------------------------
________________
रे ! कुमरी तुं रायनी, साथे सबल परिवार रे ॥ अम उपासरे आवती, पूबण अर्थ विचार रे॥ चेतन ॥५॥ आज किस्युं श्म एकली, ए कुण पुरुषरतन्न रे ॥धुरथी वात सवे कहे,मयणा स्थिर करी मन्न रे॥ चेतन ॥६॥मन मांदे नथी आवतुं, अवर किस्युं उःख पूज्य रे॥पण जिनशासन देलना, साले लोक अबुक रे॥ चेतन ॥ ७॥गुरु कदे उःख न आणजो, उ अंश न नावे रे ॥ चिंतामणि तुज कर चढ्यो, धर्म तणे परनावे रे॥ चेतन ॥ ७ ॥ अर्थ-रे इति संबोधने एटले रे एवा संबोधने बोलावे डे के तुं तो राजानी कुमारिका बो, माटे घणा परिवारे परवरी थकी थमारे उपाश्रये सूत्रनो अर्थ विचार पूबवा सारु आवती हतीपर ॥५॥ ते आजे तुं एम एकलीज केम श्रावी ? अने था उत्तम लक्षणे लक्षित, पुण्यवंत, रत्न समान पुरुष तारी साथे कोण ले ? एवं गुरुनु बोलवू सांजलीने मयणासुंदरीए पोतानुं मन स्थिर करीने जे वात बनी हती, ते सर्व धुरथी एटले प्रथमथी मामीने गुरुने कही ॥६॥ हे पूज्य ! हे प्रज्जु ! मारा मनमां (अवर के०) बीजूं तो ( किस्युं के०) कांय पण लगार मात्र पण दुःख 8 श्रावतुं नथी; पण अबुझ जे मिथ्यादृष्टि मूर्ख लोक बे, ते जिनशासननी हेखना एटले निंदा करे है बे, अने शिवधर्मनी प्रशंसा करे , ते पुःख मारा हृदयमां साले , एटले साल जेतुं हुंची। शरयु ॥ यतः॥ एयं चिय महपुरकं, जं मिछादिहियो श्मे लोया ॥ निंदंति जिणह धम्म, सिवधम्मं चेव संसंति ॥१॥ इति ॥ ७॥ ते सांजली गुरु कहे डे के तमे कोश् वातनुं फुःख लावशो नहीं, नावे करी एक अंश मात्र पण उडं लावशो नहीं, एटले को वाते अनाव लावशो नहीं, धर्मने प्रजावे या चिंतामणि रत्न सरिखो पुरुष तारा (कर के० ) हाथे चढ्यो ॥ ७॥
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #44
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण
वम वखती वर एह बे, दोशे रायां राय रे॥ शासन सोद वधारशे, जग खंग.१ नमशे जस पाय रे ॥ चेतन ॥ ए॥ मयणा गुरुने विनवे, देइ आगम उपयोग रे॥ करी उपाय निवारीए, तुम श्रावक तनुरोग रे ॥ चेतन ॥ १० ॥सूरि कदे ए साधुनो, उत्तम नहीं आचार रे॥ यंत्र जडीमणि मंत्र जे, उसड ने उपचार रे॥ चेतन ॥११॥ पण ए सुपुरुष एदथी, थाशे धर्म नद्योत रे॥ तेणे एक यंत्र प्रकाशशु, जस जग जागती ज्योत रे॥ चेतन०॥ १२॥श्रीमुनिचंद गुरे तिहां, आगमग्रंथ विलोइ रे॥माख
नी पेरे जइयो, सिचक्रयंत्र जो रे॥ चेतन०॥१३॥ अर्थ-ए तारो वर ते ( वम वखती के०) मोटा वखतनो धणी , ए राजानो पण राजा। थशे, जैनशासननी शोना वधारशे, अने जेना पगने सर्व जगत नमशे एवो थशे ॥ ए॥ एवं सांजलीने मयणा गुरुने विनंति करे के के हे खामिन् ! मारा उपर प्रसाद करी (देश् आगम उप-12 योग के०) सिझांतमा उपयोग दर कोश्क उपाय करी था श्रावकना (तनु के० ) शरीरनो जे|8| रोगले तेनुं निवारण करो के जेथी या मारा स्वामीनो व्याधि मटी जाय तो लोकनिंदा टले ॥ १०॥ ते वारे सूरि जे आचार्य, ते मयणाने कहे जे के हे न ! यंत्र, जमी, मणि, मंत्र, औषध अने उपचार करवा, ए साधुनो उत्तम श्राचार नथी ॥ ११॥ पण ए सुपुरुष , एथी घणो धर्मनोP उद्योत थशे, माटे जेनी जगतमा जागती ज्योति ने एटले जागतो प्रकाश में, एवो एक यंत्र ॥२०॥
चंड सूरिए जेम बाशने वलोवी तेमांथी। माखण उमरी काढीए तेनी पेरे श्रागमग्रंथोने वलोवीने तेमांथा सिझचक्रनो यंत्र जो काढ्यो॥१३॥
For Personal and Private Use Only
.
Page #45
--------------------------------------------------------------------------
________________
अरिहंतादिक नव पदे, श्री पद संयुत्त रे ॥ अवर मंत्रादर अनिनवा, लदीए गुरुगम तत्त रे॥ चेतन०॥१४॥ सिक्षादिक पद चिहुं दिशे, मध्ये अरिहंत देव रे ॥ दरिसण नाण चरित्त ते, तप चिहुं विदिशे सेव रे ॥ चेतन ॥ १५॥ अष्ट कमलदल इणी परे, यंत्र सकल शिरताज रे॥ निर्मल तन मन सेवतां,सारे वांबित काज रे॥चेतन०॥१६॥आशो सुदि मांदे मांडीए, सातमथी तपएद रे॥ नव आंबिल करी निर्मला, आराधो गुणगेद रे ॥ चेतन ॥ १७॥ विधिपूर्वक करीधोतीयां, जिन पूजोत्रण
काल रे॥ पूजा आठप्रकारनी, कीजे थइ जमाल रे॥ चेतन०॥ १७॥ अर्थ-ते केवो यंत्र ? तो के अरिहंतादिक नव पदने विषे ही ए बीज अदरपदे सहित तेमज (श्रवर के० ) बीजा पण (अनिनवा के०) नवा नवा मंत्रादर घणा , तेमनुं (तत्त के) तत्त्व ते गुरुगमथी लदीए एटले पामीए ॥ १४ ॥ एमां सिक पद आदे देश्ने एटले सिक, श्राचार्य, उपाध्याय अने साधु, ए चारे पदने चार दिशाउने विषे स्थापवां, अने मध्य नागमा
श्री अरिहंत देवने स्थापन करवा तथा दरिसण, (नाण के०) झान, चारित्र अने तप, ए चार मापद ते चार विदिशाउने विषे स्थापन करीने सेववां ॥ १५ ॥ ए रीते आठ पांखमीनां जे श्राप
दल, तहत् ए यंत्र ते सर्व यंत्रमा ( शिरताज के०) मोटो , एने ( निर्मल के० ) शुभ एवां तन, अने मन तेणे करी सेवतां थका सेवनारनां मनोवांबित कार्यने ( सारे के०) पूर्ण करे ॥ १६ ॥18॥ श्राशो सुदि मांहे सातमना दिवसथी ए तपने मांगीए एटले प्रारंजीए, तिहाथी नव दिवस पर्यंत निर्मल एवां नव श्रायंबिल करीने सर्व उत्तम प्रकारना गुणनुं घर एवो जे श्रीसिद्धचक्रयंत्र, तेने श्राराधो ॥ १७ ॥ विधिपूर्वक शुरू धोतीयां करी पदेरीने प्रजात, मध्याह्न अने सांज, ए त्रणी
NAMASTESCAOCALCUCUALSOCIACANCCCCCC
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #46
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम.?
॥
१॥
काल श्रीजिनेश्वरने पूजो. तिहां उजमाल थश्ने अष्ट प्रकारी पूजा करीए अथवा विधिपूर्वक शब्द ए पदनी साथे जोमी अर्थ करीए तो विधिपूर्वक श्रष्ट प्रकारी पूजा उजमाल थश्ने करीए॥१॥
निर्मल नूमि संथारीए, धरीए शील जगीश रे ॥ जपीए पद एकेकनी, नोकरवाली वीश रे॥चेतन॥१॥आठे थोइए वांदीए, देव सदा त्रण वार रे॥पमिकमणां दोय कीजीए, गुरु वेयावच्च सार रे॥चेतन ॥२०॥ काया वश करी राखीए, वचन विचारी बोल रे ॥ ध्यान धर्मनुं धारीए, मनसा कीजे अडोल रे॥ चेतन॥२॥पंचामृत करी एकगं,परिगल कीजे
पखाल रे॥नवमे दिन सिक्ष्चकनी,कीजे नक्ति विशाल रे॥चेतन॥॥ अर्थ-नव दिवस पर्यंत ( निर्मल के० ) चोखी जीवाकुलरहित जूमिने विष संथारो करीए, एटले निःकेवल नूमि उपर सुश्ए, तथा (जगीश के०)जगतमां मोटाश्ने धारण करना अथवा 8 जगतमां यश अने शोजाकारक एवं शीयलवत धारण करीए, अथवा ( जगीश के) मननी होंशे* करी शीयलव्रत धारण करीए, अने ए नव पद मांदेला अनुक्रमे एकेका पदनी वीश वीश नोकरवाली प्रतिदिवस जपीए एटले जाप करीए ॥ १५ ॥ वली (सदा के० ) सर्वदा एटले नवे दिवस पर्यंत आठे थुश्ए करीने प्रजात, मध्याह्न अने सांज, ए त्रण वार देव वांदीए एटले देववंदन 8 करीए, तथा सवारना अने सांजना ए बे वखतनां बेहु पमिकमणां करीए, श्रने (सार के) श्रेष्ठपणे श्रीगुरुनु वेयावच्च करीए ॥ २०॥ वली पोतानी कायाने वश करी राखवी, श्रने मुखमाथी जे वचन बोलवू पडे ते विचारीने योग्य बोलवू, पण यहा तछा न बोलवू, तथा ध्यान मात्र एक धर्मनुज धरवू, अने मनने अमोल करवं, परंतु मामामोल न करवू ॥ २१॥ उध, दही, साकर, घृत अने जल, ए पंचामृत एकगं करीने (परिगल के) बहु विधिए करी अथवा घणी मोटी
॥२१॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #47
--------------------------------------------------------------------------
________________
CASSOCIRCACANCERCOACAR
परिपूर्णताए करी प्रजुनी प्रतिमाने पखाल करीए. एम आठ दिवस अष्ट प्रकारी पूजापूर्वक नक्ति करीएं, अने नवमे दिवसे तो वली श्रीसिकचकनी ( विशाल के० ) मोटी नक्ति करीए ॥ २२ ॥ . सुदि सातमथी इणी परे, चैत्री पूनम सीम रे ॥ उली एद आराधीए,
नव आंबिलनी नीम रे॥ चेतन० ॥ २३ ॥ एम एकाशी आंबिले, जेली नव निरमाय रे ॥ साढे चार संवत्सरे, ए तप पूरण थाय रे ॥ चेतन ॥२४॥ उजमणुं पण कीजीए, शक्ति तणे अनुसार रे ॥श्द नव परनव सुख घणां, पामीजे नवपार रे॥ चेतन ॥२५॥ आराधन फल एदनां, इह नवे आण अखंड रे॥रोग दोदग फुःख नपशमे, जिम घन
पवन प्रचंम रे ॥ चेतन ॥२६॥ अर्थ-(इणी परे के0) एज रीते एटले जेम श्राशो सदि सातमना दिवसथी नव श्रांबिला करवां, तेमज चैत्र शुक्ल सप्तमीथी मांमीने पूर्णिमा लगे (सीम के०) मर्यादा डे त्यांसुधी एज है
आयंबिलनी उलीने नियमे करी बाराधीए ॥ २३ ॥ एम एक वर्षमां आशो अने चैत्र मली वे उलीमा अढार आयंबिल थाय. तेवां एकाशी आयंबिल ( निरमाय के०) कपटरहितपणे करवे । करीने जे वारे नव उली संपूर्ण थाय, ते वारे सर्वत्र सामा चार वर्षे ए आयंबिल तप पूर्ण थाय ॥ २४ ॥ पूर्ण थया पठी पोतानी शक्तिने अनुसारे उजमणुं पण करीए के जे थकी आजव अने| परजवने विष घणां सुख पामीए. यावत् (नव के ) संसार तेनो पार पण पामीए ॥ २५ ॥ हवे ए सिकचक्रन श्राराधन करवाथी शुं फल थाय ? ते कहे . एक तो था जवमां तेनी आण अखंग रहे, कोइ लोपी शके नहीं. वली रोग अने दौर्जाग्य तथा दुःख ते सर्व ( उपशमे के० )
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #48
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम शांत थाय. जेम (घन के० ) मेघ ते (प्रचंग के० ) घणो आकरो पवन लागवाथी नाश पामे , खम. १
तेनी पेरे कुःख दौर्जाग्य पण नाश पामे ॥ २६ ॥ ॥२२॥
नमणजले सिचक्रने, कुष्ठ अढारे जाय रे ॥ वाय चोराशी उपशमे, रूके गुंबड घाय रे॥चेतन ॥२॥ नीम जगंदर जय टले, जाय जलोदर दूर रे॥ व्याधि विविध विषवेदना, ज्वर थाये चकचूर रे ॥ चेतना ॥ ॥ खास खयन खस चक्षुना, रोग मिटे सन्निपात रे ॥ चोर चरड डर डाकिणी, कोइ न करे नपघात रे ॥ चेतन ॥ ए॥ दीक दरस ने देडकी, नारां ने नासूर रे ॥पाठां पीडा पेटनी, टले मुःख दंतनां सूर
रे ॥ चेतन० ॥ ३० ॥ . अर्थ-ए श्रीसिचक्रजीनु न्हवणजल गंटवे करी अढार जातना कोढ रोग जता रहे, तथा
चोराशी जातिना वायु संबंधी रोग थाय ने ते सर्व उपशम पामी जाय, तेमज शरीरमां गुबमां । थयां होय, (घाय के० ) काटका लाग्या होय, ते सर्व रूजे एटले रूजा जाय ॥ २७॥ वली (नीम के०) बीहामणा एवा जे नगंदर रोग संबंधी जय, ते टली जाय, तथा जलोदर रोग दूर जतो | रहे, वली व्याधि जे बाह्य शरीरनी पीमा तथा अंतरनी मन संबंधी पीमा अने विविध प्रकारनां ! (विष के०) फेर तेनी वेदना, तेमज सात प्रकारना (ज्वर के० ) ताप ते सर्व चकचूर था। जाय ॥ २७ ॥ तथा खांसीनो रोग, खेननो रोग अने खसनो रोग, वली (चकुना के०) नेत्रोना है रोग तेमज सन्निपात रोग, ए सर्व रोगो मटी जाय. श्रीसिद्धचक्रना प्रत्नाव थकी चोर अने ॥२२॥ (चरम के०) नूत तथा मर माकिणी ए मांहेलो को पण उपघात करी शके नहीं ॥श्ए॥ तथा हीकनो रोग, हरसनो रोग, हेमकीनो रोग, नारां पड्यां होय ते रोग अने नासूरनो
CROCODACOCOCOCONCRACCORRCANCERS
RIL
Jain Education T
For Personal and Private Use Only
Page #49
--------------------------------------------------------------------------
________________
ROCCANANCECA
रोग, पागनुं दरद अने पेटनी पीमा तथा दांतनां सूर ए सर्व रोग टली जाय ॥३०॥
निर्धनियां धन संपजे, अपुत्र पुत्रीया दोय रे॥ विण केवली सिध्यंत्रना, गुण न शके कही कोय रे ॥ चेतन ॥ ३१ ॥ रास रच्यो श्रीपालनो, तिहां ए सातमी ढाल रे ॥ विनय कदे श्रोताघरे, होजो मंगलमाल
रे ॥चेतन ॥३३॥ अर्थ-वली जे निर्धन पुरुषो होय ते धनवंत थाय तथा अपुत्रीया होय तेमने पुत्र थाय, घणुं| शुं कहीए ? ए श्रीसिकचक्रजीना गुणोने केवली नगवान् विना बीजो को कही शके नहीं ॥३॥ श्री श्रीपाल राजानो रास रच्यो तेनी ए सातमी ढाल संपूर्ण थक्ष. रासना कर्ता श्रीविनयविजयजी। उपाध्याय कहे डे के श्रोताउने घेर मांगलिकनी माला होजो ॥ ३ ॥
॥दोहा॥ श्री मुनिचंद मुनीश्वरे, सिध्यंत्र करी दीध ॥ श्द नव परनव एदथी, फलशे वांवित सि६॥॥श्री गुरु श्रावकने कदे, एबेहु सुर्गुणनिधान ॥
कोश्क अवसर पामीए, सेवो थइ सावधान ॥२॥ अर्थ-एम श्रीमुनिचं नामे मुनीश्वरे ए श्रीसिद्धचक्रनो यंत्र करी दीधो, एना माहात्म्यथी। श्रा नवे अने परजवे मनोवांवित सिकि फलशे ॥१॥ पड़ी पासे बेठेला श्रावकसमुदायने श्री गुरु कहे जे के या बेहु स्वामीना, ते रुमा गुणोना (निधान के०) खजानारूप में, एनां । उत्तम लक्षणे करी जाणीए बीए जे ए मनुष्य निश्चे थोमा दिवसोमां श्रीजिनधर्मना प्रनावक है थशे. एवा साधर्मीनी वात्सत्यता जक्ति करवी ए योगवा कोश्क अवसरे पामीए बीए, माटे सावधान थश्ने एमने सेवो ॥ यतः॥ एएहिं उत्तमेहिं, लकिङ खस्कणेहिं एस नरो ॥ जिण-18
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #50
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥ २३ ॥
सासपस्स नूणं, अचिरेण पजावगो होइ ॥ १ ॥ उप्पय ॥ अवसर घनहर घुरे, फूल पण अवसर फूले ॥ श्रवसर वारत वल, गुहीर निसाब गइले ॥ श्रवसर सजन मले, गीत पण अवसर गावे ॥ अवसर चूके मूढ, पिछे यह बहु पढतावे ॥ श्रवसर शृंगार कामिनी करे, अवसर मित्त पर किये ॥ कवि गद्द कहे रे ठाकुरो, अवसर कबहु न चूकीए ॥ २ ॥ गाथा ॥ उत्तमपत्तं साहू, मधिमपत्तं च | सावया जलिया ॥ अविश्य सम्मदिघी, जदन्नपत्तं मुणेयवं ॥ ३ ॥ मिथ्यादृष्टिसहस्रेषु, वरमेको ह्यणुव्रती ॥ अणुत्र तिसहस्रेषु वरमेको महाव्रती ॥ ४ ॥ महात्र तिसहस्रेषु, वरमेको हि तात्त्विकः ॥ तत्तात्त्विकसमं पात्रं, न भूतं न जविष्यति ॥ ५ ॥ इत्यर्थः ॥ २ ॥
सादमीना सगपण समुं, सगपण वर न कोय ॥ भक्ति करे सादमी तणी, समकित निर्मल दोय ॥ ३ ॥ पधरावे आदर करी, सादमी निज प्रवास ॥ भक्ति करे नव नव परे, आणी मन उल्लास ॥ ४ ॥ तिदां सघलो विधि साचवे, पामी गुरु उपदेश ॥ सिचक्रपूजा करे,
बिल तप सुविशेष ॥ ५ ॥
अर्थ-जे माटे जगवंते कह्युं बे के स्वामीना सगपण समान बीजुं कोइ पण सगपण नथी, केमके साधर्मीनी नक्ति कश्याथी पोतानुं समकित शुद्ध निर्मल चोखुं श्राय ॥ ३ ॥ एवं गुरुनुं वचन सांजली ते जला श्रावको संतोषवंत थर मोटा आदरे करीने साधर्मी जाइउने पोताना ( आवास के० ) घरने विषे पधरावता हवा. तिहां मनमां उल्लास घाणीने ते स्त्री जतरनी धन धान्य वस्त्रादिके करी नवा नवा प्रकारनी जक्ति करे बे ॥ ४ ॥ तिहां साधर्मीने घेर रह्यां थका सर्व प्रकारनो विधि साचवे बे. मयणाना उपदेशे करी गुरुनो उपदेश पामीने श्रीसिद्धचक्रनी पूजा करे बे, (सु के० ) जलुं एवं आयंबिल तप विशेषे खादरे बे ॥ ५ ॥
For Personal and Private Use Only
खंग. १
॥ २३ ॥
sacre www.jalnelibrary.org
Page #51
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ढाल श्रामी ॥ चोपाइनी देशी ॥
शो सुदि सातम सुविचार, जेली मांडी स्त्री जरतार ॥ अष्ट प्रका पूजा करी, बिल कीधां मन संवरी ॥ १ ॥ पहेले यांबिल. मन अनुकूल, रोग तपुं तिदां दाधुं मूल ॥ अंतरदाद सयल उपशम्यो, यंत्रनमणमहिमा मन रम्य ॥ २ ॥ बीजे यांबिल बाहिर तचा, निर्मल थइ जपतां जिन रुचा ॥ एम दिन दिन प्रत्ये वाध्यो वान, देद ययो सोवन्न समान ॥३॥
अर्थ-वे तहां साधर्मिकने घेर रदेतां थका जे वारे याशो सुदि सातमनो दिवस आव्यो. ते वारे जला विचारपूर्वक शुभ मुहूर्त्त जोइने ते स्त्री जर्त्तार बेहु जणे आयंबिल तपनी उली मांगी. तिहां ॥ यतः ॥ न्हवण विलेपन कुसुमनी, धूप दीप जलकार ॥ अक्षत नैवेद्य फल तणी, पूजा अष्ट प्रकार ॥ १ ॥ ए दोहामां कहेली आठ प्रकारनी श्रीसिद्धचक्रजीनी पूजा करी, तथा मनने संबरीने एटले मनमां संवरजाव घाणीने निरिविकपणे आयंबिल तपनां पञ्चरकाण कस्यां ॥ १ ॥ तिहां पहेलेज यायंबिले मनने अनुकूल लागे तेवी रीते श्रीपालना शरीरे जे कोढ रोग हतो तेनुं मूल दाधुं एटले वली जस्म श्रयुं, तेना योगे अंतरमां जे ( दाह के० ) दाज एटले बलतरा घती हती ते सर्व उपशमी इ. ते जोइ श्री सिद्धचक्रजी संबंधी यंत्रना नमणनो महिमा | तेमना मनमां रमी रह्यो, जे ए न्हवणना प्रजावथी बलतरा शमी गइ एवं जाणवामां श्राव्यं ॥ २ ॥ पढी बीजे आयंबिले ( रुचा के० ) रुचिवंत थर वधता जावे करी श्रीजिनराजने जपतां थका बाहेरनी जे तचा के० ) चाममी ते निर्मल थइ एम दिवस दिवस प्रत्ये शरीरनो वान वधवा लाग्यो. ते वधतां वधतां अनुक्रमे कोढीयानुं ( देह के० ) शरीर सोना सरखं थयुं ॥ ३ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #52
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
खंग.१
॥२४॥
नवमे आंबिल थयो नीरोग, पामी यंत्रनमणसंयोग॥ सिक्ष्चक्रनो मदिमा जुङ, सकल लोक मन अचरिज दुजे ॥ ४ ॥ मयणा कहे अवधारो राय, ए सवि सदगुरु तणो पसाय ॥ मात पिता बंधव सुत दोय, पण गुरु सम दितु नहीं कोय ॥५॥ कष्ट निवारे गुरु इद लोक, उर्गतिथी वारे परलोक ॥ सुमति दोय सद्गुरु सेवतां, गुरु दीवो ने गुरु देवता ॥६॥धन गुरु ज्ञानी धन ए धर्म, प्रत्यद दीगो जेदनो मर्म ॥ जैनधर्म
परशंसे सहु, बोधबीज पाम्यां तिहां बहु ॥७॥ अर्थ-एम नवमे आयंबिले यंत्रना न्हवणनो संयोग पामीने तेनुं सर्व शरीर रोग रहित थयु, माटे हे नव्यो ! श्रीसिद्धचक्रनो महिमा जुर्ज के जे देखीने समस्त जे लोक तिहां हतां, तेमनां 8 मनमां आश्चर्य पेदा थयुं ॥४॥ ते वारे मयणासुंदरी कहे डे के हे राजन् ! ( अवधारो के०) जुङ, विचारो के आ तमे रोग रहित थया, ए सर्व सद्गुरुनो पसाय जाणवो. संसारमा माता, पिता, बंधव जे जाइ अने डोकरा, ए सर्व हेतु होय ने खरा, पण गुरु समान हितनो करनार कोइ पण जाणवो नहीं ॥ यतः ॥ अन्न पखे त्राट नहीं, वाणी पखे जाट नहीं ॥ गरथ पखे हाट नहीं, गुरु पखे वाट नहीं ॥१॥ इति ॥ ५॥ गुरु जे जे ते आ लोकने विषे पण कष्टनुं निवारण करे अने परलोके जुर्गतिमां पम्वाथी वारी राखे एटले माठी गतिमां परवा दीये नहीं, सद्गुरुने सेवतां थका (सुमति के० ) नली बुद्धि होय, माटे गुरु दीवा समान तथा देवता समान जाणवा ॥ यतः॥ गुरुः कल्यवृदो गुरुः कामधेनु,-र्गुरुः कामकुंनो गुरुर्देवरत्नम् ॥ गुरुश्चित्रवन्विर्गुरुः कल्पवति,-गुरुदक्षिणावर्त्तशंखः पुनश्च ॥ इति ॥१॥६॥ धन्य डे ए ज्ञानी गुरुने ! तथा धन्य ए धर्मने ! के जेनो ( मर्म के०) रहस्य सार ते प्रत्यक्षपणे दीठो. एवी रीते सहु कोश् श्रीजैन
॥२४॥
Jain Education intentional
For Personal and Private Use Only
Page #53
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
धर्मनी प्रशंसा करता थका ( बहु के० ) घणा जनो तिहां बोध जे सम्यगूझान तेना बीजने पाम्या॥७॥
सातसें रोगीना रोग, नाग यंत्रनमणसंयोग ॥ ते सातसें सुखीया थया, दा निज निज थानक गया ॥ ७ ॥श्क दिन जिनवर प्रणमी पाय, पागं वलतां दीठी माय ॥ दर्ष धरीने चरणे नमे, मयणा पण आवी तिण समे ॥ ए॥ सासु जाणी पाये पडे, विनय करतां गिरुअरि चडे ॥ सासु वढूने दे आशीष, अचरिज देखी धूणे शीश ॥१०॥ कदे कुंवर माताजी सुणो, ए पसाय सहु तुम वहू तणो ॥ गयो रोग ने वाध्यो रंग,
वली लह्यो जिनधर्मप्रसंग ॥१२॥ अर्थ-वली सातसें रोगी पुरुषोना जे रोग हता ते सर्व यंत्रना न्हवणनो संयोग पामीने नाग-18 ते सातसें कष्टी जे एनी साथेहता. तेमनो रोग जवाथी सखी थाने धर्मने विषे सचिवंत होता हर्षवंत थया थका पोतपोताने स्थानके गया॥७॥ एक दिवसे स्त्री अने ज र बेहु जण श्रीजिन-11
राजना पगने प्रणाम करी पाना वलतां मार्गमा कुष्ठीए पोतानी माताने दीठी, ते वारे हर्ष धरीने || ४ तेना चरणने नम्यो. ते समये मयणासुंदरी पण तिहां श्रावी ॥ए॥ ते पण पोतानी सासु जाणीने पगे पमी, ए रीते विनय करतां (गिरुअरि चडे के) मोटापामे, सासुए वहूने श्राशीष दीधी श्रने श्राश्चर्य देखीने मस्तक धूणाव्युं ॥ १० ॥ कुंवर कहे जे के हे माताजी! सांजलो. आ मारो रोग गयो, अने शरीरनो रंग वध्यो, वली जैनधर्मनो प्रसंग ( लह्यो के०) पाम्यो, ए सर्व पसाय । तमारी वढूनो जाणजो ॥ यतः॥ स्त्रीणां दोषसहस्रेऽपि, गुणत्रयं मनोरमम् ॥ गृहाचारः सुतोत्पत्ति,-विपत्तिः पतिना सह ॥ इति ॥ ११॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #54
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण
खंम.१
॥२५॥
4%25A525A
सुगुण वढू निर्मल निज नंद, देखी माय अधिक आनंद ॥ पूनम परे वढू तें जश लीध, सकल कला पूरण पियु कीध ॥ १२॥ सुणो पुत्र कोसंबी सुण्यो, वैद्य एक वैद्यक बहु नण्यो॥ तेद नणी तिहां जालं जाम, ज्ञानी गुरु मुज मलीया ताम ॥१३॥ में पूज्युं गुरुचरणे नमी, कर्म कदर्थन में
बहु खमी ॥ पुत्र एक डे मुज वालहो, ते पण कर्मे रोगे ग्रह्यो॥१४॥ अर्थ-रुमी गुणवंती वह अने निर्मल शरीरवालो पोतानो (नंद के०) पुत्र, तेने देखीने माताने अत्यंत आनंद उपज्यो. ते वारे वढूने कहेवा लागी के हे वह ! तें तो पूनमनी पेरे यश लीधो, एटले जेम पूर्णिमानो दिवस चंडमाने सोल कलाए करी संपूर्ण करे डे, अर्थात् बीजना दिवसभी मामीने हैं दिन दिन प्रत्ये कलाए वधतो वधतो पूनमने दिवसे सोल कलाए संपूर्ण थाय, तेम ते पण तारा (पियु के० ) जर्त्तारने सर्व कलाए करी संपूर्ण कस्यो ॥ १५ ॥ हवे माताजी पोतानी वीतेली वात कहे जे के हे पुत्र ! सांजलो. में कोसंबी नगरीने विषे एक (बहु के० ) घणां वैद्यक संबंधी शास्त्रोनो जणनार एवो वैद्य सांजल्यो. पठी (जाम के० ) जे वारे कोसंबी नगरीमा ते वैद्य जणी जाउं , ( ताम के० ) ते वारे मार्गमां जतां मुजने एक ज्ञानी गुरु मख्या ॥ १३ ॥ ते गुरुने 8 चरणे नमीने में पूज्युं के हे स्वामिन् ! कर्मनी (कदर्थन के० ) पीमा ते तो में बहु (खमी के०) सहन करी, अने मारे एकज पुत्र वहालो बे, ते पण मागं कर्मना योगे करीने कोढ रोगे करी प्रसाणो २ ॥ यतः॥ चंदनं शीतलं लोके, चंदनादपि चंडमाः ॥ चंऽचंदनयोर्मध्ये, शीतलः साधुसंगमः॥१॥ साधूनां दर्शनं पुण्यं, तीर्थनूता हि साधवः ॥ तीर्थ फलति कालेन, सद्यः । साधुसमागमः ॥२॥ १४ ॥
4
AE
॥२५॥
%%
For Personal and Private Use Only
Page #55
--------------------------------------------------------------------------
________________
तेह तणो किम जाशे रोग, के नहीं जाये पापसंयोग ॥ दया करी मुज दाखो तेद, हुं बुं तुम चरणानी खेद ॥ १५॥ तव बोल्या ज्ञानी गुणवंत, म कर खेद सांजल विरतंत ॥ ते तुज पुत्र कुष्ठीए ग्रह्यो, जंबर राणो कर। जश सह्यो ॥१६॥ मालवपतिपुत्रीए वस्यो, तस विवाद कुष्ठीए कस्यो ॥ घरणीवयणे तप आदघु,सि-चक्र आराधन कझुं॥१७॥ तेथी तुज सुत थयो नीरोग, प्रगट्यो पुण्य तणो संयोग॥ वली एदथी वधशे लाज, जीती घणां नोगवशे राज॥१७॥गुरुवचने हुं आवी आज,तुम दीठे मुज सरियां
काज॥त्रणे जण हवे रदे सुखवास, लील करे सादमी आवास ॥१५॥ अर्थ-तो हे स्वामिन् ! ते मारा पुत्रनो रोग केम जशे ? के को पापना संयोगथी नहींज 3 |जाय ? ते दया करीने मुजने ( दाखो के०) देखाडो, ढुं तमारा चरणनी ( खेह के ) रज बु ॥ १५ ॥ ते वारे गुणवंत ज्ञानी गुरु ज्ञान प्रयुंजीने बोल्या के हे बा ! तुं कां पण खेद म कर, अने हुं वृत्तांत कहुँ ते सांजल, के ते तारो पुत्र जे कोढीयाए ग्रहण कस्यो हतो, ते उंबर राणो एवे नामे करी जगतमां यश पाम्यो ॥ १६॥ तेने मालव देशना राजानी पुत्रीए वस्यो | एटले परएयो , तेनो विवाह कोढीयाए मलीने कस्यो , तेणे पोतानी (घरणी के०) स्त्री तेना वचने आयंबिल, तप आदमु अने श्री सिद्धचक्रनुं श्राराधन कयुं ॥ १७ ॥ तेथी तारो पुत्र । नीरोगी थयो , एणे जे पूर्व नवमां पुण्य कमु हतुं, तेनो संयोग प्रगट थयो. वली पण ए श्रीसिहचक्रना आराधनथी एनी घणी लाज अने शोना वधशे, तथा वली ते घणा राजाउने जीतीने राज्य लोगवशे ॥ १७॥ तो हे पुत्र ! ते गुरुने वचने हुँ आज श्हां श्रावी ने तमने दीग, तेथी मारा कार्य 81 सख्यां. हवे त्रणे जण साहमीनाश्ना (आवास के०) घरमां सुखे लीला करता थका रहे, वसे ॥१॥
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #56
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
॥२६॥
सिचक्रनो उत्तम रास, नणतां सुणतां पूगे आश ॥
नखंग.१ ढाल आठमी इणी परे सुणी, विनय कदे चित्त धरजो गुणी ॥२०॥ अर्थ-नो जव्यो ! ए श्रीसिझचक्रजीना माहात्म्यनो उत्तम रास , ते नणतां तथा सांजलतां थका मननी आशा पहोंचे. ए रीते ए श्राग्मी ढाल सांजलीने हे गुणिजनो ! तमे चित्तमा धरजो. एम श्रीविनय विजय उपाध्यायजी कहे ॥२०॥
॥दोहा॥ इक दिन जिनपूजा करी, मधुर स्वरे इक चित्त ॥ चैत्यवंदन कुंअर करे, सासु वढू सुणंत ॥१॥ मयणानी माता घj, उदवाणी नृप साथ ॥ जब मयणा मत्सर धरी, दीधी नंबर दाथ ॥॥ पुण्यपाल नामे नृपति, निज बंधव आवास॥रीसावी आवी रही,मूके मुख निसास॥३॥ जिनवाणी दियडे धरी, विसारी उःख दंद॥आवी देवजुदारवा, तिण दिन तिहां आनंद॥४॥ अर्थ-हवे एक दिवसे श्रीजिनेश्वरनी पूजा करी सासु तथा वहू ए बेहु जणीए सांजलतां 31 थका मधुर खरे, एकाग्र चित्ते श्रीपाल कुंवर चैत्यवंदन करे ॥१॥ जे वारे (मत्सर के०) ईर्ष्या है धारण करीने राजाए मयणासुंदरीने कोढीयाना हाथमां दीधी हती, ते वारे मयणानी माता जे रूपसुंदरी ते राजानी साथे घणुंज मुहवाणी॥२॥ ते दिवसे तिहांथी रीसावीने एज नग-1 रमां पोतानो (वंधव के) नाइ पुण्यपाल नामे राजा रहे , तेना (आवास के० ) घरमा मुख थकी निसासा मूकती पुत्रीनो शोक करती थकी आवी रही ॥३॥ ते पण श्रीजिनेश्वरनी वाणी ॥२६॥ हियडामां धरीने एटले जिनवचन उपर सदहणाए विचाखु जे केहना पुत्र भने केहनी पुत्री, जगतमां कोई कोर्नु नश्री. एवो चित्तमां विवेक लावीने शोकथी प्राप्त थयेला जे फुःखरूपी दंद,
For Personal and Private Use Only
Page #57
--------------------------------------------------------------------------
________________
तेने विसारीने ते पण ते दिवसे तिहां आनंदे करी श्रीझपनदेवने देहरे देव जुहारवाने श्रावी ॥४॥
माये मयणा उलखी, अनुसारे निज बाल ॥ आगल नर दीगे अवर, यौवन रूप रसाल ॥५॥ कुलखंपण ए कुंवरी, कां दीधी किरतार ॥ जिणे कुष्ठी वर परदरी, अवर कीयो जरतार ॥ ६॥ वज्र पमो मुज कुखने, धिक धिक मुज अवतार ॥ रूपसुंदरी इणी परे घj, रुदन करे तेणी वार ॥७॥रोती दीठी उखनरे, मयणाए निज माय ॥ तव आवी उतावली,
लागी जननी पाय ॥ ७॥ अर्थ-तिहां मयणानी ( माये के०) माताए पोतानी (बाल के० ) पुत्रीने अंगचेष्टादिकने 81 अनुसारे उलखी, जे आ मारी दीकरी मयणासुंदरी , पण तेनी आगल तो कोश (अवर के) बीजो पुरुष युवान, सुंदर, अत्यंत रूपवंत अने प्रत्यद देवकुंवर सरखो, चतुराश्थी देववंदन है। स्तुति करतो दीठो, तेनी पूंठे पोतानी पुत्रीने बेठेली देखीने ॥५॥ रूपसुंदरी विचारे जे जे है | किरतार ! कुलने खोट लगामनारी एवी ए कुंवरी ते मुजने कां दीधी ? के जेणे कोढी वर त्यागीने बीजो चर्त्तार कीधो ? एणे सतीनो मार्ग मूकी दीधो, जु, था कुंवरी जिनमतमां चतुर | बे, माटे एने अकार्य करवू असंजवित , ते बतां विषयविकार केवो बलवान् बे के जेणे एने पण नूलावी नाखी ? माटे रे रे दैव ! था संसारमा नहीं संनवे एवां नाटक थाय !!॥ ६ ॥एणी। परे चिंतवती पुःखना समूहे नरी थकी रूपसुंदरी ते वखते दयामणे स्वरे घणुंज रुदन करती थकी चिंतवे डे के धिक्कार , धिक्कार , मारा अवतारने ! के था अकार्यनी करनार कुंवरी मारी कुखने विषे श्रावी उपनी, माटे मारी कुखनी उपर वन पमो ॥ ७॥ एम उःखजरे रोती एवी18
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #58
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ २७ ॥
पोतानी माताने मयणासुंदरीए दीवी, ते वारे मातानो अभिप्राय जाणती थकी उतावली माता पासे श्रावी पगे लागीने विकस्वर वदने कहे बे ॥ ८ ॥
दर्ष तणे स्थानक तुमे, कां दुःख आणो माय ॥ दुःख दोहग दूरे गयां, श्री जिनधर्मपाय ॥ ॥ निसिदी कदीने यवीयां, जिणदर मांदे जेा ॥ करतां कथा संसारनी, आशातन दोये तेण ॥ १० ॥ दवणां रदीए बे जिदां, च्यावो तिणे प्रवास ॥ वात सयल सुणजो तिहां, दोशे दिये उल्लास ॥ ११ ॥ तिहां च्यावी बेगं मली, चारे चतुर सुजाण ॥ जे दिन स्वजन मिलावडो, धन ते दिन सुविदा ॥ १२ ॥ मयाना मुखथी सुणी, सघलो ते वदा ॥ रूपसुंदरी सुप्रसन्न थइ, दियडे दर्ष न मात ॥ १३ ॥
अर्थ-के हे माताजी ! या दर्षने स्थानके तमे दुःख केम आणो बो ? आपणां तो दुःख अने दौर्भाग्य सर्व श्री जिनधर्मना पसायथी पूरे गयां ॥ ए ॥ ( जेल के० ) जे माटे संसारनी कथा वार्त्ता करवा संबंधी (निसिही के०) नैषेधिकी कही ने जिलघर मांदे श्रव्यां बीए, तेथी इहां संसारनी कथा करतां थका यशातना लागे निसिहीनो जंग थाय ॥ १० ॥ तो हमषां जे स्थानके थमे रहीए बीए, ते ( आवास के० ) घर मांदे माताजी ! तमे श्रावो. तिहां सर्व वात सांजलजो, जेथी तमारा हैयाने विषे उल्लास थशे ॥ ११ ॥ पढी जिहां मयषा रहे बे, तिहां ते चारे चतुरसुजाण मलीने यावी वेठां जे दिवसे स्वजनोनो मेलावको थाय, ते दिवस धन्य ( सुविहाण के० ) जनुं वहाएं वहायुं जाणवुं ॥ १२ ॥ तिहां मयणासुंदरीना मुख थकी ते सर्व ( अवदात के० ) संबंध सांजलीने रूपसुंदरी घणी सुप्रसन्न थइ, अने तेना हैयाने विषे हर्ष समातो नथी ॥ १३ ॥
For Personal and Private Use Only)
Jain Educationa International
खंग. १
॥ २७ ॥
Page #59
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ढाल नवमी॥ अर्ध मंमित गोरी नागिला रे ॥ ए देशी॥ वर वद बेहु सासु मली रे, करे वेवादण वात रे ॥ कमला रूपाने कदे रे, धन तुम कुल विख्यात रे । जु अगम गति पुण्यनी रे॥ पुण्ये वंबित थाय रे ॥ सवि उःख दूर पलाय रे॥॥जु अगम गति पुण्यनी रे॥ए आंकण। ॥ वहूए अम कुल जदयुं रे, कीधो अम उपगार रे ॥ अमने जिनधर्म बुझव्यो रे, ॥ उतास्यां सुखपार रे ॥ जु० ॥२॥ सूइ जिम दोरा प्रते रे, आणे कसीदे गम रे॥तिम वढूए मुज पुत्रनी
रे, घणी वधारी माम रे ॥ जुर्जन ॥३॥ अर्थ-हवे वर तथा वह ए बेहुनी सासु मली वन्ने वेवाणो माहोमांहे वातो करे , ते वारे । कमलप्रजा जे श्रीपालनी माता ते रूपसुंदरीने कहे जे के ( विख्यात के०) प्रसिद्धि पामेला एवाई तमारा कुलने धन्य बे. कवीश्वर कहे के हे नव्यो ! तमे जुर्म के पुण्यनी गति केवी अगम्य P? पुण्ये करी मनोवांबित कार्य सर्व सिक थाय तथा रोगादि सर्व प्रकारनां पुःख ते पलायन करी पूर जतां रहे, मादे पुण्यनी गतिनी ज्ञानी विना बीजाने गम पडे नहीं॥१॥ वहूए अमारा है कुलनो उझार कस्यो, श्रमने श्रीजिनधर्म (बुकव्यो के०) शीखव्यो-पमाड्यो, अने अमे उःखरूप समुअमां पड्यां हतां तेमांथी पार उतास्यां, मारो पुत्र नीरोगी थयो ते एना प्रजावथी थयो, ए सर्व अमारी वहूए अमारा उपर उपकार कस्यो, ए तमारी पुत्रीनो प्रनाव चिंतामणि रत्न सरखो , माटे धन्य ने तमने ! जे तमारी कुखमां आवं स्त्रीरत्न उत्पन्न थयुं ॥ यतः ॥ कार्ये दासी | रतौ रंजा, जोजने जननीसमा ॥ विपत्तौ बुद्धिदात्री च, सा नार्या नुवि उर्लना ॥१॥ इति ॥२॥
SRIGANGANAGARCANNOCRACROSOLONDOCALCOM
Sain Education
For Personal and Private Use Only
Milminelibrary.org
Page #60
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण
॥२०॥
जेम सोश दोराने कसीदाना जरतमा ठेकाणे आणे, तेम वहूए पण मारा पुत्रनी आबरु अने खम.१ शोना घणी वधारीने अमने ठेकाणे श्राएयां ॥३॥
रूपा कहे नाग्ये लह्यो रे, अमे जमाइ एद रे॥रयण चिंतामणि सारिखो रे, सुंदर तनु ससनेद रे ॥ जु० ॥४॥ सुणवा अम श्वा घणी रे, एदनां कुल घर वंश रे ॥ प्रेमे तेद प्रकाशीए रे, जिम हीसे अम हंस रे॥ जुन ॥५॥ कहे कमला रूपा सुणो रे, अंग अनोपम देश रे ॥ तिहां चंपा नगरी नली रे, जिहां नहीं पाप प्रवेश रे ॥ जुजे ॥६॥ तेद नगरीनो राजीयो रे, राजा गुण अनिराम रे॥ सिंह थकी रथ जोडीए
रे, प्रगट हुवे तस नाम रे॥ जु०॥७॥ __ अर्थ-ए, सांजलीने रूपसुंदरी कहेवा लागी के चिंतामणि रत्न सरखो प्रजाव ने जेनो अने? वली सस्नेह एवं सुंदर डे (तनु के० ) शरीर जेनुं एवा आ जमाश्ने अमे पण नाग्ययोगे पाम्या | बीए ॥ यतः॥ शर्वरीदीपकश्चंजः, प्रजातदीपको रविः ॥ त्रिलोकीदीपको धर्मः, सुपुत्रः कुल-3 दीपकः॥१॥ इति ॥४॥ तो हवे एनां कुल, घर अने वंश संबंधी कथा सांजलवानी अमोने घणी श्छा रहे बे, माटे ते तमे प्रेमे करी प्रकाशो के जेम श्रमारो ( हंस के०) आत्मा ते (हींसे के०) प्रसन्न थाय ॥ ५॥ ते सांजली कमलप्रना जे श्रीपालनी माता ते रूपसुंदरीने कहे डे के हे वेवाण ! तमे सांजलो. (अनोपम के०) उपमा रहित एवो अंग नामे देश, तेने विषे जेमां पापनो ॥२०॥ रंचमात्र प्रवेश नथी एवी (जली के०) रुमी चंपा नामे नगरी ॥६॥ते नगरीनो राजा ते राजा संबंधी जे गुण तेणे करीने (अनिराम के०) मनोहर एवो अने सिंह थकी रथ जोमतां एटो रथमां
Jain Educo
temational
For Personal and Private Use Only
Page #61
--------------------------------------------------------------------------
________________
4%
सिंहने जोमतां जे नाम थाय ते नामे करी राजानुं नाम प्रगट थाय, एटले शत्रुरूप हाथीउने | सिंह समान एवो सिंहरथ नामे राजा जाणवो ॥ ७॥
राणी तस कमलप्रना रे, अंग धरे गुण सेण रे॥ कोंकण देश नरिंदनी रे, जे सुणीए लघु बहेन रे॥ जुर्ज ॥ ७ ॥राजा मन चिंता घणी रे, पुत्र नहीं अम कोय रे॥राणी पण आरति करे रे, निशिदिन करे दोय रे॥जुङ ॥ ए॥ देव देहरमां मानता रे, श्बतां पूजतां एक रे ॥राणी
सुत जनम्यो यथा रे, विद्या जणे विवेक रे । जुजे ॥१०॥ अर्थ-हवे ते राजानी स्त्री अंगने विषे गुणोनी श्रेणीने धरनारी अथवा पागंतरे अंगने विषे गुणनी सेनाने धारण करनारी एवी कमलप्रजानामे राणी , ते कोंकण देशना राजानी (लघु के० ) नानी बिहेन (सुणीए के०) जाणीए॥॥ते राजा घणां वर्ष अपुत्रीयो रहेवाथी निरंतर तेना मनमा घणी। चिंता रहती हती जे अमारे को पुत्र नथी तेमज राणी पण पुत्रने माटे (श्रारति के०) दुःख कस्या करे, एम ते बेहु जण रात्रि दिवस फ्रूरतां रहे . यतः ॥ एकेन वनवृक्षण, पुष्पितेन सुगं-13 धिना ॥ वासितं तम्नं सर्वं, सुपुत्रेण कुलं यथा ॥१॥ यस्य पुत्रो न विहांश्च, न शूरो न च.६ पंमितः॥ अंधकारः कुले तस्य, नष्टचं व शर्वरी ॥२॥ चोसठ दीवा जो बले० ॥ अपुत्रस्य गृहं, शन्यं०॥ अपुत्रस्य गति स्ति०॥ ए सर्व काव्य उदाहरणमां कहेवां तथा ॥ विना स्तंनं यथा गेहं, यथा देहं विनात्मता ॥ यथा तरुविना मूलं, तथा पुत्रं विना कुलम् ॥३॥ इति ॥ ए॥ पढी देव, देहरांनी मानता करतां श्वतां पूबतां थका ( यथा के०) जे प्रकारे विद्या जे जे ते जेम विवे-16 कने जणे , एटले विद्या थकी जेम विवेक प्रगटे , तेम राणी थकी पुत्र प्रगट्यो. एटले एक पुत्रने राणीए जन्म आप्यो ॥ १० ॥
%%%%
BE
For Personal and Private Use Only
Page #62
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥श्
॥
644%AAAAAA
नगर लोक सवि हरषीयां रे, घर घर तोरण बाट रे॥ आवे घणां वधा- खंग.१ मणां रे, शणगायां घर हाट रे ॥ जुर्ज ॥११॥राजा मन उलट घणे रे, दान दीये लख कोडी रे ॥ वैरी पण संतोषीया रे, बंदिखाना गेडी रे॥जुङ० ॥ १२॥ धवल मंगल दीये सुंदरी रे, वाजे ढोल निसाण रे॥नाटक होवे नव नवां रे, महोत्सव अधिक मंमाण रे॥जु० ॥१३॥ न्याति सजन सहु नोतस्यां रे, नोजन षट् रस पाक रे ॥पार नहीं पक
वान्ननो रे, शालि सुरदां घृत शाक रे ॥ जुन ॥१४॥ | अर्थ-तेथी नगरनां लोक सर्व हर्षित थयां, घरोघर तोरणने खेंची ताट करी बांध्यां, घणां वधामणां श्राववा लाग्यां, घर, हाट, पुकान सर्व शणगास्यां ॥ ११ ॥ राजा मननी घणीज उलटे 5 करीने लाखो करोडोनुं दान दीए ने. जे वैरी हता तेने पण दान आपी संतोषित कस्या, बंदिखानामां पडेला गुनेगारोने बंदिखानेथी डोमी मूक्या ॥ यतः॥ आनंदाश्रूणि रोमांचो, बहुमानः | प्रियं वचः ॥ किंचानुमोदना पात्र,-दाननूषणपंचकं ॥१॥इति ॥ १२ ॥ ते वारे सुंदरी जे सौनाग्यवती स्त्री ते धवल मंगल गीत गाय , ढोल, निशान वागी रह्यां बे, नवां नवां नाटक थाय बे. एरीते अधिक मंमाणे मोटो महोत्सव करे ॥ यतः॥ विवाहे पुण्यकार्यादौ, मंगलं सधवाः स्त्रियः॥ विधवा गर्हिता लोके, प्राप्नुवंति पराजवम् ॥ १॥ इति ॥ १३ ॥ पली बारमे दिवसे शाति, सजान सर्वने नोतरीने षट् रस पाक जोजन निपजाव्यां, तेमां पक्वान्न कराव्यां तेनो तो पारज ॥२५॥ नथी, वली (शालि के०) लापसी, ( सुरहां के ) सारां दाल तथा घृत अने शाक, ए सर्व निपजावीने जमाड्यां ॥ १४ ॥
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #63
--------------------------------------------------------------------------
________________
नूषण अंबर पदेरामणी रे, श्रीफल कुसुम तंबोल रे ॥ केशर तिलक वली गंटणां रे, चंदन चूआ रंगरोल रे ॥जुङ ॥१५॥ राजरमणी अम पालशे रे, पुण्ये लह्यो ए बाल रे ॥ सऊन नूआ मली तेहy रे, नाम उव्युं श्रीपाल रे॥ जु० ॥१६॥रास रुडो श्रीपालनो रे, तेहनी नवमी ढाल रे ॥ विनय कदे श्रोताघरे रे, होजो मंगलमाल रे
॥ जुर्ज० ॥१७॥ अर्थ-वली आजूषण तथा वस्त्रनी पहेरामणी करी, उपर श्रीफल, फूल, पान, सोपारी आपी, केशरनां तिलक करी वस्त्रे गंटणां कीधां. तथा चूया श्रने चंदने करी रंगरोल करीने घणा खुशी कस्यां ॥ १५ ॥ हवे था पुत्र अमे पुण्ये करी पाम्या बीए अने श्रमो अनाथनी राज्यरूप जे ( रमणी के० ) स्त्री अथवा लक्ष्मी ने तेनुं ए पालन करशे, माटे सङान तथा (नूश्रा के०)। फश तेए मलीने बालकनुं 'श्रीपाल' एवं नाम स्थाप्युं ॥१६॥ए श्रीपाल राजानो रुमो रास तेनी । नवमी ढाल पूर्ण थ. श्रीविनयविजय कहे के श्रोता जनोने घेर मांगलिकनी माला होजो॥१७॥||||
पांच वरसनो जब दुवो, ते कुंवर श्रीपाल ॥ ताम शूल रोगे करी, पिता
पदोतो काल ॥१॥शिर कूटे पीटे हियुं, रुवे सकल परिवार ॥ स्वामी तें .. माया तजी, कुण करशे अम सार॥२॥
अर्थ-ते श्रीपाल कुंवर जे वारे पांच वर्षनो थयो, ते वारे ते कुंवरनो पिता शूलना रोगे करी कालधर्म पाम्यो, एटले मरण पाम्यों ॥ १॥ तेना पुःखश्री माथु कूटता, हैयुं पीटतां थका परि-18| वारनां सर्व लोक रुदन करे , वली कहे जे के हे स्वामिन् ! तमे अमारा उपरथी माया तजी तो ।
॥दोहा॥
in Education International
For Personal and Private Use Only
Page #64
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राहवे श्रमारी सार संजाल कोण करशे ? ॥ सुख गयुं जेने सासरे, पीयर टलीयुं मान ॥ कंत- खम.१ ॥३०॥ विहूणी कामिनी, जिहां जाये तिहां रान ॥ १॥ इति ॥ २॥
गया विदेशे बाहुमे, वाल्हा कोइक वार ॥ इण वाटे वोलावीया, न मले बीजी वार ॥ ३ ॥ देजे हसी बोलावता, जे दणमां के वार ॥ नजर न मंमे ते सजन, फूटे न दिया गमार ॥ ४॥ नेह न आण्यो माहरो, पुत्र न
थाप्यो पाट ॥ एवमी उतावल करी, शुं चाल्या इण वाट ॥५॥ अर्थ-जे विदेश एटले परदेश गया होय ते वाव्हा कोक वार ( बाहुडे के ) मझे, पण ए वाटे जेने वोलावी श्राव्या ते वीजी वार मले नहीं ॥३॥ हे हृदय ! अमने हेजे करी सहित हसीने एक क्षणवारमा केटलीएक वखत बोलावता एवा ( सजान के०) वहाला, ते आज सामी
नजर पण मांगता नथी, ते माटे हे मारा गमार हैयमा ! तुं फाटोने बे नाग केम थतुं नथी ? | ४॥ यतः ॥ केहशुं कीजे वत्तडी, केहशुं कीजे कठ॥ जेहवा सऊन वीबड्या, तेहवा नावे हब॥१॥ हुँ। हैकुमलाणी कंत विण, जिम जल विहणी वेल ॥ वणजारानी श्राग ज्यु, गयो धखंती मेल ॥२॥
वालमीया मंदिर रह्या, उमण लागी खेह ॥ हैयडे वादल पूरीयां, नयणे वूग मेह ॥३॥ विसाख्या में
नहीं विसरे, सं नास्या न समाय ॥ वालम तणा सनेहमा, हियडे वलगा जाय ॥४॥ इति ॥४॥ ४ावली हे स्वामिन् ! तमे मारा उपर स्नेह आएयो नहीं ते तो रडं, परंतु पुत्रने तमारे पाट एटले | है तखते पण बेसाड्यो नहीं ! एटली वधी उतावल करीने ( वाट के०) ए मार्गे शुं चाल्या ?
॥ यतः॥ में जाण्युं मन मांय, श्रातम रहेशे एकलो ॥ वालम तुम दिल कोय, माने को मालुम :॥३०॥ नहीं ॥१॥ मालाया महोटी खोड, माणसने मरवा तणी ॥ बीजी ने लख कोम, ए सरखी एके | नहीं ॥२॥ इति ॥५॥
Jain Education
Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #65
--------------------------------------------------------------------------
________________
रोती हियमे फाटते, कमला करे विलाप ॥ मतिसागर मंत्री तिसे, इम समजावे आप ॥ ६॥ दवे दियडु का करी, सकल संबादो काज ॥ पुत्र तुमारो नानडो, रोतां न रहे राज ॥ ७॥ कमला कदे मंत्री प्रते, हवे तुमे
आधार ॥राज्य देशश्रीपालने, सफल करो अधिकार ॥७॥ अर्थ-ए रीते फाटते हैयडे रमती थकी कमलप्रना विलाप करे , तेने मतिसागर प्रधान | आवीने एवी रीते समजावे , ते पागल कहे ॥६॥ हवे तमे तमारुं हैयु कठिण करीने सर्व राजकाज पोताने हाथे राखो, केमके तमारो पुत्र हजी नानो , माटे रोतां थका राज्य रहेशे नहीं ॥ ७॥ एवं सांजलीने कमलप्रना राणी प्रधानने कहे के हवे तमेज अमारा आधारनूत बो, माटे श्रीपालने राज्य आपीने तमारो अधिकार सफल करो ॥ ॥
॥ ढाल दशमी ॥ राग रामग्री अथवा मारु ॥ जगद्गुरु हीरजी रे॥ ए देशी॥ . मृतकारज करी रायनां रे, सकल निवारी शोक ॥ मतिसागर मंत्रीसरे रे, थिर कीधां सवि लोक ॥ देखो गति दैवनी रे ॥दैव करे ते होय, कुणे चाले नहीं रे ॥१॥ए आंकणी ॥राज ग्वी श्रीपालने रे, वरतावी तस
आण ॥ राज काज सवि चालवे रे, मंत्री बहु बुदिखाण ॥देखो ॥२॥ अर्थ-पढ़ी राजानां मृतकार्य करी, सर्व शोक निवारीने, मतिसागर प्रधाने सर्व लोकने स्थिर है। कस्यां, माटे हे वेवाण ! दैव जे कर्म तेनी गति तो जुर्ज, केवी विषम ? जे दैव करे , तेज भावात जगतमां थाय बे, पण दैवनी जपर कोनं चालतं नथी ॥१॥पली श्रीपालने राज्यपाटे
ज (काज के०) कारनार ते सर्व बहु बुधिनी खाणरूप|8| |जे मतिसागर नामे प्रधान ने तेज चलावे ॥२॥
SCAMACHCARECARDAMAARCOACANARACAMERGROG
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
M
ainelibrary.org
Page #66
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री
इण अवसर श्रीपालनो रे, पीतरीयो मतिमूढ ॥ परिकर सघलो पालटी रे, गूफ करे इम गूढ ॥ देखो० ॥३॥ मतिसागरने मारवा रे, वली दणवा श्रीपाल ॥ राज लेवा चंपा तणुं रे, उष्ट थयो उजमाल ॥ देखो ॥४॥ किमहीक मंत्रीसर लही रे, ते वैरीनी वात ॥ राणीने आवी कदे रे, नासो लेइ अध रात ॥ देखो० ॥ ५॥जो जाशो तो जीवशो रे, सुत जीवामण काज ॥ कुंवर जो कुशलो दशे रे, तो वली करशो राज॥ देखो ॥६॥राणी नाठी एकली रे, पुत्र चडावी केड ॥ उवटे जाती पो रे, विषमी जिहां ने वेड ॥ देखो० ॥ ७॥ श्रर्थ-एवा अवसरने विषे मतिए करीने मूढ एवो श्रीपालनो पीतरीयो काको, तेणे सघलो परिकर जे लश्कर, सामंत प्रमखने लांच विगेरे आपीनेद पाडी फोमीने पलटाव्या, एटले ४ फेरवी नाख्या. एम (गूंढ के० ) गुप्तपणे तेणे गुह्य कर्म कयुं ॥३॥ मतिसागर प्रधानने मारवाने, |वली श्रीपालने पण हणवाने तथा चंपानगरीनु राज्य लेवाने ते पुष्ट उजमाल थयो ॥४॥दवे ते ||
उश्मने करेली गुह्य वातने कोश्क रीते कोश्कना मुखथी मतिसागर प्रधाने जाणी ते वारे राणी पासे मायावीने कदेवा लाग्यो जे तमे उहांथी अर्ध रात्रि लडने नासी जा॥ कांबे के ॥शकट हस्तेन, दश हस्तेन वाजिनं ॥ कुंजरं शत हस्तेन, देशत्यागेन उर्जनम् ॥ ५॥ जो नासी जशो 5 तो जीवता रहेशो अने तमारा पुत्रने जीवामवा काजे ए काम करो, केमके तमारो कुंवर जोर
blu३१॥ कुशल देम हशे तो फरी राज करशे ॥ यतः ॥ जानुश्च मंत्र। दयिता सरखती, मतंगनाशान्नृप है कौतुकेन ॥ गंगातटेऽनूत्पुनरेव लानो, जीवन्नरो नशतानि पश्यति ॥१॥ इति ॥६॥एवं मंत्री, वचन सांजलीने राणी एकली पुत्रने के उपर चमावीने नाती. तेणे (उवट के०) श्रवली वाटे एटले
For Personal and Private Use Only
Page #67
--------------------------------------------------------------------------
________________
धास्तीने लीधे सरल मार्ग मूकीने उजम जंगलमा जिहां विषम मार्ग जे ते रस्ते चालवा मांड्युं ॥७॥
जास जडो जड कांखरां रे, खाखर नाखर खोद ॥ फणिधर मणिधर जिहां फरे रे, अजगर उंदर गोद ॥ देखो० ॥ ॥जड अबला रडवडे रे, रयणी घोर अंधार ॥ चरणे खूचे कांकरा रे, वदे लोहीनी धार ॥ देखो ॥ ए॥ वरु वाघ ने वरघमां रे, सोर करे शीयाल ॥ चोर चरम ने चीतरा रे, दीये उपलती फाल ॥ देखो० ॥ १०॥ घू घू घू घूअड करे रे, वानर पामे दीक ॥ खलदल परवतथी पमे रे, नदी निकरणां
नीक ॥ देखो० ॥११॥ अर्थ-(जास के० ) जे मार्गमां (जडो के०) जडुं, (जम के०) जोयां अने कांखरां घणां 8 पड्यां . वली खाखरानां काम, (जाखर के०) पथरा कांकरा तथा (खोह के ) खामा पड्या है . वली जे मार्गमा फणिना धरनार श्रने जेना मस्तकने विषे मणि रहेला ने, तेवा सर्प घणा अहीं तही ब्रमण करी रह्या बे. तेमज अजगर, बंदर ने गोह नामनां जनावर घणां विचरी रह्यां ॥ ७॥ एवी घोर अंधारी रात्रिए उजम मार्गे चालतां अबला जे स्त्री, ते रमवडे अने | तेना पगमां कांकरा खूची जाय , तेने योगे पगमाथी लोहीनी धारा ऊरे ॥ ए॥ वली जे मार्गमां ( वरु के० ) वरु, वाघ अने ( वरघमां के०) चराख तथा शीयालीयां ते सोर बकोर करे . तथा चोर अने (चरम के०) बल, चोर फासीगरा अथवा नूत तथा चीतरा जनावर तो उबलतां थका मोटी फालो मारी रह्या जे ॥ १०॥ तथा घूवर पक्षी ते घू घू घृ एवो नयंकर शब्द : करी रह्या बे, अने वानरा (हीक के०) चीसो पामी रह्या , तथा पर्वत उपरथी खलहलाट शब्द करती नदीना पाणीनां निर्धारणांनी (नीक के०) धाराऊ पर्वत उपरथी नीचे श्रावी पडे २ ॥११॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #68
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण बलीयुं बेहुनुं आज रे, सत्य शीयल संघात ॥ वखत बली कुंवर वडो
खंग.१ ॥३२॥ रे, तिणे न करे कोई घात ॥ देखो ॥ १२॥ रयणहिंडोले दींचती रे,
सुती सोवन खाट ॥ तस शिर इम वेला पडी रे, पडो देव शिर दाट ॥ देखो० ॥ १३ ॥ रडवडतां रयणी गरे, चढी पंथ शिर शुभ ॥ तव बालक नूख्यो थयो रे, मागे साकर उध ॥ देखो० ॥१४॥ तव रोती राणी कदे रे, उध रह्यां वत्स दूर ॥ जो सहीए दवे कूकशा रे, तो लह्यां
कूर कपूर ॥ देखो० ॥१५॥ अर्थ-पण माता तथा पुत्र ए बेहुनुं आयुष्य बलवान् , तथा एक सत्य श्रने बीजुं शील ए बे जणनो राणीने संघात एटले सथवारो , वली कुंवरनो वखत मोटो बलवान् , तेथी को तेमने उपघात करतुं नथी ॥ १५ ॥ अरे ! जे राणी रत्ननी हिंमोलाखाटे हींचती हती अने सोना-18 ना पलंग उपर शयन करती हती, तेने माथे आवी वेला श्रावी पडी, माटे दैव जे कर्म, तेनुं । शिर जे मस्तक, तेनी उपर ( दाट के०) धूल पडो, एटले ए कर्मना माथा उपर धूल पडो जे । ४ावी रीते प्राणीने फुःखी करे ने ॥ यतः ॥ कर्म पखे कलंक्यो चंद, मरण लह्यो जालोडे मुकुंद ॥
कर्मे नावी कुल नवे नंद, नीच वहे राजा हरिचंद ॥१॥ राजा कुलवधुर्विप्रा, नियोगी मंत्रिण-18 स्तथा ॥ स्थानत्रष्टा न शोनंते, दंताः केशा नखा नराः॥२॥ पूगीफलानि पत्राणि, राजहं
गमाः ॥ स्थानव्रष्टास्तु शोनंते, सिंहाः सत्पुरुषा गजाः ॥३॥ २३ ॥ ए रीते रमवमतां थका रात्रि पाव्यतिक्रमी अने प्रनाते शुझ मार्गे चमी, ते वारे बालक नूख्यो थयो, तेणे सुध अने साकर|2|॥३॥
खावा सारु माग्यां ॥ यतः॥ वासुदेवजरा कष्टम् , कष्टं धनविपर्ययः ॥ वैधव्यं च महाकष्टं, कष्टा-18 है कष्टतरी कुधा ॥१॥ इति ॥ १४ ॥ तेने राणी रुदन करती थकी कहेवा लागी के हे वत्स !
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
www.nelibrary.org
Page #69
--------------------------------------------------------------------------
________________
दुध अने साकर तो दूर रह्यां, पण जो हवे आपने कूकशा खावाने मले, तोपण जाणीए जे आपने कूर कपूरनां जोजन मयां ॥ १५ ॥
जातां मार्गे मली रे, एक कुष्टीनी फोज ॥ रोगी मलीया सातसें रे, ढींडे करता मोज || देखो० ॥ १६ ॥ कुष्ठीए पूग्या पवी रे, सयल सुणावी वात ॥ वतुं कुष्ठी इम कदे रे, च्यारति म करो मात ॥ देखो ० ॥ १७ ॥
Jain Educationa International
वम शरणे दवे रे, मन राखो याराम ॥ ए कोइ म जीवतां रे, कोइ न ले तुम नाम || देखो० ॥ १८ ॥ वेसर यापी बेसवा रे, ढांकी सघलुं ग || बालक राखी सोडमां रे, बेठी थइ खडंग ॥ देखो ० ॥ १९ ॥ वे याव्या शोधता रे, वैरीना प्रसवार ॥ कोइ स्त्री दीवी इहां रे, पूरे वारोवार || देखो० ॥ २० ॥
अर्थ- हवेागल मार्गे जतां थका एक कुष्ठी एटले कोढीयानी फोज मली, ते रोगी सर्व सातसें जण एका मल्या, मोज करतां थका (हींडे के० ) फरे वे ॥ १६ ॥ ते कुष्ठीए मुजने पूज्या पटी में पण मारी सर्व वात तेमने संजलावी, ते वारे वलतुं कोढीयाईए एम कयुं के हे माताजी ! | | तमे यारति म करो एटले चिंता न करो ॥ १७ ॥ हवे तमे तमारा मनमां आराम राखीने मारे शरणे आवी रहो. ए श्रमो सर्व जनोमांथी कोइ एक पण जिहांसुधी जीवतो दशे, तिहांसुधी | तमारुं कोइ नाम लेशे नहीं ॥ १० ॥ एम कहीने ते कोढीयाईए तेमने एक ( वेसर के० ) खच्चर वेसवा माटे श्रायुं पढी ते राणी पण पोताना बालकनुं सर्व अंग ढांकी तेने पोतानी सोगमां राखी ( खरंग के० ) खमांग सावधान थइने खच्चर उपर बेठी ॥ १९ ॥ एवा छावसरेज तेमने
For Personal and Private Use Only
Page #70
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥ ३३ ॥
| शोधवाने माटे वैरीना असवार त्यां यावी पहोंच्या. ते कोढीयाउने वारंवार पूढे बे के कोइ स्त्रीने खंग. १ जती थकी तमे इहां दीवी ? ॥ २० ॥
कोइ इहां आव्युं नथी रे, जूट म ऊंखो खाल ॥ वचन न मानो म तणुं रे, नयणे जुड़े नीदाल ॥ देखो० ॥ २१ ॥ जो जोशो तो लागशे रे, अंगे रोग असाध्य ॥ नाठा बीहीता बापडा रे, वलगे रखे विराध ॥ देखो० ॥ २२ ॥ कुष्ठीसंगतथी थयो रे, सुतने नंबर रोग ॥ माडी मन चिंता घणी रे, कठिन करमना जोग || देखो० ॥ २३ ॥
अर्थ-तेने कोढीया कहेवा लाग्या जे इहां तो कोइ पण श्राव्यं नथी. तमे जूनुं घाल ( म ऊंखो के० ) म बोलो, घने जो अमारुं वचन न मानो तो तमे तमारी नजरे नीहालीने जुड़े ॥ २१ ॥ पण एटलुं बे के जो तमे श्रमारा समूहमां श्रावीने जोशो तो तमारा अंगमां पण असाध्य रोग लागी जशे, तेथी तमे पण अमारा जेवा यशो एवं सांजलीने रखेने ए ( विराध के० ) रोगनो व्याधि आपणा अंगे श्रावी वलगे ! एम विचारीने ते वापमा बीता थका तिहांथी नासी गया ॥ २२ ॥ हवे कुष्ठीनी संगति थकी पुत्रने अंगे पण ( उंबर के० ) कोढ रोग थयो. इहां जंबर रोग ते जेम जंबरनुं काम तेमां उंबरा नामे गांठा जेवां फल थाय बे, ते फल जे वारे पाके, ते वारे पोतानी मेले फाटीने तेमांथी परु पाच जेवो रस नीकले बे, ते उंबरानां फलनी परे रोगे करी शरीर फाटेलुं होय तेमांथी परु पाच नीकले तेने उंबर रोग कहीए. ते रोग देखीने माताना मन मांहे वली घणीज चिंता थइ पमी ने विचारखा लागी के मारां कर्मना जोग महा कठिन बे ॥ यतः ॥ चिंतया नश्यते रूपं, चिंतया नश्यते बलं ॥ चिंतया नश्यते ज्ञानं, व्याधिजैवति चिंतया ॥ १ ॥ २३ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
॥ ३३ ॥
Page #71
--------------------------------------------------------------------------
________________
पुत्र नलावी तेहने रे, माता चाली विदेश ॥ वैद्य उसड जोवा नणी रे, सदेती घणा किलेश ॥ देखो० ॥ २४ ॥झानीने वचने करी रे, सयल फली मुज आश॥तेदज ढुं कमलप्रना रे, आ बेठी तुम पास ॥ देखो ॥२५॥रास रुडो श्रीपालनो रे, तेदनी दशमी ढाल ॥ विनय कहे पुण्ये
करी रे, जुःख थाये विसराल ॥ देखो० ॥२६॥ अर्थ-एम विचारी पोतानो पुत्र ते कोढीयाउने ( जलावी के० ) सोंपीने वैद्य, औषध जोवाने अर्थे माता घणा क्लेशने सहन करती ( विदेश के०) परदेशे चाली॥२४॥आगल मार्गे ज्ञानी गुरु मट्या, तेमनां वचने करीने मारी सर्व श्राशा फली. तेज हुँ कमलप्रजा आ तमारी पासे बेठी ९ ॥२५॥ आ उत्तम रुमो श्रीपाल राजानोरास, तेनी ए दशमी ढाल कही. श्रीविनय-18 विजय उपाध्यायजी कहे के पुण्ये करीने सर्व प्रकारनां कुःख विसराल थाय ॥ यतः ॥ अन्नपानं च वस्त्रं च, श्रालयः शयनासनं ॥ शुश्रूषा वंदनं तुष्टिः, पुण्यं नव विधं स्मृतं ॥१॥इति ॥२६॥
॥ दोहा॥ रूपसुदंरी श्रवणे सुणी, विमल जमाश्वंश ॥ दर्षे दियमे गदगदी, इणी परे करे प्रशंस ॥१॥ वखतवंत मयणा समी, नारीन को संसार ॥जिणे
बेहु कुल नइयां, सती शिरोमणि सार ॥२॥ 7 अर्थ-हवे रूपसुंदरी पोताना जमाइनो (विमल के० ) निर्मल पवित्र वंश तेने काने सांजलीने हैमाने विषे हर्षे करी गहगहाट थइ थकी एटले हर्षनो उनरो आव्यो ते वारे इणी परे । एटले आगल कहेशे ते रीते प्रशंसा करती हवी ॥१॥ वखतवंत एटले मोटा वखतवाली लाग्य
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #72
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ३४ ॥
Jain Education
वंत ते यामयणासुंदरी समान बीजी कोइ स्त्री संसारमां नथी, जेणे मावितर तथा श्वशुर मली वेदु कुलनो उद्धार करयो, माटे ए सर्व सती मांहे सारभूत शिरोमणिरूप बे ॥ २ ॥ वर पण पुण्ये पामीयो, नरपति निर्मल वंश ॥ पुत्र सिंहरथ रायनो, क्षत्रियकुलवतंस ॥ ३ ॥ रूपसुंदरी रंगे जइ, वात सुणावी सोय ॥ निज बंधव पुण्यपालने, ते पण हर्षित होय ॥ ४ ॥ चतुरंगी सेना सजी, साथे सबल परिवार ॥ तेजी तुरिय नचावता, प्रवल वेष सवार ॥ ५ ॥ रतनजडित फलके घणां धस्यां सूरियांपान ॥ ढोल नगारां गमगमे, नेजा फुरे निशान ॥ ६ ॥ जाणेजी वर जिहां वसे, तिदां याव्या ततकाल ॥ निज मंदिर पधराववा, पुण्यवंत पुण्यपाल ॥ ७ ॥
अर्थ - एना पुये करीने ( वर के० ) जर्त्तार पण नरपति जे राजाउंनो निर्मल वंश, तेने विषे | ( अवतंस के० ) मुकुट समान एवो प्रगट क्षत्रियकुलनो सिंहरथ नामे राजा तेना पुत्र प्रत्ये पामी, अथवा क्षत्रियकुलने विषे (अवतंस के० ) मुकुट समान एवो सिंहस्थ नामे जे राजा, तेना पुत्र प्रत्ये पामी ॥ ३ ॥ ए प्रमाणे रूपसुंदरी राणीए (रंगे के० ) हर्षे करीने आनंद सहित घेर जर ते वात पोताना नाइ पुण्यपालने संजलावी. ते वारे पण घणोज हर्षवंत थयो ॥ ४ ॥ पठी चार वे अंग जेनां एवी चार प्रकारनी सेना स करी साथे ( सबल के० ) घणो परिवार लइने, तेजवंता एवा ( तुरिय के० ) घोकाउने नचावता एवा अने वल वेषना पहेरनारा एटले घणोज सुंदर बे वेष जेमनो एवा असवारोने साथे तेमीने ॥ ५ ॥ रत्ने जडेल कलकतां एवां घणां ( सूरियांपान के० ) सूर्यमुखां धस्यां वे, तथा ढोल नगारांनो गमगाट थते थके वली जेनां निशानो फरकी रहेलां वे ॥ ६ ॥ एवा आमंवर सहित ज्यां पोतानी जाणेजी ने वली तेनो ( वर के० )
national
For Personal and Private Use Only
खम. १
॥ ३४ ॥
Page #73
--------------------------------------------------------------------------
________________
जरि वसे ने, रहे बे, तिहां तत्काल तेज वखते पोताना मंदिरे तेडी जवाने माटे पुण्यवंत एवोग ४ा पुण्यपाल नामे राजा श्राव्यो॥७॥
॥ढाल अगीयारमी ।। राय कहे राणी प्रते ॥ सुण कामिनी ॥ए देशी॥ आवो जमा प्राहुणा ॥ जयवंता जी॥अम घर करो पवित्र ॥गुणवंता जी ॥ सहुने अचरिज उपजे ॥ जयवंता जी ॥ सुणतां तुम्ह चरित्र । गुणवंता जी ॥१॥ गज बेसारी उत्सवे ॥ जय० ॥ पधराव्या निज गेद ॥ गुण ॥ मानलससरो पूरवे ॥ जय० ॥ नोग नला धरी नेद ॥ गुण ॥३॥श्क दिन बेगं मालीये ॥ जय० ॥ मयणा ने श्रीपाल ॥ गुण ॥ वाजे बंदे नव नवे ॥ जय० ॥ मादल चुंगल ताल ॥ गुण ॥३॥ राय राणी रंगे जुवे ॥ जय० ॥ थे। थेनाचे पात्र ॥ गुण ॥ नरद नेद
नावे जला ॥ जय० ॥ वाले परि परि गात्र ॥ गुण ॥४॥ । अर्थ-श्रने श्रीपालने कहेवा लाग्यो के हे परोणा जमा ! तमे जयवंता हो, माटे आवीने | अमारं घर पवित्र करो. हे गुणवंता जमा! तमा चरित्र सांजलतां थका सर्व लोकने अचरिज | उपजे जे ॥१॥ एम कहीं श्रीपालने हाथी उपर बेसामीने मोटा उत्सवे करी मामा ससराए | पोताने घेर पधराव्या. तिहां स्नेह धरीने (जला के० ) रुडा उत्तम प्रकारना जोग तेने प्रवाह लाग्यो ॥२॥ हवे एक दिवसे मयणासुंदरी अने श्रीपाल कुमर बेहु जण मलीने मालीया है उपर गोखमां बेग, तिहां नव नवा बंदे करी मादल, लुंगल अने ताल वाजे जे ॥३॥ तथा ये थेश्कार करीने नाटकोनां पात्र नाचे , अने ते पात्रो (जरह के० ) समूह एटले नाटकना वत्रीश नेद तेणे करी सहित नला नावे करी नाटक करे , (परि परि के) जूदी जूदी रीते।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #74
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ३५ ॥
Jain Education
पोतानां ( गात्र के० ) शरीरने वाले बे, एवी रीतनुं नाटक थाय ते. ते राजा अने राणी बेहु ज ( रंगे के० ) हर्षे करी जुवे बे ॥ ४ ॥
अवसर रयवाडीथी ॥ जय० ॥ पागे वलीयो राय ॥ गुण० ॥ नृत्य सुणी उनो रह्यो ॥ जय० ॥ प्रजापाल तिए वाय ॥ गुण ० ॥ ५ ॥ सुख जोगवतां स्वर्गनां ॥ जय० ॥ दीगं स्त्री जरतार ॥ गुण० ॥ नयणे लाग्यो निरखवा ॥ जय० ॥ चित्त चमक्यो तिणी वार ॥ गुण० ॥ ६ ॥ ततक्षण मया उलखी ॥ जय० ॥ मन उपन्यो संताप ॥ गुण० ॥ अवर कोइ वर पेखीयो ॥ जय० ॥ दै दै प्रगट्युं पाप ॥ गुण० ॥ ७ ॥ धिकधिक क्रोध तो वशे ॥ जय० ॥ में विचाखुं कीध ॥ गुण० ॥ मया सरखी सुंदरी ॥ जय० ॥ कोढी ने कर दीध ॥ गुण ० ॥ ८ ॥
अर्थ - एवा सरने विषे प्रजापाल राजा रयवाडीथी रमीने पाठो वढ्यो बे, ते पण ते स्थानके (नृत्य के० ) नाटकनो शब्द सांजलीने उजो रह्यो ॥ ५ ॥ तिहां स्वर्गनां सुख जोगवतां थकां स्त्री नर्त्तारने दीगं, तेने राजा पोताने नयणे करी जोवा लाग्यो, ते जोतां वारज पोताना चित्तमां चमकी गयो ॥ ६ ॥ राजाए तेज वखते पोतानी पुत्री जे मयणासुंदरी तेने उलखी, परंतु तेनी पासे पोते परणावेला कोढीया वरने स्थानके बीजो कोइ वर वेठेलो जोयो, ते वारे है है इति खेदे, अरे! या ते शुं पूर्वकृत पाप प्रगट थयुं ? एम तेना मनमां मोटो संताप उपज्यो ॥ ७ ॥ तेथी मनमां चिंतवे वे के धिक्कार बे, धिक्कार के मुजने ! जे में पण क्रोधने वश यइने आ मयणा सरखी सुंदरी ते कोढीयाने हाथे जइ दीधी, ए के अविचायुं काम करयुं ? के जेमांथी या कार्य
For Personal and Private Use Only
खंग. १
॥ ३५ ॥
Page #75
--------------------------------------------------------------------------
________________
थयुं ॥ यतः॥ लवणसमो नदि रसो, विन्नाणसमो बंधवो नजि ॥ धम्मसमो नवनिहि, कोहसमो वयरि नहि ॥१॥ इति ॥ ७॥
ए पण हुश् कुलखंपणी ॥ जय० ॥ मुज कुल नरीयो गर ॥ गुण ॥ परएयो प्रीतम परहरी ॥ जय० ॥ अवर कीयो जरतार ॥ गुण ॥५॥ इणी परे जन्नो उरतो ॥ जय० ॥ जव दीगे ते राय॥गुण ॥ पुण्यपाल अवसर लढ॥ जय०॥ आवी प्रणमे पाय ॥ गुण॥ १० ॥राज पधारो मुज घेर ॥ जय० ॥ जु जमाई रूप ॥ गुण ॥ सिक्ष्चक्रसेवा फली ॥ जय० ॥ते कर्तुं सकल स्वरूप ॥ गुण ॥ ११॥राये आवी उलख्यो ॥ जय० ॥ मुख इंगित आकार ॥ गुण ॥ मन चिंते महिमानिलो ॥ जय० ॥ जैनधर्म जग सार ॥ गुण ॥१२॥ अर्थ-तेम वली ए कुमरी पण मारा कुलमां खंपण एटले कलंक लगामनारी, काली टोली जेवो माघ लगामनारी थर, जेणे मारा कुल माहे (बार के०) राख नरी, एटले मारुं कुल मलिन कलु, कारण के एणे परणेलो जर्रार त्यागीने बीजो जर्तार कस्यो, ए मारा कुलने खोट लगामी ॥ ए ॥ एवी रीते चिंतवतो प्रजापाल राजा तिहां कूरतो थको जनो , तेने जे वारे | पुण्यपाल राजाए दीगे, ते वारे ते अवसर पामीने तेना पगने विषे श्रावी प्रणम्यो एटले नम्यो| ॥ १० ॥ नमीने कद्देवा लाग्यो के हे राजन् ! मारे घेर पधारो, अने श्रापना जमानुं रूप जुर्ज, तथा गुरुवचने सिकंचक थाराध्या, तेनी सेवा फलीभूत थर, ते संबंधी जे कांश ( स्वरूप के०) वृत्तांत हतुं, ते सर्व कही संजलाव्युं ॥११॥ ते वारे राजाए आवीने मुखना (इंगित के०) निशानी
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
wwinjainelibrary.org
Page #76
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राएंधाणीने श्राकारे जोड्ने उलख्यो जे एज मारो जमाइ . एवं जाणीने मनमां चिंतववा लाग्यो खम.?
जे महिमावंत जे श्रीजैनधर्म तेज जगतमा सारजूत डे ॥ १५ ॥ ॥३६॥
मयणा तें साची कही ॥ जय० ॥ सना मांदे सवि वात ॥गुण ॥ में अझानपणे कर्वा ॥ जय० ॥ ते सघर्बु मिथ्यात॥ गुण ॥१३॥ में तुज उख देवा नणी ॥ जय० ॥ कीधो एद जपाय ॥ गुण ॥ ॐःख टलीने सुख थयुं॥ जय० ॥ ते तुज पुण्यपसाय ॥गुण ॥१४॥ मयणा कहे सुणो तातजी॥ जय० ॥ इहां नहीं तुम वांक ॥गुण ॥जीव सयल वश कर्मने ॥ जय० ॥ कुण राजा कुण रांक ॥गुण ॥ १५॥ मान तजी मयणा तणी ॥ जय० ॥राये मनावी माय ॥ गुण ॥ सजन थयां सवि
इकमनां ॥ जय० ॥ उलट अंग न माय ॥ गुण ॥१६॥ अर्थ-एम विचारी राजा मयणाने कहेवा लाग्यो के तें जे कांई सना मांहे वात करी ते सर्वसाची थ, श्रने में अज्ञानपणे जे तुजने कह्यं ते सर्व ( मिथ्यात के०) जू हतुं ॥ १३ ॥ जे माटे में || तो तुजने दुःख देवा सारु ए उपाय कस्यो हतो, परंतु ते छःख टलीने जे सुख थयुं ते सर्व तारा पुण्यना पसायथी जाणवू ॥ १४ ॥ ते सांजली मयणासुंदरी विनय सहित कहेवा लागी के KI हे पिताजी ! तमे सांजलो. इहां तमारो वांक कांश पण नथी. कोण राजा अने कोण रांक ? एटले राजा हो अथवा रांक हो, गमे ते हो, पण आ संसारमा सर्व जीव कर्मने वश , सहु को
पोतपोतानां करेलां कर्मोने नोगवे वे ॥ १५ ॥ एवां मयणानां वचन सांजलीने राजाने जे प्रथम ॥३६ ॥ लखकर्त्तापणानो अहंकार हतो तेने त्यागी श्रीजिनेश्वरनो धर्म अंगीकार करीने तेणे मयणासुंदरी-18
नी माताने मनावी. ते वखत सजान ते सगां संबंधीनां मन जे जूदां पमी गयां हतां, ते सर्व
For Personal and Private Use Only
www.sainelibrary.org
Page #77
--------------------------------------------------------------------------
________________
एकमनां थयां, तेथी तेमनां मनमां एटलो तो उलट एटले हर्ष उपन्यो के ते तेमनां अंगमां | समाइ शकतो नथी ॥ १६ ॥
नयर सयल शणगारीयुं ॥ जय० ॥ चहुटां चोक विशाल ॥ गुण ० ॥ घर घर गूडी चले ॥ जय० ॥ तोरण काकऊमाल ॥ गुण० ॥ १७ ॥ घरे जमा महोत्सवे ॥ जय० ॥ तेडी आव्या राय ॥ गुण ॥ संपूरण सुख जोगवे ॥ जय० ॥ सिधचक्र सुपसाय ॥ गुण ॥ १८ ॥ नयर मांदे प्रगट थइ ॥ जय० ॥ सुख मुख एदीज वात ॥ गुण० ॥ जिनशासन उन्नति यइ ॥ जय० ॥ मयणाए राखी ख्यात ॥ गुण० ॥ १० ॥ रास रुडो श्रीपालनो ॥ जय० ॥ तेहनी अग्यारमी ढाल ॥ गुण ० ॥ विनय केद सिsचकनी ॥ जय० ॥ सेवा फले ततकाल ॥ गुण० ॥ २० ॥
अर्थ-पढी राजाए समस्त नगरने शणगाखुं, तेमां मोटां चौटां अने चोकने विशालपणे शतगारयां. घर घरने विषे गुमीन उठली रही वे, तोरण काककमाल बांध्यां बे ॥ १७ ॥ एम मोटे उत्सवे करी राजा पोताने घेर जमाइने तेमी आव्यो. तिहां श्रीपाल कुमर सिद्धचकना सुपसाय थकी संपूर्ण सुख जोगवे बे ॥ १७ ॥ पढी उजवणी नगरीमा रहेनारां लोकोनां मुख मुखने विषे एहीज वात प्रगट घर, एटले विस्तार पामी, जे श्री जैनधर्मज जगतमां श्रेयस्कर बे. एवी श्री. जिनशासननी उन्नति थइ. एम मयलाए पोताना मुखमांश्री जे वात काढी हती के जीव जे सुख दुःख पामे वे ते सह पोतानां कर्मानुसारे पामे वे, तेज वातनी ख्याति राखी एटले प्रख्याति करी ॥ १५ ॥ ( रुडो के० ) रमणीय मनोहर एवो श्रीपाल राजानो रास तेनी अगीयारमी ढाल पूर्ण 5. श्री विनय विजय उपाध्यायजी कहे बे के श्री सिद्धचकनी सेवा तत्काल फली जूत थाय बे ॥ २० ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #78
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ३७ ॥
॥ चोपाइ ॥
खंड खंड मीठो जिम खंग, श्री श्रीपाल चरित्र खंड ॥
(श्री) कीर्त्तिविजय वाचकथी लह्यो, प्रथम खंग इम विनये कह्यो ॥ १ ॥
अर्थ-जेम ( खंग के० ) खांगना ( खंम के० ) कटका मांहे मीठाश घणी होय, तेम या रासना खंगमां पण मीठाश घणी के अने या श्रीपाल राजानुं चरित्र तो अखंग एटले संपूर्ण बे, तेमां ए पहेलो खंम श्रीकीर्त्तिविजय नामा ( वाचक के० ) उपाध्याय तेमना मुखश्री जे प्रमाणे ( लह्यो के० ) पाम्यो- सांजल्यो, ( इम के० ) ए प्रमाणेज श्री विनय विजयजी उपाध्याये कह्यो ॥ १ ॥
Jain Educationa International
॥ इति श्रीमन्महोपाध्यायश्री की र्त्ति विजयगणि शिष्योपाध्यायश्री विनय विजयगणिविरचिते श्री श्री पालचरित्रे प्राकृतप्रबंधे श्री सिद्धचक्रमहिमाधिकारे श्रीपाल कुमरमयणासुंदरीपाणिग्रहणे श्री सिद्धचक्राराधनात् नीरोगत्वप्राप्तिश्री कमल प्रजा मिलनखव्यतिकरकथनेत्यादिवर्णनो नाम प्रथमः खंमः समाप्तः ॥ १ ॥ २८२ ॥ इति श्रीश्री पालचरित्रे बालावबोधे प्रथमः खंगः समाप्तः ॥ १ ॥
For Personal and Private Use Only
खंग. १
॥ ३७ ॥
Page #79
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ श्रीसद्गुरुन्यो नमः॥ ॥अथ द्वितीयः खंडः प्रारभ्यते ॥
॥दोहा॥ सिचक्र आराधतां, पूगे वांबित कोड ॥ सि-चक्र मुज मन वस्यु, विनय कदे कर जोड ॥२॥ शारद सार दया करी, दीजे वचन विलास ॥ उत्तर कथा श्रीपालनी, कदेवा मन उल्लास ॥२॥ एक दिन रमवा नीकट्यो, चहुटे कुंवर श्रीपाल ॥ सबल सैन्यशुं परवस्यो, यौवन रूप रसाल ॥३॥ मुख सोदे पूरण शशी, अर्ध चं सम नाल ॥ लोचन
अमिय कचोलडां, अधर अरुण परवाल ॥४॥ अर्थ-श्रीसिद्धचक्रनु थाराधन क
मादे श्रीविनयविजयजी बे हाथ जोमीने कहे जे के तेज सिझचक मारा मनमां वस्या॥१॥ हवे श्रीपाल राजानी ( उत्तर के) आगल कथा कहेवाने मारं मन उल्लसित थयुं , माटे हे ( शारद के० ) शारदा माता ! तमे मारी उपर (सार के० ) प्रधान श्रेयस्कारी दया करीने वचनरचनानुं विलासपणुं 81 आपो ॥२॥ एक दिवसे ( सबल के ) मोटा सैन्ये करी परवस्यो थको, यौवन अवस्थावंत तथा रसाल रूप ने जेनुं एवो श्रीपाल कुमर रमवाने माटे चौटामांथी (नीकट्यो के )जाय डे ॥३॥ संपूर्ण पूर्णिमाना चंडमा सरखं तो जेनुं मुख शोने ने अने अष्टमीना अर्ड चंडमा समान जेनुं (जाल के० ) कपाल शोने , वली लोचन जे नेत्र ते अमृतनां कचोलां सरखां शोने ३ तथा । अधर जे होठ ते परवाला सरखा ( अरुण के०) लाल वर्णे करी सहित थका शोने दे ॥४॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #80
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥ ३८ ॥
दंत जिया दामि कली, कंठ मनोहर कंबु ॥ पुरकपाट परि हृदयतट, ज जोगल जिम लंबु ॥ ५ ॥ केड लंक केदरि समो, सोवन वन्न शरीर ॥ फूल खरे मुख बोलतां ध्वनि जलधर गंजीर ॥ ६ ॥ चोक चोक चहुटे मियां, रूपे मोह्यां लोक ॥ मदेल गोंख मेमी चडे, नर नारीनां थोक ॥ ७ ॥ मुग्धा पूढे मायने, मा एकुण अभिराम ॥ इंद चंद के चक्कवी, श्याम राम के काम ॥ ८ ॥ माय कहे मदोटे स्वरे, च्यवर म ऊंखे च्यान ॥ जाय जमाई रायनो, रमवा कुंवर श्रीपाल ॥ ए ॥
अर्थ तथा जेवी दामिनी कली शोजे ते सरखा दांत शोने बे, कंब तो मनोहर ( कंबु के० ) शंखना जेवो शोने बे, ( पुरकपाट के० ) नगरना दरवाजाना कमामनी पेरे जेनुं हृदयतट शोने वे तथा जोगल सरखी लांबी एवी वे लुजार्ज शोने वे ॥ ५ ॥ केमनो लंक ते केसरी सिंह सरखा शोने बे, शरीरनो वान सोना सरखो शोने बे, मुखे बोलतां जाणीए फूल खरी नीचे पकतां होय नहीं ? तेवां वचन मुखमांथी नीकलतां शोने बे. वली ( जलधर के० ) मेघ तेना सरखो गंजीर बे ( ध्वनि के० ) खर जेनो एवो श्रीपाल कुमर चौटामांयी चाल्यो जाय बे ॥ ६ ॥ ते श्रीपा लना रूप उपरे मोह पाम्यां थकां तेने जोवा माटे चोक चोकने विषे चौटा मांहे घणां लोक एकां मध्यां वे. वली कोई एक महेल उपर, कोइ एक गोंख उपर, कोइ मेडी उपर चमीने, एम श्रीपालने जोवा माटे मनुष्य तथा स्त्रीजनां थोके थोक तिहां एकठां थयां बे ॥ ७ ॥ ते समये कोइक ( मुग्धा के० ) बालिका श्रीपालने जोइने पोतानी माताने पूढे ठे के हे माताजी ! या ( ( अनिराम के० ) मनोहर रूपवंत पुरुष ते कोण बे ? इंद्र बे ? के चंद्र बे ? के चक्रवर्ती बे ? के ( श्याम के० ) श्रीकृष्ण के ? के रामचंद्रजी बे ? के कामदेव बे ? ॥ ८ ॥ एवी पोतानी पुत्रीनी वाणी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only)
खन. २
11 3011
Page #81
--------------------------------------------------------------------------
________________
सांजलीने तेनी माता मोटे खरे करी कहेवा लागी के हे वत्स! तुं (अवर के०) बीजांबालपंपाल है| (म ऊंखे के० ) म बोल, ए तो आपणा राजानो जमाश् श्रीपाल कुमर वे ते रमवाने जाय ॥५॥
वचन सुणी श्रीपालने, चित्तमा लागी चोंक ॥ धिक सुसरा नामे करी, मुज उलखावे लोक ॥१०॥ उत्तम आप गुणे सुण्या, मधिम बाप
गुणेण ॥ अधम सुण्या मानल गुणे, अधमाधम ससुरेण ॥ ११॥ | अर्थ-तेनां वचन सांजलीने श्रीपालने पोताना चित्तमां (चोंक के०) चोक लागी, चमक लागी एटले वाण लाग्यानी पेरे विलखो थर गयो, अने विचारवा लाग्यो जे धिक्कार के मने के 8 जे ससराना नामे करीने मुजने जगतमां लोक जेलखावे ॥ उक्तं च ॥ श्वशुरगृह निवासः स्वर्ग-1 तुझ्यो नराणां, यदि वसति विवेकी वासराणि त्रिपंच ॥ दधिमधुघृतलोना,-न्मासयुग्मं वसेच्चे,-1 स नवति खरतुल्यो मानवो मानहीनः ॥ १॥ इति ॥ १०॥ नीतिशास्त्रमा तो जे पोताने गुणे लखाय ते उत्तम कह्या जे; अने जे बापने गुणे करीलखाय ते मध्यम कह्या बे; तथा जे (मा
उल के० ) मामाने गुणे करी उलखाय ते अधम जातिना सांजल्या जे; वली जे श्वशुरने गुणे कालखाय ते पुरुष अधममां अधम जाणवा ॥ ११ ॥
॥ ढाल पहेली ॥ राग जेतश्री ॥ चतुर सनेही मोहना ॥ ए देशी ॥ क्रीमा करी घर आवीयो, चपलचित्त श्रीपालो रे ॥
उच्चक मन देखी करी, बोलावे पुण्यपालो रे॥कीमा ॥१॥ अर्थ-एम चपलचित्त थको श्रीपाल कुंवर क्रीमा करीने पोताने घेर श्राव्यो, तेनुं ( उच्चक के०) उदास मन देखी करीने पुण्यपाल नामे मामो ससरो बोलावे ॥१॥
E
asonal
For Personal and Private Use Only
Page #82
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग.२
E
श्री राम
राज कोणे आज रीसव्या, कोणे लोपी तुम आण रे ॥दीसो गे कांश
दुमणा, तुम चरणे अम प्राण रे॥क्रीडा० ॥२॥ चित्त चाहो तो ॥३ ॥
आपणु, लीजे चंपाराज रे॥ मे प्रयाणे चालीए, सबल सैन्य लइ साज रे ॥ क्रीमा० ॥ ३॥ कुंवर कहे सुसरा तणे, बले न खीजे राज रे॥ आप पराक्रम जिहां नहीं, ते आवे कुण काज रे ॥कीमा० ॥ ४॥ तेह नणी अमे चालशं, जोशुं देश विदेश रे ॥जुजाबले लखमी लही, करशुं सकल विशेष रे ॥क्रीडा० ॥५॥ माय सुणी आवी कहे, हूं आवीश तुज
साथ रे॥ घडीय न धीरु एकलो, तुंहीज एक मुज आथ रे॥क्रीडा॥६॥ 2 अर्थ-के हे राजन् ! आज तमने कोइए रीसव्या ने ? अथवा कोइए तमारी श्राज्ञा लोपी ने
के जे थकी तमे कांश्क झूमणा देखाउँ बगे ? पण तमारे चरणे श्रमारा प्राण ने, माटे जे होय ते खरेखलं अमोने कहो ॥२॥ जो तमारा चित्तमां चाहना होय तो श्हांथी सबल एटले मोटा सैन्यनो साज लश्ने चढे प्रयाणे चालीए, अने श्रापणुं चंपानगरीनुं राज्य लइ लाए ॥३॥ ते सांजली कुंवर बोल्यो के ससराने बले राज्य लश्ए नहीं, कारण के जिहां पोतामां पराक्रम न होय तिहां पारकुं पराक्रम ते शा काममां श्रावे ? ॥ दोहा ॥ जा नरमें पराक्रम नहीं, ता नर
पशु समान ॥ बाल खेलावे ताहकुं, जैसे लिखित चित्राम ॥ १॥ खेती पांती विनति, वांसा केरी लाखऊ ॥ हाथे तुरि न पलाणिया, ए पांचे नावे कऊ ॥॥४॥ ते जणी अमे यहांथी चाल
ते देश विदेश जोशु, अने तिहां पोतानी जुजाना बलथी लक्ष्मी पेदा करीने पठी चित्त मांहे जे धास्युं बे ते सर्व कार्य विशेष करशुं ॥ ५॥ ते वात श्रीपालनी माताए सांजली, ते वारे श्रावीने
॥३
॥
Educabana nesanal
For Personal and Private Use Only
Page #83
--------------------------------------------------------------------------
________________
कहेवा लागी के हे पुत्र ! हुं पण तारी साथे श्रावीश. हवे तो एक घमीमात्र पण तुजने एकलो बूटो मूकुं नहीं, केमके मारे तो ( ाथ के० ) पुंजीमां एक तुंज बो॥६॥ .
कुंअर कहे परदेशमां, पगबंधन न खटाय रे ॥ तिणे कारण तुमे यहां रहो, द्यो अाशिष पसाय रे ॥क्रीमा० ॥ ॥ माय कहे कुशला रहो, उत्तम काम करेजो रे॥जुजबले वैरी वश करी, दरिसण वदेढुं देजो रे ॥ क्रीडा० ॥ ७॥ संकट कष्ट भावी पड़े, करजो नव पद ध्यान रे ॥रयणी रदेजो जागता, सर्व समय सावधान रे ॥ क्रीमा० ॥ए॥ अधिष्ठायक सिचक्रनां, जेद कह्यां ग्रंथे रे॥ते सवि देवी देवता, जतन करो तुम पंथे रे ॥ क्रीमा ॥१०॥एम शिखामण देश घणी, माता तिलक वधावे
रे॥ शब्द शकुन दोये नलां, विजय मुदरत पण आवे रे॥क्रीडा॥११॥ अर्थ-ते सांजली कुमर कहेवा लाग्यो के हे माताजी ! परदेशमां जो पगबंधन होय तो खटाय नहीं, एटले कांश कमाइ शकाय नहीं, ते कारणे तमे श्हांज रहो, अने मारा उपर पसाय करीने | आशिष आपो ॥ ७॥ ते वारे माताजी कहेवा लाग्या के हे पुत्र ! तमे परदेशमा कुशले रहो हूँ अने उत्तम काम करजो तथा पोतानाजुजबले शत्रुने वश करी फरी वहेला श्रावी अमने दर्शन देजो । ॥ ७ ॥ परदेशमां संकट कष्ट आवी पडे तो नव पदनुं ध्यान धरजो, रात्रिए जागता रहेजो अनेर सर्व समये सावधान रहेजो ॥ ए ॥ वली जे श्रीसिद्धचक्रनां अधिष्ठायक ग्रंथो मांहे कहेलां | ते सर्व देवी, देवता प्रमुख पंथने विषे तमारं जतन करो॥१०॥ए रीते माता घणी शिखामण श्रा-14 पीने कुमरने मांगलिकने अर्थे तिलक करीने वधावती हवी. ते वखते प्रयाणने अर्थे शब्द अने शकुन पण सर्व रुमां थयां अने मुहूर्त पण विजय एटले रुडं जयतुं श्राव्युं ॥ ११ ॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #84
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
४
॥
रास रच्यो श्रीपालनो, तेदने बीजे खंभे रे॥
प्रथम ढाल विनये कदी, धर्म उदय थिति ममे रे ॥ क्रीडा० ॥१२॥ अर्थ-ए श्रीपालना रासनी रचना करी, तेनी वीजा खंडने विषे पहेली ढाल श्रीविनय विजय | उपाध्यायजीए कही. कवीश्वर कहे के के हे नव्यजीवो! जे वारे स्थितिनो परिपाक थाय, ते वारे | ते स्थितिपरिपाकना उदयथी जीव धर्ममां मंडे एटले जोडाय, धर्ममा प्रवर्ते ॥ १२॥
॥दोहा ॥ हवे मयणा इम विनवे, तुमशुं अविदड नेद ॥ अलगी दाण एक नवि रहूं, जिहां गया तिहां देह ॥१॥ अग्नि सदेतां सोदिलो, विरद दोदिलो
होय ॥ कंत विगेही कामिनी, जलण जलंती जोय ॥२॥ अर्थ-हवे मयणासुंदरी श्रावीने आवी रीते विनंति करे ने जे हे स्वामिन् ! तमारी साथे मारे अविचल स्नेह , माटे एक दणमात्र पण हुँ तमाराथी अलगी रहुं नहीं. जेम जे स्थानके बाया| होय ते स्थानके शरीर पण होय. ए दृष्टांते जिहां तमारो देह हशे, तिहांज तमारा देहनी बायारूप ढुं रहीश ॥यतः॥ यत्र त्वं तत्र मे प्राणाः, शरीरं मम केवलं ॥धारितं प्रेमयोगेन, वारिणा : कमलं यथा ॥१॥१॥ हे खामिन् ! स्त्रीने अग्नि सहन करवो पडे ते सुलन बे, परंतु खामीनो | विरह खमवो पडे ते महा दोहिलो होय . कंत जे जरि तेथी विडोह पामेली एवी जे ( कामिनी के०) स्त्री ते ( जलण जलंती के०) वलता अग्नि सरखी (जोय के०) जोवी, एटले अग्निनी परे बलती। होय एवी जाणवी ॥ यतः॥ गिरिको गिरनो विषय मरनो, वरनो सखि पावकको जरनो॥दरिया परनो हरिसे लरनो, श्रसिधार नलो जियको हरनो॥ करीशु अरनो धरनी गिरनो, हरसें करनो रनमें जरनो॥ कवि मान कहे सवही सुनलो, पण एक बुरो पियु बीबरनो ॥१॥ इति ॥२॥
॥४०॥
-
-
Sain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
wwwinelibrary.org
Page #85
--------------------------------------------------------------------------
________________
कहे कुंअर सुंदरि सुणो, तुं सासु पय सेव ॥ काज करी उतावद्यु, ढुं आबुं बुं देव ॥ ३ ॥ मन पाखे मयणा कहे, पियु तुम वचन प्रमाण ॥
ने पंजर शूनुं पड्यु, तुम साथे मुज प्राण ॥४॥ अर्थ-एवं सांजली कुमर कहेवा लाग्यो के हे सुंदरि! टुं कहुं हुं ते तुं सांजल. हाल तुं तारी18 सासुना चरणनी सेवा कर, अने हुँ उतावलथी मारुं चिंतवेवू कार्य करीने (हेव के० ) तुरत है पाठो आबु बुं ॥३॥ एवं पतिनुं वचन सांजलीने यद्यपि एकला रहेवानुं मन नथी, तथापि स्वामीनुं वचन उलंघन न थाय माटे मन विना मयणासुंदरी कहेवा लागी के हे स्वामिन् ! तमारं वचन मारे प्रमाण ने, पण आ मारुं शरीररूप पांजरं ते शून्य पड्यंबे, अने मारा प्राण तो तमारी साथेज बे, एम निश्चयथी जाणजो ॥ यतः॥ अस्मिन् प्रयाणसमये कुरु मंगलानि, किं रोदिषि प्रियसखे ! वद कारणं मे ॥ हा प्राणनाथ ! विरहानलसंगमेन, धूमेन वारि गलितं मम लोचनाच्यां ॥१॥इति ॥४॥
॥ ढाल बीजी ॥ राग महार ॥ कोश्या उनी आंगणे ॥ ए देशी ॥ वालम वहेला रे आवजो, करजो मादरी सार रे॥रखे रे विसारी मूकता, वही नवनवी नार रे ॥ वा ॥१॥ आजथी करीश एकासj, कस्यो
सचित्त परिदार रे ॥ केवल नूमि संथारशें, तज्यां स्नान शणगार . रे॥ वा ॥२॥ अर्थ-हे वालम ! परदेशे जाव बो, परंतु मारी सारसंजाल करवा माटे तिहांथी वहेला आवजो, केमके तमे जाग्यवंत पुरुष बो, तेथी देश देशने विष नवनवी स्त्री पामीने रखेने मने विसारी मूकता ॥१॥ हे स्वामिन् ! श्राजथी मामीने हुँ दिन प्रत्ये एकासणुं करीश, वली
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #86
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रानमें सचित्त वस्तु खावानो परिहार कस्यो, तथा सुवाने माटे संथारो पण निःकेवल एक पृथ्वी उपरजह
करीश, परंतु गोदडा श्रादिक विगना उपर नहीं सुनं. वली स्नान करवु तथा शणगार सजवो, ते ॥४१॥
पण में श्राजथी तज्यां एटले तेनो हुँ श्राजथी त्याग करुं हुं ॥ यतः ॥ कुंकुमं कळलं कामः, कुसुमं कंकणं तथा ॥ गते नर्तरि नारीणां, ककाराः पंच उर्लनाः ॥ १॥ इति ॥२॥
ते दिन वली कदी आवशे, जिहां देखीश पियु पाय रे॥ विरदनी वेदना वारशू, सिक्ष्चक्र सुपसाय रे ॥ वा० ॥ ३॥ सजान वोलावी इणी परे, ले ढाल कृपाण रे ॥ चं नाडी स्वर पेसते, कुंवरे कीध प्रयाण रे ॥ वा० ॥ ४॥ देश पुर नगरनां नवनवां, जोतो कौतुक रंग रे ॥ एकलो सिंह परे म्दालतो, चढ्यो एक गिरिशंग रे॥वा ॥५॥ अर्थ-हे प्रजु ! ते दिवस वली क्यारे श्रावशे ? के जे दिवसे हुँ मारा स्वामीनां चरणकमल देखीश ! पण ए सर्व मारी विरहरूप वेदनाने श्री सिद्धचक्रना सुपसाय थकी (वारशुं के०) निवारण करशुं ॥३॥ एवी रीते सजानने वोलावी एटले तेमनी पासेथी रजा लश् पाबां वालीने हाथमां ढाल तथा कृपाण एटले तरवार लश्ने चंड नामीनो स्वर पाबो पेसते एटले सूर्य नामी वहेते थके श्रीपाल कुमरे परदेशे प्रयाण कीg॥ उक्तं च ॥पूजाव्यानोहाहे, उर्गादिसरिदाक्रमे॥3 गमागमे जीविते च, गृहे क्षेत्रादिसंग्रहे ॥१॥ क्रय विक्रयणे वृष्टौ, सेवाकृषिविशेषयोः ॥ विद्यापट्टानिषेकादौ, शुजार्थे च शुजः शशी ॥२॥प्रश्ने प्रारंजणे वापि, कार्याणां वामनासिका ॥ पूर्णवायोः प्रवेशश्चे.-त्तदा सिकिरसंशयम् ॥३॥ तकं तैलं गुम दारं, कुएं मुग्धस्य नोजनं ॥1 मुंगनं मैथुनं मद्यं, वर्जयेत् गमनेऽहनि ॥४॥ इति ॥ ४॥ हवे बागल चालतां मार्गमा जे जे देश, पुर, नगर आवे ने तेना नवनवा (रंग के ) प्रकारनां कौतुक जोतो थको अथवा नव-18
॥४१॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #87
--------------------------------------------------------------------------
________________
नवां कौतुक अने नवनवा रंग जोतो थको एकलोज निर्जयपणे सिंहनी पेरे म्हालतो थको एक (गिरि के० ) पर्वतना (शृंग के० ) टुंकनी उपर चढ्यो ॥५॥
सरस शीतल वन गहनमां, जिहां चंपक तरु गंद रे॥ जाप जपतो नर पेखीयो, करी करध बांद रे॥वा० ॥६॥ जाप पूरो करी पुरुष ते, बोल्यो करीय प्रणाम रे॥ सुपुरुष तुं नले भावीयो, सयुं माहरूं काम रे॥ वा० ॥ ॥ कुंवर कदे मुज सारिखं, कदो जे तुम्ह काज रे॥ घणे आगे उपगारने, दीधां देह धन राज रे॥वा ॥७॥ते कदे गुरु कृपा करी घणी, विद्या एक मुज दीध रे ॥ घणो उद्यम कस्खो साधवा, पण
काज न सिह रे॥वा॥ए॥ अर्थ-तिहां एक नंदनवन जेवा वनने विषे घणां वृदोना गहनमां रसे करी सहित ने फल फूल जेनां तथा जेनी उपर कोयल प्रमुख पदी क्रीमा करी रह्यां ने एq एक चंपार्नु वृक्ष दी, तिहां आवी उनो रह्यो. तेवामां ते वृदनी नीचे गया माहे जुजाउने ऊंची करेली एवी संझाए । बेलो जाप जपतो एवो एक सुंदर पुरुष श्रीपाल कुमरे (पेखीयो के०) दीगे ॥ यतः ॥ अगरुत-15 गरनिंवा आम्रजंबूकदंबा, वटकुटजकरीराः शाल्मलीसालमालाः ॥ सरलतरलशाली केतकीनालि-13 केरा, धवखदिरपलाशाः कानने यत्र संति ॥१॥ इति ॥६॥ ते पुरुष पण जाप पूर्ण करी श्रीपाल कुमरने प्रणाम करी बोल्यो के हे सुपुरुष ! तुं हां नले श्राव्यो, हवे मारूं काम सह्यु, एम हुँ। जाणुं ॥७॥ ते वारे कुमरे कडं के मारा सर जे तमारं कांश काम होय ते मने कहो. शामाटे जे आगल घणा रुमा पुरुषोए परोपकारने माटे पोतानां (देह के०) शरीर, धन अने 8 राज्य पण दीधां ॥ ७॥ ते सांजली साधक पुरुष कहे जे के मारा उपर गुरुए मोटी कृपा
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #88
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम
श्रीराम करीने मने एक विद्या श्रापी ने तेने साधवानो में घणोए उद्यम कस्यो, पण कार्य सिझन थयुं ॥॥
उत्तरसाधक नर विना, मन रदे नहीं गम रे॥ तिणे तुम ए करुं विनति, ॥४२॥
अवधारीए स्वाम रे॥ वा ॥ १०॥ कुंवर कहे साध विद्या सुखे, मन करी थिर थोन रे॥ उत्तरसाधक मुज थका, करे कोण तुज खोन रे॥वा०॥ ११॥ कुंवरना सहायथी ततखिणे, विद्या थइ तस सिझरे ॥ उत्तम पुरुष जे आदरे, तिहां होये नव नि रे॥ वा० ॥ १२॥ कुंवरने तेणे विद्याधरे, दीधी औषधि दोय रे॥ एक जलतरणी अवरथी, लागे शस्त्र
नहीं कोय रे॥वा० ॥१३॥ अर्थ-कारण के उत्तरसाधक मनुष्य को मारी पासे न होवाश्री मारुं मन स्थिर रहेतुं नथी, माटे तमने एक विनंति करुं हुं ते हे स्वामिन् ! तमे अवधारो ॥ यतः ॥ यंत्रमेको योम॑त्रं, त्रिनिर्गीतं चतुःपथं ॥ कृषि च पंचनिः कुर्या,-त्संग्रामो बहुनिर्जनैः ॥ १॥ इति ॥ १० ॥ कुमर कहेवा लाग्यो के तारं मन स्थिर थोज करीने सुखे विद्या साधन कर. हुं उत्तरसाधक थका कोण तुजने है दोज करनार बे ? ॥ यतः ॥ यत्साही सदा मर्त्यः, परावति यजनान् ॥ यमुखतं वदेछाक्यं,81 तत्सर्वे वित्तजं बलं ॥१॥ विजेतव्या वंका चरणतरणीयो जलनिधिः, विपत्तः पौलस्त्यो र सहायाश्च कपयः ॥ तथाप्याजौ रामः सकलमवधीसादसकुलं, क्रियासिद्धिः सत्त्वे वसति महतां । नोपकरणे ॥ २॥ इति ॥ ११॥ हवे कुमरनी सहाय थकी तत्क्षण एटले तेज क्षणमां ते विद्या
॥४॥ तेने सिक थक्ष. जे माटे उत्तम पुरुष जे कार्य श्रादरे, तिहां नवे निधि प्रगट थाय ॥१२॥पली
ते विद्याधरे प्रसन्न थश्ने कुमरने बे औषधि श्रापी. तेमां एक जलतरण। एटले अगाध पाणीमाती कपडे तोपण बूडे नहीं, अने बीजी (अवर के०) बीजा पुरुषधी को शस्त्र लागे नहीं ॥ १३ ॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #89
--------------------------------------------------------------------------
________________
कुंवर विद्याधर दोय जणा, चाल्या परवत मांदि रे॥ धातुरवादी रस साधता, दीग तिहां तरुगंहि रे ॥ वा०॥ १४ ॥ तेद विद्याधरने कदे, तुमे विधि कह्यो जेद रे ॥ तिणे विधे खप अमे बहु कयो, न पामे सिहि एद रे ॥ वा० ॥१५॥ कुंवर कदे मुज देखतां, वली एद करो विधि रे॥ कुंवरनी नजर मदिमा थकी, थइ ततदण सिदिरे ॥ वा० ॥ २६॥ धातुरवादी कदे नीपर्नु, कनक तुम अनुनाव रे॥ एदमांची प्रनु लीजीए, तुम तणो जे मन नाव रे॥वा ॥ १७॥ कुंअर कदे मुज खप नहीं, कुण उचले भार रे ॥ अल्प तिणे अंचले बांधीयुं, करी घणी
मनोदार रे ॥ वा ॥ १७ ॥ अर्थ-हवे कुंवर अने विद्याधर ए बेहु जण श्रागल पर्वत मांहे चाल्या. जतां जतां तिहां एक वृदनी बायामां धातुर्वादी पुरुषो सुवर्ण रसने साधता थका दीठा ॥ यतः॥ अतिविशालाः| सरसाः सरस्यः, पदे पदे आम्रवनं मनोहरं ॥ पदे पदे कंदफलं च गोरसं, पदे पदे निरवारिपानं ॥ १॥ इति ॥ १४ ॥ ते धातुर्वादी विद्याधरने कदवा लाग्या के हे स्वामिन् ! तमे जे , विधि कह्यो हतो ते विधिए अमे घणो (खप के०) उद्यम कस्यो, परंतु ए काम सिद्धि पाम्यु
नहीं ॥ १५ ॥ कुंवर कहेवा लाग्यो के वली एकवार मारी नजरे देखतां फरी तमे ए विधि 8 है करो, ते वारे कुंवरे नव पदनुं ध्यान कस्खु, तेथी कुंवरनी नजरना माहात्म्य थकी ते सुवर्ण तत्काल तिहां सिझ थयुं ॥१६॥ते देखी धातुर्वादी कहेवा लाग्या के तमारा अनुनाव एटले प्रजाव थकी था कनक नीपन्युं , माटे हे प्रनु ! जेटबुं तमारा मनमां जावे तेटवू कनक एमांथी तमे व्यो॥ यतः॥ गुणदोषसमाहारे, गुणान् गृहंति साधवः॥ दीरनीरसमाहारे, हंसाः दीरमिवांजसः॥१॥इति ॥१७॥
CAMCHARRCRACRACANCIE
NCARNAGARAMECHANICS
in Educ
a
tional
For Personal and Private Use Only
Page #90
--------------------------------------------------------------------------
________________
%
%**
श्री राकुंवर कहे जे के मारे तो एनो खप नथी, फोकट जार कोण उपाडे ? तोपण तेणे घणी ( मनो- खक. १
शहार के०) आजीजी करीने अल्पमात्र थोडंक कुंवरना (अंचल के० ) बेमामां बांध्यु ॥ १७॥ ॥४३॥
अनुक्रमे कुंअर आवीयो, नरुअच नयर मकार रे ॥ देम खरची सजाइ करी, जलां वस्त्र हथियार रे॥वा ॥१॥सोवने मढीयते औषधि, बांधी दोय निज बांदि रे ॥ बहुविध कौतुक देखतो, फरे नरुअच मांदि रे ॥ वा ॥२०॥ खंड बीजो एह रासनो, बीजी ए तस ढाल रे॥ विनय कहे धर्मथी सुख हुए, जेम राय श्रीपाल रे॥ वा० ॥२१॥ अर्थ-हवे कुंवर तिहाथी पागल चाल्यो. ते अनुक्रमे जरुश्रच नगरने विषे श्राव्यो. तिहां (हेम के० ) सुवर्ण वेच्युं, तेमांथी पोतानी खरचीनी सजा सर्व करी सुंदर वस्त्र तथा हथियारो & वेचातां लीधां ॥ १७ ॥ तथा सोनानुं तावित करावी तेमां ते बन्ने औषधि मढीने पोतानी (बांहि |
के) जुजाए बांधीने देवकुमरनी परे खेछाए घणा प्रकारनां कौतुक देखतो थको जरुअच नगरमा फरे ॥२०॥ ए श्रीपालना रासनो बीजो खंग तेनी ए वीजी ढाल पूर्ण थ३. श्रीविनयविजय | उपाध्यायजी कहे जे के धर्मना प्रजावथी जीवने सुख थाय. जेम श्रीपाल राजाने सुख थयुं तेम | जाणी लेवु ॥ यतः ॥ ग्रामो नास्ति कुतः सीमा, नार्या नास्ति कुतः सुतः ॥ प्रज्ञा नास्ति कुतो विद्या, धर्मो नास्ति कुतः सुखम् ॥ १॥ इति ॥२१॥
॥दोहा॥ कोसंबी नयरी वसे, धवल शेठ धनवंत ॥
॥४३॥ लोक अनर्गल धन नणी, नाम कुबेर कदंत ॥१॥ | अर्थ-हवे अन्य अधिकार कहे . एवा अवसरने विषे कोसंबी नगरीनो वसनारो महा धन-11
******
*
*
*
*
*
Sain Education
international
For Personal and Private Use Only
Page #91
--------------------------------------------------------------------------
________________
वंत एवो धवल नामे एक शेठ बे, तेनी पासे अनर्गल द्रव्य बे, माटे लोक तेने इंद्रनो नंगारी | कुंबेर एवे नामे करी प्रसिद्धपणे ( कहंत के० ) कहे ॥ १ ॥
शकट नंट गामां जरी, करियाणां बहु जोडी ॥ ते रुचे वयो, लान लदे लख कोडि ॥ २ ॥ वस्तु सकल वेची तिणे, अवर वस्तु बहु ली ॥ जलवट प्रवहण पूरवा, सबल सजाइ कीध ॥ ३ ॥ एक जुंग वाद की युं, कुत्र्या यंत्र जिहां सह ॥ कुत्र्या यंत्र सोले सहित, प्रवर जुंग डस ॥ ४ ॥ वडसफरी वादण घणां, बेडा वेगड घोणा ॥ शिल्ल खुर्पावर्त्त इम, नेद गणे तस कोण ॥ ५ ॥
अर्थ-ते शेव ( शकट के० ) मोटां गामां, उंटनी पोठो अने गामां बालकां जरी तेमां ( बहु के० ) घणी जातिनां करियाणां ( जोमी के० ) लावीने जरुच बंदरमां श्राव्यो बे. तिहां लावेली वस्तु सर्वे वेचीने तेमां लाखो कोमोनो लाज बेतो हवो ॥ २ ॥ एम ते शेठे सर्व वस्तु वेची ने फरी बीजी बहु प्रकारनी वस्तु लीधी. वली पण धन पामवाना लोने करी परद्वीपे जवा माटे जलमार्गे प्रवहण पूरवा माटे ( सबल के० ) मोटी वहाणो बनाववानी सामग्री कीधी ॥ ३ ॥ तेणे एक जुंग जातिनुं मोटुं वहाण तैयार कीधुं, जेना साठ कुछ थंजा बे, तथा सोल सोल कुछ थंजाए करी सहित एवां ( वर के० ) बीजां जुंग जातिनां मसव वहाण कराव्यां ॥ ४ ॥ वली ( वमसफरी के० ) मोटी सफरना करनारां एवां घणां एटले एकसो वहा कराव्यां, तथा | ( वेगम के० ) वेगमी जातिनां (बेमा के० ) वहाण एकसो ाठ कराव्यां, तथा द्रोणमुख जातिनां चोराशी वहाण कराव्यां, तथा शिल्प जातिनां चोपन वहाण कराव्यां, तथा खुर्प जातिनां | खुरपाने श्राकारे होय तेवां पांत्र श वहाण कराव्यां बे, तथा व्यावर्त्त जातिनां जे जमरीमां पडे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #92
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
॥४४॥
A
तोपण नांगे नहीं एवां पचास वहाणो कराव्यां ने, एम अनेक जातिनां वहाण कराव्या ले. तेना|| खंग.५ नेद कोण गणी शके ? अर्थात् ते वहाणोनुं वर्णन करी शकाय नहीं ॥५॥
शणी परे प्रवहण पांचसें, पूस्यां वस्तु विशेष ॥बंदर मांदे आणीयां, पामी नृपआदेश ॥६॥मालिम पट पुस्तक जुए, सुखाणी सुखाण ॥धू अधिकारी धू तणी, दोरी नरे निसाण ॥ ७॥ करे किराणी साचवण, नाखुदा ले न्याउँ ॥ वायु परखे पंजरी, नेजामा निज दाङ ॥ ॥ खरी मसागति खारु, सज करे सढ दोर ॥ दलक हलेसां हालवे, बहु बेग बिहुँ कोर ॥ए॥ पंचवर्ण ध्वज वावटा, शिर करे चामर बत्र ॥ वाहण सवि शण
गारीयां, मांदे विविध वाजिन ॥ १० ॥ अर्थ-ए रीते श्रीपालना चरित्रमा एकंदर पांचसे वहाणनो मेल कह्यो , ते विशेष वस्तुए करी(प्रख्यां के ) नयां पढी राजानो आदेश पामीने वहाणोने बंदरमा लाव्या ॥६॥ वली ते वहाणने विषे जे मालिम लोक २ ते पांजरीए बेग बेग पट तथा पुस्तक जुवे , वली18 सुखाणी लोक सुखाणने संजाले बे, 5 तारो जोवाना अधिकारी ते 5 तारानीज खबर राखे , तथा निशानी पुरुषो बे ते निशान तपासे , एटले वहाणना मुख आगल दोरी बांधी तुमदा नाखीने निशानी जरे , ते धरतीनी माटीनी शुद्धि तपासवा सारु तथा पाणी तारां के उडुं ने तेनो थाग पामवा माटे पाणीनो सुमार काढी रह्या ॥ ७॥ कराणी मालनी साचवण करे| ने, तथा जे नाखुदा लोक डे ते सढ प्रमुख अनेक कामना न्याय लीए , वली पांजरी वायुनी ॥ ४ ॥ परीक्षा करे बे, अने ( नेजामा के० ) पोरायत जे जे ते ( निज दार्ज के०) पोताने योग्य काम करी रह्या ॥७॥ वली (खरी मसागति के०) खरेखरी महेनतना करनारा एवा खारुथा लोक है
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #93
--------------------------------------------------------------------------
________________
जे ते सढ तथा दोरमाने सङ करे , अने (हलक के० ) हलकारा लोक जे जे ते हलेसां शहलावता थका ( बहु के० ) घणा जनो ( बिहुँ कोर के०) बेहु बाजुए कौतुके बेग ने ॥ए॥ वली वहाणना शिर उपर पंचरंगी ध्वजा अने वावटा नमी रह्या बे, त्यां कवि उत्प्रेक्षा करे ले के 18 जाणीए वहाणोनां मस्तक चामर ने करी विराजित थयां हो हीं! एवां थकां ते वहाण
ने ने. एवी रीते सर्वे वहाण शणगाखां. वली ते वहाण मांहे विविध प्रकारनां वाजिन वागी रह्यां ॥ १० ॥
सात जूंश वाहण तणी, निविड नालिनी पंति॥वयरीनां वादण तणी, करे खोखरी खंति ॥ ११॥ सुनट सनूरा सहस दश, वमा वमा जूंकार ॥ बेग चिहुं दिशि मोरचे, हाथ विविध हथियार ॥ १२॥ इंधण जल संबल ग्रही, बह व्यापारी लोक ॥सोदे बेग गोंखडे, नूर दीये धन रोक॥१३॥ हवे नांगर नपाडवा, वडा जुंगनी जाम ॥ नाल धड़की नाल सवि,
दुइ धडोधड ताम ॥२४॥ अर्थ-हवे वहाणमा सात नूमि , तिहां एकेकी नूमिए बरोबर सरखे सरखी (निविम के) घट एवी ( नालिनी के ) तोपो एटले नालोनी (पंति के० ) हारो मूकेली . ते केवी ने ? तो के ( वयरीना के०) शत्रुनां वहाण एटले चोरीयानां वहाण तेमनां मननी (खंति के) होश तेने खोखरी करी नाखे ॥ ११॥ वली ते वहाणोमां (सनूरा के० ) नूरे एटले तेजे करी सहित एवा दश हजार सुनट बे, ते सर्व मोटा मोटा जूंकार पुरुषो बे, ते सहु वहाणोनी
चार दिशाए मोरचा उपर हाथमा विविध प्रकारनां हथियारो लश् तेणे करी शोजता थका बेग| ४ ॥ १५ ॥तेमज (इंधण के० ) लाकमां एटले सरपण, ( जल के०) पाणी अने ( संबल के०)
श्री. १२
in Educinemational
For Personal and Private Use Only
ww.jainelibrary.org
Page #94
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥४५॥
नातुं लश्ने घणा व्यापारी लोक ते वहाणोना गोखने विषे बेठा थका ( सोहे के० ) शोने , ते |
खंम. सर्व नूरनुं धन धवल शेग्ने रोकडं चूकवी आपे ॥ १३॥ हवे वहाणनां नांगर उपामवाने 8 अर्थे (जाम के०) जे वारे मोटा जुंग नामे वहाणनी ( नाल के०) तोप (धड़की के०) बूटी, ते वारे सर्व वदाणोनी तोपो बूटी, तेथी तिहां नालोनो समकाले धमोधम शब्द थयो ॥१४॥
सवि वादणना नांगरी, करे खराखर जोर ॥ पण नांगर दाले नहीं, सबल मच्यो तव सोर ॥ १५॥धवल शेठ कांखो थयो, चिंता चित्त न माय ॥ शीकोतर पूरण गयो, हवे किम करवू माय ॥१६॥ शीकोतर कदे शेठ सुण,वादण थंच्यां देवि॥गेडे बत्रीश लदाणा,पुरुष तणो बलि लेवि ॥१७॥ अर्थ-तिहां सर्वे वहाणोना नांगरी, जे नांगरना उपामनारा पुरुषो, ते नांगरो उपारवा माटे 8 खरेखलं जोर करे , परंतु नांगरो लगार मात्र पण हालतां नथी, तेथी तिहां ( सबल के) घणो मोटो सोर बकोर मची रह्यो ॥ १५ ॥ ते जोर धवल शेठ कांखो थयो, तेना चित्त मांहे| चिंता समाती नथी एवी अगणित चिंता उपनी. ते वारे शीकोतर माताने पूबवा गयो के है| माताजी ! हवे मारे केम करवू ? ॥ १६ ॥ ते वारे शीकोतर माताना पूजारा दाव जोइने कहेवाई लाग्या के हे शेठ ! तुं सांजल, था तारां वहाण कोई देवताए थंजाव्यां , ते ज्यारे बत्रीश लक्षणा पुरुषनुं बलिदान लेशे, त्यारे तारां वहाणने बूटां करशे ॥ १७ ॥
॥ ढाल त्रीजी ॥ श्रेणिक मन अचरिज अयो, वाजागी राजा रे ॥ए देशी ॥ धवल शेठ लेनेटपुं, आव्यो नरपति पाय रे ॥
॥४५॥ कदे एक नर मुजने दीयो, जेम बलि बाकुल थाय रे ॥ धवल ॥१॥ अर्थ-ते सांजली धवल शेव अमुख्य नेटणुं लश्ने जरुअचना राजा पासे आवी कहेवा लाग्यो 81
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
www.nelibrary.org
Page #95
--------------------------------------------------------------------------
________________
SACHICALCCANCCCCCCCCALS4
के मुजने एवो एक बत्रीश लक्षणो पुरुष आपो के जेम तेनो बलि बाकुल देवीनी आगल थाय, एटले देवीने हुं बलि बाकुल थापुं ॥१॥
राय कहे नर ते दीयो, सगो नहीं जस कोय रे ॥ बलि करजो ग्रही तेहने, जे परदेशी होय रे ॥ धवल ॥२॥ सेवक चिहुं दिशि शेठना, फरे नयरमां जोता रे ॥ कुंवर देखी शेग्ने, वात कदे समहोता रे ॥धवल ॥३॥दीगे बत्रीश लवणो,पुरुष एक परदेशी रे॥ कहो तो काली आणीए, शुदिन को तस लेशी रे॥धवल ॥४॥धवल कदे आणो इहां, म करो घडीय विलंब रे॥ बलि देने चालीए,वहार नहीं तस बुंब रे॥धवल ॥५॥
सुनट सहस दश सामटा, आवे कुंवरनी पासे रे ॥ अनिमानी नक्षतपणे, . कडुआं कथन प्रकाशे रे ॥ धवल ॥६॥
अर्थ-ते सांजली राजाए कह्यु के हे शेठ ! जेनो को सगो संबंधी मारा नगरमा न होय । तथा वली जे परदेशी होय ते पुरुष में तमने (दीयो के०) दीधो, माटे तेने (ग्रही के०) पकमीने तेनुं बलिदान करजो॥॥एवी राजानी आज्ञा पामीने धवल शेउना सेवक जरुषच नगर दिशाए तेवा माणसने जोता फरे .एटलामां श्रीपाल कुमरने देखीने सेवक पुरुष (समहोता के०) हर्ष पामता थका प्रावीने शेठ प्रत्ये वात कहेता हवा ॥३॥के हे शे!अमे एक बत्रीश लक्षणो परदेशी पुरुष दीगे , तेनी शुधि लेनार को पण नथी, माटे तमे कहो तो तेने पकमी लावीए॥४॥ एवं सांजली धवल शेठ सेवकोने कहेवा लाग्यो के जाले, तेने अहीं पकमी लावो. ए काममा एक घमीनो पण विलंब म करो, केमके आपणे ते पुरुषनुं बलिदान आपीने तुरत हांथी चालीए. तेनी (वहार के०) वहार करनार एटले संजाल लेनार पण कोश् नथी, तथा बुब पण कोश् सांजलनारा
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #96
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राशनथी ॥५॥ एवो शेवनो हुकम थवाथी दश हजार सुनटो सामटा मलीने कुंवरनी पासे श्राव्या. खम. ५
ते अनिमाने करी ( उहतपणे के० ) उद्धंठपणे कटुक वचन कुंवर बागल प्रकाशवा लाग्या॥६॥ ॥४६॥
उठ आव्युं तुज आज, धवल धिंग तुज रूतो रे ॥ बलि करशे तुजने दणी, मकर मान मन जूगे रे ॥ धवल० ॥७॥बलि नवि थाये सिंहनो, मूरख हैये विमासो रे॥धवल पशुनो बलि थशे, वचने कांश विरांसो रे॥ धवल ॥ ॥ वचन सुणी तस वांकडां, शेठने सुन्नट सुणावे रे ॥ शेठ विनवी रायने, बहोर्बु कटक अणावे रे ॥धवल ॥ ए॥ एकलडो दोय
सैन्यशुं, जव अतुली बल जूळे रे ॥ चहुटा वच्चे धूखल मच्यो, कायर • दियडां धूजे रे ॥धवल ॥१०॥ 2अर्थ-के अरे ! उठ, हवे तारं आयुष्व श्रावी पहोंच्युं , केमके अमारो स्वामी जे धवल धिंग ते तारा उपर रूग्यो , माटे तुजने हणीने बलिदान करशे. ए वातमां जूवं मानवापणुं तुं तारा मनमां कांइ पण म करजे. एम म कहेजे के मने कडं नहीं. अमे क्षत्री जाणी तुजने 5 कह्यु ॥ ॥ ते वचन सांजली कुंवर कहेवा लाग्यो के अरे मूर्खा ! तमारा हैयामां कांश |विमासण करो के केसरी सिंहनुं को ठेकाणे बलिदान थतुंज नथी, पण तमे जे तमारो स्वामी धवल कहो बो ते पशु जाति , माटे तेनुं बलिदान थशे. एमां कां संदेह थाणशो नहीं. फोकट वचने करीने कां (विरांसो के०) विगाडो बो? ॥७॥ एवां कुंवरनां वांकां वचन सांजलीने ते सर्व वचन
॥४६॥ सुनटोए जश् शेग्ने संजलाव्यां, ते वारे शेठे वली राजाने विनंति करीने राजा- ( बहोवू के०) घणुं मोटुं कटक (अणावे के ) अणाव्युं एटले मंगाव्युं ॥ ए॥ हवे अतुल बलनो धरनारो है एवो कुंवर एकलोज जे वारे बेहु सैन्यनी साथे जूऊवा लाग्यो, ते वारे तिहां चौटानी वचमा
in Educa
temational
For Personal and Private Use Only
Page #97
--------------------------------------------------------------------------
________________
धूंखल धींगाणुं मची रह्यु. ते समये कायर पुरुषोनां हैमां तो थर थर धूजया लाग्यां ॥ १० ॥
कुंत तीर तरवारना, जे जे घाले घाय रे ॥ कुंवर अंगे लागे नहीं, औषधिने महिमाय रे॥धवल ॥ ११ ॥ कुंवर ताकी जेदने, मारे लाठी लोढे रे॥ लदबहता लांबा थइ, ते पुहवीए पोढे रे॥धवल ॥२॥नेसा परे रणखेतमां, चिढं दिशि धिंगम धाय रे॥ जूडया जो वेला जिस्या, शिंगे विलगा जाय रे॥धवल । ॥१३॥ मस्तक फूटां केश्नां, पड्या केश्ना दांत रे॥ केश मुखे लोदी वमे, पडी सुनटनी पांत रे ॥धवल० ॥१४॥ केश पेग दाटमां, के पोलमां पेग रे ॥ के दांते तरणां दक्ष, गलिया
थश्ने बेग रे॥धवल ॥१५॥ अर्थ-हवे ते सुनटो तिहां ( कुंत के० ) नालां, तीर कामगं अने तरवारना जे जे घाव (घाले के० ) नाखे बे, ते सर्व औषधिना महिमा थकी कुंवरने अंगे लागता नथी ॥ ११॥ हवे कुंवर जे पुरुषने ताकीने लाठी अने लोढे करी मारे, ते वारे ते (लहबहता के०) लमथडता लवता लवता लांबा थश्ने पृथ्वीने विषे पोढी जाय ॥ १२॥ जेम (नेसा के०) पामा देत्रमा लडे, ते वारे चारे दिशाए दोमादोम करे, तेथी उबर प्रमुखना वेला तेना शिंगमांमां वलगता जाय, तेम
आ रण देत्रमा पण पामानी परे चारे दिशाए (धिंगम के० ) जोरावर योहा (धाय के०) दोडे 8 ४. ते वेला सरखा हलका योझाने जुडी नाखे बे, एटले उबरना वेला जेम पामाना शिंगमांमां
वलगता जाय, तेम श्हा जोरावर योहानी आगल हलका योझाना हवाल थाय ने ॥ १३ ॥ त्यां केटलाएक सुनटोनां मस्तक फूटयां, केटलाएकना दांत पडी गया, कोश्ना मुख थकी लोही वमवार लाग्यु. ए रीते सुनटोनी (पांत के०) हार पमती हवी ॥ १४ ॥ केटलाक सुन्जट नासीने हाटमां
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #98
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंम..
श्री रा०पेसी गया, कोइएक पोलमां पेग, केटलाएक दांते ( तरणां के० ) तृण प्रमुख देइने बूट्या,
केटलाएक गलिया बलदनी पेरे थश्ने बेसी रह्या ॥ १५ ॥ ॥४७॥
के कहे कायर अमे, केइ कहे अमे रांक रे ॥ के कदे मारो रखे, नथी अमारो वांक रे॥ धवल ॥१६॥के कदे पेटारथी, अशरण अमे अनाथ रे॥ मुखे दीये दश अंगुली, दे वली आडा हाथ रे॥ धवल ॥१७॥ धवल शेठ ते देखतां, आवी लाग्यो पाय रे॥ देवसरूपी दीसो तुमे, करो अमने सुपसाय रे॥धवल ॥ १७ ॥मदिमानिधि महोटा तुमे, तुम बल शक्ति अगाध रे ॥ अविनय कीध अजाणते, ते खमजो अपराध रे ॥ धवल ॥१०॥ अवधारो अम विनति, करो एक नपगार रे ॥ थंच्यां
प्रवहण तारवो, उतारो फुःख पार रे ॥ धवल ॥२०॥ | अर्थ-केश्क सुनट कहेवा लाग्या के हे स्वामिन् ! अमे कायर बीए, केश्क कहे जे के श्रमे 8 रांक बीए, केश्क कहे डे के रखे अमने मारता, अमारो कां वांक नथी ॥ १६ ॥ केश्क कहे जे के अमे पेटार्थी बीए, अमने कोनुं शरण नथी, अमे अनाथ बीए. केश्के तो मुखे दश आंग-2 ली दीधी, वली केश्के श्रामा हाथ दीधा ॥ १७॥ धवल शेठ ते कृत्य देखतो थको श्रावीने कुमरने पगे लाग्यो, अने कहेवा लाग्यो के हे स्वामिन् ! तमे तो कोई देवस्वरूपी देखाव डो, माटे 8 अमने रुमो पसाय करो ॥ १७ ॥ हे महाराज ! तमे तो मोटा महिमाना ( निधि के०) नंमार गे, तमाळं बल अने शक्ति तेनो पार आवे नहीं एवी अगाध , माटे हे स्वामिन् ! में जे अजापतां थका तमारो अविनय कीधो ते मारो अपराध तमे खमजो ॥१५॥ अमारी विनंति
॥४॥
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #99
--------------------------------------------------------------------------
________________
अवधारीने एक उपकार करो, जे भारां वहाण थंयां पड्यां वे तेने तारी श्रापो. ए दुःखरूप | समुद्री अमने पार उतारो ॥ २० ॥
कुंर कहे एकामनुं, शुं देशो मुज जाडुं रे ॥ शेठ कहे लख सोनैया, खतुं काढो गाडुं रे ॥ धवल ॥ २१ ॥ सिचक्र चित्तमां घरी, नव पद जाप न चूके रे ॥ वम वाहण उपर चढी, सिंहनाद ते मूके रे ॥ धवल ० ॥ २२ ॥ जे देवी शमन हती, इष्ट गइ ते दूर रे ॥ वहाण तस्यां कारज सख्यां, वाजे मंगल तूर रे ॥ धवल ० ॥२३॥ बीजे खंडे ढाल ए, त्रीजी चित्तम धरजो रे ॥ विनय कदे वाद परे, जवियण जवजल तरजो रे ॥धवल ॥२४॥
अर्थ-एवां शेठनां वचन सांजलीने कुंवर कहेवा लाग्यो के ए काम तमारुं छामे करी श्रपीए तो तेनुं अमने शुं नाडुं श्रापशो ? ते वारे शेठे कयुं के लाख सोनैया आपीश तमे मारुं गाडुं खूतुं बे ते बहार काढी थापो ॥ यतः ॥ सुजनो न याति विकृतिं, परहित निरतो विनाशकालेऽपि ॥ बेदेऽपि चंदनतरुः, सुरजयति मुखं कुठारस्य ॥ १ ॥ इति ॥ २१ ॥ एवो ठराव करी सिद्धचक्रने पोताना चित्तमां धारण करी नव पदनो जाप चूकतो नथी, एवो श्रीपाल ते मोटा वहाण उपर चढीने सिंहनादने ( मूके के० ) करतो वो ॥ यतः ॥ कृशोऽपि सिंहो न समो गजेंद्र:, सत्त्वं प्रधानं न च मांसराशिः ॥ अनेकवृन्दानि वने गजानां, सिंहस्य नादेन मदं त्यजति ॥ १ ॥ इति ॥ २२ ॥ तेणे करीने जे देवी दुश्मन दती ते दुष्ट दूर जती रही, ते वारे वहाण तस्यां, तेथी सर्वनां कार्य सख्यां. ते वखत मांगलिकनां वाजां वाग्यां ॥ २३ ॥ ए बीजा खंमने विषे त्रीजी ढाल चित्तमां धरजो. श्री विनय विजय उपाध्यायजी कहे बे के हे जव्यो ! वहाणनी परे तमे पण संसारमुद्रने तरजो ॥ २४ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #100
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
॥४
॥
CCCCRACHAR
॥दोहा॥
खंग. ते देखी चिंते धवल, चढ्यु चिंतामणि हाथ ॥ वडो वखत जो मुज हुवे, तो ए आवेसाथ॥१॥एक लाख दीनार तस,देशलाग्यो पाय॥कर जोडीने विनवे, वात सुणो एक नाय ॥२॥ वरस प्रत्ये एकेकने, सहस दीनं दीनार॥सेवा सारे सहस दश,जोधनला जूंकार॥३॥तुमने मुद माग्युं दीनं,
आवो अमारी साथ ॥ ए अवधारो विनति,अमने करो सनाथ॥४॥कुंवर कहे हुँ एकलो, लेलं सर्वनुं मोल ॥ ए सर्वेनुं एकलो, कारज करुं अमोल ॥५॥ ते धननुं ले करी, शेठ कदे कर जोड ॥ अमे वणिकजन
एकने , किम देवाये कोड ॥६॥ अर्थ-हवे एवो बनाव बनेलो देखीने धवल शेठ पोताना मनमां चिंतववा लाग्यो के मारे । हाथे चिंतामणि रत्न चढ्यु , माटे जो मारो वमो वखत होय एटले मोटुं नाग्य होय तो आ. पुरुष मारी साथे श्रावे ॥१॥ एम चिंतवी एक लाख ( दीनार के०) सोनामोहोर तेने श्रापी पगे लागीने विनंति करवा लाग्यो के हे नाश् ! तमे एक मारी वात सांजलो ॥२॥ हुँ एकेका सुनटने एकेक वर्षे एकेक हजार सोनामोहोरो श्रापुं बुं, एवा दश हजार सेवक , ते मारी सेवा ( सारे के०) करे , ते सर्व सेवको जला योझा जूंकार पुरुषो डे ॥३॥ पण तमोने मुखे| मागो ते हुं आपुं, अने तमे मारी साथे श्रावो, एटली विनंति अवधारीने अमने ( सनाथ के० ) नाथ सहित करो ॥ ४॥ एवां शेठनां वचन सांजलीने श्रीपाल कुंवर कदेवा लाग्या के हुँ| ॥ ४ ॥ एकलो था सर्व दशे हजार सेवकोना पगारनी जेटली रकम थाय तेटली ललं, अने ए सर्व दशेर हजार मलीने जे काम करे ले ते सर्वनुं काम पण ढुं एकलोज अडोलपणे करूं ॥५॥
A
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #101
--------------------------------------------------------------------------
________________
ॐ
ॐॐॐॐॐ
जाए, श्रीपालन बोलवं सांजली ते दश हजार सेवकने जे पगार अपाय ने तेना धननुं लेखं करीने
धवल शेठ बे हाथ जोमी कहेता हवा के हे महाराज ! अमे वणिकजन एटले वाणीया लोक बीए, माटे अमाराथी एकज जणने क्रोम सोनैया केम थापी शकाय ? ॥६॥ .
कुंवर कदे सेवक थइ, दाम न कालुं दाथ ॥ पण देशांतर देखवा, हुं
आबुं तुम साथ ॥ ७॥ नाथु ले वदाणमां, द्यो मुज बेसण गम ॥ __मास प्रते दीनार शत, नाडु परग्युं ताम ॥७॥
अर्थ-ते सांजली कुंवर कहेवा लाग्यो के हे शेठजी! हुँ पण सेवक थश्ने तमारो (दाम के०) पैसो हाथमां जावू नहीं, परंतु देशांतर देखवानी मने श्वा माटे ते जोवाने अर्थे हुँ तमारी साथ थावु बु॥७॥ ते माटे तमे मारी पासेथी नाडं लश्ने मने वहाणमां बेसवानी जग्या| श्रापो. पड़ी शेठे मास प्रत्ये सो सो सोनामोहोर नासु लेवार्नु परठ्यु एटले ठराव कस्यो ॥॥
॥ ढाल चोथी ॥ राग महार ॥ जोहो जाएयु अवधि प्रयुंजीने ॥ ए देशी ॥ जीदो कुंवर बेगे गोंखडे, जीहो महोटा वाहण मांदि ॥ जीदो चिटुं दिशि जलधि तरंगनां, जीदो जोवे कौतुक त्यांदि ॥ सुगुण नर, पेखो पुण्य प्रनाव ॥जीदो पुण्ये मनवांबित मले, जीहो दूर टले ऊःख दाव ॥
सुगुण नर, पेखो० ॥१॥ए आंकणी॥ अर्थ-हवे श्रीपाल कुंवर मोटा वहाणना गोखने विषे बेगे थको चारे दिशाए (जलधि के०) समुख तेना कबोल उबले जे ते संबंधी कौतुकने तिहां जोतो हवो, माटे हे सुगुण पुरुषो! तमे |पुण्यनो प्रजाव तो जुडे ! के जेने पुण्य सखायी होय तेने सर्व मनोवांबित मली आवे , अने। वली ते प्राणीना दुःखना दाव सर्व पूर टली जाय , एवं पुण्यनुं माहात्म्य ॥१॥
GANESCREDARASTRACANCCOURSEACOCONCCCCC
श्री. १३
Sain Education Inter
For Personal and Private Use Only
wow.jaimalibrary.org
Page #102
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
ACC
॥४
॥
जीहो सढ हंकाया सामटा, जीदो पूया घण पवणेण ॥ जीदो वम
खंफ. वेगे वाहण वहे, जीदो जोयण जाये खणेण ॥ सु॥२॥जीदो जलहस्ती पर्वत जिस्या, जीदो जलमां करे हल्लोल ॥जीदो मांदोमांहे जूझता, जीहो उगले कल्लोल ॥ सु० ॥३॥ जीहो मगरमत्स्य महोटा फिरे, जीहो सुसुमार के कोडि ॥जीदो नक्र चक्र दीसे घणा, जीहो करता दोडादोमी ॥ सु० ॥ ४॥ जीदो श्म जातां कदे पंजरी, जीदो आज पवन अनुकूल ॥ जीहो जल इंधण जो जोइए, जीदो आव्यु बब्बर
कूल ॥ सु० ॥५॥ ___ अर्थ-हवे समकाले ते सर्वे वहाणोना सढ साथेज हंकास्या. ते सढ घणा पवने करी पूराणा.| तेना योगथी ( वम वेगे के० ) मोटी उतावलथी सर्व वहाणो समुषमा ( वहे के०) चालवा लाग्यां. ते केवां चाले ? तो के एक क्षणमात्रमा एक योजनपंथने अतिक्रमी जाय बे, एवां, चाले ॥ यतः ॥ थल उपनी जलमां वसी, जलना जीव न खाय ॥ जीवह कारण बापमी,11 क्षण आवे क्षण जाय ॥ १॥ इति ॥२॥ तिहां समुपमा जलहस्ती जे मोटा पर्वत सरखा 8 जलचर जीवो डे ते पाणीमा हलोल करी रह्या ने, वली ते मांहोमांहे जूऊतां थका पाणीना| कबोल प्रत्ये उंचा उगले वे ॥३॥ तेमज मोटा मोटा मगरमत्स्य फरी रह्या , वली सुसुमार जातिना मत्स्य ते कुतराथी कांश्क मोटा थाय , तेवा मत्स्य पण कोइ क्रोडो गमे विचरी रह्या ॥४ए । बे, तथा नक्र जातिना, चक्र जातिना जे जलचर जीवो ने ते पण समुजमा घणी दोमादोम करी| रह्या ॥४॥ एम जतां थका वायरानो परीदक जे पंजरी ने ते कहेवा लाग्यो के आज पवन
MOCRACROCHAMACROGRAMICROCOCCC
For Personal and Private Use Only
Page #103
--------------------------------------------------------------------------
________________
अनुकूल बे, सांसतो बे, माटे जो मीतुं जल तथा इंधण जे लाकमां प्रमुख वस्तु तेनो जो खप | होय तो बब्बरकोट नजीक आव्युं ॥ ५ ॥
जो तस बंदर मांदि उतरी, जीहो जल ईंधण लीए लोक ॥ जी दो धवल शेठ कांठे रह्या, जीहो साथै सुनटना थोक ॥ सु० ६ ॥ जीहो कोलाहल ते सांगली, जी हो आव्या प्रति सपराण || जीहो दाणी बब्बर रायना, जी हो मागे बंदर दासा ॥ सु० ॥ ७ ॥ जीदो शेव सुनटने गारवे, जीदो दा न दीए प्रवृऊ || जीहो तव तिदां खाग्युं तेहने, जी दो मांहोमांदे ॥ ० ॥ ८ ॥ जीहो शेठ तो सुनटे दण्या, जीहो दाणी नावारे जाय ॥ जी दो सैन्य सबल तव सज करी, जीहो आव्यो बब्बर राय ॥ सु० ॥ ए ॥
अर्थ- बब्बरकोटना बंदर मांहे उतरीने सहु लोको पापी तथा सरपण लेवा लाग्या, अने जेनी साथै सेवाना करनारा सुनटोना ( थोक के० ) समूह बे एवा धवल शेठ पण बिठानां नाखी कांठे श्रावी रह्या ॥ ६ ॥ तिहां बंदर मांहे घणा लोक उतस्या, तेनो मोटो कोलाहल शब्द थ रह्यो, ते सांजलीने बब्बर राजाना दाणी पुरुषो जे दता ते ( श्रति सपराए के० ) अत्यंत उतावला यावीने बंदरनुं दा मागवा लाग्या ॥ ७ ॥ परंतु ( अबूज के० ) मूर्ख एवो जे शेठ, तेणे पोताना सुनटोना गर्वे करी एटले मारा थाटला सीपा बे तो या दाणी लोकोने दाण शा वास्ते यापुं ? एवा अहंकारथी ते अबू एटले मूर्ख शेठे दाष दीधुं नहीं, तेथी तिहां दाणी अने शेवना सेवकोने मांहोमांहे युद्ध थवा लाग्युं ॥ ८ ॥ तिहां शेठना सुनटोए दाणी लोकोने मार मास्यो, तेने लीधे ते दापी नासी गया, अने पोताना महाकाल नामे राजाने जाए करता हवा.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #104
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥ ५० ॥
Jain Educationa
ते सांजली बले करी सहित एवं सैन्य तैयार करी बब्बर देशनो राजा पोते तिहां चढी श्राव्यो ॥ ए ॥ खम. १ जीदो राजतेज न शक्या सदी, जी दो दीधी सुनटे रे पूंठ || जी हो मार पडी तव नासतां, जो बाण जरी जरी मूठ ॥ सु० ॥ १० ॥ जीदो बांध्य काली जीवतो, जी हो रुंख सरिसो शेठ ॥ जीदो बांद बेहु उंची करी, जीदो मस्तक कीधुं देव ॥ सु०॥ ११ ॥ जी दो रखवाला मूकी तिदां,
वलीयो बब्बर राय ॥ जीहो तव बोलावे शेठने, जीदो कुंवर करीय पसाय ॥ सु० ॥ १२ ॥ जीदो सुनट सवे तुम किहां गया, जीदो बांध्या वांद मरोम ॥ जीहो एवडुं दुःख न देखता, जीदो जो देता मुज कोम ॥ ० ॥ १३ ॥ जीद शेठ कदे तुमे कां दीयो, जी दो दाधा उपर लूए ॥ जो पड्या पी पाटु किसी जीदो दो मुखाने कूण ॥ सु० ॥ १४ ॥
"
अर्थ-ते वारे राजतेज ते वाणीयाना सुनटो सहन करी शक्या नहीं, तेथी शेवना सुनटोए पूंठ दीधी, ते जोइने राजाना सुनटोए बाणोनी मुवी जरी जरीने मारवा मांगी. ते जे वारे सारी पेठे मार पड्यो, ते वारे शेठना सुनट नासी गया ॥ १० ॥ सुनटो सर्व नासी गया पटी एकला धवल शेठने जीवतो कालीने रुंख सरिसो एटले जेम वृक्ष मगे नहीं तेम बेदु बाहु उंचा करीने मस्तक नीचुं करी मरकीने टाट बांध्यो ॥ ११ ॥ तेनी पासे रखवाला मूकीने जे वारे बब्ब रनो राजा पाठो वढ्यो, ते वारे कुंवर यावी पसाय करीने शेठने बोलावे वे ॥ १२ ॥ के छारे रे शेवजी ! तमारा सुजट सर्वे किहां जता रह्या जे तमे बाहु मरमीने बांध्या पड्यो हो ? परंतु जो | मुजने क्रोड सोनामहोरो दीधी हते तो आज एटलुं दुःख तमे देखत नहीं ॥ १३ ॥ ते सांजली |
For Personal and Private Use Only
॥ ५० ॥
Page #105
--------------------------------------------------------------------------
________________
शेव कहेवा लाग्या के हे कुंवर ! तमे बल्या उपर वली खूण कां लगाडो हो ? पमी गया पली ( पाटु के० ) लात ते वली शी मारवी ? तथा मुवेलाने वली कोण मारे ? ॥ १४ ॥ ..
जीदो कदे कुंवर वैरी ग्रा, जीहो जो वाडं ए वित्त ॥ जीदो तो मुजने देशो किशुं, जीदो नाखो थिर करी चित्त ॥ सु०॥१५॥जीदो शेठ कहे सुण सादिवा, जीदो ए मुज कारज साध ॥ जीदो वहेंची वादण पांचसें, जीदो लेजो आधो आध ॥ सु० ॥१६॥जीदो बोलबंध साखी तणो, जीहो कुंवर पामी तंत ॥ जीदो धनुष तीर तरकस ग्रही, जीदो चाल्यो तेज अनंत ॥ सु० ॥ १७ ॥ जीहो ज बब्बर बोलावीयो, जीदो वल पागे वम वीर ॥ जीदो शस्त्र सेन जुजबल तणो, जीदो नाद उतारूं
नीर ॥सु० ॥ १७ ॥ अर्थ-ते सांजली कुंवर कहेवा लाग्यो के हे शेठ ! जो आ तमारा वैरीए ( ग्रह्यं के० ) ग्रहण | कघु जे अव्य एटले जे तमारुं अव्य एना कबजामां श्रावी गयुं ते ( वित्त के०) अव्य, जो हुँ पाढे वाली आपुं तो तमे मुजने \ थापशो ? ते तमे तमाएं चित्त स्थिर राखीने (जाखो के) बोलो ॥ १५ ॥ ते सांजली शेठ कहेवा लाग्या के दे साहेब ! तमे सांजलो के जो ए मारु * कार्य तमे साधी आपो तो मारां जे पांचवें वहाण ले ते अधो अमध तमे वहेंजी लेजो. जग-18
तमां कहेवत के सारा जाता देखीए, तो आधा लीजे बांट ॥ इति ॥ १६ ॥ पड़ी ते वातनां |कुंवरे (बोलबंध के०) खतपत्र लखीने वचमां सादीनो (तंत के०) ताली पामीने पोते धनुष्य तथा तीरनो ( तरकस के० ) नाथो साथे लश्ने अत्यंत तेजवंत थको महाकाल राजानी पनवाडे चाल्यो ॥ १७ ॥ जश्ने बब्बर राजाने बोलाव्यो के हे मोटा वीर पुरुष ! तुं पाबो वल, एटले
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #106
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण फरीने मारा सामो आव. हुँ तारां जे शस्त्र तथा सैन्य अने जुजाउनुं बल, तेनो ( नाद के० ) जे । खंम.
अहंकार ले तेनुं ( नीर के० ) पाणी तेने उतारं ॥ १७ ॥
जीदो तुज सरिखो जे प्राहुणो, जीदो पहोतो अम घर आय ॥जीदो सुखडली मुज हाथनी, जीहो चाख्या विण किम जाय ॥ सु०॥ १॥ जीदो महाकाल जूए फरी, जीदो दीगे एक जुवान ॥ जीदो काकानी परे जूऊतो, जीहो लदाण रूप निधान ॥ सु० ॥२०॥ जीहो तुं सुंदर सोहामणो, जीदो दीसे यौवनवेष ॥जीदो विण खुटे मरवा नणी, जीदो कांश करे उद्देश ॥ सु०॥२१॥जीदो कदे कुंवर संग्राममां, जीदो वचन किश्यो व्यापार ॥ जीदो जोधे जोध मल्या जिहां, जीहो तिहां शस्त्रे
व्यवहार ॥ सु०॥॥ है अर्थ-वली हे वीर पुरुष ! तारा सरखो प्राहुणो पुरुष जे अमारे घेर आवी पहोंच्यो ते मारा
हाथनी सुखमी चाख्या विना पालो केम जाय ? ॥ १५ ॥ एवां वचन सांजली महाकाल राजा है पाडो फरी जुए दे तो तेणे लक्षण तथा रूपना निधान सरिखो अने ( काका के०) घणा पुरु-13 षोनी परे जूऊतो एवो एक युवान पुरुष दीगे ॥ २० ॥ तेने जोश्ने महाकाल राजा कहेवा लाग्यो | के तुं तो घणो सुंदर, सोहामणो डो, अने संपूर्ण नवयौवन वेषे देखाय , तेम बतां तारं आयुष्य 3 खुट्या विना फोकट मरवानो उद्देश शामाटे करे ? ॥ २१॥ एवां राजानां वचन सांजली कुंवर है।५१॥ कहेवा लाग्यो के संग्रामने विषे वचननो व्यापार शो करवो ? जिहां योझाए योझा मले तिहां तो शस्त्रनोज व्यापार होय ॥ ॥
Sain Education memonal
For Personal and Private Use Only
Page #107
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीहो महाकाल कोप्यो तिसे, जोहो हलकारे निज सेन ॥ जीदो मूके शस्त्र ऊडोऊडे, जीदो राता रोषरसेन ॥ सु० ॥२३॥ जीहो वूग तीखा तीरना, जीदो गोलाना केइ लाख ॥ जीदो पण अंगे कुंवर तणे, जीदो लागे नहीं सराख ॥ सु०॥२४॥ जीदो आकर्षी जे जे दिशे, जीहो कुंवर मूके बाण ॥जीदो समकाले दश वीशना, जीदो तिहां बंडावे प्राण ॥सु ॥२५॥जीदो सैन्य सकल महाकालनु,जीदो नागी गयुं दह वह ॥ जीदो नृप एकाकी कुंवरे, जीदो बांध्यो बंध निघट्ट । सु०॥२६॥ जीहो बांधीने निज साथमां, जीदो पासे आण्यो जाम ॥ जीदो बंधन गेड्यां
शेठनां, जीहो रदक नाग ताम ॥ सु० ॥२७॥ AI अर्थ-एवां कुंवरनां वचन सांजली महाकाल राजाए (तिसे के० ) तेनी साथे कोप्यो थको
पोतानी सेनाने हलकारो कस्यो. ते वारे ते सुजटो पण ( रोष के० ) क्रोधना ( रसेन के० ) रसे करीने (राता के० ) तपायमान थया थका कुंवरनी उपर जमोजम शस्त्र नाखवा लाग्या ॥ २३ ॥ तिहां (तीखा के० ) तीक्ष्ण एटले श्राकरा एवा तीरना समूह तथा केश्क लाखो गमे गोलाना मेहुला कुंवरनी उपर (वूग के) वरसवा लाग्या, पण कुंवरने अंगे एक ( सराख के०) फांस। जेटलुं पण लागे नहीं ॥ २४ ॥ श्रने कुंवर तो जे जे दिशाए थाकर्षीने एटले ताकी करीने अथवा खेंचीने बाण मूके ने ते ते दिशाए तिहां समकाले दश वीश सुनटोना प्राण बंमावे ॥२५॥ एम करतां महाकाल राजानुं सर्व सैन्य ( दह वह के) दशे दिशानी वाटे नागी गयु. पी महाकाल राजा एकलो रह्यो, तेने श्रीपाल कुंवरे ( निघट्ट के ) करां बंधने करी बांध्यो॥२६॥ ते बांधीने (जाम के०) जे वारे पोताना सथवारानी पासे आण्यो अने धवल शेठना बंधन कुंवरे |
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #108
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ ५२ ॥
श्री० रा० ४ बोडी नाख्यां, ( ताम के० ) ते वारे रक्षक पुरुषो जे शेवनी पासे उना हता ते पण नासी गया ॥ २७ ॥ दो खग लेइ महाकालने, जीदो मारण धायो रे शेठ ॥ जीदो कहे कुंवर बेसी रहो, जो बल दीव्रं तुम ठेठ ॥ सु० ॥ २८ ॥ जीहो बंधन बब्बर रायनां, जीढो गेडावे तेणी वार ॥ जीहो भूषण वस्त्र पढ़ेरामणी,
दो को सत्कार ॥ सु० ॥ २९ ॥ जीहौ सुनट जिके नाग दता, जीदो ते आव्या सहु कोय ॥ जीहो जांजे तस आजीविका, जीदो शेठ कोप की सोय ॥ सु० ॥ ३० ॥
अर्थ-ते वारे शेठ घणी उतावलथी तरवार हाथमां लइने महाकाल राजाने मारवा माटे ( धायो के० ) दोड्यो . तेने श्रीपाल कुंवरे कयुं के हां हां शेठजी ! तमे बेसी रहो, केमके तमारुं बल तो मे ठेवथी दीतुं बे. वली एक तो जे पोताने घेर चाली आव्यो होय, बीजो आपणे शरणे श्राव्यो होय, त्रीजो बांध्यो थको पड्यो होय, चोथो जे रोगथी पीमा पामतो होय, पांचमो जे नासी जतो होय, बडो जे बुढो होय एटले वृद्ध होय, छाने सातमो जे बालक होय, ए साते जण जो पण आपणा शत्रु होय तोपण तेने मारवा नहीं, एवो न्याय ठे ॥ २८ ॥ पठी श्रीपाल | कुंवरे जे बब्बरना राजाने बंधने बांध्या हता, ते पण तेज वखते बोडाव्या, एटले पोताने हाथेज बंधन बोड्यां, थने पोताना जागमां यावेलां अढीसें वाणमांथी घणां श्राभूषण वस्त्र मगावी |पहेरामणी करीने राजानो घणो आदर सत्कार करयो ॥ २५ ॥ दवे शेठना सुनटो जे कोइ प्रथम बब्बर राजाना सुनटोथी बीक पामीने नासी गया हता ते पण सहु को पाठा फरी श्राव्या, ( सोय के० ) तेना उपरे शेठे कोप करीने तेमनी आजीविका जांगी नाखी, पगार श्रापवानो बंध कस्यो, पोतानी चाकरीमांथी दूर करया ॥ ३० ॥
For Personal and Private Use Only
खंग. १
॥ ५२ ॥
Page #109
--------------------------------------------------------------------------
________________
SCRECRACREACTRICROCA
जीहो कुंवरे ते सवि राखीया, जीदो दीधी तेहने वृत्ति ॥ जीदो वाहण अढीसें माहरां, जीदो साचवजो एक चित्त ॥ सु०॥३१॥ जीदो जे पण बब्बर रायनो, जीदो नागे हतो परिवार ॥ जीदो तेदने पण तेडी करी, जीदो आदर दीए अपार ॥ सु० ॥ ३२ ॥ जीदो चोथी ढाल एणी परे, जीदो बीजे खंडे होय ॥ जीदो विनय कहे फल पुण्यनां, जीदो
पुण्य करो सहु कोय ॥सु०॥३३॥ अर्थ-ते सर्व दशे हजार सुनटोने श्रीपाल कुंवरे राखी लीधा. तेमने ( वृत्ति के०) आजी-1 विका श्रापीने कयु के मारां अढीसें वहाण ने तेने तमे एकाग्र चित्तथी साचवजो, संजाल 2 राखजो ॥ ३१ ॥ वली बब्बर देशना राजानो पण प्रथम जे कां सुजटो आदिक परिवार नासी गयो हतो ते सर्वने कुंवरे तेमी करीने उत्तम वस्त्रादिकनी पहेरामणी थापी. एवी रीते जेनो पार आवे नहीं एटर्बु श्रादर सन्मान थाप्युं ॥ ३५ ॥ आ प्रमाणे बीजा खंमने विषे चोथी ढाल पूर्ण थाय . श्री विनयविजयजी उपाध्याय कहे डे के ए सर्व पुण्यनां फल जाणवां, माटे हे नव्यो ! तमे सहु को पुण्योपार्जन करो के जेथी सुख पामो ॥ ३३ ॥
॥दोहा॥ महाकाल श्रीपालनुं, देखी जुजबल तेज ॥ चित्त चमक्यो इम विनवे, दियडे आणी देज ॥१॥ मुज मंदिर पावन करो, महेर करी महाराज ॥ - प्रगट्यां पूरव नव कयां, पुण्य अमारां आज ॥२॥
अर्थ-हवे महाकाल राजा श्रीपाल कुंवरनी जुजाना बलनुं तेज देखी पोताना चित्तमा ४ चमत्कार पाम्यो श्रको हैयामां घणुंज हेज प्राणीने थावी रीतनी विनंति करे ॥१॥
RDCORDCROCACANCIENC+C0
For Personal and Private Use Only
Page #110
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥५३॥
SHRESEARSEARSANSAR
के हे महाराज ! मारा उपर महेरबानी करीने नगरमां आवी तमारा पगे करी मारा मंदिरने । ( पावन के०) पवित्र करो तो श्रमे पण तमारी कांश्क नक्ति करीए, अमे जे पूर्वला नवमां |पुण्य कस्यां हतां ते श्रमारां पुण्य आज प्रगट थयां, एटले उदय आव्यां के जेना योगथी| तमारां दर्शन थयां, एम अमे मानीए बीए ॥२॥
तुम सरिखा सुपुरुष तणां, अम दरशन उखन ॥ जिम मरुधरना लोकने, सुरतरु कुसुम सुरंन॥३॥वोलावा विण एकलो, चाली न शके दीन ॥धवल शेठ तव विनवे,श्णी परे यश् आधीन॥४॥प्रजुतुमने वंदे सहु,देखी पुण्यपडूर ॥ पण विलंब थाये घणो,रतनछीप दूर ॥॥ कुंवर कहे नररायर्नु,
दाखिण किम ठंडाय ॥ तिणे नयरी जोवानणी, कुंवर कीयो पसाय ॥६॥ अर्थ-केमके तमारा जेवा सुपुरुषनां दर्शन मलवां ते अमारा जेवा जाग्यहीन जनोने घणां दुर्लज बे. जेम मरुधर जे मारवाड देश, तेना रहेवासी लोकोने सुरतरु जे कल्पवृक्षा, तेनां (कुसुमार के) फूलनो सुरंज जे सुगंध, ते पामवो उर्लन होय बे. ए दृष्टांते जाणी लेवें ॥३॥ एवं बब्बरना राजानुं वचन सांजलीने जे वारे श्रीपाल कुंवरे ते वात मान्य करी (तव के०) ते वारे धवल शेठ (आधीन के ) कुंवरने वश थश्ने श्रावी रीतनी विनंति करेले के जेम (दीन के०)। रांक पुरुष होय ते वोलावा विना एकलो मार्गमा चाली शके नहीं, तेम तमारा श्राव्या विना अमाराथी पण अमारे घेर जवाय नहीं ॥४॥ माटे हे प्रजु ! तमारा पुण्यनो पर एटले समूह अर्थात् घणुं पुण्य देखीने सहु कोइ तमने वांजे , पण हवे श्रापणने रत्नहीपे जq , ते हांथी घणो पूर बे, माटे तेमां विलंब घणो थाय रे ॥५॥ ते सांजली कुंवर बोल्या के हे शेजी !| राजानुं दाक्षिण्यवचन केवी रीते बांड्युं जाय ? ते माटे नगरी जोवानो कुंवरे पसाय कर्यो ॥६॥
॥५३॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #111
--------------------------------------------------------------------------
________________
हाट सज्यां हीरागले, घर घर तोरण माल ॥ चहुटे चढ्टे चोकमां, नाटक गीत रसाल ॥ ७॥ फूल बिगयां फूटरां, पंथ करी बंटकाव ॥ गज तुरंग
शणगारीया, सोवन रूपे साव ॥७॥ अर्थ-राजाए पण नगरीनां हाट सर्व हीरागल एटले रेशमी वस्त्रे करी ( सज्यां के०) शण-18 गास्यां, घर घरने विषे तोरण माला बांधी, चौटा चौटाना चोकमां विविध प्रकारनां नाटक | कराव्यां, ( रसाल के) रसे करी सहित एवां घणां सुंदर गीतो गवराव्यां ॥७॥ राजमार्गमा ताजां फूटरां फूल बिबाव्यां, पंथ जे मार्ग तेमां पाणीनो बंटकाव कराव्यो, तथा सामैयुं करवाने घणा हाथी अने घोमाने ( साव के० ) मात्र एक सोना तथा रूपाना साजे करीने शणगास्या ॥७॥
॥ ढाल पांचमी ॥ राग सिंधूमो॥चित्रोमा राजा रे ॥ए देशी॥ विनति अवधारे रे, पुर मांदे पधारे रे, महोत वधारे बब्बर रायर्नु रे ॥ कुंवर वमन्नागी रे, देखी सोनागी रे, जोवा रढ लागी पग पग लोकने रे॥१॥ घर तेडी आव्या रे, साजन मन नाव्या रे, सोवन मंडाव्यां आसण बेसणां रे॥ मीगइ मेवा रे, पकवान्न कलेवा रे, नगति करे सेवा बब्बर बहु परे रे ॥२॥ अर्थ-हवे बब्बरकोटना महाकाल राजानुं महत्त्व वधारवामाटे तेनी विनंति अवधारीने ते पुर मांहे | पधास्या. ते कुंवर केवा ले ? तो के ( वमनागी के०) मोटा जाग्यना धणी बे. तेने सौजाग्यवंत देखीने लोकोने पगले पगले जोवानी ( रढ के० ) होंश एटले उत्कंठा लागी ॥१॥ एवी रीते मोटा उत्सव सहित महाकाल राजा पोताने घेर कुंवरने तेमी आव्या, ते सर्व सङानना मनमा ( नाव्या के०) गम्या. पनी कुंवरने बेसवाने माटे सोनानां आसन मंमाव्यां, तेनी जपर बेसामीने जमवा
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #112
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
माटे मीठगइ, मेवा तथा पक्वान्नने ( कलेवा के० ) केलवतो जोजन कराववानी सामग्री करतो हयो. खंत एम ( बहु परे के०) घणे प्रकारे बब्बरकोटनो राजा श्रीपाल कुंवरनी जक्ति सेवा करतो हवो ॥२॥
नोजन घृत गोल रे, जपर तंबोल रे, केसर रंगरोल करे वली गंटणां रे ॥ सवि साजन साखे रे, मुखे मधुरं नाखे रे, अंतर नवि राखे कांच प्रेममां रे॥३॥ दीए कन्यादान रे, देश् बहु मान रे, परणी अम वान वधारो वंशनो रे॥ तव कुंवर नाखे रे, कुल जाण्या पाखे रे, किम चित्तनी साखे दीजे दीकरी रे॥४॥ कदे नृप अवतंस रे, गनो नहीं हंस रे, जाण्यो तुम उत्तम वंश गुणे करी रे ॥ जाणे सहु कोइ रे, जे
नजरे जोइ रे, हीरो नवि दोइ विण वेरागरे रे ॥५॥ ___ अर्थ-हवे घृत गोलनां जोजन करावी उपर (तंबोल के०) पाननां बीमां श्रापी, पड़ी केसरना है रंगरोले करी गंटणां कस्यां, तिहां सर्व साजननी साखे करी मुखथी मधुरं एटले मीठी वाणी नाखतो थको राजा पोताना प्रेममां कांश पण अंतर न राखतां ॥३॥ बहु मान आपीने कन्या-12 दान देतो हवो, अने कदेतो हवो के आ कन्या परणीने अमारा वंश- (वान के०) तेज वधारो. ते सांजली कुंवर जाखता हवा के हे स्वामिन् ! हुँ परदेशी बुं, माटे मारुं कुल, शील जाएया || विना मात्र चित्तनी साखे करीनेज पोतानी दीकरी केम दीजीए ? एटले आपीए ? जे कार्य है। करीए ते विचारीने करीए तो रुडं देखाय ॥ यतः ॥ कुलं च शीलं च सनाथता च, विद्या च । वित्तं च वपुर्वयश्च ॥ वरे गुणाः सप्त विलोकनीया,-स्ततः परं नाग्यवशा हि कन्या ॥१॥ मूर्खनिर्धनपूरस्थ,-बहुनार्याशिवार्थिनां ॥ त्रिगुणाधिकवर्षाणां, चापि देया न कन्यका ॥२॥ कार्येषु । मंत्री गृहकर्मदासी, स्नेहेषु माता दमया धरित्री ॥ धर्मेषु धुर्या रमणेषु रंजा, स्मराम्यहं लक्ष्मण !
॥
४॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #113
--------------------------------------------------------------------------
________________
| जानकी गुणान् ॥ ३ ॥ इति स्त्रीगुणाः ॥ ४ ॥ ते सांजली राजा कहेवा लाग्यो के ( अवतंस के० ) सर्व पक्षीमां मुकुट समान एवं जे हंस पक्षी वे ते बानुं रहेज नहीं, तेम तमारां वंश, कुल, शील, ए सर्व तमारा उत्तम गुणे करीनेज मे जाणी लीधां. अथवा तमारो उत्तम वंश तमारा गुणे करीने जाणी लीधो, केमके जेणे नजरे जोयो होय ते तो जाणेज वे के ( विए वेरागरे के० ) खाए बिना हीरो होयज नहीं, माटे श्रमारी प्रार्थना तमे सफल करो ॥ ५ ॥
महोत्सव मंडावे रे, साजन सहु यावे रे, धवल गवरावे मंगल नरवरू रे ॥ रूपे जिसी मेना रे, गुणपार न जेना रे, मदनसेना परणावी इणी परेरे ॥ ६ ॥ मणि माणिक कोडी रे, मुगताफल जोडी रे, नरपति कर जोड़ी दीए दायजो रे ॥ परे परे पहिरावे रे, मणि भूषण नावे रे, पार न
जसगुण बोलतां रे ॥ ७ ॥ नाटक नव दीघां रे, तिदां पात्र प्रसिद्धां रे, जाणे ए लीधां मोले सरगथी रे ॥ बहु दासी दास रे, सेवक सुविलास रे, दीघां उल्लासे सेवा कारणे रे ॥ ८ ॥
- एम कही राजा महोत्सव मंगाव्यो. तिहां सहुए सऊन आव्यां, राजाए धवल मंगल गीत गवराव्यां, ने रूपे करी मेना अप्सरा सरखी, जेना गुणनो पार नथी एवी मदनसेना नामे पोतानी पुत्रीने ए रीते श्रीपाल साथै परणावी ॥ ६ ॥ मणि, रत्न तथा कोमी गमे माणिक, तेनी साथे मुगताफल जे मोती, तेने ( जोगी के० ) मेलावी ने नरपति जे 'राजा, ते हाथमेलाप मूकती वखते हाथ जोमीने दायजामां देतो हवो. वली जेना गुण बोलतां थका पार यावे नहीं एवां अनेक जातिनां मणिरत्नमय आभूषण ते जावे करीने ( परे परे के० ) वारंवार दाय| जामां पहेरावे बे ॥ ७ ॥ वली नव पेडां नाटकनां दायजामां श्राप्यां. ते पेमां केवां बे ? तो के ( तिहां
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #114
--------------------------------------------------------------------------
________________
* হo
खंग.
॥५५॥
ॐॐॐॐॐॐॐॐ*
5555
के० ) तेमां (पात्र के) गणिका प्रसिद्धपणे बे, एवां ते जाणीए ए स्वर्ग लोकमांधीज (मोले | के०) नाणां आपीने वेचातां लीधी होय नहीं ? एवां बे, तेमज (बहु के०) घणां दासी। दास प्रमुख सेवक लोक पण ( सुविलास के०) जला विलास सहित महाकाल राजाए सेवा | करवाने अर्थे श्राप्यां ॥७॥
रसन्नर दिन केता रे, तिहां रहे सुख वेता रे, दान याचकने देता बहु परे रे ॥ अमने वोलावो रे, दवे वार न लावो रे, कहे कुंवर जावो अम देशांतरे रे॥५॥ नृप मन उःख आणे रे, केम राखं पराणे रे, घर श्म जाणे न वसे प्राहुणे रे॥ पुत्री जे जा रे, ते नेट पराइ रे, करे सजाइ हवे वोलाववा रे॥१०॥ एक जुंग अलंन रे, जे देखी अचंन रे, चोस कुआ थंने सुंदर सोदतुं रे॥ कारीगरे घडीया रे, मणि माणिक जडीया रे, थंन
ते अडीया जश् गयणांगणे रे॥११॥ अर्थ-एम केटलाएक दिवस (रसनर के०) आनंदजर सुखने जोगवता थका याचक जनने 31 घणा प्रकारे दान देतां थका तिहां श्रीपाल कुंवर रह्या. पनी कुंवर कहेवा लाग्या के अमने देशां-14 तरे जq बे, माटे वोलाववाने हवे वार लगामो नहीं ॥ ए ॥ एवां कुंवरनां वचन सांजच्याथी राजाए पोताना मनमां घणुं सुख श्राण्यु, अने विचाखु जे हवे हुँ एने पराणे केम राखुं ?? राजाए एम जाएयु जे प्राहुणे कां घर वसे नहीं. वली पुत्री जे जाइ ते तो (नेट के०) निश्चे पारकीज थाय, एवो विचार करीने हवे वोलाववानी सजा करवा तत्पर थयो। चोपा३॥ आश|8In५॥ गश ने जीत जाजरी, बेटी धन जोजन बाजरी ॥ गर त्रेह ने स्त्रीनो नेह, वहेलो देव देखावे बेह ॥ १॥ दोहा ॥ शज केरो आफरो, दासी केरो नेह ॥ धाबल केरुं परj, धबकी दिखावे ह॥२॥
Sain Education
mational
For Personal and Private Use Only
Page #115
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ इति ॥ १० ॥ हवे जेने देखता थका अचंबो थाय एवं एक अलंज एटले अद्वितीय मुंगीली वहाण अथवा जुंग जातिनुं वहाण, ते सुंदर चोस कुथा यंने करी शोजतुं , ते थंजने कारी-11 गर लोकोए घड्या ने, अने मणि तथा माणके करी जड्या बे, एवा कुआ थंज ने तेजश्ने (गय-II णांगण के०) श्राकाशने विषे अड्या ने एटला उंचा देखाय ॥११॥
सोवन चित्राम रे, चित्रित अनिराम रे, देखीए गम गम तिहां गोखमा रे॥ धज महोटा छलके रे, मणि तोरण चलके रे, चंचल ढलके चामर चिहुं दिशे रे॥१२॥सातमीए रे, तिहां चढी विशमीए रे, बेसीने रमीए सोवन सोगरे रे॥ बहु दे गजे रे, वाजां घणां वाजे रे, वादण गाजे रघु समुज्मां रे॥ १३ ॥ पूरे ते रतने रे, राजा बहु जतने रे, सासरवासो मन महोटे करे रे॥ वोलावी बेटी रे, हियडा नरि नेटी रे,
शीख गुण पेटी दीधी बहु परे रे ॥१४॥ अर्थ-वली ते वदाणमां सोनाना चित्रामणे चित्रित करेला अनिराम एटले मनोहर एवा गोंखडा ते तिहां गम गमने विषे देखीए एटले देखाय , वली कुत्रा थंजनी उपरे मोटी ध्वजा तथा नेजा फलकी रह्यां , अने मणिनां तोरण बांधेलां ने ते चलकाट करी रह्यां , वली है। (चंचल के०) हालतां एवां चामरो ते चारे दिशाए ढलकी रह्यां ॥ १२ ॥ वली ते वहाणनी सातमी नूमि जिहां बे, तिहां चढीने विश्राम पामीए अने तिहां बेसीने सोनाने सोगरे (रमीए के०) रमत करीए, एवी रमणिक . एम ते वहाण घणा (बंदे के०) कारणे करी गजे , शोने , वली तेमां घणा प्रकारनां वाजिन वाजी रह्यां बे, तेना शब्दश्री ते वहाण समुनमा रह्यु थकुं पण गाजी रथु बे, गर्जारव करी रह्यं ॥१३॥ ते वहाण राजा बहु यत्ने करीने रत्नोथी
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #116
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम ( पूरे के० ) जरे , सासरवासो मोटे मने करीने राजा करे बे. वली हैयमाजर नेटीने खंग.
बेटीने वलावी ते वखते राजाए (बहु परे के०) घणा प्रकारनी शिखामणरूप गुणनी पेटी ॥५६॥
जरीने पोतानी पुत्रीने आपी ॥ १४ ॥
साजन सोदाव्यां रे, मिलणां बह खाव्यां रे, कांग्रे सवि आव्यां आंसु पाडतां रे॥ वर वदवोलाव्यां रे, मावितर उख पाव्यां रे, तूर वजडाव्यां दवे प्रयाणनां रे ॥ १५॥ नांगर उपडाव्यां रे, सढ दोर चढाव्यां रे, वादण चलाव्यां वेगे खलासीए रे॥ नित नाटक थावे रे, गुणिजन गुण गावे रे, वर वढू सोदावे बेहु गोंखडे रे॥१६॥ मन चिंते शेठ रे, में कीधी वेठ रे, सायर फल्यो जु एदने रे॥ जे खाली दाथे रे, आव्यो मुज
साथे रे, आज ते आथे संपूरण थयो रे॥१७॥ 8 अर्थ-वली घणा प्रकारनां मिलणां जे सुखडी प्रमुख तेने लावतां एवां सर्व सजान पण तिहां
सोहाव्यां, शोजतां थकां समुज्ने कांठे अांखमांथी आंसु पाडतां आव्यां, अने वर वढू ने वलाव्यां | ते वारे कन्यानां मावितर घणुं फुःख पामता हवा. हवे श्रीपाले पण प्रयाण करवानां (तूर के) वाजां वजडाव्यां ॥ १५ ॥ ते वारे वहाणनां नांगर उपाड्यां, अने सढनां दोरमां जंचां चढाव्यां, खलासी लोकोए ( वेगे के०) उतावले वहाणोने समुजमा आगल चलाव्यां. तिहां श्रीपालनी पासे नित्य नाटक थाय , अने गुणिजन लोक जे जे ते श्रीपालना गुण गाय के. एम वर अने ॥५६॥ है वह बेहु जणां गोंखने विषे बेगं थकां ( सोहावे के०) शोने ने ॥ १६॥ हवे मणि, रत्न अने
सुवर्णे करी परिपूर्ण जरेलुं एवं वहाण जोश्ने धवल शेव पोताना हृदयमां चिंतववा लाग्यो के है
COCCACANCECAUSAMMOHAMMACRORAM
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #117
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुङ तो खरा ! था ते शुं थ गयुं ! में तो फोकट वेज कीधी, अने था समुनो व्यापार तो (वेठ के०) प्रथमथीज (एहने के०) ए श्रीपालनेज फलीत थयो . अरे ! जे खाली हाथे मारी साथे थाव्यो हतो, जेनी पासे एक पैसो पण न हतो, श्रने मारा सेवक जेवो हतो ते थाजे तो (श्राथे के०) लक्ष्मीए करीने संपूर्ण एटले परिपूर्ण थयो ! ॥ १७ ॥
जल इंधण माटे रे, आव्या इण वाटे रे, परण्यो रण साटे जुर्व सुंदरी रे॥ लखमी मुज आधी रे, इणे मुहियां लाधी रे, दोलत वाधी देखो पलकमां रे॥१७ ॥ किम मागुं नाडुं रे, खतपत्र देखाडु रे, देशे के
आफु अवढं बोलशे रे ॥ कुंवर ते जाणी रे, मुख मीठी वाणी रे, नाडु तस आणी आपे दशगणुं रे॥१॥पाम्या अनुकरमे रे, नरलव जिनधरमे रे, वाहण रयणदीवे खेमे सहु रे॥ नांगर जल मेल्यां रे, सढ दोर
संकेल्या रे, हलवे हलवे लोक सहु तिहां उतस्यां रे॥२०॥ अर्थ-जुर्म के मात्र पाणी अने लाकमां लेवा माटे सेजसाज था बब्बरकोटनी वाटे अमे आव्या, तिहां रणसंग्रामनी साटे था सुंदरी पण ए परण्यो, वली मारी लक्ष्मी पण अडधो अमध मुहियां एटले सहेजमा एणे (लाधी के०) पामी. श्रारीते जुर्म के एक पल वारमा एने केटली दोलत वधी पनी ? ॥ १७॥ अने हवे तो ए जोरावर थयो , माटे मारुं एक महीनानुं नाडं एनी उपर चढी गये , ते पण शी रीते मारे ? मारी पासे का खतपत्र तो नथी, जे एने जश् देखाईं. शुं जाणीए नाडुं श्रापशे ? किंवा नहीं आपवा माटे आडं अवलु बोलशे तो माराधी शुं थवानुं । ने ? एम चिंतवी श्रीपाल पासे जश्ने गया महीनानुं नाउँ मागवा लाग्यो, ते वारे कुंवर पण तेना मननी वात जाणीने मुखथी मीठी वाणीए बोलतो थको चडेला नामाथी दशगणुं नाडं आणीने 3
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #118
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम शेठने आपे ॥ १५ ॥ जेम श्रीजिनधर्मना पसाय थकी (नरसव के०) मनुष्यनो नव पामीए, खम.२
तेम अनुक्रमे ते वहाण पण सर्व रत्नछीपे आवी खेम कुशले पहोतां, ते वारे वहाणोनां नांगर ॥५ ॥
पाणीमां मूक्यां, सढ तथा दोर सर्वे संकेली लीधा, अने हलवे हलवे सर्व लोक वहाणमांथी शतिहां कांठे श्रावी उतस्यां ॥ २० ॥
बीजे इम खंभे रे, जुई पुण्य अखंडे रे, एकण पिमे उपार्जन करी रे॥कुंवर
श्रीपाल रे, वह्या नोग रसाल रे, पांचमी ढाल इसी विनये कही रे॥२१॥ अर्थ-एम बीजा खंमने विषे जुन के जेना पुण्यमां का खंडना थइ नथी एवा अखंड पुण्ये करीने ( एकण पिंडे के०) एकलाज श्रीपाल कुंवरे पोते लक्ष्मीने ( उपार्जन करी के०) पेदा करीने ( रसाल के ) महा मनोहर एवा नोग (लह्या के०) पाम्या. एवी पांचमी ढाल श्रीविनयविजय उपाध्यायजीए कही ॥१॥
॥दोहा॥ दाण वलावी वस्तुनां, नरी अनेक वखार ॥ व्यापारी व्यापारना, उद्यम करे अपार ॥१॥ लाल किनायत जरकसी, चंदरुआ चोसाल ॥जंचा
तंबु ताणीया, पंचरंग पटशाल ॥२॥ अर्थ-हवे वहाण मांहेली सर्व वस्तु उतारी तेनां दाण (वलावी के०) आपीने अनेक | वखारो नरी. जे व्यापारी ने ते ( अपार के० ) पार विनाना अनेक व्यापार संबंधी उद्यम कस्या
करे ॥ १॥ श्रीपाले समुज्ने किनारे आवीने पंचरंगी ( पटशाल के ) रेशमी वस्त्र तेना जंचा||॥ ५७ आतंबु ताणीने बांध्या, ते मांहे (जरकसी के ) जरीना बुटावाला एवा लाल किनायत एटले लाल किनखाप तेना चोसाल चंदुआ बांध्या ॥२॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #119
--------------------------------------------------------------------------
________________
सोवन पट मंझप तले, रयणहिंडोला खाट ॥तिहां बेग कुंवर जुवे, रसन्नर नवरस नाट ॥ ३ ॥ धवल शेठ आवी कहे, वस्तु मूल्य बहु आज ॥ ते वेचावो का नहीं, नयां अढीसें ऊहाज ॥ ४॥ कुंवर पनणे शेग्ने, घडो वस्तुनां दाम ॥ अवर वस्तु विणजो वली, करो अमाझं काम ॥५॥ काम नलाव्युं अम नले, दो उष्ट किराड ॥ आरत ध्याने जिम
पड्यो, पामी उध बिलाड ॥६॥ अर्थ-ते (पट के० ) वस्त्रना मंझपने तलीये रत्ने जमाव एवी सोनानी हिंमोलाखाट बांधी. तिहां बेसीने श्रीपाल कुंवर ( रसजर के०) रसना समूहवाईं एवं नवरसमय नाटक थाय , ते जुवे ॥३॥ एवामां धवल शेठ आवी कहेवा लाग्यो के हे कुंवर ! वस्तुनुं मूल्य आजे बहु थाकलं , माटे घणो लान थाय बे, तेश्री तमारां अढीसें जहाज नयां , तेनां करियाणां । तमे केम वेचावता नथी ? ॥ ४॥ ते सांजली कुंवर शेठने कहे जे के हे पिताजी ! अमारी में वस्तुउँनां दाम तमेज (घमो के०) उपजावो. वली (अवर के० ) बीजी जे वस्तु देवा योग्य होय ते ( विणजो के ) लेजो. एटलु अमाझं काम तमे करो. अमारे तमारे कांश जुदा नथी॥५॥ ते सांजलीने शेठे विचास्युं जे जले (श्रम के० )अमने एणे काम (जलाव्युं के० ) सोंप्यु. ए रीते | पुष्ट बुझिनो धणी शेठ ते जेम वनमां ( किराम के) जिल्ल होय, तेम इहां पापरूप वनमा । किराम एटले वाणीयो समजवो, माटे ते पुष्ट वाणीयो पोताना हैयामां हरख पाम्यो थको जेम बिलाडो ऽध पामीने बात ध्यानमां पडे, तेम शेठ पण आर्त ध्यानमा पनी गयो, अने चिंतववा लाग्यो के हवे ठीक थयु. जेम मारी मरजीमां आवशे तेम हुं करीश, जे सारो माल हशे | ते मारा मालनी साथे मेलवीश, अने हलको उतरतो माल हशे ते एनो करी वेची नाखीश. हुँ ।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #120
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग. ५
श्री रामारा जाणवा प्रमाणे करीश, केमके खेवा वेचवानी खबर तो अमने वाणीयानेज होय, एने शी
खबर बे? ए एमां शुं समजे ले ? यमुक्तं ॥ वृश्चिकानां कंटकानां, उर्जनानां च वेधसां ॥ विजज्य ॥५ ॥
नियतं न्यस्तं, विषं पुढे मुखे हृदि ॥१॥ वणिजा चोदरस्थेन, मातुर्मासं न जदयते ॥ न तत्र करु-३ णादेतु,-स्तत्र हेतुरदंतता ॥२॥ दोहा ॥ लेतां डंसे देतां डंसे, उपर चमावे पाड ॥ वैरी विसहरने वीससे, पण म वीससे किराम ॥ ३॥ इति ॥ ६॥
इण अवसर आव्यो तिहां, अवल एक असवार ॥ सुगुण सुरूप सुवेष जस, आप समो परिवार ॥॥ कुंवरे तेडी आदरे, बेसास्यो निज पास ॥ अनुत नाटक देखतां, ते पाम्यो उल्लास ॥ ॥ दवे नाटक पूरे थये, कुंवर
पूछे तास ॥ कुण कारण कुण गमथी, पान धास्या अम पास ॥ए ॥ 21 अर्थ-एवा अवसरने विषे तिहां एक (अवल के०) नत्तम एवो घोडेस्वार ते कुंवरना तंबुने दरवाजे |
श्राव्यो, ( जस के० ) जेना सुगुण एटले रुडा गुण बे, रुडं खरूप वे अने नलो वेष . ते जेवो पोते ने तेवोज तेनो परिवार पण वे ॥ ७॥ ते तिहां नाटक जोतो उन्नो दे, तेने कुंवरे श्रादर सहित तेमीने पोतानी पासे बेसाड्यो. ते पण अनुत आश्चर्यकारक नाटक जोश्ने उल्लास पाम्यो । ॥ ॥ हवे नाटक पूर्ण थया पड़ी तेने कुंवरे पूवा मांड्यु के शा कारण माटे अने कया स्थान-| कथी तमे अमारी पासे पधास्या हो ? तथा को आश्चर्य दी होय तो ते थमने कही संजलावो॥ए॥
॥ ढाल उही ॥ कांकरिया मुनिवर, धन धन तुम अवतार ॥ ए देशी ॥ तेद पुरुष हवे विनवे जी, रतन ए छीप सुरंग ॥ रतनसानु पर्वत इहां जी, वलयाकार उत्तंग ॥१॥प्रनु चित्त धरीने अवधारो मुज वात ॥ ए आंकणी॥
॥५
॥
2625
in Education international
For Personal and Private Use Only
Page #121
--------------------------------------------------------------------------
________________
| अर्थ-हवे ते पुरुष श्रीपाल कुंवरने विनवे डे के हे महाराज ! था ( सुरंग के०) सुशोनित | एवो रत्न नामे छीप बे, शहां रत्नसानु नामे पर्वत , ते केवो ? तो के (वलयाकार के०) गोला-15 कारे , वली (उत्तंग के० ) जंचो बे. हे प्रजु ! था हुँ जे वात कहुं हुं ते मारी वात तमे चित्तमां धरीने एकाग्र चित्ते (अवधारो के० ) धारण करो ॥ १॥
रतनसंचया तिहां वसे जी, नयरी परवत मांद॥ कनककेतु राजा तिहां जी, विद्याधर नरनाद ॥ प्रनु०॥॥रतन जिसी रलियामणी जी, रतनमाला तस नार॥सुरसुंदर सोहामणा जी, नंदन ने तस चार ॥ प्रनु०॥३॥ ते जपर एक श्बतां जी, पुत्री हुश्गुणधाम ॥रूप कला रति आगली जी, मदनमंजूषा नाम॥प्रनु०॥४॥पर्वत शिर सोदामणो.जी,तिहां एक जिन
प्रासाद ॥ रायपिताए करावीयो जी, मेरुशुं मंडे वाद ॥प्रनु० ॥ ५॥ अर्थ-तिहां ते पर्वत मांहे रत्नसंचया नामे नगरी वसे बे, तिहां कनककेतु नामे राजा राज्य है करे , ते विद्याधर राजानो ( नरनाह के ) स्वामी ॥२॥ ते राजाने रत्न जेवी रलियामणी12 | रत्नमाला नामे पट्टराणी , तेने ( सुरसुंदर के०) देवताना पुत्रनी परे सुंदर सोहामणा एवा चार 3 पुत्र . तेनां नाम कहे जे. एक कनकप्रन, वीजो कनकशेखर, त्रीजो कनकध्वज अने चोथो| कनकरुचि. ए चारेनां नाम श्रीपाल चरित्रमा लख्यां ॥३॥ ते चार पुत्रनी उपरे श्वतां थका रूप, कला अने रतिए करी (आगली के० ) वधे एवी जोवा योग्य अने गुणनुं (धाम के०) स्थानकरूप एक पुत्री थ. तेनुं मदनमंजूषा एवं नाम ॥४॥ हवे ए पर्वतना (शिर के 13 शिखर उपर मस्तकरूप घणोज सोहामणो शोजितो मननो हरनार अने राजाना पितानो करा
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #122
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री
खंम. ५
॥एए॥
एवो रत्नमय एक श्रीजिनप्रासाद . ते एटलो तो लंचो वे के मेरु पर्वतथी पण वाद करवाने मंकी जाय एवो ॥५॥
सोवनमय सोदामणा जी, तिहां रिसदेसर देव ॥ कनककेतु राजा तिहां जी, अनिशि सारे सेव ॥प्रनु०॥६॥ नक्ते नली पूजा करे जी, राजकुंवरीत्रण काल ॥ अगर नखेवे गुण स्तवे जी, गाये गीत रसाल ॥ प्रन्नु०॥७॥ एक दिन जिन आंगी रची जी, कुंवरीए अति चंग ॥ कनकपत्र करी कोरणी जी, विच विच रतन सुरंग ॥ प्रनु०॥ ॥आव्यो राय जुदारवा जी, देखे सुता विज्ञान ॥ मन चिंते धन मुज धुश्रा जी, चनसठ कलानिधान । प्रन॥॥ए सरिखो जो वरमले जी, तो मुज
मनसुख थाय॥साची सोवन मुमीजी,काच तिहां न जडाय॥प्रनु॥१॥ अर्थ-तिहां ते प्रासादने विषे सोहामणा शोनिता मनने हरण करनारा एवा (श्रीरिसदेसर देव के) श्रीषनदेवजी, तेनी रत्न जमित सोनामय प्रतिमानी स्थापना , तेनी कनककेतु नामे 8 राजा रात्रि दिवस सेवा करे ॥६॥ तथा ते राजानी कुंवरी जे मदनमंजूषा ते पण विशेष करी प्रनात, मध्याह्न अने संध्या मलीत्रणे काले नली जक्तिए करी अष्टप्रकारी प्रजा करे , तथा अगर उखेवे ने, रसाल एटले सुंदर गीत गाइने प्रजुना गुणनी स्तवना करे ॥ ७॥ एक दिवसे ते कुंवरीए परिवार सहित तिहां श्रावीने अत्यंत (चंग के०) मनोहर एवी श्रीजिन-18 राजनी अांगी रची. तेणे (कनक के ) सोनानां पत्रां ले तेमां कोरणी करीने तेनी वचवचमां
पां. तेणे करीसरंग एटखेसारा रंगे शोजित कस्यां. एवीरीते घणी विस्तारित विधिपूर्वक आंगीनी रचना करीने नाव सहित देववंदन करे ॥ ॥ ते आंगी जुहारवाने माटे
CALCOMCALCULARGONCCORRECORCAMADOL
॥५
॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #123
--------------------------------------------------------------------------
________________
कनककेतु राजा तिहां आव्यो. ते पोतानी पुत्रीने पूजा करती देखी तेणे करेली श्रांगी रचना संबंधी । चतुराइने देखीने पती तेनु ( विज्ञान के) ज्ञान जाणी मनमां चिंतवना करवा लाग्यो के धन्य ने मारी (धुश्रा के०) पुत्रीने ! ए पुत्री तो चोसठ कलानुं ( निधान के०) घर . एणे आज थआश्चर्यकारी, अपूर्व एवी पोतानी चतुराइ देखामी ने ॥ ए॥ माटे जेवी ए चतुर तेवो एने एना सरखोज जो वर मली जाय तो मारा मनमां घणुं सुख थाय, केमके जे साची सोनानी र मुडिका होय तेमांकाच जमाय नहीं. परंतु हीरा, माणेक, पानां जमाय, तोज ते शोजाने पामे॥१०॥
एम नन्नो शूने मने जी, चिंतातुर नृप होय ॥ण अवसरे अचरिज थयुं जी, ते सुणजो सह कोय॥प्रजु०॥११॥सरती पाने पगे जी, जिनमुख जोती सार ॥आवी गनारा बाहिरे जी, जव ते राजकुमारी ॥ प्रजु० ॥१२॥ताम गन्नारा तेहनां जी, देवाणां दोय बार ॥ हलाव्यां हाले नहीं जी, सलके नहीं लगार ॥ प्रनु०॥ १३ ॥ राजकुंवरी इम चिंतवे जी, मन आणी विषवाद ॥ में कीधी आशातना जी, कोश्क
धरी प्रमाद॥प्रनु०॥१४॥ अर्थ-एम कन्याना नारनी चिंता चिंतवतो चिंतातुर थयो थको राजा शून्य मने उन्नो .2 एवा समयने विषे एक श्राश्चर्य थयु, ते सहु को सांजलो ॥११॥ ते राजकुंवरी जिनराजनी पूजा करी, त्रण वार प्रणाम करी पाने पगे सरती, प्रधान श्रीजिनराजनुं मुख जोती थकी जे वारे ते 8 गनाराथी बहार आवी ॥ १२ ॥ ते वारे ते गजारानां बेहु वारणां देवाणां एटले बंध थर गया, |एवां जमा गयां के कोइ बलवंत पुरुष जो तेने हलावे, तोपण तेना हलाव्यां हाले नहीं, लगार मात्र (सलके के०) चसके नहीं ॥ १३ ॥ तेजो राजकुंवरी पोताना मनमां घणोज विषवाद
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #124
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राणालावीने एम चिंतववा लागी के में कोश्क प्रमाद धरीने प्रजुनी श्राशातना कीधी ने ॥ १४ ॥ खंग.
धिक मुज जिन जोवा तणो जी, उपनो एद अंतराय ॥ दोष सयल मुज ॥६०॥
सांसदो जी, स्वामी करी सुपसाय ॥ प्रनु० ॥१५॥दादा दरिसण दीजीए जी, ए उःख में न खमाय ॥ गेरु दोय कुरु जी, द न दाखे माय ॥ प्रनु० ॥१६॥ राय कदे वत्स सनिलो जी, दोष नहीं तुज एह ॥ दोष इहां के माहरो जी, आणी तुज पर नेह ॥ प्रनु० ॥ १७॥ वरनी चिंता चिंतवी जी, जिणहर मांदि जेण॥ ते लागी आशातना जी, बार देवाणां तेण ॥ प्रनु० ॥ १७ ॥ जिनवर तो रुषे नहीं जी, वीतराग सुप्रसि ॥ पण कोश्क अधिष्ठायके जी, ए मुज शिदा दीध ॥ प्रनु० ॥१५॥ अर्थ-माटे मारे जिनराजना मुख जोवापणाने धिक्कार बे के जे थकी ए अंतराय उपन्यो. एम पोताने निंदती थकी घणो पश्चात्ताप करती प्रजुने विनंति करे ले के हे स्वामिन् ! हुं मंदनागिणी बु.2 मारा उपर सुपसाय करीने जे में मध्य गनारामां दोष आचस्या होय, ते सर्व दोष मुजने ( सांसहो। के०) माफ करो ॥ १५ ॥ हे दादाजी ! तमे मुज पुण्यहीन दीनने दर्शन आपो. ए कुःख तो माराथी खमातुं नथी. कदापि गेरु तो कुगेरु होय, तोपण मातपिता तेने नेह देखाडे नहीं ॥ १६॥ एवी रीते ते पुत्रीने रोती थकी देखीने राजा कहे ले के हे वत्से ! तुं मारी वात सांजल के ए तारो दोष नथी, पण इहां तो मारो दोष बे, जे में तारा उपर स्नेह आणीने ॥ १७ ॥ श्रीजिनेश्वरना घर माहे तारा वरनी चिंता चिंतवी तेनी आशातना लागी, तेथी बारणां|singan देवाणां ने ॥ १७ ॥ तो हे पुत्री ! श्रीजिनवर तो निरागी सुप्रसिद्धपणे वीतराग , ते तो कोश्नी उपर रुषे नहीं, पण कोइएक अधिष्ठायिक देवताए ए मुजने शिदा दीधी ॥ १५ ॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #125
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
-
ए कमाम विण उघडे जी, जालं नहीं आवास ॥ सपरिवार नृपने तिहां जी,त्रण हुआ नपवास ॥प्रजु०॥२०॥त्रीजे दिन निशि पाबली जी, वाणी हुई आकाश ॥ दोष नथी इहां कोइनो जी, कांइ करो रे विषाद ॥ प्रनु०॥२१॥ जेहनी नजरे देखतां जी, उघडशे ए बार ॥ मदनमंजूषा तणो थशे जी, तेहज नर नरतार ॥प्रनु० ॥२२॥ वनदेवनी किंकरी जी, हं चक्केसरी देवी॥ एक मास मांदे हवे जी,आकुं वरने लेवी ॥प्रनु० ॥ २३ ॥ सुणी तेह हरख्यां सह जी, रायने अति आणंद ॥ प्रेमे कीधां पारणां जी, दूर गयां सुख दंद॥ प्रनु० ॥२४॥ दिन गणतां ते मासमां जी, उगे ले दिन एक ॥ तिणे जुवे सह वाटडी जी, विकल्प करे अनेक ॥ प्रनु ॥२५॥ अर्थ-ते माटे हवे ए कमाम उघड्या विना मारे ( आवास के ) घेर जq नहीं. एम कही। राजा परिवार सहित तिहां देरासरमा रह्यो, तेने त्रण उपवास थ गया ॥ २० ॥ पनी त्रीजा दिवसनी पाठली रात्रिए आकाशने विषे एवी वाणी थर के हे लोको ! श्हां कोश्नो दोष नश्री, माटे तमे विषाद शा वास्ते करो बो ? ॥२१॥श्रा गनारानां बारणां जे देवाश् गयां , तेनुं कारण एटर्बु जबे के जे पुरुषनी नजरे देखतां वारमा श्रा वारणां उघमी पडशे, तेज नर ए । मदनमंजूषा कुंवरीनो नर्तार थशे ॥ २५ ॥ हुं श्रीषनदेव स्वामीनी किंकरी एटले दासी चक्केसरी नामे देवी . हवे हुँ एक महीनामां वरने लश्ने आबुं बुं ॥ २३ ॥एवी देवीनी वाणी सांजलीने 8 सहु को हर्षवंत थयां अने राजाने पण अत्यंत आनंद उपन्यो. ते वारे प्रेमे करी पारणां कीधां,
CANCERSARGAC-9-
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
brary.org
Page #126
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥ ६१ ॥
सर्वना दुःखना ( दंद के० ) ढगला दूर गया ॥ २४ ॥ तिहांथी दिवस गणतां हवे एक महीनामां बाकी एक दिवस उंबो बे, ते माटे सहु कोइ वाटमी जोइ बेगं बे, अने अनेक प्रकारना विकल्प कस्या करे बे ॥ २५ ॥
पुत्र शेठ जिनदेवनो जी, हुं श्रावक जिनदास ॥ प्रवहण प्राव्यां सांजली जी, व्यो इहां उल्लास || प्रभु ॥ २६ ॥ सुखी नाद नाटक तणो जी, देखायो जाम ॥ मनमोदन प्रभु तुम तणुं जी, दरिसण दीव्रं ताम ॥ प्रभु ॥ २७ ॥ जाणुं देवी चक्केसरी जी, तुमे आया अम पास ॥ जिाहर बार उघडतां जी, फलशे सहुनी आाश ॥ प्रभु ॥ २८ ॥ पूज्य पधारो देहरे जी, जुहारो श्री जगदीश | उघडशे ते बारणां जी, जाणुं विसवावी ॥ प्रभु ॥ २० ॥ बीजे खंडे एली परे जी, सुणतांबछी ढाल ॥ विनय कहे श्रोताघरे जी, होजो मंगलमाल ॥ प्रभु० ॥ ३० ॥
॥
अर्थ- वली हुं एज नगरनो रहेवासी जिनदेव नामे शेवनो पुत्र जिनदास नामे श्रावक बुं. ते आजे प्रवहण श्राव्यां सांजलीने उल्लासची इहां तमारी पासे पट आवासमां श्राव्यो बुं ॥ २६ ॥ इहां नाटक यतुं हतुं तेनो ( नाद के० ) शब्द सांजलीने ( जाम के० ) जेहवे हुं देखवा आव्यो (ताम के० ) तेहवेज हे मनमोहन प्रभु ! में तमारुं दर्शन दीव्रं ॥ २७ ॥ पण हुं जाएं बुं जे श्रीचक्केसरी देवीए गजारा उघामवा सारु तमनेज अमारी पासे आया बे, माटे श्रीजिनघरनां वारणां उघाडतां थका सहुनी आशा फलशे ॥ २८ ॥ तो हे पूज्यजी ! तमे देराने विषे पधारो, ने श्रीजगदीश जे जगतना ईश्वर तेने ( जुहारो के० ) प्रणाम करो. हुं वीरो विश्वा जाएं तुं जे तमारी नजरे देखतां ते वारणां अवश्य उघडशे. तेनी साथे अमारां पुण्य पण उधमशे ॥ २५ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग. २
॥ ६१ ॥
Page #127
--------------------------------------------------------------------------
________________
-
बीजा खमने विषे ए रीते बही ढाल कही. ते सांजलतां थका श्रीविनयविजयजी उपाध्यायजी181 कहे के श्रोताजनोना धरने विषे मांगलिकनी माला होजो ॥ ३० ॥
॥दोहा॥ तव दरखे कुंवर नणे, धवल शेग्ने तेडी ॥ जइए देव जुदारवा, आवो जुर्मति फेडी॥१॥ शेठ कहे जिनवर नमो, नवरा तुमे निचिंत ॥ विण उपराजे जेहनी, पहोंचे मननी खंत ॥२॥ अमने जमवानो नहीं, घमी एक परवार ॥ सीरामण वालु जिमण, करीए एकज वार ॥ ३ ॥ हवे कुंवर जावा तिहां, जब थाये असवार ॥ दरख्यो देषारव करे, तेजी ताम तुखार ॥ ४॥ साथ लेइ जिनदासने, अवल अवर परिवार ॥ अनुक्रमे
आव्या कुंवर, ऋषनदेव दरबार ॥५॥ अर्थ-ए व्यतिकर सांजल्यो, ते वारे श्रीपाल कुंवर धवल शेग्ने तेमीने हर्षे करी कहे जे के हे शेवजी ! हे पिताजी ! तमे धर्मति जे मागी मति तेने फेमीने मारी साथे श्रावो, तो देवी जहारवा जश्ए ॥ १॥ ते सांजली शेठ कहेवा लाग्यो के तमे निरंतर कामकाज कस्या विना । नवरा बेग बो. वली विण उपराजे एटले उपार्जन कस्या विना पोतानी मेले लक्ष्मी मलती जाय , |तमारा मननी खंत पूर्ण थाय , माटे तमे निश्चिंत गे, तेथी तमे सुखे श्रीजिनवरने (नमो के०) नमस्कार करो ॥२॥ अमने तो व्यापारनां कामकाज करवामांथी जमवाने माटे एक घमी वार । पण परवारी शकीए तेम बनतुं नथी, तेथी सीरामण, वालु अने जमण, ए त्रणे एकज वार | करीए बीए ॥३॥ हवे जे वारे श्रीपाल कुंवर तिहां जवाने माटे घोमा उपर स्वार श्रया, (ताम | के०) ते वखते ( तेजी के०) को दिवस चाबुक मारवो न पडे एवी जातिनो ( तुखार के)
Jan Education International
For Personal and Private Use Only
Page #128
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण MIघोडो ते हर्ष पामतो उतो (हेषारव के० ) हणहणाट' शब्द करे बे. अर्थात् ते घोमो पोताना खंझ.२
दणदणाट शब्दे करी कुंवरने सारां शकुन आपे ॥४॥ पठी धवल शेठने तिहांज मूकी जिन॥६ ॥
दास शेग्ने साथे लइ तथा (अवर के० ) वीजो पण जे (श्रवल के ) सुंदर परिवार, तेणे करी सहित कुंवर तिहाथी चाल्या. ते अनुक्रमे श्रीषनदेव स्वामीना दरवार पासे आव्या ॥५॥
एकेको आवो जर, सहु गनारा पास ॥ कुंवर पठी पधारशे, श्म बोले जिनदास ॥ ६॥ जिम निर्णय करी जाणीए, बार उघाडणदार ॥ गनारे
आव्या जइ, सहुको करे जुहार॥७॥ दवे कुंवर करी धोतीयां, मुख बांधी
मुखकोश ॥ जिणहर मां संचरे, मन आणी संतोष ॥७॥ .. अर्थ-तिहां जिनदास शेव एम बोल्या के प्रथम सर्व श्रीसंघ मांहेलो एकेको पुरुष थश्ने प्रजुना गजारा पासे जश् आवो अने श्रीपाल कुंवर पठी पधारशे ॥६॥ जे थकी वारणांना उघामनार पुरुषने निश्चे करी जाणी लश्ए. एवं सांजली सर्व को गनारा पासे ज जश्ने प्रजुने जुहार 81 करता आव्या ॥७॥ हवे श्रीपाल कुंवर पण शुरु धोतीयां करी पहेरीने मुखे मुखकोश वांधी मनमां हर्षवंत थको संतोष श्राणीने श्रीजिनेश्वरना घरने विषे संचस्यो ॥ ७॥
॥ ढाल सातमी ॥ राग मटहार ॥ बेबे मुनिवर विहरण पांगयां जी ॥ ए देशी॥ कुंवर गन्नारो नजरे देखता जी, बेहु उघडीयां बार रे॥ देव कुसुम वरपे तिहां जी, हुवा जयजयकार रे ॥ कुंवर ॥२॥ रायने गई तुरत वधामणी जी, आज सफल सुविहाण रे॥ देवी दीयो वर इहां आवीयो जी, तेजे
फलामल नाण रे ॥ कुंवर॥३॥ अर्थ-तिहां श्रीपाल कुंवरे पोतानी नजरे गनारो देखतां थकाज तरत ते गजारानां बेहु वारणां
mataram
in Education
International
For Personal and Private Use Only
Page #129
--------------------------------------------------------------------------
________________
उधमी पड्यां, ते वारे देवोए कुसुमनी वृष्टि करी, श्रने ते वखते जयजयकार शब्द थयो ॥१॥ राजाने पण तुरत वधामणी गश् के हे महाराज! आजनो दिवस तो सफल सुविहाण उग्यो, देवीए जे वर दीधो हतो ते यहां श्राव्यो. ते तेजे करीने तो जेवो फलामल करतो सूर्य होय नहीं ? ते समान देखाय ॥२॥
सोवन नूषण लाख वधामणी जी, दे पंचांग पसाय रे ॥ सकल सजन जन परवस्यो जी, देहरे आवे नरराय रे॥ कुंवर ॥३॥ दीगे कुंवर जिन पूजतो जी, केसर कुसुम घनसार रे॥ चैत्यवंदन चित्त नक्षसे जी, स्तवन कदे इम सार रे॥ कुंवर॥४॥दीगे नंदन नानि नरिंदनो जी, देवनो देव दयाल रे॥ आज महोदय में लह्यो जी, पाप गयां पायाल रे ॥ कुंवर ॥ ५॥ देव पूजीने कुंअर आवीया जी, रंगमंप मांदि जाम रे॥
राय सजन जने परवया जी, बेग करीय प्रणाम रे॥ कुंवर ॥ ६ ॥ अर्थ-वधामणीयाने सोनानां श्रानषण तथा लाख पसाय करीवधामणीना पंचांग पसायदइने सर्व सजान जनना परिवारे परवस्यो थको (नरराय के०) मनुष्योनो राजा देरे याव्यो ॥३॥ तिहां केशर, फूल अने धनसार जे बरास, तेणे करी श्रीजिनेश्वरने पूजता एवा कुंवरने राजाए दीगगे, कुंबरे पण पूजाए करी रया पनी चित्तने नवासे करी चैत्यवंदन कर. एमज वली (सार के) प्रधान घणां श्रेष्ठ एवां स्तवनो कह्यां ॥४॥ तिहां कुंवर प्रजुनी स्तुति थावी रीते करे । के हे नानि राजाना पुत्र श्रीज्ञानदेवजी ! हे देवना देव! हे दयाल ! में तमोने दीठा, तेथी बाजी में मोटा पुण्यनो उदय लह्यो, अने मारा जे पाप हतां ते तो सर्व पातालमा पेसी गयां ॥५॥ एवी रीते देव पूजीने बहारना रंगमंप माहे जे वारे श्रीपाल कुंवर श्राव्या, ते वारे राजा पण सर्व ।
CARRCHOCOCCANCCCCCCCESCENCOCOCC
लायmaru
aaT
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #130
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रासजन जनना परिवारे परवस्यो थको , तेने हाथने प्रणामे प्रणाम करीने सर्वे वेसता हवा ॥६॥ खंका
जिनदरबार उघामतां जी, अचरिज कीधी तुमे वात रे ॥ देवस्वरूपी दीसो आपणां जी, वंश प्रकाशो कुल जात रे ॥ कुंवर ॥७॥न कहे उत्तम नाम ते आपणुं जी, नवि करे आप वखाण रे॥ उत्तर न दीधो तेणे रायने जी, कुंअर सयल गुण जाण रे॥ कुंवर॥ ॥ देखो अचंनो इणे अवसरे जी, हुजे गयणे नद्योत रे॥जंचे वदने जोवे तव सहु जी, ए कुण प्रगटी ज्योत रे ॥ कुंवर ॥॥ विद्याचारण मुनि आवीया जी, देव घणा तस साथ रे॥जगनारे जिन वांदीया जी, थुण्या श्रीजगनाथ रे॥कुंवर ॥ १०॥ देवरचित वर आसने जी, बेग तिहां मुनिराय रे॥ दीए मधुर ध्वनि देशना जी, नविकश्रवण सुखदाय रे ॥ कुंवर ॥११॥ अर्थ-पढी राजा कुंवरनी समस्त प्रकारे स्तुत करीने कहेवा लाग्यो के श्री जिनघरनां बारणां उघामतां तमे अचरिज जेवी वात करी, तेथी तमे को देवखरूपी देखा बगे, माटे कृपा करीने 81 आपनां वंश, कुल, जाति ए सर्वनो प्रकाश करो ॥ ७॥ एवी राजाए प्रार्थना करी, परंतु उत्तम | पुरुष पोते पोताने मुखे पोतानुं नाम मात्र पण कहे नहीं अने पोतानां वखाण पण करे नहीं. एवा सर्व गुणनो जाण श्रीपाल बे, माटे तेणे राजाने कांश पण उत्तर दीधो नहीं ॥ यतः॥ परप्रणीता हि गुणा यशस्कराः, स्वयं प्रणीता न जवंति कीर्तये ॥ न सौख्यसौनाग्यकरानति ते. स्वयं गृहीतौ युवतीकुचाविव ॥ १॥ इति ॥ ७॥ ( देखो के०) जुन. एका अवसरने विषे एक|॥६३॥
अचंबो देख्यो ते कहे . ( गयणे के०) आकाशे उद्योत थयो, ते वारे जंचं मुख करी मासर्व जोवा लाग्या के श्रा ते कया प्रकारनी ज्योति प्रगट थ ?॥ ॥ एवामां घणा
SCHOCOCONCRECORNCOCONCENGACANCRECORRECO-NCRECEMCN
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #131
--------------------------------------------------------------------------
________________
जेमनी साथे ठे एवा विद्याचारण मुनि श्राकाशश्री नीचे उतरता तिहां श्राव्या. तेमणे प्रथम तो गजारा पागल ज श्रीजिनने वांदीने श्रीजगत्त्रयना नाथने थुण्या, एटले स्तव्या ॥ १० ॥ पड़ी ।। देवोए प्रधान सिंहासन रच्यु, ते सिंहासन उपर मुनिराज श्रावी वेग. तिहां जविक जीवना श्रवण | जे कान, तेने सुखनी देनारी एवी देशना मधुर ध्वनिए एटले मीठा शब्दे करी देवा लाग्या॥११॥
नव पद महिमा तिहां वरणवे जी, सेवो नविक सिहचक रे॥ इह नव परनव लदीए एदथी जी, लीला लदेर अथक्क रे॥ कुंवर ॥१२॥ उख दोहग सवि उपशमे जी, पग पग पामे शदि रसाल रे ॥ए नव पद आराधतां जी, जिम जग कुंअर श्रीपाल रे॥ कुंवर॥१३॥ प्रेमे सयल पूरे परषदा जी, ते कोण कुंअर श्रीपाल रे॥ मुनिवर तव धुरथी कहे जी,
तेहy चरित्र रसाल रे॥ कुंवर ॥१४॥ अर्थ-हवे मुनिराज तिहां देशना मांहे नव पदना महात्म्यनुं वर्णन करतां थकाज कहे | के जो जो नव्यो ! हे महानुनावो ! तमे जे थकी था जव अने परनवने विषे अथाग एटले पार विनानी जेनो थाग नहीं एवी लीलानी लहेर (लहीए के) पामीए, एवा श्रीसिद्धचक्र नगवानने सेवो. इहां श्रीअरिहंतादिक नव पदना समुदायने सिद्धचक्र कहीए, जे माटे श्रीजिनेश्वरे कहेला देवतत्व, गुरुतत्त्व अने धर्मतत्त्व, ए त्रणे तत्व आराधवा योग्य , ते त्रणे तत्व ए नव पदने विषेज दे, तेमां एक श्रीअरिहंत अने वीजा सिह नगवान् ए बे पद देवतत्वरूप जाणवां तथा एक आचार्य, वीजा उपाध्याय अने त्रीजा साधु, ए त्रण पद गुरुतत्त्वरूप जाणवां, तथा एक दर्शन, बीनुं ज्ञान, त्रीजु चारित्र अने चोथु तप, ए चार पद धर्मतत्त्वरूप जाणवां. एमत्रण तत्त्वना उत्तर नेद नव थया. तेज नव पदने तमे परम नक्तिए करी थाराधी
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #132
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रा
॥६४
LIERSISTERIES
CONNOCENCHROCCORDC
माटme
॥ १२ ॥ ए थकी दुःख अने दो ग्य सर्व उपशमी जाय, अने पगले पगले रसाल कि पामे.
ए खंग.२ नव पदने बाराधतां थका जेम जगत् मांहे श्रीपाल कुंवर सुख पाम्या, तेम तमे पण पामो ॥ १३ ॥ ते सांजली सर्व पर्षदानां लोक तिहां प्रेमपूर्वक पूवा लाग्यां के हे महाराज ! ते श्रीपाली कुंवर कोण अयो ? तेनुं चरित्र कही संबलावो. ते वारे मुनिराजे पण ते श्रीपाल कुंबरनुं रसाल! चरित्र त्यां (धुरथी के ) प्रथमधी मांगीने देरासरमां गतारानां कमाम श्रात्री उघाड्यां, तिहांसुधी कही संजलाव्युं ॥१५॥
ते तुम पुण्ये इहां आवीयो जी, उघड्यां चैत्य ज्वार रे॥तेह सुणीने नृप हरखीयो जी, हरख्यो सवि परिवार रे॥कुंवर ॥१५॥ इम कहीने मुनिवर उतपत्या जी, गयणभारग ते जाय रे ॥ नना थइ नंचे मुखे जी, वंदे सहु तस पाय रे ॥ कुंवर ॥ १६ ॥ ढाल सुणी श्म सातमी जी, खंग बीजानी एह रे ॥ विनय कहे सिइचकनी जी, नक्ति करो गुण
गेह रे ॥ कुंवर ॥१७॥ अर्थ-ते श्रीपाल तमारां पुण्ये करी इहां श्राव्यो, जेला देखवाथी चैत्यनां हार उघड्यां. ए| कथा सांजलीने राजा घणो हर्षवंत थयो, तथा सर्व परिवार पण हर्ष पाम्यो ॥ १५ ॥ एवी रीते। श्रीपालनो संबंध कही तिहांथी मुनिवर आकाशमार्गे (जतपत्या के० ) जता हवा, तेमना पगने 8 सर्व लोक जना थइने जंचे मुखे करी वांदवा लाग्यां ॥ १६ ॥ एम बीजा खंगनी ए सातमी ढाल सांजलीने हे नव्यो ! तमे सर्व उत्तम गुणोना घररूप एवा जे श्रीसिद्धचक्र नगवान् ने तेनी नक्ति। करो, एम श्रीविनयविजय उपाध्यायजी कहे ॥ १७ ॥
EHIVEHIवारा
ORDCRACHECRECACANCH
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #133
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ दोहा ॥ बेग जिनदर बारणे, मुख मंडप सहु कोय ॥ कुंवर निरखी रायर्नु, दैहुं हरषित होय ॥१॥धन रिसदेसर कल्पतरु, धन चक्केसरी देवी ॥ जास पसाये मुज फल्यां, मनवांगित ततखेवि ॥२॥ तिलक वधावी कुंवरने, देश श्रीफल पान ॥ सजन साखे प्रेमे करी, दीधुं कन्यादान ॥ ३ ॥ श्रीफल फोफल सयणने, देश घणां तंबोल ॥ तिलक करीने गंटणां, कीधां केसर घोल ॥४॥ निज डेरे कुंवर गया, मंदिर पहोता राय॥ बेहु गमे विवाहना, घणा महोत्सव थाय ॥५॥ वडी वडारण दे वमी,
पापड घणा वणाय ॥ केलवीए पकवान बहू, मंगल धवल गवाय॥६॥ अर्थ-हवे श्रीजिनघरनी बाहिर मुख मंडपने विष सहु को श्रावी बेग, तिहां कुंवरने निर-4 खीने राजानुं हैयुं हर्षित थाय ॥१॥ राजा कहे के कल्पतरु समान एवा श्रीषनेश्वर में | एटले थादिनाथ नगवान् तेने धन्य बे, वली चक्रेश्वरी देवीने पण धन्य बे के जेना पसायथी। मारां मनोवांबित ततखेवि एटले तुरत फलीचूत थयां ॥२॥ एम चिंतवी श्रीपाल कुंवरने 5 तिलक वधावी, श्रीफल तंबोल आपी, सर्व सङनोनी साखे प्रेमे करी राजाए कन्यादान दीg ॥३॥ तथा सयण जे स्वजन जनो तेमने पण श्रीफल जे नालियेर अने फोफल एटले सोपारी तथा घणां ( तंबोल के० ) पान देश, तिलक करी, केशर घोलीने गंटणां कीधां ॥४॥ हवे कुंवर पोताने (डेरे के०) तंबुमां गया, अने राजा पोताने मंदिरे पहोता, तिहां बन्ने पक्षमा पोत-15 पोताने स्थानके विवाह संबंधी घणा महोत्सव थाय ने ॥ ५॥ (वमी वमारण के०) मोटी वमारण एटले खवासण जे , ते वमी दे एटले आपे ,घणा पापड वणाय , (बहु के०) घणा प्रका
SS SERRASSASASSAGERSAS
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #134
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम रना पक्वान्न तेने (केलवीए के०) केलवीने करे . मांगलिकनां धवल एटले धोल गीत गवाय ॥६॥ खंग.
वाघा सीवे नवनवा, दरजी बेग बार ॥जडिया मणि माणिक जमे, घाट ॥६५॥
घडे सोनार॥७॥ राय मंडाव्यो मांडवो, सोवन मणिमय यंन ॥र्थन धन मणिपूतली, करती नाटारंन॥॥तोरण चिहुँदिशि बारणे, नील रयणमय पान ॥ कूमे मोती कुमखा, जाणे सरग विमान ॥ ए॥ पंच वरणने चंडुवे, दीपे मोतीदाम ॥ मानुंतारामंडले, आवी कीयो विशराम ॥१०॥ चोरी चिढं पखे चितरी, सोवन माणिक कुंन ॥ फूलमाल अति फूटरी,
महके सबल सुरंन॥१२॥ अर्थ-दरजी लोको बारणे बेग थका नवनवा वाघा शीवे ने अने जमिया लोको नेते मणि अने माणिक जडे दे, तथा सोनार लोको नवनवा घाट घडे जे ॥ ७ ॥ हवे राजाए मांडवो ममाव्यो| ने. ते केवो ? तो के प्रथम तो ते मंडपमां संपूर्ण मणिरत्ने जडाव एवा सोनाना थंन जना कीधा बे, ते मणिरत्नमयज देखाय ने, एवा थंने करी ते मंझप विराजित जे. वली ते थंन थंजने विषे मणिरत्ननी पूतली बनावी , ते जाणीए नाटारंजज करती होय नहीं ? एवी मुखमुखाए रही थकी शोने ॥ ७ ॥ तथा ते मंझपनी चारे दिशाउँनां वारणाउने विषे नीला रत्नमय पानांए । करी शोजित एवां तोरणो बांध्या बे.ते तोरणोमां वली मोतीना ऊमखा ऊंबी रद्यावे, तेथी लटकता देखाय ठे, ते जाणीए स्वर्गनां विमानज लटकतां होय नहीं? एवा थकां शोने के, अथवा ते तोरणो नीलां पानांनां , ते विमान जेवांज ,श्रने विमानोमां मोतीना कु मखा कुंबी रहेला होय , माटे || ६५ ॥ ते तोरणो पण विमानसदृश शोजतां थकां देखाय ने ॥ ए॥ वली ते मंडपमां पांच वर्णना चंयुवा 8 बांध्या , ते चंऽवाने विपे मोतीनी ( दाम के०) माला बांधेली , ते केवी दीपे ले ? तिहां
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
www.nelibrary.org
Page #135
--------------------------------------------------------------------------
________________
कवीश्वर कहे के हुँ एम मार्नु बु जे आकाशमा रहेला ताराना ममले श्रावीनेज हां विश्राम || कीधो होय नहीं ? एवां ते मालाउँनां मोती देदीप्यमान थकां शोने ॥ १०॥ तथा वली राजाए चोरी बंधावी , ते केवी ? तो के चारे बाजुए मणिरत्ने जमाव एवा सोनाना (कुंज के) घट, तेणे करी चितरेली . ते घडाऊने वली अत्यंत फूटरी एटले जंची सरस एवी फूलोनी माला पहेरावेली बे, ते ( सवल के० ) घणी एवी जे ( सुरंज के० )सुगंध तेणे करी महकी रही ॥११॥
॥ ढाल श्रापमी ॥ राग खंचायती॥ करमो तिहां कोटवाल ॥ ए देशी॥ हवे श्रीपाल कुमार, विधिपूर्वक मऊन करे जी॥पढेरे सवि शणगार, तिलक निलाडे शोनाधरे जी॥२॥शिर खूणालोखूप,मणि माणिक मोती जड्यो जी॥ हसे हीराने तेज, जाणे हुं नृप शिर चड्योजी ॥२॥ काने कुंमल दोय, दार हैये सोदे नवलखा जी ॥ जड्यां कंदोरे रतन, बांदे बाजुबंध बढेरखा जी ॥ ३ ॥ सोवन वींटी वेढ, दश आंगुलिए सोहीए जी ॥ मुख
तंबोल सुरंग, नर नारी मन मोदीए जी॥४॥ अर्थ-हवे श्रीपाल कुंवर विधिपूर्वक स्नान मऊन करे, ते करीने पढ़ी सर्व प्रकारनां श्राजूषण श्रादिक शणगार पहेरे, ते पहेरीने पठी ललाटे तिलकनी शोला धरता हवा ॥१॥ वली श्रीपाल II कुंवरना शिर एटले मस्तकने विषे खूणावालो खूप बांध्यो , ते मणि, माणिक अने मोतीए करी || जड्यो बे, तेमां जे हीरा जडेला ले तेना तेजे करी ते खूप हसे बे, अर्थात जाणीए हसतोज होय नहीं ? एवो देखाय . तिहां कवि उत्प्रेक्षा करे डे के ते खूप एवं जाणे जे हुँ (नृप के०) राजाना पण शिर उपर चढ्यो ढुं, माटे हुं सर्व अलंकारमा उत्तम ढुं, अथवा राजा करतां पण हुँ मोटो बुं एवो गर्व श्राणीनेज जाणीए हसतो होय नहीं ? ॥२॥ वली बे कानने विषे वे कुंमल
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #136
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण
॥६६॥
पहेस्यां , हैयाने विषे नवलखा हार शोजी रह्या बे, केमने विषे रत्ने जडाव कंदोरो वांध्यो खंग.५ जुजाने विषे बाजुबंध बहेरखा बांध्या जे ॥३॥बे हाथनी दशे आंगुलिए सोनानी वीटी तथा वेढ शोजी रह्या , तथा मुख तो प्रथमश्रीज महा तेजस्वी , वली तंबोल चाववाथी विशेष सुरंग एटले सारा रंगवाडं देखाय जे. एवा देदीप्यमान कुंवरने जोइने तिहां नर नारीनां|| मन मोहने पामे ॥४॥
कर धरी श्रीफल पान, वरघोडे जव संचस्या जी॥ सांबेलां श्रीकार, सहसगमे तव परवस्यां जी॥५॥ वाजे ढोल निशान, सरणा चुंगल घणी जी॥ रथ बेठी सयब, गाये मंगल जानणी जी॥ ६॥ साव सोनेरी साज, दयवर हीसे नाचता जी॥शिर सिंदूर सोहंत, दीसे मयगल माचता जी ॥ ॥ चहुटे चहुटे लोक, जुवे महोत्सव नवनवे जी॥ श्म महोटे
मंमाण, मोहन आव्या मांडवे जी॥७॥ अर्थ-हवे हाथमां श्रीफल पान लश्ने जे वारे वरघोमामां संचस्या, ते वारे हजारोगमे । ( श्रीकार के०) शोजाने धरनारां एवां सांवेलां तेनी साथे ( परवस्यां के० ) आगल चाख्यां । ॥५॥ ढोल, नगारां, निशान तथा शरणाच अने जुंगलो घणां वाजे , वली ( सयबरू के०) सेंकडागमे स्त्री जानरमी जे जे ते रथमां बेठी थकी मांगलिकनां गीतो गाय ॥६॥(साव के०) केवल सोनेरीनो साज नाख्यो रे जेमनी उपर एवा ( हयवर के) श्रेष्ठ घोडा नाचता थका आनंदमां मग्न थया थका हीसे एटले हणदणाट करे , वली जेमना (शिर के० ) मस्तकने विष सिंदूर शोने के एवा (मयगल के०) हाथी ते (माचता के० ) मलपता थका (दीसे 81॥६६॥ के) देखाय ॥ ७॥ तिहां चौटा चौटाने विषे लोक नवनवे महोत्सवे करी जुवे दे. एवी रीते मोटे मंडाणे करी ( मोहन के०) श्रीपाल कुंवर मांडवाने विषे श्रावी पहोंच्या ॥७॥
Educa
n
For Personal and Private Use Only
wo
Page #137
--------------------------------------------------------------------------
________________
पोखी आण्या मांदि, सासुए उलट घणे जी॥ आणी चोरी मांदि, हर्ष घणो कन्या तणे जी ॥ ए॥ कर मेलावो कीध, वेदपाठ बांनण नणे जी ॥ सोहव गाये गीत, बिहु पखे आप आपणे जी ॥१०॥ करी अग्मिनी साख, मंगल चारे वरतीयां जी ॥ फेरा फरतां ताम, दान नरिंदे बहु दीयां जी॥११॥ केलवीयो कंसार, सरस सुगंधो महमहे जी ॥ कवल ग्वे मुख मांहि, मांदोमांहे मन गहगहे जी ॥१२॥ मदनमंजूषा नारी, प्रेमे परणी इणी परे जी ॥ बिहुँ नारीशुं लोग, सुख विलसे सुसराघरे जी ॥१३॥ अर्थ-तेमने सासुए घणा उलट सहित पोखीने मांहे आण्या. वली कन्याने पण चोरी मांहे आणी, ते वारे तेना मनमां पण परणवानो हर्ष घणो ॥५॥पनी (कर मेलावो के०) हाथ मेलावो कीधो ते वखत ब्राह्मण वेदपाठ जणे , वली बेहु पहवालानी (सोहव के०) सुवासण स्त्री थाप आपनी/81 तरफनां गीत गाय ॥ १० ॥ पनी अग्निनी साखे करी चारे मंगल व वीने वर कन्याने फेरा फेरव्या, ते वखते राजाए घणा प्रकारनां दान दीधां ॥ यतः॥दानह वेला उजला,जग विरला को होय॥ जलहर जल देवा समे, श्याम वदनधर जोय॥१॥दानं महिमनिदानं कुशल निदानं कलंककरिसिंहः ॥ श्रीकलंककंपनूतं, सिझिवधूसंगमे दूतः ॥२॥ इति ॥११॥ पठी सरस सुगंधे करी महमदाट 3 करी रह्यो बे एवो कंसार केलव्यो ने एटले बनाव्यो , तेना ( कवल के०) कोलीया तेने हर्ष सहित स्त्री ने नर्तार बेहु जण मली माहोमांहे मनना गहगहाटे करी एकेकना मुखमां मूके
॥ १२ ॥ ए रीते मदनमंजूषा स्त्रीने प्रेमे करी परण्या. हवे श्रीपाल कुंवर ससराने घेर रह्या थका बेहु स्त्रीनी साथे सुखने ( विलसे के० ) जोगवे ने ॥ १३ ॥
CARRORSCIENCROCEDALSOCCANCIENCIEOCOMCHOCOM
in Education remetionel
For Personal and Private Use Only
Page #138
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
खंग.
॥ ६
॥
षनदेव प्रासाद, उबव पूजा नित करे जी॥ गीत गान बहु दान, वित्त घणुं तिहां वावरे जी ॥१४॥ चैत्र मासे सुखवास, आंबिल जैली आदरे जी॥ सिक्ष्चक्रनी सार, लाखीणी पूजा करे जी ॥१५॥ वरतावी अमार, अहा महोत्सव घणो जी॥सफल करे अवतार, लाहो लीए लखमी तणो जी ॥ १६ ॥श्क दिन जिनहर मांदि, कुंअर राय बेग मली जी ॥ नृत्य करावे सार, जिनवर पागल मन रती जी ॥१७॥णे अवसर कोटवाल, आवी अरज करे इसी जी ॥ दाणचोरीए चोर, पकड्यो तस
आशा कीसी जी ॥१७॥ अर्थ-इहां कुंवर श्रीषनदेवजीना प्रासादने विषे मोटा आनंदे करी नित्य प्रत्ये उत्सव
त पूजा करे बे, तथा घणां गीत गान करे बे, बहु दान आपतो थको तिहां घj (वित्त। के०) व्य वावरे ने ॥ १४ ॥ फरी चैत्र महीनो आव्यो ते वारे सुखना आवासरूप आयंबिलनी उली दरीने श्रीसिद्धचक्रजीनी प्रधान लाखीणी पूजा करे ठे ॥१५॥ आठ दिवस पर्यंत अमारीनो || पमह वर्तावीने एटले वगडावीने घणो मोटो अहा महोत्सव कस्यो. एवी रीते कुंवर पोतानो मनुष्य-14 अवतार सफल करे बे, अने लक्ष्मी पाम्यानो लाहो लीए ने ॥ १६॥ एक दिवसे जिनेश्वरना देरा माहे कुंवर अने राजा ए बेहु जण साथे मली बेगा , अने (मन रली के०) मननी मग्नताए श्रीजिनेश्वरनी श्रागल उत्तम नृत्य करावे ॥ १७॥ ए अवसरे कोटवाल श्रावीने राजाने 31 एवा प्रकारनी अरज करवा लाग्यो के हे महाराज ! दाणचोरीए चोर थयेलो एटले दाणचोरीनो करनार चोर श्रमे पकड्यो बे, तेने आप केवा प्रकारनी शिदा करवा ढकम करो बो ? ते कहो ॥ १७ ॥
॥६
॥
-
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #139
--------------------------------------------------------------------------
________________
वली नांगी तुम आण, बल बहुऱ्या इणे आदमु जी ॥ अमे देखाड्या हाथ, तव महोढुं छांखुं कयुं जी ॥१॥ राजा बोले ताम, दंड चोरनो दीजीए जी ॥ जिणहरमा ए वात, कहे कुंअर किम कीजीए जी॥२०॥ नजरे करी हजुर, पहेलां कीजे पारखं जी॥ पत्रे देश्जे दंड, सहुए न होये सारिखं जी ॥१॥ आएयो जिसे हजुर, धवल शेठ तव जाणीयो जी॥ कदे कुंअर महाराज, चोर नलो तुमे आणीयो जी ॥२॥ ए मुज पिता समान, हुँ ए साथे आवीयो जी। कोटिध्वज सिरदार, वाहण इहां घणां लावीयो जी॥ २३ ॥ गेडावी तस बंध, तेडी पासे बेसाडीयो
जी॥गुनद करावी माफ, रायने पाय लगाडीयो जी ॥२४॥ अर्थ-वली तमारी आणा दीधी ते पण एणे नांगी नाखी, तथा अमारी सामु घणुं बल || श्रादगुं, परंतु अमे जे वारे खरेखरा हाथ देखाड्या, ते वारे तेणे पोतार्नु मुख कांखुं कलुं ॥१॥31
ते सांजली राजा बोल्यो के एने चोरनो दंम आपो, ते वारे कुंवर कहेवा लाग्यो के हे स्वामिन् ! 81 है जिनघरमा ए वात केम करीए ? ॥ २० ॥ वली जे चोर होय तेने प्रथम तो पोतानी नजर श्रा
गल हजुर करीने तेनी परीक्षा करीए, अने पढ़ी जे कां तेने दंम देवो घटे ते श्रापीए, शा
माटे ? जे सर्व माणस कांश सरखां न होय "सहुने होये सारिखं जी" एवो पागंतर पण ने &॥ २१॥ पठी जे वारे राजानी हजुरमा तेने लश् श्राव्या, ते वारे ए धवल शेठ वे एवं जाणीने 81 कुंवर राजाने कहेतो हवो के महाराज ! आ चोर तो तमे घणो जलो आण्यो ॥ ॥ ए तो है मारा पिता समान , हुं एनी साथेज इहां श्राव्यो बुं, वली ए तो कांश सामान्य माणस नथी, परंतु कोटिध्वजो जे जे तेनो पण ए सिरदार , अने श्हां तमारा बंदर मांदे घणां वहाण
Sain Education
international
For Personal and Private Use Only
nebog
Page #140
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ६८ ॥
लइ श्राव्यो बे ॥ २३ ॥ एम कही तेनां बंधन बोमावी शेवने तेमी पोतानी पासे बेसाड्यो, अने तेनो गुन्हो माफ करावी राजाने पगे लगाड्यो ॥ २४ ॥
राय कदे अपराध, एदनो परमेसर सह्यो जी ॥ अजरामर थयो एद, जेद तुमे बांदे ग्रह्यो जी ॥ २५ ॥ एक दिन घ्यावी शेठ, कुंवरने एम विनवे जी ॥ वेची वदान्। वस्तु, पूरयां करीयाणे नवे जी ॥ २६ ॥ तुमे मने इ गम, कुशल खेमे जिम प्राणीया जी ॥ तिम पहोंचाको देश, तो सुख पामे प्राणीया जी ॥ २७ ॥ कुंअरे जणाव्यो जाव, निज देशे जावा तणो जी ॥ तव नृपने चित्त मांदि, असंतोष उपज्यो घणो जी ॥ २८ ॥ माग्यां भूषण जेह, ते उपर ममता कीसी जी ॥ परदेशीशुं प्रीत, डुःखदायी होये इसी जी ॥ २० ॥ सासु सुसरो दोय, कर जोमी आदर घणे जी ॥ यांसु पते धार, कुंरण परे जणे जी ॥ ३० ॥
अर्थ - राजा कयुं के एनो अपराध तो परमेश्वरे सहन कस्यो एटले माफ कस्यो, ए तो हवे अजरामर थयो जावो, कारण के जे तुमे ( बांहे ग्रह्मो के० ) हाथे काल्यो ते अजर अमर थयो एमां कां नवाइ नयी ॥ २५ ॥ हवे एक दिवसे धवल शेठ श्रावीने श्रीपाल कुंवरने एम विनवे बे के हे स्वामिन्! वहाणनी वस्तु सर्वे वेचीने फरी नवां करीयाणां लइ तेणे करी वहाण ( पूस्यां के० ) जयां ॥ २६ ॥ माटे तमे श्रमने या ठेकाणे जेवी रीते कुशले खेमे लाव्या बो तेवी रीते फरी पाठा मारे देश पहोंचाको तो प्राणी सर्व सुख पामे ॥ २७ ॥ ते सांजली कुंबरे पण पोताने | देश जवानो जाव ससराने जणाव्यो, ते वारे राजाना चित्तने विषे घणो असंतोष उपन्यो ॥ २८ ॥ तथापि वली विचाखुं जे मार्गी लावेलां आभूषणो होय तेनी उपर फोकट ममता शी करवी ?
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग. २
॥ ६८ ॥
Page #141
--------------------------------------------------------------------------
________________
रामर
ते पण एवीज पुःखदायी होय ॥ श्ए ॥एम निर्धारी सासु श्रने ससरो बेहु जण वे हाथ जोमी घणा आदरे करी आंखमांथी आंसुनी धारा पमते थके कुंवर प्रत्ये एवी रीते (जणे के०) कहेतां हवां ॥३०॥
मदनमंजूषा एद, अम नत्संगे जबरी जी॥जन्मथकी सुख मांदि, आज लगे लीला करी जी ॥३२॥ वादाली जीवितप्राय, तुम दाथे थापण ठवी जी॥ एदने म देशो बेद, जो पण परणो नवनवी जी॥ ३२॥पुत्रीने कदे वत्स, दमा घणी मन आणजो जी॥सदा लगे भरतार, देव करीने जाणजो जी॥३३॥ सासु सुसरा जेठ, लजा विनय म चूकजो जी॥परिदरजो परमाद, कुलमरजादा म मूकजो जी॥ ३४॥ कंत पदेवी जाग, जागंतां
नविजंघीए जी॥शोक्य बहेन करी जाण,वचन न तास उलंघीए जी॥३५॥ अर्थ-के हे राजन् ! ए मदनमंजूषा नामे पुत्री, ते अमारा खोलामा उठरी, एणे जन्म-15 थकी मांडीने आज दिवस सुधी सदाय सुख मांहेज लीला करी ॥३१॥ ए पुत्री प्रायः अमारा पाजीवथकी पण अमने घणीज वहाली. ते आज तमारे हाथे जेम थापण (वी के०)स्था
होय तेम थापी , माटे जो पण तमे नवनवी स्त्री परणो, तोपण एने छेद देशो नहीं है। ॥ ३५ ॥ हवे पोतानी पुत्रीने शिखामण श्रापवा माटे राजा राणी कहे के हे वत्से ! तमे तमारा मनमा घणी दमा आणजो, क्रोध करशो नहीं, अने सदा लगण जरिने तो देव करीनेज जाणजो ॥ ३३ ॥ वली सासु, ससरो श्रने जेठ, तेमनी लजा विनय करवानुं के वारे पण चूकशो नहीं. तथा प्रमादने परहरजो, त्याग करजो अने कुलनी मर्यादा मूकशो नहीं ॥३४॥ वली नत्र है जाग्याश्री पहेली जागजे, तथा जरि जागतो होय तिहां सुधी जंघीश नहीं, शोक्य होय तेने बहेन जेवी जाणजे, शोक्यनुं वचन उलंघन करीश नहीं ॥ ३५ ॥
के०) स्थापी
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #142
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण
॥६
॥
कंत सयल परिवार, जम्या पनी नोजन करे जी॥ दास दासीजण ढोर,
खंग.२ खबर सहुनी चित्त धरे जी॥३६॥ जिनपूजा गुरुनक्ति, पतिव्रता व्रत पालजो जी॥ शी कहीए तुम शिख, इम अम कुल अजुवालजो जी॥ ३७॥रयण श६ि परिवार, देश नृपे वादण नयां जी ॥ मयणमंजूषा धूअ, वोलावा सहु नीसयां जी ॥ ३७ ॥ कांठे सयल कुटुंब, हैमां नर नेटी मल्यां जी ॥ तस मुख वारोवार, जोतां ने रोतां पागं वल्यां जी॥ ३॥ कुंअर वादण मांदि, बेग साथे दोश् वढू जी ॥काम अने रति प्रीति, मलीयां एम जाणे सहु जी॥ ४० ॥ बीजे खेमे एद, ढाल थुणी इम
आठमी जी ॥ विनय कहे सिक्ष्चक्र, भक्ति करो सुरतरु समी जी॥४१॥ | अर्थ-पोतानो जार तथा बीजो पण परिवार जे होय ते सर्वे जमी रह्या पली तुं नोजन करजे. वली दास, दासीजन तथा ढोर प्रमुख सहुनी खबर लेवी, एवं चित्त धरे, एटले चित्त राखजे॥३६॥ श्रीजिनेश्वरनी पूजा तथा गुरुनी नक्ति करजो, पतिव्रता व्रतपाल बीजी वधारे शिख तमने अमे शी कही देखामीए ? तमे एम शुजाचरण श्राचरीने अमारा कुलने अजुवालजो ॥३७॥ एवी रीते पुत्रीने शिखामण आपीने पनी राजाए रत्न, कृषि तथा बीजो पण घणो परिवार आपीने वहाण जयां, अने मदनमंजूषा पुत्रीने वोलाववाने माटे सर्व को 31 नीसस्यां ॥ ३० ॥ बंदरने कोठे सर्व कुटुंब आवी हैमां नरी नेटीने मब्यां, पड़ी ते पुत्री- मुख । वारंवार जोतां जोतां श्रने रोतां थकां पागं वक्ष्यां ॥ ३५ ॥ हवे श्रीपाल कुंवर वहाण मांहे पोताना बे स्त्री साथे बेग, ते सहु को एमज जाणे ले के था तो कामदेव अने तेनी रति तथा प्रीति
जहां श्रावी एकमव्यांबे, ए कविए उत्प्रेक्षा करी॥४०॥बीजा खंगने
॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #143
--------------------------------------------------------------------------
________________
विषे ए आग्मी ढाल एवी रीते स्तवी, माटे जो जव्यो ! तमे ( सुरतरु के०) कल्पवृक्ष समान | मनोवांछितनी देवावाली एवी श्रीसिद्धचक्रजी महाराजनी नक्ति करो, एम श्रीविनय विजय उपाध्यायजी कहे ते ॥४१॥
॥ चोपाइ॥ खंड खंड मधुरो जिम खंड, श्रीश्रीपालचरित्र अखंड ॥
कीर्तिविजय वाचकथी लह्यो, बीजो खंड श्म विनये कह्यो ॥१॥ अर्थ-ए रासनो खंग खंड ( मधुरो के० ) मीगशवालो ने, जेम ( खंग के० ) खांमना कटका, कटका मांहे मीठाश घणी होय तेम ए रासना पण खंग खंममां मीगश घणी बे,अने श्री श्रीपाल राजानुं संपूर्ण चरित्र तो अखंग रूप में, ते जे प्रमाणे श्री कीर्ति विजय उपाध्यायजीना मुखथी। ( लह्यो के०) सांजस्यो (एम के० ) एज प्रमाणे आ बीजो खंड श्री विनयविजयजी उपा-1 ध्यायजीए कह्यो ॥१॥ ॥ इति श्रीमन्महोपाध्यायश्रीकीर्तिविजयगणिशिष्योपाध्यायश्रीविनयविजयगणिविरचिते श्रीसिझचक्रमहिमाधिकारे श्रीश्रीपालचरित्रे प्राकृतप्रबंधे विदेशगमने कन्याम्य
पाणिग्रहणेत्यादिवर्णनो नाम द्वितीयः खंमः समाप्तः ॥२॥ प्रथम खंडे गाथा ॥ २२ ॥ द्वितीय खंडे गाथा ॥ २७५ ॥ सर्व गाथा ॥ ५५॥
इति श्रीश्रीपालचरित्रे बालावबोधे द्वितीयः खंडः समाप्तः ॥२॥
Jain Educationa interational
For Personal and Private Use Only
Page #144
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रा०
खं
.३
॥ श्रीसद्गुरुभ्यो नमः॥ अथ तृतीयः खंडः प्रारभ्यते ॥
॥दोहा॥ सिक्ष्चक्रना गुण घणा, कदेतां नावे पार ॥ वांबित पूरे उख हरे, वंडं वारोवार ॥१॥ सन्ना कदे श्रीपालने, समुप उतारो पार ॥ अमने नत्कंग
घणी, सुणवा म करो वार ॥२॥ अर्थ-श्रीसिद्धचक्र जगवानना गुण घणा , ते मुखथी कहेतां थका तेनो पार श्रावे 8 नहीं. ए श्रीसिमचक्र केवा ? तो के सेवनारनां मनोवांछित पूर्ण करे अने पुःखने हरण करे, माटे ते श्रीसिद्धचक्रजीने हुँ वारंवार वांडं ॥१॥ हवे था रासना सांचलनारा सनास्थ जनो कवीश्वरने कहे डे के श्रीपाल कुंवरने समुअथकी पार उतारो, एटले श्रीपाल कुंवर समुअपार उतरीने कांठे आवे. ए वात सुणवानी श्रमने घणी उत्कंग, माटे वार म करो, एटले व्याख्यान करवानो विलंब न करो ॥२॥
कदे कवियण आगल कथा, मीठी अमीय समान ॥ निज्ञ विकथा पर
हरी, सुणजो देश कान ॥३॥धवल शेठ जुरे घj, देखी कुंवरनी रि६॥ ___ एकलडो आव्यो हतो, है है देव शुं कीध ॥४॥ अर्थ-एवं सन्नाजनोनुं बोलवू सांजलीने कवीश्वर पण श्रीपालनी पागल कथा एटले समुमां पड्या पळीनी जे कथा कहेवानी ने ते कहे . ते कथा केवी डे ? तो के अमृत समान मीठाशनी आपनारी बे, माटे हे श्रोताजनो ! तमे निखा अने विकथाने परहरी एटले त्यागीने Folएकाग्र चित्ते कान दश्ने सांजलजो ॥३॥ हवे श्रीपाल कुंवरनी शकि देखीने अदेखो बिचारो
॥७॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #145
--------------------------------------------------------------------------
________________
धवल शेठ घj घणुं कुख्या करे ले के अरे ! आ तो एकलोज मारी साथे चाकर दाखल श्रावेलो| पाहतो तो है है इति खेदे, हे दैव ! हे कर्म ! था ते ते \ कीधुं ? ॥४॥
वहाण अढीसें माहरां, सीधां शिरमां देश॥ जो घर किम जायशे, शद्धि एवडी ले॥५॥ एक जीव ने एदने, ना जलधि मकार ॥ पठी सयल ए मादरुं, रमणी झदि परिवार ॥ ६ ॥ देखी न शके पारकी, शक्षि दिये जस खार ॥ सायर थाये उबलो, गाजते जलधार ॥७॥ वरसाले वनराइ जे, सवि नवपल्लव थाय ॥ जाय जवासानुं कीस्युं, जे
जन्नो सूकाय ॥७॥ अर्थ-एम धवल शेग्ने कुंवरनी कि देखवाथी अदेखाइ उपनी, तेथी विचार करवा मांड्यो के श्रा अढीसें वहाण तो मारा माथामां दश्ने एणे लक्ष लीधां, पण हवे जोडं तो खरो के आ बाटली कि लश्ने केवी रीते पोताने घेर जाय ? ॥५॥ए एकज जीव बे, तेने हुँ (ज
के) समुअमां नाखी दर्ज, पनी ए ( रमणी के० ) बे स्त्री तथा कि श्रने बीजो जे एनो परि४वार ले ते सर्वे मारुंज , ए बापमो क्यां लइ जवानो ने ? एवा पुष्ट अध्यवसाय शेउना थया ।
॥ ६॥ इहां कनिष्ठ पुरुषनां लक्षण उपर दृष्टांत कहे जे के जेम ( जलधार के० ) मेघ ते गाजते । एटले गर्जारव करे, ते वारे (सायर के) समु पुर्बल थर जाय. ए दृष्टांते जे पुरुषना हैयामां 8 (खार के०) अदेखा होय ते पुरुष पण पारकी झकि देखीने खमी शके नहीं ॥ यतः ॥ परवादे दशवदनः, परदोषनिरीक्षणे सहस्राक्षः ॥ संवृत्तवित्तहरणे, बाहुसहस्रार्जुनो नीचः॥१॥इति ॥७॥ वली बीजो दृष्टांत कहे . जेमके वरसादना दिवसोमा अढार नार वनराजी एटले वन-1 स्पतिनी पंक्ति जे ते सर्व नवपद्धव थाय , परंतु तेमां एक बिचारा जवासाना कामर्नु शुं जाय
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #146
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरात
खंग
A के जे उनो ने उनो सुका जाय डे ? कांज नहीं, परंतु जे अदे माणस ने ते बीजानी सारी स्थिति थयेली जोक्ने पोते कुःखी थाय ने एम जाणवू ॥७॥
जे किरतार वडा कीया, तेशुं केदी रीस ॥ दांत पड्या गिरि पामतां,
कुंजर पाडे चीस ॥ ए॥ | अर्थ-पण खरी वात तो एज डे के जेने किरतारे मोटा कस्या तेनी साथे वली केवी रीस करवी?18 तेनी साथे रीस करवायी उलटुं रीस करनारनेज फुःखी थर्बु पडे बे. कोनी पेठे ? तो के जेम (कुंजर के०) हाथी जे ने तेणे पोताने मोटो समजीने दांते करी गिरि जे पर्वत तेने पामी नाखवा माटे उद्यम कस्यो, परंतु तेने पामवा जतां उलटा पोतानाज दांत त्रूटी पड्या, ते वारे मोटी चीसो पाडीने नासवा मांड्यु. ए दृष्टांते अहीं धवल शेठ पण श्रीपाल कुंवरने फुःखी करवा माटे उद्यम | करे बे, परंतु तेने छःखी करवा जतां पोतानेज फुःखी थq पडशे, ते वात आगल कहे ॥३॥
॥ ढाल पहेली ॥ ॥राग महहार ॥ शीतल तरुवर बहि, के बांह वाखंजनी रे ॥ के बांह ॥ ए देशी ॥ देखी कामिनी दोय, के कामे व्यापीयो रे ॥के कामे व्यापीयो ॥ वली घणो धननो लोन, के वाध्यो पापीयो रे ॥ के वाध्यो० ॥ लाग्या दोय पिशाच, के पीडे अति घणुं रे ॥ के पीडे ॥ धवल शेग्नुं चित्त, के वश नहीं
आपणुं रे ॥ के वश ॥१॥ अर्थ-एम ते शेठ पुष्ट अध्यवसायने योगे एक तो श्रीपालनी ( दोय के० ) बे (कामिनी के०) शास्त्री ने, तेमने देखीने कामे करी व्याप्त थयो, तथा वीजु वली श्रीपालनी पासे घणुं धन , ते
लश् लेवानो लोन शेठने लाग्यो. तप जे पाप तेणे करीने वाध्यो, अथवाधन लेवाना लोने करी ते 2
CRACROSOHDCOMSACROSONACOCOCCACACAX
॥१॥
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #147
--------------------------------------------------------------------------
________________
*
**
पापी शेठ वाध्यो. एम ते शेठने काम अने लोज, ए बे ( पिशाच के० ) नूत आवीने वलग्यां, तेणे करीने अत्यंत घणोज पीडाय बे, तेथी ते धवल शेग्नुं चित्त पण पोताने वश रह्यं नहीं ॥१॥
उदक न नावे अन्न, न आवे निमी रे ॥ न आवे ॥ उल्लस वालस थाय, के जक नहीं एक घडी रे ॥ के जक ॥ मुख मूके निसास, के दिन दिन उबलो रे ॥ के दिन ॥रात दिवस नवि जाय, के मन बहु
आमलो रे ॥ के मन ॥२॥ चार मल्या तस मित्र, के पूरे प्रेमशुंरे॥ के पूरे ॥कोण थयो तुम रोग, के कुरो एम शुं रे ॥ के कुरो ॥ के चिंता उतपन्न, के कोश्क आकरी रे॥के कोश्क० ॥ नाइ था धीर,
के मन काटुं करी रे ॥के मन ॥३॥ अर्थ-तेम ( उदक के०)पाणी तथा अन्न पण जावतुं नथी, वली निशा पण आवती नथी, उसस वालस एटले थालस विलस थया करे ,एक घडी मात्र पण जीवने(जक के०) जंप वलतो नथी,मुखथी। |निसासा मूकतो थको दिवसे दिवसे पुर्बल थतो जाय . वली मनमां बहु (धामलो के०) श्रामलसेरडा 8 लीधा करे बे, तेनां रात दिवस जतां नथी ॥ यतः ॥ प्रवासिको व्याधियुतः सरोषो, विद्यार्थचित्तः परदाररक्तः ॥ यस्यास्ति वैरी हि वियोगितोऽपि, ह्यष्टौ लजंते मनुजा न निमाम् ॥ अर्थ-एक पर-2 |देश फरनार, बीजो व्याधिमान्, त्रीजो क्रोधयुक्त, चोथो विद्याच्यासने विषे तत्पर, पांचमोधन मेलववामां आसक्त चित्तवालो, बहो पारकी स्त्रीमां थासक्त, सातमो जेने माथे पुश्मन ते, थाउमो 8 |पोताना प्रिय जनथी वियोग पामेलो, एवा आठ प्रकारना मनुष्यो निखाने पामता नथी॥१॥२॥ एम फुःखने लीधे धवल शेठ अर्धी रात्रे सुतो उठी टलवलतो फस्या करे डे, ते जोश्ने ।
625****
5
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #148
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ७२ ॥
तेना चार मित्र ते ते तेने मल्या, अने प्रेमपूर्वक पूढे बे के हे शेवजी ! तमोने श्यो रोग उत्पन्न थयो बे के तमे श्रामतेम कुरी रह्या हो ? अथवा तमोने घणीज आकरी एवी कोइक चिंता उत्पन्न थ बे ? के शुं थयुं बे ? जे कांइ थयुं होय ते पण हे नाइ ! मन कठिण करीने धीरजवान् थइने ॥ ३ ॥ डुःख कहो म तास, उपाय विचारीए रे ॥ उपाय० ॥ चिंतासायर एद, के पार उतारीए रे ॥ के पार० ॥ लका मूकी शेठ, कदे मन चिंतव्युं रे ॥ कदे मन०॥ तव चारे कदे मित्र, के धिक ए शुं लव्युं रे ॥ केधिक० ॥ ४ ॥
अर्थ - तमोने जे दुःख पेदा थयुं होय ते अमोने कहो तो श्रमे ( तास के० ) तेनो उपाय विचा|रीने या चिंतारूप समुद्रमांथी तमोने पार उतारीए. ते वारे शेठे पण लगा मूकीने जंको निसासो नाखी पोताना मननुं चिंतवेलुं काम जे हतुं ते मित्रोने कयुं के छारे जाइये ! मारे शरीरे कोइ पण रोग पीमा करतो नथी, परंतु या श्रीपालने मारी नाखवो, ए मारा मननी पीमा बे ते मने पीडे बे, दुःख श्रापे बे, ए सर्व वृत्तांत तेथे पोताना मित्रो खागल कही संजलाव्यो. एवी वात सांजली, ते वारे ते चारे मित्रो कहेवा लाग्या के अरे धिक्कार बे तुजने ! के या श्रमारा कानने शूल लागे एवं तुं शुं ( लव्यो के० ) बोल्यो ? श्रा तारी अक्कल ठेकाणे नथी ? के बीजा कोइ सामान्य माणसना धननुं हरण करवुं ते पण उत्तम पुरुषने योग्य नथी, तो या तो तारो स्वामी बे, वली तारा उपर मोटो उपकारकर्त्ता बे, तेनुं धन हरण कर ए कार्य तो मोटा कष्टनुं देवावालुं समजवुं तेमज अन्य कोई पुरुषनी स्त्री जोगववी तथा कोइ जीव मात्रने दणवो ते पण उत्तम पुरुअपने महा निंदनीय बे, तो या जे उपकारकर्त्ता स्वामी तेनी स्त्री जोगववी तथा तेने इणवो, एथी अवश्य नरके जवानो बंध पडे. एवं पापकर्म मनमां चिंतवीने या जीने श्रमोने कहेतां थका तारी जीन पण केम चाली ? माटे आज दिवस सुधी तो अमारे ने तारे मित्राचारीनो नातो
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
म ३
॥ १२ ॥
Page #149
--------------------------------------------------------------------------
________________
ला हतो, पण हवे आई पुष्टपणुं तें चिंतव्यु तेथी वर्तमानकाले तो तुं श्रमारा पुश्मन तुल्य बो के | जे तें आवा सर्वशिरोमणि मस्तकना मणि सरखा महापुरुषनी उपर मागी चितवना करी ॥४॥
परनारीने पाप, नवोनव बुडीए रे॥नवो॥ किम सुरतरुनी डाल, कुदामे मुडीए रे ॥ कुदाडे॥परनपगारी एद, जिस्यो जग केवमो रे॥जिस्यो॥ दोगे प्रत्यद जास, के मदिमा एवडो रे ॥के मदिमा० ॥ ५॥ गेमाव्या दोय वार, इणे तुमे जीवता रे॥णे ॥गरीयां धन माल, जो पासे ए दता रे॥ जो पासे ॥ तास्यां थंच्यां वाहण,णे आगल रदी रे॥णे॥ एदवो पुरुषरतन्न, के जग बीजो नहीं रे॥के जग ॥ ६॥ करी एहशुं जोद, जो विरु ताकशो रे॥ जो० ॥ तो अणखूटे किदांश्क, अंते थाकशो रे ॥ के अंते ॥ नाग्ये लाधी शद्धि, इणे जो एवमी रे॥णे॥पडी
कांइ र्बुदि, गले तुम जेवडी रे ॥गले॥७॥ अर्थ-वली ते मित्रो कहे जे के हे शेठ ! एक तो परस्त्रीने पापे नवोनव संसार मांहे बुझीए, वली | एवो मूर्ख पण कोण होय के जे (सुरुतरु के०) कल्पवृदनी मालने कुहाडे करी कुमी नाखे ? तेम ए पुरुष तो कल्पवृक्ष समान , वली ए पुरुष तो जगत मांहे जेवो केवडो परोपकारी ने तेनी समान|8 परोपकारी जे. जेनो एटलो महिमा तो प्रत्यक्ष तमेज दीगे बे. (ते श्रागल कहे जे )॥५॥एक बरकूटना बंदर उपर अने बीजा रत्नहीपे, ए बे ठेकाणे तो तमने मारवानी तैयारी थर हती, ते बे स्थानकेथी बे वार तमोने जीवता (बोमाव्या के०) मूकाव्या, तथा जो ए पासे हता तो इ तमारां धन माल सर्वे उगस्यां, नहीं तो आज तमारी पासे एक कोमी पण रहेत नहीं ने तमे ।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #150
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम.३ ।
॥७३॥
.
श्री राणपण जीवता रहेत नहीं. वली तमारां वहाण थंनाणां हतां ते पण एणे श्रागल रहीने तास्यां, ते
सर्व उपकार तमे नूली गया के शुं ? माटे एवो रत्न सरखो पुरुष जगतमां बीजो कोश् नथी॥६॥ तेथी अमे तमने कहीए बीए के जो तमे एनी साथे जोह करीने ( विरु के० ) मा (ताकशो के) श्वशो, विचारशो, तो अंते तमे पोतेज क्यांश्क वगर खूटे (थाकशो के०) मरण पामशो एटले थायुर्दा खुट्या विना मरण पामशो. अरे !जो एने नाग्ये एणे एटली शक्छि (लाधी के) पामी तो तमारा गलाने विषे ( जेवडी के०) एटली उर्बुद्धि केम आवीने पमी ? अथवा एटली उर्बुधि आवीने तमोने केम गले पमी ? माटे अमे तो कहीए बीए के तारुं धवल नाम ले ते खोटुं बे, पण तुं मलिन कगेर खनाववालो ने, माटे कृष्ण लेश्याना योगे करी तारुं कालो एवं नाम: जोश्ए. तुजने देखवाथी अमारो आत्मा पण मलिनपणाने पामे ॥७॥
त्रण मित्र हितशीख, ते एम देगया रे॥ ते एम ॥चोथो कदे सुण शेठ, के ए वैरी थया रे॥के ए वैरी॥गणीए पाप न पुण्य, के लखमी जोडीए रे
॥के लखमी० ॥ लखमी होये जो गांठ,तो पाप विगेडीए रे॥तो पापण॥॥ अर्थ-एवी रीते त्रण मित्र हितनी शिखामण थापीने पोतपोताने स्थानके गया, ( तव है के)ते वारे चोथो कपटखजावी मित्र हतो ते फरी पण ते शेग्नी पासे बेगे अने कहेवा
लाग्यो के हे शेठ ! तमे सांजलो, के ए त्रण मित्र तो उलटा तमारा वैरी थया, कारण के जेणे तकरी तमारी मोटार थाय तेवु ए चिंतवता नथी, माटे गया तो जवा द्यो. हुं एकलोज तमारां मनो-12
वांबित पूर्ण करीश, तमे कोइ वाते चिंता करशो नहीं. मारो मत तो एवो डे के पाप अने पुण्य कांश पण गणीए (न के०) नहीं, परंतु लक्ष्मी जोमीए एटले एकठी करीए, कारण के जो लक्ष्मी गांउमां होय तो पुण्य करीने पापने विडोमी नाखीए ॥७॥
॥३॥
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #151
--------------------------------------------------------------------------
________________
नपराजी इणे शदि, ते काजे ताहरे रे॥ते काजे॥धणी थाये नाग्यवंत, कमाइ कोइ मरे रे॥ कमाइ० ॥ करशुं इस्यो नपाय, के ए दोलत घणी रे ॥के ए॥ अने सुंदरी दोय, के थाशे तुम तणी रे ॥ के थाशे ॥५॥ जिम पामे विश्वास, मलो तिम एहशुं रे॥ मलो० ॥ मुखे मीठी करो वात, के जाणे नेहशुं रे.॥ के जाणे ॥ मीठी लागी वात, ते शेग्ने मन वसी रे॥ ते शेग्ने॥ आव्यो फीटणकाल, ते मति तेदनी खसी रे॥ते मतिः ॥ १० ॥धज देखे डांग, न देखे मांकडो रे॥न देखे ॥ मस्तक लागे चोट, थाये तव रांकमो रे॥थाये ॥रोगी करे कुपथ्य, ते लागे मीउडुं रे ॥ ते लागे ॥ वेदन व्यापे जाम, ते थाये अनीउडुं
रे ॥ ते थाये ॥११॥ A अर्थ-हे शेठजी ! हुँ एम धारुं दुं जे ए श्रीपाले एटली इडि जे उपार्जन करेली ते
सर्व तारेज काजे बे, एम जाणजे. ते उपर दृष्टांत कहुं बुं, ते सांजल. जेम को निर्भाग्य पुरुष होय ते कमाइ एटले संचय करीने मरी जाय. पठी तेनी कमायेली लक्ष्मीनो धणी 3 तो कोई जाग्यवंत पुरुष होय तेज थाय, माटे आपणे कोर एवो उपाय करशुं के जेथी ए घणी जे दोलत ३ ते अने वली था बे सुंदरी ले ते पण सर्व तमारी थशे ॥ए॥ माटे हवे
तमारा उपर विश्वास पामे तेवी रीते तमे एनी साथे मलो तथा जेम ए जाणे के स्नेहे करीनेज | Bामने कहे जे तेम तमे तमारा मुखे एनी साथे मीठी वात करो. ए चोथा मित्रनी वात ते शेठने 8
मीठी साकर जेवी लागी, थने शेठना मनमां पण वसी जे था वात पीक कहे , कारण के तेनो।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
nebog
Page #152
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रा०
॥
४॥
फीटणकाल आव्यो ते वारे ( तेहनी के० ) तेनी मति पण खसी गइ ॥ १०॥ तेनी नपर दृष्टांत खंग. ३ कहे . जेम (मांकमो के० ) वांदरो अथवा उपचारथी बिलाडो जे जे ते ऽधनेज देखे , पण || (मांग के ) मारवा तैयार करी उगामी राखेली लाकमीने देखतो नथी. पठी जे वारे मस्तके | चोट लागे, ते वारे बापडो रांक थर जाय. तथा वली जेम को रोगी पुरुष होय ते कुपथ्य करे | एटले खासै खाटुं खाय ते तेने मी लागे, पनी जे वारे तेना योगे शरीरमा वेदना व्यापे, ते वारे|| अनिष्ट थर पडे, तेम शेवजी पण मांकमा अने रोगीनी पेरे तत्पर थ रह्या डे ॥ ११ ॥
बेसे कुंअर पास, के विनय घणो करे रे॥के विनय० ॥ तुं प्रनु जीव
आधार, के मुखे इम उच्चरे रे॥ के मुखे० ॥ पूरव पुण्य पसाय, के तुम सेवा मली रे॥के तुम० ॥ पग पग तुम्द पसाय, के अम्द आशा फली रे॥ के अम्द० ॥ १२॥ जोतां तुम मुखचंद, के सवि सुख लेखीए रे ॥के सवि०॥ रखे तुमारी वात, के विरुइ देखीए रे ॥ के विरु० ॥ कुंवर सघली वात, ते साची सद्ददे रे॥ ते साची० ॥ उर्जननी गतिनाति,
ते सऊन नवि सहे रे॥ ते सऊन ॥१३॥ अर्थ-हवे शेठजी ते चोथा मित्रनी आपेली शिखामण मुजब कुंवरनी पासे वीने बेसे अने घणो विनय करे तथा मुखथी एम कहे के हे प्रजु! तमे मारा जीवना आधार बो, पूर्वकृत पुण्यना || पसायथी तमारी सेवा मने मली बे, पगले पगले तमारा पसायथी अमारी आशा फली ॥ १५ ॥3॥४॥ ||तमारा मुखरूप चंडमाने जोड्ने श्रमे सर्व सुख (लेखीए के0 )जाणीप नी. मा कोश ( विरु के०) माठी वात अमने देखवी पडे एम को वारे थाशो मां. एवीरीते कपट थी वातो
Sain Education international
For Personal and Private Use Only
Page #153
--------------------------------------------------------------------------
________________
करे, ते सर्व वातोने कुंवर तो साची करीने सदहे , कारण के उर्जन माणसनी गतिनी रीत जे जे ते सजान माणस लश् शके नहीं, एटले जाणी शके नहीं ॥ १३ ॥
जे वाढणनी कोर, के मांचा बांधीया रे॥के मांचा ॥ दोर तणे अवलंबे, ते उपर सांधीया रे॥ ते उपर ॥तिहां बेसीने शेठ, ते कुंअरने कदे रे ॥ ते कुंअरने० ॥ देखी अचरिज एद, के मुज मन गदगदे रे॥ के मुज ॥ १४ ॥ मगर एक मुख आठ, के दीसे जूजू रे ॥ के दीसे ॥ एवां रूप सरूप, न होशे ने हुआं रे॥न दोशे ॥ जोवा श्लो साहेब, के तो
आवो वही रे॥के तो० ॥ पडे काढशो वांक, जे कांश कर्तुं नहीं रे॥ जे कांइ० ॥१५॥कुंअर मांचे ताम,चढ्यो उतावलो रे॥चढ्यो॥जतरीयोतव शेठ,धरी मन आमलो रे॥धरी ॥बिलु मित्रे बिहुँ पासे, दोर ते कापीया
रे ॥ दोर ॥ करतां एदवां कर्म, न बीए पापीया रे॥न बीए ॥१६॥ अर्थ-हवे एक दिवसे ते चोथा मित्रनी सलाह प्रमाणे प्रथमश्री जे वहाणनी कोरे मांचा बांध्या में तेने जुनां दोरमांनुं बालंबन करीने पोताथी सहेलाइए कपाय एवी रीते उपर सांधी मूक्या बे. तिहां शेवजी पोते बेसीने कुंवरने कदेता हवा के हे स्वामिन् ! एह अच-18 रिज देखीने माझं मन गहगहे बे, एटले तमोने ते अचरिज देखामवाने माझं मन उत्साह धरे हैं
॥ १४ ॥ ते अचरिज ए वे के मगरमत्स्य तो एक बे, पण तेनां मुख श्राप , ते सर्व जूदी। जूदी जातिनां देखाय बे, माटे एवां रूप स्वरूपवंत तो थयां पण नथी अने थाशे पण नहीं, ए| अपूर्व कौतुक में पूर्वे केवारे पण दी नथी, माटे हे साहेवजी ! जो जोवाने श्छता हो तो वहेला
in Educa
t
ional
For Personal and Private Use Only
www.ainelibrary.org
Page #154
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ७५ ॥
यहीं घावो, नहीं कां पढी अमारो वांक काढशो के श्रमने केम कथं नहीं ? कारण के "घणुं जीव्याथी जोयुं जलुं” एम लोकमां कदेवत बे ॥ १५ ॥ एवी वात सांजलीने कुंवर पण उतावलो मांचा उपर चढ्यो, ते वारे शेठ मन मांहे आमलो एटले कपट धरीने मांचा उपरथी उतस्यो अने बेहु मित्रे बेहु पासे उजा रहीने दोरमां कापी नाख्यां कवि कहे बे के जे पापी दुष्ट प्राणी बे ते एवां नीच कर्म करतां थका जरा पण बीता नथी ॥ यतः ॥ जली करत लगत विलंब, विलंब न बूरे विचार ॥ जवन बनावत दिन लगत, ढहुत न लागत वार ॥ १ ॥ इति ॥ १६ ॥ तां सायर मांदि, ते नव पद मन धरे रे ॥ ते० ॥ सिद्धचक्र प्रत्यक्ष, के सवि संकट दरे रे ॥ के सवि० ॥ मगरमत्स्यनी पूंठ, के बेठो थिर इरे ॥ के बेो० ॥ वहाण तणी परे तेढ़, के पहोतो तट जइ रे ॥ के पहोतो० ॥ १७ ॥ औषधिने महिमाए, के जलनय निस्तरे रे ॥ के जल० ॥ सिचक्र परजावे, के सुर सानिध करे रे ॥ के सुर० ॥ त्रीजे खंडे ढाल, ए पहेली मन धरो रे ॥ ए पहेली ० ॥ विनय कदे नवि लोक, के जवसायर तरोरे ॥ के जव० ॥ १८ ॥
अर्थ- दोर काप्याथी कुंवर समुद्रमां पड्या, ते पडतां वेंतज नव पदनुं ध्यान धरता दवा, अने ए नव पद जे सिद्धचक्र ते तो संकट हरवाने प्रत्यक्षज बे, माटे पकतां वार तेज समये एक मगरमत्स्यनी पूंठ उपर पड्या, तेनी उपर स्थिर थइने बेग, ते वारे वहाणनी पेरे ते मगरमत्स्य पण एक क्षणवारमां ( तट के० ) समुद्रने कांठे जइ पहोतो ॥ १७ ॥ श्रीपाल कुंवर औषधिने महिमाए करीने जलना जयनो निस्तार पाम्या तथा वली श्रीसिद्धचक्रजीना प्रजावे करी ( सुर के० ) देवता यावी सान्निध्य करे ठे. एम त्रीजा खंमने विषे ए पहेली ढाल ते हे श्रोताजनो
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa International
खंग. ३
1194 11
Page #155
--------------------------------------------------------------------------
________________
तमे तमारा मनने विषे धरो. श्री विनय विजयजी उपाध्याय कहे बे के हे नव्य लोको ! जेम श्रीपाल समुद्रने तरी पार पाम्यो, तेम तमे पण ( जब के० ) संसाररूप समुद्रयी तरीने पार पामो, एवो आशीर्वाद पुं हुं ॥ १० ॥
॥ दोहा ॥
कोंकण कांठे उतस्यो, पदोतो इक वन मांदि ॥ याक्यो निजा अनुसरे, चंपक तरुवर बांदि ॥ १ ॥ सदा लगे जे जागतो, धर्ममित्र समरच ॥ कुंरनी रक्षा करे, दूर करे अनर ॥ २ ॥ दावानल जलधर हुवे, सर्प हुवे फूलमाल ॥ पुण्यवंत प्राणी लदे, पग पग रिसाल ॥ ३ ॥ करे कष्टमां पाडवा, दुर्जन कोमी उपाय | पुण्यवंतने ते सवे, सुखनां कारण थाय ॥ ४ ॥ थल प्रगटे जलनिधि विचे, नयर रानमां थाय ॥ विष अमृत थइ परिणामे, पूरव पुण्य पसाय ॥ ५ ॥
अर्थ-ते श्रीपाल कुंवर कोंकण कांठे जइ उतस्यो, तिहां एक वन दतुं ते मांदे पहोतो, परंतु तेने थाक लाग्यो, माटे चंपक वृनी बायानी नीचे जइ सुइ रह्यो एटले निद्राने अनुसरतो वो ॥ १ ॥ जे सदा सर्वदा लगे जागतोज डे एवो महा सामर्थ्यवान् धर्मरूप जे मित्र ते कुंवरनी साथे बे, तेज मित्र कुंवरनी रक्षा करे वे अने अनर्थने दूर करे बे ॥ यतः ॥ याधयो व्याधयो विघ्ना, दुःस्वप्नाः कुग्रहा ग्रहाः ॥ दुर्जना दुष्टशकुना, बाधंते नैव धर्मिणाम् ॥ १ ॥ रोगादिचौरनीराग्नि, गजमारी जुजंगमाः ॥ प्रेतवैतालभूताया, बाधंते न हि धार्मिकान् ॥ २ ॥ इति ॥ २ ॥ जे पुण्यवंत प्राणी ते तेने ( दावानल के० ) अनि जे बे वे ( जलधर के० ) मेघ समान ( हुवे के० ) थाय, अने सर्प तो फूलनी प्राणी पगले पगले ( रसाल के० ) मनोहर एवी रुद्धिने (लहे के ० )
माला समान थाय, तथा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #156
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रामपामे ॥ यतः॥ विलीयंते स्वयं विघ्ना, हीयंते कापि न श्रियः ॥ दीयंते शत्रवः सर्वे, प्रसादात् खम.३
पुण्यनूपतेः॥१॥ इति ॥ ३॥ जो पण जे उर्जन लोक ३ ते सुजनने कष्टमां पामवाने माटे क्रोम उपाय करे , तोपण पुण्यवंत प्राणी जे जे तेने तो ते सर्व उःखने बदले उलटां सुखनांज कारणरूप थक्ष पडे ॥४॥ पूर्वकृत पुण्यना पसायथी जीवने (जलनिधि विचे के०) समुख माहे पण ( थल के० ) पृथ्वी स्थल प्रगट थाय, अने (रान के०) अरण्य मांहे नगर प्रगट थाय, तथा जे विष होय ते अमृत थश्ने परिणमे ॥५॥
॥ ढाल बीजी॥ ॥राग मधुमादन ॥ जीरे महारे वाणी अमीय रसाल, सुणतां मुज आशा फली ॥ जीरेजी॥ ए देशी॥ जीरे महारे जाग्यो कुंवर जाम, तव देखे दोलत मली॥ जीरे जी॥ जीरे मदारे सुन्नट नला सेंबई, करे विनंति मन रली ॥ जीरे जी॥१॥जी॥ स्वामी अरज अम एक, अवधारो आदर करी॥जीरे जी॥ जी० ॥ नयरी गणा नाम, वसे जिसी अलकापुरी ॥ जीरे जी ॥२॥जी॥ तिहां राजा वसुपाल, राज्य करे नरराजीयो ॥ जीरे जी॥ जी० ॥ कोंकण देश नरिंद,
जस मदिमा जग गाजीयो॥ जीरे जी॥३॥ अर्थ-हवे ( जाम के० ) जे वारे कुंवर निजामांची जाग्रत थयो, (तव के० ) ते वारे पोतानी पागल (देखे के० ) जुए दे तो तिहां दोलत मलेली एकठी थयेली दीठी, ते शी दोलत दी । तो के जला सुलट ( सेंबद्ध के० ) शतबक एटले सेंकमागमे एकठा थयेला सेवामां सावधान है।
॥ ६॥ एवा पोतानी चारे बाजुए वींट्या थका उन्ना बे, ते सर्व (मन रली के० ) मनने विषे हर्ष पामता|3| थका बे हाथ जोमी पोताने विनंति करे , एवी रीते दीग ॥१॥ ते सुनट कहे जे के हेर स्वामिन् ! अमारी एक अरज डे ते तमे आदर करीने (अवधारो के० ) मान्य करो. हे प्रजु !
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #157
--------------------------------------------------------------------------
________________
C
S
CRACROCHCRACANCICICICALOCALoCRENC
हां गणापुरी नामे नगरी बे, ते केवी बे ? तो के साक्षात् जेवी अलकापुरी होय तेवी वसे | ॥२॥ तिहां वसुपाल नामे राजा राज्य करे , ते आखा कोंकण देशनो राजा कहेवाय जे. जेनो ६ महिमा जगतमां गाजी रह्यो जे ॥३॥
जी०॥एक दिन सन्ना मझार,निमित्तियो एक आवीयो॥जीरे जी॥जी॥ प्रश्न पूछेवा देत,राय तणे मन नावीयो॥ जीरे जी॥४॥जी॥ कदो जोशी अम धूअ, मदनमंजरी गुणवती॥ जीरे जी॥ जी० ॥ तेह तणो नरतार, कोण थाशे नल नपति॥जीरे जी॥५॥जी॥किम मलशेअमतेह, शे अदिनाणे जाणशुं॥जीरे जी॥जी॥ कोण दिवस कोण मास,घर तेमीने आणशुं ॥जीरे जी॥६॥जी० ॥ सकल कहो ए वात, जो तुम विद्या ने खरी ॥ जीरे जी ॥जी॥शास्त्र तणे परमाण, अमचिंता टालो
परी ॥ जीरे जी॥७॥ ___ अर्थ-एक दिवसे ते वसुपाल राजानी सनाने विषे एक निमित्तप्रकाशक निमित्तियो आव्यो, ते 3 निमित्तियो प्रश्न पूवाने हेते राजाना मनमा घणोज (नाव्यो के ) गम्यो ॥४॥ तेथी राजाए प्रश्न पूठ्यो के हे जोशी ! तमे कहो के अमारी बहु गुणवंती एवी एक मदनमंजरी नामे (धूश 3 के०) पुत्री , तेनो जलो जर्तार कयो नूपति थशे ? ॥ ५॥ तथा ते श्रमने केवी रीते मलशे? तथा शी श्रहिनाणीए अमे तेने जाणशुं ? तथा कये महीने अने कये दिवसे अमे तेने घेर । तेमीने लावशुं ? ॥ ६॥ माटे जो तमारी विद्या खरेखरी तो ए सर्व वात अमने कहो, अने का शास्त्रना प्रमाणे करी थमारी चिंता परी टालो, एटले पूर करो ॥७॥
MARALACANCC-NCCCCCCCCCCCC
JainEducationainternational
For Personal and Private Use Only
www.sainelibrary.org
Page #158
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
॥७
॥
जी॥जोशी कहे निमित्त, शास्त्र तणे पूरण बले ॥जीरे जी॥जी॥ पूरवगत खंग.३ आमनाय, ध्रुव तणी परे नवि चले ॥जीरे जी॥ ॥जी॥सुदि दशमी वैशाख, अढी पदोर दिन अतिक्रमे ॥ जीरे जी॥जी॥ रयणायर जपकंठ, जइ जोजो तेणे समे ॥ जीरे जी॥ ए॥ जी० ॥ नव नंदन वन मांदि, शयन कीध चंपा तले ॥ जीरे जी॥जी॥ जोजो तस अदिनाण,
तरुवर गया नवि चले ॥जीरे जी॥१०॥जी॥राये न मानी वात, __एम कहे ए शुं केवली ॥ जीरे जी॥जी॥ अमने मोकलीया आंहीं,
आज वात ते सवि मली ॥ जीरे जी ॥११॥ श्रर्थ-ए, सांजली ते जोशी पण शास्त्रना पूर्ण बले करीने पूर्वगत थाम्नायथी निमित्त कहे . ते । निमित्त केQ वे ? तो के ध्रुवना तारानी परे चलायमान थाय नहीं एवं वे ॥ ॥ ते कहे के हे। राजन् ! वैशाख सुदि दशमीने दिवसे जे वखते अढी पहोर दिवस अतिक्रमे ( तेणे समे के) ते | वखते रत्नाकर जे समुन, तेने कांठे जश्ने जोजो॥ए॥तिहां नव नंदन वन मांदे एटले मेरु पर्वतमांजे नंदन वन डे ते तो शाश्वतुं बे,माटे ते नंदन वन तो ए नहीं, पण ते समानज इहां था समुज्ने किनारे वीजें नवीन नंदन वन डे, ते मांहे चंपाना वृदनी नीचे शयन कीध, एटले सुतो हशे, अने तेमांवली एवी (अहिनाण के०) निशानी जोजो जे दिवसनो त्रीजो पहोर हशे तोपण तरुवरनी बाया ते* पुरुषनी उपरथी चलायमान थशे नहीं, परंतु तेनी उपरनी उपरज रदेशे॥ १० ॥ एवी निमित्ति-1510 ॥ याए वात कही, पण राजाए ते वात मानी नहीं, कारण के राजाए विचास्युं जे आटली बधी|8 खुलासापूर्वक वात कहे वे ते ए केवली जगवान् डे ? ते वातनो निर्णय करवा माटे श्राजे
|
JainEducation
For Personal and Private Use Only
Page #159
--------------------------------------------------------------------------
________________
अमोने अहीं मोकळ्या दे, ते अमे श्रहीं श्राव्या, अने जोयुं तो बाजे ते जोशीनी कहेली || वात सर्व मली श्राव। ॥ ११ ॥
जी॥प्रनु था असवार,अश्वरत्न आगल धस्यो॥ जीरे जी॥जी॥ कुंअर चाल्यो ताम, बहु असवारे परवयो॥ जीरे जी ॥१२॥जी॥ आगल जश् असवार, नृपने दीए वधामण। ॥ जीरे जी ॥ जी० ॥सन्मुख श्राव्यो राय, साथे ले दोलत घणी॥जीरे जी॥१३॥जी॥शणगाया गजराज, अंबाडी अंबर अमी ॥ जीरे जी॥जी॥ ॥ घंटा घुघरमाल, पाखर मणिरयणे जडी ॥ जीरे जी ॥१४॥जी॥ ॥ सोवन जमित पलाण, तेजाला तेजी घणा ॥ जीरे जी ॥ जी० ॥ जोतरीया केकाण, रथ जाणे दिनकर तणा ॥ जीरे जी॥१५॥ अर्थ-माटे हे प्रनु ! था अश्वरत्न तमारी आगल धखु बे, तेनी उपर तमे अस्वार था. ते वारे घणे परिवारे परवस्यो थको कुंवर पण अश्व उपर चढीने चाल्यो ॥ १२ ॥ तिहां एक अस्वार आगलथी जश्ने राजाने वधामणी दीए ; ते सांजलीने राजा पण घणी ( दोलत के ) शकि लश्ने कुंवरनी सन्मुख श्राव्यो ॥ १३ ॥ हवे राजाए पोतानी साथे परिवार लीधो , ते कहे . मदोन्मत्त एवा (गजराज के) हाथी शणगास्या बे, तेमनी उपर अंबामी जे नाखेली ने ते ( अंबर के०) आकाशमां जर अमी रही बे, एटले लागी रही . तथा घंटा अने घुघरानी माला तेणे करी सहित पाखर जे नाखेली , ते मणिरत्ने जमाव डे ॥ १४ ॥ वली जेमनी उपर सुवर्णे जमित पलाण नाख्यां बे, तेणे करी शोजता देखाय एवा (तेजाला के०) तेजदार (तेजी के०) तेजी नामना घोडा ते घणा पोतानी साथे लीधा , तथा वली जेने विषे ( केकाण के)
Jain Education remational
For Personal and Private Use Only
Page #160
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥3
॥
श्री राघोमा जोडेला ने एवा घणा रथ साथे लीधा ले. ते रथ केवा शोने ? तो के जाणीए दिनकर जे खम. ३
सूर्य तेनाज ए रथ होय नहीं ? एवा शोने दे ॥ १५ ॥
जी० ॥ वर बेदेढां धरी शीश, सामी आवे बालिका ॥ जीरे जी ॥जी॥ मोती सोवन फूल, वधावे गुणमालिका॥जीरे जी ॥१६॥जी॥ ॥राजवाहन चकडोल, रयण सुखासन पालखी ॥ जीरे जी॥ जी०॥ सांबेला सेंबछ, केतु पताका नवलखी ॥ जीरे जी ॥१७॥जी॥ ॥ वाजे बढ़ वाजित्र,नाचे पात्र ते पग पगे॥जीरे जी॥जी॥शणगायां घर दाट,पाट सावट गमगे ॥जीरे जी॥ १७ ॥ जी ॥ एम महोटे मंमाण, पेसारो महोबव करे॥ जीरे जी॥ जी० ॥ राय सकल गुण जाण, कुंअर पध
राव्या घरे ॥ जीरे जी॥१॥ अर्थ-तथा ( वर बेहेढां के ) श्रेष्ठ गोत्रीमाना कलशने ( शीश के० ) मस्तके धरीने महा3 रूपवती अने गुणनी मालिका जेवी बालिका सामी श्रावे , ते मोती अने सोनानां फूलोए 8 करीने कुंवरने वधावती हवी॥ १६॥ वली राजवाहन जे त्रामजाम अने चकमोल जे मोल रत्ने जमाव सुखासन अने पालखी ते मांहे ( सेंबक के ) शतब एटले सेंकमागमे सांबेला बेगं थका सन्मुख आवे , तेमज सर्वने जोवा योग्य एवी नवलखी केतु, पताका अने ध्वजाउँने सन्मुख लावे ॥ १७ ॥ तथा ( बहु के० ) घणा प्रकारनां वाजिन वाजे ठे, पगले पगले नाटकोनां ॥ पात्रो नाचे वे, वली नगरनां घर, हाट सर्व शणगास्यां , ते (पाट सावटू के० ) रेशमनां वस्त्रोए । करी सुशोजित थकां जगमगी रह्यां ॥२०॥ एम मोटे मंडाणे करीने सर्व गुणनो जाणकार
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #161
--------------------------------------------------------------------------
________________
एवो जे राजा, ते पोताना नगरमां कुंवरने ( पेसारो के० ) प्रवेश कराववानो महोत्सव करे, एवा | महोत्सवे कुंवरने राजाए पोताने घेर पधराव्या ॥ १५॥
जी ॥जोशी तेडाव्या जाण, लगन तेहीज दिन आवीयुं ॥ जीरे जी॥ जी॥देशबहुलां दान,राये लगन वधावीयुं॥जीरे जी॥२०॥जी॥तेहीज रयणी मांदि,धुआ मयणरेखा तणो॥जीरे जी॥जी॥राये कस्यो विवाह, साजन मन उलट घणो ॥ जीरे जी॥२१॥जी॥ ॥गज रथ घणा नंमार, दीधा करमेलावणे॥जी रेजी॥जी॥जश्ए महिमा देखी, सिचक्रने नामणे ॥जीरे जी॥२२॥जी॥ पमीया सायर मांदि, एकज मुःखनी यामिनी ॥ जीरे जी ॥ जी ॥ बीजी रात्रे जोश, इणी पेरे परण्या कामिनी॥जीरे जी॥२३॥जी॥नृप दीधा आवास, तिहां सुखनर लीला करे ॥ जीरे जी ॥जी॥ मयणरेदारों नेह, दिन दिन अधिकेरो धरे॥
जीरे जी॥२४॥ अर्थ-पढी राजाए तेज वखते घणां शास्त्रना जाण एवा जोशीने तेडावी लग्न जोवराव्युं, तो है लग्न पण तेज दिवसे श्राव्यु, ते वारे राजाए जोशीने बहुला दान एटले घणां दान थापीने ते लग्न वधावी लीधुं ॥ २० ॥ तेहीज रात्रि मांहे पोतानी मदनरेखा नामे जे पुत्री, तेनो राजाए | विवाह कस्यो, ते वखते सजान जनोनां मनमा उलट एटले हर्ष घणो थयो॥१॥राजाए घणा हाथी, रथ तथा धनना नंमार ते हाथमेलावणामां बाप्या. कवीश्वर कहे ले के आवीरीतनो महिमा देखीने श्रीसिद्धचक्रने जामणे जइए ॥ ॥ जु के जे दिवसे समुपमा पड्या, ते एकज यामिनी || एटले रात्रि कुःखनी गइ, अने बीजी रात्रिए तो था पूर्वे कही आव्या एवीरीते कामिनी जे स्त्री, ते 8
MAMACHARCOACANCARNAGARRC-RRIGARCANCCANCE
in Education International
For Personal and Private Use Only
Page #162
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राप्रत्ये परण्या अने सुखमां आवी बेग. ए सर्व श्रीसिद्धचक्रनो पसाय जाणवो ॥२३॥ हवे राजाए। खंग.३
वा माटे श्रावास दीधा. तेमां रह्या थका सुख नर एटले घणा सुखमा मग्न थका लीला करे . तिहां मदनरेखा स्त्रीनी साथे दिवसे दिवसे अधिक स्नेह धरे रे ॥२४॥
जी० ॥ नृप दीए बहु अधिकार, कुंअर न वंठे ते हीये॥जीरे जी ॥जी॥ थयो थगीधर आप, पान तणां बीडां दीए ॥ जीरे जी ॥२५॥जी॥जे कोइ अति गुणवंत, मान दीए नृप जेहने ॥ जीरे जी ॥ जी० ॥ तेहने बीडां पान, देवरावे कुंअर कने॥ जीरे जी॥२६॥जी॥त्रीजे खंडे एद, बीजी ढाल सोहामणी ॥ जीरे जी ॥ जी० ॥ सिचक्र गुणश्रेणी, नवि
सुणजो विनये नणी ॥जीरे जी ॥२॥ __ अर्थ-हवे श्रीपालने देश, नगरादिकना खामीपणा विगेरे घणा प्रकारना हुकम होद्दाना अधिकार राजाए देवा मांड्या, तथापि ते होदा लेवाने कुंवर वांठा करतो नथी, मात्र पाननां बीमां देवा संबंधी थगीधरनी पदवी लश्ने पोते थगीधर थयो ॥ २५ ॥ एटले जे को अत्यंत गुणवान् है
पुरुष होय, जेने राजा मान महत्त्व आपे, ते वारे तेने पाननां बीमां कुंवरनी पासे श्री राजा अपावे , ४॥ २६ ॥ ए त्रीजा खंडने विषे वीजी ढाल सोहामणी कही. एमां श्रीसिकचक्र नगवानना गुणनी श्रेणी जे श्रीविनयविजयजी उपाध्याये (जणी के०) कही, ते हे जविजीवो! तमे श्रवण करजो॥७॥
॥दोहा॥ वाहण मांदे जे दुश्, दवे सुणो ते वात ॥
धवल नाम कालो हिये, दरख्यो साते धात ॥१॥ अर्थ-हवे वहाणो मांहे जे वात थ ते सांजलो. शेग्नुं नाम तो धवल , ते धवल शब्दनो
CONCCCCISCESCORE
NCREC ER-
॥
॥
FASC-
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #163
--------------------------------------------------------------------------
________________
अर्थ उज्ज्वल थाय , पण ते शेष हैया मांहे कालो एटले श्याम , माटे श्रीपालने समुजमा। नाखीने पोते साते धाते हर्षवंत थयो ॥१॥
मन चिंते मुज नाग्यथी, महोटी थइ समाधि॥ पलक मांदि विण उसडे, विरुइ गइ विराधि ॥२॥ए धन ने दोय सुंदरी, एद सहेली साथ ॥ परमेसर मुज पधारो, दीधुंहाथोहाथ ॥३॥ मूडी माया केलवी, दोय रीझg नार ॥ दाथे लेश मन एहनां, सफल करूं संसार ॥ ४ ॥ ॐःखीया थइए तस उःखे, वयण सुकोमल रीति ॥ अनुक्रमे वश कीजीए, न होय पराणे प्रीति ॥ ५॥ धूरत इम चित्तमां धरी, करे अनेक विलाप ॥ मुखे रुवे
दइडे हसे, पाप विगोवे आप ॥६॥ अर्थ-मन मांहे चिंतवना करे डे के मारा जाग्योदयश्री मोटी समाधि थक्ष, एक पलवारमा औषध विना ( विरुश् के०) माठी एवी जे ( विराधि के०) व्याधि हती ते जती रही ॥२॥ हवे ए धन अने ए वे स्त्री तथा ए साहेलीनो सथवारो ते सर्व मारो परमेश्वर पाधरो के जेणे मने हाथोहाथ दीधुं, अथवा ए धन, ए वे स्त्री तेने साहेली सहित परमेश्वरे मुजने है। पाधलं हाथोहाथ दीधुं ॥३॥ पण हवे हुँ कूमी (माया के० ) कपट केलवीने ए बेहु स्त्रीने | रीजवं, अने एनां मन मारा हाथमां करीने संसार सफल करुं ॥ उक्तं च ॥ जंपिजा पिय वयणं, किजा विणय दिजा दाणं ॥ परगुण गहणं किजार, मूलं मंतं वसीकरणं ॥१॥ इति ॥४॥ | वली शेठ विचारे बे के तेना पुःखे पोते पण पुःखीया थए अने वचन सर्व सुकोमल रीते बोलीए, एम अनुक्रमे करीने सामा फुःखीयाने वश करीए, परंतु पराणे प्रीत थाय नहीं ॥५॥ एम ते धूर्त शेठ पोताना चित्तमा पुष्ट धारणा करीने अनेक प्रकारना विलाप करे , मुखश्री तो की
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #164
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ८० ॥
रोवे बे, पण हैडामां इसे बे. एम पापे करीने पोताना श्रात्माने वगोवे बे ॥ यतः ॥ चित्ते पुष्टा मुखे मिष्टाः, खदोषे परदोषकाः ॥ प्रविश्यांतर्जनं नंति, विषमिश्रगुंलाः खलाः ॥ १ ॥ इति ॥ ६ ॥ ॥ ढाल त्रीजी ॥ रहो रहो रथ फेरवो रे । ए देशी ॥
जीवजीवन प्रभु किदां गया रे, दीयो दरिसन एक वार रे ॥ सुगुणा साहेब तुम विना रे, अमने कोण आधार रे ॥ जीव० ॥ १॥ शिर कूटे पीटे दियुं रे, मूके मदोटी पोक रे ॥ दाल कलोल थयो घणो रे, नेलां हुआ घणां लोकरे ॥ जीव० ॥ २ ॥ कौतुक जोवाने चढ्या रे, मांचे वादनी कोर रे ॥ है है ! देव शुं युं रे, त्रूटा जुना दोर रे ॥ जीव० ॥ ३ ॥ जव बेहु तरे, कापडी ते वात रे ॥ धसक पड्यो तव भ्रासको रे, जाणे वनो घात रे ॥ जीव० ॥ ४ ॥
- हवे शेव केवी रीते विलाप करे बे ? ते कड़े बे के मारा जीवना जीवन ! तमे क्यां गया ? अरे ! मने एक वार दर्शन तो आपो ! हे सुगुण साहेब ! तमारा विना हवे श्रमने इहां बीजा कोनो आधार बे ? ॥ १ ॥ माथु कूटे बे, हैयुं पीटे बे ने मुखथी मोटी पोको मूके बे, तेथी घणो दालकलोल थइ रह्यो, ते सांजलीने तिहां घणां लोको जेलां ययां ॥ २ ॥ ते पूढवा लाग्यां के हे शेवजी ! तमे शामाटे एटलुं वधुं रुदन करो बो ? ते वारे कपटी शेठे लोकोने वि| श्वास बेसामवा सारु जवाव व्याप्यो के जो लोको ! मारा स्वामी जे श्रीपाल कुंवर ते कौतुक जोवाने माटे वहानी कोरे मांचा उपर चढ्या, तेमां जुनां दोरडां हृतां ते त्रूटी गयां अने ते | कुंवर समुद्रमां पड्या. श्राम लोकोने कहीने वली कल्पांत करवा लाग्यो के है है इति दुःखे हाय हाय !! हे दैव ! था ते शो गजब थयो !!! ॥ ३ ॥ ए वात जे वारे ते बेहु ( मया के० )
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only)
खंग. ३
॥ ८० ॥
Page #165
--------------------------------------------------------------------------
________________
RANICALCRACANCCCCCESSG
स्त्रीउने काने पडी, ते वारे तेमने ध्रसक देश्ने धासको पड्यो. ते धासको जाणे साक्षात् वज्रनो | घा लागे तेवो तेमना हैयामां थर लाग्यो ॥ यतः ॥ निर्माय खलजिह्वाग्रं, सर्वप्राणहरं नृणाम् ॥ चकार किं वृथा शस्त्र,-विषवहीन् प्रजापतिः ॥१॥ इति ॥४॥
थइ अचेत धरणी ढली रे, करती कोड विखास रे॥ सही सहेली सवि मली रे, नाके जोवे निसास रे॥ जीव ॥ ५॥ गंट्यां चंदन कमकमां रे, कस्या वींकणे वाय रे॥चेत वल्युं तव आरडे रे, दै ऊख न माय रे ॥ जीव० ॥ ६॥ कां प्राण पाग वल्या रे, जो रूठगे किरतार रे॥ पीयरीयां अलगां रह्यां रे, मूकी गयो भरतार रे ॥ जीव० ॥ ॥ माय बापने परदरी रे, कीधो जेदनो साथ रे॥ फिट दियडा फूटे नहीं रे, वि
बड्यो ते प्राणनाथ रे॥ जीव०॥७॥ अर्थ-ते बे कुंवरी करोडोगमे विषाद करती थकी अचेतन थश्ने (धरणी के०) पृथ्वी उपर ढली पमी. ते एवी थ गश् के जाणीए मरणज पामी होय नहीं ? ते वारे या मरण पामी के शुं ? एवी शंका लावीने सखी साहेली मलीने तेमने नाके (निसास के०) निःश्वास (जोवे । के ) जोवा लागी ॥ ५॥ पड़ी नाकेथी निःश्वास श्रावतो जोर सखीए कमकमां एटले अत्यंत बहेकतां एवां बावनाचंदन तेमनी उपर बांट्यां, वीजणे करी वायु कस्यो, तेथी चेतन वट्युं. ते हैं। वारे तरत (आरडे के०) आक्रंद सोरवकोर करे . तेमनां हैयामां कुःख समातुं नथी ॥६॥ ते आक्रंद करती कहे के अरे ( किरतार के०) दैव ! तुं जो अमारा उपर रूग्यो तो संपूर्ण केम रूग्यो नहीं ? के जे तें अमारा प्राण का पाला वाख्या ? अमे मरी कां न गइ ? हवे अमारां ।। पीयरीयां जे माता पिता ते पण अलगां रही गयां, अने जार पण मूकी गयो ॥ ॥ अमे।
MORECORGENCOCCALCONSCIROANUSANGACASS
K
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #166
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥ ८१ ॥
Jain Educationa
अमारां माता पिताने परहरीने जेनो संघात कीधो, ते अमारो प्राणनाथ पण अमाराथी विड्यो के० ) जूदो पड्यो, तो है हैया ! फिटकार बे तुने ! जे तुं केम फूटी जतुं नथी ? तुं ते वली शा वास्ते कायम रहे बे ? ॥ ८ ॥
धवल शेठ तिदां यवीयो रे, कूमा करे विलाप रे ॥ शुं कीजे ए दैवने रे, दीजे की या शराप रे ॥ जीव० ॥ ए ॥ दुःख सह्यां माणस कह्यां रे, नूख ह्यां जिम ढोर रे ॥ धीरज व्याप न मूकीए रे, करीए हृदय कठोर रे ॥ जीव० ॥ १० ॥ मणि माणिक मोती परे रे, जेदना गुण अभिराम रे ॥ जिदां जाशे तिदां तेढ्ने रे, मुकुट दार शिर ठाम रे ॥ जीव० ॥ ११ ॥ व्यंग वचन एवं सुणी रे, मन चिंते ते दोय रे ॥ एद करम एणे करयुं रे, 'वर न वैरी कोय रे ॥ जीव० ॥ १२ ॥
अर्थ - एमते बालिका विलाप करे बे, तिहां धवल शेठ पण श्राव्योधने कूमा विलाप करतो करतो कहे बे के अरे ! श्रा इष्ट देवने शुं करीए ! अने शुं कहीए ! एने केवा शाप आपीए ॥ ए ॥ माटे जेम जूख सहन करवामां ढोर कलां बे, तेम दुःख सहन करवामां माणस कलां बे, ते माटे दुःख तो माणस उपरज श्रावी पडे बे, परंतु पोतानुं धैर्य मूकीए नहीं अने | हृदय कठण करीए ॥ २० ॥ मणि, माणिक ने मोतीनी पेरे जेना मनोहर गुण बे एवा पुरुष जिहां जशे तिहां ते मुकुट, हार ने मस्तकना ( ठाम के० ) स्थानकने पामशे, माटे हे नये ! तमे कांइ दुःख करो नहीं, हुं तमारुं दुःख दूर करीश ॥ ११ ॥ एवं ( व्यंग के० ) वांकुं वचन | शेठना मुखमांथी नीकलतुं सांजलीने ते बेहु स्त्री मनमां चिंतववा लागी जे ए अघटित कर्म एज कयुं छे. बीजो वैरी आपणो कोइ नथी ॥ १२ ॥
For Personal and Private Use Only
खंग. ३
# ॥ ८१ ॥
Page #167
--------------------------------------------------------------------------
________________
धन रमणीनी लालचे रे, कीधो स्वामिशेद रे || मीठो थइ यावी मले रे, खांड गलेफीयुं लोढ़ रे ॥ जीव० ॥ १३ ॥ शील दवे किम राखशुं रे, एकरशे उपघात रे ॥ करीए कंत तणी परे रे, सायर कंपापात रे ॥ जीव० ॥ १४ ॥ सम काले बेहु जणी रे, मन धारी ए वात रे ॥ इ अवसर तिदां उपनो रे, प्रति विसमो उतपात रे ॥ जीव० ॥ १८ ॥ दाल कलोल सायर थयो रे, वाये उन्नड वाय रे ॥ घोर घनाघन गाजीयो रे, वीजली चिहुं दिशि याय रे ॥ जीव० ॥ १६ ॥ कूच्या यंत्रा करूकडे रे, नी
ये सदर रे || हाथे दाथ सूके नहीं रे, ययुं अंधारुं घोर रे ॥ जीव० ॥ १७ ॥ अर्थ-एक धन ने बीजी ( रमणी के० ) स्त्री तेनी लालचे ए दुष्टे अमारा स्वामीनो द्रोह कीधो ठे, ने हवे जेम खांडे गलेपयुं एवं ( लोह के० ) तरवार होय, तेनी पेरे उपरथी मीठो य आवीने श्रमने मले बे ॥ यतः ॥ मीठगबोला मानवी, केम पतीज्यां जाय ॥ मोर कंठ मधुरो लवे, साप समूलो खाय ॥ १ ॥ इति ॥ १३ ॥ माटे हवे आपणे आपणुं शील ते केवी रीते राखशुं ? कारण के ए तो आपणा शीलनो उपघात करशे तो हवे यपणे पण जर्त्तारनी परे समुद्रमां | पापात करी ॥ १४ ॥ ए वातने बेदु जणीए मनमां धारी राखीने सम काले समुद्रमां कंपापात करवानो निश्चय कस्यो. एवा अवसरने विषे तिहां अत्यंत विषम उत्पात उत्पन्न थथा ॥ १५ ॥ उजम वायरो वाय बे तेना योगे करी समुद्र हालकलोले चढ्यो एटले हालकलोल थर रह्यो अने ( घोर के० ) महा जयंकर एवो ( घनाघन के० ) वर्षाद गाज्यो, तथा चारे दिशाए वीजलीना चमकारा थवा लाग्या ॥ १६ ॥ वहाणोना कूश्रा थंना सर्व कमकडाट करवा लाग्या. सढ, दोर उमी जवा लाग्या. तिदां एवो ( घोर के० ) बीदामणो अंधकार थयो के जेने प्रजावे करी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #168
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ८२ ॥
कोइ माणसने हाथोहाथ मेलववानी पण सूज पक्ती तथी. एवा सेंकमागमे उत्पात थवा मांड्या ॥ ११ ॥ म डमरू डमकते रे, मुख मूके हुंकार रे ॥ खेत्रपाल तिदां यवीया रे, हाथे लेइ तरवार रे ॥ जीव० ॥ १८ ॥ वीर बावन्ने परवस्था रे, दाथे विविध दथियार रे ॥ मीदार दोडे बडा रे, चार चतुर परिहार रे ॥ जीव० ॥ १९ ॥ बेठी मृगपति वाहने रे, चक्र जमाडे हाथ रे ॥ चक्केसरी पाउधारीया रे, देव देवी बहु साथ रे ॥ जीव० ॥ २० ॥ दण्यो कुबुद्धि मित्रने रे, जिणे वांकी मति दीध रे ॥ खेत्रपाले तव ते ग्रही रे, खंग खं तनु कीध रे ॥ जीव० ॥ २१ ॥
अर्थ-ते समये जेना पग मांहे कम कम शब्द करतो एवो ममरू ते ( डमकते के० ) वाजते श्रने मुखमांथी हुंकार शब्द मूकतो तथा हाथमां तलवार लइने अत्यंत रौद्र रूप धरतो एवो देत्रपाल देव प्रथम तिहां आव्यो ॥ १८ ॥ ते वार पछी बावन वीरोए परवस्था थका मणिजड, पूर्ण - नऊ, कपिल, पिंगल, ए चारे मोटा मुहर व्यादिक विविध प्रकारनां हथियारो जेना हाथमां बे एवा तथा कुमुद, अंजन, वामन ने पुष्पदंत, ए चार नामे चार दंग हाथमां लइने चार चतुर पमिहार एटले प्रतिहार देवता ते उमीदारनी परे आगल बमा दोकता थका चाले बे ॥ १७ ॥ अने पोते मृगपति जे सिंह तेना वाहने बेठेली, हाथमां जाज्वल्यमान चक्रने जमाती थकी घणा देव ने देवी जेमनी साथे बे एवी चक्रेश्वरी देवी तिहां पधारयां ॥ २० ॥ तेमणे चावीने प्रथम तो एवो हुकम कस्यो के अरे ! या दुष्ट बुद्धिनो देवावालो जे शेठनो मित्र बे, | तेज पुरुष निश्चे सर्व अनर्थनुं मूल ढे. एणे वांकी मति एटले विपरीत मति दीधी बे, माटे एने पकको, ते वारे तत्काल क्षेत्रपाले तेने पगथी बांधी उंचो कूश्रा थंजाने विषे टांगी नीचुं मुख करी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग. ३
॥ ८२ ॥
Page #169
--------------------------------------------------------------------------
________________
मुखमांधी वांकां वचन काढ्यां, माटे मुखमां अशुचि जरी तरवारे करी तेना ( तनु के० ) शरी-|| रना खंडोखंड करी नाख्या. पली जाणे शांति करवाने माटे चारे दिशाना चार दिक्पालने बलिज है। आपता होय नहीं ? एवी रीते चारे दिशाए तेना शरीरना कटकाने फेंकी दीधा. ए रीते* क्षेत्रपाले कुबुझि मित्रने हण्यो ॥ २१ ॥
ते देखी बीहीतो घणुं रे, मयणा शरणे पश्छ रे॥ शेठ पशु परे धूजतो रे, देवी चक्केसरी दी रे ॥जीव० ॥२२॥ जा रे मूक्यो जीवतो रे, सतीशरण सुपसाय रे॥ अंते जाइश जीवथी रे, जो मन धरीश अन्याय रे ॥जीव ॥२३॥ मयणाने चक्केसरी रे, बोलावे धरी प्रेम रे॥ वत्स! कां चिंता करो रे, तुम पियुने ने खेम रे॥जीव०॥२४॥मास एक मांदे सदी रे, तमने मलशे तेह रे ॥राजरमणी शदिनोगवे रे, नरपति
सुसरा गेह रे ॥ जीव० ॥ २५॥ अर्थ-ते कृत्य जोइने शेठ बापडो पशुनी परे धूजतो थको, वीतो थको ते बेहु मयणा जे स्त्री तेने || शरणे जर पेठो, तेने चक्रेश्वरी देवीए दीगे॥२॥ ते वारे देवी कहेवा लाग्यो के अरे उष्ट! पापिष्ठ! 3 जा. हमणां तो तुजने सतीना शरणना सुपसाये करीने निश्चे जीवतो मूक्यो ने, पण अमे कहीए बीए के जो तुं तारा मनमा अन्याय धारण करीश तो अंते जीवथी जश्श ॥ २३॥ ते जो विस्मय , पामती थकी ते बेहु स्त्री विनय सहित चक्रेश्वरी देवी प्रत्ये सप्रसाद एवं वचन बोली. त्यारे 2 तेने देवी पण प्रेम धरीने बोलावतां हवां के हे वत्से ! तमे कां चिंता करो बो ? तमे निश्चिंत 8 रहो. तमारा स्वामीने देम कुशल ॥ २४ ॥ (सही के०) निश्चे तमने तमारो नर्तार एक मही-18
E
n
ternational
For Personal and Private Use Only
Page #170
--------------------------------------------------------------------------
________________
) aleतमारो पति तो।
॥३
नामां मलशे, तमारो पति तो ( नरपति के ) राजा ससराने घेर रह्यो थको राज्य अने (रमणी के ) स्त्रीरूप ( शक्ति केन्) लक्ष्मी तेने जोगवे वे ॥२५॥
बेहने कंठे ग्वे रे, फूल अमूलक माल रे॥ कदे देवीमहिमा सुणो रे, एहनो अतिदि रसाल रे॥ जीव० ॥२६॥शील यतन एदथी थशे रे, दिन प्रते सरस सुगंध रे॥ जेह कुमीटे जोयशे रे, ते नर थाशे अंध रे॥जीव ॥२॥एम कही चक्केसरी रे,उतपतीयां आकाश रे॥सयल देवशुं परवस्यां रे, पहोतां निज आवास रे॥जीव०॥ ॥ तव उतपात सवे टल्या रे, वाहण चाल्यां जाय रे॥ चिंता नांगी सर्वनी रे, वाया वाय सुवाय रे॥ जीव० ॥२॥ मित्र त्रण कहे शेठने रे, दीठी परतद वात रे॥ चोथो मित्र अधर्मथी रे, पाम्यो वेगे घात रे ॥ जीव० ॥ ३० ॥ अर्थ-एम कही ते बेहनी कंठे श्रमल फलनी माला पहेरावीने देवी कहे के एनं अत्यंत रसाल माहात्म्य बे, ते हुँ कहुं बुं, तमे सांजलो ॥ ३६ ॥ ए मालानी दिवस दिवस प्रत्ये सरस 8 सुगंध थती जशे, अने एहथी तमारा शीयलनी यत्ना थशे, कारण के जे कोइ तमने कुनजरे है जोशे, ते पुरुष आंधलो थशे ॥ २७॥ एम कहीने चक्केसरी देवी श्राकाशमार्गे उत्पत्यां, श्रने सर्व देवोनी साथे परवस्यां थका पोताने श्रावासे पहोतां ॥ २७ ॥ ते वारे सर्व जे कांश उत्पात हता|3 ते टल्या. हवे वहाण पण सुखे समाधे चाच्यां जाय , सर्वने जे चिंता प्राप्त थर हती ते पण नांगी, अने वायरा पण सुवाय एटले रुमा वावा लाग्या ॥ २५ ॥ ते वखत शेठना जे सरल है।
खनावी सुबुद्धिवाला त्रण मित्र हता, ते कहेवा लाग्या के हे शेठजी ! जु, था प्रत्यद वात विनी, ते तमे दीठी. जो आ चो
1, ते तमे दीठी. जो बा चोथो मित्र अधर्मथी चाल्यो तो (वेगे के०) तरतज (घात के०)
॥
३॥
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #171
--------------------------------------------------------------------------
________________
मरण पाम्यो, अने तमे पण जो सतीउनुं शरण लीधुं तो तेना महिमाथी जीवता रह्यो ठो, नहीं कां तमारा पण तेवाज हाल यात ॥ ३० ॥
माटे ए चित्तथरे, काढी मूको साल रे ॥ परलखमी परनारने रे, दवे म पडशो ख्याल रे ॥ जीव० ॥ ३१ ॥ पण दुर्बुद्धि शेवनुं रे, चित्त न वाय रे ॥ जइवि कपूरे वासीए रे, बसण दुर्गंध न जाय रे ॥ जीव० ॥ ३२ ॥ दैडा करने वधामणां रे, अंश न दुःख धरेश रे ॥ जो बच्यो बुं जीवतो रे, तो सवि काज करेश रे ॥ जीव० ॥ ३३ ॥ जो मुज ras, युं विसराल रे ॥ तो मलशे ए सुंदरी रे, समशे विरदनी जाल रे ॥ जीव० ॥ ३४ ॥
अर्थ- माटे मे तमोने कहीए बीए के तमारा चित्तमां जे पारकी लक्ष्मी लइ लेवी अने पारकी स्त्री जोगववी, तडूप जे शब्य वे ते काढी नाखो अने हवे एवा ख्यालमां क्यारे पण परुशो नहीं ॥ ३१ ॥ एवी रीते त्रण मित्रे मली शेठने शिखामण थापी, तथापि जेम लसण बे तेने यद्यपि कपूरमां वासित करीए, तोपण तेनी दुर्गंधता जाय नहीं, तेम ते डुर्बुद्धि शेठनुं चित्त पण ठेकाणे श्राव्यं नहीं ॥ यतः ॥ यद्यपि मृगमदचंदन, - कर्पूरागरुमिश्रितो लशुनः ॥ तदपि न मुञ्चति गंधं, प्रकृतिगुणं जातिदोषेण ॥ १ ॥ इति ॥ ३२ ॥ तेम इहां धवल शेठने जो पण मित्रे | यावीने शिखामण थापी, तोपण फरी एवो विचार करवा लाग्यो के है हैडा ! हवे तो तुं वधामणां करने ? एक अंशमात्र पण दुःख धरीश नहीं, जो हुं जीवतो बच्यो ढुं तो सर्व कार्य करीश ॥ ३३ ॥ जो मारा सारा जाग्ये करी एटलुं मोढुं विघ्न उपन्युं हतुं ते पण सर्व विसराल थइ गयुं
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #172
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ८४ ॥
तो निश्चे हुं जाएं तुं जे हवे या लक्ष्मी जो सुखेथी मारे वश थइ गइ बे, तो सुंदरीचं पण मने अवश्य मलशे, अने मारा विरहनी ज्वाला पण उपशम पामशे ॥ ३४ ॥
एम चिंतीदूतीमुखे रे, कहावे हुं तुम दास रे ॥ नेक नजर करी निरखीरे, मानो मुज अरदास रे ॥ जीव० ॥ ३५ ॥ दूतीने काढी परी रे, देश गलदो कंठ रे ॥ तोदि निर्लज लाज्यो नहीं रे, वली थयो उल्लं रे ॥ जीव० ॥ ३६ ॥ वेश करी नारी तणो रे, प्राव्यो मयणा पास रे ॥ दृष्टि गइ यो प्रांधलो रे, काढ्यो करी उपदास रे ॥ जीव० ॥ ३७ ॥
तरी उत्तर तटे रे, वाढण चलावो वेग रे || पण सन्मुख होये वायरो रे, शेव करे उद्वेग रे ॥ जीव० ॥ ३८ ॥
अर्थ - एम चिंतवी दासीने मुखे स्त्री प्रत्ये कहेवराव्युं के हुं तमारो दास हुं, माटे तमे मने ( नेक नजर के० ) रुमी नजरे करी जुर्ज; एटली मारी विनंति मान्य करो ॥ ३५ ॥ ते सांजली स्त्रीउए ते डूतीने घणीज निभृंगी कंठे गलहवो देने काढी मूकी, तोपण ते निर्लज शे लगार मात्र पण लाज्यो नहीं. कामरूप पिशाचे पीड्यो थको गयो बे विवेक जेना हृदयमांथी ने पापमय अध्यवसायने लीधे एक क्षण मात्र पण जेने सुख आवतुं नथी एवो ते शेठ फरी पण उठ थयो ॥ ३६ ॥ फरी एक दिवसे ते शेठ पोते नारीनो वेश लइने बेहु स्त्री पासे श्राव्यो,
ने जेवी दृष्टि ते स्त्रीउनी उपर गइ के तरतज बांधलानी परे थइ गयो, एटले हारना प्रजावथी स्त्रीने ते कांइ पण देखी शके नहीं एवो थको इहां तिहां जमतो रह्यो, तेने दासीउए उपहास करी मारी कूटीने कूतरानी परे तिहांथी बहार काढ्यो ॥ ३७ ॥ पछी शेठ नाखुदाने कड़ेवा लाग्यो के श्रापणे उत्तर दिशिना तटे उतरीए, अथवा उत्तर एटले बीजा कोइ तटे उतरीए, माटे तमे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग. ३
॥ ८४ ॥
Page #173
--------------------------------------------------------------------------
________________
वदाणोने वेगे चलावो, परंतु वायरो सन्मुख थवा लाग्यो, तेथी शेठजी घणो उद्वेग करवा लाग्या ॥ ३८ ॥ प्रवर देश जावा तणा रे, कीधा कोटी उपाय रे ॥ पण वाढण कोंकण मूक्यां वाय रे ॥ जीव० ॥ ३९ ॥ त्री जे खंगे इम कदी रे, विनये त्रीजी ढाल रे ॥ सिदचक्र गुण बोलतां रे, लदीए सुख रसाल रे ॥ जीव० ॥ ४० ॥
तटेरे,
अर्थ - शेठे (अवर के० ) बीजा देशे जवाना करोमो उपाय कस्या, पण वायरे सर्व वहाणोने कोंकण देशना ( तटे के० ) कीनारे श्राणी मूक्यां ॥ ३ए ॥ ए त्रीजा खंमने विषे विनय विजयजी उपाध्याये त्रीजी ढाल कही. श्री सिद्धचक्रजीना गुण बोलतां थका रसाल सुख पामीए ॥ ४० ॥ ॥ दोहा ॥
कोंकण कांठे नांगरयां,सवि वादण तिणी वार ॥ नृपने मलवा उतरयो, शेठ लइ परिवार ॥ १ ॥ आव्यो नरपति पाउले, मिलणां करे रसाल ॥ बेगे पासे रायने, तव दीगे श्रीपाल ॥ २ ॥ देखी कुंअर दीपतो, दैये उपनी ड्रंक | लोचन मीचाइ गयां, रवि देखी जिम घूक ॥ ३ ॥
अर्थ - ते वारे खलासी ए सर्व वहाणोने कोंकण कांठे नांगरयां, शेठ पण पोताना परिवारने लइने राजाने मलवा माटे वहाणो उपरथी उतस्यो ॥ १ ॥ ते श्रावीने राजाने पगे लागी घणीज रसाल बहुमूली वस्तुर्जनां नेटणां कस्यां पढी राजानी पासे बेठो ते वारे श्रीपाल कुंवरने दीठो ॥ २ ॥ तिहां दीपता एवा कुंवरने देखीने शेठना हैयामां हूंक उपनी, अने जेम ( रवि के० ) सूर्यने देखीने ( घूक के० ) घूवक पक्षीनी आंखो मीचाइ जाय बे, तेम तिहां शेठजीनां पण लोचन मीचाइ गयां ॥ ३ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #174
--------------------------------------------------------------------------
________________
*
*****
श्रीराम नृप दाथे श्रीपालने, देवरावे तंबोल ॥ शेठ नली परे उलखी, चित्त
खंम.३ ॥ ५॥
थयुं ममडोल ॥४॥ है है दैव अटारडो, एद किशो उतपात ॥ नाखी दती खारे जले, प्रगट थ ते वात ॥ ५॥ सना विसरजी राय जब, पहोतो महोल मकार ॥ तव शेठे पडिदारने, पूग्यो एद विचार ॥६॥ एद थगीधर कोण ने, नवलो दीसे कोय ॥ तेद कदे गति एदनी, सुणतां अचरिज होय ॥७॥ वनमा सुतो जागवी, घर आण्यो नली नात ॥
परणावी निज कुंअरी, न पूरी वात ने जात ॥७॥ अर्थ-राजाए पण शेग्ने मोटो सार्थवाह जाणीने बहुमानपूर्वक विशेषे करी तेज श्रीपालने || हाथे तेने तंबोल ते पान- बीडं देवराव्युं, ते वारे श्रीपाले पण देखतां वार (नली परे के० ) रुमी रीते जाण्यो जे ए धवल शेग्ज , अने शेठे नली परे उलखी लीधो जे ए श्रीपालज , तेथी तेनुं चित्त ममाडोल थयुं ॥४॥ ते वारे चिंतववा लाग्यो जे है है इति खेदे अरे ! ए (अटारमो के) वांको दैव तेणे आ ते श्यो उत्पात कस्यो ! के जे वातने में खारा पाणीमां एटले खारा
समुअमां नाखी दीधी हती, ते वात शहां प्रगट थ!! ॥५॥ पड़ी जे वारे सना विस-15 दर्जन करी राजा पोताना महोलने विषे पहोतो, ते वारे शेठे विचाखु जे था तेज श्रीपाल
बे, किंवा एना सरखो बीजो कोश् पुरुष ? तेनी तपास तो करूं, कारण के तेने तो में
समुप्रमा नाखी दीधो बे, माटे ते जीवतोज केम होय ? एवं चिंतवन करीने पली शेठे एक जासंबंधी सर्व विचार पोलीयाने पूज्यो ॥६॥के हे ना ! आ थगीधर ते कोण ? था|SIn
तो कोइक नवो माणस देखाय बे. एवं सांजली ते पोलीयो कहे डे के हे शेठ ! एनी ( गति के) विगत सांजलतां थका तो माणसने अचरिज पेदा थाय एवी हकीकत ॥ ७॥ एने तो
55555555ARACK
**
***
***
For Personal and Private Use Only
Page #175
--------------------------------------------------------------------------
________________
वनमाथी सुतो जगावी मोटा महोत्सवे करी नली जाते घेरतेमी श्राणीने राजाए पोतानी कुंवरी| परणावी दीधी, पण एनी जात के नात कोण डे? ते वात पण कांपूबी नहीं ॥७॥
शेठ सुणी रीज्यो घणुं, चित्तमां करे विचार ॥ एदने कष्टे पामवा, नर्बु देखाड्युं बार ॥ ए॥ देश कलंक कुजाति, पाडं एदनी लाज ॥ राजा दणशे एदने, सदेजे सरशे काज ॥१०॥ जो पण जे जे में कस्यां, एदने उखनां देत ॥ ते ते सवि निष्फल थयां, मुज अनिलाष समेत ॥११॥ तोपण वाज न आवीए, मन करीए अनुकूल ॥ उद्यमथी सवि संपजे, उद्यम सुखनुं मूल ॥ १२ ॥ वैरीने वाध्यो घणो, ए मुज खणशे कंद ॥
प्रथमज दणवा एदने, करवो कोश्क फंद ॥१३॥ अर्थ-ते वात सांजलीने शेठ घणोज रीऊ पाम्यो, अने मनमा विचार करवा लाग्यो के एने । कष्टमां पारवा माटे एणे मने नबुं वारणुं देखाड्यु, कारण के एनी जाति नाति कोइ जाणतो नथी, तो ए उपाय मारा हाथमां घणो श्रेष्ठ आव्यो २ ॥ ए॥माटे हवे हुँ कोश्क कुजातिनुं कलंक दश्ने एनी लाज पाडु के जेथी राजा एने अवश्य दणी नाखशे, ने सहेजमां मारे कार्य सरी जशे ॥ १० ॥ जो पण आज पर्यंत एने जे जे में उखनां (हेत के० ) कारण कस्यां, ते ते सर्व है कारण मारा मनना अनिलाष सहित निष्फल थयां, एटले कारणनी निष्फलता थर, तो ते कारण है। सफल करवा माटे मारा मनना जे अनिलाषो हता, ते पण सर्व निष्फल थया ॥११॥तोपण वाज श्रावीए नहीं एटले सर्व हेतु निष्फल थर गया, माटे हवे उद्यम मूकी देवो एवं प्रतिकूल मन ।। करीए नहीं, परंतु उद्यम जारी राखवा माटे मनने अनुकूल करीए, कारण के उद्यम कस्याथीज सवें8| कांश संपजे, नीपजे , माटे उद्यम जे जे तेज सुखनुं मूल ॥ १५ ॥ तथा वली ए तो मारो
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #176
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग.३
श्री रावैरी , माटे जो घणो वधशे तो मने (कंद के० ) मूलमाथी ( खणशे के० ) खोदी नाखशे, माटे
तेनी पहेलांज एने हणवानो कोश्क फंद रचवो सारो ने ॥ १३ ॥ ॥ ६॥
श्म चिंतवतो ते गयो, उतारे आवास ॥
पलक एक तस जक नहीं, मुख मूके निसास ॥१४॥ 3 अर्थ-एम चिंतवतो ते शेठ पोताना उताराना ( आवास के ) घरमा गयो, पण एक पलवार सुधी तेने जंप श्रावतो नथी, मुखथी निसासा मूक्या करे ॥१४॥
॥ ढाल चोथी॥ ॥ आषाढति अणगारने रे, कहे गुरु अमृत वाण रे ॥ जोगीसर चेना ॥ निशाने नमता का हो लाल ॥ए देशी॥
इण अवसर तिहां डुंबनुं रे, श्राव्युं टोढुं एक रे ॥ चतुर नर ॥ जना उलगडी करे दो लाल ॥ तेडी मदत्तर कुंबने रे, शेठ कदे अविवेक रे ॥ चतुर नर ॥ काज अमारु एक करो दो लाख ॥ १ ॥एद जमा रायनो रे, तेदने कदो तुमे डुंब रे॥ चतुर ॥लाख सोनैया तुमने आपशु हो लाल ॥धाश्ने वलगो गले रे, सघर्बु मली कुटुंब रे॥ चतुर ॥ पाड
घणो अमे मानशुं दो लाल ॥२॥ अर्थ-एवा अवसरे तिहां एक डुंबनुं टोवू श्राव्यु. ते उना थका शेउनी उलग करे ते वारे । शेठे ( महत्तर के०) मोटा मुंबने तेमीने तेने अविवेकनी वात कहेवा मांझी के हे डुंब ! तमे श्रमारं एक कार्य ने ते करो ॥१॥ ए राजानो जमा जे तेने तमे जश्ने ए डुंब जे एम कहो 8
पाशु, माटे तमे तमारुं सर्व कुटुंब मली धाश्ने एनेट गले जश् वलगो तो अमे तमारो घणो पाम मानशुं ॥२॥
॥ ६ ॥
Jan Education International
For Personal and Private Use Only
Page #177
--------------------------------------------------------------------------
________________
डुंब कहे स्वामी सुणोरे, करस्यां ए तुम काम रे॥चतुर॥ मुजरो दमारो मानजो दो लाल॥केलवशुंकूडी कला रे, लेशुं परग्यां दाम रे॥चतुर॥ साबाशी देजो पड़े दो लाल ॥३॥डुंब मती सवि ते गया रे, राय तणे दरबार रे॥ चतुर ॥ गाये उन्ना घूमता हो लाल ॥राग आलापे टेकशुं रे,रीज्यो राय अपार रे ॥ चतुर ॥ मागो कांश मुख म कदे दो लाख ॥४॥ डुंब कहे अम दीजीए रे, मोहत वधारी दान रे॥चतुर ॥मोदत अमे वांबु घणुं दो लाल ॥ तव नरपति कुंअर कने रे, देवरावे तस पान रे ॥ चतुर ॥तेदनुं मोहत वधारवा दो लाल ॥५॥ पान देवा जव आयीयो रे, कुंअर तेदनी पास रे ॥चतुर ॥ दसित वदन जोतो इसी दो लाल ॥ वडो डुंब विलगो गले रे, आणी मन नल्लास रे ॥ चतुर ॥
पुत्र आज नेट्यो नले दो साल ॥६॥ अर्थ-ते सांजली डुंब कहेतो हवो के हे स्वामिन् ! ए तमारुं काम अमे करशुं, पण अमारो | मुजरो मानजो, ए अमे कूमी कला केवलशुं अने पड़ी तमारी साथे परतेलां (दाम के०) नाणां 31 लश्शु, पाउलथी वली साबाशीनो सिरपाव पण अमने श्रापजो ॥ ३ ॥ एम कही ते सर्व डुंब है। मलीने राजाने दरवारे गया. तिहां गोंखनी नीचे घूमता उना थका टेक सहित रागनी श्रालापचारी। करीने मधुर खरे गावा मांड्युं, तेथी राजा पण गीत सांजली पार विनानो तेमना उपर रीज्यो, अने मुखथी कहेतो हवो के कांश मागो, ते हुं श्रापुं ॥ ४॥ ते सांजली डुंब कहेवा लाग्या के हे| वामिन् ! अमने महत्त्व वधारण दान आपो, कारण के अमे मान महत्त्वनेज घणुं श्लीए बीए.
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #178
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम. ३
श्रीराण ते वारे राजाए पण खुशी थश्ने तेमनुं महत्त्व वधारवा माटे कुंवरनी पासे पान-बीडुं देवराव्युं॥५॥ ॥७॥
हवे जे वारे पान- बीडं देवाने माटे श्रीपाल कुंवर ते डुबोनी पासे आव्यो, ते वारे ते डुबोमा जे वमो एटले मोटो हुंब बे, ते कुंवरनुं हसित वदन हसता मुखने पोते पण हसीने जोतो थको अथवा पोताना इसित वदने हसीने श्रीपालने जोतो थको मनमां घणो उदास एटले हर्ष श्राणीने कुंवरना गलामां जर वलगी रह्यो, अने कहेवा लाग्यो के हे पुत्र ! तुं आज जले श्रमने नेव्यो, मोटी वात थ जे तुं आज थमने मल्यो ॥६॥
एदवे आवी डुबमी रे, रोइ लागी कंठ रे॥चतुर॥ अंगोअंगे नेटती दो लाल ॥ बढ्न थश्ने एक मली रे, आणी मन उत्कंठ रे॥ चतुर ॥ वीरा जाउं तुम नामणे हो लाल ॥ ७॥ एक कदे मुज माउलो रे, एक कदे नाणेज रे ॥ चतुर ॥ एवडा दिन तुमे किहां रह्या दो साल ॥ एक काकी एक फर थ रे, देखाडे घणुं देज रे ॥ चतुर ॥ वाट
जोतां दतां तादरी दो लाल ॥७॥ अर्थ-एवामा वली एकी घरमी मुंवमी हती ते दोमी आवीने रोती थकी पुत्र ! पुत्र ! करती। कुंवरने गले वलगीने अंगोधेगे नेटती हवी,अने कहेती हवी के हे वत्स ! आज केटले काले तुंअमने | PI मख्यो ? एमज वली एक जणी बहेन थश्ने कुंवरने श्रावी मली, अने कहेवा लागी के हे वीरा ! हे बंधव ! ढुं तारे जामणे जा. (तेमज एक कहेवा लागी के था मारो नत्रीजो बे, एक कहेवा लागी के था मारो देवर , एक कहे जे के ए मारो नर्त्तार बे, मने नानी परणीने मूकी गयो हतो ते श्राज मारा पुण्योदयश्री मने मल्यो)॥७॥तेमज एक डुंब कहे के ए मारो मामो बे, एक कहे जे के या मारो नाणेज बे, अरे नाइ ! एटला दिवस तमे क्या रह्या हता ? तमे
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #179
--------------------------------------------------------------------------
________________
XHAM
ASHART
**
परदेशमां क्या क्या फस्या ? हंसछीपे तमे कुशले गया, पठी जहाज उपर चढ्या एवं श्रमे 2 सांजव्युं हतुं, तिहांथी हां आव्या जणा बो. वली एक काकी थक्ष, एक फूझ थश्ने घणुंज | हेज देखाडे जे के हे ना! श्रमे तारी वाट जोतां हतां ॥७॥
डुंब कहे नररायने रे, ए अम कुल आधार रे॥ चतुर ॥ रीसावी चाल्यो हतो दो लाल ॥ तुम पसाय नेलो थयो रे, सवि महारो परिवार रे ॥ चतुर ॥ नांग्यां अःख विगेदनां दो लाल ॥ ए॥राजा मन चिंते इस्युं रे, सुणी तेदनी वाच रे ॥ चतुर ॥ वात घणी विरुइ थइ दो लाल ॥ एद कुटुंब सवि एदनुं रे, दीसे परतस्क साच रे ॥ चतुर ॥ धिक मुज वंश विटालीयो दो लाल ॥ १० ॥ निमित्तियो तेडावीयो रे, में तुज वचनविशास रे ॥ चतुर ॥ पुत्री दीधी एदने हो लाल ॥ किम मातंग कह्यो नहीं रे, ते दीधो गले पाश रे ॥ चतुर ॥ निमित्तियो वलतुं कदे दो लाल ॥११॥ अर्थ-हवे ते डुंब राजाने कहे जे के हे महाराज!श्रा अमारा कुलनो श्राधार , ए श्रमाराथी रीसाश्ने चाल्यो गयो हतो ते तमारा पसायथी आज नेलो थयो. ए सर्व मारो परिवार , श्राज। श्रमारां विडोहना पुःख नांग्यां, श्रमे एने सारी रीते न उलखत, पण आ पान- बीडं श्रापवा श्राव्यो तेना मिषे अमे हवे सारी रीते लक्षणे करी उलख्यो ।ए॥ एवी रीतनी ते सर्व डुंब डुंबी-18 उनी वाणी सांजलीने राजा पोताना मनमां एवं चिंतववा लाग्यो के वात तो घणीज (विरु के माठी थ६. था डुबोनुं कुटुंब जे ते सर्व एनुंज . ए प्रत्यक्ष साचुंज देखाय , माटे धिक्कार बे एने के जेणे मारो वंश विटाल्यो !॥ १० ॥ एम चिंतवी राजाए निमित्तयाने तेमाव्यो अने कह्यु के में
RRCRACHUSANSARGAMUSALSADGUSAMACROSAX
******
***
Educantematonal
For Personal and Private Use Only
Page #180
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ उ ॥
तारा वचन उपर विश्वास राखीने एने मारी पुत्री आपी, तो ए मातंगर्न जाति बे एवं तें प्रथम | मने केमन कयुं ? माटे तेंज श्रा मारे गले फांसो दी धो. एवं सांजली वलतुं निमित्तियो बोल्यो ॥ ११ ॥ मुज निमित्त जू नहीं रे, सुणजो साची वात रे ॥ चतुर० ॥ ए बहु मातंगनो धणी दो लाल ॥ राय प्ररथ समजे नहीं रे, कोप्यो चिंते घात रे ॥ चतुर० ॥ कुंअर निमित्तिया उपरे दो लाल ॥ १२ ॥ ते बेहु मारवा रे, राये कीध विचार रे ॥ चतुर ॥ सुनट घणा तिदां सज की या दो लाल ॥ मदनमंजरी ते सुणी रे, आवी तिदां ते वार रे ॥ चतुर ॥ रायने इी परे विनवे दो लाल ॥ १३ ॥ काज विचारी कीजीए रे, जिम नवि दोय उपदास रे ॥ चतुर० ॥ जगमां जश बढ़ीए घणुं दो लाल ॥ चारे कुल जाणीए रे, जोइए दीये विमास रे ॥ चतुर० ॥ डुब्बल कन्ना नवि दोइए दो लाल ॥ १४ ॥
अर्थ- हे राजन् ! मारुं निमित्त जू नथी, हुं तमने साचेसाची वात कहुं हुं, ते तमे सांजलो, के ए पोते मातंग नथी, पण ए घणा मातंगनो धणी बे. एवं कयुं, पण मातंग शब्दनो अर्थ राजा समजतो नथी एटले हाथीने पण मातंग कहीए अने चंगालने पण मातंग कहीए, तेथी चिंतव्यं जे एज मातंग जे उन्ना बे, तेनो स्वामी ए दशे, एवं विचारी कुंवरनी तथा निमित्तियानी उपर कोप्यो थको तेमनी घात करवानी चिंतवना करतो दवो ॥ १२ ॥ राजाए ते बेहु जणने मारवानो विचार करीने तिहां घणा सुनटोने सक करया, तैयार कीधा ते वात मदनमंजरीए सांजली, ते वारे तेज वखते तिहां यावीने राजाने ए रीते विनववा लागी ॥ १३ ॥ के हे पिताजी ! जे | काम करीए ते विचारीने करीए के जेम पाबलथी उपहास न थाय ! जो विचारीने करीए तोज
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa International
खंग ३
॥ ८८ ॥
Page #181
--------------------------------------------------------------------------
________________
ॐRRECR5555
जगतमां घणो यश पामीए, जो हैये विचार करी जोइए तो माणसना आचार उपरथी पण कुल जाणी शकीए, पण जेनी तेनी खोटी साची वात सांजलीने तेनो सारासार समज्या विना को अकार्य करी नाखवू नहीं अने एवा पुर्बल कानवाला थश्ए नहीं. लोकमां पण एवी कहेवत ने के "राजाने कान होय, पण शान न होय,” ए कहेवत प्रमाणे तमारे वर्तवू नहीं ॥ १४॥
कुंअरने नरपति कहे रे, प्रगट कहो तुम्ह वंश रे ॥ चतुर ॥ जिम सांसो दूरे टले हो लाल ॥ कहे कुंअर किम जच्चरे रे, उत्तम निज परशंस रे ॥ चतुर ॥ कामे कुल उलखावशुं हो लाल ॥ १५॥ सैन्य तुमारूं सज करो रे, मुज कर द्यो तरवार रे ॥ चतुर ॥ तव मुज कुल प्रगट थशे हो लाल ॥ माथु मुंडाव्या पी रे, पूढे नदत्र वार रे ॥ चतुर ॥ एद
जखाणो साचव्यो हो लाल ॥१६॥ अर्थ-एवी पोतानी पुत्रीनी वात सांजलीने राजा कुंवर प्रत्ये कहे के के हे वत्स! तमे तमारो वंश प्रगट करो. जेम ए वातनो मने संदेह ने ते पूर टली जाय. ते सांजली कुंवर हसीने कहेतो हवो के हे राजन् ! जे उत्तम पुरुष ने ते पोते पोताने मुखे पोतानी प्रशंसानो उच्चार केम करे ? माटे को मारा जेवू काम पम्शे ते वारे हुं माझं कुल तमोने उलखावीश ॥ १५ ॥ अथवा तमे || तमारं सर्व सैन्य सज करो एटले तैयार करो, अने मारा हाथमां एक तरवार आपो, जेथी। मारा हाथ तमने कुल कही देशे, ते वारे मारुं कुल प्रगट थशे. हे राजन् ! तमे तो केवु कसुं? के को पुरुष माथु मुंमावीने पढ़ी जोशीनी पासे जश् नक्षत्र वार पूबवा लाग्यो, तेने जोशीए। कडं के जाइ ! तारे नदात्र वार पूवानुं शुं काम ? त्यारे तेणे कह्यु के हुँ मस्तक मुंमावी । श्राव्यो हुँ, माटे नक्षत्र वार पूढुं बुं. ते सांजली जोशी पासे जे लोक बेठेला हता ते सर्व
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #182
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥ ८ ॥
खमखम हसीने बोल्या के जाइ ! तुं तो घणो डाह्यो देखाय बे जे मायुं तो प्रथमथीज मुंडावी श्राव्यो बे, तो दवे पूढवानुं शुं कारण बे ? ए उखाणो तमे पण साचव्यो देखाय ते, कारण के तमा पुत्री परणावीने हवे मारो वंश पूठो हो ॥
१६ ॥
अथवा प्रवणमां रे, दोय परणी मुज नार रे ॥ चतुर० ॥ तेमी पूो तेहने दो लाल ॥ ते कदेशे सवि माहरो रे, मूलयकी अधिकार रे ॥ चतुर० ॥ इणी परे कीजे पारखं दो लाल ॥ १७ ॥ तेने तेडवा मोल्यो रे, राये निज परधान रे ॥ चतुर० ॥ ते जइने तिहां विनवे tara ॥ तव मया मन हरषीयां रे, पामी आदरमान रे ॥ चतुर० ॥ सदि कंते तेडावयां दो लाल ॥ १८ ॥ बेसी रयण सुखासने रे, आव्यां राय हजुर रे ॥ चतुर० ॥ भूपति मन हर्षित थयुं दो लाल || नय नाद नीहालतां रे, प्रगट्यो प्रेम अंकुर रे ॥ चतुर० ॥ साचे जूठ नसाडी युं दो लाल ॥ १९ ॥
अर्थ - अथवा जो ए रीते मारा हाथथी मारुं कुल लिखवा तमारी मरजी न होय तो हमणां जे वहाण श्राव्यां बे, तेमां मारी परऐली वे स्त्रीउ बे, तेमने तेडीने पूढो, ते मारो मूलथी मांगीने जे कां अधिकार बे ते सर्व कदेशे. ए रीते पारखं करीए ॥ १७ ॥ ते सांजली राजाए ते स्त्रीउने | तेरुवा माटे पोताना प्रधानने मोकल्यो. ते जश्ने तिहां ते स्त्रीउने गाममां पधारवानी विनंति करतो हवो. ते वारे ते स्त्रीर्ड पण श्रादरमान पामी, तेथी तेमनां मन हर्षायमान थयां, अने विचारखा लागी के निचे आपणने जर्तारे तेमावी बे ॥ १८ ॥ पठी ते वेहु जणी रत्ने जडाव | सुखासने बेसीने राजानी हजुर खावी. तेमने जोइ राजा पोताना मनमां घणोज हर्ष पाम्यो अने
Jain Educationa International.
For Personal and Private Use Only
खंग. ३
॥ ८५ ॥
Page #183
--------------------------------------------------------------------------
________________
शास्त्रीने पण पोताना (नाह के० ) नर्तारने नयणे नीहालतां थका प्रेमनो अंकुरो प्रगट्यो. इहां। साचे आवीने जूगने नसामी मूक्युं, एटले जे वारे साचुं श्रावे ते वारे जूतुं नासी जाय, तेम|| थयुं ॥ यतः ॥ जूठ विना फीकी लगत, अधिक जूठ फुःख नोन ॥ जूठ साचमें मेलीए, ज्युं श्राटामें लोन ॥१॥ इति ॥ १५ ॥
विद्याधरपुत्री कहे रे, सघलो तस विरतंत रे॥ चतुर ॥ विद्याधर मुनिवर को दो लाल ॥ पापी शेठे नाखीयो रे, सायरमां अम कंत रे ॥ चतुर ॥ वखते आज अमे लह्यो हो लाल ॥ २० ॥ ते सुणतां जव उलख्यो रे, तव हरख्यो मन राय रे ॥ चतुर ॥ पुत्र सगी नगिनी तणो दो लाल ॥ अविचायुं कीधुं हतुं रे, पण आव्युं सवि गय रे ॥ चतुर ॥ नोजन मांदे घी ढल्युं दो लाल ॥ २१॥ नरपति पूजे डुंबने रे, कहो ए किस्यो विचार रे॥ चतुर ॥ तव ते बोले कंपता हो लाल ॥ शे अम्ह विगोश्या रे, लोने थया खुवार रे॥ चतुर ॥ कूड़े कपट
अमे केलव्यु हो लाल ॥१२॥ अर्थ-पढी राजाना पूवाश्री जेम विद्याचारण मुनिवरे रत्नहीपमा श्रीपाल कुंवरचें चरित्र | सजानी समद कडं हतुं, तेम विद्याधर राजानी पुत्री ते सर्व वृत्तांत वसुपाल राजानी आगल कदेती हवी. वली कडं जे था पापी शेठे अमारा गरिने समुषमा नाख्यो ते अमे अमारा मोटा वखतना योगथी आज (लह्यो के०)पाम्या॥२०॥ते वात सांजलतांज जे वारे श्रीपालने उलख्यो, ते वारे राजा पोताना मनमां हर्ष पाम्यो, जेथा तो मारी सगी बहेननो पुत्र , अरे ! में काम तो| विचास्या विना कस्युं हतुं, पण सर्व ठेकाणे श्रावी गयु. आ तो नोजन मांदे घी ढली पमवा जेवू उत्तम
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #184
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा काम थयु ॥२१॥ हवे राजा डुबोने पूबतो हवो के हे डुंवो ! तमे कहो के ए किस्यो विचार वे ? ते । खंग.३
शिवारे ते डुंवो थर थर कंपता थका बोख्या के हे महाराज! अमने तो धवल शेठे वगोव्या, अमोने 8 ॥ए ॥
व्य आपवाने कबूल कयुं, तेना लोजयी खुवार थया.ए सर्व श्रमे श्हां कूडं कपट केलव्यु हतुं॥२॥
तव राजा रीसे चढ्यो रे, बांधी अणाव्यो शेठ रे ॥ चतुर ॥ डुंब सदित दणवा धस्या दो लाल ॥ तव कुंअर आडो वख्यो रे, गेडाव्यो ते शेठ रे ॥ चतुर ॥ उत्तम नर एम जाणीए हो लाल ॥२३ ॥ निमित्तियो तव बोलीयो रे, साचुं मुज निमित्त रे ॥ चतुर ॥ ए बहु मातंगनो धणी हो लाल ॥ मातंग कहीए हाथीया रे, तेहनो प्रनु वडचित्त रे ॥ चतुर ॥ ए राजेसर राजीयो हो लाल ॥२४॥निमित्तियाने नृप दीए रे, दान अने बहु मान रे ॥चतुर॥ विद्यानिधि जगमां वडो दो लाल ॥ कुंअर निज घर आवीया रे, करता नव पद ध्यान रे॥ चतुर ॥ मयणा
त्रणे एकठीमली हो लाल ॥२५॥ ___ अर्थ-ते वारे राजा (रीसे के०) क्रोधे चढ्यो थको शेग्ने बांधी अणाव्यो, अने हुँबोना टोला सहित ते शेग्ने हणवा माटे धस्यो, एटले धास्यो, अथवा एवो विचार राजाए धस्यो,81 ते वारे श्रीपाल कुंवर आमो पमीने ते शेग्ने तथा डुबोने बगेमावतो हवो. हे सऊनो ! जुन के है। | उत्तम नरने एवी रीते ( जाणीए के० ) परखीए जे अवगुण करनारने पण गुण करे ॥ २३॥ ते ॥ए । वारे निमित्तियो बोल्यो के हे राजन् ! मारु निमित्त जुर्ड, केQ साचुं वे ? ए (बहु के० ) घणा मातंगनो धणी ने एबुं में कडं हतुं ते खरेखलं सत्य थयुं. त्यारे राजाए पूब्युं के मातंग ते कोने कहीए ? निमित्तियो बोल्यो के मातंग शब्दे हस्ती जाणवा, तेनो ए ( प्रनु के० ) स्वामीना
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #185
--------------------------------------------------------------------------
________________
जाणवो, एटले घणा हाथीनो एने मोटो परिवार , वली ( वडचित्त के० ) मोटा उदार मन-12 वालो ए जाणवो, तथा ए ( राजेसर के ) राजाऊनो पण ईश्वर एवो (राजीयो के०) राजा जाणवो ॥२४॥ पठी ते निमित्तियाने राजाए घणुं दान दीg, अने बहु मान आपी विसर्जन कर्यो.18 जगत मांहे विद्यानो (निधि के०) खजानो ते (वडो के० ) मोटो जाणवो. हवे श्रीपाल कंवर पण पोताने घेर श्राव्या, तिहां नव पदनुं ध्यान धरता थका रहे , अने (त्रण मयणा के० )| मदनरेखा, मदनमंजुषा अने मदनमंजरी, ए त्रण स्त्री पण एकठी मली ने ॥ २५ ॥
कुंअर पूरवनी परे रे, पाले मननी प्रीत रे॥ चतुर ॥ पासे राखे शेग्ने दो लाल ॥ ते मनथी मे नहीं रे, उर्जननी कुल रीत रे॥ चतुर ॥ जे जेहवो ते तेदवो दो लाल ॥२६॥ बेहु हाथ नूंद पड्या रे, काज न एको सिप रे ॥ चतुर० ॥ शेठ इस्युं मन चिंतवे हो लाल ॥पी न शक्यो ढोली शकुं रे, एहवो निश्चय कीध रे ॥ चतुर ॥ एदने निज दाणे
द' हो लाल ॥२ ॥ * अर्थ-हवे जो पण धवल शेठे श्रीपालने पुःख देवा माटे घणाए उपाय कस्या, तोपण श्रीपाल,
तो पूर्वली रीतेज शेग्नी साथे मननी प्रीति पाले , तेथी निरंतरपणे शेउने तो पोतानी पासेज सैराखे . तेम उतां पण उर्जनना कुलनी रीति ने ते रीतिने पुष्ट खनाववालो शेठ पोताना मनथी
गंमतो नथी, केमके जे जेवो होय ते तेवोज जाणवो. एटले जे जलो होय ते जलोज होय, अने जे जूंमो होय ते मुंमोज होय, एमां कांश संशय नथी ॥ यतः॥ उर्जनस्य खन्नावोऽयं परकार्यविनाशकः ॥ कथं वा कार्यमायाति, मूषको वस्त्रजक्षणात् ॥ १॥ गुणलदं परित्यज्य, दोषं गृह्णति | उर्जनाः ॥ लदं दोषं परित्यज्य, गुणं गृहंति सङानाः ॥२॥ २६ ॥ शेव तो वली पण पोताना
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #186
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राउर्जनपणाने अंगीकार करीने मन मांहे चिंतवना करतो हवो के मारा तो बेहु हाथ (जूं, खस ३
के) नूमिए पड्या, परंतु एक पण कार्य सिध्यु नहीं, तथापि हवे जो ढुं पी शकुं नहीं तोपण , ॥ए ॥
ढोली तो ( शकुं के०) ना, तेश्री शेठे एवो निश्चय कीधो के ए तो सातमी नूमिए एकलोज |
सुवे बे, बीजु को पासे नथी,माटे हवे हुँ एने (निज के०) पोताने हाथेज ( हणुं के०)18 है। हणी नाखू के जेथी बे स्त्री अने एनी लक्ष्मी ते तो मारे हाथे नहीं चडे, तो पण ए पोते जोगवी | |शकशे नहीं, एटबुं तो काम थशे. एवो निश्चय करीने ॥ २७ ॥
कुंअर पोढ्यो ने जिहां रे, सातमी जूंइए आप रे॥ चतुर ॥ लेश कटारी तिहां चढ्यो दो लाल ॥ पग लपट्यो देगे पड्यो रे, आवी पदोतुं पाप रे॥ चतुर ॥ मरी नरके गयो सातमी दो लाल ॥ ॥ लोक प्रनाते तिहां मल्यां रे, बोले धिक धिक वाण रे॥ चतुर ॥ स्वामिजदी ए थयो हो लाल ॥ जेह कुंअरने चिंतव्यु रे, आप लयु निरवाण रे
॥ चतुर ॥ उग्र पाप तरतज फले दो लाल ॥२॥ अर्थ-जिहां सातमी नूमिए कुंवर पोढ्यो बे, तिहां ते धृष्ट, अनिष्ट, पापिष्ठ धवल शेठ पोते है हाथमा कटारी लश्ने चढ्यो, परंतु सातमी नूमिए क्यांएक उन्मार्गे पग मूकतां पग (लपट्यो | के) खसी गयो, तेश्री सातमी नूमिथी हेगे आवी पड्यो. तिहाथी पमतां शेठने पोताना हाथमां कटारी हती ते पण लागी, अने शेग्नुं पाप पण थावी पहोंच्युं, एटले पापनो घडो | जराणो हतो ते पण फूट्यो. तेने लीधे शेव आर्त रौद्ध ध्यानमां वर्त्ततो थको मरण पामीने सातमी नरके गयो. एटले सातमी नूमिथी पड्यो अने सातमी नरकपृथ्वीए गयो, केमके एवा नीच पुरुषोने एवुज स्थानक मले, परंतु वीजुं नहीं ॥ यतः ॥ सो सत्तम नूमि, पमि पत्तो य
॥ए
।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #187
--------------------------------------------------------------------------
________________
है सत्तमी नूमी ॥ निरयस्स तारिसाणं, समछि ठाणं किमन्नन ॥ १॥ इति श्रीपालचरित्रे ॥ तथा
मित्रमोही कृतघ्नश्च, येऽपि विश्वासघातकाः ॥ ते नरा नरकं यांति, यावच्चं दिवाकरौ ॥१॥२०॥ तिहां प्रजाते लोक एकगं मख्यां, ते सर्व ए शेउने धिक्कार ने ! धिक्कार ! ! ! एवी वाणी बोलता
हवा. जे माटे ए स्वामिजोही थयो, ए पापी शेठे कुंवरने हणवानुं चिंतव्यु, ते जेवं चिंतव्यु है एवं पोतेज पाम्यो. ए श्रणखूटे निर्वाण पाम्यो, जे माटे कयु डे के ( उग्र के ) घणुं अघोर पाप करे तो ते तरतज फले ॥ ए॥
मृतकारज तेदनां करे रे, कुंअर मन धरे सोग रे॥ चतुर ॥ गुण तेदना संचारतो दो लाल ॥ सोवन घणुं तपावीए रे, अग्नि तणे संयोग रे ॥ चतुर ॥ तोही रंग न पालटे दो लाल ॥३०॥माल पांचसे वहाणनो रे, सवि संजाली सीध रे ॥ चतुर॥ लखमीनुं लेखू नहीं हो लाल ॥ मित्र त्रण जे शेठना रे, ते अधिकारी कीध रे ॥ चतुर ॥ गुणनिधि
उत्तम पद खदे दो लाल ॥ ३१ ॥ है अर्थ-हवे श्रीपाल कुंवर तो शेठना मृत्युनो शोक मनमां धरतो थको शेठना मृत्यु संबंधी जे
अग्निसंस्कार प्रमुख कार्य करवानां ते करतो हवो, अने ते शेठना गुणने संजारतो थको रहे , जेम सोनाने अग्निना संयोगे घणुं तपावीए तोपण तेनो रंग पलटे नहीं, तेम पुरुषने पण सोनानी समान जाणवा ॥ यतः ॥ कवित्त ॥ अगर अग्निमें जोर दहावत, तोहे सुगंध सबे विस्तारे ॥ चंदन काटत है ज्यों कुठार, तोहि कुगर बदन सुधारे ॥ यंत्रमें पीलत इकनको, उनकुं श्ह मिष्ट जसा रस बारे ॥ सजनको फुःख देत पुरी जन, सङान तोहि न दोष विचारे ॥१॥ इति । ॥ ३० ॥ पांचसे वहाणोनुं जे कांश माल करियाणुं विगेरे हतुं ते सर्वे संजाली तपासी लीधुं, ते ।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #188
--------------------------------------------------------------------------
________________
*****
श्री रामांहे लक्ष्मीनुं तो लेखुंज करतां आवे नहीं एटली पार विनानी वस्तु नरेली हती, ते सर्व संजालीखन.३ ॥ ए ॥
लश्ने शेठना जली बुद्धिना देवावाला जे त्रण मित्र हता, तेने पांचवें वहाणोना अधिकारी कस्या, जे माटे जे गुणनिधि एटले गुणवान् पुरुष होय ते उत्तम पदने पामे, तेम ए शेठना त्रण मित्र जो गुणवान् हता तो ते अगणित लक्ष्मीना अधिकारी थश्ने उत्तम पदवीने पाम्या ॥३॥
इंड तणां सुख नोगवे रे, तिदां कुंअर श्रीपाल रे॥ चतुर ॥ मयणा त्रण परिवस्यो दोलाल॥त्रीजे खंभेश्म कही रे, विनये चोथी ढाल रे॥ चतुर॥ सिक्ष्चक्रमदिमा फल्यो दो लाल ॥ ३२॥ अर्थ-हवे कुंवर तिहां सुख समाधिमा रहेतो थको निःकेवल इंजना सरखं सुख जोगवतो थको 8 जेम मुनिराज त्रण गुप्तिए सहित होय, तेम मयणरेखादिक त्रणे स्त्रीनए करी परवस्यो थको रहे . ए प्रकारे त्रीजा खंडने विषे चोथी ढाल श्रीविनयविजयजीए कही, माटे हे नव्यो ! जुन के श्रीसिद्धचक्रजीनो महिमा एटले माहात्म्य श्रीपालजीने केवं फलिनूत थयुं वे ? ॥ ३५॥ |
॥दोहा॥ इक दिन रयवामी चढ्यो, रमवाने श्रीपाल ॥ साथ बहु तिहां जतस्यो, दीगे शहि विशाल ॥२॥ सार्थवाद लइ नेटj, आव्यो कुंअर पाय॥ तव
तेदने पूरे इस्युं, कुंअर करी सुपसाय ॥२॥ अर्थ-हवे एक दिवसे श्रीपाल कुंवर परिवार सहित रयवामीए रमवा माटे चढ्यो. त्यां नग-! रनी बहार एक विशाल इजिवंत एवो सथवारो उतस्यो हतो, ते तेणे दीगे ॥१॥ते समये ते 10 ए॥ सार्थवाह पण सारी वस्तुनुं नेटणुं लश्ने श्रीपाल कुंवरनी पासे श्राव्यो, ते वारे कुंवर पण ते सार्थवाहने रुमो पसाय करीने भावी रीते पूबतो हवो ॥२॥
PROPIOSIOS
Sain Education
international
For Personal and Private Use Only
Page #189
--------------------------------------------------------------------------
________________
RSCIENCECACASCARLOCACA5%25EX
कवण देशथी आवीया, किदां जावा तुम्ह नाव ॥ सार्थवाद तव विनवे, कर जोमी सदनाव ॥३॥ आव्या कांति नयरथी, कंबुदीव उद्देश॥ कुंअर कदे कोश्क कहो, अचरिज दीठ विशेष ॥४॥ तेद कदे अचरिज सुणो, नयर एक अनिराम ॥ कोश इहांथी चारसें, कुंडलपुर तस नाम ॥५॥ मकरकेतु राजा तिहां, कपूरतिलकाकंत ॥ दोय पुत्र उपर हुइ,
सुता तास गुणवंत ॥ ६ ॥ नामे ते गुणसुंदरी, रूपे रंन समान ॥ जगमां __ जस उपम नहीं, चनसठ कलानिधान ॥७॥
अर्थ-के हे सार्थवाह ! तमे कोण देशथी आव्या बो ? अने क्यां जवानो तमारो नाव ने ? एवं कुंवरे पूज्युं ते वारे सार्थवाह पण हाथ जोमी साचा नावे करी विनंति करे ३ ॥३॥ के
हे महाराज ! अमे कांति नगरथी श्राव्या बीए, अने कंबुद्धीपे जवानो अमारो ( उद्देश 8 के० ) अनिप्राय डे. ते सांजली श्रीपाल कुंवर तेमने कहे के तमे दूर देशथी श्राव्या बो,131
माटे वचमां कां अचरिज विशेष दीतुं होय तो ते अमोने कहो ॥४॥ ते वारे ते सार्थवाह कहे जे के हे महाराज ! में जे श्रचरिज दी देते हुँ तमोने कहुं हुं, ते सांजलो. जे श्हांथी चारसें
एक मनोहर नगर , तेनं कंमलपुर एवं नाम बे॥५॥ तिहां मकरकेतु नामे राजा बे, ते राजा कपूर तिलका नामे राणीनो (कंत के० ) नतर बे, ते राणीने बे पुत्रनी उपर एक महा गुणवंती पुत्री उत्पन्न थ६॥६॥ ते पुत्रीनुं गुणसुंदरी एq नाम , माटे नामे करी तो 8 गुणसुंदरी जे. वली रूपे करी रंजा नामनी जे अप्सरा तेनी समान बे. जेने को उपमा आपीने तेनी बराबरी करीए एवी को वस्तु जगतमा नथी. एवी ते कुंवरी स्त्रीनी जे चोस कला |तेना निधानरूप ले. शहां चोसठ कलानां नामो कहे . १ नृत्य,५ औचित्य, ३ चित्रक, ४ वाद,५]
Sain Education
international
For Personal and Private Use Only
Page #190
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरामंत्र, ६ तंत्र, ज्ञान, विज्ञान, ए दंन, १० जलस्तंज, ११ गीतनाद, १५ तालमान, १३ मेघवृष्टि, १५ खंग.३
18 फलाकृष्टि,१५ आरामारोपण, १६ श्राकारगोपन,१७ धर्मविचार,१७ शकुन, १ए क्रियाकल्प, २० संस्कृत-18 ॥ ए३॥ जिल्प, १ प्रासादनीति, २२ धर्मनीति, २३ वर्णिकावृषि,२४ सुवर्णसिकि, २५ सुरनितैलकरण, २६
लीलासंचरण, २७ गजतुरंगपरीक्षण, २७ पुरुषलक्षण, स्त्रीलक्षण, सामुजिक, श्ए सुवर्णरत्नन्नेद, ३० अष्टादशति पिपरिछेद, ३१ तत्कालबुद्धि, ३५ वाससिकि, ३३ वैद्यक, ३४ काम विक्रिया, ३५ घटनम, ३६ सारिपरिश्रम, ३७ अंजन, ३० चूर्णयोग, ३ए हस्तलाघव, ४० वचनपाटव, ४१ नोज्यविधि, ४२ वाणिज्यविधि, ४३ मुखममन, ४४ शालिखमन, ४५ कथाकथन, ४६ पुष्पगुंथन, ४ वक्रोक्ति, ४018 काव्यशक्ति, ४ए स्फारवेष, ५० सकल नाषाविशेष, ५१ अनिधानज्ञान, ५५ आजरणपरिधान, ५३ नृत्योपचार, ५४ गृहाचार, ५५ काव्यकरण, ५६ परनिराकरण, ५७ रंधन, ५७ केशबंधन, ५ए है। वीणानाद, ६० वितमावाद, ६१ अंक विचार, ६२ लोकव्यवहार, ६३ अंत्याक्षरिका, ६४ प्रश्नप्रहे. लिका. ए चोसठ कलानां नाम वली केटलीएक प्रतिउँमा प्रकारांतरे पण लखेलां बे. एक चोसठे कलानी जाण ते गुणसुंदरी ने ॥७॥
राग रागिणी रूप स्वर, ताल तंतवितान ॥
वीणा तस ब्रह्मा सुणे, थिर करी आठे कान ॥ ७ ॥ | अर्थ-हवे ते गुणसुंदरीए बालपणाधीज वीणा वजामवानो अन्यास कस्यो , ते केवी रीते ||
कस्यो ? तो के-१ राग, ५ रागिणी, ३ रूप, ४ स्वर, ५ ताल, ६ तंतवितान, एटला गुणयुक्त ॥ ए३॥ ६ वीणाना जे कांश नेदो डे ते सर्वने ते कुंवरी जाणे ॥ तिहां प्रथम राग ब प्रकारना बे, तेमनां 8
नाम श्लोके करी कहे ॥ श्रीश्रीरागो वसंतश्च, नैरवः पंचमस्तथा ॥ मेघरागश्च विज्ञेयः, षष्ठो र
544550555ARG
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #191
--------------------------------------------------------------------------
________________
A4
%A
ननारायणः ॥ १॥ अर्थ-श्रीराग, वसंतराग, नैरवराग, पंचमराग, मेघराग अने नद्दनारायणराग,81 एब रागनां नाम कह्यां. हवे एकेका रागनी ब न रागणी एटले स्त्रीने, तेमनां नाम श्लोके करी|| कहे ॥ गौमी कालहा अंधाली,जाविमी मालकौशिका ॥षष्ठी स्यादेवगंधारी, श्रीरागाच्च विनिर्गताः
१॥ हिंमोला कौशिकी चैव, रामग्री पटमंजरी ॥ गुदग्रीश्चैव देशाखी, वसंतप्रनवा श्माः ॥२॥ नैरवी गुर्जरी चैव, नाषावेली कुली तथा ॥ कर्णाटी रक्तहंसी च, षडेता भैरवे मताः॥३॥ त्रिगुणी स्तंजतीर्थी च, बानरी कुकरी तथा ॥ वेरामी चैव सामेरी, षडेताः पंचमे मताः ॥४॥ बंगाली मधुकरी चैव, कामोदा दोषशाटिका ॥ दंबग्रीवी च देवाला, मेघरागांगनाश्च षट् ॥ ५॥ तोडिका | मोटिका चैव, मंबीनट्टा परा तथा ॥ गंधारी सिंधु महारी, नट्टनारायणोद्भवाः॥ ६ ॥ ए ब रागनी बत्रीश रागणीनां नाम कह्यां. हवे एकेका रागना वली आठ आठ पुत्र बे, ते वारे उएना मली श्रमतालीश पुत्र थाय, तेमां मूल राग अने त्रीश रागणी मेलवतां सरवाले नेवु नेद थया. वली। एकेका रागनी अने रागणीनी चाल तेमां कोश्नी बे, कोश्नी त्रण, कोश्नी चार, कोश्नी पांच, कोश्नी उ, कोश्नी सात थाय. ए सर्व एना नेदज गणाय. एम बीजा पण एना अनेक प्रकारे नेद थाय , केमके चक्रवर्ती पोते मूलगा व रागने प्ररूपे, अने तेनी स्त्री ६४००० , ते प्रत्येक एकेकी स्त्री, वली नवनवी देशीए करी जारनी स्तवना करे, ते वारे चोसठ हजार देशी सर्व जूदी जूदी रीते गवातां सर्व मली चोसठ हजार नेदो थाय. तेमज वासुदेवनी बत्रीश हजार स्त्री , तिहां वत्रीश हजार देशी गवाय, ते हाल पण वत्रीश हजार देशी चालु बे, केमके बेवा । नवमा कृष्ण वासुदेव थ गया ते वखते बत्रीश हजार देशी गवाती इती. ते पड़ी कोइ चक्रवर्ती थयो नथी, माटे बत्रीश हजारज चालु रहेली . ए रीते रागना अनेक नेद . वली ते 8 राग रागणीनां रूप, ते जे जे रागनो जेवो जेवो आकार ने, जेवी रीते रागमालानां चित्रा
RASHRSH
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
www.ainelibrary.org
Page #192
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रामण कराय , ते शास्त्रोक्त सर्वनां रूपने जूदां जूदां ते गुणसुंदरी जाणे , तेना आकार करीखम.३
देखाडे बे, तथा तेना पूर्वे चित्रेला आकारने उलखे . वली खर सात प्रकारना , तेनांहू ॥ए४॥
नाम श्लोके करी कहे . षड्ज षजगांधारा, मध्यमः पंचमस्तथा ॥ धैवतो निषधः सप्त, तंत्री कंगनवाः स्वराः॥१॥ ए सात वरनां नाम कह्यां अथवा १ सा, श्री, ३ ग, ४ म, ५ प, ६ ध,
नी, ए सात नेद जाणवा. वली तालना सात नेद ते कहे . धूर्ज, मागे, पमुमनो, रूपको, जत्ति, पमतालो, एकतालो एटले एकताल, हिताल, त्रिताल इत्यादि तालना सात नेद जाणवा. वली तंतवितान एटले तंतुनुं विस्तार. तिहां कोई वीणा चार तंतुनी होय, कोइ पांच तंतुनी होय, कोश् ब तंतुनी होय, को सात तंतुनी होय, तेनुं संकोच, विस्तारदुं तेने आकुंचन है प्रसारण कहीए. तथा वीणा तंतुनुं चढाव, उतारवं, ते सर्व तंतुनो वितान कहीए इत्यादिक अनेक वातो वीणा संबंधी , ते सर्व रागना ग्रंथोथी जाणवी. एवी रीते राग, रागिणी, रूप, स्वर, ताल अने तंतुवितान, ए तेणे करी संयुक्त जे वारे गुणसुंदरी वीणा वजावे ते वारे ते वीणानो जे शब्द तेना गुणथी रंजित थयो थको चार मुखने धारण करनारो एवो जे ब्रह्मा, ते पण पोताना श्रावे कानने स्थिर करीने ते वीणा सांजलवाने उजमाल याय , तो बीजा सामान्य जनो सांजलवाने तत्पर थाय तेमां तो शुंज कहेवू ? ॥ ७ ॥
शास्त्र सुनाषित काव्य रस, वीणानाद विनोद ॥ चतुर मले जो चतुरने, तो उपजे प्रमोद ॥ ५ ॥
॥ए४॥ ही अर्थ-वली ( शास्त्र के ) धर्मशास्त्र, विज्ञानशास्त्र, शब्दशास्त्र, आगमशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, 3 निमित्तिशास्त्र, वैद्यकशास्त्र, पराणशास्त्र. हवे शास्त्रना चार योग कह्याने. तेनां नाम कहे जे. एका धर्मकथानुयोग, बीजो चरणकरणानुयोग, त्रीजो गणितानुयोग अने चोथो अव्यानुयोग, इत्यादि ।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #193
--------------------------------------------------------------------------
________________
सर्व शास्त्र कहेवाय ने ते तथा ( सुनाषित के० ) जेमा प्रस्तावोचित जलां वचन होय, एवाश प्रास्ताविक श्लोक जे चाणाक्य प्रमुख तेना नेद सहित तथा गाथाना नेद, बंदनी जाति, सवैया कवित्त, कुंमलिया, दोहा, गाहा, हेली, प्रहेली इत्यादिक सर्व सुत्नाषित जाणवां, तथा ( काव्य के०) हरिणी प्रमुखथी मांडीने महादंमक पर्यंत नवनवा बंदनी जाति. तिहां जे अगीयार अदरनुं पद ते काव्यनी पहेली जाति जाणवी इत्यादि. (रस के०) नव रस, तेमनां नाम कहे .शृंगार-14 रस, हास्यरस, करुणारस, रौधरस, वीररस, नयानकरस, बीनत्सरस अनुतरस अने शांतरस एक नव रस. तथा वली त्रण प्रकारना रस. तेमां एक स्थायी रस, वीजो सात्विक रस, त्रीजो संचारी 31 रस, एनी उपर राग, अनुराग, अनुरति, तेणे करी युक्त. तथा वली वीणानाद ते वीणाना शब्द तथा जूदी जूदी जातिनां वाजित्रोना शब्द ते लोकलाषाए त्रण प्रकारना . एक घा, बीजो वा, ४/त्रीजो घसरको. तथा वली वीजा चार नेद कहे , एक घन ते ताल प्रमुख, बीजो सुषिर ते वंशादिक, त्रीजो आन ते मुरजादिक, अने तत ते वीणा प्रमुख. हवे प्रथमना त्रण नेदनो अर्थ 5 कहे बे. प्रथम घा ते ढोल, पमहो, मृदंग, पखावज, ताल, कंसाल, करताल प्रमुख जाणवां.16 बीजो वा ते शंख, शरणार, नेरी, नफेरी, मुंगल, करणाट प्रमुख जाणवां.त्रीजो घसरको ते सारंगी प्रमुख जाणवां. इत्यादिक सर्व वाजिब जाणवां. हवे वीणानां सात नाम , ते कहे . वीणा, घोषवती, विपंची, कंठकूणिका, वलकी, तंत्री, परिवादिनी. ते वीणाना खामी जूदा जूदा होय. शिवनी वीणानुं नाम नालंबी, सरखतीनी वीणानुं नाम कछपी, नारदने महती नामे वीणा 8 होय, सर्वने सम्मत ते प्रजावती नामे वीणा जाणवी, ब्रह्मानी बृहती नामे वीणा , तुंबुरुनी कलावती नामे वीणा, चांमालनी कंटोली नामे वीणा, ए वीणाना नेद जाणवा. इत्यादिक सर्वनो , ( विनोद के०) रमण ते गुणसुंदरी बे, एटले ए सर्व चातुर्य गुणसुंदरीमां ने. एम सार्थवाह जे श्राव्यो ते श्रीपालने कहे . वली कहे जे के हे स्वामिन् ! ते कुंवरी अत्यंत माही ने, वली चतुर
Jan Education International
For Personal and Private Use Only
Page #194
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राजे, माटे जो ते चतुरने मले तोज प्रमोद उपजे अथवा चतुरने जो कोश् चतुर मले तो परस्पर खरु. ३
(प्रमोद के० ) हर्ष आनंद उपजे. गुणवंतने गुणवंत मले तोज शोने ॥ ए॥
महरो गाय तणे गले, खटके जेम कुक ॥ मूरख सरसी गोठडी, पग पग दियडे दछ॥ १० ॥ जो रुगे गुणवंतने, तो देजे उःखपोधि ॥ दैव न देजे एक तुं, साथ गमारां गोगि॥११॥ रसियाशुं वासो नहीं, ते रसिया इकताल ॥ कुरीने कांखर हुवे, जिम विवडी तरुमाल ॥१२॥ जगति युगति समजे नहीं, सूके नहीं जस सोज ॥ इत उत जोर जंगली,
जाणे आव्युं रोक ॥१३॥ अर्थ-नहींकां महरो एटले एने कछी जाषामां गट कहे , ते (कुक के० ) कुकाष्ठ एटले हैं। कुत्सित लाकडं तेने बीबर गायना गलामां बांध्युं थकुं गायना पगने विषे जेम खटके बे, तेम मूरख सरसी एटले मूरखनी साथे जे ( गोठमी के ) गोष्ठि करवी अथवा गोठमी एटले | सहवास करवो ते पण पगले पगले एटले वारंवार हैमाने विषे (हर के0 ) अटक थाय, एटले खटक्या करे, हैयामां साख्या करे ॥ १० ॥ माटे हे दैव ! जो तुं गुणवंत जननी उपर रुष्टमान थाय तो तुने गमे तो तेने छुःखनी पोगे नरी नरीने श्रापजे, पण मात्र गमारां| एटले मूर्ख तेनी साये ( गोवि के०) सहवास करवो जेनाथी प्राप्त थाय एवं सुःख दश नहीं ॥ ११ ॥ वली जे माणस पोते रसिक ने, थने तेने जो तेना जेवाज रसिक जन साथे वसतुं न 8/0ए॥ थाय तो ते रसिया जन पण एकताल एक हाथे ताली न देवाय ते समान जाणवा. ते केवा समजवा ? के जेम (तरुमाल के ) वृदनी डाल, ते वृक्षथी विडमीने जूद पडी गयेली होय ते वृद विना एकली रहेली कुरी जुरीने फांखरा जेवी थाय बे, एवा ते एकताल माफकना रसिक
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #195
--------------------------------------------------------------------------
________________
जन थाय ने ॥ १२ ॥ वली जे उक्ति के जुक्ति एटले कोइ पण वातनो न्याय करवो, चतुराइ देखाकामवी, ते कांश समजे नहीं, जेने कोइ पण कामकाज करवानी चतुराश्थी सोज एटले शोध करवी की
तेनी सूज पडे नहीं, (इत उत के ) श्हां तिहां अरहुं परहुं ज्यां त्यां जंगलीनी पेठे जोया करे, जाणे कोई वगडानुं रोऊ आव्युं होय नहीं ? ॥ १३ ॥
रोक तणुं मन रीझवी, न शके कोइ सुजाण ॥ नदी मांदि निशिदिन वसे, पलले नहीं पाषाण ॥ १४ ॥ मरम न जाणे मांदिलो, चित्त नहीं इक गेर ॥ जिहां तिहां माथु घालतो, फरे दरायुं ढोर ॥ १५॥ वली चतुरशुं बोलतां, बोली इक दो वार ॥ ते सदेवी संसारमां, अवर अकज अवतार ॥१६॥ रसियाने रसिया मले, केलवतां गुण गोठ॥ दिये न माये रीक
रस, कदेणी नावे दो ॥ १७ ॥
अर्थ-माटे एवा रोऊ जेवा मूर्खनुं मन तो कोइ ( सुजाण के० ) रुडो जाण पुरुष होय ते पण परीऊवी शके नहीं, केनी पेठे ? के जेम मगसेलीयो पथरो जे , ते रात्रि दिवस नदी मांहेज है वसे बे, तथापि ते बिलकुल पलले नहीं तेम ते मूर्ख पण जो सुजननी पासे रात्रि दिवस रहे।
तोपण को रीते रीफ पामे नहीं ॥ १४ ॥वली मूर्ख जन जे ते हरेक कामनी अंदरनो मर्म जे ,
रहस्य तेने जाणे नहीं, वली तेनुं चित्त पण (श्क गेर के० ) एक ठेकाणे न होय. जेम हरायु ६ एटले रखडतुं तोफानी ढोर होय ते ज्यां त्यां माथु घालतुं थकुं फरतुं फरे तेनी पेरे ते पण फरतो 3
फरे ॥ १५ ॥ वली चतुरनी साथे कदाचित् वचन बोलतां एक बे वार बोलीए ते संसारमा सहेली एटले अवतारनो लाहो लीधो जाणवो, श्रने (श्रवर के) बीजो अवतार ते (अकज के ) निष्कारण निष्फल जाणवो ॥ १६ ॥ अथवा वली जे रसिया जन होय तेने जो रसिया मले
JainEducationainternational
For Personal and Private Use Only
www
brary.org
Page #196
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रातो तेनी साथे गुणनी गोठ केलवतां थका तेथी जे रीफनो रस उत्पन्न थाय ते हैयामां पण खम.३
समाय नहीं अने ते रीजनो जे रस, ते रसनी जे कहेणी ते होठमां आवे नहीं, एटले ते रीजनो ॥ ६॥ | रस, तेनी वार्ता होठथी कहेवामां आवे नहीं ॥१७॥
परख्या पाखे परणतां, गँच मिले जरतार ॥ जाय जमारो कुरतां, किस्युं करे किरतार ॥ १७ ॥ तिण कारण ते कुंअरी, करे प्रतिज्ञा सार ॥ वीणा
वादे जीतशे, जे मुज ते जरतार ॥ १०॥ | अर्थ-माटे परीक्षा कस्या विना जो परणीए तो झुंच एटले खराब मूर्ख जर्तार मले, तेना योगे|8|
आखो जन्मारो फुरतां कुरतां जाय, तेमां किरतार शुं करे ? एटले पोते परीक्षा करवी नहीं, ने 8 पली किरतार जे दैव तेने दोष देवो ते फोकट जे. एमां बापमो दैव ते शुं श्रावी करे ? ॥ १॥ ते कारण माटे हे राजन् ! ते कुंवरीए एवी ( सार के०) प्रधान प्रतिज्ञा करी डे के जे पुरुष मुजने वीणावादमां जीतशे तेज मारो जरि जाणवो. ए बधी वात सार्थवाह श्रीपालने ४ कही संजलावे ॥ १७ ॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥ थाहरा महोला उपर मेह, करूखे वीजली ॥ हो लाल ॥ ऊरूखे वीजली ॥ ए देशी ॥ तेद प्रतिझा वात, नयरमां घर घरे ॥ दो लाल ॥ नयरमां० ॥ पसरी लोक अनेक, बनावे परे परे॥हो लाल॥बनावे॥राजकुमार असंख्य, ते शीखण सज थया ॥ दो लाल ॥ ते ॥ लेइ वीणा साज, ते गुरु पासे
॥ ए६॥ गया ॥ दो लाल ॥ ते ॥१॥ अर्थ-हवे ते कुंवरीए करेली प्रतिज्ञानी वात ते कुंझलपुर नगरने विषे घरोघर पसरी एटले |
Sain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #197
--------------------------------------------------------------------------
________________
| फेला के कुंवरीने वीणावादे जे जीते ते एनो नर्तार थाय. कुल जातिनो का मेल नथी. एम
जाणीने अनेक लोको चोज करीने ते वीणाना ख्यालने परे परे एटले अनेक प्रकारे बनावे बे. ४ वली ए वात जाणीने असंख्य एटले घणा राजकुमारो ते वीणा शीखवा माटे तैयार थया, अने वीणानो साज लश्ने ते गुरुनी पासे गया ॥१॥
त्रण ग्राम सुर सात, के एकवीश मूर्चना॥ दो साल के ॥ तान जंगणपचास, घणी विध घोलना॥ दो लाल ॥ घणी० ॥ विद्याचारय एक, सधावे शीखवे ॥ दो लाल ॥ सधावे ॥ करे अभ्यास जुवान, ते उजम नवनवे ॥ दो लाल ॥ ते ॥२॥शास्त्र संगीत विचदाण, देश विदेशना ॥ दो लाल के ॥ देश ॥ करे सना मांदे वाद, ते नादविशेषना ॥ दो लाल ॥ ते ॥ मास मास प्रति दोय, तिहां गुण पारिखां ॥ दो लाल ॥
तिहां ॥ सुणतां कुमरी वीण, सवे पशु सारिखा॥ दो लाल ॥सवे॥ ३ ॥ । अर्थ-ते वीणा वजामवाना आदि, मध्य श्रने अंत, ए त्रण ग्राम जाणवा. तथा खरज, षन, गंधार, मध्यम, पंचम, धैवत अने निषाद, ए सात वर जाणवा, अने वीणानी मांहे एकवीश कोणा पीतलना तार थाय बे ते मूलना जाणवी. तेमज जंगणपचास तान जाणवां, अने घोलना है| तो (घणी विध के0) घणा प्रकारनी कही जे. एवी वीणा संबंधी विद्या ते एक विद्याचार्य ते त्यां सर्वने सधावे ने श्रने शीखवे . तिहां घणा जुवान पुरुषो नवनवा उजमजर अभ्यास करे ने ॥२॥ए प्रमाणे संगीतशास्त्रने विषे सर्व देश परदेशनाजे विचक्षण एटले माह्या पुरुषो । ते त्यां श्रावीने सना मांहे ( नाद विशेषना के० ) स्वरविशेषना वाद करे . ते सर्वना कला संबंधी
in Education International
For Personal and Private Use Only
www.shinelibrary.org
Page #198
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
गुणनी परीक्षा महीने महीने थाय , पण कुंवरीनी वीणा सांजलीने ते सर्व पशु एटले | खंग.३ जानवर सरखा थर जाय डे ॥३॥
चहुटा मांदि वीण, वजावे वाणीया ॥ दो लाल ॥ वजावे ॥ न करे कोश व्यापार, ते होंशी प्राणीया ॥ दो लाल ॥ ते ॥णी परे वरण अढार, घरोघर आंगणे ॥ दो लाल ॥ घरोघर ॥ सघले मेडी माले, वीणा रणकणे ॥ दो लाल के॥ वीणा ॥ ४॥ गाय चारे गोवाल, ते वीण वजाडता॥ दो लाल ॥ते॥ राजकुंअरी विवाद,मनोरथ नावता ॥ दो लाल ॥ मनोरथ ॥ सूनां मूकी खेत्र, मिले बहु करसणी ॥ दो लाल ॥ मिले ॥
शीखे वीण वजावण, होश दिये घण॥ दो लाल के ॥ दोश० ॥५॥ | अर्थ-वली ते गामना चौटामां वाणीया लोको पण वीण वजाडे बे, ते सहु पोतानां मनमां एवी होंश राखे जे के यापणने जो सारी वीणा वगामतां आवमशे तो राजानी कुंवरी आपणने वरशे. एवी होंशने राखनारा प्राणी ते पोतपोतानो व्यापार धंधो पण करता नथी. एप्रमाणे त्यांअढारे । वर्णनां लोकने घेर घेर, श्रांगणे श्रांगणे, मेमीए मेडीए, अने महोले महोले सर्व ठेकाणे वीणाना 8 हूँ शब्दो रणकण थक्ष रह्या ॥ ४॥ तिहां जे गायोना चारनारा गोवालीया लोको ३ ते पण गाय है
चारतां चारतां राजकुंवरीना विवाहना मनोरथने मनमा लावता थका वीणा वजाडे ले. तेमज करसणी जे खेडुत लोको डे ते पण पोतपोतानां धान्यनां पाकेलां खेतरोने सूनां मूकीने राजकुंवरी-1॥ ए॥ ने परणवानी पोताना हैयामा घणी होश राखता थका तिहां आवीने ( बहु के० ) घणा मले। बे, एटले ते वीणा वगामवानो उद्यम शीखवाने एकठा थाय ने ॥५॥
For Personal and Private Use Only
Page #199
--------------------------------------------------------------------------
________________
तेद नयर मांदि एहवं, कौतुक थइ रह्यं ॥ दो लाल के ॥ कौतुक ॥ दीठे बणे ते वात, न जाये पण कां ॥ दो लाल ॥ न० ॥ सुणी कुंअर ते वात, दिये रीग्यो घणुं ॥ दो लाल ॥ दिये ॥ सार्थवादने सार, दीए वधामणुं दो लाल ॥ दीए ॥६॥ आव्यो निज आवास, कुंअर मन चिंतवे ॥ हो लाल ॥ कुंअर ॥ नयर रह्यं ते दूर, तो किम जास्यां हवे ॥ दो लाल ॥ तो० ॥ देत विधाता पांख, तो माणस रुअडां ॥ दो लाल ॥तो० ॥ फरी फरी कौतुक जोत, जुवे जेम सूअडा ॥ दो लाल ॥ जुवे ॥७॥ सिक्ष्चक्र मुज एद, मनोरथ पूरशे ॥ दो लाल ॥ मनोरथ ॥ एदीज मुज आधार, विघन सवि चूरशे ॥दो लाल ॥ विघन ॥ थिर करी मन वच काय, रह्यो इक ध्यानशुं ॥ दो लाल ॥ रह्यो० ॥ तन्मय
तत्पर चित्त, थयुं तस ग्यानशुं॥दो लाल॥थयुं ॥७॥ अर्थ-तो हे कुंवर ! ते नगरमां एवा प्रकारचें कौतुक थइ रह्यु बे ते नजरे दी बने, पण मुखे करी का जाय नहीं. ए वात सार्थवाहना मुखथी सांजलीने ते कुंवर पोताना हियामां घj रीज्यो. ते वारे ते सार्थवाहने वधामणीमां (सार के०) प्रधान वस्त्रादिक (दीए के)
आपतो हवो ॥ उक्तं च ॥ तावत्प्रीतिर्नवेझोके, यावद्दानं प्रदीयते ॥ वत्सः दीरक्षयं दृष्ट्वा, परि* त्यजति मातरम् ॥१॥ इति ॥६॥ पड़ी श्रीपाल कुंवर संध्यासमये पोताना आवासने विषे
श्रावीने मनमां एवं चिंतववा लाग्यो के ते नगर तो अहींथी घणुं दूर रडं, तो हवे तिहां । शी रीते जश्शुं ? अहो! जो विधाताए पांख आपी होत तो माणस रुमां थात; अने सूमाग
ACIRICICIC ANGANAGACACAAAACANCHA
। सूमाना
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #200
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥ ए८ ॥
जेम फरी फरीने देश विदेशनां कौतुको जुवे बे तेम माणस पण आकाशगमन करी फरी फरीने | देश विदेशनां कौतुक जोत ! ! ! ॥ ७ ॥ पण हवे मारे तो श्री सिद्धचक्र जेवो धणी बे तो तेज मारा ए मनोरथ पूर्ण करशे, मारे तो एज आधारभूत बे, ते सर्व विनोने चूर्ण करशे, एवो निश्चय करी पोतानां मन, वचन छाने कायाने स्थिर करी, एक श्री सिद्धचक्रजीनाज ध्यानमां रह्यो; ते श्रीपालनं चित्त तन्मय एटले सिद्धचक्रना ध्यानमांज तत्पर एटले तीन थयुं ॥ ८ ॥
ततखिण सोहमवासी, देव ते च्यवीयो ॥ हो लाल के || देव० ॥ विमलेसर मणिदार, मनोदर लावीयो । हो लाल ॥ मनोहर० ॥ यइ घणो सुप्रसन्न, कुंअर कंठे वे ॥ दो बाल || कुंअर ० ॥ तेद तो कर जोडी, मदिमा वरवे ॥ दो लाल ॥ महिमा० ॥ ए ॥ जेदवं वंबे रूप, ते थाये ततखिणे || दो लाख ॥ ते० ॥ ततखिण वांबित ठाम, जाये गयणांगणे ॥ दो लाल ॥ जाये ० ॥ आवे विण अभ्यास, कला जे चित्त धरे || दो लाल
॥ कला ० ॥ विषना विषम विकार, ते सघला संदरे ॥ दो साल ॥ ते ० ॥ १०॥ छार्थ-ते वारे ततखिण एटले ते समयेज सौधर्मदेवलोकनो रहेवासी विमलेसर नामे देवता ते मनोहर मणिनो हार लइने तिहां श्राव्यो, ते घणोज सुप्रसन्न यइने ते हार श्रीपाल कुंवरने कंठे ठवीने बे हाथ जोमी ते दारनो महिमा वर्णवे बे ॥ ए ॥ ते कहे बे के हे कुंवर ! एक तो ए हारना प्रजावे करी जेवुं रूप वांबे तेवं तत्काल याय, बीजुं जे ठेकाणे जवानी वांडा करे तिदां तत्काल गयणांगणे एटले आकाशमार्गथी जवाय, त्रीजुं अभ्यास करया विना पण जे कला शीखवानुं पोताना चित्तमां धारे ते कला आवडे, अने चोथुं कोइने ( विष के० ) केर व्याप्युं होय अने तेना विषम एटले खाकरा विकार प्राप्त थया होय ते सर्वने संहरे एटले नाश करे ॥ १० ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
वंग. ३
॥ ए ॥
Page #201
--------------------------------------------------------------------------
________________
सिक्ष्चक्रनो सेवक, हूं व देवता ॥ दो लाल के ॥ हुँ॥ के नहरीया धीर, में एहने सेवता ॥ दो लाल ॥ में ॥ सिक्ष्चकनी नक्ति, घणी मन धारजो ॥ दो लाल ॥ घणी ॥ मुजने कोश्क काम, पडे संन्नारजो ॥ दो लाल ॥ पडे ॥ ११॥ एम कदीने देव, ते निज थानक गयो । दो लाल ॥ ते निज० ॥ कुंअर पोढ्यो सेज, निचिंतो मन थयो ॥ दो लाल ॥निचिंतो ॥ जाग्यो जिसे परनात, तिसे मन चिंतये ॥ दो लाल ॥ तिसे० ॥ कुंमल नयर मकार, ज बेसुं हवे ॥ दो लाल ॥ जय० ॥ १२॥ नयण उघाडी जाम, विलोके आगले ॥ हो लाल ॥ विलोके ॥ देखे जन्नो आप, नयरनी नागले ॥ दो लाल ॥नयरनी० ॥ दीग तिहां दरवाण, ते वीण वजावता ॥ दो लाल ॥ ते ॥ राजकुंअरीनां रूप, कला गुण गावता ॥ हो लाल ॥ कला ॥१३॥ अर्थ-हे कुंवर ! हुं श्रीसिद्धचक्रनो सेवक देवता बुं. ए सिझचक्रने सेवता एटले सेवन कर-18 नारा एवा केटलाएक धीरजवंतोने में उडया ने, माटे तमे पण श्रीसिद्धचक्रनी नक्ति घणी मन मांहे धारजो, अने जो कोश्क काम पडे तो मने संचारजो ॥ ११॥ ए प्रमाणे कहीने ते देवता पोताने स्थानके गयो, अने श्रीपाल कुंवर पण पोतानी सेज उपर जश् पोढ्यो, एटले सुश रह्यो, तेनुं मन निश्चिंत थयुं . हवे प्रनाते जेवो जाग्यो तेवोज कुंवर पोताना मनमां चिंतववा लाग्यो के हवे कुंमलपुर नगरमां जश् बेसुं ॥ ॥ एवं चिंतवीने (जाम के )जे वारे पोतानां (नयण के) नेत्र उघामीने आगल (विलोके के०) जुवे ने तो ते वारे पोताने कुंडलपुर नगरनी
SALMALAMALARIAAAAAAAAECAUSA
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #202
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० I will
जागोले यावी उजेलो देखतो हवो, थाने तिहां दरवाण जे नगरना दरवाजाना साचवनारा लोको बेतेने पण वीणा वगाडता ने राजकुंवरीनां रूप, कला घने गुणोनुं गायन करता थका दीवा ॥ १३ ॥ चित्त मांदे चिंती रूप, करे तिदां कुबडुं ॥ हो लाल || करे० ॥ उनम शीश निवाड, वदन जिस्युं तुंबडुं || दो लाल ॥ वदन० ॥ चूए चूंची यांख, दांत सवि सोखला || दो बाल ॥ दांत० ॥ बांका लांबा दो, र ते मोकला || दो लाल || रहे० ॥ १४ ॥ चिहुं दिशि बेतुं नाक, कान जिम ठीकरां ॥ हो लाल ॥ कान० ॥ पूंठ उंची अति खुंध, दिये बहु टेकरा ॥ दो लाल ॥ दिये० ॥ कोट केम तर पेट, मली गयां दुकडां ॥ दो लाल ॥ मी० ॥ टुंकी सायल जंघ, दाथ पग टुंकमा ॥ दो लाल ॥ दाथ० ॥ १५ ॥ ठक ठक ठवतो पाय, नयर मांदि नीकल्यो । हो लाल ॥ नयर० ॥ तेद नीदाली लोक, खलक जोवा मल्यो | दो लाल ॥ खलक० ॥ जिदां शीखे बे वीण, कला तिदां यवीयो || दो लाल || कला० ॥ याव्या राजकुमार, मली बोलावी यो ॥ दो लाल ॥ मली० ॥ १६ ॥
- पढी पोताना चित्तमां कुबडानुं रूप करवानुं चिंतन करीने कुवमानुं स्वरूप कस्युं, ते या प्रमाणे के प्रथम उजड शीश एटले मस्तक उंचुं बे, ललाट पण उंचुं बे, वदन जे मुख ते तुंबमा जेवुं बे, छाने खो चूंची बे, तेमांथी पाणी चूए बे एटले ऊरे बे, तथा सर्व दांत सोखला थइ गयेला बे, तथा होठ तो वांका, लांबा ने मोकला रहेला बे, एटले एक होने बीजो होठ मलतो नथी ॥ १४ ॥ तथा नाक चारे दिशाए बेसी गयेलुं बे, कान तो जाणे ठीकरांज होय
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
म. ३
॥ एए॥
Page #203
--------------------------------------------------------------------------
________________
नहीं ? एवा देखाय बे, पूंठ उंची बे, घणी खुंध नीकली बे, हैया उपर ( बहु के० ) घणा टेकरा जेवुं देखाय बे, तथा कोट, केम, हृदय अने पेट, ए चारे दुकमां एटले पासे पासे मली गयां बे, तथा साथल ने जांघ ए बेहु टुंकां बे, तेमज हाथ तथा पग पण सर्वे टुंकमा बे ॥ १५ ॥ एवं रूप करी पगने हलवे हलवे ठक ठक कर (ठवतो के०) मूकतो थको एटले पग तबकावतो थको नगरमां नीकल्यो. ते जोइने सर्व लोकनो खलक एटले समूह जोवा मल्यो. एवे वेषे जिहां वीजा | राजकुमार प्रमुख वीणाकला शीखे बे तिहां ते कुब्ज श्राव्यो, तेने जोइने राजकुमारो पण तेनी तरफ श्राव्या, अने ते सर्व जणोए मली तेने बोलायो ॥ १६ ॥
वो आवो जुदार, पधारो वामणा ॥ दो लाल || पधारो० ॥ दीसो सुंदर रूप, घणुं सोदामणा ॥ हो बाल ॥ घ० ॥ किदांथी पधारया राज, कदो कुण कारणे ॥ दो लाल || को० ॥ केदने देशो मोहत, जइ घर बारणे ॥ हो लाल ॥ जइ० ॥ १७ ॥ कुब्ज कदे मे दूर, थकी याव्या यदीं ॥ हो लाल ॥ थकी० ॥ हांसुं करतां वात, तुम्हे साची कही || दो लाल ॥ तुमे ॥ वीणा गुरुनी पास, प्रमे पण साधशुं ॥ दो लाल || अमे० ॥ करशे जो जगदीश, तो तुमश्री वाघशुं ॥ हो लाल ॥ तो० ॥ १८ ॥
0
अर्थ-के हे वामणाजी ! श्रावो, श्रावो, जुहार बे, अहींयां पधारो, अहो ! तमे तो घणा सुंदर रूपवंत ने सोहामा देखाई हो ! हे राजन् ! तमे क्यांथी पधारया ? खने शे कारणे तमोने अहींयां याववुं पड्यं बे ? तथा कोना घरने बारणे जइ तमे मान महत्त्व प्रापशो ॥ यतः ॥ दुर्जनोदी रितैर्दोषै - गुणैर्मार्गणवर्णितैः ॥ असतीदर्शितैः स्नेहै, स्समानं महतां मनः ॥ १ ॥ ॥ इति ॥ १७ ॥ ते सांजली कुब्जे कयुं के हे जाइ ! श्रमे घणा दूर देशी अहींयां खाव्या बीए.
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #204
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
खंग.३
॥१०॥
तमे अमारुं हांसुं करता थका पण वात तो साची कही जे. हे कुमारो ! श्रमे पण गुरुनी पासे है वीणानी कलाने साधशु, अने जो जगदीश करशे तो तमाराथी पण ए कलामां अमे वधशुं ॥१०॥
विद्याचारीय पास, जइ एम विनवे ॥ दो लाल ॥ जय० ॥ वीणानो अन्यास, करावो मुज दवे॥दो लाल ॥ करावो ॥ खड्ग अमूलिक एक, कडे तस नेटणुं ॥ हो लाल ॥ क ॥ तव दरख्या गुरु महोत, दीए तस अति घणुं ॥ दो लाल ॥ दीए ॥ १५॥ वीणा एक अनुपम, दीधी तस करे॥दो लाल के॥दीधी०॥देखामेस्वर नाद,ठेकाणां आदरे॥ हो लाल ॥ ठेकाणां० ॥ त्रट त्रट त्रूटे तांत, गमा जाये खसी॥ दो लाल ॥
गमा०॥ते देखी विपरीत, सना सघली हसी॥ दो लाल॥सन्ना०॥२०॥ अर्थ-पली विद्याचार्यनी पासे जश्ने ते कुवमो एवी रीते विनंति करे ने के हे गुरुजी ! हवे
प्राप वीणानो अभ्यास करावो, पण राजकमारो तेना नपर हसता हम हम करता देखीने| गुरुए तो ते समये तेनी सामुं पण जोयुं नहीं, ते वारे कुब्जे ते उपाध्यायने पोताना हाथ 3 मांहेला एक अमूलक खड्गन नेटणुं कस्तूं, ते वारे तो ते गुरुए घणा हर्षवंत थश्ने कुब्जने अति घणुं महत्त्व दीधुं ॥ १५ ॥ एक अनुपम पोतानी वीणा कुबमाना हाथमां श्रापीने स्वर तथा है
दिनां जे जे ठेकाणां हतां ते सर्व आदरे करी देखाड्यां, ते वारे कुंवरे पण राजकुमारोने हास्य-17 रस वधारवा माटे विपरीतपणे वीणाना गमा चढाववा मांड्या के जेथी वीणानी तांतो जे हती13 ते सर्व त्रट त्रट त्रूटी गश्, अने गमा सर्व खसी गया, एटले तातो त्रोमी नाखी, अने तुंबडं फोडी18 नाख्यु. एवं विपरीतपणुं जोश्ने सर्व सना खम खम हसी, तोपण उपाध्याय पासे फरी फरी घरेण थापवाना बले करी आदर सहित रहे ॥२०॥
मने श्राप वीणानो अन्यास
॥१०॥
in Education n
ational
For Personal and Private Use Only
Page #205
--------------------------------------------------------------------------
________________
दवे परीक्षा देतु, सजा महोटी मली ॥ हो बाल ॥ सना० ॥ चतुर संगीत विचक्षण, बेठा मन रखी ॥ दो साल के ॥ बेा० ॥ यावी राजकुमारी, कला गुण वरसती ॥ हो लाल ॥ कला० ॥ वीणा पुस्तक हाथ, जे परतख सरसती ॥ दो लाल || जे० ॥ २१ ॥ दरवाने दरबार, कुबज जव रोकीयो ॥ हो लाल ॥ कुबज० ॥ दीधुं भूषण रत्न, पबे नवि टोकीयो ॥ दो लाल ॥ प० ॥ प्राव्यो कुमरी पास, इचारूपी वडो ॥ हो लाल ॥ इचारूपी० ॥ कुंवरी देखे सरूप, बीजा सवि कुबडो ॥ हो लाल ॥ बीजा० ॥ २२ ॥
- हवे जे वारे महीनो पूर्ण थयो, ते वारे परीक्षाना हेतुर मोटी सजा मली. ते सना मांहे संगीतशास्त्रने विषे चतुर ने विचक्षण एटले डाह्या पुरुषो सर्व पोतानां मनने रलीयाते | एटले यानंदे करी बेठा, तिहां राजकुंवरी पण कला तथा गुणनो वरसाद वरसावती थकी घ्यावी. | तेना एक हाथमां वीणा बे, घने वीजा हाथमां वीणाना शास्त्र संबंधी पुस्तक बे, तेथी जाणीए प्रत्यक्ष एटले साक्षात् सरखतीज होय नहीं ? एवी शोने बे ॥ २१ ॥ ते सनामां जवा माटे कुब्ज जेवो प्रवेश करे बे, तेवोज तेने दरवाने एटले पोली ये रोकी राख्यो, तेने कुंवरे रत्तनुं श्राजूपण याप्युं, ते वारे तेथे सजामां जवा माटे नवि टोकीयो एटले अटकाव्यो नहीं. पठी ते ( वमो | के० ) मोटो इछारूपी एटले श्वामां आवे तेवा रूपने धारण करनारो जे कुंवर ते कुंवरी पासे आव्यो. तिहां मात्र एकली कुंवरी तो जेवुं श्रीपालनुं मूल रूप बे तेवुंज देखे बे, अने बीजा | सर्वे तेने कुबडा जेवोज देखे बे ॥ उक्तं च ॥ प्रतिपच्चंद्रं सुरजी, नकुलीं नकुलः पयश्च कलहंसः ॥ चित्रकवल्लीं पक्षी, सूक्ष्मं धर्मं सुधीर्वेत्ति ॥ १ ॥ इति ॥ २२ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #206
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग.३
श्रीरा सा चिंते मुज एद, प्रतिज्ञा पूरशे ॥ दो लाल ॥ प्रतिज्ञा० ॥ सफल ॥१०॥
जनम तो मानशुं, उर्जन कुरशे॥ दो लाल के ॥ उर्जन ॥ जो एदथी नवि नांजशे, मन, आंतरं ॥ दो लाल के ॥ मननुं० ॥ करी प्रतिका वयर, वसाव्युं तो खरं ॥ हो लाल ॥ वसाव्युं० ॥ २३ ॥ दाखे गुरु आदेशे, निज वीणाकला ॥ हो लाल के ॥ निज ॥ जाम कुमार कुमार, समा मद आकला ॥ दो लाल ॥ समा० ॥ ताम कुमारी देखावे, निज गुण चातुरी॥ हो लाल के ॥ निज ॥ लोके जाख्युं अंतर, ग्राम ने
सुरपुरी॥ दो लाल के ॥ ग्राम ॥२४॥ . अर्थ-हवे ( सा के) ते राजकुंवरी श्रीपाल कुंवरने जोश्ने पोताना मनमां चिंतवे बे के मारी। जे प्रतिज्ञा करेली ले ते जो एज पुरुष पूर्ण करशे तो हुं मारो जन्म सफल थयो एम मानीश, अने जे जे मारा उर्जनो हशे ते सर्वे फुरता रहेशे, अने जो आ पुरुषथी मारा मन- आंतरं| नहीं नांगे तो पठी थावी प्रतिज्ञा करीने में जगतमा खरेखलं फोकट वेरज वसाव्युं एम जाणवू MIn २३॥ हवे (जाम के) जे वारे गुरुनो आदेश पामीने (कुमार के०) सर्व राजकुमारो ते
( कुमार समा के०) महादेवना पुत्र कार्तिकस्वामी सरखा मदे करी श्राकला थश्ने उतावलथी पोतपोतानी वीणाकला देखावा लाग्या, ( ताम के०) ते वारे कुंवरीए पण पोताना गुणनी चतुरा बतावी. ते जोर सजाना लोके एवं कडं के कुंवरीनी अने राजकुमारोनी वीणा-18 कलामां तो ग्राम अने सुरपुरी जेटबुं अंतर , एटले किहां तो एक नानुं सरखं गामडुं ! अने, किहां देवलोकमां इंजनी नगरी ! ए बेहुमां परस्पर जेटबुं अंतर ने तेटलुं अंतर कुमारोनी अने कुंवरीनी वीणाकलामां ॥२४॥
॥१०॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #207
--------------------------------------------------------------------------
________________
कुमरीकला आगे हुश, कुंअर तणी कला ॥ हो लाल के ॥ कुंअर ॥ चंदकला रवि आगे, ते गश ने बाकला ॥ दो लाल ॥ ते ॥ लोकप्रशंसा सांनली, वामन आवीयो॥दो लाल के ॥वामन ॥ कदे कुंमलपुरवासी, जलो जन नावीयो॥ दो लाल ॥नलो० ॥२५॥ कुंअरी संकी तेण, वीणा दीए तसु करे ॥ हो लाल ॥ वीणा ॥ कहे कुमार अशुभ , ए वीणा धुरे ॥ हो लाल के ॥ए ॥ वीण सगर्नने दाधो, दंड गले ग्रां ॥ दो लाल के ॥ दंग ॥ तुंबड तेण अशु६,-पणुं में
तस कह्यं ॥ दो लाल ॥ पणुं ॥१६॥ अर्थ-जेम ( रवि के ) सूर्यनी आगल चंडमानी कला निस्तेज देखाय दे, तेम राजकुंवरी नी कला आगल कुंवरोनी कला ते गश बाकला जेवी थक्ष गइ, एटले नहीं जेवी थक्ष गइ. ए प्रमाणे | लोकोनां मुखथी कुंवरीनी प्रशंसा थती सांजलीने वामनोजी तिहां आव्या, तेने जो वज्ररति बोल्यो के आ कुब्ज तो कुंमलपुरना वासी जनोने नलो जावीयो देखाय ॥ २५॥ दवे राजकुंवरीए तो जाणे प्रथमथी तेनी साथे संकेतज कस्यो होय नहीं ? तेम (तसु के० ) ते कुवमाना| (करे के० ) हाथमां पोतानी वीणा आपी, ते वीणा जोश्ने कुंवर बोल्यो के (धुरे के० ) प्रथम तो ए वीणाज अशुद्ध , केमके ए वीणाना तुंबमानो गर्न पूरोपूरो नीकल्यो नधी, कांश्क मांहेली कोरे रही गयेलो , माटे ए वीणा ( सगर्न के) गर्न सहित बे, श्रने वली ए वीणानो दंड जे जे ते अरण्यमां दग्ध थयेवू जे वृक्ष हतुं ते वृदनुं काष्ठ कापीने बनावेलो ने, माटे ( दाधो 4 के) दग्ध थयेलो, बखेलो , तेथी (गले ग्रह्यु के०) गळ ग्रहवाणुं , ते पकडाइ जाय ,
ROCENCHOCREACHESENCHACANASANCESCARSCRCHESCHECCANCE
For Personal and Private Use Only
Page #208
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराअटकी जाय , तेने लीधे एनो खर बिन्न थाय , एना गलामांथी शब्द बराबर सारो नीक
खम.३ लतो नथी, एवी ए वीणा बे, (तेण के० ) तेमाटे (तस के०) ते तुंबडा, पशुपणुं में कडं ॥२६॥ ॥१०॥
दे(दा)खी दोष समारी,वीण ते आलवे॥दो लाल ॥वीण ॥ दोश् ग्रामनी मूर्चना, किंपिन को चवे॥ दो लाल के ॥ किंपि० ॥ सूता लोकनां लेश, मुकुट मुज्ञा मणि ॥ दो लाल ॥ मुकुट० ॥ वस्त्रानरण ले। करी, राशि ते अति घणी॥ दो लाल के॥राशि ॥२॥ जाग्यां लोक असं, देखी एहवू ॥ दो साल के॥ देखी० ॥ पूर्ण प्रतिज्ञा कुमारी, चित्त दरषित दवू ॥दो लाल ॥ चित्त०॥ त्रिजुवनसार कुमार, गले वरमालिका ॥ दो लाल ॥गले ॥ दवे ग्वे निज माने, धन्य ते बालिका ॥ दो लाल ॥ धन्य० ॥ (पागंतर ) वीणानाद विनोदे, ते रीकी खरी ॥ दो लाल
के ॥ते॥कंठे ग्वे वरमाला, तेहने कुंअरी॥दो लाल के॥ तेहने॥श्न॥ अर्थ-ए प्रमाणे ते वीणामां दोष देखामीने पठी कुंवरे तेने समारीने तेनी श्रालापचारी करी,13 ते जेवी वीणाना ग्रामनी मूठना थर तेवांज सर्व लोको मूळ पाम्यां, (किंपि न को चवे के० ) को लगार मात्र पण बोले नहीं, हाले चाले नहीं. एवी रीते सर्व लोकोने मू वश थयेलां जोश्ने है। श्रीपाल कुंवरे ते सुतेलां लोकोनां मुकुट अने मणिरत्ने जमित एवी मुभा एटले वींटी तेमज वस्त्र अने वीजां पण कुंमलादिक घरेणां लश्ने तेनो अत्यंत घणो मोटो राशि एटले ढगलो कस्यो,3 अने पोते पाडो वीणा वजाडवा बेसी गयो ॥ २७॥ थोडी वार पठी जे वारे ते लोको सर्व मूळ-15 मांथी जाग्यां ते वारे लोकोए एवं असं दीवं, अने कुंवरीनी प्रतिज्ञा पूर्ण थवाथी एनुं चित्त पण
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #209
--------------------------------------------------------------------------
________________
हर्षायमान थयु. हवे ते समये त्रण नुवनमा सारजूत एवो जे श्रीपाल कुंवर, तेना गलाने विषे | वरमालिका ते गुणसुंदरी ( उवे के०) स्थापती हवी, अने ते बालिका जे राजकुंवरी ते पोताना अवतारने धन्य मानवा लागी ॥ पागंतरे ॥ ते कुंवरी वीणानो जे (नाद के०) शब्द तेनो (विनोद | के ) आनंद तेणे करी खरेखरी रीऊ पामीने श्रीपाल कुंवरने कंठे वरमाला थापती हवी ॥२०॥
वामन वरीयो जाणी, नृपादिक फुःख धरे ॥ दो लाल ॥ नृपादिकम् ॥ ताम कुमार स्वनावर्नु, रूप ते आदरे ॥ दो लाल के ॥ रूप० ॥ शशि रजनी हर गौरी, हरि कमला जिस्यो॥ हो लाल ॥ दरि० ॥ योग्य मेलावो जाणी, सवि चित्त नबस्यो ॥ दो लाल ॥ सवि० ॥ ॥ निज बेटी परणावी, राजा जली परे ॥ दो लाल ॥ राजा ॥ दीए दय गय धण कंचण, पूरे तस घरे ॥ दो लाल ॥ पूरे ॥ पुण्य विशाल जुजाल, तिदां लीला करे ॥ दो लाल ॥ तिहां ॥ गुणसुंदरीनी साथ, श्रीपाल ते
सुख वरे ॥ हो लाल ॥ श्रीपाल० ॥ ३०॥ __ अर्थ-इहां कुंवरीए वामणाने वस्यो, एवं जाणीने जे वारे नृपादिक एटले कुंवरीना पिता प्रप्रमुख सर्व पुःख धरवा लाग्या, ( ताम के०) ते वारे कुंवरे पण पोतानुं मूल खजावनुं जे रूप हतुं ।
ते श्रादयुं, पड़ी ते कुंवरी अने कुंवरनुं जोम के शोजवा लाग्युं ? के जेम (शशि के०) चंडमा अने रजनी जे शरद्पूनमनी रात्रि ए बेहुनुं जोडं जेवू शोने तेवं, तथा हर जे महादेव अने| गौरी जे पार्वती ए बेहुनुं जोड़ें जेतुं शोने तेवं, तथा हरि जे श्रीकृष्ण अने कमला जे लक्ष्मीजी| ए बन्नेनुं जोडं जेवू शोने तेवू श्रीपाल कुंवर अने गुणसुंदरीनुं जोडं शोजवा लाग्यु. एवो योग्य
-KA-NCROCARICROCCARRORSCRECORICALSCRECASTRICROCHAR
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #210
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण मेलावो जाणीने सर्व लोकोनां चित्त उबासने पाम्यां ॥ यतः॥ वपुर्वंशो वयो वित्तं, विद्याविधि- ३
विदग्धता ॥ विवेको विनयश्चेति, वरे सप्त गुणा अमी ॥१॥ इति ॥ २ ॥ राजाए पोतानी कुंव॥१३॥
रीने नली परे परणावीने ( हय के ) घोमा, (गय के० ) हाथी, (धण के०) धन अने कंचन|BI जे सोनुं ते ( दीए के०) दश्ने तेनुं घर (पूरे के०) पूरे दे. अर्थात् घर संपूर्ण रीते जराय एवं दान देतो हवो. हवे विशाल पुण्यनो धणी अने मोटी जुजाउँवालो जे श्रीपाल कुंवर, ते तिहां पोताना ससराना घरने विषे रह्यो थको लीला करे ने अने गुणसुंदरीनी साथे सुख जोगवे ॥३०॥
बीजे खेमे ढाल, रसाल ते पांचमी दो लाल ॥ रसाल ॥ पूरी ए अनुकूल, सुजन मन संक्रमी ॥ हो लाल ॥ सुजन ॥ सिक्ष्चक्र गुण गातां, चित्त न कुण तणो॥ दो लाल ॥ चित्त० ॥ हरषे वरसे अमिय, ते विनय
सुजश घणो ॥ हो लाल ॥ ते ॥ ३१॥ अर्थ-ए त्रीजा खंमने विषे रसाल एटले रसे करी सहित एवी पांचमी ढाल कही. इहां जावार्थ है हैए जे ए ढालनी रचना करतां करतां श्रीविनयविजयजी उपाध्याय देवलोक पहोता. ते पनी ए
ढाल जे अधुरी मूकी गया हता ते अनुकूल एटले जेवी जोइए तेवी रीते श्रीमद्यशोविजयजी उपाध्याये (पूरी के०) पूर्ण करी, ते सऊन जनोनां मनमा संक्रमी एटले गमी, तेमनां हृदयने है थानंददायक यश, तो हे नव्यो ! ए श्रीसिद्धचक्रजीना गुण गातां थका कोना चित्तने विषे अमिय एटले अमृत समान हर्षनो वरसाद नहीं वरसे ? अर्थात् सहु कोश्ना चित्तमां वरसेज, ॥१३॥ श्रने ते प्राणी घणो विनय अने घणो सुयश पामे. इहां श्रीविनय विजयजी तथा यशो विजयजी बेहुनां नाम पण सूचन कस्यां ॥३१॥
SHRIDAE
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #211
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥दोहा॥
पुण्यवंत जिहां पग धरे, तिहां आवे सवि शक्षि॥ तिहां अयोध्या राम जिहां, जिहां साहस तिहां सिदि॥१॥ पुण्यवंतने लहीनो, श्वा तणो विलंब ॥ कोकिल चादे कंठरव, दीए ढुंब नर अंब ॥२॥ पुण्ये परिणति होय नली, पुण्ये सुगुण गरिह ॥ पुण्ये अलिय विघन टले, पुण्ये मिले ते इक ॥३॥ अर्थ-पुण्यवंत प्राणी जिहां पोतानो पग धरे तिहां सर्व प्रकारनी झझिावी मले, जेमके जिहां श्रीरामचंदजी होय तिहांज अयोध्या नगरी जाणवी, अने जिहां साहस तिहांज सिक्किा बे, ए दृष्टांत जाणी लेवो ॥१॥ पुण्यवंत प्राणीने लही जे लदमी पामवी ते तो मात्र तेने श्या करवी पडे, एटलोज विलंब . जेम कोकिल पदी बे, ते जे वारे रुमा (कंठरव के) कंठनो शब्द एटले सुकंपनी श्वा करे , ते वारे तरतज तेने अंब वृक्ष जे जे ते बुंब जरीने पोतानो महोर आपे ॥२॥ वली पुण्यना प्रजावे करी जीवनी नली एटले रुमी परिणति थाय तथा| पुण्यना योगे सुगुण जे रुमा गुण तेणे करी गरिष्ठ एटले मोटो थाय, तथा पुण्ये करी (अलिय के०) अलीक एटले मागं विघ्न टले, तथा पुएये करीनेज जेनी श्वा होय ते इष्ट वस्तु आवी मले ॥३॥
॥ ढाल उही ॥ सुण सुगुण सनेही रे साहिबा ॥ ए देशी॥ . श्क दिन इक परदेशीयो, कहे कुमरने अद्जुत गम रे॥ सुण जोयण त्रणसें नपरे, के नयर कंचनपुर नाम रे ॥
जु जु अचरिज अति नबुं ॥१॥ए आंकणी ॥ | अर्थ-हवे एक दिवसे एक परदेशी पुरुष श्रीपालनी हजुर श्रावीने एक अनुत स्थानकनी वात
SOURCHARGAOCALSALMANGAROOCOGREECCANCE
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #212
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥ १०४ ॥
कहे बे के दे खामिन् ! सांजलो, के अहींथी त्रणसें योजन उपर एक कंचनपुर नामनुं नगर छे. हे महाराज ! तिहां अत्यंत जलुं श्राश्चर्यकारी कौतुक बे तेने तमे जुर्ज, जुर्ज एटले देखो, देखो. अर्थात् ए तमोने जोवा योग्य बे ॥ १ ॥
'तिदां वज्रसेन वे राजीयो, अरिकाल सबल करवाल रे ॥ तस कंचनमाला
कामिनी, मालतीमाला सुकुमाल रे ॥ जु० ॥ २ ॥ तेहने सुत चारनी उपरे, त्रैलोक्यसुंदरी नाम रे ॥ पुत्री बे वेदनी उपरे, उपनिषद् यथा अनिराम रे ॥ जुर्ज० ॥३॥ रंजादिक जे रमणी करी, ते तो एद घडवा करलेख रे ॥ विधि रचना बीजी तणी, एहनो जय जरा उल्लेख रे ॥ जुर्ज० ॥४॥
अर्थ - तिहां ते नगरमां वज्रसेन नामे राजा बे, जेनी (रि के०) शत्रुने कालरूपी एवी सबल एटले बल सहित तरवार बे. ते राजाने मालतीनां पुष्पोनी माला सरखी सुकुमाल शरीरवाली एवी कंचनमाला नामे कामिनी पटले पट्टराणी बे ॥ २ ॥ ते राणीने चार पुत्र बे. तेनी उपरे वली एक त्रैलोक्यसुंदरी एवे नामे पुत्री थइ बे, ते जेम चार वेदने माथे उपनिषद् शोने वे तेम चारे | पुत्रोने माथे ते कुंवर शोने बे, एटले चार वेदनुं रहस्यरूप जेम उपनिषद् बे तेम ते चार पुत्र तो चार वेद जेवा गुणवंत बे, अने ते चार वेदना दोहनरूप जे उपनिषद् बे ते समान महा गुणवान् ते कुंवरी बे ॥ ३ ॥ हवे ए त्रैलोक्यसुंदरीनी उत्पत्ति कलेवामां कवि उत्प्रेक्षा करे वे के जगतमां सृष्टिनो कर्त्ता ब्रह्मा कदेवाय बे. तिहां जेम कोइक चित्रकार कोइ रुडी बबी करवानुं साधन करवा बेसे, तिहां प्रथम तो जामां जीणां चित्रोनो अन्यास करे बे, एम करतां करतां जे वारे तेनो हाथ वले ते वारे चिंतित पदार्थनी उबी मन प्रतीत प्रमाणे ते करे बे. तेम सृष्टिनो कर्त्ता जे विधि तेणे पण ए त्रैलोक्यसुंदरीने घमवाने अर्थे दस्तक्रिया समारवा सारु पहेली जे (रंजादिक के० ) रंजा, उर्वशी,
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खं. ३
॥१०४॥
Page #213
--------------------------------------------------------------------------
________________
तिलोत्तमा प्रमुख अप्सरा विगेरे ( रमणी के०) जेस्त्री, तेना समूह कल्या, ते तो ए त्रैलोक्य-1|| सुंदरीने घमवाने अर्थे करलेख एटले हस्तलेख सुधारवा माटे प्रथम खरडो कस्या. एम करता करतां| जे वारे ते ब्रह्मानो हाथ वक्ष्यो ते वारे तेणे विगतोपमान एवी ए त्रैलोक्यसुंदरीने घमी, एटले || ब्रह्माने विषे जे स्त्रीना रूपमा सृष्टि नीपजाववानी अने रूपवंत करवा संबंधी क्रियाकुशलतानी सीमा हती ते सघली तेणे ए स्त्री घमवामां वापरी नाखी. हवे एथी उपरांत रूप, कला अने के गुणवान् को बीजी स्त्री घमवानी शक्ति विधातामां रही नहीं, एमां जेटलु महापण इतुं ते हैं त्रैलोक्यसुंदरी बनाववाना काममा लगाड्यु. हवे अहीं कोई प्रश्न करे के ब्रह्माए प्रथम रंजादिक
स्त्री जे घडी ते तो जाणे त्रैलोक्यसुंदरीने घमवा माटे हाथ वाल्यो हतो ते तो साचुं बे, पण जाए त्रैलोक्यसुंदरी नीपजाव्या पडी वली ब्रह्माए बीजी उतरता रूपनी स्त्री जगतमां शामाटे नीप-18 | जावी ? केमके साध्यनी परिसमाप्तिए को क्रिया करे नहीं. तेनो उत्तर कहे जे जे “विधिने |
रचना बीजी तणी” एटले त्रैलोक्यसुंदरीने घड्या पली वर्तमान काले तथा आगामिक काले बीजी घणी स्त्री विधाताए नीपजावी, पण ते सर्वनां रूप, गुण अने कला, ए सहु सामान्य कीधां; ते एटला वास्ते के ( एहनो के ) ए त्रैलोक्यसुंदरीना जययशनो ( उल्लेख के०) उत्कर्ष लेख करवा माटे, एटले ए त्रैलोक्यसुंदरीने सर्वोत्तम, सर्वथी अधिक रूप, कला अने गुणना यशनो जय आपवा माटे तथा तेनो वान वधारवा माटे नीपजावी बे अर्थात् विधाताए पोते त्रैलोक्यसुंदरीने सर्वोत्तम ठराववाना हेतुथी तेनो मुकाबलो करवाना निमित्ते बीजी त्रैकालिक स्त्री कीधी , अने ते सर्व स्त्रीउनां रूप, कला श्रने गुणने जीते तेवी ए त्रैलोक्यसुंदरी करी बे, तेथी तेज दीप्ति थने, केमके सरस वस्तुनुं जाणपणुं केवारे थाय ? के जे वारे तेनी पासे बीजी निरस वस्तु होय ते वारे ते मूलगी वस्तु सरस दीगमां आवे. तेम ब्रह्माए पण एने
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #214
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण सर्वोत्तम ठराववा माटे बीजी त्रैकालिक स्त्रीने सामान्य रूप गुणवाली कीधी . इति जावार्थः||
॥ उक्तं च ॥ नैषधे ॥ पुराकृते णमिमां विधातु,-महिधातुः खलु हस्तलेखः॥ एवं नवनावि-| ॥१०॥ |४||पुरंधिसृष्टिः, सास्यै यशो वै जयजं प्रदातुम् ॥१॥ इति ॥४॥
रोमाय निरखे तेदने, ब्रह्माक्ष्य अनुन्नव दोय रे ॥ स्मर अध्य पूरण दर्शने, तेदने तुल्य नहीं कोय रे ॥जु ॥ ५॥ नृपे तस वर सरिखो देखवा, मंडप स्वयंवर कीध रे ॥ मूल मंडपथंने पूतली, मणि कंचन
मय सुप्रसि६ रे॥ जुर्ज० ॥६॥ AI अर्थ-वली ते त्रैलोक्यसुंदरीना रूपनुं वर्णन ते सार्थवाह श्रीपाल कुंवरनी श्रागल करे बे. ते त्रैलोक्य
सुंदरीना शरीरनो रोमान एटले एक रोमनो श्रग्रजाग तेने जे प्राणी (निरखे के० ) जुवे तो तेने (ब्रह्माघ्य के० ) ब्रह्म जे श्रानंद तेनुं अघ्य एटले ऐक्यनो अनुनव ( होय के० ) थाय. एतावता आकारक जे ज्ञान तेनो अनुनव थाय, एटले ते कुंवरीना रोमायने देखवाथी त्रैलोक्यवर्ती जे श्रानंद, तेनो एक पुंज एटले समूहमय थाय. अर्थात् दर्शक पुरुष तेना दर्शनश्री केवल आनंदमय थ जाय. इति जावः ॥ तथा ते स्त्रीना पूर्ण दर्शने एटले यथानुक्रमे नख शिख पर्यंत देखवे करीने स्मर जे कंदर्प तेनुं श्रघ्य जे ऐक्य तेनो अनुभव थाय, एटले दर्शक जे देखनारो ते केवल 81 | काममय थर जाय, तेने रोमे रोमे काम व्यापी जाय. इति जावः ॥ केमके ते एम विचारे जे । कामदेव ते अद्भुत रूपवंत , अने श्रा कुंवरीने संपूर्ण देखवाथी पण अत्यंत रूपवंतपणुं जाण-13 वामां आवे बे, माटे एनुं रूप तो घणुंज सुंदर बे, अने शास्त्रमा तो एवं घणुं सुंदर रूप एक काम-12 ॥१०॥ देवनुंज सांजव्यु बे, माटे कामदेव ते एज हशे ? एटले कंदर्प ते एनेज कहेता हशे ? एम सा-18 कात् कंदर्पपणुं उरावते कंदर्पनुं बेपणुं टाब्युं ॥५॥ ते त्रैलोक्यसुंदरी कुंवरीना सरखो ( वर के० )
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #215
--------------------------------------------------------------------------
________________
तर वराववाने माटे तेना पिताए स्वयंवरमंझप कस्यो , ते मंझपने विषे मूल स्तंने प्रसिद्ध एवी|| कंचनमय, मणिरत्ने जमाव एक शोजनीय पूतली स्थापी ॥६॥
चिहुं पास विमाणावली समी, मंचातिमंचनी श्रेणी रे ॥ गोरव कारण कणराशि जे, कीपीजे गिरिवर तेणी रे॥जुङ ॥ ७॥ तिहां प्रथम पद
पाढनी, बीजे ने वरण मुहूर्त रे॥शुन बीज! बीज ते काल बे, पुण्यवंतने देतु आयत्त रे॥ जु० ॥ ॥ एम निसुणी सोवन सांकलु, कुंअरे तस दी, ताव रे॥ घरे जश्ते कुब्जाकृति धरी, तिहां पदोतो दार प्रनाव रे ॥जु ॥ ए॥मंडपे पश्संतो वारीयो, पोलीयाने नूषण दे रे॥
तिहां पहोतो मणिमय पूतली, पासे बेश्गे सुखसेरे ॥ जु० ॥१०॥ है अर्थ-वली ते स्वयंवरमंडपमा जे राजा पधारशे तेमने बेसवा माटे ते मंझपनी चारे पासे
देवतानां विमानोनी श्रावली एटले श्रेणी तेनी समान तिहां मंचातिमंच एटले एक मंच ते लघु मंच ने बीजा अतिमंच एटले मोटा मंच तेनी श्रेणी एटले पंक्ति करेली . वली राजा
जे आवशे तेमने गोरव करवाने एटले नोजन देवाने अर्थे कण जे धान्य तेना राशि एटले 1 ढगला कस्या डे; ते केवा ? तो के गिरिवर जे मेरु पर्वत तेने पण फीपे एवा मोटा शोनी
रह्या ॥७॥ तिहां आषाढ महीनानो प्रथम पक्ष तेनी बीजने दिवसे वरवानुं मुहर्त ने, माटे हे शुज बीज ! एटले हे जला बीज ! उत्तम कुलना उपना कुंवर ! ते बीज जे जे ते श्रावती कालेज , माटे पुण्यवंत पुरुषने एनो हेतु एटले कारण (आयत्त के० ) स्वाधीन डे ॥ ॥ ए| प्रमाणे ते परदेशीना मुखथी वात सांजलीने श्रीपाल कुंवरे तेने सोनानुं सांकलुं ( ताव के ) ते वखत दीy. पनी पोताने घेर जश् ( कुब्जाकृति धरी के० ) कुबमानुं रूप धारण करी हारना|
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #216
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥१०६ ॥
प्रजावे करी तिहां ते नगरने विषे जर पहोतो ॥ ए ॥ ते कुत्रमाने स्वयंवरमंरुपमा पेसतां थका |तिहां जा रहेला पोलीयाए वास्यो, ते वारे पोलीयाने आभूषण आपीने त्यां पहोतो. जिहां मंरुपना मध्यजागे मणिमय पूतली हती, तेनी पासे जइ स्वस्थ थइने बेठो ॥ १०॥
खरदंतो नाक ते नानडुं, होठ लांबा उंची पीठ रे ॥ यांख पीली केश काबरा, रह्यो जो मांडवा देव रे ॥ जु० ॥ ११ ॥ नृप पूढे केइ सोनागया, वली वागया जागीया तेज रे ॥ कदो कुण कारण तुमे यवीया, कदे जि कारण तुमे देज रे ॥ जु० ॥ १२ ॥ तव ते नरपति खमखम दसे, जुजु ए रूपनिधान रे ॥ एदने जे वरशे सुंदरी, तेदनां काज सख्यां वल्यो वानरे ॥ जुर्ज० ॥ १३ ॥
0
अर्थ-वे ते कुबको वो बे ? तो के ( खरदंतो के० ) गधेका जेवा जेना दांत बे, नाक तो नानुं बे, होठ लांबा बे, पीठ उंची बे, यांख पीली बे ने केश जेना कावरा बे एवो ते कुब्जरूपे श्रीपाल कुंवर स्वयंवर मंरुपनी नीचे जश्ने उनो रह्यो ॥ ११ ॥ दवे श्रीपाल कुबमानुं रूप धारण करी श्राव्यो बे तेने तिहां स्वयंवरमंरुपमां बेठेला वीजा (नृप के० ) राजार्ज पूढे बे के श्रमे केटलाएक राजकुंवर ते सोजागीया एटले सौभाग्यवंत जाग्यशाली, वली वागीया एटले वाचाल ने ( जागीया तेज रे के० ) पोताना तेज प्रतापे करी जाग्रत थयेला एवा इहां कन्या परवाना कार्यने अर्थे मल्या बीए, परंतु तमे शा कारणे इहां पधारया हो ? ते कहो. ते वारे ते कुबडो कहेतो हवो के जे कारणे तमे थाव्या बो तेज कारणे श्रमे पण इहां श्राव्या ठीए ॥ १२ ॥ एवं कुबडाए कयुं ते वारे ते राजा सर्वे खमखड दसवा लाग्या, अने मश्करीमां बोलवा लाग्या के जुर्ज, जुर्ज, आ रूपनुं निधान एटले खजानो इहां कन्या परणवाने श्राव्यो बे ! एने जे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
रु. ३
॥१०६॥
Page #217
--------------------------------------------------------------------------
________________
सुंदरी वरशे तेनां तो सर्व कार्य सख्यां, अने तेना शरीरनो वान पण वढ्यो, एम जाणवू ॥१३॥
श्ण अवसरे नरपति कुंअरी, वर अंबर शिबिकारूढ रे॥ जाणीए चमकती वीजली, गिरि उपर जलधरगूढ रे ॥ जुर्ज ॥ १४॥ मुत्तादलदारे सोदती, वरमाला कर मांदे ले रे ॥ मूल मंडप आवी कुंअरने, सहसा शुचि रूप पलो रे ॥ जु० ॥ १५॥ जे सहज स्वरूप विनावमां, देखे ते अनुनवयोग रे ॥ इण व्यतिकरे ते दरषित हुश्, कदे हुई
मुज इष्ट संयोग रे॥ जु० ॥१६॥ अर्थ-एवा अवसरे राजानी कुंवरी पण ( वर के० ) प्रधान एवां अंबर एटले वस्त्रोए करी थाछादित करेली एवी शिविका एटले पालखी तेमां श्रारूढ थश्ने स्वयंवरमंम्पमां आवे , इतिहां कवीश्वर उपमा आपे डे के जेम (जलधरगूढ के० ) मेघनी घटाए ढांकेलो एवो जे पर्वत
तेनी उपर चमकार करती वीजली शोने, तेम शहां पर्वत समान ते पालखी जाणवी, श्रने ते 8 पालखी उपर जे नीला वस्त्रनुं मेघाडंबरमत्र धतूं मे ते जाणीए जंडो गुप्त वरसाद चढी श्राव्यो । बे, अने तेमां ऊबकारा करती वीजलीनी परे ते कन्या बेठी थकी शोने ॥१४॥ ते कुंवरीएर मुत्ताहल एटले मुक्ताफल जे मोती तेना हार कंठमां पदेख्या , तेणे करी शोजती थकी हाथमा * वरमाला लश्ने जेवी मूल मंगपस्तंजने विषे आवी, तेवीज तेनी आगल उन्नेला श्रीपाल कुंवरनुं
सहसा एटले शीघ्रपणे अकस्मात् शुचि एटले पवित्र एवं रूप तेने (पलोश के) देखीने मग्न Aथ ॥ १५ ॥ तेनी उपर दृष्टांत कदे के जेम सहज स्वरूप एटले कर्मादि मल रहित, स्फटिक
रत्ननी परे निर्मल, मिथ्यात्व, अविरति, कषाय अने योगथी रहित तथा ज्ञान, दर्शन, चारित्रमय एवं जे आत्मानुं सहज खरूप ने तेने विनावमा एटले नवनिध परिग्रहादिक जे घर, माख मिल्कत,
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #218
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥१०॥
माता, पिता, पुत्र, कलत्र, त्राता, बहेन प्रमुख ए सर्व बाह्य परिग्रह विनाव जाणवो, अने राग, है वेष, कषायादिक ते अंतरंग परिग्रह जाणवो, तेणे करी सहित जे संसारी जीव ते अनादि कालनो विजावदशामां मग्न थको ते मांहेज रातो रहे . ते कोश्वारे कर्मे विवर दीधे थके कषाया-18 दिकनी मंदता थाय, ते वारे आत्मानी शुज दशानी उग्रताने योगे पोतानुं सहज खरूप जे झाना-18 दिक गुणमय में तेने देखे ते अनुनवयोग कहीए, ए उक्ति कही. हवे एनी युक्ति देखाडे बे. इहां श्रीपाले कुबमानुं रूप धारण कह्यु , माटे मंम्पमां आवेला सर्व राजा प्रमुख तो। तेनी कुब्जाकृतिज देखे जे ते श्रीपालनुं विजाव रूप , श्रने ते श्रीपालनुं मूल रूप जे ते सहज स्वानाविक , तेमां विनावनुं रूप धारण करघु बे, ते मूकीने खजावना मूल रूपने राज-18 कुमारी देखे , ते जाणे अनुजवयोग थाय ने, ए युक्ति कही. हवे श्रीपालनुं मूल रूप जोश्ने र
री पोताना चित्तमा विचारे जे के या सर्व मोटा मोटा राजकुमारो बेग बे, पण था कुंवरना सरखं बीजा कोचं रूप नथी अने वली एने देखवाथी मारुं चित्त विशेष करी आनंदित थयु थकुं विश्राम पामे . ए व्यतिकरे करी ते कुंवरी हर्षित थर थकी मनमां कहे जे के ए मुजने 51 इष्ट एटले वांवित संयोग अर्थात् मिलाप (हु के०) श्रयो ॥ १६ ॥
तस दृष्टि सराग विलोकतो, विचे विचे निज वामनरूप रे॥
दाखे ते कुमरी सुवल्लही, परि परि परखे करी चूंप रे॥जु०॥१७॥ __ अर्थ-हवे श्रीपाल कुंवरे पोतानी उपर ते कुंवरीनी सराग दृष्टि एटले कुंवरी मारा उपर संपूर्ण रागवंती थ एवी तेने विलोकतो एटले जोतो थको एनो मारा जपर केवो प्रेम ? तेनी परीक्षा करवा माटे विचास्युं के जो तो खरो के आ कुंवरीनो मारा उपर बाह्य राग डे के अन्य तर राग ? अथवा ए मारा उपर संपूर्ण रागवाली डे के नथी ? एम चिंतवीने विच विचमा
॥१०॥ "
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #219
--------------------------------------------------------------------------
________________
CHIPAM**
HSA303 SSA3%
वली पोतानुं विशेष वामनरूप तेने देखाडे बे, तेम तेम ते सुवलही एटले कुंवरने नली, वसन, प्रिय एवी ते कुंवरी पण परि परि एटले वारंवार पोताना चित्तमां चोंप राखीने परीक्षा करवा लागी, जोवा लागी ॥ १७ ॥
सा चिंते नटनागर तणी, बाजी वाजीप्लुते जेम रे॥ मन राजी काजी शुं करे ? आजीवित एदशं प्रेम रे ॥ जु० ॥ १७ ॥ दवे वरणवे जे जे नृप प्रते, प्रतिदारी करी गुणपोष रे ॥ ते ते दिले कुंअरी दाखवी,
वय रूप ने देशना दोष रे॥ जु ॥१ ॥ Hो अर्थ-एवं रूप करता कुंवर प्रत्ये देखीने ( सा के० ) ते कुंवरी (चिंते के ) चिंतववा लागी है के जेम नटनागर जे बाजीगर ले तेनी (बाजी के० ) रमत तेनी कोश्ने खबर पडे नहीं,
अथवा ( वाजी के० ) घोमो तेनी जे ( प्लुत के०) गतिविशेष बे, अथवा घोमो दोडे ने ते वारे तेना उदर मांदे प्लुत शब्द थाय ने ते कये ठेकाणेथी नीकले ले तेनी कोश्ने गम पमती नथी, तेम ए कुंवरीना चरित्रनी पण खबर पमती नथी, अथवा बाजीगरनी रमत ते जेम | व्यर्थ डे, अने घोडानो चालती वेलानो शब्द ते जेम व्यर्थ डे, तेम आ कुंवरनुं वामनरूप पण व्यर्थज बे. तथापि “ मन राजी तो काजी शुं करे ? ” ए कहेवत प्रमाणे माझं मन है। एने वरवा माटे राजी बे, तो एमां बीजो को शुं करनार बे ? माटे मारे तो आजीवित एटले श्रा शरीरे करी जिहां सुधी जीवती रहुँ तिहां सुधी एनी साथेज प्रेम डे ॥ १७ ॥ हवे कुंवरी राजाउनी जे श्रेणी बेठी ने तेनी चाले चाली, अने तेनी आगल प्रतिहारी जे दासी ते ( गुणपोष के० ) गुण- पोषण करीने जे जे राजा प्रत्ये वर्णन करे बे ते ते राजाऊनां फरी ते राजकुंवरी वय, रूप अने देश संबंधी दोष काढीने हेलना करी नाखे , एटखे कोश्कने तो एवं
RAAAAAAAAAAAAKANKAR
JainEducationainternational
For Personal and Private Use Only
www.sainelibrary.org
Page #220
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राकदे के आ राजा तो ( वय के०) अवस्थामां मोटो दे अथवा नानो ले तथा कुसे न्यून बे खक.३
एवी रीते वय संबंधी दोष काढे. वली कोश्कने तो कहे के था रूपवान् नथी, तथा कोश्कने ॥१०॥
कहे के एनो देश सारो नथी, एमां कुष्काल घणा पडे बे, ए देश रसाल नथी, एमां धान्य पाकतुं नथी, एमां रमणीय उत्तम जातिनी चीजोनी पेदाश थती नथी, था देशनी पेदाश सारी नथी, इत्यादिक देश संबंधी दोष देखाडीने तेनी हेलना करी नाखे ॥ १५ ॥
वरणवतां जस मुख उजवू, देवंतां तेदनुं श्याम रे ॥ प्रतिहारी थाकी कुंअरने, सा निरखे रति अभिराम रे ॥ जुङ ॥२०॥ मधुर यथोचित शेखडी, दधि मधु साकर ने शख रे॥ पण जेदनुं मन जिहां वेधीयुं,
ते मधुर न बीजा लाख रे ॥ जुजे ॥१॥ अर्थ-एम प्रतिहारी जे वारे जे जे राजाना यशनुं वर्णन करे, वखाण करे, ते वारे तो ते राजानु । मुख उजलु थाय, अने फरी प्रतिहारीना कह्यानंतर कुंवरी जे वारे ते राजाना देशादि संबंधी दोष काढीने हेलना करे ते वारे तेनं श्याम वदन एटले कांखं मुख थइ जाय. एम प्रतिहारी। सर्व राजाउनां वर्णन करीने थाकी गश; परंतु कोश्ने कुंवरी ए कबूल कस्यो नहीं. रति जे कामदेवनी स्त्री ते समान (अनिराम के०) मनोहर एवी ( सा के०) ते कुंवरी तो श्रीपाल कुंवरनुं । सादात् कंदर्प समान मूल रूप ले तेनेज ( निरखे के० ) जुवे जे ॥२०॥ हवे कवि कहे जे के यद्यपि शेलमी पण मीठी बे, तेमज दधि एटले दही, मध, साकर अने जाख, ए सर्व वस्तु यथो-3||१com चित एटले यथायोग्य (मधुर के० ) मीठी , तथापि जेनुं मन जिहां (वेधीयुं के०) लाग्यु, तेने तेज मधुर लागे, पण बीजी लाखोगमे मीगशवाली वस्तु होय ते तेने मीठी न लागे. तेम है
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #221
--------------------------------------------------------------------------
________________
ए कुंवरीनुं मन पण श्रीपाल कुंवर उपरज रुचे बे, पण बीजा लाखोगमे राजार्ज बेठा बे ते सर्व रूपे, वये तथा गुणे करी सुंदर बे तोपण कुंवरीने रुचता नथी ॥ २१ ॥ अवसरे यंजनी पुतली, मुखे अवतरी दारनो देव रे ॥ कदे गुणग्रादक जो चतुर बे, तो वामन वर ततखेव रे ॥ जुर्ज० ॥ २२ ॥ ते सुणी वरीयो ते कुंअरीए, दाखे निज प्रतिदी कुरूप रे ॥ ते देखी निर्ऋत्से कुब्जने, तव रुाराणा भूप रे ॥ जुर्ज० ॥ २३ ॥ गुण अवगुण मुग्धा नविल, वरे कुब्ज तजी वर भूप रे ॥ पण कन्यारत्न न कुब्जनुं, उकरमे शोवर धूप रे ॥ जुo॥ २४ ॥ तज माल मराल मे कहुं, तुं काम विकराल रे ॥ जो न तजे तो ए तादरुं, गलनाल लू करवाल रे || जुo || २५ ॥
अर्थ - ए अवसरे ते स्तंजनी पुतलीना मुख मांहे हारनो देवता जे विमलेसर नामे बे ते यव| तरीने एटले संक्रमीने कहे बे जे हे कुंवरी ! जो तुं गुणनी ग्राहक, चतुर अने विचक्षण हो तो या वामणाने तत्काल उतावले वर. ए प्रमाणे पूतलीद्वारा ते देव बोल्यो ॥ २२ ॥ एवां ते पूतलीनां वचन सांजलीने ते राजकुंवरीए ते वामणाने वस्यो, ते वारे ते वामणे वली (निज के० ) पोतानुं ( तिही के० ) अत्यंत कुरूप देखावा मांड्यं, ते देखीने ( तव के० ) ते वारे मोटा मोटा चूप एटले राणा राजा ते कुब्जनी उपर ( रुठा के० ) रुष्टमान ते कोपायमान थया थका तेनी निर्भर्त्सना करवा लाग्या ॥ २३ ॥ श्रने कहेवा लाग्या के अरे ! ( मुग्धा के० ) अज्ञात - यौवना स्त्री होय ते कांइ गुण अवगुणने ( लहे के० ) जाणे नहीं, माटे ( वर के० ) श्रेष्ठ एटले मोटा | मोटा राजाउने तजीने या कुबडाने वस्यो, पण जेम उकरडो जे खातरनो ढगलो तेने विषे वर प्रधान
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only)
Page #222
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥१०॥
एवो दशांगी धूप ते शो ? एटले जेम उकरमा उपर प्रधान दशांगी धूप घटे नहीं, तेम था कन्यारत्न खंम. ३ ते कुब्जने घटे नहीं, अर्थात् रत्न सरखी कन्यानो कुबमानी साथे संबंध योग्य नथी ॥ २४ ॥ एम 8 विचारी ते सर्व राजा कुबडा प्रत्ये कहेवा लाग्या के अमे ( मराल के० ) हंस सरखा बीए, अने है तुं तो कागमा जेवो अत्यंत विकराल रूपवालो बो, माटे तुने कहीए बीए के तुं ( माल के) वरमाला तजी आप, एटले तारा गलामां कुंवरीए जे वरमाला पहेरावी ने ते काढी नाख, श्रने जो नहीं काढीश तो अमे तारुं जे या गलनाल एटले गलानी नली के तेने तरवारे करी लूणी 81 नाखशुं एटले कापी नाखशुं ॥ २५ ॥
तव दसीय नणे वामन इस्युं, तुमे जो नवि वरीया एण रे॥ तो जग रुसो मुज किस्युं, रुसो न विधिशुं केण रे॥जु ॥२६॥ परस्त्री अनिसाषना पातकी, दवे मुज असिधारातिब रे॥पामी तुमे शुरू था सवे,
देखो मुज केदवा दब रे॥ जुर्ज ॥२७॥ अर्थ-ते वारे हसी करीने ते वामणोजी (इस्युं के०) या प्रकारे (जणे के०) कहेवा, लाग्यो के हे पुर्नगो ! एटले माठा नाग्यना धणी ! तमने जो ( एण के ) ए कुंवरीए नवि | वस्या तो मारी उपर शा वास्ते रुसो बो ? तमे विधि जे दैव तेनी उपर का रुसणुं करता 8 नथी ? ॥२६॥ एणे मने वरमाला पदेरावी , तो हवे ए स्त्री मारी थइ चूकी, तमोने तो है ए परस्त्री थर, तेनो तमे अभिलाष करो बो, तेथी तमे परस्त्री अनिलाषना पातकी थया, माटे तेनुं प्रायश्चित्त लेवा सारु मारी (असि के०) तरवार तेनी जे धारा ते धारारूप तीर्थजल ||॥१०॥ जाणवू. ते जल पामीने तमे सर्व शुभ था तो पापरहित थशो, अने जुर्म तो खरा के मारा (हब के०) हाथ केवा ने ? ॥२७॥
ROSAAAAAAALALSANIAS
For Personal and Private Use Only
Page #223
--------------------------------------------------------------------------
________________
इम कही कुबजे विक्रम तिस्युं, दाख्यु जेणे नरपति नह रे ॥ चित्त चमक्या गगने देवता, तेणे संतति कुसुमनी वुछ रे ॥ जुर्ज ॥॥ हु वचसेन राजा खुशी, कदे बल परे दाखवो रूप रे॥तेणे दाख्युं रूप स्वनाव, परणावे पुत्री नूप रे ॥ जुर्ज ॥ ॥ दीयो आवास उत्तंग ते, तिहां विलसे सुख श्रीपाल रे॥ निज तिलकसुंदरी नारीशु, जिम कमलाशुं गोपाल रे ॥ जुऊं ॥ ३० ॥त्रीजे खंडे पूरण थइ, ए ही ढाल रसाल रे ॥ जश गातां श्री सिश्चक्रनो, होय घर घर मंगलमाल
रे॥ जु० ॥३२॥ | अर्थ-एम कहीने ते कुब्ज राजाए पोतानुं तेज पराक्रम देखाड्यु के जेणे करी ते सर्व राजा नाग. ते वखत कौतुक जोवाने अर्थ आवेला एवा (गगने के०) आकाशमां रहेला जे || देवता ते पण ते कुब्ज, पराक्रम जोश्ने चित्तमां चमकी गया, तेथी ते कुंवरना मस्तक उपर श्रेणी-1 परंपराए फूलोनी (संतति के०) अविछिन्न वृष्टि करता हवा ॥ २७॥ एवं कुबमानुं पराक्रम जोड्ने कन्यानो पिता जे वज्रसेन राजा लेते पण खशी थयो, अने कुंवर प्रत्ये कहेवा लाग्यो । के हे खामिन् ! जे प्रमाणे तमे तमारं बल देखाड्युं ते प्रमाणे तमारं रूप पण श्रावु हो । जोए नहीं, माटे बल प्रमाणे रूप पण देखामो. ते वारे ते श्रीपाल कुंबरे पण पोतार्नु खाजाविक जे रूप हतुं ते देखाड्यु के नूपे पोतानी कुंवरी तेनी वेरे परणावी ॥ ए॥ पठी राजाए ते श्रीपालने रदेवाने माटे ( उत्तंग के० ) घणो ऊंचो एवो आवास आप्यो, त्यां ते श्रीपाल कुंवर पोतानी (तिलकसुंदरी के०) त्रैलोक्यसुंदरी नामक स्त्रीनी साथे जेम ( कमला के) लक्ष्मीजीनी साथे | (गोपाल के०) श्रीकृष्णजी सुख जोगवे ने तेम सुख जोगवता हवा ॥ ३० ॥ ए त्रीजा खंमने है।
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #224
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
॥११॥
विषे ( रसाल के ) श्रृंगारादि रसे जरित एवी बही ढाल पूर्ण थ. श्रीसिद्धचक्रजीना यश खंम. ३ गातां थका घर घरने विषे मांगलिकनी माला थाय, एमां था रासना कर्ता श्रीयशोविजयजीए पोतानुं नाम पण यश एवं सूचव्यु ॥ ३१ ॥
॥दोहा॥ विलसे धवल अपार सुख, सोनागी सिरदार ॥ पुण्यबले सवि संपजे, ___ वंडित सुख निरधार ॥१॥ सामग्री कारय तणी, प्रापक कारण पंच॥
इष्ट देतु पुण्यज वडं, मेले अवर प्रपंच ॥ २॥ तिलकसुंदरी श्रीपालनो,
पुण्ये हुवो संबंध ॥ दवे श्रृंगारसुंदरी तणो, कहीशुं लान प्रबंध ॥३॥ अर्थ-हवे सोजागी पुरुषोनो शिरदार एवो श्रीपाल कुंवर तिहां धवल एटले उज्ज्वल एवां अपार, सुखने विलसे , जोगवे . जीवने (निरधार के०) निश्चेथी पुण्यने बले करीनेज सर्व प्रकारनां मनोवांबित सुख संपजे ॥१॥ हरेक कार्यनी सामग्रीनां प्रापक एटले प्राप्तिनां करावनारांकाल स्वन्नाव, नियति, कर्म अने उद्यम, ए पांच कारण , पण तेने मेलवी आपनार तिहां इष्ट हेतु ते एक मोटुं पुण्यज बे, जे (अवर के० ) बीजा जला प्रपंच सर्व मेलवी आपे ॥२॥ एज पुएयना योगे करीने त्रैलोक्यसुंदरी अने श्रीपालनो परस्पर संबंध थयो. हवे श्रृंगारसुंदरीना लाजनो | एटले पामवानो प्रबंध कहीशुं ॥३॥
॥ ढाल सातमी ॥ साहिबा मोतीमो हमारो ॥ ए देशी॥ श्क दिन राजसनाए आव्यो, चर कदे अचरिज मुज मन नाव्यो॥
॥११॥ साहिबा रंगीला हमारा ॥ मोदना रंगीला ॥ दलपत्तननो ने महाराजा, धरापाल जस पख बिहु ताजासादिबा ॥मोदना०॥ए आंकणी॥१॥
For Personal and Private Use Only
Page #225
--------------------------------------------------------------------------
________________
I अर्थ-पूर्वे कहेला जे पांच कारण, तेनुं किंचित् स्वरूप कहे . तेमां प्रथम काल नामे कारण 8, ते काले करी स्त्री गर्भ धारण करे अने काले करी विनाश पामे . बीजु खनाव नामे || & कारण ते खनावे करी उधमांथी दहीं थाय . त्रीजुं नियति ते निश्चेथी वेसठ शलाकापुरुष8
उपजे ने अने विलय पामे वे ॥ यतः॥ नियतिवशे मन चिंतव्यु, श्रावी मले तत्काल ॥ वरसां है मोन तिव्यं. नियति करे विसराल ॥१॥ तथा ॥ कोयल कर कर कूकवा, किम राखी शके प्राण ॥ हेग्ल उनो पारधी, माथे जमे सिंचाण ॥ २॥ पारधी विसहर डंसीयो, हाथ विबूटो वाण ॥ कोयल जा घर अप्पणे, सीर लग्यो सिंचाण ॥ ३॥ ए नियति कारण जाणवू ॥ हवे चो) नवितव्यता ते जाग्य, तेनी उपर दृष्टांतनुं काव्य कहे . दिप्तः केन करंमकेऽपि जुजंगः कुत्पी-14 मितो नाशको, रात्रौ खादिमकांदया सुविवरं कृत्वोंपुरुस्तन्मुखे ॥ नाग्यादेव तदा स्वयं निपततस्तन्मांसतृप्तोऽनव,-ट्यालस्तेन पथा गतः स्थिरतरो जोगीव नाग्यं नवेत् ॥ ४॥ ए नवितव्यता जे कर्म तेनी उपर दृष्टांत कह्यो. हवे उयम उपर दृष्टांत कहे ॥दोहो॥ उद्यम करतां मानवी, शुं| नवि सीके काज ॥ रामे रयणायर तरी, लीधुं लंका राज ॥५॥ए उद्यम कारण जप कह्यो. ए पांचे कारण सत्य ॥ हवे एक दिवसे ते वज्रसेन राजानी सनामां एक चर एटले हलकारो आव्यो. ते कहेवा लाग्यो के हे राजन् ! हे मारा साहेबा ! रंगीला ! मोहना उपजावनारा ! में मारा मनने जावतुं एवं एक अचरिज दी. ते अचरिज केवं दी ? ते संबंधी वार्ता कहुं हुं ते सांजलो. एक दलपत्तन नामे नगर , तेनो धरापाल एवे नामे राजा जे. जेना मातृपद तथा पितृपक्ष ए बेहु पद ताजा डे ॥१॥
राणी चोराशी तसगुणखाणी, गुणमाला प्रथम वखाणी ॥सादिबा॥ पांच बेटा उपर गुणपेटी, श्रृंगारसुंदरी बे तस बेटी ॥ सादिबा ॥२॥
For Personal and Private Use Only
Page #226
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥१९१॥
अर्थ-ते राजाने गुणोनी खाए जेवी चोराशी राणी बे, तेमां प्रथम पट्टराणीने स्थानके गुणमाला नामे राणीने वखाणी बे. ते राणीने पांच पुत्रनी उपर गुणनी पेटी जेवी एक श्रृंगारसुंदरी नामे पुत्री बे ॥ २ ॥
पल्लव धर दसित सित फूल, अंग चंग कुच फल बहुमूल ॥ सादिबा० ॥ जंगम ते बे मोदनवेली, चालती चाल जिसी गज गेली | साहिबा० ॥ ३ ॥ पंमिता विचक्षणा प्रगुणा नामे, निपुणा ददा सम परिणामे ॥ साहिबा० ॥ तेदनी पांच सखी बे प्यारी, सहुनी मति जिनधर्मे सा | साहिबा ॥ ४॥
अर्थ - हवे ए श्रृंगारसुंदरीनुं शरीररूप जंगम मोदनवेलीनुं वृक्ष वखाणे बे. एटले वृनी उपमाए करी एना शरीरना रूप ने सौंदर्यनुं वर्णन करे ते. वृक्षने पल्लव एटले नवां पत्र फूटे, ते जेवीं सकोमल लाल होय तेना जेवा एना ( अधर के० ) होठ बे. तथा ( सित के० ) सपेत उजलां फूल समान एनी ( हसित के० ) हसती वखते दांतनी पंक्ति उजली देखाय बे. तथा ( अंग के० ) शरीर ते ( चंग के० ) मनोहर बे. तथा ( कुच फल बहुमूल के० ) बहुमूलां फल जेवुं कुचयुगल ते बे स्तन शोने बे. ए रीते ते कुंबरी जंगम मोहनवेलीनुं वृक्ष बे, एटले वीजां जे जगतमां वनस्पतिनां वृको बे ते हालतां चालतां नथी, माटे स्थावर बे, घने ए कुंवरी तो हाले चाले बे, माटे जंगम मोहनवेलीनुं वृक्ष कहीने वखाणी बे. वली वृक्ष जेम धीमे धीमे पवने धीमुं धीमुं दाले, तेम ए कुंवरी ( गज गेली के० ) गजगति जेवी चाले बे एटले जेवी हाथणी चाले तेव। गेल करती चाले बे ॥ ३ ॥ ते कुंवरीने एक पंकिता, बीजी विचक्षणा, त्रीजी प्रगुणा, चोथी निपुणा ने पांचमी दक्षा, ए पांचे जणी सम परिणामे एटले सरखा परिणामवाली सखीनं
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
॥११९॥
३
Page #227
--------------------------------------------------------------------------
________________
400
ते कुंवरीने घणीज प्यारी ने, वखन , थने ते सर्वनी मति जैनधर्मने विषे सारी , रुमी माटे सरखा परिणामवाली पांचेने कही ॥४॥
ते आगल कहे कुमरी साचुं, आपण- म दोजो मन काचुं ॥ साहिबा० ॥ सुख कारण जिनमतनो जाण, वर वरवो बीजो अप्रमाण ॥ साहिबा०॥ ५ ॥ जाण अजाण तणो जे जोग, केल कंथेरनो ते संयोग ॥ सादिबा० ॥ व्याधि मृत्यु दारिख वनवास, अधिको कुमित्र तणो सहवास ॥ सादिबा० ॥ ६॥ हेममुज्ञाए अकीक न गजे, श्यो जलधर जे फोकट गाजे ॥ सादिबा ॥ वर वरवो परखीने आप, जिम न होय कर्म
कुजोमालाप ॥ साहिबा० ॥७॥ अर्थ-ते पोतानी पांचे सखीउनी आगल कुंवरी साचेसाचुं कहे जे के हे बहेनो ! श्रापणुं मन श्रीजिनधर्मने विष को काले काचुंम होजो, एटले म थाजो, एटला माटे सांसारिक सुखने कारणे जे आपणने ( वर के०) जरि वरवो ते पण जे पुरुष श्रीजिनमतनो जाण होय ते पुरुषनेज वरवो, परंतु जिनमतना जाण विना बीजा पुरुषने वरवो तो अप्रमाण ॥५॥केमके एक जाण अने बीजो है अजाण, ए बेनो जे (जोग के० ) मेलाप , ते जेम केलना कामनो श्रने कंथेर नामे कांटाना कामनो , पोतपोतामां संयोग थाय तेवो पुःखदायी जाणवो, माटे ( व्याधि के० ) रोगे करी पीमावु, मृत्युने
पामबुं, दरिस्तानी प्राप्तिनुं थर्बु अने वनवास जोगववो, एटला सर्व पराजव सहन करवा ते 8 है करतां पण कुमित्रनो सहवास ते अधिक पुःखदायी ॥६॥ वली जेम हेममुखा एटले सोनानी वींटी मांहे अकीकर्नु नंग जमीए तो ते बाजे नहीं, एटले शोने नहीं, तथा ते ( जलधर के) मेघ पण श्या कामनो ? के जे फोकट गर्जनाज कस्या करे, अने पाणीनो बांटो पण वरसे नहीं?
AAAAACACAMARCASEARCANCINGHSASRASICAL
E
asonal
For Personal and Private Use Only
Page #228
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम श्रापणने पण सोनानी वीटीमा अकीक जड्यानी पेठे जैनमतना जाण विना बीजा अकीक खंग.३
जेवाने वरवो नहीं, तथा व्यर्थ गर्जारव करनारा मेघनी पेठे बहारथी सारो देखाय अने मांहे ॥१९॥
का माल न होय तेवाने पण वरवो नहीं, परंतु आपणे तो परीक्षा करीने जैनमतनो जाण होय तेज ( वर के० ) जरिने वरवो के जेम कर्मकुजोमालाप न होय एटले कर्मे करी कुजोडानो आलाप एटले मलq वा संजाषण करई ते न थाय ॥७॥
कहे पंमिता परनुं चित्त, नाव लखीजे सुणीय कवित्त ॥ सादिबा ॥ सीथे पाक सुन्नट आकारे, जिम जाणीजे शु६ प्रकारे ॥ साहिबा ॥७॥ करीय समस्या पद तुमे दाखो, जे पूरे ते चित्त मांदे राखो ॥ साहिबा ॥
इम निसुणी कहे कुंअरी तेह, वरु समस्या पूरे जेद ॥ साहिबा ॥ ए॥ I अर्थ-ते वारे अंगारसंदरीनी पांच सखी मांदेली पहेली सखी जे पंडिता नामे बे, ते एवं कहे डे के परना चित्तनो नाव ( सुणीय कवित्त के० ) लोकनाषाए एम सांजलीएबीए के कवित्त । सांजलीने परना चित्तनो नाव (लखीजे के०) जाणीए. एवं कविनी उक्तिए सांजलीए बीए,
एटले आपणा चित्तमां जे वात होय तेनो नावार्थ एक पदमा सूचवीने जे परीक्षा आपे तेनी18 पागल ते पद कहे. पडी ते आपणा मुखथी एक पद सांजलीने जे कांश थापणा मनमां होय ।
ते प्रमाणे श्राखुं कवित्त करी आपे तो ते पुरुष जैनमतमा प्रवीण जाणवो. जेम (पाक के) रसोश्नी (सीथे के ) एक दाणे करी परीदा थाय बे, एटसे रसोइ चूले मूकेली होय, तेमांथी एक दाणो चांपी जोइए तो तरत पाकी ले के काची बे ? एवी मालम पडी जाय, तथा ( सुजट
॥११॥ के० ) सीपाश् जे जे तेनी परीक्षा ते श्राकारे करी जाणवामां आवे ने एटले तेनी मुखाकृति तू दीगथी तेमां केवा प्रकारनां शक्ति बल पराक्रम बे? ते जेम शुक प्रकारे जाणीजे ॥॥ तेम तमे है।
SAMACASSAMACHAMASALAAMAALAALASS
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #229
--------------------------------------------------------------------------
________________
पण जे आवे तेने समस्यानुं एक पद करीने ( दाखो के०) देखाडो, अने पनी ते जे पूरे ते | तमारा चित्तमां राखो के श्रापणा मनमां जे निर्धारेबु हतुं ते प्रमाणे तेणे त्रण पद पूरीने खरेखीं हार्द कही श्राप्यु के नहीं ? एवी रीते परीक्षा करो. ( एम के०) ए रीते पोतानी सखीनुं बोल है सांजलीने ते कुंवरी कहेवा लागी के जे मारी समस्या (पूरे के०) पूरी श्रापे, पूर्ण करे, तेने हुँ (वरं के० ) परj, पण बीजा वरने नहीं परj ॥ ए॥
तेह प्रसिदिसुणीने मलीया, बहु पंडित नर बुझे बलीया ॥ साहिवा० ॥ पण मतिवेग तिहां नवि चाले, वायुवेगे नवि डंगर दाले ॥ सादिबा ॥ १० ॥ पंच सखी युत ते नृपबेटी, चित्त परखे करी समस्या मदोटी ॥ सादिबा ॥ सुणीय कदे जन किम पूरीजे, पर मन द किम थाद सहीजे ॥ सादिबा० ॥ ११॥ सुणीय कुमार चमक्यो आवे, घर कदे दो मुज दार ! प्रनावे ॥ साहिबा ॥ दलपत्तनगत जिहां नृपकन्या, तिहां
पहोतो सखी युत जिहां धन्या ॥ साहिबा ॥१२॥ al अर्थ-हवे ते वात जगतमा प्रसिद्ध थर. ते प्रसिद्धि सांजलीने (बहु के ) घणा पंमित जनो।
जे बुद्धिना बलीया बे, एटले बलवंत बुद्धिना धणी, अनेक शास्त्रोना पारंगामी, एक शब्दना सो।। अर्थ करे, हजार श्रर्थ करे, एवा पुरुषो तिहां एका थया, पण जेम वायुना वेगथी पर्वत हालतो नथी, चलायमान थतो नथी, तेम तेमनी मति जेबुद्धितेनो (वेग के०)प्रचार ते समस्या माहे को रीते चालतो नथी ॥ १० ॥ एम पांच सखीए (युत के०) सहित ते राजानी कुंवरी मोटी स-3 मस्या करीने सर्वनां चित्तने परखे बे, परंतु समस्यानां पद सांजलीने ते पंमित जन एवं कहे || | के अमे केवी रीते ए समस्या पूरीए ? श्रा पारकाना मनरूप अहनो बाग ते केम पामीए ?॥११॥
10
bona international
For Personal and Private Use Only
Page #230
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रा० ते वात कुंवर सांजलीने चित्तमां चमक्यो श्रको पोताने घेर आवीने कहे वे के अहो मारा हार ! खंग.३ ॥११३॥
हुं तारे प्रनावे तिहां पहोंचं. एटयूँ कहेतांज दलपत्तन नगरे रहेली पांच सखीए युक्त एवीर राजानी कुंवरी जिहां धन्य डे, तिहां पहोतो ॥ १५ ॥
देखी कुमर अमर सम तेद, चित्त चमकी कहे जो मुज एद ॥ साहिबा ॥ पूरे समस्या तो हुँ धन्य, पूरी प्रतिक्षा होय कयपुण्य ॥ साहिबा ॥१३॥ पूजे कुमर समस्या कोण,कुमरी संकेत सखी कदे गोण॥सादिबा०॥ सीसे कुमर दीए कर पूरे, पुत्तल तेद रदे न अधुरे ॥सादिवा० ॥१४॥ पंडितोवाच ॥ मनवंबित फल होइ॥ पुत्तलोवाच ॥ दोदा ॥ अरिहंता सु नवद पय, निय मन धरे जु कोइ ॥ नित्य तसु नरसेहरद, मन
वंचित फल दोश्॥१॥ अर्थ-तिहां ते कंवरी साक्षात (अमर सम के) देवता समान श्रीपाल कुंवरने जोड्ने चित्त माहे चमकी थकी मनमां कहे डे के जो ए पुरुष मारी समस्या पूर्ण करे तो मारो जन्म धन्य |
बे, एनाथी मारी प्रतिज्ञा पूरी थाय तो हुँ कृतपुण्य जाणवी ॥ १३ ॥ श्रीपाल कुंवरे पूज्युं के तमारी ६ समस्या कर डे ? ते कहो. ते वारे कुंवरीना संकेतथी प्रथम गौण जे मुख्य सखी एटले ते कुंवरीश्री पन्हानी बे, परंतु पांच सखीउँमा वडेरी बे, मोटी ने एवी पंमिता सखी समस्या कहे , ते वारे WIनिकट रहेखें एक प्रतवं बे, तेना माथा उपर कुंवर (कर के हाथ मूकतो हवो, तेथीते प्रत-11
बुंज समस्या संपूर्ण रीते अधूरी न रहे तेम कहे ॥१४॥ हवे पंमिता सखी समस्यानुं पद!॥११३॥ कहे . "मनवंति फल हो" ते एक पदमा बीजां नवीन आगलनां त्रण पद मेलवी गाथा 41 संपूर्ण करीने पूतबुं समस्या पूरे दे, ते गाथानो अर्थ कहे . अरिहंतादिक नव पद , तेने
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #231
--------------------------------------------------------------------------
________________
पोताना मनने विषे जे कोइ धरे, तो निचे (नरसेहरह के० ) मनुष्य मांहे शेखर शिरोमणि एवा ( तसु के० ) ते पुरुषने मनोवांछित फल थाय ॥ १ ॥
विचक्षणोवाच ॥ अवर म ऊंखो खाल ॥ पुत्तलोवाच ॥ अरिहंत देव सुसाधु गुरु, धम्मज दया विसाल || जपहु मंत्र नवकार तुम, अवर म खो चाल ॥ २ ॥ प्रगुणोवाच ॥ कर सफलो अप्पा ॥ पुतलोवाच ॥ दिजइ देव गुरु, दिहु सुपत्तदिं दाए ॥ तव संजम नवयार करी, कर सफलो अप्पाण ॥ ३ ॥ निपुणोवाच ॥ जित्तो लिह्यो निलाड ॥ पुत्तलोवाच ॥ रे मन अप्पा खंची करी, चिंताजाल म पाम ॥ फल तित्तोदि पामीर, जित्तो लिह्यो निलाड ॥ ४ ॥
अर्थ - हवे बीजी विचक्षणा सखी कहे बे के " छावर म ऊंखो थाल ” ते वारे पूतलुं बीजां त्रण पद पूरीने कहे बे के देव तो श्री अरिहंत जाणवा, ने गुरु ते सुसाधु जाणवा, तथा विशाल एटले मोटी दया जेमां प्रधान बे ते श्री केवलिनाषित धर्म जाणवो. ए देव, गुरु अने धर्म, ए त्रणेनो नवकार मंत्रमां समावेश थयेलो बे, माटे ते नवकार मंत्रने तमे जपो, सेवन करो, अने | ( वर के० ) बीजां जे याल पंपाल बे, तेनी खणा म करो ॥ २ ॥ दवे त्रीजी प्रगुणा सखी कहे बे के " कर सफलो अप्पा " तेने पूंतलुं गलनां त्रण पद पूरी उत्तर आपे बे के देव गुरुनुं आराधन करीए, अने सुपात्रने दान आपीए, वली तप, संयम अने ( वयार के० ) परो|पकार करीने दे जीव ! तुं तारा ( अप्पाण के० ) श्रात्माने सफल कर ॥ ३ ॥ हवे चोथी निपुणा सखी कड़े बे के " जित्तो लिह्यो निलाम " तेने पूतलुं गलनां त्रण पदो नवां उत्पन्न करीने उत्तर पे बे के अरे मन ! तुं ( अप्पा के० ) आत्माने (खंची करी के० ) खेंची करीने
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #232
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥१९॥
पराणे चिंतारूप जालने विषे पामोश नहीं, कारण के फल तो जेटवू ललाटमां लख्युं खंग. ३ हशे तेटबुज प्राप्त थशे ॥४॥
ददोवाच॥ तस तिहुअणजण दास॥पुत्तलोवाच ॥अधिनवंतर संची, पुरम समग्गल जास ॥ तसु बल तसु म तसु सिरी, तसु तिहुअणजण दास ॥५॥ शृंगारसुंदर्युवाच ॥ रवि पदेला नगंत ॥ पुत्तलोवाच ॥ जीवंतां जग जस नहीं, जस विण कांश जीवंत ॥ जे जस लेइ आथम्या, रवि पदेला जगंत ॥ ६॥ ढाल पूर्वनी ॥ पूरे कुमर समस्या सारी, आनंदित हुश् नृपतिकुमारी ॥ सादिवा० ॥ वरे कुमार ते त्रिनुवनसार, गुणनिधान जीवन आधार ॥ साहिबा० ॥ २५॥ अर्थ-हवे पांचमी ददा सखी कहे .-"तस तिढुअणजण दास” तेने पूतबुं बीजां नवां, त्रण पदनी रचना करी उत्तर आपे . हमणां जे नव आपणे जोगवीए बीए, तेथी पाउल थ | गयेला नवोने जवांतर कहीए, तेने विषे (जास के० ) जेना समग्र पुण्यनो संचय करेलो (अधि। के ) , ( तसु के० ) ते पुरुषने वल होय, तथा तेने (मति के०) बुझि पण होय, अने तेने है| (सिरी के०) लदमी पण होय. वली त्रण जुवनना जनो तेना दास थश्ने रहे ॥५॥हवे श्रृंगार-ही सुंदरी पोते कहे . "रवि पहेला जगंत" तेने पूतलु उत्तर कहे . जीवतां जेनो जगतमां यश, नथी तो तेवा जीवो यश विवेक विना शुं जीवे ? अर्थात् तेमनुं जीव व्यर्थ बे, परंतु जे ॥११॥ प्राणी यश लश्ने जगतमांथी अस्त पाम्या , ते प्राणी ( रवि के० ) सूर्यथी पण पहेला उदय थाय ने, अर्थात् सूर्योदयथी प्रथम तेमना नामनुं लोको स्मरण करे ॥६॥ एम कुंवरे ते सर्व
For Personal and Private Use Only
Page #233
--------------------------------------------------------------------------
________________
सखीउनी समस्या सारी रीते पूर्ण करी, तेणे करी राजानी कुंवरी परम आनंदित थने त्रण जुवनने विषे सारजूत श्रने गुणनुं निधान एटले नंमार तथा जीवननो श्राधारजूत एवो जे कुमार ते प्रत्ये (वरे के० ) वरती हवी ॥ १५ ॥
प्रतलमुख समस्या पूरावी, राजा प्रमुख जन सवि हुनावी॥सादिबा० ॥ ए अचरिज तो कहीए न दी, जिम जोइए तिम लागे मी ॥ सादिबा० ॥ १६ ॥ राजा निज पुत्री परणावे, पंच सखी संजुत मन नावे ॥ साहिबा ॥ पाणिग्रहण मद सबलो कीधो, दान अतुल मनवंबित दीधो ॥ सादिबा ॥ १७॥ सातमी ढाल ते त्रीजे खेमे, पूरण दुइ गुण राग अखेमे ॥ साहिबा ॥ सिचक्रगुण जो गाजे, विनय
सुजश सुख तो पाश्जे ॥ साहिबा ॥ १७ ॥ अर्थ-एम पूतलाना मुखथी समस्या पूर्ण करावी, तेणे करी राजा प्रमुख जे (जन के०) लोक हूँ। हतो ते सर्व नाविक थयो थको कहेवा लाग्यो जे था श्राश्चर्य तो श्रमे क्यारे पण दी । नथी, एने तो जेम जेम जोए बीए तेम तेम मीतुं लागे २ ॥ १६ ॥ हवे राजाए मनने नावे | करी पांचे सखी सहित पोतानी पुत्रीने श्रीपाल प्रत्ये पाणिग्रहणनो एटले परणाववानो उत्सव| (सबलो के ) घणो मोटो कस्यो, अने जेनी तुलना न थाय एवं अतुल मनोवांबित दान दीधंदा ॥ १७ ॥ ए सातमी ढाल ते त्रीजा खंमने विषे अखंम गुणे अने अखंग रागे करी पूर्ण थ. श्रीसिद्धचक्र जगवाननां जो गुणगान करीए तो जलो विनय श्रने रुमो यश तेनुं सुख पामीए. अथवा विनय, जलो यश अने सुख, तेने पामीजे ॥ १७ ॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #234
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥११५॥
॥ दोहा ॥
अंगजट्ट इण प्रवसरे, देखी कुमरचरित्र ॥ कहे सुणो एक मादरुं, वचन विचार पवित्र ॥ १ ॥ कोल्लागपुरनो राजीयो, वे पुरंदर नाम ॥ विजया राणी तेहनी, लवणिम लीलाधाम ॥ २ ॥ सात पुत्र उपर सुता, जयसुंदरी वे तास ॥ रंना लघु उंची गई, जोडी न आवे जास ॥ ३ ॥ लवणिम रूप करी, ते देखी कदे नूप ॥ ए सरिखो वर कुण दशे, कदो स्वरूप ॥ ४ ॥ सो कदे इण जाणतां कला, राधावेध स्वरूप ॥ पूयं ते में वरणव्युं, साधनने अनुरूप ॥ ५ ॥
पाठक
अर्थ - एवावसरने विषे अंगजह नामे ब्राह्मण ते श्रीपाल कुंवरनुं चरित्र जोड्ने कदेवा लाग्यो के हे महाराज ! एक मारुं ( पवित्र के० ) रुमा विचारवायुं वचन सांजलो ॥ १ ॥ कोल्लाग पुर नगरनो पुरंदर नामे राजा बे, तेने विजया नामे राणी बे; ते केवी बे ? तो के (लवणिम के० ) | चतुराइविशेष तेनी लीलानुं ( धाम के० ) घर बे ॥ २ ॥ ते राणीने सात पुत्रो बे, तेनी उपर एक अत्यंत रूपवंत एवी जयसुंदरी नामे पुत्री बे, जेना रूपने देखीने रंजा जे स्वर्गनी देवांगना अप्सरा उर्वशी, तिलोत्तमा ते पण एनुं रूप पोताथी विशेष जाणीने ( लघु के० ) दलकाइपएं पामी उंची देवलोकने विषे जती रही, पण ते कुंवरीनी बराबर रूपवाली या नहीं, माटे (जास के० ) जेनी ( जोमी के० ) बराबरी मां श्रावे तेवी कोइ बीजी स्त्री नथी ॥ ३ ॥ एवी ते कुंवरी ( लवमि रूप के० ) सुंदर चतुराइविशेष ने रूप तेथे करी अलंकृत शोजायमान बे, तेने देखीने पाठकजीने राजाए पूयं के हे पाठकजी ! ए कुंवरीना सरखो एटले जेवी ए कुंवरी बे तेवो एने
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग ३
॥११५॥
Page #235
--------------------------------------------------------------------------
________________
योग्य वर कोण हशे ? तेनुं स्वरूप अमने कहो ॥४॥ ते वारे (सो के०) ते पाठकजी कहेता दवा के हे राजन् ! ए कुंवरीए मारी पासे कला जणतां थका राधावेध नामनी कलानुं खरूप मने | पूज्युं हतुं ते में पण तेना साधनने अनुरूप एटले योग्य रीते वर्णव्यु हतुं ॥५॥
आठ चक्र धन उपरे, फरे दक्षिण ने वाम ॥ अरविवरोपरि पूतली, कानी राधा नाम ॥६॥ तेल कढा प्रतिबिंब जोश, मूके अधोमुख बाण ॥ वेधे राधा वाम अनि, राधावेध सुजाण ॥ ७॥ धनुर्वेदनी ए कला, चार वेदथी उड्ढ॥ उत्तम नर साधी शके, नवि जाणे कोई मूढ ॥ ७ ॥ ते सुणी तुज पुत्री नृपति, करे प्रतिज्ञा एम ॥ वरशुं राधावेध करी,
बीजो वरवा नेम ॥ ए॥ __ अर्थ-ते श्रागल कहे वे के एक थंजनी उपरे आठ चक्र मांडवां, तेमां चार चक्र दक्षिण बाजु सवलां फरे, अने चार चक्र वाम बाजु अवलां फरे, ते श्राप चक्रना आरानां (विवरोपरि पूतली के ) विवर जे बिल , तेनी उपर राधा एवे नामे काष्ठनी पूतली बेसामवी ॥ ६॥ अने ते स्तंजनी नीचे एक तेलनी कढाइ जरी राखवी. ते तेलनी कढाश्मां उपरनी राधा नामे पूत लीनुं प्रति-1
बिंब लदमा लइ जोश्ने अधोमुख एटले पोतानुं मुख नीचुराखीने उंचे बाण नाखे,ते एवी युक्तिथी| सनाखे के उपर रहेली जे राधा नामनी पूतली, तेनी (वाम के०) माबी बाजुनी जे (थवि के०)
श्रांख ने तेने वेधे, एटले तेनो वेध करे, तेने राधावेध कहीए. ए कला को सुजाण पुरुष होय है। ते जाणे ॥ ७॥ ए चार वेद मांदेला धनुर्वेदनी कला बे. ते चारे वेदश्री ( उह के० ) ऊर्ध्व एटले उंची , माटे कोइ उत्तम पुरुष होय ते एने साधी शके, पण कोश ( मूढ के०) मूर्ख एनो नेद|
Sain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #236
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण
जाणे नहीं ॥ ७॥ हे राजन् ! ए वात मारा मुखथी सांजलीने तारी पुत्रीए एवी प्रतिज्ञा करी
के जे राधावेध साधशे तेने हुं वरीश, परंतु बीजा कोश्ने वरीश नहीं, एवो एणे नियम करेलो ॥ खंग.३ ॥११॥
मदोटा मंडप मांमीए, राधावेधनो संच ॥ करीए जिम वर पामीए, पाठक कदे प्रपंच ॥ १०॥ मंडप नृप मंमावीया, राधावेध विचार ॥ पण नवि को साधी शके, पण साधशो कुमार ॥ ११॥ एम निसुणी ते नहने, कुंडल देश कुमार ॥ रयणी निज वासे वसी, चाल्यो प्रात नदार ॥१२॥ पदोतो ते कोल्लागपुर, कुमर दृष्टि सब साखी ॥ साध्यो राधावेध तिहां, दारमहिमगुण दाखी ॥ १३॥ जयसुंदरीए ते वस्यो, करे नूप विवाद ॥
तास दत्त आवासमां, रदे सुजश नबाद ॥१४॥ | अर्थ-माटे मोटा ममप मामीने राधावेधनो संच करीए, जेम कुंवरीनो वर पामीए. ए रीते ते पाठके प्रपंच करो ॥ १० ॥ ते प्रमाणे ते राजाए पण ममप ममाव्या बे, तेमां राधावेधनो विचार जेम पाठके कह्यो तेम कस्यो बे, परंतु ते कला को साधी शकतो नथी, पण हे कुंवरजी ! हुँ जाणुं बुं जे तमे साधशो ॥ ११॥ एवी वार्ता जट्टना मुखथी सांजलीने श्रीपाल कुंवर है तेने कुंमल देतो हवो. पठी रात्रे पोताने ( वासे के० ) घेर ( वसी के० ) रहीने उदार चित्तनो धणी जे श्रीपाल ते प्रजातनो तिहाथी चाख्यो ॥ १५ ॥ ते कोहागपुरे जश् पहोतो, तिहां कुंवरे || सर्व लोकनी नजरे देखतां सर्वनी साखे दृष्टि राखीने हारना महिमानो गुण देखामी राधावेध है|
साध्यो ॥ १३॥ तेने जयसुंदरीए वरमाला पहेरावीने वस्यो, ते वारे राजाए विवाद करीने पुत्री है परणावी. पनी (तास दत्त के०) ते राजाना दीधेला आवासमां सुजश उत्साहपूर्वक रहेतो हवो ॥१४॥
COCRACKGROCRACROMALUCCROCOCCROS
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #237
--------------------------------------------------------------------------
________________
R
SHASABHE555555555500RSE
॥ ढाल आवमी ॥ बन्यो रे कुंवरजीरो सेहरो॥ ए देशी ॥ दवे माउल नृप पेसीया, आव्या नर आणाकाज रे ॥ विनीत ॥ लीलावंत कुंअर नलो ॥ ए आंकणी ॥ कुंअरे पण निज सुंदरी, तेमावी
अधिके हेज रे॥ वि०॥ सी० ॥१॥ सैन्य मल्युं तिहां सामटुं, दय गय रथ नड चतुरंग रे ॥ वि० ॥ तिण संयुत कुंअर ते आवीयो, गणानिध पुर अति चंग रे ॥ वि०॥ली ॥२॥आणंदीयो मानल नरपति, तस सिरि वर सुंदरी देखी रे॥ वि०॥ थापे राज श्रीपालने, करे विधि अनिषेक विशेष रे॥ वि०॥ ली० ॥ ३ ॥ सिंहासन बेगे सोहीए, वर दार किरीट विशाल रे ॥ वि०॥ वर चामर बत्र शिरे धयां, मुखकज
अनुसरत मराल रे ॥ वि०॥ती० ॥४॥ अर्थ-हवे श्रीपालनो माउल जे मामो राजा तेणे गणापुरथी श्रीपालने जोवाने अर्थे (पेसीया के० ) मोकट्या एवा जे विनीत एटले विनयवंत ( नर के० ) मनुष्य ते ( आणाकाज के) राजानी श्राझाने काजे तिहां श्राव्या, अने जला लीलावंत कुंवरने मल्या. ते वारे कुंवरे पण पोतानी परणेली स्त्री जिहां जिहां हती तिहांथी अधिके हेजे करी माणसो मोकलीने तेडावी लीधी, ते पण पोताना बंधु सहित तिहां आवी पहोती ॥१॥ तिहां (हय के) घोमा, है ( गय के०) गज ते हाथी, रथ अने (जम के ) नट ते सुनटो, ए चतुरंग एटले चार अंग-2 वायूँ अर्थात् चार प्रकार, सैन्य सामटुं मट्युं, एटले एकतुं थयुं. ते चतुरंग सैन्ये करी संयुक्त एवो श्रीपाल कुंवर अत्यंत (चंग के) मनोहर गणापुर एवं (अनिध के ) नाम जेनुं एवा 8
For Personal and Private Use Only
Page #238
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरानगरने विष श्राव्य
नगरने विषे श्राव्यो॥२॥ ते वारे ( तस के) ते श्रीपालनी (सिरि के० ) लक्ष्मी अने वली खंग.३
श्रेष्ठ एवी सुंदरी जे स्त्री तेने देखीने (माउल नरपति के० ) मामो राजा जे श्रीपालनो मामो हा ॥११॥
थाय अने ससरो पण थाय, ते आनंद पाम्यो थको विधिए सहित अनिषेक विशेष करीने श्रीपालने राज्यपाटे स्थापतो हवो ॥३॥ तिहां श्रीपाल सिंहासन उपर बेगे थको (वर के०) श्रेष्ठ
एवा हार अने ( किरीट के ) मुकुट तेणे करी ( विशाल के ) घणुं सोहीए एटले शोने . ४वली ( वर के० ) प्रधान चामर अने त्र शिर उपर धस्यां जे. ते चामर सपेत होय ने अने हंस :
पदी पण सपेत होय , माटे कवि उत्प्रेक्षा करे ने के श्रीपालना मुखरूप कमलने बे चामररूप ( मराल के० ) हंस (अनुसरत के० ) श्राश्रयता ॥४॥
सोले सामंते प्रणमीए, दय गय मणि मोतीय नेट रे ॥ वि० ॥ चतुरंगी सेनाए परवस्यो, चाले जननी नमवा नेट रे ॥ वि०॥ ली० ॥ ५॥गाम गमे आवंतडो, प्रणमितो नूपे सुपवित्त रे॥ वि०॥नेटीजंतो बहु नेटणे,
सोपारय नगरे पहुत्त रे ॥ वि० ॥ली० ॥६॥ अर्थ-वली जे बल, शहि अने परिवारे करी पोताथी कांक न्यून होय तेने सामंत राजा कहीए, तेवा सोल सामंत ते जक्तिरागे करी सहित थका जेनी सेवामां तत्पर रहेला बे, माटे 8 सोल सामंते प्रणमी जतो, घणा घोडा, हाथी, मणि, रत्न, माणक अने मोतीउनां नेटणां लश्ने है पड़ी चतुरंगी सेनाए परवस्यो थको ( नेट के०) निश्चयेथी पोतानी जननी जे माता तेने नमवाने 2 माटे गणापुर नगरथी चाल्यो ॥५॥ ते श्रीपाल ग्राम स्थानके थावतो, पवित्र राजाए प्रण मितो, ॥१७॥ (बहु के०) घणा प्रकारनां नेटणांए नेटी जंतो एटले नेटणांनी नेटो सेतो थको मार्गने उलंघन करतो अनुक्रमे सोपारक नामे नगरे आवी पहोतो ॥६॥
an Education International
For Personal and Private Use Only
Page #239
--------------------------------------------------------------------------
________________
*
-*-*-
*
ते परिसर सैन्ये परवस्यो, आवासे ते श्रीपाल रे ॥ वि०॥ कहे जगति शकति नवि दाखवे, शुं सोपारक नरपाल रे ॥ वि०॥ ली० ॥ ७॥ कहे परधान नवि एहनो, अपराध अने गुणवंत रे ॥ वि० ॥ नामे महसेन ने ए जलो, तारा राणी मनकंत रे॥ वि०॥ ली ॥ ७ ॥ पुत्री तस कुखे नपनी, के तिलकसुंदरी नाम रे ॥ वि०॥ ते तो त्रिभुवनतिलक समी बनी, हरे तिलोत्तमानुं धाम रे॥ वि०॥ ती॥ एते तो सृष्टि ने चतुर मदन तणी, अंगे जीत्यां सवि उपमान रे॥वि० ॥ श्रुतिजड जे ब्रह्मा
तेदनी, रचना ले सकल समान रे॥वि०॥ली० ॥१०॥ अर्थ-ते श्रीपाल ( सैन्ये के०) सैन्यना परिवारे परवस्यो थको सोपारक नगरना परिसर एटले । समीपे श्रावीने (आवासे के०) तंबुमां श्रावी उतारो कीधो. ते वार पड़ी श्रीपाल कहेवा लाग्यो । के श्रा सोपारक नगरनो राजा कांश नक्ति एटले नेटणुं लश्ने आवीने नमस्कार करे तेने नक्ति कहीए अने शक्ति एटले शस्त्र लश् सामो आवीने युक करे तेने शक्ति कहीए. ए बे वातो, मांदेली कोइ पण वात देखामतो नथी, तेनुं कारण शुं ? ॥ ७ ॥ एवं श्रीपालनुं बोलतुं सांज-15 लीने प्रधान कहेवा लाग्यो के हे गुणवंतजी ! ए राजानो कांश पण अपराध नथी, ए महसेन 3 नामे नलो राजा , ते तारा राणीनो ( मनकंत के०) मननो वन , एटले तारा राणीनो । नर्त्तार ॥ ७॥ ( तस के० ) ते राणीनी कुखे एक पुत्री उत्पन्न थ बे, तेनुं तिलकसुंदरी एवं । नाम . परंतु ते कुंवरी तो त्रण नुवनने विषे एक तिलक समान बनी बे. ए रीते नाम प्रमाणे तेमां गुण पण बे, अने वली रूपे करी तो तिलोत्तमा जे इंजनी अप्सरा, उर्वशी, रंजा, तेनुं (धाम के० ) तेज तेने (हरे के० ) हरे एवी बे, अथवा तेनुं ( धाम के० ) स्थानक तेने हरे
-*-*-
*
-*-
*
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #240
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥११॥
एवी रूपवंत बे ॥ ए ॥ हवे ते तिलकसुंदरीनुं रूप अति अद्भुत बे, ते माटे कवीश्वर एवी संजावना करे बे के ते तिलकसुंदरी तो चतुर जे माह्यो अत्यंत निपुण एवो ( मदन के० ) कंदर्प एटले कामदेव तेनी सृष्टि बे, एटले कामदेवनी घडेली बे, ते शा उपरथी जाणवामां श्राव्यं ? एवी कोइ आशंका करे तो त्यां तेने उत्तर कड़े बे के जगतमां चंद्रपद्मादिक एटले चंद्र सरखं वदन बे, कमलनी पांखमी सरखां नेत्र बे, एवी रीते अंग अंगनी उपमा श्रापीने घणी स्त्री यादिकना रूपनुं वर्णन कराय बे, परंतु ते तो सर्व कलंकादि डूषणे करी डूषित बे, माटे ए कुंवरीने ( अंगे [ के० ) शरीरे तो ते सर्व उपमानने डूषवीने जीती लीधां बे, तेथी ए कुंबरीनी जोमी जेवी जग| तमां बीजी कोइ स्त्री नथी, माटे जाणीए ठीए जे ए कुंबरीनुं रूप ते चतुर मदनकृतज बे. वली कोइ शंका करे के मदनने रचनाचतुर शा वास्ते कहो हो ? तेनो उत्तर कहे बे के सर्वथी सूक्ष्म परमाणु बे, ते परमाणुरूप मन जावं. ते मन मांहे प्रवेश करीने विकार उत्पन्न करी सर्व ईश्व रादिक देवोनां चित्तने पण हरण करी लीए बे एवो ए कंदर्प बे. ते माटे एने अत्यंत निपुण कह्यो, तेनी करेली ए सुंदरीरूप सृष्टि बे, परंतु श्रुति जे वेदनो ध्वनि वेदान्यास तेनो निरंतर निर्घोष करवो तेणे करी जमरूप थयेलो कारण के लोकोक्तिए पण अत्यंत केवल वेदपाठी जे होय तेने ढोरप्राय कहे बे, एटले "वेदी ढोर " कहेवाय बे, ते माटे वेदपाठ जणीने जगरूप थयेलो. एवो जे ब्रह्मा तेनी रचेली ए न कही. यद्यपि कोइ कदेशे के सकल जगत्सृष्टिनो अधिकार तो ब्रह्माने बे, तो ए सुंदरीरूप सृष्टि ब्रह्माकृत केम न कही ? तेनो हेतु कहे बे. जे जणी (तेहनी ho) ते श्रुतिमां जम थयेलो जे ब्रह्मा तेनी रचना, ते तो (सकल के०) सघली सर्व जगतमां सर्व स्थले ( समान के० ) माने करी सहित एटले प्रमाणे सहित बे, अर्थात् एक एकनी जोम मली वे बे, माटे उपमाए सहित कहेली छे, कारण के ( उपमानेन सहितं सोपमानं ) एटले उपमाने करी जे सहित होय ते सोपमान कहीए. ( इयं तु निरुपमाना, निर्गतं उपमानं यस्याः सा
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only)
म. ३
॥११॥
Page #241
--------------------------------------------------------------------------
________________
निरुपमाना तेन मदनकृतसृष्टियिते ) एटले श्रा तिलकसुंदरी तो गयुं ने उपमान जेना थकी एवी , ते माटेज श्रा तिलकसुंदरी कंदर्पसृष्टि , एटले उपमासहित होत तो एने पण ब्रह्माकृत कहेत, परंतु आ कुंवरीनुं रूप तो उपमा रहित अति अनुत डे, माटे एने मदनकृत कही. एतावता ए कन्या घणीज रूपवंत ॥ १० ॥
दीहपीठे दंसी सा सुता, कीधा बहुविध उपचार रे ॥ वि० ॥ मणि मंत्र
औषध बहु आणीयां, पण न थयो गुण ते लगार रे ॥ वि० ॥ ली। ॥ १२ ॥ते माटे छःखे पीडीयो, महसेन नृपति तस तात रे ॥ वि०॥ नवि आव्यो इहां ए कारणे, मत गणजो बीजो घात रे ॥ वि० ॥ ली। ॥१२॥राजा कहे किहां ने दाखवो, ते कीजे तस नपगार रे ॥ वि० ॥ एम कदी तुरगारूढे तिणे, दीगं जातां बहु नर नार रे॥ वि० ॥ ली। ॥ १३ ॥ समशाने ले जाती जाणी, तिहाँ पहोतो ते नरनाद रे॥वि०॥ कहे दाखो मुज हूं सज करूं, मूर्वितने म दीयो दाद रे॥वि०॥ली॥१४॥ अर्थ-ते कुंवरीने हमणां दीर्घपृष्ट जे सर्प तेणे मसेली बे, तेना घणा प्रकारना उपचार एटले उपाय कस्या, मणि तथा विसहर फुलिंग इत्यादि मंत्र तेमज औषध पण घणां प्राण्यां, तोपण लगार मात्र पण गुण थयो नहीं ॥ ११॥ ते माटे दुःखे पीड्यो थको ते कुंवरीनो पिता जे महसेन 8 |नामे राजा ते ए कारण माटे शहां तमारी पासे श्रावी शक्यो नथी, परंतु बीजो कोइ पण घात
तमे गणशो नहीं ॥ १२ ॥ एवं प्रधाननुं बोल सांजलीने श्रीपाल राजा कहे जे के ते कुंवरी| |किहां वे ? मने देखाडो तो तेनो उपकार करीए. एम कहीने सेवकने मोकली अश्व मगावी (तुरगारूढे के) घोमा उपर खार थयो ते वारे तेणे नगरनी बहार घणा पुरुषोना तथा
Jain Education
International
For Personal and Private Use Only
Page #242
--------------------------------------------------------------------------
________________
A%AA
श्रीराम स्त्रीउना समूहने जतां दीग ॥ १३ ॥ पढी राजा, प्रधान तथा नगरलोकनां वृंद मलीने कुंव-18 खंभ.
रीने स्मशाने लइ जती सेवकना मुखथी जाणीने ते (नरनाह के०) नरनो नाथ श्रीपाल राजा। ॥११॥
तिहां पहोतो, अने कहेतो हवो के कुंवरी मुजने देखामो तो हूं तेने साजी करूं, परंतु मूर्वा पामेली ने तेने दाद देशो नहीं ॥ १४ ॥
मदियत मूकी ते थानिके, करी हार नमण अनिषेक रे॥ वि०॥ सज करी सवि लोकनां चित्तशु, थइ बेठी धरीय विवेक रे ॥ वि०॥ ली० ॥ १५॥ महसेन मुदित कहे राजीयो, वत्स तुजने ए शुं होत रे॥वि०॥
जो नावत ए वडन्नागीयो, न करत उपगार उद्योत रे॥वि०॥ली० ॥१६॥ अर्थ-तेणे श्रीपाल राजाना कह्याथी कुंवरीनी महियतने तेज स्थानके पृथ्वीए मूकी, ते । वारे श्रीपाले हारना न्हवणनो अनिषेक करीने ते कुंवरीने सज करी एटले साजी करी, ते वारे तत्काल ते कुंवरी सर्व लोकनां चित्तनी साथे आलस मोमी विवेक धरी बेठी थ. श्हां नावार्थ || ए जे जे कुंवरी मरण पामवाथी राजा श्रादे दश्ने नगरवासी प्रमुख सर्व लोकनां चित्त चिंतातुर । थइने पडी गयां हतां, ते श्रीपाले श्रावीने जे वारे कुंवरीने जीवती करी ते वारे सर्व लोकना
चित्त जे उदास थश्ने पमी गयां हतां ते उठ्यां एटले सर्व लोकनां चित्त आनंदमय थयां, विक-२ ४खर थयां. तेथी ते सर्व लोकनां पमी गयेलां चित्त पण बेग थयां, माटे ए कुंवरी सर्व लोकनां
चित्तनी साथे विवेक धरीने बेठी थइ एम कडं ॥ १५ ॥ ते वारे महसेन नामे राजा ते ( मुदित है के) हर्षवंत थयो थको पोतानी पुत्रीने कहे जे के हे वत्स ! तुजने हमणां श्रा ठेकाणे शुंथात !!
जो था मोटा जाग्यनो धणी श्रीपाल इहां नहीं श्रावत अने तारा उपर उपकाररूप उद्योत नहीं है। करत तो अमे तुजने मरण पामेली समजीने अग्निसंस्कार करत ! ॥ १६ ॥
446031--
ARANA
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #243
--------------------------------------------------------------------------
________________
तुज प्राण दीया ने एदने, तुं प्राण अधिक मुज रे॥ वि० ॥ एहने तुं देवी मुज घटे, ए जाणे हृदयनुं गुफ रे ॥ वि०॥ ली ॥१७॥ स्निग्ध मुग्ध हग देखतां, इम कदेतां ते श्रीपाल रे ॥ वि० ॥ मन चिंते महारा
प्रेमनी, गति एदशं ने असराल रे॥ वि० ॥ ली। ॥१७॥ अर्थ-माटे हे पुत्री ! हमणां तारा प्राण जता हता ते ए श्रीपाल राजाए पाग दीधाडे, श्रने
तो तुं मारा प्राणथी पण अधिक वहाली बो, अने ए श्रीपाले तुजने मरणना नयथी बचावी राखी, माटे जयात्रायते इति जर्ता, माटे मारे तुं ए श्रीपाल राजाने देवी घटे , ए मारा हृद-18 है यर्नु (गुऊ के० ) विचार चिंतवन ३ ते तुं जाणजे, तेथी तारे पण एनेज वरवो ॥ १७ ॥ मह
सेन राजाए पोतानी पुत्रीने एवी रीते कहेतां थका ( ते के० ) ते कुंवरी ( स्निग्ध के० ) स्नेहाली सरस, रागवंत अने ( मुग्ध के) नाक जोली एवी (हग के ) दृष्टिए करी (श्रीपाल के०) श्रीपाल प्रत्ये ( देखतां के० ) देखती थकी मनमां चिंतववा लागी के मारा प्रेमनी गति ( एहशुं के०)ए श्रीपालनी साथे ( असराल के ) अकल , अनिनव ने, अवाच्य एटले मुखथी कही जाय नहीं एवी ने, इहां मुग्ध पदे करी वक्र कटाक्षादि क्रियावैदग्ध्यसहितपणानो अनुदय सूचव्यो, एटले कामक्रीमा प्रमुख विषयरसमां आसक्त हजी थक्ष नथी. हमणां नवयौवननो उजम ने, अने
पावस्था विरमी यौवनावस्थानी प्राप्तिनो अवसर जे, एने वयःसंधि कहीए, माटे अविलसित-15 यौवना . जो संपूर्ण विलसितयौवना होय तो ते वक्र कटादादिक क्रियामां विदग्ध होय,६ है तेथी तेना नेत्रविलसितनुं ज्ञान प्रगट न थाय, अने आ तो हजी मुग्धा दे, तेथी एना नेत्रविलासना ज्ञाननो उदय राजाने थयो बे. एवी ते कुंवरीए मुग्ध नमक दृष्टिए एटले रागजरे । अनिमेष लोचने श्रीपालने जोयो, ते जोतांज पूर्वजव राग संबंधथी को वचने कह्यामां न आवे
ROCROCALCCCCRAICROCRACANCERSONAGARICAN
in S
antana
For Personal and Private Use Only
www.n
aryong
Page #244
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥१२०॥
एवो यनिर्वचनीय परम प्रेमोजम थयो, तेने अनुभवीने कुंवरी मनमां चिंतववा लागी के मारे ए श्रीपालनी साथे प्रेमना संबंधनी कोइ असराल एटले अकल गति देखाय बे. ते विचार आागल कहे बे ॥ १८ ॥
जो प्राण कहुं तो तेहथी, अधिको किम लखीए प्रेम रे ॥ वि० ॥ कहुं जिन्न तो अनुभव किम मिले, प्रविरुद्ध उजय गति केम रे ॥वि० ॥ खी० ॥ १९ ॥
- दवे पूर्वेकहेली वातनेज दृढावे बे. चित्तनी श्रासक्तिविशेष तेने प्रेम कहे बे. हां कुंवरी विचारे बे के जो ए पुरुषने हुं मारा प्राण कहुं तो ते पण ठीक लागतुं नथी, शा माटे ? जे प्राणथी पण अधिको एनी उपर प्रेम उपजे बे, माटे प्राण कहुं तो तेथी प्रेम अधिको केम ( लखीए के० ) जाणीए ? केमके प्राण होय तोज प्रेम बने बे, पण प्राण विना प्रेम बनतो नथी, ए लेखे प्राणथी प्रेम अधिको न होय, त्यारे तो प्राण ने प्रेम बेहु तुल्य याय, अने जगतमां तो प्राणथी प्रेम अधिक देखाय बे, केमके घणा जनो तो प्रेमने अर्थे प्राण गुमावे बे, परंतु सजन पुरुषो प्राणने श्रर्थे प्रेम निर्गमता नथी ॥ यतः ॥ धन देइ जीव रखीए, जीव देइ रखीए | लाज ॥ प्राण लाज दोय दीजीए, एक प्रेमके काज ॥ १ ॥ एवी रीते तो प्राणने प्रेमरूप कहेतां बनतुं नथी. ए अपेक्षाए तो प्राणथी प्रेम अधिक थयो देखाय बे, अने जाणवामां पण प्रापथी प्रेम अधिक आवे बे. एम विचारतां तो प्राण ने प्रेम बेहु जिन्न थाय बे, घने ए रीते जो प्राण अने प्रेम ए बेहुने जिन्न कहुं तो अनुभव केम मले ? एटले बेहुने निन्न कहुं तो अनुभव मलतो नथी, कारण के प्राण विना प्रेमने जाणनारो कोण होय ? प्रेमने जाणनारा तो प्राणज बे, तेश्री जे वस्तु जेथी जिन्न होय तेनोज अनुभव थाय बे, पण जिन्न वस्तुनो अनुभव न थाय. जो
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa International
खंग. ३
॥१२०॥
Page #245
--------------------------------------------------------------------------
________________
जिन्न वस्तुनो अनुजव मानीए तो अतिप्रसंग थाय , अने प्रेमनो अनुजव तो मुजने थायज बे. एम परस्पर विरोधी जिन्नाजिन्न स्वरूप जे. ते ए प्रेम पदार्थने विषे एकत्र समावेशपणे अविरोध-18 नावे केम रह्यो ? अत एव एटलाज कारण माटे जाणुं हुं जे मारा प्रेमनी गति ए श्रीपालनी साथे कोइ (असराल के०) कोइए कली जाय नहीं एवी अकल बे, अलौकिक . इति नावार्थः ॥१५॥
इम स्नेहल सा निज अंगजा, श्रीपाल करे दीए नूप रे ॥ वि०॥ परणी सा आवे तस मली, दयिता अति अद्भुत रूप रे॥ वि०॥ली ॥२०॥ अड दिहि सदित पण विरतिने, जिम वं समकितवंत रे ॥ वि०॥ अड
प्रवचनमात सहित मुनि, समताने जिम गुणवंत रे॥वि०॥ली॥२१॥ अर्थ-एम ए प्रकारे स्नेहल ते स्नेहरसे सहित एटले स्नेहे करी उखास पामती प्रेमसुधा सिंधु निमग्न एटले प्रेमरूप अमृत तप समुडमां निमग्न थयेली एवी ( सा के०) ते पोतानी पुत्री जे तिलकसुंदरी तेने महसेन राजाए श्रीपालने हाथे दीधी. ( सा के०) ते कन्या श्रीपाले परणी एटले पाणिग्रहण कगुं, ते वारे ( तस के०) तेना मलवाथी ( अति अनुत रूप के ) अत्यंत अद्भुत रूपने धरनारी एवी श्राउ स्त्री थ. तेनां नाम कहे . १ मदनसेना, २ मदन-12 मंजूषा, ३ मदनमंजरी, ४ गुणसुंदरी, ५ त्रैलोक्यसुंदरी, ६ शृंगारसुंदरी, ७ जयसुंदरी, तिलक-15 सुंदरी, ए आउनां नाम जाणवां, तथा शृंगारसुंदरीनी पंमिता प्रमुख पांच सखीउँनुं पाणिग्रहण कस्युं ते पण पांच स्त्रीज , परंतु श्हां ते शृंगारसुंदरीनी अंतर्गत आवी, ते माटे एकज शृंगार-1 सुंदरी गणीने थाठ स्त्री श्रीपालनी साथे , तथा प्रथमनी परणेली मयणा सुंदरी ते उजायणीमा बे, माटे ते सहित सर्व नव स्त्री जाणवी ॥ २०॥ हवे शहां श्रीपाल यद्यपि आठ स्त्री सहित ने तथापि नवमी मयणासुंदरीने मलवा माटे उत्कंठित थयो थको तिहाथी पागल प्रयाण करवाने
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
mt.jainelibrary.org
Page #246
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥१२१॥
बांबे बे. तिहां कवि उपमा कहे बे के जेम मित्रा, तारा, बला, दीप्ता, स्थिरा, कांता, प्रजा, परा, ए आठ दृष्टि सहित जे सम्यग्दृष्टि जीव ते ते पण जेम नवमी विरतिने वांबे बे, तथा वली पांच समिति ने त्रण गुप्ति ए आठ प्रवचनमाता सहित गुणवंत मुनीश्वर होय ते जेम नवमी समताने वांठे बे, तेम श्रीपाल राजा जो पण श्राव स्त्री सहित बे तोपण नवमी मयणाने मलवा चाहे बे. यहीं कोई पूढे के घाव दृष्टि सहित जे होय ते विरतिपणाने इछे एम कयुं, तो शुं आठ दृष्टिवंत पुरुष जे बे ते विरतिपणाथी रहित बे के वली विरतिपणानी वांछा करे बे ? एना उत्तरमां कोइक एम कड़े बे के जावविर तिने इछे बे, एवं कहे बे ते यत्किंचित् जाणवुं, केमके दृष्टिवंतने जे विरतिपणुं होय ते जावथीज होय बे. तथा वली कोशक एम पण कहें बे के आठ दृष्टि सहित अविरति सम्यग्दृष्टि पण होय, ते माटे ते विरतिपणाने इछे छे. ते पण उत्तरनो थानासज जाणवो. जे जणी श्रीहरिजप्रसूरिकृत योगदृष्टिसमुच्चय ग्रंथने मते तो बडी दृष्टि सुधी अविरति संवे बे अने उपरनी वे दृष्टिवालो तो विरतिवंतज होय, ते माटे इहां एवो उत्तर करवो के जे एक दृष्टि पाम्यो ते अवश्य खावे दृष्टिने संजवे, निश्चेथी पामे, ते जणी एकतर दृष्टि आगामिक नये तो नूतवत् उपचार करीने एक दृष्टिवंतने आठ दृष्टि सहित कही बोलाव्यो, एटले चतुर्थादि दृष्टिवंत ते विरतिने इछे बे ते अभिप्राय बे, परंतु सातमी आवमी दृष्टिवालो विरतिनो इछक नथी. अथवा कदापि विरति ते या ठेकाणे सर्व संवरविरतिपणुं लहीए, ते चौदमे गुणठाणे होय बे, अने आव दृष्टि तो तेथी पहेलीज पामे बे, ते माटे श्राव दृष्टिवंत मुनीश्वर ते सर्व संवररूप विरतिने इछे बे, एम कहे. इति सर्वं सुस्थम् ॥ २१ ॥
Jain Educationa International
बुद्धिसहित पण सिद्धिने, प्रड सिद्धि सहित पण मुक्ति रे ॥वि० ॥ प्रिया सहित पण प्रथमने, नित ध्यावे ते इ युक्ति रे ॥वि० ॥ बी० ॥ २२ ॥
For Personal and Private Use Only
खंग. ३
॥१२२॥
Page #247
--------------------------------------------------------------------------
________________
| अर्थ-तथा शुश्रूषा, श्रवण, ग्रहण, धारणा, ऊह, अपोह, अर्थविज्ञान अने तत्त्वज्ञान, ए|
आठ बुद्धि तेणे करी सहित एवो योगीश्वर ते जेम नवमी लिहिने श्छे , तथा अणिमा, म. हिमा, गरिमा, लघिमा, वशिता, इशिता, प्राकाम्य, कामावसायित्व, ए पाठ सिकिल , तेणे
करी सहित जे योगीश्वर होय , ते जेम नवमी मुक्ति जे परमपद मोक्षपद तेने छे , 81( ण युक्ति के०) ए युक्तिए करीने श्रीपाल कुंवर पण परिणीत श्राप प्रिया एटले आठ स्त्रीए करी सहित थको पण प्रथम परिणीत मयणासुंदरीने मलवा माटे नित्य प्रत्ये (ध्यावे के ) ध्याय ने, श्वे ॥२॥
उत्कंठित चित्त तेहशु, वली जननीने नमवा देज रे॥ वि० ॥ श्रीपाल प्रयाणे पूरीयुं, देवरावे ढका तेज रे॥ वि०॥ली ॥२३॥ दय गय रद नममणि कंचणे, वली सत्र वन बहुमूल रे॥वि०॥ पग पग नेटीजे नृपवरे, तेदन चक्रवर्ती सम सूल रे॥ वि० ॥ ली० ॥२४॥ अर्थ-एम एक तो ते मयणासुंदरीने मलवा माटे उत्कंठित चित्तवालो थयो बे, अने वली पोतानी माताने नमवानुं हेज बे, ते माटे श्रीपाले सतेज थके प्रयाणने पूरीयुं, एटले प्रयाणनी तैयारी करीने ( ढक्का के०) जयना डंका देवरावतो हवो ॥ २३॥ हवे श्रीपाल तिहाथी चाल्यो. त्यारपती ( हय के० ) घोमा, ( गय के० ) हाथी, (रह के०) रथ अने (जम के०) सुजट तथा मणिरत्न, कंचन एटले सुवर्ण तेमज वली (बहुमूल के० ) बहु मूल्यवाला एवां ( सत्र के०) शस्त्र अने ( वन के० ) वस्त्र, एवी वस्तुऊनां नेटणांए करी पगले पगले ( नृपवरे के० ) श्रेष्ठ राजाए। लेटी जतो थको एटले पगले पगले राजाने नमावतो थको तेमनी पासेथी पूर्वोक्त वस्तुनां
E
asonal
For Personal and Private Use Only
Page #248
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥१२॥
श्री रानेटणां खेतो थको एवो जे श्रीपाल तेनुं चक्रवर्ती राजानी समान (सूत्र के० ) प्रवर्त्तन थथुखम. ३
अथवा चक्रवर्ती समान सूल एटले पराक्रम थयुं ॥ २४॥
तस सैन्यनरे नारित मही, अहिपतिफणमणिगणप्रोत रे ॥ वि०॥ तेणे गिरि पण जाणुं नवि गिरिया, शशी सूर नयण विधि जोत रे
॥वि० ॥ ली० ॥ २५॥ । अर्थ-हवे कवि उत्प्रेदा करे ने के जेम अणीयाली वस्तुना उपर नार श्राववाथी तेनी उपर रहेली वस्तु परोवाइ जाय , यथा "कंटकेन पादः" जेम कांटो हलवो बे, अने पग नारे बे, तोपण कांटानी तीक्ष्णताए करी ते पग कांटा मांहे परोवार जाय , तेम ( तस के० ) ते श्रीपालना (सैन्यजरे के) सैन्यना नारे करी नारित थर थकी दवाणी एवी जे ( मही के०) पृथ्वी ते अहिपति जे शेषनाग, तेनी फण उपरनां जे मणिना (गण के०) समूह, समुदाय तेणे करी (प्रोत के०) परोवाणी, एटले परोवाइ गइ, ( तेणे 21
के) तेथी जाणीए जे ( गिरि के० ) पर्वत ते नवि गिरिया एटले पड्या नहीं! परंतु जो| पाए पृथ्वी शेषनागनी फणनां मणिमां परोवाणी न होत तो सैन्यना नारे करी एक दिशाए पृथ्वी नमी जात, ते वारे सम नमिए रहेला पर्वतादिक पण ढली पमत, माटे ए कविए उत्प्रेदा कीधी के सैन्यने नारे पृथ्वी एक दिशाए नमी नहीं, तेथी शेषनागनी फणनां मणिनए । परोवाणी देखाय . ए मोटें आश्चर्य सांजलीने ते समये सूर्य अने चं जे रात्रि दिवस श्रीपालना सैन्यने जुवे , ते जाणीए सूर्य चंड नथी ! परंतु विधि जे ब्रह्मा तेज शशी सूर एटले चंब सूर्य ॥१२॥ तप नयण जे नेत्र तेने विकासीने (जोत के०) जुवे बे, अने मनमां चिंतवे बे के नखं थयु जे पृथ्वी शेषनागनी फणनां मणिनए परोवाइ गर, नहीं तो आ श्रीपालना मोटा सैन्यना जारे
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #249
--------------------------------------------------------------------------
________________
SCSCSCROCHANCHECCASSCOMMOCRANCCCCC
जो ए पृथ्वी नमी जात तो तेथी मारी करेली पृथ्वीनी विषमता यजात. एम चकित थयो थको श्रीपालना सैन्यने अद्यापि सुधी चंद्र सूर्यरूप चकुए करी ब्रह्मा जोयाज करे ने ॥ २५ ॥
महरह सोरठ मेवाडना, वली लाट नोटना नूप रे ॥ वि०॥ ते आव्यो सघला साधतो, मालव देशे रविरूप रे॥ वि० ॥ ली ॥२६॥ आगमन सुणी परचक्रनु, चरमुखथी मालव राय रे ॥ वि० ॥ नयनीत ते गढने सज करे, तेहy नवि तेज खमाय रे ॥ वि० ॥ ली० ॥२॥ कप्पम चुप्पम तृण कण घणां, संग्रहे ते इंधण नीर रे ॥ वि० ॥ सन्न- होय ते
सुन्नट वमा, कायर कंपे नहीं धीर रे॥ वि० ॥सी० ॥२॥ अर्थ-ते श्रीपाल कुंवर महर5 देश, सोरह देश, मेवाम देश, वली लाट देश अने नोट देशना राजा ते सघलाउने साधतो थको मालव देशने विषे रविरूप एटले सूर्य समान तेजे करी देदीप्यमान एवो श्राव्यो, जेम सूर्य निषध पर्वतथी उदय थयो थको हरिवास, हिमवंत, नरतादिक क्षेत्र अने गिरिने उद्योत करतो संध्याए पागे फरी निषध पर्वते पहोंचे तेम श्रीपाल कुंवर पण मालव देशथी नीकल्यो हतो ते राजशकि, रमणी, धन, चतुरंगिणी सेनाना परिवार युक्त सर्व देशोने साधतो थको पाठो मालव देशे आव्यो. इति रहस्यम् ॥६॥ ते 31 समये मालव देशनो राजा चर एटले पूतना मुखथी परचक्र एटले परराजाना सैन्यनुं आगमन है सांजलीने नयनीत थयो थको पोताना गढने समारवा लाग्यो, कारण के तेनाथी तेनुं तेज खमी शकातुं नथी ॥ २७ ॥ वली ते मालव देशनो राजा कप्पम एटले वस्त्रादिक अने चुप्पम एटले घृत, तैलादिक, तृण एटले घास, कण एटले धान्य, इंधण एटले लाकडां अने नीर एटले पाणी, ए|
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #250
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥१२३॥
सर्वने घणां संग्रहे, तेमज मोटा सुनट जे दता ते सन्नद्ध थाय बे, घने जे कायर प्राणी बे ते कंपवा लाग्या, पण धैर्यवंत कंपता नथी ॥ २८ ॥
इम उणी हुइ नगरने, लोके संकीर्ण समीप रे ॥ वि० ॥ वींटी श्रीपाल
न तदा, जिम जलधि अंतरीप रे ॥ वि० ॥ ली० ॥ २९ ॥ मेरा दीधा सवि सैम्यना, पहेलो हुई रजनीजाम रे ॥ वि० ॥ जननी घर पदोता प्रेमशुं नृप दारप्रभावे ताम रे ॥ वि० ॥ ली० ॥ ३० ॥ ढाल पूरी थामी, पूरण हुई त्रीजो खंड रे ॥ वि० ॥ दोय नव पद विधि
रातां, जिन विनये सुजश अखंग रे ॥ वि० ॥ ली० ॥ ३१ ॥
अर्थ - एम उयणी नगरीमां सर्व आखा मालवा देशनी पासेनां गाममांनां लोक यावी पेठां, तेणे करी संकीर्ण एटले सांकमी य, खीचोखीच नराणी, तेने ( तदा के० ) ते समये समीप एटले दुकमा श्रीपालना सुनटे श्रावीने वींटी लीधी, तेथी ते केवी शोजवा लागी ? के जेम ( जलधि अंतरद्वीप के० ) समुद्रनी वचमां द्वीप होय तेम दीसवा लागी, एटले जेम समुडना अंतरद्वीपनी चारे बाजुए पाणी वींट्युं होय तेम उझेपी ने चारे बाजुए श्रीपालना सैन्ये वींटेली | जाणवी ॥ २७ ॥ तिहां श्रीपाल राजाए डेरा तंबु दीधा, तेमां सर्व सैन्य उतस्युं पढी जे वारे ( रजनी के० ) रात्रिनो पहेलो ( जाम के० ) पहोर थयो, एटले प्रथम प्रहर रात्रि गइ ते वारे ( नृप के० ) श्रीपाल राजा हारने प्रजावे करीने प्रेम सहित जननी जे माता तेने घेर पहोतो ॥ ३० ॥ ए आठमी ढाल संपूर्ण थइ, अने त्रीजो खंग पण संपूर्ण थयो. ए नव पदने विधिपूर्वक धाराधतां थका जिनराजनी जक्ति करतां थका विनयवंत याय, तथा ते प्राणीनो अखं सुयश थाय ॥ ३१ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग. ३
॥ १२३ ॥
Page #251
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥ चोपाई ॥
खंड खं मीठा घणी, श्री श्रीपालचरित्रे जणी ॥ ए वाणी सुरतरुवेलडी, किसी जाख ने किसी सेलडी ॥ १ ॥
अर्थ - खं खंगने विषे घणी मीठाश ते श्री श्रीपाल राजाना चरित्रे जणी, एटले वर्णवी बे. ए श्री जिनेश्वरनी वाणी ते कल्पवृनी वेल समान मनोवांबित पूर्ण करनारी बे. ए वाणीनी बागल झाखनी मीठाश तथा शेलडीनी मीठीश ते शी गणती मां बे ? ॥ १ ॥
Jain Educationa International
॥ इति श्रीमन्महोपाध्याय श्री विनय विजयगण्युपत्रांते महोपाध्याय श्रीयशोविजयगषिपूरिते सिद्धचक्रमहिमा धिकारे श्री श्रीपालचरित्रे प्राकृतप्रबंधे विमलेश्वरदेवेनार्पित हारप्राप्तिमनोजीष्टदायक षट्कन्यापाणिग्रहण सर्वसैन्यसहितो यिनी नगरी प्राप्तिप्रभृतिकथने तृतीयः खंगः समाप्तः ॥ ३ ॥
॥ इति श्री श्री पालचरित्रे तृतीयखंडस्य बालावबोधः समाप्तः ॥ ३ ॥
-504
For Personal and Private Use Only
Page #252
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण ॥ श्री समुरुन्यो नमः॥
खंम.४ ॥ अथ चतुर्थः खंडः प्रारच्यते ॥ ॥१५॥
॥दोहा॥ त्रीजो खंम अखंम रस, पूरण हु प्रमाण ॥ चोथो खंड हवे वर्ण, श्रोता सुणो सुजाण ॥१॥शीस धुणावे चमकीयो, रोमांचित करे देह ॥ विकसित नयनवदन मुदा, रस दीए श्रोता तेह॥॥ जाणज श्रोता आगले, वक्ता कला प्रमाण ॥ ते आगे घन शुं करे, जे मगसेल पाषाण ॥ ३ ॥ दर्पण आंधा आगले, बदिरा आगल गीत ॥ मूरख आगे रसकथा,
त्रणे एकज रीत ॥४॥ अर्थ-श्रीपालना रासनो त्रीजो खंग ते अखंग रसे करीने रुडी रीत प्रमाणे पूर्ण थयो. हवे चोथो खंड वर्णQ , ते हे सुजाण ! एटले चतुर श्रोताजनो ! तमे सांजलो ॥१॥ हवे सुजाण, श्रोतानां लक्षणो कहे . जे अर्थ सांजलतो थको चमत्कार पामी श्रवणरसथी मस्तक धुणावे, श्रने जेना शरीरनी रोमराजि उदास पामे एटले रोम उनां थाय, तथा नयन जे चकु अने| वदन विकस्वर थाय, ते श्रोता हर्षे करी रस थापे, अथवा नेत्र विकस्वर थाय अने वदन जे मुख ते हसे, एवो श्रोता होय ते वक्ताने रस आपे ॥२॥ एवो जाण श्रोता होय, तेनी पागल वक्ता जे वांचनार, तेनी कला प्रमाण थाय, परंतु मगसेलीया पाषाणनी आगल घन जे वरसाद ते शुं|
॥१४॥ ४ करे ? तेम जे श्रोता कठण हृदयवालो होय ते पलले नहीं तो ते आगल वक्ता शुं करे ? ॥३॥
जेम आंधला आगल दर्पण जे श्रारीसो ते धस्यो थको मिथ्या, जेम बहेरा आगल गीतगान करवां ते व्यर्थ थाय, तेम मूर्ख जननी पासे सारी सारी श्रृंगारादि रसनी कथा करवी ते व्यर्थ जे. ए
-
-
6
Sin Education n
ational
For Personal and Private Use Only
Page #253
--------------------------------------------------------------------------
________________
त्रणेनी एकज रीत , माटे तेनी उपर दृष्टांतनो एक दोहो कहे बे॥ यतः॥मूरखने प्रतिबोधता, मति पोतानी जाय ॥ टपलो सराणे चढावतां, आरीसो नवि थाय ॥ ४॥
ते माटे सज थइ सुणो, श्रोता दीजे कान ॥ बुळे तेदने रीझवू, लद न
जूले ग्यान ॥ ५॥ आगे आगे रस घणो, कथा सुणतां थाय ॥ दवे | श्रीपालचरित्रना, आगे गुण कदेवाय ॥६॥
अर्थ-ते माटे हे श्रोताजनो ! तमे सङ थर कान दइ सावधान थश्ने सांजलो. जे श्रोताजनो बुझे एटले समजे तेने ढुं रीज, एटले जे जाण होय, वेत्ता होय तेने रीजवी शकीए, कारण के है जाण होय ते नवां नवां शृंगारादिक रसमय व्याख्यान सांजलीने रीक पामे, कविनो आयास जाणे, पोताना ज्ञानथी लद जे साध्य ते नूले नहीं, श्रृंगारा।दक रस सांजलीने देयोपादेय यथायोग्य आलंबने जोडे, परंतु जे अजाण होय ते सामा वक्ताना दोषो काढे ॥५॥3 श्रा कथाने आगल पागल सुणतां थका घणो रस उत्पन्न थाय एवी , माटे हवे श्रीपालचरित्रना जे गुणो ने ते पागल कहेवाय ॥६॥
॥ ढाल पहेली। ॥धन दिन वेला धन धमी तेह, अचिरारो नंदन जिन यदि नेटस्यां जी॥ए देशी॥ रदीयो रे आवास ज्वार, वयण सुणे श्रीपाल सोहामणो जी॥
कमलप्रना रे कहे एम, मयणा प्रति मुज चित्त ए ऊख घणो जी ॥१॥ अर्थ-हवे सोहामणो श्रीपाल कुंवर एक पहोर रात्रि गये थके माताना घरने छारे उनो रह्यो.13 तिहां पोतानी मातानुं तथा मयणासुंदरीनुं जे मांहोमांहे बोलवू थाय , ते वचन सांजले
Sain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
w
inelibrary.org
Page #254
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
. तिहां कमलप्रना मयणा प्रत्ये एम कहे जे के हे वह ! मारा चित्तमा ए पुःख घj खंग.। बे. उःख डे ? ते श्रागल कहे ॥१॥
वींटी ने ए परचक्र, नगरी सघलोइ लोक हिल्लोलीयो जी ॥ शी गति दोशे इण गम, सुतने सुख होजो बीजो घोलीयो जी ॥२॥ घणा रे दिवस थया तास, वालिंन तुज जे गयो देशांतरे जी ॥ हजीय न
आवी का शुद्धि, जीवे रे माता अखणी किम नवि मरे जी ॥ ३ ॥ मयणा रे बोले म करो खेद, म धरो रे जय मनमां परचक्रनो जी॥
नव पद ध्याने रे पाप पलाय, उरित न चारो ने ग्रह वक्रनो जी ॥४॥ अर्थ-के परचक्र जे बीजा राजानुं लश्कर तेणे श्रावीने श्रा नगरीने वीटी बे, तेथी सघलो लोक हालकलोल थक्ष रह्यो , माटे हवे या स्थानके शुं जाणीए ! आपणी शी गति थशे? आ-14 पणी तो ठीक, परंतु मारा सुतने एटले पुत्रने सुख होजो, एटले कुशल थाजो. बीजो सर्व घोल्यो एम कडं. इहां कोई पूजे के कमलप्रत्ना पोते समकितधारी ले तो ते सर्व जगतवासी जंतुने | करुणादृष्टिए जोवे , तो पोतानाने कुशल वांडे अने अपरने घोल्यो एम केम कहे ? तेने त्यां उत्तर थापे के के एणे जे घोल्यो एवो शब्द कह्यो ते स्वनिष्ठित तन, धन, ग्रहादिक आश्रयी बे, एटले पोतानी माल मिकतने गमे ते था ए अभिप्राये कह्यो । बे, परंतु बीजा कोइ नगरजनादिक श्राश्रयी घोल्यो कह्यो नथी॥ २॥ वली हे वह ! तारो वालम देशांतरे गयो , तेने घणा दिवस थ गया , पण हजी लगण कां तेनी शुद्धि ॥१५॥ श्रावी नथी, माटे हुं तेनी माता पुःखणी जीवती रहुं बुं, पण मरती केम नथी ? ॥३॥ ते सांजली मयणासुंदरी बोली के हे सासुजी ! तमे खेद म करो, अने ए परसैन्यनो जय हू।
rienEducationa
l
.net
For Personal and Private Use Only
Page #255
--------------------------------------------------------------------------
________________
कां पण मनमां धरो नहीं, कारण के नव पदजीना ध्याने करी सर्व पाप पलायन करी जाय . वली एना ध्यान आगल ग्रह वक्र जे वांका ग्रह तेनी (उरित के० ) माठी चार जे गति तेजें। जोर कांश पण न बे एटले नथी चालतुं ॥४॥
अरि करि सागर दरि ने व्याल, ज्वलन जलोदर बंधन नय सवे जी॥ जाय रे जपतां नव पद जाप, लदे रे संपत्ति इह नवे परनवे जी ॥५॥ बीजां रे खोजे कोण प्रमाण, अनुन्नव जाग्यो मुज ए वातनो जी॥ दुर्ज
रे पूजानो अनुपम नाव, आज रे संध्याए जगतातनो जी॥६॥ अर्थ-(अरि के० ) शत्रु, ( करि के०) हाथी, ( सागर के०) समुह, ( हरि के०) सिंह श्रने ( व्याल के०) सर्प, (ज्वलन के० ) अग्नि, (जलोदर के० ) जलोदर रोग, (बंधन के०) बंदिखानु, ए श्राप जातिना मोटा जे जय ठे ते सर्वे नव पदनो जाप जपतां थका दूर नासी । जाय, अने आ नवे तथा परनवे संपत्ति पामीए, तो हे सासुजी ! आ परचक्रनो जय ते नव पदना जाप श्रागल कोण मात्र ? ॥५॥ वली पण मयणा कहे के हे स्वामिनि ! बीजां प्रमाणने कोण ( खोजे के० ) ढूंढे ? अथवा परचक्रनी चिंता उपनी तेने निवारवा माटे केटलाएक। मुग्ध प्राणी ज्योतिष, निमित्तादिकनां कारण तेनी खोज करे, एटले जोवरावे, ते कोण प्रमाण ? - एटले एवां लौकिक प्रमाण जोवाथी शुं थाय ? मुजने तो ए वातनो अनुजव जाग्यो जे चित्तमां परचक्रनुं कांश्क चिंतन हतुं ते हवे आज संध्याए श्रीजगतात एटले त्रण जगतजनने पिता | समान एवा श्रीअरिहंत देव तेनी धूप, दीप, पूजा करवाना अवसरे को उपमा न आवे एवो है अनुपम नाव थयो. ते एवो के जे अनादि कालनो ए जीव चार गतिमा भ्रमण करतां अनंती वार श्रावक, कुल पाम्यो, धर्म पण उलख्यो अने देवनी पूजा पण करी, परंतु ए जीवने विनाव
RACCORNCOCONCENGACANCCCCESCANCIENCONORSCORE
Jan Education international
For Personal and Private Use Only
Page #256
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण दशानी बहुल दोडथी परपरिणतिमां विशेष रमण हतुं, माटे तप धर्म न उलख्यो, तेथी मन खम. ४
श्रादिकनी एकाग्रताए अनुपम नाव सहित पूजा उदय आवी नहीं. ते अनुपम नाव मुजने श्राजश ॥२६॥
संध्याए परमेश्वरनी पूजा करतां श्राव्यो हतो. आज परचक्रनी चिंतामां मुजने ए वातनो अनुभव जाग्यो, तेनुं लक्षण आगली गाथाए करी कहे , ते निजा परहरीने धारजो ॥६॥
तदगतचित्त समयविधान, नावनी दिनवनय अति घणो जी॥
विस्मय पुलक प्रमोद प्रधान, सदण ए ने अमृतक्रिया तणो जी॥७॥ । अर्थ-एक तो ( तदगतचित्त के ) जे क्रिया करतो होय तेज क्रियानो उपयोगी होय, परंतु
केप जे मननी व्यग्रता तप क्षेपक दोषादि युक्त न होय, बीजो ( समय विधान के ) आगमने है विषे जे वेलाए जे विधि करवानो कह्यो , ते वेलाए तेज करवा योग्य शुन्न क्रियाविधान करतो होय, त्रीजो तत्समयोचित क्रिया करतो होय, तेमां (नावनी वृद्धि के ) चित्त उससित थाय, परिणामधारानी पुष्टि थाय, चोथो लव जे संसार तेनो अत्यंत घणोज जय उपजे, एटले जन्मनां उःखनी, जरानां पुःखनी बीक लागे, इत्यादिक नय उपजे, पांचमो ( विस्मय के) चमत्कार उपजे, एटले तत्समयोचित क्रियामां अति पुष्टतर साध्यनी कारणता देखी चित्तमां अप्राप्त ! |परे चमत्कार पामे, उहो ( पुलक के०) रोमोजम होय, एटले पुष्ट कारण प्राप्त थवाथी अत्यंत हर्ष उपजे, अने अथिर संसारमणजयश्री रोमोजम थाय, सातमो (प्रमोद के०) महादर्ष 8! थाय, थात्मिक सुखानुजव होय, जेम थांधलाने नेत्रनो लान थयेथी तथा सुनटने शत्रु जीतवाश्री जेवो प्रमोद थाय, तेथी पण अधिक प्रमोद समयोचित क्रिया करवामां थाय. ए सर्व अमृत- ॥२६॥ क्रियानां (प्रधान के० ) मुख्य लक्षणो बे, एटले चिह्ने अमृतक्रिया जाणीए. ए क्रिया श्ह लोक ! अने परलोके अवश्य फलदायक होय, एटले निश्चे फलदायक होय ॥ उक्तं च ॥ सहजो नाव-15
Jain Education
International
For Personal and Private Use Only
Page #257
--------------------------------------------------------------------------
________________
CAKACARREARRCA
*ASSSSSSSASARASWAR
धर्मो हि, शुद्धचंदनगंधवत् ॥ एतनमनुष्ठान,-ममृतं संप्रचकते ॥ १॥ शास्त्रार्थालोचनं सम्यक्, प्रणिधानं च कर्मणि ॥ कालाद्यंगविपर्यासो,-ऽमृतानुष्ठानलक्षणम् ॥२॥ इति ॥७॥
अमृतनो देशलह्यो इक वार, बीजं रे औषध करवू नवि पडे जी ॥अमृतक्रिया तिमलही एक वार, बीजां रे साधन विण शिव नविअमेजी॥७॥ एदवो रे पूजामां मुज नाव, आव्यो रे नाव्यो ध्यान सोहामणो जी॥ हजीअ न माये मन आणंद, खिण खिण होये पुलक निकारणो जी॥ ए॥ फुरके रे वाम नयन नरोज, आज मिले ने वालिंन मादरी जी ॥ बीजुं
रे अमृतक्रिया सिद्धिरूप, तुरत फले ने तिहां नहीं आंतरो जी ॥ १० ॥ अर्थ-माटे जेम रोगीए अमृतनो लेशज मात्र (लह्यो के० ) पाम्यो होय तो तेने बीजु औषध करवू पडे नहीं, तेम संसाररूप रोगे ग्रस्त जीवे जो एक वार अमृतक्रिया पामी होय तो पड़ी ते 8 बीजां साधन कस्या विना (शिव के०) मोक्ष जवामां अडे नहीं, एटले अटके नहीं ॥॥माटे हे सासुजी ! एवो पूजामां मुजने नाव आव्यो, ते नावे करी सोहामणुं एटखे सुंदर ध्यान में 2 नाव्यु, जाएयु. ते नाव ध्यावतां ते वखते जे मारा चित्तमां आनंद आव्यो ने ते आनंद मारा मनने विषे हजी सुधी समातो नथी, तेणे करी निष्कारण एटले कारण विना दणे क्षणे (पुलक 8| के० ) रोमोजम थाय ने, हर्ष थाय . निष्कारण ते जय श्रने हर्ष, ए बे निमित्त विना जे वारे है। पोतानी मेले रोमोजम थाय एटले शरीरनी रोमराजी विकस्वर थाय, ते वारे अकस्मात् अणचिंतव्युं को पण वखन आवी मले, एवं निमित्तशास्त्रमा कडं . ए लक्षण श्राज मने थयुं बे,11 |माटे ते लक्षण वांजीयुं निष्फल न थाय, पण फलदायक थर्बु जोश्ए. एम मयणा कहे जे ॥॥ वली मारूं माबु नेत्र अने माबु स्तन फरके , तेथी हुँ जाणुं बुं जे आज मारो वालम मने ( मिले
in Education
Interational
For Personal and Private Use Only
Page #258
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
॥१२॥
ने के० ) मलशे. बी वली आज अमृतक्रिया मुजने प्राप्त थ डे ते सिछिरूप , माटे तरतज | खं. ४ फले बे. तेमां कां आंतरो एटले अंतर पडे नहीं ॥ १०॥
कमलप्रना कहे वत्स साच, तादरी रे जीने अमृत वसे सदा जी॥ तादारुं रे वचन दोशे सुप्रमाण, विविध प्रत्यय ने तें साध्यो मुदा जी ॥११॥ करवा रे वचन प्रियानुं साच, कदे रे श्रीपाल ते बार उघामीए जी ॥ कमलप्रना कहे ए सुतनी वाणी, मयणा कहे जिनमत न मुधा हुये जी॥१२॥ नघाडीयां बार नमे श्रीपाल, जननीनां चरणसरोज सुहंकरु जी॥प्रणमी रे दयिता विनय विशेष, बोलावे तेहने प्रेम मनोहरु जी ॥१३॥ जननी रे आरोपी निज खंध, दयिता रे निज दाये लेइ रागशु
जी॥पहोता रे हार प्रनावे राय, शिबिर आवासे जलसित वेगशुंजी ॥४॥ अर्थ-ते सांजली कमलप्रना कहे बे के हे वत्स ! तें कडं ते साचुंज बे, तारी जीने सदा निरंतर अमृतज वसे बे, तारुं वचन सुप्रमाण थशे, ते ( त्रिविध प्रत्यय के०) मन, वचन अने* काया ए त्रिकरण शुझे मुदा एटले हर्षे करीने धर्मने ( साध्यो के ) आराध्यो ने ॥ ११ ॥ पड़ी है पोतानी प्रिया जे स्त्री तेनुं वचन साचुं करवाने अर्थे श्रीपाल कहे जे के बारणुं उघामीए. ते सांजली कमलप्रनाए कह्यु के ए मारा सुतनी वाणी बे, ते वारे मयणा कहे के श्रीजिनेश्वरनो मत ६ कदापि काले (मुधा के० ) खोटो थाय नहीं ॥ १२ ॥ पछी माताए बारणां उघाड्यां के श्रीपाल | ॥१२॥ पोतानी जननीनां सुखकारक एवां चरणरूप सरोज एटले कमल ते प्रत्ये नमतो हवो, अने । दयिता जे मयणासंदरी ते पण विनयविशेषे करीने पोताना स्वामीने प्रणमी एटले पगे लागी, तेने श्रीपाले मनोहर प्रेमे करी बोलावी ॥ १३ ॥ पठी जननी जे माता तेने पोताना खंधने विषे| 81
CANCHCECTRICALCCAMERCIALCCESCOLOCCAS
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #259
--------------------------------------------------------------------------
________________
आरोपी एटले बेसामी, तथा दयिता जे स्त्री मयणासुंदरी, तेने घणा रागथी पोताना हाथमा नालश्ने हारना प्रनावे करी शिबिर एटले सैन्यना जिहां डेरा दीधा डे ते श्रावासने विषे श्रीपाल राजा ( उल सित वेगशुं के० ) उल्लास पामतो थको तरत अति उतावलो जश् पहोतो ॥ १४ ॥
बेसामी रे जजसने नरनाथ, जननीने प्रेमे इणी परे विनवे जी॥ माताजी देखो ए फल तास, जपीयां में नव पद जे सुगुरे दीयां जी ॥१५॥ वस्रो रे आरे लागी पाय, सासुने प्रथम प्रिया मयणा तणे जी ॥ तेदनी रे शीश चढावी आशीष, मयणा रे आगेवात सकल नणे जी ॥१६॥ पूरे रे मयणाने श्रीपाल, तदारो रे तात अणावं किण परे जी॥ सा कदे
कंठे धरीय कुहाड, आवे तो कोश् आशातना नवि करे जी॥१७॥ I अर्थ-पढ़ी जननीने नमासने बेसाडीने नरनाथ जे श्रीपाल राजा, ते प्रेमे करीावी रीते विनवे बे के हे माताजी ! सद्गुरुए जे नव पद दीधां हतां, तेनो में जाप जप्यो तेनुं ए फल थयुं, ते नवी पदनो महिमा प्रगटपणे देखो एटले जुलं, ते केवो ने ? ॥ १५ ॥ पड़ी बीजी श्रावे वदरो प्रथम 8 पोतानी सासुने पगे लागी, अने पछी प्रथम प्रिया एटले पहेली परणेली जे मयणासुंदरी ने तेने है। पगे लागी. तेने बन्ने जपीए आशीष श्राप. ते आशीष श्रावे स्त्रीए मस्तके चढावीने पनी श्रीपालनी पालनी हकीकत जे देशांतरने विषे बनी हती, ते संबंधी सर्व वात मयणानी आगल
(जणे के० ) कहे ॥ १६ ॥ हवे श्रीपाल कुंवर मयणासुंदरीने पूजे जे के तारा पिताने केवी रीते दियहीं तेमावं ? ते वारे ( सा के० ) ते मयणासुंदरी कहे डे के कंठ उपर कुहामो मूकीने आवी|
मले तो फरी श्रीजिनधर्मनी उःखोत्पादकरूप आशातना अवज्ञा कोई न करे. इहां केटलाएक एवो अर्थ करे के को जिनशासननी श्राशातना न करे एटला माटे कंठे कुहाडो धरी तेमवानुं
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #260
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग.४
श्री राम कह्यु , ते यत्किंचित् जाणवू. जे जणी प्रजापाल राजाए तो प्रथमज मयणा युक्त श्रीपालने देखीने
पोतानुं मान मूक्युं ने अने धर्मरुचि थयो , जैनधर्मनी प्रशंसा पण कीधी , उन्नति कीधी , ॥१२॥
ते उपर फरी सम्यग्दृष्टि जीवने एटलो खेद न होय, केमके ए राजा कांश ते काले जैननो प्रत्यनीक नथी, परंतु उलटो सहायकारी , माटे लोकोने जणाववाने अभिप्राये तेनुं अपमान करवा माटे कां राजाने कंठे कुहाडो मूकावी तेड्यो नथी, परंतु लोकोने जाणवा स्वरूपविशेषथी कर्मनी प्रतीति कराववाने श्रर्थे तथा विशेषथी धर्मना महा श्रन्युदय फल विशेषनी प्रतीति करा-18 ववाने माटे एवी अवस्थाए तेड्यो रे ॥ १७ ॥
कहेवराव्युं दूतमुखे तिण वार, श्रीपाले ते राजाने वयणडुं जी ॥ कोप्यो रे मालव राजा ताम, मंत्री रे कदे नवि कीजे एवडं जी॥१७॥चोथे रे खंभे पदेली ढाल, खंड साकरथी मीठी ए नणी जी॥गाये जे नव
पद सुजश विलास, कीरति वाधे जगमां तेच तणी जी॥१५॥ & अर्थ-श्रीपाले तेज वखते इतने मुखे प्रजापाल राजाने तेज रीते कदेवराव्यु, (ताम के०)18
ते वारे मालव देशनो राजा कोप्यो. तेने प्रधाने कर्वा जे महाराज ! एवडो कोप म करो, क्रोधमां 8 फायदो नथी ॥ १७॥ ए चोथा खंमने विषे पहेली ढाल ते साकरना (खंग के० ) कटकाथी पण मीठी (जणी के०) कही, ते जे प्राणी नव पदना रुमा यशने विलास सहित गाय तो तेनी जगतमां कीर्ति वधे, तथा अहीं कवि यशोविजयजीए पोतानुं नाम पण सूचव्युं ॥ १५ ॥
॥दोहा॥ मंत्री कदे नवि कोपीए, प्रबल प्रतापी जेद ॥ नाखीने शुं कीजीए, सूरज सामी खेद ॥१॥
ADAMACANAGARMACOCCAKACROSAX
॥१२॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #261
--------------------------------------------------------------------------
________________
| अर्थ-हवे मालव देशना राजाने तेनो प्रधान कहे जे के जे प्रबल प्रतापी पुरुष होय तेनी उपर कोपीए नहीं. तिहां दृष्टांत कहे बे के जेम पंश्रीजनने मार्गे चालतां सूर्यनो आकरो ताप लागे,8
ते वारे ( खेह के) धूलनी पसली जरीने सूर्यनी सामी नाखे तो ते धूल पानी श्रावी तेना है। & पोताना मुख उपर पडे, माटे सूर्य सामी धूल नाखीने शुं करीए ? तेम प्रबल प्रतापी उपर क्रोध करवो ते पण पोतानेज फुःखदायी थाय ॥१॥
नहत उपरे आथड्यु, पसरंतुं पण धाम ॥
उदाए जिम दीपर्नु, लागे पवन उद्दाम ॥२॥ PA अर्थ-वली प्रधान कहे जे के हे राजन् ! अंधारुं ते देशजाषाए उहत शब्दे अंधकार कहे . IP
ते अंधकारनी उपरे श्राथड्यु, एटले आवी पड्यु, (पसरंतुं के०) ते मांहे विस्तार पामतुं, परंतु एम| नहीं जे श्राथडीने पालु आवी पड्यु, अर्थात् याकरा अंधकारने टाले एवं दीपy ( धाम के० )18 तेज , एवं तेज पण ( उद्दाम के०) श्राकरो पवन लागे ते वारे उला जाय. इहां प्रधाने * |पोतानी निपुणाइए राजाने अरज कीधी, तेमां एवं सूचव्युं जे तमे तो दीवा सरखा दो, तमा तेज अस्खलित , ते बीजा अंधारा सरखा घणा राजाऊनी उपर पड्यु, ते सर्व राजाउँने तमे || वश कीधा बे, पण ए हमणां श्रावेलो राजा ते उद्दाम पवन सरखो , माटे ए जेम कहे ते रीते 151 करवू, एने समजावी वोलाववो युक्त , जेम आकरो पवन लागवाथी दीपकने एक स्थल यो| उपामी बीजे स्थले मूकतां दीपकपदनी हानि थती नश्री, महत्ता घटती नथी, तेम एने अनुकूल प्रवर्त्ततां आपणने कांश हानि नथी. एम प्रधाने पोताना राजाने दीवा समान कही तेनुं | महत्त्व राख्युं, अने तेने उद्दाम पवननी उपमा थापी. जवंत जावे बलवान् सूचव्यो, एटले प्रबल
साथे विरोध करवो युक्त नथी. १. बीजो अर्थ उहत एटले अज्ञान तत्पर्यंत तेनी उपर|8|
लाइ जाय. इहां प्रधाने ।
काधी, तेमां एवं सूचव्यु
तज अस्खलित ने, ते वीज
San Education International
For Personal and Private Use Only
Page #262
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० राज्ञान- तेज विस्तार पामतुं आथड्यु, तेने मिथ्यात्वरूप उदाम पवन लागे थके ज्ञान- तेज खंग.
... लाइ जाय. २. ए रीते साम वचने करी पोताना राजाने प्रधाने समजाव्यो, ते वारे प्रजापाल ॥रणाराजानं चित्त श्रीपालजीने मलवा उत्कंठित थयुं॥॥
जे किरतारे वडा कीया, तेदशुं न चले रीस ॥ आप अंदाजे चालीए, नामीजे तस शीश ॥ ३ ॥ दूत कहे ते कीजीए, अनुचित करे बलाय ॥ जेहनी वेला तेहनी, रक्षा एहज न्याय ॥४॥एदवां मंत्रिवयण सुणी, धरी कुहाडो कंठ॥ मालव नरपति आवीयो, शिबिर तणे उपकंठ॥५॥ ते श्रीपाल गेमावीयो, पहिराव्यो अलंकार ॥ सन्ना मध्ये तेड्यो नृपति, प्राप्युं आसन सार ॥६॥ तव मयणा निज तातने, कदे बोल जे मुङ॥
कर्मवशे वर तुमे दीयो, तेहनं जन ए गुज ॥ ७॥ अर्थ-जेने किरतारे मोटा कस्या ने तेनी साथे रीस करवी चाले नहीं, माटे पोताना अंदाजे एटले गजा प्रमाणे अदवथी चालीए अने तेने मस्तक नमावीए ॥३॥ माटे हे राजन् ! आ ? स्त कहे जे ते करीए, अनुचित काम आपणी बला करे , एटले अणघटतुं काम आपणे 1 शामाटे करीए ? जेनी वेला एटले जेनो अवसर तेनीज रक्षा एटले रखोपुं, एज न्याय ॥४॥ एवां प्रधाननां वचन सांजली मालव देशनो राजा खांधे कुहाडो धरीने क्षिप्रा नदीनी ( उपकंठ के०) पासे जिहां श्रीपालनुं सैन्य ने तिहां आव्यो ॥५॥ तेवोज श्रीपाले ते कुहाडो खांधश्री डोमाव्यो । एटले उतराव्यो, अने अलंकार पहेराव्यो एटले रुमां वस्त्राचरण पदेराव्यां, पानो सनामां तेमीने ॥१५ बेसवा माटे श्रेष्ठ आसन आप्युं ॥ ६॥ ते वारे मयणा पोताना पिताने कहे ले के हे पिताजी !मारो 8 लावाल सनारा, ज कमेने वशे तमे वर दोधो हतो तेनुं (गुज के०) नाग्य जुन के बे ? ॥७॥ादा बोल संजारो, जे कर्मन
A5%CCCCCCCIENCONCESCENCrict
FACE5%
Sain Education Intematon
For Personal and Private Use Only
www
brary.org
Page #263
--------------------------------------------------------------------------
________________
तव विस्मित मालव नृपति, जामाउल प्रणमंत ॥ कदे न स्वामी तुं उलख्यो, गिरु बहु गुणवंत ॥ ७॥ कहे श्रीपाल न मादरो, एदवो एह बनाव ॥ गुरुदर्शित नव पद तणो, ए ने प्रबल प्रनाव ॥ ए॥ते अचरिज निसुणी मिल्यो, तिहां विवेक नदार॥ सौनाग्यसुंदरी रूपसुंदरी, प्रमुख सयल परिवार ॥१०॥स्वजन वर्गसघलो मिल्यो, वरत्यो आणंद
पूर ॥ नाटककारण आदिशे, श्री श्रीपाल सनूर ॥११॥ अर्थ-ते वारे मालव देशनो राजा विस्मय पाम्यो थको जमाश्ने प्रणाम करीने कहेवा लाग्यो । जे हे स्वामिन् ! में तुजने उलख्यो नहीं, तुं गिरु बो, महागुणवंत हो ॥ ॥ ते सांजली श्रीपाल 3 कहे जे के ए जे बनाव डे ते कांश मारो नथी, परंतु ए तो गुरुए जे नव पद देखाड्यां तेनो ए| प्रबल (प्रजाव के०) महिमा ॥ ए॥ ते अचरिज जेवी वात सांजलीने तिहां विवेक उदार एटले मोटो विवेकवंत एवो सौनाग्यसुंदरी श्रने रूपसुंदरी प्रमुख सर्व परिवार एकगे मल्यो । ॥ १० ॥ एम खजनवर्ग सर्व एकठो मले थके श्रानंदनो पूर वर्त्तते नाटक कराववाना कारण माटे सनूर एटले तेजे करी सहित एवो श्रीपाल श्रादेश देतो हवो ॥ ११ ॥
॥ ढाल बीजी॥ ॥ होजी झुबे कुंबे वरसेलो मेह, आज दिहामो धरणी त्रीजरो हो लाल ॥ ए देशी ॥ होजी पहेलुं पेडुं ताम, नाचवा ठे आफणी दो साल ॥
होजी मूल नटी पण एक, नवि उठे बहु परे लणी दो लाल ॥१॥ T अर्थ-( ताम के० ) ते वारे नाटकनां घणां पेमां ने, तेमांथी पहेवू पेडं एटले टोलुं नाचवाने
55%%%%ॐॐॐॐॐॐ
JainEducationainternational
For Personal and Private Use Only
www
brary.org
Page #264
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
॥१३॥
माटे खेलाए उजु थयुं, पण ते माहे एक मूल नटी एटले मुख्य नाटकणी , तेने टोले मलीने खम.४ (बहु परे जणी के० ) घणी रीते कडं तोपण ते नाचवा उठे नहीं ॥१॥
होजी उगमी बहु कष्ट, पण बाह न सा धरे दो लाल ॥ दोजी हा हा करी सविषाद, उदो एक मुखे उच्चरे दो साल॥॥दोदो ॥ किदां मालव किदां शंखपुर, किदां बब्बर किहां नह ॥ सुरसुंदरी नचावीए, दैवे दल विमरट्ट ॥३॥ ढाल पूर्वनी॥दोजी वचन सुणी तव तेद, जननी जनकादिक सवे दो लाल ॥ दोजी चिंते विस्मित चित्त, सुरसुंदरी किम संनवे दो लाल ॥४॥ दोजी जननी कंठ विलग्ग, पूरी जनके रोवती हो लाल॥
दोजी सघलो कदे वृत्तंत, जे शहि तुमे दीधी हती दो लाल ॥५॥ अर्थ-तथापि तेने बहु कष्टे करी उठामी तोपण ( सा के०) ते नटी नाचवाने माटे उत्साह धरती नथी, अने मुखथी विषाद सहित बे वार हा हा एवो शब्द करती एक दोहो पोताना मुखथी उच्चारती हवी ॥२॥ तेनो अर्थ कहे के किहां मालव देशे जन्म अने किहां शंखपुरे परणावी, तथा किहां बब्बर देशे वेची अने किहां ए नाटक करवा शीखी. दैवे माह ते मरम एटले आमलो, वांकाक्ष, मानपणुं दली नाखीने सुरसुंदरीने नचावती करी ॥३॥ ते नाटकणीनां एवां वचन सांजलीने जननी जे माता अने जनकादिक जे पिता प्रमुख सर्व सजन विस्मित चित्ते करी चिंतवतां हवां के ए सुरसुंदरी ते नाटकणी थर, ए केम संजवे !॥४॥ ते मातापिता पोतानां मनमां विमासे डे के केम ए सुरसुंदरी बे, किंवा नथी ! एटलामां तो सुरसुंदरी ॥१३ तिहांथी उठीने पोतानी जननीने गले श्रावी वलगी. तेने रोवती थकी देखीने जनके एटले पिताए । व्युं, ते वारे तेनी श्रागल सघलो वृत्तांत कदे ले के दे पिताजी ! तमे मुजने जे शहिदीधी हती ॥५॥
JainEducationommaa
For Personal and Private Use Only
nebog
Page #265
--------------------------------------------------------------------------
________________
Y
SOLUCCALCONOCORRUGANGACANC
होजी हं ते शधि समेत, शंखपुरीने परिसरे दो लाल ॥ दोजी पहोती मुदरत देत, नाथ सदित रदी बादिरे दो लाल ॥६॥ दोजी सुनट गया के गेद, गे साथे निशा रही दो लाल ॥ दोजी जामाता तुज नह, धाडी पडी तिहां हुं ग्रही दो लाल ॥७॥ दोजी वेची मूल्ये धाडी, सुनटे देश नेपालमां दो लाल ॥ दोजी सारथवादे लीध, फले लख्युं जे जालमां दो लाल ॥ ७॥ दोजी तेणे पण बब्बर कुल, महाकाल नगरे धरी दो लाल ॥ दोजी दाटे वेची वेश, लेश्शीखावी नटी करी हो लाल ॥ ए॥ होजी नाटकप्रिय महाकाल, नृप नटपेटकशुं ग्रही दो लाल ॥ दोजी विविध नचावी दीध, मयणसेनापतिने सही हो लाल ॥१०॥ अर्थ-ते इति सहित हुँ शंखपुरी नगरीनी (परिसरे के० ) समीपे पहोती, पण ते दिवसे नगरमा पेसवानुं मुहर्त न हतुं, ते हेतु माटे हूं मारा (नाथ के ) नर्त्तार सहित गाम बहार रही ॥६॥ पोतानुं नगर जाणीने केटलाएक सुनटो पोतपोताने घेर गया, अने बोळे एटले थोडे सथवारे तिहां हुँ रात्रिए रही, एटलामां मध्य राते हणो हणो करती चोरोनी मोटी धाम श्रावी पमी, ते वारे तमारो जमाई तो मने मूकीने नासी गयो, अने चोरोए तमारं श्रापे धन देखीने 8 ते धन सहित मु ने ग्रही एटले पकमी लीधी॥७॥पनी ते धामना सुनटोए मने लश्ने ने देशमां जश् मूल्य लश्ने वेची, तिहां सार्थवाहे लीधी. जे जालमां एटले कपालमां लख्युं होय ते । फले एटले फलीभूत थाय, परंतु तेमां अधिकुं उडं थायज नहीं ॥ ॥ ते सार्थवाहे पण बब्बर 1 कुलने विषे महाकाल राजाने नगरे (धरी के०) लइ जश्ने वेश्याने हाटे वेची, तेणे लश्नाटक-18
ACCORDCROSAUGALSOMROSCOOCOCCOLX
नटोए मने लश्ने नेपाल
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #266
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा०
॥१३॥
*SHAHARASHTRA
कला शीखावीने नटी करी ॥ ए॥ परी नाटक ने प्रिय जेने एवो तिहांनो जे महाकाल राजा खंम.४ तेणे ते नाटकना पेटक एटखे पेमानी साथे मने ग्रही एटले वेचाती लश्ने विविध प्रकारे मने | नचावी करीने पनी जे वारे पोतानी पुत्री मयणसेना परणावी, ते वारे तेना पतिने दायजामां (सही के०) निश्चे नाटकनां नने पेमां दीधां, तेमां मने पण (दीध के०) दीधी ॥१०॥
दोजी नाटक करतां तास, आगे दिन केता गया दो लाल ॥ दोजी देखी
आप कुटुंब, उल्लस्युं अःख तुम हुइ दया दो लाल ॥ ११॥ दोजी मयणाजुःख तव देखी, निज गुरुअत्तण मद कीयो हो लाल ॥ दोजी ते मयणापति दास,-नावे अब मुज सलकीयो दो लाल ॥१२॥ दोजी एकज विजयपताक, मयणा सयणामां खदे दो साल॥दोजी जेदनुं शील
सलिल, मदिमाए मृगमद महमदे दो लाल ॥१३॥ श्रर्थ-ते श्रीपालनी श्रागल नाटक करता करतां श्रागल केटलाएक दिवस वही गया, परंतु आज तो आपणुं कुटुंब सहु देखीने मारा उपर तमारी दया थर तेथी फुःख उक्षसी आव्यु A॥ ११ ॥ तमे मने परणावी ते वारे मयणानुं उःख देखीने ( निज गुरुअत्तण के० ) मारी मोटा-12
श्नो मद कयो, अहंकार कस्यो, तेना पसायथा (अब के०) हमणां तेज मयणानो पति जे
श्रीपाल, तेना (दासनावे ) सेवकनावे दासीनत थाने में दासीपणुं कह्यु, माटे में जे मद करेलो| पाहतो, (ते के०) ते मद सलक्यो॥१२॥हवे सुरसुंदरी मयणासुंदरीनी स्तुति करे , एकज विजय-14 ॥१३॥
पताक एटले अहितीय विजयपताकाने ते मयणासुंदरी पोताना सयणामां एटले सगां कुटुंबमां । लहे, एटले पामी बे, वली जेनुं शीलरूप जे ( सलिल के० ) पाणी ते महिमाए करीने मृगमद जे कस्तूरी तेनी परे महमहाट करी रघु , एटले जगतमांजेना शीलनो सुगंध विस्तार पामी रह्यो ॥१३॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #267
--------------------------------------------------------------------------
________________
दोजी मयणाने जिनधर्म, फलीयो बलीयो सुरतरु दो लाल ॥ होजी मुज मने मिथ्याधर्म, फलीयो विषफल विषतरु हो लाल ॥१४॥होजी एकज जलधि लप्पन्न, अमिय विषे जे आंतरो दो लाल ॥ दोजी अम बिलु बहेनी मांदि, तेह ने मत कोइ पांतरो दो लाल ॥ १५॥ दोजी मयणा निज कुललाज, उद्योतक मणिदीपिका दो लाल ॥ होजी हुं बुं कुलमलदेतु, सघन निशानी कीपिका दो लाल ॥ १६॥ होजी मयणा दी। होय, समकितशुदि सोदामणी हो लाल ॥ होजी मुज दीठे मिथ्यात,
धीग होये अति घणी हो लाल ॥१७॥ | अर्थ-मयणाए श्रीजिनधर्म सेव्यो, ते तेने बलवंत एवं जे (सुरतरु के०) कल्पवृक्ष ते समान प्रत्यक्ष दृश्यमान शुजरूप फले फूले करी फल्यो, श्रने में मिथ्यात्व धर्म सेव्यो, ते मुजने जेम? विषतरु एटले विषवृक्षमा विषफल उपजे, ते समान फुःखरूप फले फूले करीने फल्यो. एटले जेवां| 8/वीज वाव्यां, तेवां फल पाम्यां ॥ १४ ॥ इहां कोई अजाण पूजे के एकज कुलमां उपनी तमे वे 8 वहेनो बो, ते मांदे एटलो फेर केम पड्यो ? तेने दृष्टांतपूर्वक उत्तर कहे ले के जेम एकज (जलधि, के०) समुष उत्पत्तिनुं स्थानक , तेमां अमृत अने विष बेहु नपजे ने, ने तेमां श्रांतरं ,IN केमके अमृत वे ते रोगापहारकपणे जीवामनार ने अने विष जे जे ते तो सर्वथा मारनारज ने, ४ तेम इहां पण श्रमो बेहु बहेनो मांहे तेटलो अंतर ठे एटले मयणा अमृत तुल्य बे, अने हुँ विष8
सरखी बुं. मत को पतिरो एटले कोइ फेरफार जाणशो नहीं॥१५॥ वली मयणा पोताना कुलनी लाजने उद्योतक एटले प्रकाश करवामां मणिदीपिका एटले मणिरत्ननी दीवी समान बे, अने हुँ। तो कुलने मलिन करवानी हेतु एटले कारण बुं. ते केवी हेतु ढुं ? तो के ( सघन निशा के)
PRI***ORISSAAROSANI
For Personal and Private Use Only
Page #268
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रावरसाद सहित अंधारी रात्रि होय तेनी पण जीपिका एटले जीपनारी ढुं, एटले कुलने मलिन कर- खंग.४
वामां तो सघन रात्रिने जीतुं एवी हुँ ढुं ॥ १६ ॥ वली मयणाने दी। थके सोहामणी समकितनी ॥१३॥
शुकि थाय, अने मुजने देखवाश्री मिथ्यात्व लक्षण अत्यंत धीगर एटले वक्रता पेदा थाय ॥१७॥
होजी एदवा बोली बोल, सुरसुंदरीए उपाइयो हो लाल ॥ होजी जे आनंद न तेद, नाटिक शतके पण कीयो हो सात ॥ १७ ॥ होजी श्रीपाले वडवेग, हवे अरिदमण अणावीयो दो लाल ॥ दोजी सुरसुंदरी तसु दीध, बहु शके वोलावीयो दो साल ॥१०॥ दोजी ते दंपती श्रीपाल, मयणाने सुपसाउले दो लाल ॥ दोजी पामे समकितशुद्धि, अध्यवसाये अति नले दो लाल ॥२०॥ दोजी कुष्ठी पुरुष शत सात, मयणावयणे लही दया दो लाल ॥ दोजी आराधी जिनधर्म, नीरोगी सघला थया
दो लाल ॥१॥ | अर्थ-श्हां श्रीपाले लोकोने आनंद उपजाववा माटे सुरसुंदरीने नाटक करवानी श्राझा करी] हती. ते एक नाटक तो शुं ? पण ( नाटक शतके के० ) सेंकमागमे नाटक करवाथी पण जे आनंद (न के० ) न उपजे, (तेह के०) ते श्रानंद पोताना दोष अने मयणाना गुण जे जेमा एवी पोतानी वचनचतुराश्ए करी पूर्वोक्त बोल बोलीने सुरसुंदरीए ( उपाश्यो के०) उपजाव्यो ? ॥ १७॥ हवे श्रीपाले घणी ताकीदथी अरिदमन राजाने तेमावी तेने सुरसुंदरी दोधी, तथा घणी
॥१३॥ कि आपीने वोलाव्यो, विदाय कस्यो ॥ १ए ॥ ते दंपती एटले अरिदमन अने सुरसुंदरी पण 8 श्रीपाल तथा मयणाना सुपसायथी रुमा अत्यंत जला अध्यवसाये एटले पोताना परिणामनी शुझताए समकित पाम्यां ॥ २० ॥ हवे मयणानां वचनथी दयाने (लही के ) पामीने २
ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
AAAAAAAAAAAAACAKACARA
Sain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #269
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीजैनधर्म श्राराधीने सर्व नीरोगी थया हता एवा जे सातसें कुष्टी पुरुषो ते श्रीपालनो है। यश सांजलीने तिहां श्राव्या ॥१॥
होजी ते पण नृप श्रीपाल, प्रणमे बहले प्रेमशुं दो लाल ॥ दोजी राणिम दीए नृप तास, वदनकमल नित उल्लस्युं दो लाल ॥२२॥ दोजी आवी नमे नृप पाय, मतिसागर पण मंत्रवी हो लाल ॥ दोजी पूरव परे नरनाद, तेह अमात्य कीयो कवि दो लाल ॥२३॥ दोजी सुसरा साला नूप, मानल बीजा पण घणा हो लाल ॥ दोजी तेदने दीए बहु मान, नृप
आदरनी नहीं मणा हो लाल ॥२४॥ दोजी जाल मिलित करपद्म, सवि सेवे श्रीपालने दो लाल ॥ दोजी इक दिन विनवे मंत्री, मति
सागर नूपालने हो लाल ॥२५॥ अर्थ-ते पण श्रीपाल राजाने घणा प्रेमे करी प्रणम्या. ते सातसेंने श्रीपाल राणिम एटले राणानी ते उमरावनी पदवी देतो हवो. ते सर्वने सैन्यना नायक कस्या. ते श्रीपालनुं वदन जे मुख तप कमल ते नित्य एटले निरंतर सदाय उबस्युं, एटले विकसित थकुं रहे ॥ ॥ पावली मतिसागर नामे प्रधान पण थावीने श्रीपाल राजाने पगे लाग्यो, ते पूर्वे पोताना पितानो
मोटो प्रधान हतो, तेनी पेरे वली पण श्रीपाले तेने ( अमात्य कीयो कवि के) सर्वमा वडेरो मोटो प्रधान कस्यो ॥ २३ ॥ वली ससरा श्रने साला पदना राजा तथा माउल एटले मोसाल 3 पदना राजा तेमज वीजा पण घणा राजा श्रने सुजट आव्या दे, तेमने श्रीपाल बहुमान देतो हवो. श्रीपाल राजा आदर सन्मान थापवामां कांश उप राखतो नथी ॥ २४ ॥ ते सर्व पोताना | जालस्थलने विषे मिलाव्यां ले ( करपद्म के० ) हाथरूप कमल जेमणे एवा थका एटले सर्व हाथ
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #270
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग.४
श्री राम
जोमी पोताने मस्तके लगामी नम्र थइ माथु नीचुं नमावीने श्रीपाल राजानी सेवा करे . हवे एक ॥१३३॥ समयने विषे मतिसागर प्रधान श्रावीने श्रीपालने विनवे ने ॥ २५ ॥
दोजी चोथे खेमे ढाल, बीजी हुइ सोहामणी दो लाल ॥
दोजी गुण गातां सि चक्र, जश कीरति वाधे घणी दो लाल ॥२६॥ 21 अर्थ-ए चोथा खंमने विषे शोचनीय बीजी ढाल संपूर्ण थ. श्रीसिद्धचक्रजीना गुण गातां | थका एटले स्तवतां थका घणो यश श्रने कीर्ति वधे ॥२६॥
॥दोहा॥ मतिसागर कदे पितृपदे, ग्वी बालपण जेण ॥ उगवीयो तो तुज अरि, ते सही दित्तमएण ॥१॥ अरि करगत जे नविलीए, शक्ति खते पितृरज ॥ लोक दसे बल फोक तस, जेम शारद घन गऊ ॥२॥ ए बल ए शहिए
सकल,सैन्य तणो विस्तार॥शुंफलशे जोलेशो नहीं,ते निज राज उदार ॥३॥ अर्थ-हवे मतिसागर प्रधान श्रीपालने कहे डे के वालपणे तमने तमारा पितृपदे एटले पिताने |8| पाटे थाप्या हता, तिहाथी (जेण के० ) जे तमारा (श्ररि के०) शत्रुए तमने उगड्या, ते तमारो 3 शत्रु ( सही के० ) निश्चे ( दित्तमएण के० ) दीप्तमदेन एटले दीपता मदे करी युक्त ने ॥१॥ मादे थरि जे शत्रु तेना करगत एटले हाथमां गयुं एवं जे ( पितृरऊ के०) पितातुं राज्य तेने पोतानी बती शक्तिए जे न लीए तो तेनी लोक मांहे हांसी थाय अने तेनुं बल पण फोक एटले | ॥१३३॥ व्यर्थ जाणवं. केनी पेठे ? तो के जेम शरदकालनो घन जे वरसाद ते फोकट गर्जना कस्या करे, पण पाणीनुं टीपुं वरसे नहीं, तेनी पेरे निरर्थक जाणवू ॥२॥ माटे जो ते पोतानुं उदार राज्य तमे 81
JainEducationainternational
For Personal and Private Use Only
.
Page #271
--------------------------------------------------------------------------
________________
नहीं लेशो तो तमा ए बल, पराक्रम तथा शछि जे दोलत अने वली आ सैन्यनो विस्तार, ते सर्वे शुं फलशे ? एटले ए सर्व पाम्यानुं शुं फल ? अर्थात् कांज नहीं ॥३॥
नृप कहे साचुं तें कडं, पण वे चार नपाय ॥ सामे होय तो दंड श्यो, साकरे पण पित्त जाय ॥ ४॥ अहो बुद्धि मंत्री नणे, दूत चतुरमुख
नाम ॥ नूप शीखावी मोकल्यो, पहोतो चंपा गम ॥५॥ __ अर्थ-एवां प्रधाननां वचन सांजलीने राजा कहेवा लाग्यो के हे मंत्रीश्वर ! तें कडं ते सत्य | ४, पण राज्य लेवाना साम, दाम, नेद अने दंग, ए चार उपायो बे, तेमां जो साम एटले मिष्ट
वचनथीज कार्य थाय तो दंगनुं शुं काम ? जो साकर खाधाथी पित्त रोग जतो होय तो वली है कमवू औषध शामाटे करीए ? ॥ उक्तं च ॥ साम प्रेमपरं वाक्यं, दानं चार्थ विसर्जनम् ॥ नेदः
परजनाकृष्टि,-निग्रहः परपीमनम् ॥ १॥ इति तत्वम् ॥ ४ ॥ एवं श्रीपालन वचन सांजली मंत्री जे प्रधान ते कहे डे के अहो स्वामिन् ! तमारी बुद्धि तो मोटी बे, समुफ जेवा गंजीर बो, तो | हवे आ चतुरमुख नामे पूतने मोकलो, ते सामादि चार नेदने जाणनारो ने तथा मुखनी वाचालतामां चतुर , माटे चतुरमुख एनुं नाम जे. पनी तेने राजाए शीखावीने मोकल्यो, ते पण चंपा नगरीने ठामे जर पहोतो ॥५॥
॥ ढाल त्रीजी॥ ॥ राग वंगालो ॥ किसके चेले किसके पूत, श्रातमराम एकिला अवधूत ॥ मन मान ले ॥ए देशी ॥ अजितसेन ने तिहां नूपाल, ते आगल कहे दूत रसाल ॥सादिव सेवीए॥ कला शीखवा जाणी बाल, जे ते मोकलीयो श्रीपाल ॥ सादिब० ॥१॥ अर्थ-तिहां अजितसेन नामे राजा बेगे , तेनी आगल ते पूत श्रावीने पोतानी चतु
For Personal and Private Use Only
Page #272
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥१३॥
श्रीरा राथी अनुक्रमे मीगं, खाटां अने कडवां एवां त्रण प्रकारनां रसाल वचनो कहे . तिहां प्र- खंग. ४
थम मीगं वचन कहे जे के हे राजन् ! तमे वृक्ष थया बो, माटे हवे साहेव जे परमेश्वर, तेने सेवो, अथवा अमारा साहेबनी सेवा खीजमत करो, जे तमारा लाइनो ठोकरो श्रीपाल पोताना बापने राज्यपाटे थाप्यो हतो तेने तमे पृथिवीनो चार खमी शकवाने असमर्थ जाणीने तेनी उपरथी नार उतारी तमे तमारी पोतानी खांधे चढावी लीधो, अने तेने वालक जाणी कला शीखववा माटे बहार मोकली दीधो हतो ॥१॥
सकल कला तेणे शीखी सार, सेना लइ चतुरंग नदार ॥ सादिव ॥ आव्यो ने तुज खंधनो नार, नतारे ने ए निरधार ॥ साहिब० ॥२॥ जीरण यंन तणो जे नार, नवे वीजे ते निरधार ॥ सादिब० ॥ लोके
पण जुगतुं ने एद, राज देश दाखो तुमे नेद ॥ साहिब० ॥ ३ ॥ &ा अर्थ-ते श्रीपाल ( सार के० ) प्रधान सर्व कला शीखी, उदार एटले घणी मोटी एवी
चतुरंगी सेना लश्ने तमे वृक्ष थया जाणी तमारे खंधे पडेलो राज्यकारभार संबंधी जे नार, ४ तेने ( निरधार के० ) निश्चे उतारे बे, एटले उतारवा कबूल थाय ने ॥२॥ ते उपर दृष्टांत
कहे के जेम (जीरण के०) जूना थर गयेला थांजला उपर नार पडेलो होय ते उतारीने | S! ॥१३॥ निश्चेथी पालो फरी नवे थांजले उवीजे, एटले नवा थांजला उपर मूकीए, ए वात लोकने विषे । पण युक्त जे जे जूनो न काढीने नवो ऑन बेसामीए, ते कारणे तमे पण हवे वृक्ष जूना थंज जेवा| थया डो, माटे नवा थंनरूप श्रीपालने राज्य दश्ने तेने स्नेह देखामो. घणुं शुं कहुं ! अहीं त्रण गाथा सुधी बधां मीठां वचन कह्यां ॥३॥
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #273
--------------------------------------------------------------------------
________________
बीजं पयपंकज तस नूप, सेवे बहु नत्ति अनुरूप ॥ साहिब० ॥ तुमे नवि आव्या उपायो विरोध, नवि असमर्थ ने तेद शुंशोध ॥सादिव॥४॥ किदां सरशव किहां मेरु गिरीद, किहां तारा कहां शारद चंद ॥सादिव०॥ किहां खद्योत किहां दिननाथ, किहां सायर किदां बिल्लर पाथ ॥ साहिब० ॥ ५॥ किहां पंचायण किदां मृगबाल, किदां ठीकर किहां सोवनथाल ॥ साहिब० ॥ किहां कोज्व किदां कूर कपूर, किहां कुकश ने किहां घृतपूर ॥ साहिब० ॥६॥ किदां शून्य वेडी किदां आराम, किदां अन्यायी किहां नृप राम ॥ सादिव०॥ किदां वाघ ने किदां वली
गग, किदां दयाधरम किहां वली याग॥ साहिब० ॥७॥ | अर्थ-हवे आम्ल एटले खाटां धीगं वचन कहे . बीजु वली (बहु के० ) घणा (नूप के०)। राजा ते श्रीपालना पदपंकजने नत्ति अनुरूप एटले अनुकूल नक्तिए करीने सेवे , पण तमे
पोताना थका तेनी सेवा करवा श्राव्या नहीं, तेथी विरोध उपजाव्यो, तोते विरोधनो शोध कर-8 हैवाने ते श्रीपाल शुं असमर्थ डे ? (नवि के०) ना, असमर्थ नथी ॥४॥तेनामां अने तमारामांडू है तो घणोज अंतर , ते ढुं कहुं बुं, सांजलो. क्यां तो सरशवनो एक दाणो अने क्या मेरु पर्वत !
वली क्यां तारानुं तेज अने क्यां शरद पूनमना चंडमानुं तेज ! क्या खद्योत एटले आगीयो जी-2 वमो उडे ने तेनुं तेज अने क्या दिननाथ जे सूर्य उगे ने तेनुं तेज ! वली क्यां सायर एटले. समुनी लहेर अने क्या बिब्बर पाथ एटले एक खाबोचीयानी लहेर ! ॥५॥ वली क्यां पंचा-6 नन जे सिंह तेनुं बल अने क्यां मृगलाना बालकनुं बल ! तथा क्या एक ठीकरानी शोजा अने
PRAKACANCICICAIAAICROGACACHCARECORGANGA
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #274
--------------------------------------------------------------------------
________________
SARASWAGAR
श्रीराक्यां एक सोनाना थालनी शोना ! तथा क्या कोजाना धान्यनुं जोजन श्रने क्या कपूर समान खंग.४
उज्ज्वल कूरनुं जोजन ! तथा क्यां कूशकाना ढोकलानुं जोजन अने क्यां घृतना पूरे सहित घेव-13 ॥१३॥
रनुं जोजन ! ॥ ६ ॥ वली क्यां शून्य वगमानी शोना अने क्यां श्राराम एटले वाडी बगीचानी शोला ! वली क्यां ते अन्यायी राजाउँ अने क्यां श्रीरामचंजजी जेवा न्यायवंत राजा ! तथा क्यां वाघनुं बल अने क्यां बाग एटले बोकमानुं बल ! वली क्यां दयामय धर्म अने क्यां वली | याग जे पापारंज सहित यधर्म ! ॥७॥
किहां जूठ ने किदां वली साच,किहां रतन किहां खंडित काच ॥सादिव०॥ चढते उठे ठे श्रीपाल, पडते तुम सरिखा नूपाल ॥ साहिब० ॥७॥ जो तुं नवि निज जीवित रुह, तो प्रणमी करे तेहज तुझ ॥ सादिब० ॥
जो गर्वित ने देखी रऊ, तो रण करवा थाये सज ॥ साहिब० ॥ ए॥ अर्थ-वली क्या ते जूठ बोलनारो श्रने क्यां सत्य नाषण करनारो ! तथा क्यां ते रत्ननी शोना 2 अने क्या काचना कटकानी शोना ! तो हे राजन् ! था श्राटलां गं जे में तमोने कह्यां, ते माहे जे चडतां गं कह्यां तेवो तो श्रीपाल राजा जाणवो, अने जे पडतां उंग कह्यां ते समान 8 तमारा सरखा राजा जाणवा. इहां चोथी गाथाश्री आठमी गाथा सुधीनी पांच गाथामां खाटां वचन कह्यां ने ॥ ७॥ हवे कटु वचन कहे जे के हे राजन् ! जो तुं तारा पोताना जीवितव्य ॥१३५॥ उपर रुष्ट थयो न हो तो यावीने श्रीपालने प्रणमीने तेनेज (तुके) संतुष्ट कर, अथवा
श्रीपाल राजाने प्रणाम कर तो तेज पोतानी मेले तारा उपर संतुष्ट थशे, अने जो तुं ( रजाई ४०) राज्य देखीने गर्वित बो तो रण एटले संग्राम करवाने ( सऊ के०) सावधान थाजे ॥॥8॥
-4-155ARLES
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #275
--------------------------------------------------------------------------
________________
तस सेनासागर मांदि जाण, तुज दल साधुचूर्ण प्रमाण || सादिव ॥ महाशुं नवि कीजे जुऊ, सवि कदे एदवुं बुक प्रबुद्ध || साहिब० ॥ १० ॥ बोली एम रह्यो जव दूत, प्रजितसेन बोल्यो थइ नूत ॥ राजा नहीं ले ॥ कजे तुं तुज नृपने एम, दूतपणानो जो बे प्रेम ॥ राजा० ॥ चंपा नगरीनो राय ॥ राजा नहीं मले ॥ ११ ॥ यदि मध्य अंते वे जाण, मधुर प्रान्त कटु जेद प्रमाण || राजा० ॥ जोजन वचने सम परिणाम, तिणे चतुरमुख तहारुं नाम ॥ राजा० ॥ १२ ॥
अर्थ-ल तस के० ) ते श्रीपालनी सेनारूप सागर मांहे तारुं ( दल के० ) लश्कर ते साधु जे जुवारनी घाणीना उगणानो लोट होय ते प्रमाणे ( जाए के० ) जाणजे. वली मोटानी साथे युद्ध करीए नहीं. ए रीते सर्व बुक तथा श्रबुक एटले जाप ने अजाण सर्व लोको कहे बे ॥ १० ॥ एम पूर्व कहेली रीते वचन बोलीने जे वारे दूत बोलतो बंध थयो ते वारे अजित| सेन राजा जूतावेशनी पेरे क्रोध युक्त थइ बोल्यो के जो साचो हूतपणानो तुजने प्रेम बे तो हुं कहुं हुं तेज प्रमाणे तुं तारा राजाने जश्ने एम कहेजे के बीजा राजा श्रावीने तुजने मलीने नम्या, पण या चंपा नगरीनो जितसेन राजा तुजने मले नहीं यने नमे पण नहीं ॥ ११ ॥ हे डूत ! तुं जे मारी यागल वचन बोल्यो ते ( आदि के० ) प्रथम मधुर ने ( मध्य के० ) वचमां आम्ल एटले खाटां तथा अंतमां कटु एटले कमवां ते तारां वचन ने जोजन ए बेहुने | मांहोमांहे सम एटले सरखां परिणाम बे, एटले ( जेह प्रमाण के० ) जे प्रमाणे जोजन पण आमां मिष्ट ने वचमां आम्ल तथा अंते तिक्त जमाय बे, तेम ए तारां वचन पण ( जाए के० ) जाणी लेजे, माटे ए त्रण गुण तारा मुखमां बे, तेथी तारुं नाम चतुरमुख बे ॥ १२ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #276
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंक
श्री राणी निज नहीं तेद अमारो कोन, शत्रुन्नाव वहीए ने दोन ॥ राजा ॥ जीवतो ॥१३६॥
मूक्यो जाणी रे बाल, तेणे अमे निबल सबल श्रीपाल ॥राजा ॥१३॥ निज जीवितने हुं नहीं रुठ, रुठ्यो तस जमराय अपूठ॥राजा ॥ जेणे जगाव्यो सूतो सिंह, मुज कोपे तस न रहे लीह ॥राजा ॥१४॥ जस बल सायर साथु प्राय, जेहना बल ते बीजा राय ॥राजा० ॥ तेदमां हुं वमवानल जाण, सवि ते शोधू न करूं काण ॥राजा ॥ १५॥ कहेजे दूत तुं वेगो जाइ, आबुं बुं तुज पूरे धा॥राजा० ॥ बल परखीजे रण
मेदान, खमगनी पृथ्वी ने विद्यानुं दान ॥राजा ॥१६॥ अर्थ-हवे जेटलां वचन पूते कह्यां हतां ते सर्वनो उत्तर राजा आपे ले के हे व्रत ! तुं कहे बे के श्रीपाल तमारो , पण ते अमारो कोइ नथी ! अने कदापि ते अमारो ने तोपण अमो बेहु पोतपोतामां शत्रुनावे वहीए बीए, एटले ते अमारो शत्रु डे ने अमे तेना शत्रु बीए. श्रमे एने बालक जाणीने जीवतो मूक्यो हतो, तेणे हवे अमे निर्बल थया अने ए श्रीपाल बलवान् । थयो॥१३॥वली हुं मारा जीवितने तो रुग्यो नथी, पण अपूगे एटले उलटो यमराजा तेनी उपर रुग्यो । /, कारण के जेणे सूता सिंहने आवी जगाव्यो, ते माटे हवे मारो कोप थयो तो एनी (लीह8 के०) रेखामात्र पण रहे नहीं ॥ १४ ॥ वली (जस के०) जेमनुं श्रीपालना सैन्यसमुअमां साथवर प्रमाणे बल बे एवा निर्बल तो बीजा राजा जाणवा, परंतु मने तो तुंतेनी समुफ सरखी सेनामा वमवा-| नल अग्नि सरखो जाणजे. हुं सर्व श्रीपालना सैन्यरूप समुज्ने शोषी लजं, परंतु तेमां उप राखुं नहीं ॥१३६॥ ॥ १५ ॥ माटे हे पूत ! तुं वेगो एटले उतावलो जश्ने तारा राजाने कहेजे ने ढुं पण तारी पनवाडेज धायो थको लमा करवा माटे श्रावु , बलनी परीक्षा रणमेदानमा करीए, ए वचनमा
ACACACACACANCIANCACACANCE
Jan Education intentional
For Personal and Private Use Only
Page #277
--------------------------------------------------------------------------
________________
वाद शा कामनो ! जेनुं खांडं गाजतुं तेनी पृथ्वी जाणवी, अने जेनी विद्या जागती होय तेनुं । दान जाणवू. अथवा पृथ्वी तो खांमावालानी बे, पण निर्माल्यनी नथी; अने विद्याना दान 8 समान वीजुं दान नथी ॥ १६ ॥
चोथे खंभे त्रीजी ढाल, पूरण हुइ ए राग बंगाल ॥राजा० ॥
सिचक्रगुण गावे जेह, विनय सुजश सुख पावे तेद ॥राजा ॥१७॥ अर्थ-चोथा खंडने विषे त्रीजी ढाल बंगाल रागमां पूर्ण थ. जे प्राणी श्रीसिमचक्रजीना गुण गाय ते प्राणी विनय, सुयशरूप सुख पामे ॥ १७ ॥
॥दोहा ॥ वचन कहे वयरी तणां, दूत जइ अति वेग॥ कडुआं काने ते सुणी, हु श्रीपाल सतेग ॥१॥ उच्च नूमि तटिनीतटे, सेना करी चतुरंग ॥ चंपा दिशि जश तिणे दीया, पट आवास उत्तंग॥२॥सामो आव्यो सबल तव, अजितसेन नरनाद ॥ मांदोमांदि दल बिहुँ मल्यां, सग
रव अधिक उत्साह ॥३॥ अर्थ-हवे वैरीनां वचन सांजलीने तिहाथी ते अत्यंत उतावला जश्ने ते श्रीपालने श्रावी संजलाव्या. ते कटु वचन काने सांजलीने श्रीपाल राजा ( सतेग के० ) तरवारे सहित थयो,81 एटले लमा करवाने जमाल थयो ॥१॥ पड़ी तटिनी जे नदी तेना तट उपर जिहां ऊंची नूमि , तिहां चतुरंगिणी सेना तैयार करीने श्रीपाल राजाए चंपा नगरीनी दिशाए जश् (उत्तंग २ के० ) घणा उंचां एवां (पट के० ) वस्त्र तेना आवास एटले तंबु दीधा, अर्थात् तंबु खमा कस्या || ॥ २॥ तेनी सामो अजितसेन राजा पण सबल सैन्य सहित आव्यो, ते बेहु ( दल के० ) कटक
Jan Educati
e mational
For Personal and Private Use Only
.
Page #278
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥१३॥
श्री राम
माहोमांदे आवी मख्यां, पण ते केवां वे ? तो के ( सगरव के० ) गर्वे करी सहित अने संग्राम खंग.४ करवानो अधिक उत्साह धरता जे ॥३॥
॥ ढाल चोयी ॥ कडखानी देशी ॥ चंग रणरंग मंगल हुआं अति घणां, नूरि रणतूर अविदूर वाजे ॥ कौतुकी लाख देखण मल्या देवता, नाद दुन्नितणे गयण गाजे॥ चंग ॥१॥ जग्रताकरण रणनूमि तिहां शोधीए, रोधीए अवधि करी शस्त्रपूजा ॥ बोधीए सुन्नट कुल वंश शंसा करी, योधीए कवण विण
तुज दूजा ॥ चंग॥२॥ अर्थ-( चंग के०) मनोहर, घणो सुंदर एवो जे ( रणरंग के० ) संग्राम करवानो उत्कर्ष, ते 8 ४ करवा माटे बंदिजन सिंधूमा रागमा अत्यंत मनने श्राह्लादकारक एवां घणां मांगलिक करता है हवा, एटले जे कार्यनो प्रारंन करीए तेनी धुरे मंगल विना ते कार्यनी सिकि थाय नहीं, ते
माटे घणां मंगल थयां. वली (जूरि के) घणां एवां ( रणतूर के०) संग्रामनां काहली, शरणा, प्रमुख वाजित्र ते ( अविर के० ) अत्यंत नजीक अथवा अस्खलित वाजे, पण माहोमांहे सघन 3 जिन्न चिन्न स्वरे वाजे एम नहीं. एवां घणां वाजिन वाजते थके वली तिहां सैन्यने विषे युद्ध जोवानो अनिलाष ने जेमने एवा निकटवर्ती कौतुकी लकवरू देवता ते युझनुं कौतुक जोवा । माटे मट्या . ते देवता पण आकाशे रह्या थका इंसुनि वगामी रह्या , तेना (नाद के०) शब्दे करी तमाम गयण जे श्राकाश ते गर्जारव करी रह्यं . ते शब्दे करी बेहु सैन्यना सुन-13॥१३॥ टोने मांहोमांहे युद्ध करवानो अभिलाष वधतो हवो ॥१॥ हवे अमे इहां संग्राम करशुं, एवी18 (उग्रताकरण के० ) मोटा करवाने अर्थे तिहां रणनूमि एटले संग्राम करवानी चूमिने (शोधीए ।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #279
--------------------------------------------------------------------------
________________
के) कचरो, कांटो, कांकरो काढी नाखी शोधीने साफ करे, तथा उंची नीची विषम टालीने बरोबर सरखी करे. पड़ी ते जगानी अवधि एटले मर्यादा करी पोतानी हद सुधी निशान स्थापीने तेटली नूमि पोतपोताने वास्ते रोधे एटले रोधी राखे. पठी बेहु सैन्यना सुजट मांहोमांहे पोतपोतानां शस्त्र जे खड्गादिक श्रायुध तेनी पुष्प, चंदन, धूप, दीपे करी पूजा करे. वली बेहु सैन्यमा ( बोधीए के०) बंदिजन जे बिरुदावलीना बोलनारा नाट, चारण प्रमुख, ते सुनटोना कुल वंश ते पिता कल अने माताना पदनो (वंश के०) जाति एटले आ अमुक सुनट श्रमक कुलनो उपन्यो बे, ए अमुक जातिनो बे, एवी रीते कुल वंशनी (शंसा के० ) प्रशंसा करीने कहे डे के जला जला हे सुनटो ! तमने शाबास ले ! आज तमारा खामीनुं काम पड्यु डे, माटे स्वामिजक्तनुं ए लक्षण बे के जीवितव्य पर्यंत स्वामीना काममां पालो पग नरवोज नहीं. ते माटे अहो सुन्नटो ! आज | हां ( विण तुऊ पूजा के० ) तमारा विना बीजा कोण ( योधीए के०) जुऊशे ! एवी कीर्ति बोलीने सुनटोने शुरपणुं दृढावे वे ॥२॥
चरचीए चारु चंदनरसे सुन्नट तनु, अरचीए चंपके मुकुट सीसे ॥
सोदीए दब वर वीरवलयेतथा,कल्पतरुपरिबन्या सुनटदीसे॥चंग॥३॥ | अर्थ-वली ( चारु के० ) मनोहर सुगंध युक्त एवो चंदनरस एटले बावना चंदननो रस, तेणे । करी ( सुलट के०) सुन्नटो तनु एटले शरीरने (चरचीए के० ) चर्चे बे, विलेपन करे , ते
व थया बे, ते योका युरूमांधी जय मेलव्या विना पाला हवेज नहीं. आज || पण लमाश्मां जे केसरियां वस्त्र करे नेते युष्मांधी पाठा फरता नथी, अवश्य युद्धने जीतेज अने जो न जीते तोपण जीवता नासी जाय नहीं. ए बे मार्ग तेमना बे. तथा वली (चंपके के०) चंपक वृदनां फूलनां बोगांउए करी सुनटो पोतानां माथांने विषे रहेला मुकुटने अर्चे ,
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #280
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा एटले फूलनां गोगां मुकुटमा लटकावे , ते पण युद्धमाथी पाठा पग जरे नहीं, एम लोकोक्ति
है. तेमज केटलाएक सुनटो पोताना (हब के०) हाथने विषे ( वर के०) श्रेष्ठ एवां ( वीर-1 ॥१३॥
वलय के० ) वीरपणानां कमां पहेरे , एटले वीरवलये करी जेना हाथ शोने ३ ते पण वीरनु । बिरुद धारण करे , माटे ते संग्राममांथी पाग पग जरे नहीं. एवी रीते चंदने विलेपित अंगवाला तथा चंपानां फूलोनां बोगां धरनारा अने वीरवलय पहेरनारा इत्यादिक शोनाए करी सुशोजित थका ते सुनटो जाणीए साक्षात् कल्पवृदाज होय नहीं ? तेनी परे बन्या थका दीसे डे ॥३॥
को जननी कहे जनक मत लाजवे, कोई कदे मादरं बिरुद राखे ॥ जनक पति पुत्र तिहुं वीर जश उजला, सोदि धन जगतमां अ
णीय आखे ॥ चंग ॥४॥ | अर्थ-हवे ते सुनटो घरथी तैयारी करी युद्ध करवा माटे नीकल्या, ते वखते कोश्क सुजट में पोतानी मातानी तेमज कोश्क पोतानी स्त्रीनी शीख मागे, ते वारे तेने ( जननी के० ) माता एम कहे जे के हे पुत्र ! तारा ( जनक के०) पिता महा शूरवीर हता, को स्थले संग्राममांथी। पाग हव्या नथी, एवा वीरविरुदना धारक हता, माटे तेने तुं लजावीश नहीं, तुं पण जयवंत थइने मुजने मुख देखामजे, अथवा शत्रुने हणतां मरण पामजे, पण नासजे नहीं. वली कोश्क है। सुनटनी माता एम कहे डे के तुं मारु विरुद राखजे, केमके हुँ वीरपुत्री अने वीरपत्नी ए वे है। बिरुदधारक तो कहेवाणी बुं, एटले मारो पिता अने मारो गरि ए बे तो शूरवीर थ गया बे, हवे तुं पण शूरवीर थजे के जेणे करी हुँ त्रीजा वीरप्रसूता नामे |बरुदनी धारण करनारी पण कहे-18|॥१३॥ बा! एटले जनक, पति ने पुत्र, एत्रणे जेना वीर यशे करी नजला जगत्रयमां आखी अ-15 पीए रहे ते धन्य. एवां मातानां वचन सांजली ते सुनट वीरपणुं श्रादरी संग्राममां आव्या ॥४॥
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #281
--------------------------------------------------------------------------
________________
कोइ रमणी कहे दसीय तुं सदीश किम, समर करवाल शर कुंत धारा ॥ नयणबाणे दण्यो तुज में वश कीयो, तिहां न धीरज रह्यो कर विचारा ॥ चंग ॥ ५ ॥ कोइ कहे माहरो मोद तुं मत करे, मरण जीवन तुज न पीठ गंडुं॥ अधररस अमृतरस दोय तुज सुलन, जगत
जय हेतु दो अचल खांडं ॥ चंग ॥६॥ अर्थ-वली कोश्क सुजट सन्न थर पोतानी स्त्रीनी शीख मागे , ते वारे ते स्त्री तेनी सामुं जोइ हसीने कहे जे के हे स्वामिन् ! तुं युद्ध करवा जाय डे, पण तिहां तो शूरवीर अने* धैर्यवंतनुं काम , ते तारामां देखातुं नथी, तो ( समर के० ) संग्रामने विषे ( करवाल के० )| खड्ग, (शर के० ) बाण अने ( कुंत के) नालां तेनी तीक्ष्ण एवी धाराऊने तुं केम सहन करी शकीश ? ए वातनुं मने श्राश्चर्य लागे , कारण के तुं सहन करी शकीश एवी मने 8 का प्रतीति यावती नथी. एवी स्त्रीनी वाणी सांजलीने सुनट बोल्यो के हे प्रिये ! तें मारी अधीरता क्यां दीठी ? ते बारे स्त्री बोली के रतिने अवसरे में मारां नेत्ररूप बाणे करीने हएयो, तेथी तुं विधाइ गयो, अने तुजने में वश करी लीधो, तो त्यां तारुं धैर्य निश्च-12 लताए रडुं नहीं, माटे शत्रुनां बाणो केम सहन करीश ? तेनो विचार तुं कर. ते सांजली
यो के हे प्रिये ! रतिने अवसरे तो उ. ब्रह्मा, हरि, हरादिक जे सहस्रगमे श्रदौ- लहिणी सैन्यने जीते एवा सामर्थ्यवाला हता, तोपण ते स्त्रीनी आगल निर्वल थया तो माहं शुंगजुंने ?
॥५॥ तथा कोश्क सुनटनी स्त्री कहे डे के तुं मनमा लावीश नहीं के कदाचित् संग्राममा हुँ मरण | पामीश तो पठी मारी स्त्री कोना आधारे जीवशे? एवो तुं मारो मोह करीश नहीं,केमके मारु मर| तथा जीवq बधुं तारी पळवाडेज . हुँ तारी पीप जमीश नहीं, एटले तुं जो संग्राममां जीत करी
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #282
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराकुशले घेर आवीश तो मंगलव्ये तुने वधावीने हुँ घरमां तेडी जश्श,अने कदाचित् संग्राममां मरण|| खं. ४ ॥१३॥
पामीश तो हुँ पण तारी पळवाडे अग्निप्रवेश करी मरण पामीश. ए रीते एक तो अधररस एटले | होनो रस अने बीजो अमृतरस, ए बे रस तुजने सुलन . ते केवी रीते? तो के जो शत्रुनो पराजय
करीने जीवतो घेर श्रावीश तो हुँ तुजने थानंदित थकी स्मरातुर थश्ने रतिने अवसरे आलिंगन 8 हैदश्श. ते समये तुं मारा होना चुंबनरूप रसनो स्वाद पामीश, अने जो कदापि संग्राममां तारा
प्राणनो त्याग थशे तो तुं स्वर्गने विषे देवता थश्श, अने हुँ तारी पनवाडे अग्निप्रवेश करी सती प्राथने देवांगना थश्श तो त्यां देवतानी पदवीमां अमृतरस सलन जे. एटले जो जीवतो।
रह्यो तो अधररस अने मरण पाम्यो तो अमृतरस, ए बे तुजने सुलन , माटे जे कामे जाय 8 | तेमां सावधान थश्ने स्वामीनुं कार्य सुधारजे, पण कायर थश्ने पाठा पग जरीश नहीं. जेथी। हे स्वामिन् !त्रण जगतमां जययशनुं हेतु एवं तारे अचल खांडं (हो के०) था, केमके जे शूर
रण पाम ब तन था लोकमां बलवत्तर सुनटपणानो यश मले बे, अने परलो-12 कमां देवपद पाम्या थका यशकांतिनुं दीप्तिपणुं प्राप्त थाय, अने जे कायर थाय ते आ लोकमां 8 अने परलोकमां अपयशनुं कारण थ पडे ॥ ६॥
इम अधिक कौतुके वीररस जागते, लागते वचन हुआ सुन्नट ताता ॥
सूरपण क्रूर हुतिमिरदव खंडवा,पूर्व दिशि दाखवे किरण रातां॥चंग॥७॥ | अर्थ-(इम के० ) ए रीते रात्रिए जे वारे सर्व सुजटो युद्धमा जवाने तैयार थाय , ते वखते है। कोश्नी स्त्रीनां, कोश्नी मातानां वेधालां वचन सांजलते तथा वली बंदिजनोनी विरुदावलीना 31 पाठमां पोताना वंशनी प्रशंसा सांजलते श्रने एवां कौतुके अधिक वीररसनो उम थाते एटले शूर-18
॥१३॥ वीर तो प्रथमथीज , अने वली नक्ति युक्तिनां वचन ते सुनटोने काने लाग्यां, तेथी ते लागतां| वचनने योगे करी वली अधिक वीररसे जाग्रत श्रया थका ते सुनटो युरू करवाने घणा ताता थया, IP
-9-ॐॐॐ
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #283
--------------------------------------------------------------------------
________________
एटले तेजवंत थया, तेमनां शरीरमा रक्त वर्ण प्रगट थयो. जेम कोश्क प्राणी प्रथमथी कषायवंत है| तो बेज, ते वली विशेष कषायोदय थवा योग्य एवां कोश्नां वचन सांजले ते वारे तेने विशेषेक
करी कषायोजम थाय, तेम इहां पण सर्व सुनटो विशेष वीररसमय थया थका युझ जणी तैयार | थिया. ए सर्व व्यतिकर रात्रि संबंधी जाणवो. हवे प्रजात थवा लाग्यो, ते वारे कवीश्वर एवी
संजावना करे जे जे सूर्ये पूर्वे विचार कस्यो हतो के बेहु राजानां लश्कर श्राव्यां , माटे बेहुनु । साम्य थाय तो सारी वात, परंतु तेम तो थयुं नहीं, अने बेहु लश्कर माहोमांहे एक बीजानो , नाश करवाने तैयार थयां, ते जो सूर्ये पण विचाऱ्या जे हवे हुँ पण मारा शत्रुनो नाश करूं. एम3
चिंतवी पोते निषध पर्वतना कूटांतराले रह्यो हतो तिहाथी क्रूर थर रक्तपणुं श्रादरी लालचोल &ानेत्र करीने पोतानो शत्रु जे तिमिरदल एटले अंधकारनो समूह तेनुं खेमन दिशि जणि रातां किरणने देखाडे , एटले प्रजातकाल थयो ते वारे रक्त सूर्योदय पण थयो, श्रने सुनटो पण युद्ध करवाने ताता एटले रक्त वर्णवाला थया ॥७॥
रोपी रणथंन संरंन करी अति घणो, दोइ दल सुनट तव सबल जुळे ॥
नूमिनेनोगता जोशनिज योग्यता,अमल आरोगता रणन मुं॥चंग॥॥ अर्थ-हवे जे प्रथम बेहु सैन्यवालाए संग्राम करवानी नूमि शुरू करी हती तेना मध्य 2 नागे रणनो स्तंन रोपीने बे दिशाए बेहु सैन्यवालाए पोतपोतानी नूमिका स्थापी, अने पडी हाथी,81 घोमा, रथ अने पाला सुजटनो समूह थश्ने अत्यंत घणो युझनो (संरंज के०) प्रारंज करीने 8 अथवा संरंन एटले क्रोधयुक्त थश्ने ( दोश् दल के० ) बेहु कटकवाला सबल जुळे, एटले बल सहित थया थका माहोमांहे ( जुके के०) युद्ध करवा मंड्या. तिहां घणा दिवसनी सुनटोनां| मनमा जे युझ करवानी वांग हती ते अहीं पूर्ण करे , ने विचारे ने जे अमारा खामी आगल
GANESWAR
+%A5
sin Education
International
For Personal and Private Use Only
Page #284
--------------------------------------------------------------------------
________________
945*50**
श्री रामारो मुजरो थाय, एम जाणी हर्षथी संग्राम करे जे. ते संग्राम मांहे जे मोटा मोटा हाकम, खंग.४
फोजदार, सेनाधिपति, पटाना खेलनार, अमीर, उमरावो तथा सीपा ते राजानी आपेली ॥२४॥
नूमिनी नोग्यता जे जोगवq ते प्रमाणे पोतानी योग्यता जोश्ने विचारे जे अमे घणा दिवस थया 2 स्वामीनी आपेली धरती गरास खाइए बीए, माटे आज अमारा स्वामीने कार्ये संग्राममा लम अमने योग्य बे, एवी योग्यता जो अधिक लडे वे. वली श्रमल ते कसंवा काढी माहोमांहे थारोगता थका पोतपोतानी मर्यादा तथा कुलीनपणुं विचारी अत्यंत युद्ध करता थका रणसंग्रा-ई। ममां मुंकाता नथी. तेनां मनमां एवो विचार ले के जेम तेम करी अमारा स्वामीनी जीत थाय, पण ते तो पुण्याधीन वात , तथापि निमित्तशास्त्रमा कयु डे के जेनुं सैन्य उंची नूमिकाए न-5 तमु होय, वली जे न्यायवंत होय, तेनी जीत थाय. ते सर्व प्रकारनी शुद्धता तो हाल श्रीपाल| राजाने ने. वली पुण्यप्रकृति पण एनी सारी बे, तेथी श्रीपालनो जय थाय एबुं देखाय ॥७॥
नीर जिम तीर वरसे तदा योधघन, संचरे बग परे धवल नेजा ॥गाज
दलसाज शतु आइ पानस तणी, वीज जिम कुंत चमके सतेजा॥चंग ॥॥ अर्थ-हवे संग्रामने वर्षातुनी उपमाए वर्णवे ने. संग्राममा (योधन के ) सुनटोए काला । सन्नाह पहेस्यां , तेणे करीने घन एटले मेघ सदृश देखाय , ते योझा (तदा के०) ते वखते है (नीर जिम तीर के० ) पाणीनी पेरे तीर एटले बाण तेनो वरसाद वरसावे , वली वरसादमा बगलां पदोनो संचार होय तेनी परे हां ( संचरे धवल नेजा के० ) सुनटोना हाथमां धोला |
॥१४॥ ते सफेद नेजा ने तेने लश्ने सुनटो शूरपणे नख्या गम गम दोमी रह्या बे, तेथी ते नेजा संचरता थका फरकी रह्या , तथा ( दलसाज के०) लश्करनो साज जे हाथी, घोमा, सुनट प्रमुखना ।
*
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #285
--------------------------------------------------------------------------
________________
- वृंद, ते मांहोमांहे कोलाहल शब्द करी रह्या ठे, तेनो पमबंदो पडे ते गाजी रह्यो , ते जाणीव
वरसादमां गाज थती होय नहीं ? तेवो जणाय . तथा (कुंत चमके सतेजा के० ) तेजे। करी सहित एटले तेजवंतां नालांनी अणी चमकती जलकी रही , ते ( वीज जिम के०)
वीजलीनी पेरे जणाय . ए रीते ते संग्राम जोश्ने (झतु थाइ पाउस तणी के ) जाणे | देवरसादनी तुज आवी होय नहीं ? एवो संग्राम देखाय ॥ ए॥
नंड ब्रह्मंड शत खंड जे करी शके, उरले तेहवा नालगोला ॥ वरसता अगनि रणमगन रोषेनस्या, मानुंए यम तणा नयण
मोला ॥ चंग ॥१०॥ अर्थ-हवे नालमाथी गोला बूटे ने तेनी उपर कवीश्वर उत्प्रेक्षा करे ने के (नंग के० ) कुंजारना घर, जूनुं नाजन, तेने जेम पथरो मारीने सो कटका करी नाखीए तेनी पेरे (ब्रह्मंग के०) वर्ग, मृत्यु अने पातालरूप ब्रह्मांम, तेना पण जे ( शत खंम के ) सो खंग एटले सेंकमोगमे । खंमोखंग करी शके तेवा महाबलवत्तर महासामर्थ्यवान् (नालगोला के०) नालो मांहेश्री गलोला ठाम गम उबले बे. ते जे सैन्यना मनुष्यने नजीक श्रावी लागे तेना प्राण लीए . ते नालगोला केवा ? तो के (वरसता अगनि के०) अग्निना ससूहने बरसता थका रणमगन एटले संग्राममां तन्मय थका रोषे जस्या एटले क्रोधे नया राता . ते गोला एम जाणे ने के अमे 81 बतां शत्रु केम रहे ? इहां कवि युक्ति कहे जे के हुँ एम मार्नु बु जे ए नालगोला अग्नि वरसता नथी, परंतु सुनटोना प्राण हरण करवाने विकास्या रणमार्गे जाणीए यम राजानां नेत्रना डोलाज
ने ? एटले जेम यम राजानां नेत्रना डोला जेनी नपर पडे तेना प्राण लीए, तेम ए नालगोला ४ापण जेनी उपर पडे तेना प्राण लीए ॥१०॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #286
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राणा
केश दे शरे अरि तणां शिर सुन्नट, आवतां के अरिवाण काले ॥ केश खंग.४ ॥१४॥
असि बिन्न करिकुंन मुगताफले, ब्रह्मरथविदग मुख ग्रास घाले ॥ चंग ॥११॥ मद्यरस सद्य अनवद्य कविपद्यन्नर, बंदिजन बिरुदथी अधिक रसिया ॥ खोज अरिफोजनी मोज धरी नवि करे, चमकनर धमक दर
मांदि धसीया ॥ चंग ॥१२॥ | अर्थ-हवे ते सैन्यमां केवा केवा प्रकारनी कलाउँवाला सुनटो ले ? ते कहे जे. केटलाएका सुजट तो जेम खगना प्रहारे करी शिर बेदाय तेम ( शरे के० ) अर्धचंडादिक बाणे करीने (अरि ले। तणां शिर के०) शत्रुसुनटनां मस्तकने दे दे, एवी कलावाला ने. वली केटलाएक सुनट तो है युद्धमा चारे तरफ नजर राखता ( अरि के० ) शत्रुनां सामां आवतां बाणने वचमांधीज काली
राखे बे, तथा केटलाएक पोता उपर श्रावतां बाणने वचमांथीज बेदी नाखे , पण आगल है वधवा देता नथी, पोताना अंग उपर श्राववा देता नथी, एवा लघुलाघवी कलावान् सुनटो ,
ते जाणीए युद्धमां रमतज करी रह्या होय नहीं ? हवे सुजटोनुं जुजबल कहे जे. केटलाएक है सुजट (असि के०) तरवार तेना एकज घाए करी (करिकुंज के०) हाथीना कुंनस्थलने (बिन्न के) बेदी नाखे बे, विदारी नाखे ने. तिहां नाक जातिना हाथीना कनस्थल मांहे जे मोतीनो 8 राशि होय ते तेमांथी वेरा पडे ठे, ते मोतीनो ग्रहण करनार श्हां कोण होय ? तिहां कवि संजावना करे डे के ( ब्रह्मरथ विहग के० ) ब्रह्माना रथमां हंस पदी जोडेला डे तेनां मुखने विषे । (ग्रास घाले के०) चण चुगावे , माटेज सुलटो ते हाथीना कुंजस्थलने जाणे बेदता होय नहीं ?|P॥१४॥ एम लागे बे. एवा अबीह सुनट जे जे ते बले करी एक घाए हाथीना मस्तकने विदारी नाखे । ११॥ हवे सुजटोनो रणरस वखाणे . (सद्य के ) तत्कालनो उपन्यो जे (मद्यरस के)
Mainminducationalist
For Personal and Private Use Only
Page #287
--------------------------------------------------------------------------
________________
RSS RSSHRESS
REG
मदिरानो रस एटले तत्कालनी उपनी मदिरामां केफ घणो होय, ते पीतां वेंतज मन|| चूर्णित थ जाय, विकल दशाने पामी जाय, माटे तत्कालनो उपन्यो मदिरारस थने ( अनवद्य के) निषण एवां कविपद्य एटले गण प्रमुखना जाण, पिंगल तथा अलंकारना पाठी जरत सदृश जे कवित, तेनां रचेला दग्धादरादि दोषरहित एवां पद्य जे कवित, सवैया, कुंमलिया प्रमुख तेनो | (जर के० ) समूह, तेणे करी बंदिजन जे नाट, चारणादिक, ते विरुदावली वंशावली बोली रह्या जे. ते सांजलीने शत्रुनी फोजनी खोज जे चिंता ते पोते मोज धरता न करे, एटले ए केटला ! अमे केटला बीए ! अथवा ए घणा ने ! एम रसिक एवा सुनटजन अधिक थनिमाने चड्या थका (अरिफोजनी के० ) शत्रुनी फोजनी (खोज के० ) रखे अमने ए मारी नाखे, एवी चिंता राख्या विना तेनी अवगणना करीने (मोज धरी के०) पोताना दिलनी आनंद खुश बखतीए । करी (चमकलर के०) रोषने जर एटले समूहे अकस्मात् एटले आगली सामी फोजवालाने गवेषणा नथी जे ए थोडे परिवारे श्रावीने अमारी साथे बाधशे. तेवा अकस्माते (धमक दश के ) धमक दश्ने शीघ्रपणे धमकामां गुलाट मात्यानी पेठे अथवा सिंहनी पेरे पराक्रम धरीने शत्रुनी | फोज मांहे (धसीया के० ) पेठा एटले माहोमांहे युद्ध करता थया, अर्थात् एकाएक सामानी| फोज सेलनेल करी दीधी ॥ १५ ॥
वाल विकराल करवाल दत सुनटशिर, वेग उलित रवि राह माने ॥ धूलि धोरणी मिलित गगनगंगाकमल, कोटि अंतरित रथ रदत
गने ॥ चंग ॥१३॥ ___ अर्थ-हवे ए महायुद्ध थाय , एटले गजे गज, घोडे घोमा, रथे रथ अने पाले पाला, एम सरखे सरखां माहोमांहे बेहु सैन्य युद्ध करतां कोश्क खङ्ग धारण करनारो सुनट ते सामा खड्ग
5SMS
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #288
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
-45
॥९४शा
धारी सुनटने कहेवा लाग्यो के हुँ तारा उपर आव्यो ढुं, माटे खबर राखजे ! एम कही लघु- खम.४ लाघवी कलाए दक्षिण करमा ग्रहण करेली (करवाल के०) तरवार, तेणे करी शत्रुना स्कंध उपर प्रहार कस्यो, तेणे करी (हत के ) हणायेधुं जे सुजटर्नु मस्तक ते केवु डे ? तो के (वाल ३ विकराल के० ) वाले करी विकराल एटले बीहामणुं देखाय ने, अर्थात् तेना मस्तकमां मोटा केशपाश बूटा थर गयेला दे एवं . ते जे वारे बेदाणुं ते वारे ते सुनट शूरपणामां हतो, तेथी। तामसी प्रकृतिना पर्याय तेना मस्तकमा रही गया बे, तेने योगे (वेग उलित के०) वेगे करी उतावलथी जंचं उबलवा लाग्युं. तिहां कवि उत्प्रेक्षा करने के संग्राम आकरो थाय , तेमां सुनट वाहनादिकना पादप्रहारथी रजनो समूह उडे ने ते श्राकाश सुधी पहोंच्यो बे, तेणे करी आकाश ग गयुं बे, माटे सूर्य ढंका गयेलो , तेथी देखवामां आवतो नथी, माटे एम लागे ने जे ते 8 सुजट जे मस्तक उड्युं ते केशना योगे करी श्याम देखाय , तेथी धम विनानुं एकदूं मस्तक देखीने “रवि राहु माने" ( रवि के ) सूर्य तेणे तेने राहु करी मान्यो, तेथी पोताना शत्रुने । अकस्मात् सामो आवतो देखी सूर्ये जय पामीने जाए जे राहु मुजने ग्रसवा श्राव्यो बे, तेश्री पोताना रथ सहित तिहांथी नासीने धूलनी जे धोरणी एटले समूह तेने मलवे करी गगन-| गंगा जे आकाशगंगा तेनां कमलो धूले करी ढंका गयां बे, ते स्थानक देखीने ( कोटि अंतरित | रथ रहत बाने के ) ते गगनगंगानां कमलना कोतरमां आवी सूर्यनो रथ नो रही गयो, अथवा क्रोमोगमे कमल धूलना योगथी एक थयां ने ते मांडे जाणीए सूर्यनो रथ बनो रह्यो । बे, अर्थात् संग्रामने योगे जे धूल उमी , तेने योगे सूर्य पाठादित थयो रे ते देखातो नश्री, माटे कविए उक्ति करी ॥ १३ ॥
॥१४॥ केइ नट नार परि सीस परिहार करी, रणरसिक अधिक जुळे कबंधे ॥ पूर्ण संकेत दितदेत जय जय रवे, नृत्य मनु करत संगीतब-क्षे॥चंग॥१४॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #289
--------------------------------------------------------------------------
________________
४ अर्थ-वली सुचटनी श्रेणी माहे जुझता थका केशक सुजटनां मस्तको बेदा गयां डे, ते वारे ।
ते सुनटोनां एकलां धमज मात्र युद्ध करे , तेनी उपर कवि उत्प्रेक्षा करे ले के ( केश जट के०) कोश्क सुनटे युद्ध करतां करतां विचास्युंजे पोतानी पासे नार होय तो खुले मने युद्ध न थाय, एवं |
मनमा धारीने (नार परि सीस परिहार करी के० ) पोताना मस्तकने नारनी परे जाणीने तेने * X वेगलु मेव्युं , कारण के हलवू थवाथी युद्ध अवल रीते थाय, माटे मस्तकनो परिहार करी|
पढी ( रणरसिक के० ) रणने विषे रसिक थयो थको ( कबंधे के०) मस्तक विनाना धडे करीने है। ( अधिक जुमे के०) घणो घणो जुफे बे. हवे ते धम जे जे ते हाथमां खड्ग लश् जुळे , तेनी उत्प्रेक्षा करे ने ते एवी रीते के जाणीए ते सुनटो युद्ध करवाने सावधान थया हता, ते वारे एवो कांश संकेत कस्यो हतो जे शत्रुने जीतवो, अथवा पोताना जीवनो नेह करवो, अथवा लाखोगमे माणसोनो संहार करवो. ते (पूर्ण संकेत के० ) संकेत पूर्ण थयो जाणीने तेना (हित-15 हेत के०) हितना कारण थकी (जय जय रवे के ) जय जय शब्दे करी धम जुळे बे. हवे धड जुके ने तिहां कवि कहे डे के हुँ एम मार्नु बु जे ए धम जुतुं नथी, परंतु संग्राम करी पोते। जयपणुं पाम्युं तेने अर्थे जय जय रवे करी ( नृत्य मनु करत संगीतबके के०) जाणीए हर्षनरे |संगीतबक नाटकज करतुं होय नहीं ? ॥ १४ ॥
नूरि रणतूर पूरे गयण गमगमे, रथ सबल शूर चकचूर नांजे ॥ वीर
हक्काय गय दय पुले चिढं दिशे, जे हुवे शूर तस कोण गांजे ॥चंग॥१५॥ __ अर्थ-हवे सुन्नटोनुं शूरपणुं वखाणे . तिहां संग्राममां (नूरि के० ) घणां एवां (रणतूर के०) संग्रामनां वाजिन जे नगारां, शरणार, ढोल अने रणशिंगां प्रमुख तेना शब्दने (पूरे के० ) स-| मूहे करीने ( गयण के०) आकाश ते ( गडगडे के०) गरिव करी रयुं . ( सबल शूर के)81
CCCCCCCCCCCROCAREERICAUSA
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #290
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराबले करी सहित एवा शूरवीर सुजटो ते सामा शत्रुना जे रथ तेने एक मुष्टिना प्रहारे करी खंग. ४
(चकचूर नांजे के०) नांजीने चकचूर करी नाखे बे. एवं बल फोरवता तथा मनमां सिंहथी| ॥१३॥||पण अधिक वलनु अनिमान धरता थका युद्ध करे . वली (वीर हक्काय के०) वीर हकास्या थका
एटले वीर वीरने हकारता थका अर्थात् एक शूरवीर ने ते वीजा शूरवीरने सिंहनादे करी हकारे तू बे,पोताना समोवमीयाने मोटा शब्दे करी कहे जे के मारी सामोथाव, एम बोलावे . एवो प्रचंम शब्द सांजलीने ( गय हय पुले चिहुँ दिशे के०) घोमा अने हाश्री चारे दिशाए चीश पामता थका नाग21 जाय . हवे एवा बलिष्ठ योका संग्राम करे, पण कोश पाला पग देता नथी. जे माटे शास्त्रमा कडं जे के (जे हुवे शूर के० ) जे शूरवीर थर मरण अंगीकार करीने संग्राममा प्रवेश करे 8 (तस कोण गांजे के ) तेने कोण गंजावी शके ? एटले जे मरणनो जय राखतो होय ते तो गंजाय, परंतु जेना चित्तनी स्थिरता निश्चल ने तेनी उपर गमे तेटली शत्रुनां शस्त्रनी श्रेणी पडे तोपण तेथी ते गंजाश्ने जागी जाय नहीं ॥ १५ ॥
तेद खिणमा हुश रणमदी घोरतर, रुधिर कदम जरी अंतपुरी ॥प्रीति
हुश्पूर्ण व्यंतर तणा देवने, सुन्नटने होंश नवि रहि अधूरी॥चंग ॥१६॥ | अर्थ-एम संग्राम करतां थका (तेह के०) ते (रणमही के०) संग्राम करवानी नूमिका (खिणमां के०)। कणवारमा (घोरतर के०) अत्यंत बीहामणी एटले महानयंकर थक्ष रही. त्यां जे सुनटो तथा हाथी अने अश्व प्रमुख मरण पाम्या, तेना ( रुधिर कर्दम नरी के०) रुधिरना कादवे करीने जराणी थकी। ॥१४३॥ साक्षात् जाणीए (अंतपुरी के० ) यमराजानी पुरीज होय नहीं ? एवी थइ, एटले ते दिवसे अग-1 णित सुनट प्रमुख यमने घेर पहोंच्या. लोकमां एवी कहेवत ने के यमने कोई दिवसे तृप्ति थती |
LOCALCO-OCHOCOUR
CESCESCENCEOCOLOCAL
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #291
--------------------------------------------------------------------------
________________
नथी, पण जाणीए बीए जे ते दिवसे तो ते तृप्त थयो हशे ! वली युद्ध जोवाना अनिलाषी जे व्यंतर निकायना देवता, ते पण अनेक सुनटो मरण पाम्या देखीने प्रेमे करी सहित प्रीतिवंत | थया, एटले हर्षजर संतुष्ट थया, अने बेहु दलवाला सुजटोए पण प्रथम संग्रामनी आद्यमां|
जे विचामु हतुं के राजानी नूमि खाइए बीए, तेने माटे मारामां श्रावी युद्धनी कला जे ते |8 लीलमाश्मां करी देखामीश, ते ते प्रमाणे ते ते सुनटोए तेवी तेवी कलाए करी युरू करयुं. तेथी तिहाँ । | कोइ पण सुजटने लमा करवानी होश अधूरी रही नहीं ॥ १६ ॥
देखी श्रीपाल नट नांजीयुं सैन्य निज, उग्वे तव अजितसेन राजा ॥ नाम मुज राखवो जोर फरी दाखवो, दो सुन्नट विमल कुल तेज
ताजा ॥ चंग ॥१७॥ अर्थ-एम माहोमांहे युद्ध थतां थका पोताना सैन्यने श्रीपाखना सुनटे ( नांजीयु के० ) न-12 साड्यु एवं देखीने एटले महाबलिष्ठ पराक्रमी एवा श्रीपालना सुनटे शस्त्रे करी घणा हत प्रहत ६ कस्या, तेथी कायर थयेला, निर्बल थयेला, मरणथी बीक पामता, पाबा पग देता, नासता एवा 8 पोताना सुन्नटोने देखीने अजितसेन राजा पोते स्वारी करी युक करवा सावधान थश्ने तेमने टू उठवे एटले पाठा युद्ध करवा सावधान करे, हिम्मत आपे जे नागो मां, हवे हुँ आगेवान, था बुं, तमे कशी वाते चिंता करो नहीं, हमणां शत्रुना सैन्यने दशे दिशाए नसामी देशुं. एवी रीते नागतां थका तमारी अने अमारी आबरु केम रहेशे ? माटे हे सुनटो ! (नाम मुज राखवो के०) मारे नाम राखq , तेथी तमारं पण नाम रहेशे जे फलाणा सुजट हता तेणे पोताना खामीनी श्रावी जीत करी देखामी, ते माटे तमे तमारुं फरीथी जोर देखामो. (विमल सुजट कुल के ) हे निर्मल कुलना उपन्या सुनटो ! तमे क्षत्रीना ( तेज ताजा
RECHARACHARAN
G
ALASARAS RSS
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #292
--------------------------------------------------------------------------
________________
SASAAR
***
श्रीरा
के) तेजे करी ताजा ( हो के ) थार्ज, पाला पग म जरो, एम सुनटोने कही सन्नहबछ खम.४ ॥१४॥
करी फरी लगवाने तैयार कख्या ॥ १७॥
तेह इम बुझतो सन्य सजी जुळतो, वीटीयो कत्ति सय सात राणे ॥ ते वदे नृपति अनिमान त्यजी हजीय तुं, प्रणमी श्रीपाल हित एद जाणे ॥ चंग ॥ १७ ॥ मानधन जास माने न ते चितवचन, तेहशुं जुऊतो नविय थाके ॥ बांधीयो पामी करी तेद सत सय नटे, दुर्ज श्रीपालजश
प्रगट वाके ॥ चंग ॥ १५॥ । अर्थ-(तेह के०) ते अजितसेन राजा पोताना सुजटने (श्म बुझतो के०) एवी रीते जणावतो थको
सऊथ श्रीपालना सैन्य साथे जुऊतो श्रको सैन्यने विलोडवा लाग्यो, ते जोर सातसें राणा लडवा हाव्या. तेनी सामे ते ए युद्ध करता तेना सुन्जटोने पूर करी (जत्ति के०) जटिति तत्काल अजितसेन
बारे तरफ घेरो करी वींटी लीधो, अने पठी ते राणा कदेवा लाग्या के हे नृपति !हजी सुधी तारं कां गयुं नथी, माटे तुं अनिमान गंझ, अहंकार राखबो युक्त नश्री, पूर्वे पण अहंकारथी घणा राजाऊनां राज्य गयां बे, माटे असारं वचन मानी आवीने श्रीपाल राजानां चरणकमल प्रत्ये प्रणाम कर. ( एह के०) ए श्रीपाल राजा केवो के ? तो के ( हित जाणे के हितनो जाण ने, माटे प्रणमीश तो तारा गुन्हा सर्व बदीस करशे ॥ १७ ॥ एवां वचन राणाए। कह्यां, पण अजितसेनना चित्तमां नरमाश आवी नहीं, केमके (जास के0 ) जेने (मानधन । के) अहंकाररूप धन ले ते पोताना हितनां वचन माने नहीं, तेम अजितसेन पण ते राणानां ॥१४॥ वचननी शवगणना करतो अनिमाने पूरित थको मनमा विशेष क्रोध धरतो (तेहशुं के० ) ते सातसे राणाऊनी साथे युरू करतो कोइरीते थाकतो नथी. मनमां विचारे जे जे मारा सुजटो बल-ल
For Personal and Private Use Only
Page #293
--------------------------------------------------------------------------
________________
हीन थया तो शुं थयुं ? पण मारुं वल तो क्यांहि गयुं नथी, एम धारी युद्ध करे बे. ते युद्ध करतां ते राणाउंए हाथीनी सूंढ काली दंतूशल उपर पग दइ अजितसेननो पग काली हाथीना होदा उपरथी पामी करीने मुसके टाट बांधी लीधो. ते वारे श्रीपाल राजानो यश ( प्रगट वाके के० ) प्रगट शब्दे थयो. श्रीपाल राजा जीत्यो. सैन्यमां श्रीपालनी डुहार फरी जे हवे युद्ध - करशो नहीं. ते वारे अजितसेननी सेना पण विलखी यइ ॥ १५ ॥
पाय श्रीपालने प्राणीयो तेढ नृप, तेणे बोडावीयो उचित जाणी ॥ भूमिसुख जोगवो तात मत खेद करो, वदत श्रीपाल इम मधुर वाणी ॥ चंग० ॥ २० ॥ खंग चोथे हुइ ढाल चोथी जली, पूर्ण कडखाणी एह देश ॥ जेद गावे सुजश एम नव पद तणो, ते लदेशधि सवि शुद्ध देशी ॥ चंग० ॥ २१ ॥
अर्थ-पीते बांधेला अजितसेन राजाने लइने राणाउए श्रीपाल राजाना पग आगल आणी मूक्यो, तिहां ते विलखो थयो थको नीची दृष्टि करी रह्यो. एवो तेने देखीने श्रीपाल राजाने तत्काल | दया श्रावी ने वली विचाखुं जे या मारो काको बे, ते मारी आागल बांध्यो पड्यो रहे ते उचित | कहेवाय नहीं, माटे एने बोमी मूकवो उचित वे एम चिंतवीने तेने तरतज बोडाव्यो, अने श्री| पाल कहेवा लाग्यो के दे तातजी ! तमे तमारी पोतानी जे भूमि बे तेने सुखे जोगवो, अने | लगार मात्र तमारा चित्तमां खेद करशो मां. एवी रीते श्रीपाल राजाए जितसेन राजाने मधुर एटले मीठी वाणीए कयुं ॥ २० ॥ ए चोथा खंमने विषे जली एवी चोथी ढाल पूरी थइ, ए संपूर्ण कमखानी देशी बे. जे प्राणी ए नव पदनो रुडो यश गाय, अथवा श्रीयशोविजय गणि
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #294
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम कहे के ए नव पदने जे रुमी रीते गाय ते प्राणी ( शुद्ध देशी के० ) विशुद्ध निर्मल लेश्यानो खम.४
धणी थश्ने सर्व शकि पामे ॥१॥ ॥१४॥
॥दोहा॥ अजितसेन चिंते कह्यु, अविमास्युं में काज ॥ वचन न मान्युं दूतनुं, तो न रही निज लाज ॥१॥ आप शक्ति जाणे नहीं, करे सबलशुं जुऊ ॥ सुदितवचन माने नहीं, आपे पमे अबुझ॥॥ किदां वृक्षपणे हुं सदा, परजोह करवा पाव ॥ किहां बालपण ए सदा, परनपकार स्वन्नाव ॥३॥ गोत्रजोद कीरति नहीं, राजद नवि नीति ॥ बालोद सद्गति नहीं,
ए त्रणे मुज नीति ॥ ४॥ अर्थ-हवे अजितसेन राजा चिंतवे के में अविमास्यं एटले श्रण विचाऱ्या कारज कर. प्रथमधीज पूतनुं वचन मान्यु नहीं, तो मारी लाज रही नहीं ॥१॥ जे प्राणी पोतानी शक्ति जाPणतो नथी अने बलवंत साथे युद्ध मांडे , अने सुहितवचन ते रुडुं हितनुं वचन अथवा जला
हितचिंतक वडेरा पुरुषोनुं वचन माने नहीं, ते अबुझ प्राणी पोते पाठो पडे ॥२॥ जुन के क्या ६ तो हुँ वृक्षपणे सदा सर्वदा परसोहरूप पापनो करनारो ! अने क्यां ए श्रीपाल के जे बालपणाथीज
सदा सर्वदा उपकारनो खन्नाव राखे ! माटे मारा वृक्षपणाने धिक्कार ने अने धन्य बे ए श्रीपा-16 लना बालपणाने ! के जे इजी लगण पण मने कहे जे के हे पिताजी !नूमिसुख जोगवो अने । अने खेद म करो ॥३॥ वली शास्त्रमा कर्वा डे के जे गोत्रमोद करे तेनी कीर्ति न होय अनेInten जे राजमोह करे तेणे न्याय नवंध्यो, माटे ए नीति नहीं, तथा बालमोह करवाथी साति पामे 8 नहीं, माठी गतिए जाय, एत्रणे कार्य में कस्यां , तेनी मुजने (नीति के०) बीक डे ॥४॥
Jan Education International
For Personal and Private Use Only
www.ainelibrary.org
Page #295
--------------------------------------------------------------------------
________________
को न करे ते में कस्युं, पातक निठुर निजा || नहीं बीजं बहु पापने, नरक विना मुज ॥ ५ ॥ एवा पण बहु पापने, उ-हरवा दीए द ॥ प्रत्रका जिनराजनी, वे इक शुद्ध समच ॥ ६ ॥ ते दुःखवली वनदहन, ते शिवसुखतरुकंद ॥ ते कुलघर गुणगण तणुं, ते टाले सवि दंद ॥ ७ ॥ ते कर्षण सिद्धिनुं, नवनिःकर्षण तेह || ते कषायगिरिभेदपवि, नोकषाय दवमेद ॥ ८ ॥
अर्थ- जे कोइ पण जो माणस न करे तेवुं निठुर एटले ही पाप में अजाण मूर्ख ते | कठोर परिणामे दुर्ध्याने करी कयुं, ते माटे एवां बहु पापनो करनारो जे हुं, तेने नरकनी गति विना बीजुं क्यांहि रहेवानुं ठेकाएं नयी ॥ ५ ॥ एवा मारा सरखा घणां पाप करनारने पण उद्धरवाने हाथ दीए बे एवी पण एक श्रीजिनराजनी उपदेशेली शुद्ध निर्मल प्रत्रका एटले चारित्र, तेज एक समर्थ बे के जेथी नरके जवानुं बंध थाय बे ॥ ६ ॥ ते चारित्र केवुं बे ? तो के दुःखरूप वल्लीना वनने नाश करवा माटे ( दहन के० ) अनि समान बे, वली ते चारित्र ( शिव के० ) निरुपद्रव स्थानक जे मोक्ष, तेना सुखरूप वृक्षना ( कंद के० ) मूल समान बे, वली ते चारित्र गुणना गए जे समूह, तेने रहेवानुं कुलघर बे, वली ते चारित्र सर्व जगत्रयनां दंद एटले श्राप - | दानुं टालणहार बे ॥ ७ ॥ वली ते चारित्र सिद्धनुं आकर्षण वे एटले सिद्धपदने खेंचे वे, कारण के चारित्रीयो सातमे यामे गुणठाणे रह्यो थको विशुद्ध, विशुद्धतर, विशुद्धतम एवा श्रात्माना अध्यवसायने योगे बंध, उदय, उदीरणा अने सत्तानी कर्मप्रकृति बेदीने नवमे गुणठाणे रुपकश्रेणी मांडी घनघाती चार कर्म दय करी तेरमे गुणठाणे केवलज्ञान पामी सिद्धि वरे, तेमां को चारित्रयो अंतर्मुहूर्त्तमां मोदे जाय, कोइ श्रायुःकर्मनी यावत्प्रमाण पूर्ति करी मोदे जाय, माटे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #296
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
॥१४६॥
चारित्र ते सिझनु थाकर्षण , वली तेज चारित्र नव जे संसार तेने निःकर्षण एटले पूर कर- खम. ४ नार , वली ते चारित्र क्रोध, मान, माया अने लोनरूप कषायना जे (गिरि के.) पर्वत , तेनुं नेदन करवाने (पवि के० ) वन समान बे, तेमज वली ते चारित्र हास्यादिक नव नोकषायरूप (दव के ) दावानल, तेने उपशमाववाने ( मेह के) मेघ समान ३ ॥ ७॥
प्रवजा गुण इम प्रदे, देखे नवजलदोष ॥ मोहमहामद मिट गयो, हुई नावनो पोष ॥॥नेदाणी बहु पापथिति,, कर्मे विवरज दीध ॥ पूरव
नव तस सांजस्यो, रंगे चारित्र लीध ॥ १० ॥ अर्थ-एम ते अजितसेन राजा प्रव्रज्याना गुण ग्रहण करे डे,एटले चारित्र ए प्रकारना गुणर्नु कर्ता बे, ते विचार करतां करतां ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप गुण ग्रहण करतो केवल नवजल जे संसार-13 समुन, तेनो जे दोष तेने देखे ,कारण के जेमां गुण होय तो तेना गुणनीज गवेषणा थाय ने, पण तेनी दृष्टिए अवगुण जोवामां आवे नहीं, तेम चारित्रमा गुणज , माटे गुण दीग, तेना गुण ग्रहण कख्या, तेथी विचाखु जे आत्मा ज्यां लगण चारित्र सहित थयो नश्री त्यां लगण संसार विटंबना ने, ए आत्मानो दोष बे, तेनेज देखे ,अने चितवन करे ते जे श्रात्माने अनादि मोहले, ते संसारमा जमाडे 3 बे, ज्यांसुधी समकितमोहनी, मिश्रमोहनी श्रने मिथ्यात्वमोहनी तथा अनंतानुबंधी कषायनी चोकमी, ए सात प्रकृतिनो दयोपशम नथी थयो त्यांसुधी ते आत्मा मिथ्यात्व गुणगणे जे. एवी रीते ए अजितसेनने चारित्र गुण ग्रहवे करी सात प्रकृतिनो उपशम थाते दायिक परिणाम |
॥२४६॥ वर्त्तवाना नाव थकी मोहरूप महामद जे हतो ते मटी गयो. ते वारे उपशम समकितादिक उत्तम नावनो पोष थयो, एटले उपशम समकिते औपशमिक जाव थाय, अने योपशम सम-18] किते कायोपशमिक जाव थाय, तथा दायिक समकिते क्षायिक जाव थाय. ए त्रण सम कित
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #297
--------------------------------------------------------------------------
________________
माहे जे समकित उपजे ते नावनो पोष थाय. ते इहां अजितसेन राजाने अंतर्गत नावनो। पोष थयो, तेथी वैराग्यवंत थयो ॥ ए ॥ एम अजितसेनने संसारने अनित्य नावे चितवन करतां घणी पापनी स्थिति नेदाणी, ते वारे कर्मे ( विवर के०) मार्ग दीधो, एटले आकरां कर्म हतां
ते शिथिल थयां, अनादि मिथ्यात्व मट्यु, ते वारे श्रात्माना अध्यवसाय जे पूर्वे क्यारे एवा न कथया हता ते थया, तेथी समकितनी रोधक अशुज कर्मप्रकृति बंधथी टली, चोथु अविरति है
सम्यग्दृष्टि गुणगणुं पाम्या. ते समकित पामते जातिस्मरणशान उपन्यु, तेने योगे पोतानो , पाउलो जव दीठो, ते पाउलो नव देखतांज वली नवनय विशेष उपन्यो, ते वारे वली आत्माना विशुद्ध अध्यवसायने बलवत्तरपणे अप्रत्याख्यानी कषायनी चोकमी अने प्रत्याख्यानी कषायनी|| चोकमीनो बंध गये थके हुं गुणगणुं श्राव्यु, ते वारे अजितसेन राजाए (रंगे के० ) हर्षे करी| चारित्र लीधुं अने हा सातमा गुणगणाना अधिकारी थया ॥ १० ॥
॥ ढाल पांचमी॥ ॥ थारे माथे पचरंगी पाग, सोनारो गोगलो ॥ मारुजी ॥ ए देशी ॥ हु चारित्र जुत्तो समिति ने गुत्तो ॥ विश्वनो तारु जी ॥ श्रीपाल ते देखी सुगुण गवेषी मोहीयो ॥ वारुजी ॥प्रणमे परिवारे नक्ति उदारे ॥ विश्वनो ॥कहे तुज गुण थुणीए पातक दणीए आपणां ॥वारुजी ॥१॥ अर्थ-हवे पांच समितिए समिता अने त्रण गुप्तिए गुप्ता एवं आठ प्रवचन माता, तेणे करी ( जुत्तो के० ) युक्त चारित्र थयु. ( विश्व के०) जगत्त्रयने तारवा समर्थ एवा सर्व सावद्य योग है व्यापारथी विमुक्त थयेला अजितसेन राजर्षिने देखीने जला गुणोनी गवेषणानो करनारो एवो, श्रीपाल राजा तेमनी उपर मोह्यो थको पोताना परिवार सहित पांच अनिगम साचवीनेते मुनिनाई
Sain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #298
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
खंग.४
॥१४॥
चरणरजे जालस्थल लगामीने (प्रणमे के० ) प्रणाम करे, उदार जक्तिए करीने स्तवना करे | ने, ने कहे के हे प्रजु ! तमारा साधुपणाना गुणने (थुणीए के०) स्तवीने पातक हणीए एटले । अमारां नवोनवनां संचेला जे पाप, तेने हणीए एटले पूर करीए ॥१॥
उपशमअसिधारे क्रोधने मारे ॥ वि० ॥ तुं मद्दववजे मदगिरि नजे मोटका ॥ वा ॥ मायाविषवेली मूल जखेडी ॥ वि० ॥ तें अजवकीले सहज सलीले सामटी॥ वा ॥२॥ मूळजल नरीयो गहन गुहरियो ॥विण ॥ तें तरीयो दरियो मुत्तितरीशुं लोननो ॥ वा ॥ ए चार कषाया
नवतरुपाया॥ वि० ॥ बहु नेदे खेदे सहित निकंदी तुं जयो ॥वा०॥३॥ अर्थ-हवे श्रीपाल स्तवना करे के हे मुनीश्वर ! राग द्वेष ए बेने एकपणे श्राणवा तेने उपशम है गुण कहीए, ते उपशमरूप ( श्रसिधारे के० ) तरवारनी धाराए करीने क्रोधरूप शत्रुने तमे मार्यो, माटे तमे क्रोधरहित थया बो, तेथी शमतामय बो. वली मानत्यागेन माईवम् एटले मानने जावे। करीने मार्दव गुण उपजे , ते माईव जे कोमलता तबूप वन एटले सर्व शस्त्रोमां उत्तम एवं 8 इंजनुं श्रायुध ते अत्यंत आकलं , तेणे करीने ( मदगिरि जो मोटका के ) मोटा एवा जे मदरूप पर्वत, तेनां जे श्राप शिखर मे ते ज्यांसुधी श्रामां आवे त्यांसुधी स्तब्धपणे को पण विनय । विवेक नावे, तेने तमे जले एटले नांजी नाख्या, माटे तमे अहंकाररहित थया बो. वली (मायाविषवेली के०) माया जे कपट तेहीज विषवेली. ते केवी ? तो के साधुपणामां तप: प्रमुखने पण स्त्रीवेदनी देवावाली एवी फुःखदायी जाणीने तेने तमे (अजवकीले के०) मायाना त्यागथी आर्जव जे सरलता तप खीलाए करीने (सहज सलीले के०) सहेजे महेतन विना लीलाए करी सहित ( सामटी के०) एकठी करीने जम मूलथी नखेमीने नाखी दीधी
॥१४॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #299
--------------------------------------------------------------------------
________________
| एवा बो ॥२॥ वली परिग्रहनी उपर वांबा जे श्वा तेने मूर्ना कहीए, ते मू रूप जले करीने|
नस्यो, अने ( गहन के०) मो ( गुहरियो के०) जेनो पार पामीए नहीं एटले कषायवंत सामान्य पुरुष जेनो पार पामी शके नहीं, ते अजव्यने अनादि अनंत बे, श्रने नव्यने अनादि सांत ने एवो (लोचनो के० ) लोन कषायनो ( दरियो के ) समुन, ते मूळरूप पाणीए नरेलो र बे, तेने ( तें के० ) तमे ( मुत्तितरीशु के० ) मुक्ति जे निर्लोनतारूप गुण तप तरी एटले वहाण है कहीए, तेणे करीने (तरीयो के० ) तस्यो, एटले तरीने पार पाम्या, एतावता तमे निर्लोजी थया बो. ए उक्त क्रोध, मान, माया अने लोन मली चार कषाय जे जे ते केवा ? तो के चार गतिने विषे जे संसर तेने संसार कहीए. तेज (कष के ) संसार तेनो डे (याय के०) लान जेने विषे तेने कषाय कहीए, माटे ए चार कषाय ते (नव के ) संसार तप ( तरु के० ) वृक्ष एटले संसाररूप वृद तेना पाया , केमके ज्यांसुधी ए कषाय ने त्यांसुधी ए संसार बे, नवतरुना पाया , ते चार कषायना अनंतानुबंधी थादिक घणा नेदो , अने घणा खेदना देनारा बे, ते खेदादिक दोष सहित चारे कषायने ( निकंदी के ) निकंदन करी नाख्या, माटे (तुं जयो के0 ) तमे जयवंता वर्तो. अर्थात् कषायने कंद जे मूल ते सहित काढवाने तमे समर्थ थया डो॥३॥
कंदर्प दर्षे सवि सुर जीत्या ॥ वि०॥ ते तें इक धक्के विक्रम पके मोमीयो ॥ वा० ॥ हरिनादे नाजे गज नवि गाजे ॥ वि० ॥ अष्टापद आ
गल ते पण गगल सारिखो ॥ वा० ॥४॥ अर्थ-वली हे खामिन् ! तमे केवा डो? तो के सर्व जगतमां सुर असुरादिकमां पण कंदर्प| महाबलवान् ले. जे कंदर्प पोताना वलने ( दर्षे के० ) अहंकार जे उन्माद तेणे करीने इंज, चंड, नागेंड, हरि, हर, ब्रह्मादिक ( सवि सुर जीत्या के०) सर्वे देवताने जीत्या बे, परंतु देवता मांदे|
AMROCALCANORAMAMMACROCOCCRORECAUS
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #300
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
कोइए कंदर्पने जीत्यो नथी, अर्थात् सर्व खानुकूल चेष्टावंत कीधा एवो सर्वोत्तम बलिष्ठ जे कंदर्प खम.
तेने तमे तमारा ( विक्रम पके के०) पंमितवीर्योवासरूप परिपक्क बल पराक्रम स्वरूपाजिरमणरूप ॥१४॥
ध्यानना एक धक्काए मरमी नाख्यो, हेलामां मोमी नाख्यो, अर्थात् अध्यात्ममार्गीने काम जीतवो उर्लन नथी . अथवा तमारा पराक्रमने परिपाकपणे एटले चोथा व्रतना नवकोटि पञ्चरकाणने 31 करवे करीने (तें इक धक्के के० ) तमे एक धक्कामांज एटले घणा काल अभ्यास करवो न पड्यो, मात्र एक धक्कामांज ते कंदर्पने मोडी नाख्यो, दूर करी नाख्यो. हवे ए उक्त अर्थ दृष्टांते करीने । दृढ करे . सर्व तिर्यंचो मांहे सिंह बलिष्ठ , केमके जो पण मद सहित गर्जारव करता एवा
सहस्रगमे हाथीनी घटा मलेली होय, तोपण एक (हरिनादे के ) सिंहने नादे एटले शब्द ४ करवे करीने ते गजनी श्रेणी गाजे नहीं एटले गर्जारव करी शके नहीं. सिंहनो शब्द सांजली सर्वे गजो दश दिशाने विषे लागी जाय, पण को उन्नो रहे नहीं. एवो बलिष्ठ सिंह ने ते पण श्रष्टापद नामे जनावरनी श्रागल (बागल के० ) बोकमा जेवो थर जाय. अर्थात् सर्व जनावरोमां गग निर्बल कहेवाय ने तेनी सरखो थर जाय, तेम हे मुनीश्वर ! ते कंद सर्वने जीत्या, पण कंदर्पने जीतनार ते तमेज एकला थया, माटे तमे निर्विषयी थया बो ॥४॥
रति अरति निवारी नय पण नारी ॥ वि०॥ तें मन नवि धरीया तेहज डरीया तुजथी॥वा० ॥ तें तजीय गंग शी तुज वंग ॥ वि० ॥ तें पुग्गल अप्पा बिहुँ परके थप्पा लदाणे ॥वा० ॥५॥
॥१४॥ अर्थ-हवे रति श्रादिक नोकषाय जे जे ए पण कषायनाज वधारनारा दे, ते माटे हे स्वामिन् ! | रति जे को मान पूजादि सत्कार करे ते वारे शाता वेदवी पडे ते रति, अने अरति ते अपमान, तिरस्कार, उपसर्गादिक उपजे ते वारे अशाता वेदवी पडे, ए वे शाता अशातारूप जे *
ACCAKCARKACACANCCIAL
in Education n
ational
For Personal and Private Use Only
Page #301
--------------------------------------------------------------------------
________________
रति श्रने अरति जे तेने तमे निवारी, अने वली इहलोक लय, परलोक जय इत्यादिक सात जे । |नारे जय बे ते पण हे मुनीश्वर ! तमे मनने विषेधस्याज नहीं, एटले ए सात जयने तो तमे गणतीमा Kगण्याज नहीं, परंतु तमारामांथी क्रोधादिक गये थके एमने तमारी पासे रहे पुष्कर थपड्यं,
तेथी तेज सर्व नय उलटा तमाराथी ( मरीया के०) बीता थका पोतानी मेसेज पूर खसी गया, माटे तमे मोटा ऋषीश्वर बो. वली हे स्वामिन् ! ज्यांसुधी चित्तमां शुन्ज अशुन राग द्वेषनां । जोर क्षीण थयां नथी त्यांसुधी उगंबा दे, परंतु ते तमारामां नथी, माटे ते उगंबा पण तमे तजी,18 तो हवे शी तुज वंबा एटले कां पण वांडा तमारे रही नथी.वली तमे (पुग्गल के) पुजल अने (अप्पा के०) श्रात्मा, एटले पूरण गलन वजाव जेनो तेने पुजल कहीए, ते पुजल अनित्य अत एव विनाशी बे, अने आत्मा ते निश्चे अविनश्वर नित्य बे, ते बेहुने पोतपोताना लक्षणने लखवे करी जूदा जूदा पदे करी बेहु पोतपोतामां निन्न डे एम करी स्थाप्या ने ॥५॥
परिसदनी फोजे तुं निज मोजे ॥ वि० ॥ नवि नागो लागो रण जिम नागो एकलो ॥ वा० ॥ उपसर्गने वर्गे तुं अपवर्गे॥ वि०॥ चावंतां न
डीयो तुं नवि पडीयो पाशमां ॥ वा ॥६॥ __ अर्थ-वली हे स्वामिन् ! जुधा, पिपासा श्रादे दश्ने वावीश परिसहनी फोज ते आवे थके तेमांथी तमे पोतानी मोजे संयममार्गे चादया गया, परंतु परिसहना समूहथी बीक पामीने (नवि|| नागो के०) तमे पाला जाग्या नहीं, लगारमात्र पण तेनो जय गण्यो नहीं. उलट सामा संयममार्गमा लागी रह्या. ते कया दृष्टांते ? तो के (रण जिम नागो एकलो के० ) नागो जे हाथी ते है जेम रणसंग्राममा एकलोज लाग्यो रहे, शस्त्रना घणा प्रहार पोतानी उपर पडे तोपण रणमांथी का पाठो उसरे नहीं, तेम तमे पण पाना नागता नथी, माटे ए श्राश्चर्य जाणवू. वली उपसर्गों बे प्रका-181 |रना . तेमां जे स्त्रीना हावनाव, विन्रमविलासादिक विषयप्रार्थना प्रमुख करवे करीने थाय है।
Jain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #302
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥१४
ते अनुलोम उपसर्ग कहीए, अने अनेक प्रकारनां ताडन, तर्जनादिक करवे करीने जे थाय ते खंम. ४ प्रतिलोम उपसर्ग कहीए. एवा जे उपसर्गनो वर्ग एटले समूह, ते हे मुनि ! अपवर्ग जे मोका तेना मार्ग जणी चालतां थका तमने नब्यो, परंतु तमे ते उपसर्गना पाशमां पड्या नहीं एवी तमारी समर्थाश् , माटे धन्य डे तमने ! हे खामिन् ! तमे मोदसुखना अनिलाषी बगे, अने तमे संसारने उःखमय जाण्यो ३ ॥६॥
दोय चोर उठता विषम व्रजंता ॥ वि० ॥धीरजपविदं तेज प्रचंडे ताडीया॥ वा० ॥ नश्धारण तरतां पार उतरतां ॥ वि०॥ नवि मारग लेखा
विगत विशेषा देखीए ॥ वा० ॥ ७॥ | अर्थ-वली हे मुनि ! तमने मोक्षमार्गे जावा जणी थात्माना अध्यवसाय शुज प्रवर्त्ततां ए| मार्गे चालतां राग अने वेष ए बे चोर उठ्या. ए बे केवा जे ? तो के चार कषायनां मूल बे, कारण के क्रोध अने मान ए बे वेषना डे, तथा माया अने लोज ए बे रागनां , ते राग द्वेष-18 रूप वे चोर उठतां तेमणे विषम एटले परम आकरे नवपर्यटनरूप मार्गे (वजंता के0 ) लइ ज-ग वानुं मन करवा मांड्यु. तेमणे विचाखु जे ए जीव संसार मध्ये श्रापणा टोला मांदेथी जतो रहे| बे, माटे तेने लेवा ते चोर उठ्या, परंतु तमारी कोश्यात्मपरिणामनी निर्मल धारारूप धीरज जे धैर्य,181 तप (पविदंडे के० ) वजनो जे दंम तेणे करी (तेज प्रचंडे के० ) प्रचंम तेजपणे एटले थाकराशपणे ( तामीया के) तामना करी हण्या, ते बेहु तमाराथी दूर रह्या. ते एवा के फरीपाबा संसार मांहे तमने ढकमा पण थावे नहीं एवी शीखामण तेने मली. वली (नधारण के)|॥१४॥ नदीनो धरनार जे समुज ते शहां अपारावार जे संसारसमुन, तेने पोताने जुजबले, पोताने 3 पराक्रमे, कोश्नी सहाय लीधा विना तरतां एटले तरीने तेनो पार जे कांगे तेने उतरतां थका |
Jain Education intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #303
--------------------------------------------------------------------------
________________
(नवि मारग लेखा के०) कांश मार्गनुं लेखं नथी, एटले संसारसमुप तरीने कांठे जवाय तेना 3 घणा मागों बे, अर्थात् जेटला जीवना नेद तेटला मार्ग पण अनुमाने जाणवा, माटे (विगत के ) गयु ने विशेषपणुं जेथी एम कह्याथी बाटलाज मार्ग थया एवी खबर न पडे, जे था। मार्ग अमुक गतिनो, अमुक जीव विशेषनो एम स्पष्ट मालम पड़े नहीं, एवा गणती विनाना संसारसमुना मार्ग दे ॥७॥
तिहां जोगनालिका समता नामे ॥ वि०॥ तें जोवा मांडी उतपथ गंडी उद्यमे ॥ वा० ॥ तिहां दीठी दूरे आनंदपूरे ॥ वि० ॥ उदासीनता शेरी
नहीं नवफेरी वक्र ॥ वा० ॥ ७ ॥ अर्थ-तिहां हे स्वामिन् ! तमे अध्यवसायनी स्थिरताए करीने विचाखु जे मारे तो मुक्तिपुरी साथे प्रयोजन , ते वारे मननी जिहां चंचलता ने तिहां तो जवाजिनंदीपणुं , माटे तमे मननी || चंचलतानो स्थिर नाव करी मन, वचन, काया ए त्रणेनुं जे जिन्नपणुं बे, ते त्रणेनी एकाग्रता, करी, ते वारे समता एटले समपणे अध्यवसाय कस्या. एवा त्रण योगरूप समता नामे योगनी जे प्रनालिका तेने तमे तिहां जोवा मांडी अने बीजा घणा मार्ग देखीने ते सर्वने उन्मार्ग करी जाण्या, एटले तमे जोयुं जे बीजे मार्गे सिद्धपणुं नथी. समता नामे योगनी नालिका जो जडे तो तेज कामनी बे, ते वारे उतपथ जे उन्मार्ग तेने गंडी उद्यमे करी ते समता योगनालिकानेज निश्चलपणे जोवा मांमी. ते समता नालिका जोतां जोतां तिहां (पूरे के० ) वेगलेथी समतारूप जे योगनालिका तेने (आनंदपूरे के०) श्रानंदना पूरे हे मुनीश्वर ! तमे दीठी. अथवा योग- 3 नालिका दीठी ते वारे आनंदनो पूर थयो. हवे ते योगनालिका सुधी केम पहोंचवें ? ते माटे तेनो सरल मार्ग जोवा लाग्या. ते मार्ग जोतां उदासीनता नामे शेरी हाथमां आवी,
in Education International
For Personal and Private Use Only
Page #304
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा ॥१५॥
एटले सर्व संसारी नाव गगनाववत् क्षणिक दृष्टनष्ट एवी रीते धनादिक उपर जे उदासीन खम. ४ परिणाम तेने उदासीनता कहीए, ते उदासीनताने श्रादरीने ते उदासीनता शेरी हे मुनि ! तमे हाथ कीधी, श्रने ते उदासीनता जेणे श्रादरी तेने ( नहीं जवफेरी वक वे के० ) जे संसार ते मांहे फरवू तेनुं वक्रपणुं नश्री, एटले तेनी वांकाइ जिहां नयी एवी ने अर्थात् जेने एक सरल गति तेने एक मोक्षगतिज होय, तेथी तमे पण तेज गतिप्रापक बो ॥ ७॥
ते तुं नवि मूके जोग न चूके ॥ वि०॥ बाहिर ने अंतर तुंज निरंतर सत्य
॥वा ॥ नय ने बहुरंगा तिहां न एकंगा॥ वि० ॥ तुमे नयपदकारी
गे अधिकारी मुक्तिना ॥ वा ॥ ए॥ | अर्थ-ते उदासीनता शेरी तमारे हाथ डाव्या पड़ी तेने (तुं नवि मूके के० ) तमे मूको नहीं, कारण के तमे मन मांहे विचाखु जे अनादि कालना नवकांतार मांहे अटन करता करतां श्रपूर्व अभ्यासे श्रात्मानी परिणति सुधरे, तेथी चिंतामणि, कामकुंज, कामगवीनी परे दुष्प्राप्य एवी वस्तु पामीने 2 जो प्रमादादि दोष लगामीश तो ए मुजथी वेगली जती रहेशे, एम चिंतवीने हवे ते शेरीने तमे न मूको अने (जोग न चूके के०) मन, वचन, कायना योग एकाग्रतामा लीधा ने तेने तमे न 81
को, एटलेन मूको,माटे (तुंज के०) तमेज (बाहिर ने अंतर के०) बाह्य अने अन्यतरमा (निरंतर के) अंतर रहित हरहमेश ( सत्य के०) साचा गे, एटले जिन्न नथी, जेवा बाह्य सत्य बो तेवा ही मांहे अंतरमां पण सत्य बो. वली हे स्वामिन् ! ( नय ने बहुरंगा के०) नय ते घणा प्रकारना
॥१५॥ , ते जेमके नैगम, संग्रह, व्यवहार, झजुसूत्र, शब्द, समनिरूढ अने एवंजूत, ए सात मूल नय । जाणवा. ते एकेका नयना वली सो सो नेद , सर्व मली सात नयना सातसें नेद थाय , ते ४ | सर्वना जिन्न जिन्न खजाव , पण तिहां ते नय (न एकंगा के ) एकंगा नथी. ते मूल सात है
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
www.nelibrary.org
Page #305
--------------------------------------------------------------------------
________________
नयमां पण वली एक अपेक्षाए प्रथमना चार नय ते व्यवहारना घरना बे, अने उपरना जे त्रण नय ते निश्चयना घरना बे, घने बीजी अपेक्षाए पहेला त्रण नय व्यवहारना घरना बे, अने पाउला चार नय निश्चयना घरना बे. ते सर्वनामत जूदा जूदा बे, पण श्रीवीतरागनो मत सर्व नय सम्मत बे, एवा विविध प्रकारना रंगना नय ते एकंगा नथी, तेमां तमे ( नयपक्षकारी के० ) | उपरना निश्चयना घरना जे त्रण नय बे तेना पक्षकारी छो, तमे केवल एक अद्वितीय कर्मलेपरहित मोक्षना अधिकारी बो. एतावता हवे तमारे मोद विना बीजे क्यांइ जनुं नथी ॥ ॥
तुमेव जोगी निज गुण जोगी ॥ वि० ॥ तुमे धर्मसंन्यासी शुरू प्रकाश तत्त्वना ॥ वा० ॥ तुमे तमदरसी उपशम वरसी ॥ वि० ॥ सिंचो गुण वाडी थाये ते जाडी पुण्यशुं ॥ वा० ॥ १० ॥
- वली हे मुनीश्वर ! तमे अनुभव जे श्रात्मखनावरमण तेना योगी बो. आत्माना मूल गुणनो जे खरेखरो विचार करवो, तद्रूप अनुभव तमने प्रगट्यो बे. वली तमे अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतचारित्र, ध्यकषायी, छावेदी, योगी, अलेशी, अतींद्रिय प्रमुख ( निज गुण के० ) पोताना गुण तेना जोक्ता बो. वली तमे श्रात्मधर्म चोथा गुणवाणाथी मंगाणो ते व्यवहार धर्म, तेमां चौदमा गुणगणानो निश्चय धर्म एवा धर्मने सम्यक् प्रकारे ( न्यास के० ) जे स्थापे बे तेने धर्मसंन्यासी कहीए. ते तमे धर्मसंन्यासी बो. वली जे मार्गथी मुक्तिपद पामीए ते तत्त्वमार्ग जाणवो. ते तत्त्वमार्गना शुद्ध प्रकाशना करनार बो. वली हे मुनीश्वर ! तमे ( श्रातमदरसी के० ) आत्माने विजाव दशाथी निवारीने खजाव दशामां स्थाप्यो, केवलज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप श्रात्मानो मूल धर्म बे तेनेज एकांते स्थापीने आत्मगवेषणा करो एवा तमे श्रात्मदर्शी बो. वली तमे शांत रसने निकटवर्त्ती करीने खेटादिक दोषने दूर करी केवल उपशमरूप वरसादनी वृष्टिना
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #306
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण वरसावनारा बो. वली तमे तमारा आत्मिक गुणनी वामी तेने उपशम रस जे शांत रस, ताप, खंग.४
पाणीए करीने सिंचो, जेम ते ( पुण्यशुं के० ) पुण्य संघाते जाडी थाय, तेजवंती थाय, पुष्ट थाय, ॥१५॥
एटले गुण पुष्ट थाय, गुणगणवृद्धिमत्ताए पुण्यथी धर्म वधे, पनी अव्यधर्मथी नावधर्म पण पामो ॥१०॥
अप्रमत्त प्रमत्त न विविध कहीजे ॥ वि० ॥ जाणंग गुणगणंग एकज नाव ते तें ग्रह्यो । वा० ॥ तुमे अगम अगोचर निश्चय संवर ॥ वि०॥
फरस्युं नवि तरस्युं चित्त तुम केलं स्वप्नमां ॥ वा० ॥११॥ है अर्थ-वली बहुं प्रमत्त गुणगणुं अने सातमुं श्रप्रमत्त गुणगणुं ए बे गुणगणां साधु चारित्रीयाने रदेवानां . तेनी एकेकनी अंतर्मुहूर्त प्रमाण स्थिति बे, बे गुणगणांनी मली देशे जणी एक पूर्वकोटि वर्षनी स्थति , ते बे गुणगणां यति आश्रयी कह्यांबे, पण हे खामिन् ! तमारे । विषे ए बे गुणगणां (न विविध कहीजे के०) वे प्रकारे जे एम नहीं कहेवाय, तमारे विषे तो (जाणंग के०) उपयोग युक्त जे ( गुणगणंग के० ) गुणनुं स्थानक ( एकज नाव ते के० ) ते 31 एकज अप्रमत्त गुणगणाना जावे (तें ग्रह्यो के०) तमे ग्रहण कडे बे, एटले तमे तो एक सातमा 8 अप्रमादी गुणगणानोज नाव ग्रहण कस्यो , केमके घणा साधुजनोने अंतर्मुहूर्त बहुं प्रमत्त
एटले प्रमादी गुणगणुं रहे , वली अंतर्मुहर्त सातमुं अप्रमादी गुणगणुं रहे बे. तिहां अंतशर्मुहूर्त ते जघन्यथी तो नव समय, बे, अने उत्कृष्टुं बे घमीमां एक समय उडानुं बे, अने मध्यम है तो अंतर्मुहूर्त्तना असंख्याता विकल्प थाय , ते माहे जे साधु लघु जघन्य अंतर्मुहूर्त्तना काल-21
प्रमाण ब गुणगणे रहीने उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त कालप्रमाण सातमे गुणगणे रहे, ते वारे ते सा- ॥१५॥ तमे अप्रमादी गुणगणेज घणो रह्यो कहेवाय. तेम तमे पण सातमे गुणगणे घणा काल लगण 2 अप्रमादी थकाज रहो बो, माटे तमे एकज सातमा गुणगणानो नाव ग्रह्यो बे, तेनाज अंगीकार
ACCASUR CIRCACACACAIGA
E
asonal
For Personal and Private Use Only
Page #307
--------------------------------------------------------------------------
________________
SHARENCESCA
कर्ता बो. वली तमारं स्वरूप कोश्ने गम्य नथी, माटे तमे अगम बो. वली हे खामिन् ! तमारा
आत्माना अध्यवसाय चर्मदृष्टिवालाने गोचर नथी, माटे तमे अगोचर बो. वली तमाळं चारित्र निश्चयथी , माटे तमे निश्चयरूप बो. तथा ( संवर के० ) तमे पांच इंजियने संवरी जे. हवे + नवां कर्म तमने बांधवां नथी, परंतु मूलगां ने तेने क्षय करशो, माटे तमे संवररूप बो. वली
हे प्रजु ! तृष्णारूप तृषाए तमाएं चित्त खप्नमां पण फरस्युं नथी, एटले तृष्णा ने ते कर्मनी वधारनारी ने तेने तो तमे प्रथमश्रीज पोताने वशवर्ती करी बे, केमके जो वश न होय तो स्पर्शे, माटे तमारुं चित्त स्वप्नमां पण तृष्णाए स्पश्यु नथी. वली प्रकारांतरे हे मुनीश्वर ! साधु बहा सातमा | गुणगणाना वासी होय, पण तमारामां ए बे गुणगणां नथी. तमारे विषे जाणपणुं तो बे गुणगणांनुं , पण जावथी एक सातमुं गुणगणुंज ग्रयु डे ॥ ११ ॥
तुज मुजा सुंदर सुगुण पुरंदर ॥ वि० ॥ सूचे अति अनुपम उपशम लीला चित्तनी॥ वा ॥ जो ददने गदन दोय अंतरचारी॥वि०॥तो किम
नवपल्लव तरुअर दीसे सोदतो ॥ वा० ॥ १२ ॥ अर्थ-वली हे मुनिराज ! ( तुज मुखा सुंदर के० ) तमारी बाह्य प्रकारे मुख प्रमुख शरीरनी है मुखा देखतां थका घणीज ( सुंदर के० ) मनोहर लागे बे, माटे ते मुखा (सुगुण के०) जला गुण तेनी (पुरंदर के०) इंज, कारण के संसारी जीवमा पहेला गुणगणावालाथी चोथा गुण-15 गणावालामां घणा गुण होय. वली चोथावालाथी पांचमा गुणगणे वर्तता जीवोमां वधारे गुण होय. तेथी पण तमे तो हा सातमा गुणगणे रह्या बो, माटे ते गुणगणां प्रमाणेज तमारा जला | गुण बाह्य आकारे देखाय . एवी जे तमारी बाह्यनी मुसा, तेज अमोने अत्यंत अनुपम एटले उपमाए रहित एवी तमारा अंतरमा (चित्तनी के० ) अंतःकरणनी पण उपशम एटले शांत रस
SHOROSAROCTOCOCCASSCORROCESCORRECRUM
R
RORS
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #308
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
खं
॥१५॥
RRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRC
मय जे लीला, तेने (.सूचे के०) सूचवे , एटले जणावे . अर्थात् जेवी तमारी बाह्य थकी। उपशम रसनी लीला देखाय ने तेज अंतरमा तमारं चित्त पण उपशम रसमयज . श्हां को पूजे जे बाह्य इंगिताकार देखीने अंतरमां पण तेवोज परिणाम हशे, एम तमे शा उपरथी जाणो| बो ? कदापि बहारनी मुसा तो सुंदर देखो बो, पण अत्यंतरमा दोष सहित दशे तो ? एम|8|
बनारने दृष्टांतपूर्वक उत्तर थापे के के जो (तरुथर के० ) वृक्ष तेने (अंतरचारी के०) अंत-14 सारंग वचाले थडमां कोटर मांहे ( दहन के०) अग्नि जस्यो होय तो पड़ी ते वृक्ष बहारथी पण
केवी रीते नवपश्वव थकुं ( सोहतो के०) शोजतुं देखाय ? अर्थात नज देखाय.तेम तमारा अंतर माहे जो उपशम लीला न होय तो बाह्याकारे पण समतामय मुसा क्याथीज होय ? माटे हुँ जाणुं बु जे बाह्य थकी तमारी मुषा गुणवंती देखाय , तो अंतरंगमां पण तमे उपशम गुणे करी संभृत बो, तेथी सुगुण पुरंदर बो ॥ ११॥
वैरागी त्यागी तुं सोनागी ॥ वि०॥ तुज शुन्न मति जागी नाव नांगी मूलथी॥ वा ॥ जगपूज्य तुं मारो पूज्य के प्यारो ॥ वि० ॥ पदेलां
पण नमीयो दवे उपशमीयो आदस्यो॥वा० ॥१३॥ al अर्थ-वली हे खामिन् ! तमे वैरागी एटले रागरहित बो. वली तमे बाह्य अने अत्यंतर एवा बे 2
प्रकारना संयोगना त्यागी बो. तिहां बाह्यथी तो स्त्री, पुत्र, धन, धान्यादिक परिग्रह, तेथी रहित 8 बो, अने अंतरंगथी क्रोधादिक कषाय जे राग द्वेषादिक योग तथा अविरति, मिथ्यात्वथी रहित | Smun
बो, माटे त्यागी बो. वली तमे सौजाग्यवंत बो. वली हे ऋषीश्वर ! तमने नली मति जे रुमी लीबकि ते जाग्रत थश, थने कुमतिनो नाश थवाथी सुमतिनुं राज्य थयु, तेथी जवन्त्रमणपरंपरा-1
दिकनी जे नावठ हती ते नांगी गइ, एटले तमारे जवनो हठ तथा जवनी अनादि स्थिति तथा
Jan Educmione temational
For Personal and Private Use Only
Page #309
--------------------------------------------------------------------------
________________
C
नावठ एटले द रिजपणुं ते सर्व मूलथी नांगी गयु, माटे हवे तमे नीहाल थया. वली हे मुनि !|| तमे वर्ग, मृत्यु अने पातालरूप त्रण जगतमा सुर, असुर अने मनुष्य तेहने वृंदे पूजनीय बो,8 माटे तमे जगत्रयपूज्य हो, एटले त्रण जगतने पूजवा योग्य बो, अने मारा तो वली अत्यंत वहन प्यारा पूज्य बो, शामाटे जे पहेला पण ( नमीयो के) पूर्वेपण गृहस्थाश्रममा तमे मारे नमवा| योग्य नगे, केमके तमे मारा काका थाव बो, ते पिताने ठेकाणे गे, जे माटे उत्तम विवेकवंत पुरु-16 अपने वृद्धनो विनय करवो उचित . विनय ने ते सहज श्रीजिनशासननुं मूल . विनयी पुरुष धर्म पामे, सुलजबोधी थाय, विनयश्री देव, दानव सर्व वशवर्ती थाय, आचारनुं मूल पण विनय र बे, सर्व शुन गुण विनयने वश , माटे तमे प्रथम पण नमवा योग्य हता, अने हवे तो वली उपशमीयो एटले कषायादिक उपशमकारक जे धर्म तेने तमे श्रादयो एटले अंगीकार कस्यो, अर्थात् चारित्र श्रादह्यु, तेथी तमे त्रणे जगतने नमवा योग्य थया. तेमां मारा तो वली विशेषे करी/ नमस्कार करवा योग्य तथा पूजा, सत्कार, सन्मान करवा योग्य मो, माटे हुँापने वारंवार वाउं.18 एम अनेक युक्ति सहित ज्ञानना जाणवा थकी विनयवचने करीने नक्ति सहित अनेक प्रकारनी |स्तवना श्रीपाले करी. तेमांथी किंचित् मात्र इहां कही देखामी ने ॥ १३ ॥
एम चोथे खेमे राग अंखमे संथण्यो ॥ वि०॥ जे मुनि श्रीपाले पंचमी ढाले ते कह्यो । वा ॥ जे नवपद महिमा मदिमाए मुनि गावशे ॥ वि० ॥
ते विनय सुजश गुण कमला विमला पावशे ॥ वा० ॥ २४॥ अर्थ-ए प्रकारे चोथा खमने विषे अखंग रंगे एटले श्रखंम आनंदे करी सहित अथवा पागंतरे राग अखंडे एटले पूर्ण रागे करी जे ( मुनि के० ) अजितसेन मुनि महाराजने ( श्रीपाले |
ANCARNACSCALCAMSANGALOCALCASCAMOS
Sain Education
Interational
For Personal and Private Use Only
Page #310
--------------------------------------------------------------------------
________________
.४
श्री राके ) श्रीपाल राजाए ( संथुएयो के० ) संस्तव्यो, ते शहां पांचमी ढाले करीने कह्यो. श्रीसिक- खंग.
चक्र प्रतिष्ठित नव पदनो महिमा तेने मोटा महिमाए करीने जे मुनि सावध व्यापार रहित ॥१५३॥ATT थको गावशे, श्रथवा इहां मुनिनी प्रधानता करी, परंतु उपचारथी गृहस्थ पण लेवो, माटे मुनि
A अथवा गृहस्थ जे गुण गाशे ते विनय अने नलो यश तप गुण तेनी (कमला के०) लक्ष्मीने ( विमला के० ) निर्मलपणे पामशे. अथवा ए रास प्रथम श्रीविनय विजय गणिए रचवा प्रारंजई ४ कस्यो हतो. तेमणे त्रीजा खंमनी पांचमी ढाल मांहेली एकवीश गाथा पर्यंत रची ते वारे समा-18 धिस्थ थया, काल प्राप्त थया. तदनंतर श्रीयशोविजय गणिए पूर्ण कस्यो. ते अनुसारे श्रीविनय
ने यश ए बे कवि कहे बे के जे मुनि नव पद महिमाने महिमाए करी गाशे, अथवा ( महा। माहे के० ) पृथ्वीने विषे गावशे ते मला गुण सहित सिकिरूप कमलाने पामशे. एम जाणी| उत्तम पुरुषे नव पदनुं ध्यान त्रिकाल कर, ॥ १४ ॥
॥दोहा॥ अजितसेन मुनि इम थुणी, तेहने पाट विशाल ॥ तस अंगज गजगति सुमति, थापे नृप श्रीपाल ॥१॥ कारज कीधां आपणां, आरजने सुख
दीध ॥ श्रीपाले बल पुण्यने, जे बोल्युं ते कीध ॥२॥ श्रर्थ-ए प्रकारे अजितसेन मुनिनुं स्तवन करीने पठी तेनो अंगज एटले पुत्र गजगति एवे 2 नामे ते सुमति एटले रुमी बुझिनो धणी बे, तेने श्रीपाल राजाए अजितसेननी पाटे स्थाप्यो | ॥१५३॥ ॥ १॥ ए रीते पोतानां कार्य कस्यां, अने श्रारज जे सऊन पुरुषो तेमने सुख दीधां, एटले सुखी18 कस्या. एम श्रीपाले पोताना पुण्यने बले करी जे मुखश्री बोल्यो हतो ते सर्व सफल कस्तूं॥२॥
-
Jain Educati
o
nal
For Personal and Private Use Only
Page #311
--------------------------------------------------------------------------
________________
MCOMCANCIENCIACANCI
॥ ढाल बची ॥ बलद लला ने सोरठी रे लाल ॥ ए देशी ॥ विजय करी श्रीपालजी रे लाल, चंपा नगरीए करे प्रवेश रे॥ सोनागी ॥ टाव्या लोकना सकल कलेश रे॥ सो० ॥ चंपा नगरी ते बनी सुविशेष रे । सो ॥ शणगास्यां हाट अशेष रे॥सो० ॥ पटकूले गया प्रदेश रे ॥ सो० ॥ जय जय नणे नर नारी रे लाल ॥१॥ फरके ध्वजा तिहां चिहुं दिशे रे लाल, पग पग नाटारंन रे॥ सो० ॥ मांड्या ते सोवन थन रे॥ सो ॥ गावे गोरी अदंन रे॥सो ॥ जेणे रूपे जीती ने रंन रे
॥सो० ॥ बनने पण दोय अचंन रे ॥ सो० ॥ जय० ॥२॥ अर्थ-हवे श्रीपाल राजा ( विजय करी के० ) पोतानी जीत करीने चंपा नगरी मांहे प्रवेश करतो हवो. वली लोकनां मनमां एवा क्लेश हता जे आ ठेकाणे शुं जाणीए शुं थशे? ते सदा सौनागी एवा श्रीपाले सर्व लोकना क्लेश टाल्या. ते समये चंपा नगरीनी शोना विशेष प्रकारे बनी रही, लोकोए चंपा नगरीनां (अशेष के) समस्त हाटनी श्रेणी शणगारी, पटकूल जे हीरागल वस्त्र तेणे करी तेना प्रदेश एटले हाटनी नीतोने बगही लीधी के. चंपा नगरीनां नर नारी सर्व लोको ते गम गम श्रीपाल राजानो यश जय जय शब्दे बोलवा लाग्यां ॥१॥ चारे । दिशाए मोटी ध्वजा फरकी रही बे, पगले पगले नाटारंन थक्ष रह्यो , गम गम सोनाना , थांजला मांड्या ने, ते थंन उपर मांचा मांड्या बे, तेनी उपर बेठी थकी (गोरी के) स्त्री ते (अदंन के०) कपटरहितपणे मांगलिकनां गीत गाय बे. ते स्त्री रूपे करी रंजाने 3 पण जीते एवी , ते देखी (बंनने के०) ब्रह्माने पण अचंबो थाय जे थावा रूपवाली स्त्रीने में कये दिवसे घमी ? ॥२॥
ANS-
SOCIENCIENCHECCANCE
For Personal and Private Use Only
Page #312
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥१५४॥
श्रीराम सुरपुरी ऊंपा जे करी रे लाल, चंपा दुइ तेण वार रे॥सो ॥ मदमोद
खंफ.४ समुन्मां सार रे ॥ सो० ॥ फलीयो साहस मानुं नदार रे॥सो० ॥ तिहां
आव्यो हरि अवतार रे ॥ सो० ॥ श्रीपाल ते कुल उभार रे ॥ सो ॥जय० ॥ ३ ॥ मोतीय थाल जरी करी रे लाल, वधावे वर नार रे ॥ सो० ॥ करकंकणना रणकार रे ॥ सो० ॥ पग छांऊरना ऊमकार रे ॥ सो ॥ कटिमेखलना खलकार रे॥ सो० ॥ वाजे मादलना धौंकार रे
॥सो० ॥ जय० ॥४॥ अर्थ-शहां दृष्टांत कहे जे. जेम कोश्क पुरुष तपस्या करवी, अथवा सत्य बोलवं श्रादिक अनेक प्रकारनां साहस करे , तेमांना कोश्क साहसने अंगीकार करीने पठी ते साहस कर-18 वाथी कोइ पण प्रकारनु शुन्न स्थानक पामे, तेम (सुरपुरी के ) स्वर्गपुरीए विचाखु जे श्रा स्थानक करतां कोई वधारे कीर्त्तिनुं स्थानक पामुं तो सारुं एवो (मद के०) अहंकार तेनो (मोद के) हर्ष धरती थकी तेणे (सार के० ) प्रधान समुपमां (कंपा के० ) ऊंपापात कस्यो. ते हुँ एम मानुं बुं के ते सुरपुरीनुं ( उदार के० ) मोटुं जे ( साहस के० ) धैर्य ते फट्यु. जे ( तेणी वार 3 के०) ते वखते ते चंपारूप थर, अने तिहां पोताना कुलनो उद्धार करनार एवो जे श्रीपाल ते ( हरि के० ) इंशावतार थयो. अर्थात् ते चंपा नगरी इंद्रपुरीथी पण अधिक बनी रही बे, अने है। तिहां श्रीपाल ते इंजना अवतार तुल्य ॥३॥ हवे श्रीपाल राजा जे वारे नगरीमा प्रवेश करे|
ते वारे मोतीउना थाल जरी करीने ( वर के० ) प्रधान सौजाग्यवती स्त्री तेने वधावी लीए 8
, अने वधावती वखते ते स्त्रीजना ( कर के०) हाथमां कंकण पहेस्यां ने तेना रणकार शब्द काथाय डे, पगमां कांकर पहेस्यां ने तेनो कमकार थ रह्यो ने. कममा मेखला पढेरी ले तेनो खल
PARA-%CACACAAKAARAKSHAR
॥१५॥
Jain Education
International
For Personal and Private Use Only
Page #313
--------------------------------------------------------------------------
________________
कार शब्द थइ रह्यो बे, वली ( मादल के० ) पखावाजना धमप धमप धौंकार शब्द थाय वे ॥ ४ ॥ सकल नरेसर तिहां मली रे लाल, अनिषेक करे फरी तास रे ॥ सो० ॥ पितृपट्टे या उल्लास रे ॥ सो० ॥ मया निषेक विशेष रे ॥ सो० ॥ लघुपट्टे व जे शेष रे ॥ सो० ॥ सीधो जे कीधो उद्देश रे ॥ सो० ॥ जय० ॥ ५ ॥ एक मंत्री मतिसागरु रे लाल, तिन धवल तथा जे मित्त रे ॥ सो० ॥ ए चारे मंत्री पवित्त रे ॥ सो० ॥ श्रीपाल करे शुभ चित्त रे ॥ सो० ॥ ए तो तेजे हुई यादित्त रे ॥ सो० ॥ खरचे बहुलुं निज वित्त रे ॥ सो० ॥ जय० ॥ ६ ॥ कोसंबी नयरी थकी रे लाल, तेडाव्यो धवलनो पुत रे ॥ सो० ॥ तेनुं नाम विमल वे युत्त रे ॥ सो० ॥ ते शेव कस्यो सुमुहुत्त रे ॥ सो० ॥ सोवन पट बंध संयुत्त रे ॥ सो० ॥ कीधा कोश ते खय मुगुत्त रे ॥ सो० ॥ जय० ॥ ७ ॥
- पी (सकल के० ) समस्त राजा मलीने ( तास के० ) ते श्रीपाल राजानो पट्टाजिषेक फरीथी करे, एटले एक तो पूर्वे वालपणामां पहा निषेक करयो हतो, तेनो विरह यया पढी फर | दमणां पट्टाभिषेक करयो, माटे फरीथी ( पितृपट्टे के० ) पितानी पाटे घणा उल्लासथी स्थापीने राज्यानिषेक करता दवा ने नव स्त्री मांहे मयणासुंदरीने ( विशेष के० ) पट्टराणीपणे स्थापीने अनिषेक कस्यो, घने शेष जे आठ स्त्रीरही तेने लघु स्त्रीउने स्थानके पट्टाभिषेक कस्यो. श्रीपाले जे उद्देश धारयो इतो के मारा जुजबलथी राज लढं ते सर्व कार्य सिद्धुं ॥ ५ ॥ एक मतिसार नामे प्रधान जे बुद्धिनो समुद्र बे ते छाने बीजा धवल शेठना जे त्रण मित्र हता
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #314
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥१५॥
4500-5646434302.4-955
|ते मलीने चारे महा पवित्र प्रधान ते श्रीपाले पोताना शुन चित्ते करीने कस्या. ए श्रीपाल तेजे|| खंग.४ करी (श्रादित्त के०) श्रादित्य एटले सूर्य जेवो थयो, अने घणुं पोतानुं (वित्त के०) अव्य तिहां खर-12 चवा लाग्यो॥६॥ वली कोसंबी नगरीथी धवल शेग्ना पुत्रने तेमाव्यो, ते निर्मल मननो , माटे| तेनुं नाम विमल ने ते युक्तज बे, तेने शुज मुहर्ते सोनेरी (पट के) वस्त्रबंध सहित नगरशेठ कस्यो, वली तेना ( कोश के०) नंमार खजाना ते ( शखय के० ) को काले दय थाय नहीं है एवा (सु के०) जले प्रकारे ( गुत्त के० ) गुप्त कस्या ॥ ७॥
उत्सव चैत्य अहाश्यां रे लाल, विरचावे विधि सार रे ॥ सो० ॥ सिहचक्रनी पूजा उदार रे॥ सो॥ करे जाणी तस उपगार रे॥ सो ॥ तेनो धर्मी सदु परिवार रे ॥ सो ॥धर्मे नल्लसे तस दार रे॥ सो० ॥ जय० ॥७॥ चैत्य करावे तेहवां रे लाल, जेद स्वर्गशुं मामे वाद रे ॥ सो० ॥ विधुमंमल अमृत आस्वाद रे॥ सो० ॥ ध्वज जीद लीए अविवाद रे ॥ सो० ॥ तेणे गाजे ते गुहिरे नाद रे ॥ सो० ॥ मोमे कुमतिना जन्माद
रे ॥ सो० ॥ जय० ॥ ५॥ अर्थ-हवे ते श्रीपाल परमेश्वरना चैत्यने विषे अहाइ श्रादिक महोत्सव श्रेष्ठ विधिए करीने | ( विरचावे के ) रचावे .तिहां ( उदार के० ) मोटी सिझचक्रजीनी पूजा ते श्रीसिद्धचक्रजीनो 8 उपकार जाणीने करे . एम ते श्रीपालनो सर्व परिवार धर्मिष्ठ ने, अने तेनी (दार के०) स्त्री पण धर्मने
॥१५॥ विषे उससे एटले उबास पामे वे ॥ ७॥ वली जे खर्गनी साथे पण वाद करे एवां परमेश्वरना है। देरां करावे , जे चैत्य पोतानी ध्वजारूप (जीहे के०) जीने करीने विधुमंगल जे चंडमानुं ? मंगल ते माहे रडं जे अमृत तेनुं अविवादपणे आस्वादन करे , ( तेणे के ० ) तेने योगे करी 31
in Education International
For Personal and Private Use Only
Page #315
--------------------------------------------------------------------------
________________
ते ध्वजा गुहिर एटले गंजीर शब्दे करीने गाजी रही . ए उत्प्रेक्षा अलंकार जाणवो. वली कुमति जे माठी मतिना धणी तेना उन्मादने मोडे डे, एटले पूर करे ने ॥ ५॥
पडद अमारी वजावीया रे लाल, दीधां दान अनेक रे॥सो ॥ साचवीया सकल विवेक रे ॥ सो० ॥ समकितनी राखी टेक रे ॥ सो० ॥ न्याये राम कदायो ते क रे॥ सो ॥ ते राजहंस बीजा नेक रे ॥ सो ॥ जय० ॥१०॥ अचरिज एक तेणे कां रे लाल, मन गुप्त गृहे हुता जेह रे॥ सो० ॥ कर्णादिक नृप ससनेह रे॥ सो० ॥ गेमावीया सघला तेह रे ॥ सो० ॥ निज अनुत चरित अद रे ॥ सो० ॥ देखावी निज
गुणगेह रे ॥ सो० ॥ जय० ॥ ११॥ अर्थ-वली श्रीपाले अमारीना पमह वजडाव्या, सुपात्रने अनेक प्रकारनां दान दीधां. एम तेणे धर्म संबंधी सर्व विवेक साचव्या. तथा शुद्ध देव, शुद्ध गुरु अने शुद्ध धर्मरूप जे समकित, तेनी टेक राखी. ए श्रीपाल न्यायमार्गमां तो बेक रामचंद्रजी जेवो कहेवाणो, माटे ते समये श्रीपाल ते राजहंस सरखो , अने बीजा राजा ते नेक एटले देमकां सरखा ने ॥ १० ॥ वली|| ते श्रीपाले एक अचरिज कडं ते कहे के पूर्व जे करणादिक राजा थया ने ते शूरपणे, त्यागी पणे, नोगीपणे, गुणवंतपणे लोकनां मनमां सस्नेहपणे रहेता हता, तेथी जाणीए जे ते मनरूप जे है गुप्त गृह एटले बंदीखानुं तेमां पड्या होय नहीं ? ते जे वारे ए श्रीपाल महागुणवंत प्रगट थयो ।
ते वारे एणे अनुत एटले आश्चर्यकारी अह एटले हर हित पार विनानुं पोतानुं चरित्र देखामीने जगतमां गुणघररूप पोते थयो, एटले दाने करी, यशे करी ते सर्वथी वधतो थयो, तेथी।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #316
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥१५६॥
सर्व जन एनेज पूर्वोक्त बिरुद देवा लाग्या, अने आगलना राजवीनां नामने विसारखा लाग्या, माटे ए श्रीपाले ते सर्वने मनरूप बंदीखानामांथी बोमाव्या, ए आश्चर्य कस्युं ॥ ११ ॥
श्रीपाल प्रतापथी तापीयो रे लाल, विधि शयन करे अरविंद रे ॥ सो० ॥ करे जलधिवास मुकुंद रे ॥ सो० ॥ दर गंग धरे निसपंद रे ॥ सो० ॥ फरे नावा सूरज चंद रे ॥ सो० ॥ च्प्ररि सकल करे प्राकंद रे ॥ सो० ॥ जय० ॥ १२ ॥ तस जश बे गंगा सारिखो रे लाल, तिदां अरि अपजश सेवाल रे || सो० ॥ कपूर मांदे अंगार रे ॥ सो० ॥ अरविंद मांदे अलिबाल रे ॥ सो० ॥ अन्योन्य संयोग नीहाल रे || सो० ॥ दीए कवि उपमा ततकाल रे || सो० ॥ जय० ॥ १३ ॥
अर्थ- दवे श्रीपाल राजाना प्रतापनुं वर्णन करे बे. ते श्रीपालना अत्यंत आकरा तेज प्रतापरूप अग्निश्री तप्यो थको विधि जे ब्रह्मा तेणे शीतल थवा माटे ( अरविंद के० ) कमल तेमां ज शयन कस्युं ने मुकुंद जे श्रीकृष्ण तेणे ( जलधि के० ) समुद्रमां जश् वास कस्यो. प्रागवमनां पदमां उपर जइ सुइ रह्यो. वली (हर के० ) महादेव पोताने शीतलता करवा माटे माथानी उपर ( निसपंद के० ) निश्चलपणे (गंग धरे के ० ) गंगा नदीने धारण करे बे, ने चंद्र सूर्य तो नासताज फरे बे. तथा ( अरि के० ) शत्रु ते सर्व ( आनंद के० ) बूमो पाडी रह्या बे ॥ १२ ॥ वली ते श्रीपालनो यश तो गंगा सरखो उजलो बे, ते गंगा नदीमां सेवाल जोइए, माटे तिहां शत्रुना अपयशरूप सेवाल बे, वली कपूर सरखो उजलो श्रीपालनो यश, तिहां अंगार एटले कोयला सरिखो शत्रुनो अपयश बे, तथा कमल समान श्रीपालनो यश, तिहां ( अलिबाल के० ) मराना
Jain Educationa International.
For Personal and Private Use Only
खंग. ४
॥१५६॥
Page #317
--------------------------------------------------------------------------
________________
बालक सरखो कालो शत्रुनो अपयश ३ एम अन्योऽन्य संयोगे ( नीहाल के० ) जोवू. श्रीपालनो || यश अने शत्रनो अपयश, ए बेनी कवीश्वर सहगामी उपमा श्रापे ॥१३॥
सुरतरु स्वर्गथी जतरी रे लाल, गयां अगम अगोचर गम रे॥ सो० ॥ जिहां को न जाणे नाम रे ॥ सो॥ तिहां तपस्या करे अन्निराम रे ॥ सो० ॥ जब पाम्युं अद्भुत गम रे ॥सो० ॥ तश करअंगुलि हुआं ताम रे ॥ सो० ॥ जय० ॥१४॥जश प्रताप गुण आगलो रे लाल, गिरज ने गुणवंत रे ॥ सो ॥ पाले राज महंत रे ॥ सो० ॥ वयरीनो करे अंत रे ॥ सो०॥ मुखपद्म सदा विकसंत रे ॥ सो० ॥ लीला
लहेर धरंत रे॥ सो० ॥ जय० ॥१५॥ 7 अर्थ-हवे ( सुरतरु के०) कल्पवृदो तेनो स्वर्गमां निवास बे, परंतु तेमणे विचाखु जे अमारो अर्थी इहां कोई नथी, एम विचारीने स्वर्गथी उतस्यां, ते (अगम के०) कोश्ने गम न पडे,18 (अगोचर के०) कोश देखे नहीं, तथा को जेलखे नहीं, जिहां एनुं को नाम पण न जाणे । एवे स्थानके गयां. तिहां जश्ने अजिराम एटले मनोहर तपस्या करता हवा. ते तपस्या करतां
करतां तेमणे तपस्यानु फलरूप एवं कोश् स्थानक पोताने रहेवानुं जगतमां दी नहीं के जे तेनी पासे जश्ने रहे, एवं कोर ठेकाणुं पामता न हता. एम जोतां जोतां (जब के०) जे वारे तेमणे 31 अत्यंत अद्भुत स्थानक पाम्युं ते वारे ( तस के० ) ते श्रीपाल राजाना ( कर के० ) हाथनी अंगुलिरूप थयां, एटले कल्पवृदो पोतानी तपस्याना माहात्म्यथी श्रीपाल राजानी अंगुलिरूप थयां.
ते दान दीए , माटे श्रीपाल राजा कल्पवृक्ष समान दानेश्वरी ने, तेथी कविए ए उपमा दीधी ४ ॥ १४ ॥ वली जे (जश के० ) यश कीर्ति, (प्रताप के०) तेज अने गुण, तेणे करी श्रीपाल
ACCOCCAUCLICROCK
Jain Education
Interational
For Personal and Private Use Only
Page #318
--------------------------------------------------------------------------
________________
ARDAmawimmuARIN
श्री राणासर्व मांहे (श्रागलो के०) अग्रेसर , अथवा यश, प्रताप अने गुण ते जेना (बागलो के) खम. ४
सर्वथी अग्रेसर , वली गिरु ने अने महागुणवंत , ( महंत के० ) मोटुं उदार राज्य जोगवे 8 ॥१५॥ANA
ने, वैरीनो ( अंत के०) क्षय करे ये एवो पराक्रमी बे, राज्यनी लीलालदेरनो धरनारो , जेनुं मुखरूप ( पद्म के० ) कमल ते सदा निरंतर विकस्वर थकुंज रहे ॥ १५ ॥
मेरु मवे जे अंगुले. रे लाल, कुशअग्रेजलनिधिनीर रे ॥ सो० ॥ फरसे
आकाश समीर रे॥ सो० ॥ तारागण गणित गंजीर रे ॥ सो० ॥श्रीपाल सुगुणनो तीर रे ॥ सो ॥ ते पण नवि पामे धीर रे ॥ सो० ॥ जय० ॥ १६ ॥ चोथे खंभे पूरी थक्ष रे लाल, ए ही ढाल अन्नंग रे ॥सो० ॥ इदां नक्ति ने युक्ति सुचंग रे ॥ सो० ॥ नव पद महिमानो रंग रे॥ सो० ॥ एदथी लदीए झानतरंग रे॥ सो० ॥वली विनय सुयश
सुखसंग रे॥ सो० ॥ जय० ॥१७॥ __ अर्थ-हवे श्रीपाल राजाना गुण अगणित , माटे कवीश्वर उपमा आपे ले के कोई पुरुष एवो है। पण होय जे मेरु पर्वत लाख योजननो चंचो ने तेने पोतानी अंगुलिए करीने (मवे के० ) मापी जाय, तथा (कुशअग्रे के० ) माननी अणीए करी ( जल निधिनीर के०) समुना पाणीने मापी समुन खाली करे, तथा (समीर के०) वायरो आकाशने फरसे, तथा तारानो ( गण के ) समूह तेनी पण कोइ ( गणित के० ) संख्या करी आपे, एटलां वानां पुष्कर , ते पण कदा-है चित् को गंजीर बुझिमंत पुरुषधी दैवयोगे थाय, पण श्रीपाल राजाना जला गुणनो (तीर के०) ॥१५॥ कांगे ते धीर थको पण न पामे, एटले न पामी शके ॥ १६ ॥ ए चोथा खंमने विषे बही ढाल
प थ३. (श्हा के०) ए ढालमा उक्ति ते कविनी चतुराई थने युक्ति ते न्याय ठेर-1|
For Personal and Private Use Only
in Education International
www.sainelibrary.org
Page #319
--------------------------------------------------------------------------
________________
विवो तेज (सु के) जलो (चंग के०) मनोदर डे, अने नव पदना महिमानो ( रंग के )
आनंद , तेथी झानना ( तरंग के०) कबोल पामीए, वली विनय अने सुयश एटले जलो यश तप सुखनो ( संग के0) समागम पामीए ॥१७॥
॥ दोहा॥ एदवे रायऋषिनलो, अजितसेन जसु नाम ॥हिनाण तस उपन्युं, शुरू चरण परिणाम ॥ १॥ तिण नगरी ते आवीयो, सुणी आगमन उदंत ॥ रोमांचित श्रीपाल नृप, हर्षित हुर्ड अत्यंत ॥२॥ वंदन निमित्ते आवीयो, जननी नऊ समेत ॥ मुनि नमी करीय प्रदक्षिणा, बेगे धर्मसंकेत ॥ ३॥ सुणवा वं धर्म ते, गुरु सन्मुख सुविनीत ॥ गुरु पण तेहने
देशना, दे नय समय अधीत ॥४॥ अर्थ-हवे अजितसेन नाम ने जेनुं एवो राजर्षि, ते नूमितले विहार करतां शुद्ध ( चरण । के०) चारित्रना परिणामनी लहेरो वृद्धिवंत थतां तेने अनुगामी अप्रतिपातिपणे ( हिनाण के ) अवधिज्ञान उपन्युं ॥१॥ ते विहार करतो तेज चंपा नगरीए आव्यो. तेना श्रागमनना | (उदंत के०) समाचार वनपालकना मुखथी सांजलीने श्रीपाल राजा रोमांचित थयो थकी है। अत्यंत हर्षित थयो ॥२॥ पठी जननी जे माता श्रने (नऊ के०) नार्या एटले स्त्री, तेणे सहित मुनिने वांदवाने निमित्ते श्राव्यो. तिहां मुनिराजने नमी त्रण प्रदक्षिका दक्ष करीने
धर्म सांजलवाना संकेते बेगे ॥३॥ ते श्रीपाल गुरुनी सन्मुख सुविनीतपणे धर्म सांजलवाने श्छे । है, अने गुरु पण तेने ( नय के०) निश्चय व्यवहार नये करी युक्त तथा नय उपनय युक्त जे (ससमय के०) सिझांत तेने अधीत थका धर्मनी देशना दीए ॥४॥
CARKACANCICENSACARACHAR
Sein Education International
For Personal and Private Use Only
Page #320
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम ॥ ढाल सातमी ॥ हस्तिनागपुरवर जवं, जिहां पांकु राजा सार रे ॥ए देशी ॥
| खंम.४ प्राणी वाणी जिन तणी, तुम्हे धारो चित्त महार रे ॥ मोहे मुंग्या मत ॥१५॥
फिरो, मोद मूके सुख निरधार रे ॥मोद मूके सुख निरधार, संवेग गुण पालीए पुण्यवंत रे॥ पुण्यवंत अनंत विज्ञान, वदे श्म केवली नगवंत रे॥१॥ दश दृष्टांते दोदिलो, मानवनव ते पण लई रे ॥ आरय देत्रे
जन्म जे, ते उद्धन सुकृत संबंध रे ॥ ते उर्खन्न । ॥ संवेग ॥२॥ अर्थ-हवे अजितसेन मुनि देशना आपे , अने श्रीपाल प्रमुख सर्व सजा सानले बे. ते देशना अजव्यने योग्य नहीं, माटे मोक्षयोग्य जे जव्य जीव ने तेने उद्देशीने कहे डे के अरे जव्य प्राणी ! जेमां दयाधर्म मुख्य बे एवी मोक्षमार्गाधिकारिणी, उर्गतिपुःख निवारिणी, पापसंताप-16 हारिणी, संसारसमुअतारिणी जे श्रीजिननी वाणी ते तमे तमारा (चित्त मकार के)मननी मध्ये धारो, पण सांजव्यु अणसांजल्यु म करो. ते वाणी सांजलीने मोहे मुंज्या मत फिरो, एटले मोहदशामां मुंज्या थका फरो नहीं. ते मोह क्यां सुधी ने ? तो के ज्यांसुधी जीवने दायिक गुण प्रगट्यो नथी त्यांसुधी बे, माटे ते मोह मूकशो ते वारेज ( निरधार के०) निश्चे सुख पामशो. ते निश्चय सुख तो सिझना जीवोने , माटे ते पामवानो उपाय ए ले जे संवेग गुण पालवो. ते संवेगीपणुं कोने कहे ? तो के जेमां मोक्षमार्गानुयायी क्रियानुं करवू होय तेने संवेगीपणुं कहीए, माटे ते पालवू. हे पुण्यवंत जीवो ! तमे सांजलो, ए हितशिदा कोनी कहेली
॥१५॥ ने ? तो के जे महा पुण्यवंत, अनंत विज्ञानना धणी, अनंत शक्तिना धणी, अनंत बलवंत 81 एवा जे केवली जगवंत, तेणे ( वदे के०) कहेली . ते आगली गाथाए कहे ॥१॥ काहे नव्यो ! तमे सांजलो के ॥ चुल्लग पासग धन्ने, जूए रयणे व सुमिण चके
-
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #321
--------------------------------------------------------------------------
________________
जुगे परमाणु, दस दिहंता मालने ॥ १ ॥ इति दृष्टांत गाथा ॥ ए गाथामां कहेला दश दृष्टांते करी पामवो दुर्लज एवो ( मानवजव के० ) मनुष्यनो जव बे, ते पण जो घणोज पुण्यनो संचय होय तो पामीए. ते कदाचित् मनुष्यजव पण ( लऊ के० ) पाम्यो, तेमां पण वली श्रार्य देशमां जन्म पामवो घणो दुर्लन बे. जो घणी ( सुकृत के० ) शुभ करणीनो संबंध होय तोज आर्य | देश मांहे जन्म पामीए. तिहां जरतक्षेत्रमां वत्रीश हजार देश बे. ते मांहे पण सामापचवीश श्रार्य देश बे, अने बीजा सर्व श्रनार्य देश जाणवा. ते श्रार्य देश कोने कहेवो ? तो के जिहां शुद्ध देव, शुद्ध गुरु ने श्रीवीरागनो नाखेलो धर्म, तेनी सामग्रीना प्रवर्त्तक जे साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविका, आचार्य, उपाध्याय ने थिविर, ए सात होय, तेने आर्य देश कहीए ॥ २ ॥
दुर्ज, पण उत्तम कुल ते दुर्लन रे ॥ व्याधादिक कुले देत्र अचंन रे ॥ शुं० ॥ संवेग० ॥ ३ ॥ कुल पामे रोग प्रान समाज रे || रोगी रूपरहित घणा, दी नदी से बेरे ॥ दी० ॥ संवेग० ॥ ४ ॥
Jain Educationa International
आरय देत्रे जनम उपनो, शुं आरज पण डल्लो, रूप
- ते पण को पूर्वजवधर्मकर्त्तव्ययोगे श्रार्य देशमां जन्म थयो तोपण तेथी शी सिद्धि थाय ? ते यार्य देशमां पण जे मोटा इन्य व्यवहारिया, शेव, सेनापति, धन धान्यादिके पूरित तथा कुल ते पितानो पक्ष ने जाति ते मातानो पक्ष ए वे जेना विशुद्ध निर्मल होय तेने उत्तम कुल क हीए, ते पामवुं दुर्लन बे. श्रार्य देशमां पण जो कदाचित् व्याधादिक जे कोली, वाघरी, जिल्ल, माठी, कसार, मांस जक्षण करनार इत्यादिक हिंसक लोकने व्याध कहीए, तेमना कुलमां उपन्यो अने आर्य क्षेत्र पाम्यो तो तेमां श्यो चंवो जाणवो ? फोकट जव हारी जाय, माटे पाम्यो ते
For Personal and Private Use Only
Page #322
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग.४
श्रीरान पाम्या जेवू थयु ॥३॥ वली कदापि पूर्व जन्मना पुण्योदयथी पूर्वोक्त उत्तम कुल पाम्यो
तोपण तेमां रूपवंतपणुं तथा थारोग एटले रोगरहितपणुं अने श्रायु, एटलां वानांनो (समाज ॥९५णा
के ) संपूर्ण योग पामवो ते खरेखरो पुर्खन , केमके आजना काल मांहे उत्तम कुल पामीने पण घणा प्राणी रोगिष्ठ, वली घणा प्राणी रूपरहित तथा घणा प्राणी हीनायु एटले अल्पायुवाला| देखाय , माटे तेमने पुण्यकार्यमां एटली खामी रही, तेणे करी रूप न पामे, तेथी लोकोने श्ष्ट न लागे, तथा रोग सहित होय तो धर्मनां कार्य साधी शके नहीं, वली हीनायुवालाथी। पण कां सुकृत थाय नहीं. ते वारे ते जीव उत्तम कुल पाम्यो तोपण शुं ? श्रने न पाम्यो| तोपण शुं ? कांज नहीं ॥४॥
ते सवि पामे पण सही, उलदो ने सुगुरु संयोग रे ॥ सघले खेत्रे नहीं
सदा, मुनि पामीजे शुभ योग रे॥ मुनि ॥ संवेग ॥५॥ __ अर्थ-ए पूर्वोक्त मनुष्यनो जव, आर्य क्षेत्र, उत्तम कुल, रूपवंतपणुं, रोगरहितपणुं अने संपूर्ण ।
श्रायुष्य, ए सर्व वानां पामे, पण ( सही के० ) निश्चय थकी सारुनो संयोग पामवो महा - शर्लन बे, एटले जे पंचम गतिना साधक पोते संसारना पाशथी मूकाणा ने बीजाने मूकाववा समर्थ ते गुरु मलवा उर्लन ने. ते गुरु शास्त्रमा त्रण प्रकारना कह्या , तेमां एक तो पञ्चर समान 2 ते पोते पण ब्रडे अने श्राश्रय करनारने पण ब्रमाडे, बीजा काष्ठ समान ते पोते पण आश्रय करनारने पण तारे, त्रीजा पिप्पलपत्र समान ते पोते तरे अने आश्रय करनारने बूमाडे.
ए त्रण नेद मांहेला बीजा नेदवाला काष्ट समान एवा सुगुरु, उत्तम गुरु, महामुनि, अकिंचनी, इनिर्लोजी, परोपकारी, तेनो जलो योग ते सर्व देत्रने विषे था पंचम कालमां सदा सर्वदा न पा-12
मीए, केमके गुणहीन घणा होय अने गुणवंत थोमा होय ॥५॥
AAAAAAACACACANCA-GCRICCASEARCroche
॥२५
Educantematonal
For Personal and Private Use Only
Page #323
--------------------------------------------------------------------------
________________
महोटे पुण्ये पामीए, जो सद्गुरु संग सुरंग रे ॥ तेर काठीया तो करे, गुरुदर्शन उत्सव नंग रे॥ गुरु० ॥ संवेग ॥६॥ दर्शन पामे गुरु तj, धूर्ते व्युग्राहित चित्त रे ॥ सेवा करी जन नवि शके, होये खोटो नाव
अमित्त रे ॥ होये ॥ संवेग ॥ ७॥ | अर्थ-ते पण कदापि जो मोटां पुण्यकार्य कस्यां होय तो जला रंगे करी सहित रुमा गुरुनो पण संग पामीए, थने ते गुरु गाममांज , धर्मशास्त्रनी देशना पण आपे , तथा ?
आपणे पण तेवा गुरुनु दर्शन करीने उपदेश सांजलीए ! एवं जे वारे मन करीए तो ते 3 वारे तेर काठीया ने ते गुरुदर्शनना उत्सुकपणानो नंग करे बे. हवे ते तेर काठीयानां नाम 8 कहे . एक गुरु पासे जतां थालस थाय ते बालस काठीयो, बीजो पुत्र कलत्रे वींव्यो रहे, तेथी गुरु पासे जवाय नहीं ते मोह काठीयो, त्रीजो गुरु कांश खावा आपशे नहीं, जो धंधो ,
करशुं तो खाशें, एम चिंतवी न जाय ते अविनय काठीयो, चोथो मोटाइ मनमा राखे, जे ६ कोण सर्वने पगे लागे ? ते अनिमान काठीयो, पांचमो गुरुनी भागता स्वागता न करे, बोलावे 8
नहीं, धर्मलान न आपे ते क्रोध काठीयो, हो प्रमादमां नस्यो रहे ते प्रमाद काठीयो, सातमो 4 रखे गुरु पासे जतां का पैसा खरचवा पडे, एवी कृपणता राखे ते कृपण काठीयो, श्राठमो जय है। राखे ते जय काठीयो, नवमो शोकने योगे न जाय ते शोक काठीयो, दशमो अज्ञानताने लीधे । गुरु पासे न जाय ते अज्ञान काठीयो, अगीयारमो विकथा करवामां तत्परपणे गुरु पासे न जाय | ते विकथा काठीयो, बारमो गुरु पासे जतां मार्गमां कौतुक जोवा उनो रही जाय ते कौतुक काठीयो, अने तेरमो विषयमा माची रहे, तेथी गुरु पासे जवाय नहीं, माटे ते विषय काठीयो है जाणवो. ए तेर काठीयानां नाम कह्यां ॥ ६॥ कदापि पूर्वकृत पुण्योदये करी तेर काठीयानो
in Education International
For Personal and Private Use Only
Page #324
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराअंतराय निवारीने गुरुनुं दर्शन पाम्यो, श्रने धर्मदेशना पण सांजली, तो ते गुरुनां हितकारक 51 वचन पोताना चित्तमां धारे नहीं, शामाटे ? जे (धूर्ते व्युग्राहित चित्त के०) पूर्वे कुगुरुनी
1 खंग. ४ ॥१६॥ संगति करी बे, तेणे पोतानां मिथ्या उपदेशवचन दृढपणे तेने रुचाव्यां , ते कदाग्रहपणे अस्थि
मजामय करी राख्यां , एवो खोटो धर्म देखामीने वली एवं कडं के के हुं कहुं हुं एथी उप-10 रांत बीजो कोई धर्मनो सार बेज नहीं, ते माटे रखेने तुं ए धर्मथी चलायमान थइ जा! तुजने | बीजो कोइ पाखंमी मलशे, ते पोतानो धर्मोपदेश करशे तेने तुं सत्य जाणीश नहीं ! एम वारं-टू वार वचनयुक्तिए तेने कुगुरुए प्रथम समजावेलो , अने ते मुग्ध जीवे पण तेनुं वचन पोताना मनमा तेमज निर्धार करी राख्यु डे के एणे जे कडं तेज सत्य . ए रीते प्रथम कुगुरुरूप धूर्ते । तेनुं चित्त व्युग्राहित क . तेने सद्गुरु मल्या, तेणे संसार तरवारूप धर्म कह्यो, परंतु पूर्वे | कुधर्म अंगीकार करेलो ने तेने योगे ते खरा धर्मने श्रादरी शकतो नथी, तेथी ते (जन के०) पुरुष सद्गुरुनी सेवा करी शके नहीं. उलटो ते मूर्खनो गुरु उपर अमित्रता एटले शत्रुपणानो खोटो नाव थाय. एवा प्राणी जे होय ते धर्म पामी शके नहीं. तेनी उपर एक दृष्टांत कहे के 2 को एक जोगी गुरु अने चेलो ए वे जण जमतां नमतां एक मोटा नगरमां आव्या. तिहां गुरु । नगर वहार बेगे, श्रने चेलाने जिदा लेवा नगरमा मोकल्यो. ते चेलो कोश् शाहुकारनी हवेलीमां
गयो, त्यां सर्वना हाथमां सोनानां कमां पहेरेला दीगं, तेथी तेने पण कमां पढेरवानी होश थ. जापली निदा लश् गुरु पासे आव्यो. तिहां गुरु साथे जमी लीधा पठी गुरुने कहेवा लाग्यो के है
तुम मेरेको सोनेके कडे पहेरा ! तब में तुमेरी बंदगी करुंगा ! तेने गुरुए कह्यु के बेटा ! योगमार्गमें एक दमडीनी पास नहीं रखनी, तो फेर सोनेके कडे किसतरे रस्का जावे ! इस वास्ते ॥१६॥ मेरे तेरे नहीं बने ! एम कही योगी चेलाने त्यांज मूकी चाल्यो गयो. पालथी चेलाए पैसा पेदार करी कडां पहेरवानो निश्चय कस्यो. नित्य प्रजातनो गाममां जश् कण आटो मागी
Sain Educ
a
tional
For Personal and Private Use Only
Page #325
--------------------------------------------------------------------------
________________
वेचीने पैसा करवा मांड्या. एम करतां त्रण चार वर्षमा चारसें पांचसें रूपैया एका कस्या. पली ते नगरमां एक सोनी रहे जे तेनी साथे मित्रा करी मांहोमांहे घणा स्नेदे मले, पण सोनी कपटी ने तेनी जोगीने खबर नथी. एक दिवसे जोगीए सोनीने कडं के हे मेरे मित्र ! मैनें चारसें । पांचसे रूपैये एकिछे कीये है, उसका अछा सुन्ना लेके मेरेको कमां बना दे. एबुं सांजली सोनीए । कडं के तुं मारो मित्र बो अने मारी आबरु गाममां सारी नथी, तेथी गामना सोनी, सराफ । श्रने नाणावटी सर्वे मारी साथे ईर्ष्या राखे बे, माटे तुं वीजा को सोनी पासे घमावी ले. ए| सर्व सोनीना बोल जोगीए सत्य करी मान्या, अने फरी सोनीने कडं के तुं मेरा मित्र है, तो है तेरेकुं बोमकें दूसरेकी पास में नहीं बनवाऊंगा, तोपण सोनीए विश्वास बेसामवा सारु एक बे| वार नाकारो कस्यो, परंतु जोगीए पराणे कमां घमवा सोंप्यां. सोनीए पण खरा सोनानां कमां घडी तैयार करी जोगीने थाप्यां, अने कह्यु के मारूं नाम लश नहीं, अने श्राखा गाममां दे-18 खाडी श्राव के आ मारी चीही प्रमाणे किमत थाय डे के नहीं ? जो चीही प्रमाणे किमत थाय तो मने साचो मानजे. जोगीए पण नाणावटी, सराफ, सोनी आदिक घणाने देखामी किमत करावी तो बराबर सोनीए करी आपेली चीही प्रमाणे कायम थर, तेथी वली जोगीने सोनी उपर पूर्ण विश्वास श्राव्यो. ते वारे कडां पागं लश् श्रावीने सोनीने उपवा सारु थाप्यां. सोनीए । कडं के प्रजातना लइ जजे. पली सोनीए ते कमां जेवांज वीजां पीतलनां कडां घमी तोलमां सरखां करीने तेनी उपर रंग आपी उपी प्रनाते जोगीना हाथमां बाप्यां, श्रने कयु के वली पण हुं एक पार देखाईं. जे श्रा कमां बे ते गश् काले ज्यां देखाड्यां त्यांज माझं नाम लश्ने । देखाडजे, तो बधा पीतलनां कहेशे, कारण के मारा सर्व वेषी जे. चेलाए पण तेमज कह्यु, अने, फरी बधाने सोनीनु नाम लश् कडां देखाड्यां ते वारे सर्वे कड़वा लाग्या के श्रा पीतलनां . तेने 8 जोगीए कह्यु के तुम सब लोक यह सोनीके दुश्मन हो. कल तो तुम सच्चे कहते थे. ते वारे ते
PE CATECANCSCRECORROCCOLOCACEBOOK
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #326
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम. ४
श्री रापरीक्षकोए कडं के कालनां बीजां कमां हतां अने था वली बीजां , माटे तुं उगाय ,
तोपण जोगीए तेमनी वात सर्वथा नहींज मानी. ए दृष्टांते व्युद्ग्रा हित चित्तवालो पण स॥१६॥ सर्वथा सद्गुरुर्नु वचन नज माने ॥७॥
गुरुसेवा पुण्ये लही, पासे पण बेग नित्त रे॥धर्मश्रवण तोहे दोहिर्बु, निजदिक दीए जो नित्त रे ॥ निशादिक० ॥ संवेग ॥ ७॥ पामी श्रुत पण उल्लदी, तत्त्वबुड़िते नरने न दोय रे॥ श्रृंगारादिक कथारसे, श्रोता
पण निज गुण खोय रे ॥श्रोता० ॥ संवेग ॥ ए॥ AL अर्थ-वली कदापि पूर्वकृत पुण्योदये करी गुरुनी सेवा (लही के० ) पामी अने गुरुनी पासे
पण नित्य जश्ने बेठा, तथापि जे वेलाए गुरु धर्मोपदेश आपे ते वेलाए अंतरायने योगे ते धर्म सांजलवो उर्लन थ पडे, केमके ते वारे तेने निलाज श्रावे, अथवा आदि शब्दथी विकथादिक प्रमादमा रुचि थाय, तेथी धर्मश्रवण क्याथी थर शके ? एटले धर्म सांजलवामां निखादिक प्र-18 माद जो थामो श्रावी नींत जेवो थर पडे तो अटकावी नाखे, माटे प्रमाद बोडीने धर्म श्रादरखो ॥॥ कदापि पुण्ययोगे गुरुनी पासे जश निझा, विकथा, विषय, प्रमाद अने कषाय तेनो त्याग करी धर्मनुं सांजल, पाम्युं, तोपण ते नरने धर्म संबंधी तत्त्वनी बुद्धि श्राववी घणी दोहिली
होय, कारण के अहोरात्र श्रृंगारादि रस जेमा प्रधान ने एवी ( कथा के ) नाषाग्रंथ, कोकशास्त्र है अनंगरंग, वात्स्यायनसूत्र प्रमुख, जेमां निःकेवल श्रृंगारनीज वातो बे, तथा आदि शब्दथी स्त्री
श्रने राज प्रमुखनी कथा लेवी, ते सांजलवामांज प्राणी मग्न थर रहे, माटे एवा शृंगारादिक रसे करी युक्त जे ग्रंथ तेना रसे करी ते श्रोता धर्म सांजले, तेथी सांजलतो थको पण आत्मगुणने खोइ नाखे, माटे तत्त्वनी बुझि धारवी ॥ ५ ॥
RASANNARENERGRICSARICS
॥१६॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #327
--------------------------------------------------------------------------
________________
तत्त्व लदे पण उल्लही, सद्दहणा जाणो संत रे॥ कोइ निज मति आगल करे, कोइ डामाडोल फिरत रे॥ कोइ० ॥ संवेग ॥ १० ॥ आप विचारे पामीए, कहो तत्त्व तणो किम अंत रे॥ आलसुआ गुरु शिष्यनो, हां।
नावजो मन उत्तंत रे ॥ श्हां ॥ संवेग ॥ ११॥ अर्थ-कदापि पूर्वकृत शुज कर्मना उदयथी देशना सांजलीने धर्मनुं तत्त्व धातूं, परंतु ( संत | के) हे सङानो ! ते श्रोताने तत्वनी वात उपर सदहणा श्राववी घणीज दोहिली . शामादे जे कोश्क श्रोता तो पोताना मनथी उत्पन्न थ जे कल्पनाजाल तेथी पोतानी मति आगल करे, एटले कहे के गुरु जले श्राम कहे , पण वात तो में धारी ते प्रमाणेज हशे, तथा केटलाएक श्रोता तो मामामोल थर प्रमादमग्न थका फस्या करे, एटले प्रथम जेनी पासे जे धर्म है सांजल्यो होय ते जलो हशे के था कहे जे ते नलो हशे? एम चिंतवता फरे, पोताना महा-1 पणमा समाय नहीं, तेथी सदहणा राख्या विना सर्व नगर उपर लीपणा समान ३ ॥ १० ॥ माटे ||3| तत्त्वनी श्रझा विना तत्व केम पामीए ? आ शुन्न ते आदरवा योग्य ने अने आ अशुज ते त्यागवा योग्य , एवी वातो तो जे वारे गुर्वादिकना मुखथी सांजलीने धारे ते वारे ते तत्व पामे, परंतु कहो के (आप के० ) पोताना विचारथी तत्त्व ते केम पामीए ? जे बालसु थइ घरमां| बेसी रहे, गुरुनी पासे धर्म सांजलवा न जाय ते तत्व केम पामे ? तत्त्व तो जे बालस त्यागीने चित्तमां धर्म सांजलवानी रुचि वधारीने गुरुमुखे जिनोक्त वचन सांजले, तिहां जे शंका उपजे ते । पूबी संदेह टाली दृढता करे, ते पामे. ही कोई अन्यदर्शनी गुरु अने शिष्य ए बे जण थालसु हता, तेनो वृत्तांत मनने विषे जावजो. ते वृत्तांत कहे . को गुरु शिष्य एक नगरनी बहार फुपमी बांधी रह्या बे, वस्त्ररहित , गाममां निदा मागी उदरपूरणा करे , एवामा पोष मासना
SOCIRCRACROCOCRACCECANCREASCCCTEREOSCHES
Su
ntematonal
For Personal and Private Use Only
www.sainelibrary.org
Page #328
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा-दिवस श्राव्या, गर घणो पडवा लाग्यो, पण ते वे जण निरुद्यमी , तेथी गाममां निदा मागवा
काखंग.४ माटे पण एकाद जगाए फरे. तिहांथी थोडं घणुं जे मले ते लश् आवीने उदरपूरणा करे, पण ॥१६॥
|वधारे जगाए फरे नहीं. वली उढवाने कपडं तो लावेज क्यांश्री ? एम करतां एक दिवसे तो बहु टाढ पडी, तेथी ते गुरु शिष्य थरथर कंपता निदा जडी, नहीं जमी, एवे हाले तुरत गाममाथी श्रावीने मढीनी अंदर पण बालसने लीधे गया नहीं. एमज जीर्ण वस्त्रे मुख ढांकीने बहार | श्रावी सुता, पाबली रात्रिए जाग्या, ते वारे पण नेत्र उघामीने जोवा जेटलो उद्यम न करतां | एमज ढांकेले मुखे गुरु शिष्यने पूवा लाग्यो के हे शिष्य ! टाढ घणी पडे , माटे टुं कुंपडीमां| ई के बहार ढुं ? ते वारे शिष्य वली गुरुथी पण वधारे बालसु बे, माटे तेणे पण ढांकेले मुखेज | जवाब आप्यो जे आपणे कुंपडीमा बीए. एवामां वली शीतना जयथी कोश्क कुतरो वीने || गुरुनी पासे सुतेलो हतो तेनुं पूबडं गुरुना हाथमां आव्यु. ते वारे गुरु शिष्यने कहेवा लाग्यो || के " नो शिष्य ! मम पुखं वर्तते. तदा शिष्येण चिंतितं कछाटिकांबरखं गृहीत्वा नवान् पृष्ठ-18 तीति, शिष्यः प्राह जो गुरवः ! ! तत्पुठं वस्त्रांतं तदजपनपरेण शयने त्वया यतितव्यं.” एम वे|| जणा उद्यमरहित थका त्यांज टाढमां सुइ रह्या, परंतु बेमांथी एक पण बालसरहित थर म-13 |ढीमा गयो नहीं. प्रातःकाले हिम पड्यं. तेथी बेड जण हिमथी दाकीने मरण पाम्या. तेम जेर
बालसु होय ते पोतानी मतिकरूपनाए कुमति करे, पण कोइने पूरे नहीं. उद्यम न करे तो तत्त्व है। पण पामे नहीं. जो गुरु शिष्य बेहुए उद्यम कस्यो होत अने मढीमां गया होत तो जीवता रहेत, माटे ए बालसु गुरु शिष्यनो वृत्तांत मनोनावित गवेषवो ॥ ११॥
॥१६॥ बठर गत्र गज आवतां, जिम प्राप्त अप्राप्त विचार रे ॥ करे न तेदथी गरे, तेम आपमति निरधार रे ॥ तेम० ॥ संवेग ॥ १२ ॥
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #329
--------------------------------------------------------------------------
________________
| अर्थ-हवे वली श्रापमति उपर बीजो दृष्टांत कहे जे. जेम कोश ( बठर के०) मूर्ख (जात्रा के०) शिष्य बे, ते वेदादिक शास्त्र तो जएयो बे, परंतु अर्थनी विवेचनाने अणजाणतो . ते को कामने अर्थे बजारमा गयो , एवामां राजानो मदोन्मत्त हाथी बूट्यो बे. ते गजने पोतानी
सामो श्रावतो देखे , एटलामां हाथीनो महावत लोकोने कहे डे के नान! ए हाथी मारा हा-14 प्रथमां नथी, माटे तमे पूर थ जा. ते सांजली सर्व लोक नागं, ते वारे वठर बात्र चौटामां है।
गयो, तेने पण लोके कयु के तुने हाथी मारशे, माटे हाथी अलगो जतो रहे, तोपण ते तिहां ननो रहीने विचारवा लाग्यो के आ लोक कहे जे के हाथी मनुष्यने मारे बे, ते ( प्राप्त के) |पाम्याने मारे जे किंवा अप्राप्त एटले अणपाम्याने मारे ? जो पाम्याने मारतो होय तो महा-18 वत एनी उपर बेगे ने तेने केम मारतो नथी ? अने जो अणपाम्याने मारतो होय तो सर्व जगतनां लोक एने अणपाम्यां जेवां बे तेने केम मारतो नथी ? एम विचार करे ने एटलामां हाथीए । आवी सुंढथी कालीने तेने चीरी नाख्यो, तेथी मरण पाम्यो. जेम ए बउर गने लोकनां वचन मान्यां नहीं, अने ते आपमते विचार करतो तिहांज उन्नो रह्यो, तेथी मरण पाम्यो, पण तेथी| उगस्यो नहीं, तेम जे आपमति होय ते पण ( निरधार के) निश्चेथी फुःख पामे, माटे जे तत्वगवेषक होय ते गुरुमुखथी जाणी तेने कहेले मार्ग प्रवर्तन करे तो तत्त्व पामे, परंतु श्रापमति होय ते नरक निगोदनां कुःख पामे, माटे श्रापमति न थर्बु ॥ १५॥
आगमने अनुमानथी, वली ध्यानरसे गुणगेद रे ॥करे जे तत्त्वगवेषणा, ते पामे नहीं संदेह रे ॥ ते ॥ संवेग ॥ १३ ॥ अर्थ-(था के० ) समस्त प्रकार- जेमां गम एटले झान बे तेने श्रागम कहीए. ते आगम श्रीजिनेश्वरना कहेला अर्थ अने गणधरोनां गुंथ्यां सूत्र तेना अनुमानथी एटले आगममां नग
ALMARCHUCAMERAMANAKAMALGAON
Jain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
www.ainelibrary.org
Page #330
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम. ४
श्रीरावाने तत्त्वनी वात जेवी रीते कहेली ने तेना अनुमानथी तथा वली (ध्यानरसे के०) आदर
करवा योग्य जे धर्मध्यान अने शुक्लध्यान तेना एकेकना चार चार पाया , तेणे कर। चितवन ॥१६३॥
करतां तेथी उपन्यो जे रस, तेने ध्यानरस कहीए, एटले ध्यानरसे करीने गुणनुं गेह एटले गुणर्नु स्थानक प्राप्तिरूप जे तत्त्व, ते तत्त्वनी जे गवेषणा करे ते तत्व पामे, एमां संदेह नहीं. अथवा है तत्व पामवानां त्रण कारण , एक श्रागमथी अने बीजं अनुमानथी, त्रीजो ध्यानरस ते अनुनवरस ए त्रणे प्रकारे जे गुणनुं घर थश्ने तत्वनी गवेषणा करे ते निःसंदेह तत्व पामे ॥ १३ ॥2
तत्त्वबोध ते स्पर्श ने, संवेदन अन्य स्वरूप रे ॥ संवेदन वंध्ये दुश्, जे स्पर्श ते प्रापतिरूप रे॥ जे ॥ संवेग ॥ १४॥ तत्त्व ते दशविध धर्म बे, खंत्यादिक श्रमणनो शुभ रे ॥धर्मनुं मूल दया कही, ते खंति गुणे ।
अविरुक्ष रे ॥ ते ॥ संवेग ॥१५॥ | अर्थ-तत्वनुं जाणपणुं ते तत्त्ववोध कहीए. तेना बे नेद . एक स्पर्श तत्त्वबोध, बीजो संवेदन द तत्त्वबोध. तिहां तत्त्वनां शास्त्र जे बागम ते सांजलीने श्रीजिनागमनाषित तत्व सम्यक्त्वादि प्राप्ति
पूर्वक श्रझापूर्वक नव तत्त्वादिकनो श्रवबोध थाय, शुद्ध अध्यवसाये श्रात्मपरिणतिपरिपाकपणे । मन वचन कायानी एकाग्र स्थिरताए नावनी विशुद्धताए सद्गुरूपदेशामृतयोगथी सद्दहणामय
वस्तुधर्म ग्रहणरूपपणे जे चित्तनी वृत्ति थाय एवो जे तत्वबोध ते स्पर्शरूप जाणवो, अने श्रकाहारहित सम्यक् प्रकारे वस्तुना स्वरूपने जाणपणामां धारे ते संवेदन तत्त्वबोध जाणवो. ते स्पर्श
तत्त्वबोधथी ( अन्य के ) जूदे रूपे जाणवो. ए संवेदन तत्त्वबोध ते (वंध्ये के० ) वांऊणी स्त्री जेवो होय, कांश फल श्रापे नहीं, अने स्पर्श तत्वबोध ते प्राप्तिरूप डे, फलदायक होय, ते माटे संवेदन गंगवो भने स्पर्श यादरवो ॥ २४॥ हवे दश प्रकारनो यतिधर्म ते परम तत्व बे. खंति
॥१३॥
in Education International
For Personal and Private Use Only
Page #331
--------------------------------------------------------------------------
________________
R
श्रादे दश्ने शुक धर्म स्पर्श तत्त्वबोध ते दश प्रकारे (श्रमण के०) यतिनो जाणवो. (खंत्यादिक के) दमा आदे दश्ने एटले १ खंति जे दमा ते क्रोधनो जय, २ मार्दव ते माननो त्याग, ३ श्रार्जवते है। मायानो त्याग,४ मुक्ति ते निर्लोजता, ५ बार प्रकारनी तपस्या, ६ सत्तर नेदे करी युक्त संयम, चार निदेपे करी सत्य नाषण करवू, शौच ते नावशौचादिक, ए अकिंचनत्व ते परिग्रहरहितपणुं, १०|| अढार नेदे युक्त ब्रह्मचर्य.ए दश प्रकारनो धर्म सेव्याथी चार गतिनो रोध करे अने पंचमी गति पमाडे. ते धर्मनुं मूल दया कही . जिहां दया नथी तिहां धर्म नथी. ते दया जे जे ते तो (खंति के०) दमा गुणथी अविरोधपणे , एटले मलती . क्रोध जाय ते वारे क्षमा श्रावे, अने जिहां दमा श्रावी तिहां दया अवश्य उपजे, ते माटे दयामय धर्म बे. ए पहेलो यतिधर्म कह्यो ॥ १५॥
विनयने वश बे गुण सवे, ते तो मार्दवने आयत्त रे ॥ जेदने मार्दव मन वस्युं, तेणे सवि गुणगण संपत्त रे ॥ तेणे ॥ संवेग ॥१६॥आर्जव विण नवि शुभ , नवि धर्म आराधे अशुद्ध रे॥धर्म विना नवि मोद
बे, तेणे शजुनावी दोय बुझ रे ॥ तेणे ॥ संवेग ॥१७॥ है अर्थ-हवे बीजो मार्दव गुण वखाणे . ते एवी रीते जे देव, गुरु, धर्म, ए सर्व विनयथी फलदायक थाय , माटे जेटला कांश गुण जे ते सर्व विनयने वश , अने जो सर्वोत्तम करणी करे बे, तेमां पण जो विनय नथी होतो तो सर्व शून्य प्राय , एवो विनय गुण जे तेपण मार्दवने (बा-15 यत्त के० ) वश मे, मार्दवथी नजीक , ते मार्दव गुण माननो त्याग करे ते वारे प्रगट थाय, पण 8 अनिमान, अहंकार, मत्सर, मोह, ईर्ष्यादि दोष सहित प्राणीने मार्दव गुण न आवे, परंतु ए|
दोषोना त्यागथी मार्दव गुण जीवने आवे. एवो मार्दव गुण जे प्राणीना मन माहे वस्यो नेते प्राणी IRI ( सवि गुणगण संपत्त के०) सर्व गुणना समुदायने पाम्यो, अने गुण सहित थयो ते वारे धर्मप्राप्तिने का
RCOACCORRECTRICANARASTRORISAGARAGNOSARGAM
E
n
ternational
For Personal and Private Use Only
Page #332
--------------------------------------------------------------------------
________________
स
४
श्रीराम पाम्यो. ए बीजो यतिधर्म जाणवो॥१६॥हवे त्रीजो श्रार्जव गुण वखाणे जे. आर्जव गुण ते (श्रार्जव |
के०) सरलपणुं ते विना शुऊ नथी, अने धर्मआराधन पण नथी, अशुभ , माटे कुटिलता, ॥१६॥
वक्रता, मायावीपणुं, ए सर्व मायानां घरनां , श्रने आत्माना बलवत्तरपणे शुद्ध चारित्रना श्रन्युदयथी निर्मल श्रात्माना योग थकी कुटिलतादिकनो त्याग कस्याथी आर्जव गुण उपजे . ते थार्जव विना धर्मनी शुद्धि नथी, अशुरू, माटे ते शुद्ध धर्म आराधी शके नहीं, अने शुरू धर्म आराध्या विना मोद नथी. ते माटे जे ( बुद्ध के०) ज्ञानी ते (जुनावी के०) सरल स्खलावी | होय, जे थकी थार्जव गुणनी पुष्टि थाय. ए त्रीजो यतिधर्म कह्यो ॥ १७ ॥
जव्योपकरण देदनां, वली नक्त पान शुचि नाव रे ॥ नावशौच जिम
नवि चले, तिम कीजे तास बनाव रे॥ तिम० ॥ संवेग ॥१७॥ पंचा" श्रवथी विरमीए, इंख्यि निग्रहीजे पंच रे ॥ चार कषाय त्रण दंड जे,
तजीए ते संजम संच रे॥ तजीए ॥ संवेग ॥ २॥ __ अर्थ-हवे शौचधर्म कहे जे. तेना बे नेद . एक अव्यशौच, वीजुं नावशौच. ते मांहे ( देह के०) शरीरनां व्योपकरण ते हाथ, पग, आंगली प्रमुख ते सर्व व्यथी देहनां व्योपकरण, 18 अथवा व्योपकरण ते पुस्तकादिक तथा वस्त्र पात्रादिक तेमज वली जात पाणी तेने रागरहित धर्मपुष्टिदायक जाणी (शुचि नाव के० ) पवित्र नावयुक्त, बेंतालीश दोषरहित एवा विधिए थाहारादिकने ग्रहण करवे करीने अव्यशौच थाय. ते जेम श्रात्माना पवित्र चोखा अध्यवसाय धरवे, मननी लहेर कषायादिक रहित शुद्ध परिणामनी वधती धाराए नावशौच थाय बे. ते नाव
शौच जेम चले नहीं, मटे नहीं तेवी रीते तेने ग्रहण करवा बनाव कीजे, एटले जेम जेम नावमें शौच वधे तेम तेम यतिधर्म पण वधे, यतिधर्म वधते मोक्षप्राप्ति पण सुलन थाय. ए चोथो||
HAMALSGARMANGALOSCORRECORDCORD
॥१६॥
ARSEX
For Personal and Private Use Only
.
Page #333
--------------------------------------------------------------------------
________________
शौचधर्म कह्यो ॥ १७ ॥ हवे संयम गुण वखाणे . १ प्राणातिपात, २ मृषावाद, ३ श्रदत्तादान, | 8 मैथुन अने ५ परिग्रह, ए पांच श्राश्रवथी ( विरमीए के०) पूर रहीए, ए अनादि कालना आ-13
माना सहचारी पापोपचितपणे उष्ट गतिदायक . तथा १ स्पर्शप्रिय, २ रसें जिय, ३ घाणेजिय,
४ चकुरिंजिय, ५ श्रोत्रंघिय, ए पांचे इंडियनो निग्रह करीए एटले दमीए. वली १ क्रोध, ५ मान, १३ माया, ४ लोन, ए चार कषायने बांमीए, तथा मनोदंग, २ वचनदंड, ३ कायदंग, ए त्रण दंगने
(तजीए के० ) त्याग करीए. एवी रीते ए सत्तर वानां दूर करे थके आत्माने विषे संयम ठरे, पण एमांथी एक उर्गुण होय त्यांसुधी संयमने मलिन कहीए, माटे ए सत्तर दोष टालीने एना प्रतिपक्षी सत्तर गुण प्रगटे, तेनो संचय मोदार्थीए करवो. ते वारे शुद्ध संयम कहीए. ए पांचमो संयमधर्म कह्यो ॥ १५ ॥
बांधव धन इंघिय सुख तणो, वली नय विग्रदनो त्याग रे ॥
अहंकार ममकारनो, जे करशे ते मदानाग रे॥ जे०॥संवेग ॥३॥ अर्थ-हवे हो मुक्त गुण वखाणे ले. बांधव शब्दे नाइ, स्त्री, माता, पिता, पुत्र, बहेन प्रमुख | थने (धन के० ) सोनु, रू', घर, हाट प्रमुख, वली इजियसुख ते खावं, पीवु, वस्त्र, घरेणां । प्रमुखना विलास, शब्द, रूप, रस, गंधादिक ए सर्व सुखनो त्याग करे, वली (जय के० ) इह-18 लोक, परलोक आजीविकादि सात नय अने ( विग्रह के०) क्लेश, विषाद, ईर्ष्या एनो पण त्याग करे, तथा अहंकार ते जगतमा ढुंज बु, बीजो कोइ नथी, अने ममकार ते या सर्व मारूं| बे, “ एवं श्रहं ममेति बुद्ध्या सर्व जगदंधीजूत' माटे एनो त्याग करे ते महानाग्यवंत जाणवो.11 ज्यांसुधी एटलां वानांनो त्याग कस्यो नथी त्यांसुधी संसारमण वधे , माटे एनो त्याग करी| निर्लोनी गुण करवो. ए बहो धर्म कह्यो ॥ २० ॥
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #334
--------------------------------------------------------------------------
________________
खं
.
श्री राम
अविसंवादन जोग जे, वली तन मन वचन अमाय रे ॥ सत्य चतुर्विध
जिन कह्यो, बीजे दर्शन न कदाय रे ॥ बीजे० ॥ संवेग ॥१॥षइ॥१६॥
विध बाहिर तप का, अन्यंतर षड्विध होय रे॥ कर्म तपावे ते सदी,
पमिसोअत्ति पण जोय रे॥ पडिसो० ॥ संवेग० ॥ २२॥ || अर्थ-हवे सातमो सत्य गुण वखाणे .अविसंवादन योग ते जेमां कोजातिनो विश्लेष विसंवादपणुं ।
नथी ते अविसंवादन योग कहीए, तेने धरे. वली तन, मन अने वचन, ए त्रिकरण अमायपणे कपट-18 रहितपणे प्रवर्ते, ते सत्यपणुं राखे. ते सत्य चार प्रकारनुं . तिहां १ झपन, अजितादिक ए नामसत्य, २ तेनां बिंब जे काष्ठ, पाषाणादिकनी स्थापना करीए, अथवा अक्षरे नाम लखीए तेथी ते । स्थापनासत्य, तथा ३ नावि जिन जे श्रेणिक प्रमुख थशे ते व्यसत्य अने ४ सीमंधर प्रमुख विचरता
तीर्थकर ते नावसत्य. ए चार निदेपे करी सत्य ते (जिन के०) तीर्थकरे कडं एटले श्रीगणांग सूत्रमा दो कडं बे, पण बीजे दर्शने कहेवाय नहीं. ए सातमो सत्यधर्म कह्यो॥१॥ हवे आठमो तपोगुण वखाणे
.? जघन्य नोकारशी, २ उत्कृष्ट जावजीव सुधी अशन पान वर्जवं, ३शेष रह्यं ते मध्यम, ते एमके-१ जेमां खाईं पीवू नहीं ते अणसण तप तथा ५ जणोदरी ते आहारना प्रमाण मांदेथी कोलीयो,
बे कोलीया, चार कोलीया लंडा करे ते कणोदरी तप,३७व्यनो संक्षेप करवो ते वृत्तिसंक्षेप तप, 8 रसनो त्याग करवो ते रसत्याग तप, ५ लोच प्रमुख क्लेश सहन करवो ते कायक्लेश तप, ६/६ पांच इंडियने गुप्त करवी ते संलीनता तप, ए व प्रकारचें बाह्य तप कडं बे, तथा १ गुरुदत्त प्राय-है।
13॥१६॥ श्चित्त लेवू, २ विनय साचववो, ३ गुरुनो विनय तथा वेयावच्च करवां, ४ सज्जाय ध्यान करवू, ५ ध्यान धरवू, ६ उपसर्ग तप ते एकध्याने कानस्सग्ग करवो तथा शरीरनुं गमवू, ए उ प्रकारे ही अन्यंतर तप मलीने बार नेदे तप कद्यु. ए तप व्यथी तथा जावथी करवं. ए तप कर्मने तपावे,81
CRECASSACRACHARCHASESS
For Personal and Private Use Only
Page #335
--------------------------------------------------------------------------
________________
RRANCINEMA
वाली जस्म करे, ते तप निश्चेथी प्रतिशौचवृत्ति पण जोय एटले इंघियने न अनुकूल वृत्ति अर्थात् है। इडियने जे गमे ते न करवू ते पमिसोश्रवृत्ति ते पण तप कहीए ॥ १२॥
दिव्य औदारिक काम जे. कृत कारित अनुमति नेद रे॥ योग त्रिकेतस वर्जवं, ते ब्रह्म हरे सवि खेद रे॥ते ॥ संवेग ॥ २३ ॥अध्यातमवेदी कहे, मूळ ते परिग्रह नाव रे॥धर्म अकिंचनने नण्यो, ते कारण नवजल
नाव रे॥ ते ॥ संवेग ॥२४॥ । अर्थ-हवे ब्रह्मचर्य गुण कहे जे. ( दिव्य के० ) वैक्रिय शरीर संबंधी काम तथा बीजु औदा-12 रिक शरीर संबंधी काम. ए बेनं करवं, कराववं श्रने अनुमोदवं, ए त्रणे गुणतां बनेद थया. ते 31 एकेकाने मन, वचन अने काया, ए त्रण योगे वर्जतां अढार नेद थाय, ए ब्रह्मचर्य सर्व खेदन हरनारुं , अथवा एना बीजी रीते १७००० नांगा थाय ने ते लखे . १ पृथ्वीकाय, अप्काय, ३ तेउकाय, ४ वायुकाय, ५ वनस्पतिकाय, ६ बेजिय, ७ तेइंजिय, ७ चरिंजिय, ए पंचेंजिय, १० अजीव, ए दशने दश यतिधर्मे गुणतां १०० थाय. ते एक श्रोत्रंछिये थया. तेवी पोतानी पांच इंडियो बे, तेनी साथे गुणतां ५०० नेद थाय. ते एक आहारसंज्ञाए थया. तेवी 31
नयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा अने परिग्रहसंझा, ए चारे गुणतां २०७० थाय, तेने मन, वचन अने काया, भए त्रणे गुणतां ६००० थाय. ते करवू, करावq अने अनुमोदकुं, ए त्रणे गुणतां १७००० नेद थाय है। ॥ ५३॥ हवे अकिंचनधर्म कहे . जे “श्रात्मानमधिकृत्याध्यात्मम्” एटले आत्माने अधिकारीने
गणाथा मामाने चौदमा गुणगणा सुधी , तेने अध्यात्म कहीए, अने ते । अध्यात्मना जाण जे होय तेने अध्यात्मवेदी कहीए. ते एम कहे के जे मूळ ले तेज परिग्रहनो | नाव , एटले पोता पासे खावाने मलतुं न होय, पण मूळ सर्व वस्तु उपर रही होय तो ते
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #336
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा
॥१६६॥
परिग्रहज . तथा धन, कुटुंब, घर, वामी, बाग अने बगीचा तोपण तेनी उपर जो मूळख. नथी तो ते परिग्रह न कहीए, माटे ते मूळ न राखवी तेने अकिंचनपणुं कहीए, अने साधुधर्म | ते अकिंचननेज कह्यो , माटे संसारसमुथी तरवाने नाव समान ए धर्म . ए अकिंचनपणुं| श्रादस्याथी जवनिस्तार थाय. ए दशमो अकिंचनधर्म थयो. ए दश प्रकारना यतिधर्म कह्या. एथी शुकपणे कर्मनुं शोधन थाय ॥ २४ ॥
पांच नेद खंतिना, नवयारवयार विवाग रे ॥ वचन धर्म तिहां तीन , लौकिक दो अधिक सोनाग रे ॥ लौकिक ॥ संवेग ॥२५॥ अनुष्ठान ते चार ,प्रीति नक्ति ने वचन असंग रे॥त्रण दमा दोयमां,
अग्रिम दोयमां दोय चंग रे ॥ अग्रिम ॥ संवेग ॥२६॥ अर्थ-(पांच नेद ने खंतिना के ) हवे ए दश प्रकारनो जे यतिधर्म कह्यो तेमा प्रथम क्षमा-11 धर्मना पांच नेद ते कहे . तेमां एक तो जे आपणो उपकारी होय ते जे कांश कमवां वचन कहे ते खमवां पडे तेने ( उवयार के० ) उपकारदमा कहीए. बीजी श्रागलो माणस जोरावर बे, तेना उपर कांश पराक्रम चाले तेम नथी, माटे जो था माणसनी सामुं बोलशुं तो तरत तिर-31 स्कार पामझुं, एम जाणी तेनी सामुं न बोले ते वीजी (अवयार के०) अपकारदमा. श्रीजी कर्मादिकना जयथी खमवू पडे ते विपाकदमा. चोथी कोइने आकरे वचने उहवे नहीं, अने है। पोते पण कोश्नां श्राकरां वचनथी उहवाय नहीं, एम वचननो परिसह उपसर्ग सहन करवो, सावद्य वचन न बोलवू ते वचनदमा. पांचमी गजसुकुमारनी पेरे हे आत्मन् ! तारो धर्मज दमा है।
॥१६६॥ बे, माटे तुजने दमाज जोशए, आत्मधर्म दमामयज डे एवं जाणी मूल धर्ममां स्थिर रहे, संपूर्ण धर्म आराधे, तेरमा चौदमा गुणगणानी श्वा करे ते धर्मदमा जाणवी. ए पांच दमा कही. तिहां है।
Jain Educati
o
nal
For Personal and Private Use Only
.
Page #337
--------------------------------------------------------------------------
________________
| पहेली उपकार, बीजी अपकार अने त्रीजी विपाक, ए (तीन के० ) त्रण क्षमा जे बे ते लौकिक वे एटले लौकिक सुखनी देवावाली वे तथा चोथी वचनमा ने पांचमी धर्मकमा ए ( दोइ के० ) वे कमा जे बे ते अधिक सौभाग्यनी एटले मोक्षसुखनी देवावाली वे ॥ २५ ॥ दवे कमानां चार अनुष्ठान बे. अनुष्ठान शब्दे क्रिया कहेवी. तेनां षडावश्यक बे. तेमां १ श्रावकनुं पमिकमणुं अथवा यतिनुं पगाम, सज्जाय, अतिचार, आलोचना प्रमुख ते परिक्रमणावश्यक, तथा २ ज्ञान, | दर्शन, चारित्रना काउस्सग्ग करवा ते काउस्सग्ग नामे आवश्यक, ३ शक्ति प्रमाणे पञ्चरकाण करवानुं श्रावश्यक, ए त्रण आवश्यकमां एक प्रीति अनुष्ठान जाणवुं, अने १ सामायिक घ्यावश्यक, २ चजविसको ते जिनवंदनावश्यक, ३ वांदणां देवां ते गुरुवंदनावश्यक, ए त्रण आवश्यक मांहे बीजुं नक्ति अनुष्ठान जाणवुं, अने त्रीजुं श्रागमने अनुसारे प्रवर्तन ते वचन अनुष्ठान जाणवुं, तथा जे सहेजे थाय ते चोथुं असंगानुष्ठान जावं. ए चार अनुष्ठानने पूर्वोक्त कमाना पांच नेदमां बहेंचण करे बे, एटले पहेली उपकार, बीजी अपकार, त्रीजी विपाक, ए त्रण दमा बे तें ( अग्रिम दोयमां के० ) पढ़ेलां प्रीति अने जक्ति ए वे अनुष्ठानमां बे, घने चोथी वचनकमा तथा पांचमी धर्मक्षमा, ए ( दोय के० ) बे कमा ते पावलां वचनानुष्ठान अने असंगानुष्ठान, ए बे अनुष्ठानमां बे, माटे पावलां वे अनुष्ठान ते ( चंग के० ) मनोहर जाणीने दरवां ॥ २६ ॥ वल्लन स्त्री जननी तथा, तेदना कृत्यमां जूर्ज राग रे || पडिक्कमणादिक कृत्यमां, एम प्रीति क्तिनो लाग रे ॥ एम० ॥ संवेग० ॥ २७ ॥
अर्थ - हवे अनुष्ठाननां लक्षण कहे बे. स्त्री तो बेदु बे, एक पोतानी जार्या ते पण स्त्रीजाति बे, तथा पोतानी ( जननी के ० ) माता ते पण स्त्रीजाति बे. ए बेदु वल्लन बे, पण तेना कृत्यमां राग जूदो जूदो
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #338
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥१६७॥
बे. ते यावी रीते के स्त्री उपर प्रीतिराग वे अने माता उपर जक्तिनो राग बे. तेम पक्किमणादिक कृत्यमां पण प्रीति जक्तिनो राग विचारवो. ते यावी रीते के एक पक्किम, बीजो काउस्सग्ग, त्रीजुं पञ्चरकाण, ए त्रणमां प्रीति अनुष्ठान बे, केमके एनी संगतथी आागल गुण वधे, माटे प्रीतिराग बे, अने एक सामायिक ते चारित्र अने बीजो चजविसको ते प्रजुने वांदवुं, तथा त्रीजां वांदणां ते गुरुने वांदणां देवां, एम चारित्रधर्म तथा देवाने गुरु, ए त्रणमां जक्ति अनुष्ठान बे, माटे ए त्रण उपर नक्तिराग बे. एम इहलोक याशे प्रीति यने परलोक श्राशे नक्ति, ए वे अनुष्ठाननो लाग होय ॥ २७ ॥ वचन ते आगम शरी, सहेजे थाये प्रसंग रे ॥ चक्रमण जिम दंथी, उत्तर तदनावे चंग रे ॥ उत्तर० ॥ संवेग० ॥ २८ ॥ विष गरल अनुष्ठान, तदेतुमृत वली दोय रे ॥ त्रिक तजवा दोय सेवा, ए पांच भेद पण जोय रे ॥ ए० ॥ संवेग० ॥ २९ ॥
अर्थ- दवे त्रीजुं वचनानुष्ठान थने चोथुं श्रसंगानुष्ठान कहे ते. जेम कुंजारना चक्रनुं चमण दंकने योगे थाय, पढी पोतानी मेले सहेजे फरया करे, तेम श्रीवीतराग जाषित आगममां जेम | ज्ञान क्रियानां वालंबन प्ररूप्यां वे ते ( श्राशरी के० ) अनुसारे श्राज्ञा प्रमाणे धर्ममां प्रव र्तन करे ते वचनानुष्ठान जाप, अने पढी उत्तर काले ( तदजावे के० ) तेने जावे पण ( चंग के० ) मनोहर होय एटले जेने कोइनुं चालंबन नहीं, पण सहेजे एवंज लढण थ रहे ते प्रसंगानुष्ठान जाणवुं ॥ २८ ॥ यतिधर्म मांहे पांच क्रिया कही वे ते कहे बे. पहेली विषक्रिया, बीजी गरल क्रिया, त्रीजी अनुष्ठानक्रिया, चोथी तद्धेतुक्रिया ने पांचमी अमृतक्रिया. ए पांच जेदे क्रिया जाणवी. ते मांहे विषक्रिया, गरल क्रिया घने अनुष्ठान क्रिया, ए (त्रिक के० ) त्रण भेद तजवा, यादवा योग्य नथी, जाणवा योग्य ठे. ते याचस्याथी चारित्रीयो चारित्र गर
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only)
म. ४
॥१६७॥
Page #339
--------------------------------------------------------------------------
________________
5ASALASALLA5%ARSAMAC
करे, नवपरंपरा वधारे, अने तहेतु क्रिया तथा अमृतक्रिया ए ( दोश के०) बे नेद ते ( सेववा के० ) श्रादरवा योग्य . ते आदस्याथी मुक्ति पमाडे, माटे ए क्रियाना पांच नेद पण जाणवाने अर्थे तेना जूदा जूदा अर्थ श्रागल वखाणशे ॥ २५ ॥
विषकिरिया ते जाणीए, जे अशनादिक उद्देश रे॥ विष ततखिण मारे यथा, तेम एहज जव फल लेश रे॥ तेम० ॥ संवेग ॥ ३० ॥ परनवे
इंसादिक इधिनी, श्वा उरतां गरल थाय रे ॥ ते कालांतर फल दीए, __ मारे जिम हडकीयो वाय रे॥मारे ॥ संवेग ॥३१॥ है अर्थ-हवे ए पांच क्रिया मांहे पहेली विषक्रिया, ते जे चारित्रीयो अशन, पानादिकने उद्दे-18
शीने चारित्र पाले, ज्ञान क्रियानो अभ्यास करे ते सर्व थाहारादिकने अर्थे करे, कोइ गृहस्थ श्रावे है। ते वारे लोकदेखामणी क्रिया करे, ते गृहस्थ गया पली कशी क्रिया करे नहीं, जयणाए न प्रवर्ते, अने ते गृहस्थ तो श्राचारनी शुद्धता जाणीने अशनादिकनी नक्ति करे ते विषकिया जाणीए. जेम विष खाएं थकुं तत्काल मारे तेम ए क्रियाथी आ नव मांदेज अशन खावानुं लेश मात्र फल पामे. जेम केर खावाथी शीघ्र फल मले तेम कपट क्रियानुं पण तरत फल मले एम जाणवु है ॥ ३० ॥ हवे गरल क्रियानुं लक्षण कहे जे. जेम को चारित्रीयाने चारित्र पालतां पालतां चित्तना अध्यवसाय एवा थाय जे इंनी पदवी तथा देवतादिक चक्रवर्ती प्रमुखनी राजलक्ष्मी पामी
अथवा धन, धान्यादिकनी श्छा करतां गरल क्रिया थाय, ते गरल क्रिया कालांतरे फल आपे, हम-18 ६ कीया वायुनी परे. जेम को प्राणी हमकेल जनावरे करड्यो होय, तेनो हमकवा त्रण वरस सुधीर
जागे. ते जे वारे हमकवा जागे ते वारे मरण पामे. तेम चारित्रीयो अति नियाj करे तो बेत्रण नवे है ते वस्तु पामे, पण शुद्ध चारित्रनुं फल पामे नहीं, माटे ए गरल क्रिया त्याग करवारूप जाणवी ॥३१॥
HAR
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #340
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा० ॥१६८॥
लोक करे तिम जे करे, उठे बेसे संमूर्त्तिम प्राय रे ॥ विधि विवेक जाणे नहीं, ते न्यानुष्ठान कहाय रे ॥ ते० ॥ संवेग० ॥ ३२ ॥ तदेतु ते शुद्ध रागी, विधि शुद्ध अमृत ते दोय रे ॥ सकल विधान जे याचरे, ते दवा को रे ॥ ते० ॥ संवेग० ॥ ३३ ॥
अर्थ- दवे त्रीजी अनुष्ठान क्रिया कहे बे. जेम कोइक अज्ञानी चारित्र यो पारणा निमित्ते छा थवा ग्रहण निमित्ते क्रिया करे, ते जेम बीजा लोक उठ बेस करे तेम ते पण उठ बेस संमूर्धिमनी परे करे. एतावता को चारित्रीयो दुधित थको दीक्षा लीए तेने केवल एक अशननीज इछा रहे बे. ते मनरहित थको क्रिया करे, माटे संमूर्छिमनी उपमा दीधी, कारण के जे पोताना चित्तमां विधि विवेक कांइ जाणे नहीं या रीते बेस, या रीते उठवुं, श्रा रीते पूंजवु इत्यादिक कां विधि जाणे नहीं, तथा विवेक ते गुरु, देव, ज्ञान, धर्माचार्य प्रमुखनो विनय करवो, गुरु सामे या रीते जवुं, श्रावनुं, बेसवुं इत्यादिक सर्व विधि जाणे तेने विवेक कहीए. ते विधि तथा विवेकने जाणतो मनरहित जे क्रिया करे ते कांइ फलदायक जाणवी नहीं ॥ ३२ ॥ दवे चोथी तद्धेतुक्रिया कड़े बे. चारित्रनो लेनारो वैराग्यवंत जडकपरिणामी देशना सांजली संसारनो सर्व जाव अनित्य जाणी संसारी वर्ग थकी विरक्त थइने चारित्र लीए, ते शुद्ध रागे वधते मनोरथे क्रिया करे, पण विधिशुद्ध होय नहीं, परंतु सरवाले तेथी विधि शुद्ध थाय, | माटे ए क्रिया फलदायक जाणवी. हवे पांचमी अमृतक्रियानां लक्षण कहे बे. जे आगमोक्त विधि को वे ते प्रमाणे शुद्ध विधिए शुद्ध चित्तना श्रध्यवसायपणे करी ने ( सकल विधान के० ) समस्त क्रियाना अनुष्ठाननी याचरणा करे एवा तो संसार मांडे कोक विरला प्राणी दी से बे, | माटे पांच क्रिया मांदे अमृतक्रिया ते केवल अद्भुत सुरमणि समान बे. ए शुद्ध क्रिया यावेथी
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खं. ४
॥१६॥
Page #341
--------------------------------------------------------------------------
________________
संसारनो पार पामे, अने मोदनी प्राप्तिपूर्वक शुझ नावपणे रहे, पण ए क्रिया श्राव्या विना ||संसारनो निस्तार थतो नथी ॥ ३३ ॥
करण प्रीति आदर घणो, जिज्ञासा जाणनो संग रे॥ शुन्न आगम निर्विघनता, ए शुभ क्रियानां लिंग रे ॥ ए० ॥ संवेग ॥ ३४ ॥ व्यलिंग अनंतां धयां, करी किरिया फल नवि तह रे ॥ शुद्ध किया तो संपजे, पुजल आवर्तने अ६ रे ॥ पुजल ॥ संवेग ॥ (पागंतर ) मारग अनुगति नाव जे, अपुनबंधकता लक्ष रे ॥ किरिया नवि उपसंपजे,
पुजल आवर्तने अक्षरे ॥ पुजल ॥ संवेग ॥ ३५॥ अर्थ-हवे शुद्ध क्रियानां लक्षण कहे . जे क्रिया करवामां घणी प्रीति धरे, घणो घणो श्रादर करे, क्रियाना प्रयत्नने विषे निरंतर उद्यम करे, ( जिज्ञासा के० ) तत्त्व जाणवानी वांबना करे, तथा ( जाणनो संग के० ) जे जन शुद्ध क्रियाना जाण होय तेनो संग करे, पण विकथा अन्य-18 दर्शनी प्रमुखनो सर्वथा संग न करे, अने (शुन आगम के०) चलो जिन कथित बागम स्याछाद-13
पझतिरचनारूप रत्नवाक्यजमित एवा उत्तम सिद्धांतने विनरहितपणे श्रादरे, हजारो काम है। ४ मूकीने केवल एक बागमश्रुतपंथे खप करे, ए शुरू क्रियानां (लिंग के० ) लक्षण जाणवां ॥३४॥
हवे शुद्ध क्रिया ते केवारे प्राप्त थाय ? ते कहे . यतिना वेषे उघो, मुहपत्ति ग्रहण करवे करी ए रीते अनंती वार व्यलिंग यतिना वेषे धस्यां. मेरु पर्वत जेवो ढगलो थाय, एटला घा, मुह-18 पत्ति धस्यां, तथा क्रिया पण विशेषपणे विविध प्रकारनी करी, परंतु ते क्रियानुं फल तथा यतिपणानुं फल पाम्यो नहीं. शामाटे ? जे बोधवीज विना जेटली क्रिया, जेटलां लिंग, ते सर्व निफल ले. "नावशून्याः क्रियान फलंतीति तत्त्वम् ॥” ते माटे शुद्ध किया तो ते वारे जीव पामे के
in Education International
For Personal and Private Use Only
Page #342
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा०
॥१६॥ा
जे वारे अर्ध पुलपरावर्त्त संसार बाकी रहे, "तो मुद्दत्तमित्तं पि, फासि हुआ जेहिं संम्मत्तं ॥ तेसिं वपुग्गल, परिश्रट्टो चेव संसारो ॥ १ ॥ " ते वारे अंतर्मुहूर्त्त प्रमाणे मात्र सम कितने फरसी अर्ध पुलपरावर्त संसार करे, तथा जेने समकित यावीने पाहुँ जाय नहीं तो ते बासठ | सागरोपम काकेरा संसारमां रहे, पढी मोके जाय ॥ ३५ ॥
अरिहंत सि-६ तथा जला, आचारिज ने नववाय रे ॥ साधु नाण दंसण चरि, तव नव पद मुगति उपाय रे ॥ तव० ॥ संवेग० ॥ ३६ ॥ ए नव पद ध्यातां का, प्रगटे निज प्रातमरूप रे ॥ तमदरिस जेणे करयुं, तेणे मूंद्यो जवजयकूप रे ॥ तेणे ॥ संवेग० ॥ ३७ ॥
अर्थ- हवे मोदनो उपाय कहे बे. राग द्वेषरूप शत्रुने जीती घनघाती कर्मनो काय करी केवलज्ञान पाम्या ते अरिहंत तथा श्राव कर्मनो दय करी सिद्ध यया ते सिद्ध. पांच श्राचारने पालवे करी गछ निर्वाह करे ते जला याचार्य. अंगोपांग जणे, जणावे ते उपाध्याय. जीवनां सर्व कार्य साधवाने उत्तम कार्य करे ते साधु. जेथी यथार्थ वस्तु जणाय ते ज्ञान. समकित दर्शन पामवानां कारण धरे ते दर्शन. या कर्मना संचयने खाली करे ते चारित्र निकाचित कर्ममल शोधीने दूर करे ते ( तव के० ) तपः ए नव पदनुं एकाग्र मन, वचन, कायाए करी ध्यान धरतां थका मोक्षप्राप्ति थाय, माटे एज मोनो उपाय बे ॥ ३६ ॥ ए नव पदने ध्यातां थका पोताना श्रात्मानुं स्वाजाविक स्फटिक रत्न समान उज्ज्वल रूप प्रगट थाय. जेम स्फटिक रत्न निर्मल बे, पण उपाधियोगे एटले लालने संगे रक्त थाय, श्यामने संगे श्याम थाय, पण तेनी पोतानी मूल उज्ज्वलता न जाय, तेम श्रात्मा कर्मे लेपायो थको संसारी विजावी देखाय बे. तेने ए नव पदना
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग. ४
॥१६॥
Page #343
--------------------------------------------------------------------------
________________
ध्यानथी कर्ममलरहित सहज पोतानो ज्ञान दर्शन चारित्ररूप उज्ज्वल गुण प्रगट थाय तेने आत्मदर्शन कहीए. ए श्रात्मदर्शन जेणे कस्युं तेणे ( जव के० ) संसारना जयरूप जे कूवो, ते ( मूंद्यो के० ) ढांक्यो, एटले तेणे संसार मर्यादारूप कस्यो, माटे सदा सर्वदा नव पदनुं ध्यान धरतुं ॥ ३७ ॥
जे
घटले, ते न टले जवनी कोडी रे || तपस्या करतां प्रति घणी, नहीं ज्ञान तणी बे जोमी रे ॥ नहीं० ॥ संवेग० ॥ ३८ ॥
तमज्ञाने मगन जे, ते सवि पुजलनो खेल रे || इंद्रजाल करी लेखवे, न मिले तिदां देइ मन मेल रे ॥ न० ॥ संवेग० ॥ ३९ ॥
अर्थ- हवे ज्ञाननुं बहु मान करे बे. जे ज्ञानी पुरुष बे तेनुं एक घमीमां व कुण याय एवा अर्द्ध क्षण मांहे जे (अध के० ) पाप टले ते अज्ञानीने जवनी कोडे पण न टले, श्रति घणी तपस्या करतां पण ज्ञाननी जोडे कां होय नहीं ||३८|| माटे जे प्राणी आत्मज्ञान मांहे मग्न थको संसारी | दशाने विजाव करी लेखवे बे, अने सदा खजाव दशा मांहे मग्न थइ श्रात्मरमण करे बे ते देह, धन तथा इंडियनां सुख ते पुजलना खेल इंद्रजाल समान करी लेखवे बे. तिहां मननो मेल दइने तेहशुं मले नहीं. ते चित्त मांहे विचारे जे पुले करी पुल पोषवा ते ठीक नहीं. पुजलनो धर्म | समण पण विध्वंसनरूप बे. तेमां हुं लंपट थयो, तेथी संसारमां अनंता काल सुधी पर्यटन कस्युं, पण दवे तो जिनोक्त वाणीथी पुजलने सारी पेठे दुःखदायी, बाजीगरनी बाजी सरखो जाएयो, एटले बाजीगरनी बाजी साची होय तो पुजलनो खेल साचो होय, एवी रीते जाण्यो. तो जेम इंद्रजाल उपर पण अज्ञानी रक्त थाय तेम ए पुल उपर पण अज्ञानीज रक्त थाय, परंतु ज्ञानी पुरुष तो आत्मज्ञान मांहेज मग्न रहे, पण पुल साथे मन दइने मले नहीं ॥ ३५ ॥
For Personal and Private Use Only
Page #344
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥१०॥
श्रीराम जाण्यो ध्यायो आतमा, आवरणरहित दोय सिरे॥ आतमझान ते
खक. पुःख हरे, एदीज शिवहेतु प्रसिह रे ॥ एडीज ॥ संवेग ॥ ४ ॥ चोथे खंभे सातमी, ढाल पूरण थइ ते खास रे ॥ नव पद महिमा जे सुणे, ते पामे सुजश विलास रे ॥ ते ॥ संवेग ॥४१॥ अर्थ-माटे आत्माने हानीनां वचने करी जाण्यो, जाणीने तेनेज तापपणे वीरनीरवत तथा अग्निलोहपिंमवत् ध्यायो तो ते ध्यानार प्राणी आठ कर्मना आवरणरहित थाय. आत्माना मूल | गुण प्रगट करीने सिद्धपणुं पामे, माटे आत्माने आत्मज्ञानपणे रमण करतां तेज श्रात्मज्ञान ते सर्व दुःखनो हर्ता थाय, अने प्रसिद्धपणे तेज (शिव के०) मोदनो हेतु थाय, एस निःसंशयपणे| जाणवू, माटे मोदना वांडक प्राणीए यात्मपरिणति सुधारवी. "श्रात्मैव सुखपुःखकर्ता निजगुण
नोक्ता आत्मा आत्मनैवात्मानं पश्यति ॥ यदात्मात्मानं पश्यति तदात्मा सहजगुणधारकः स्यात् 4॥ शुधवनावः उज्ज्वललोकाग्रे स्वतृतीय नागन्यूनावगाहनायां सर्व सिझा वसंति” ॥ ४० ॥ ए चोथा खंमने विष सुंदर सातमी ढाल पूरी थर. ए नव पदनो महिमा जे प्राणी सांजले ते ४ प्राणी रुमा जशना विलासने पामे ॥४१॥
॥दोहा॥ इणी परे देश देशना, रह्यो जाम मुनिचंद ॥ तव श्रीपाल ते विनवे, धरतो विनय अमंद ॥१॥ नगवन ! कहो कुण कर्मथी, बालपणे मुज देह ॥
महारोग ए नपनो, कुण सुकृते दुवो बेद ॥२॥ & अर्थ-ए प्रकारे देशना दश्ने जे वारे मुनि मांहे चंजमा समान अजितसेन राजर्षि बोली। रह्या ते वारे श्रीपाल घणो विनय धरतो थको मुनिने विनवे बे के ॥ १॥ (जगवन् के० ) हे||
॥२७॥
tu
n tematonal
For Personal and Private Use Only
Page #345
--------------------------------------------------------------------------
________________
ज्ञानवंत ! कहो, जे कया कर्मना पसायथी बालपणे मारे शरीरे ए महा अघोर रोग उपन्यो ? वली में जन्मांतरे शुं सुकृत कडे हतुं के जेथी ते रोग मट्यो ? ॥२॥
कवण कर्मथी में सही, गम गम बहु शहि ॥ कवण कुकर्मे हुं पड्यो, गुणनिधि जलनिधि मध्य ॥ ३॥ कवण नीच कर्मे हुर्ड, डुंबपणो मुनि
राय॥ मुजने ए सवि किम दुर्ज, कहीए करी सुपसाय ॥४॥ अर्थ-वली कया पुण्यना योगथी हुँ ठेकाणे ठेकाणे बहु झछि पाम्यो ? वली हे गुणनिधि ! हे गुणसमु ! हुं कया माग कर्मना योगपी (जलनिधि के०) समुरुमां पड्यो ? ॥ ३॥ वली हे मुनिराज ! कया नीच कर्मे करीने हुँ डुंवपणाना कलंकने पाम्यो ? ए सर्व मारे केम थयुं ? ते मुजने रुमो पसाय करीने कहो ॥ ४॥
॥ ढाल आचमी ॥ सांजरीया गुण गावा मुज मन हीरना रे ॥ ए देशी॥ सांनलजो दवे कर्मविपाक कदे मुनि रे, कांच कीg कीधुं कर्म न जाय रे॥ कर्मवशे होय सघलां सुख उःख जीवने रे, कर्मथी बलीयो को नवि थाय रे॥सांनलजो ॥१॥नरतक्षेत्रमा नयर हिरण्यपुरे दुउँ रे, मदीपति महोटो ते श्रीकंत रे ॥ व्यसन तेदने लागुं आहेमा तणुं रे, कांश
वारे वारे राणी एकंत रे ॥सांनलजो॥२॥ अर्थ-हवे अजितसेन राजर्षि कर्मनां फल कहे जे ते हे श्रोताजनो ! तमे सांजलजो. जे कांश कर्म कयुं होय ते नोगव्या विना जाय नहीं, माटे हे श्रीपाल ! जगत्त्रय मांहे जीवने सर्व है
सुख दुःख ते कर्मना पसायथी थाय बे, पण कोइ जीव कर्मथी बलीयो नथी, माटे कर्म मोटुं ४॥ १॥ हवे मुनि कहे वे जे हे श्रीपाल ! आ जरतक्षेत्र मांहे हिरण्यपुर नामे नगरे श्रीकांत नामे
E
n
ternational
For Personal and Private Use Only
Page #346
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥ १७९ ॥
मोटो राजा थयो. तेने याहेडी रमवानुं व्यसन लाग्युं, ते जोड़ने तेनी राणी एकांतमां वारंवार वारती हवी ॥ २ ॥
राणी तेहनी जाणो सुगुणा श्रीमती रे, समकित शीलनी रेख रे ॥ जिनधर्मे मति रुडी कूडी नहीं मने रे, दाखे दाखे शिख विशेष रे ॥ सांजलजो० ॥ ३ ॥ पियु तुजने आदेमे जावुं नवि घटे रे, जेहने के वे नरकनी जीति रे ॥ धरणी ने परणी बे लाजे तुज थकी मांडी जेणे जीवहिंसानी अनीति रे ॥ सांजलजो० ॥ ४ ॥ मुख तृण दीधे रिप मूके जीवतो रे, वो बे रुडो त्रीनो आचार रे ॥ तू यादार सदा जे मृग पशु चरेरे, तेहने मारे जे आहे ते गमार रे || सांगलजो० ॥ ५ ॥ ससलां नासे पासे नहीं आयुध धरे रे, राणीजाया बाणी तेहने केड रे || जे लागे ते आगे दुःख लदेशे घणां रे, नावाशुं बल न करे क्षत्री वेड रे ॥ सांजलजो० ॥ ६ ॥
- ते श्रीकांत राजानी जली गुणवंत श्रीमती नामे राणी बे. ते समकित ने शीयलनी | रेखा सरखी बे. जैनधर्मने विषे जेनी रुमी मति बे, पण मनमां कपट नथी. एवी ते राणी राजाने कड़ी कहीने घणी विशेष शिखामण दीए बे ॥ ३ ॥ हे खामिन् ! तुजने आहे मी कर्मे जनुं घटतुं नयी. शामाटे ? जे ए कर्मनी केडे नरकनी बीक ठे, माटे हे खामिन् ! ( धरणी के० ) पृथ्वी ने ( परणी के० ) जाय हुं, ए बेहु तुजयी लाने पामीए बीए, केमके जेणे या जीवहिंसानी घणी श्र नीति मांगी बे ॥ ४ ॥ जे शत्रु होय ते पण सामो जे कोइ मुख मांहे तर घाले तो तेने
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग. ४
॥ १७९॥
Page #347
--------------------------------------------------------------------------
________________
जीवतो मूकी आपे एवो क्षत्रियनो रुमो व्यवहार दे, तो निरंतर ( तृण के० ) घासनो श्राहार | करीने जे वनने विषे मृग पशु रहे जे तेने आहेडामां जे मारे ते गमार जाणवा ॥ ५॥ ससला| विचारां नासी जाय , पण पासे हथियार राखतां नथी, तो जे राणीना जाया बाणी पुरुष वाण हाथमां ग्रहण करीने जे पशुनी केडे लागीने वाणे करी मारे जे ते राणीना जाया पागल नरकादिकनां घणां पुःख पामशे. वली क्षत्रीजायो जे ते नागनी पळवाडे केड करीने बल करे नहीं॥६॥
अबलकुलाशी ऊखने निज जुम पीडतां रे, खगने मृगने तृणनदीने दोष रे॥ दणतां नृपने न होय श्म जे उपदिशे रे, तेणे कीधो तस हिंसक कुल पोष रे ॥ सांनलजो॥॥ हिंसानी ते खिंसा सघले सनिली रे, हिंसा नवि रुडी किणही देत रे॥ आप संतापे पर संतापे पापीयो रे,
आहेडी ते जाणो कुलमां केत रे॥सांनलजो० ॥७॥ अर्थ-पापशास्त्रना धारक ते राजाने एम उपदेश आपे ले के राजानी पृथ्वी माहे जे जल ने 8 तेनो राखनार राजा ने, माटे ( श्रबल के०) निर्बल डे कुल जेमनुं एवा नाना मत्स्य तेमने मोटा (ऊख के०) मत्स्य ते राजाना हुकम विना (अशी के०) नक्षण करे बे तेने, तथा राजानी पृथ्वी मांडे जग्यां जे (सुम के० ) वृक्ष तेमने पीमा उपजावनार एवां जे (खग के०)पदी तेने तथा राजानी पृथ्वी माहे उग्यां जे नवां ( तृण के० ) घास प्रमुख तेने लक्षण करतां एवां मृगलां|
प्रमुखने, ए सर्व राजाना गुनाहमां श्राव्यां, माटे राजानां अपराधी थयां, तेने हणतां थका रा-18 त जाने का दोष लागतो नथी, एम जे हिंसक कुगुरु उपदेशे ने ते तो पोताना हिंसक कुलने पोषण
करे जे एम जाणवू ॥ ७॥ वली हिंसानी ( खिंसा के०) निंदा ते सर्व षड्दर्शन मांहे सांजलीए। बीए, माटे कोई कारणे पण हिंसा करवी रुमी नथी. पापी बाहेमी ते पोताने पण संताप उप-13
AAAAAAAAAAAAAAAAAAUGLIG
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #348
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
॥१७॥
545445A4%25A4A644E
जावे श्रने जे जीवने हणवा धारे ते पर जीवने पण संताप उपजावे, ते कुल मांहे ( केत के) खंम. ४ थरिष्टसूचक केतु ग्रह सरिखो कुलना क्षय करन
करनार जाणवो ॥७॥ जा रसातल विक्रम जे उर्बल दणे रे, ए तो लेश्या कृष्णनो घन परिणाम रे॥डी करणीथी जग अपजश पामीए रे, लोदालो खातां मुख होवे ते श्याम रे ॥ सनिलजो ॥ ए॥ एहवां राणीए वयण कह्यां पण रायने रे, चित्त मांहे नविजाग्यो कोइ प्रतिबोध रे ॥घन वरसे पण नवि नींजे मगसेलीयो रे, मूरखने हित उपदेशे दोय क्रोध रे ॥ सांनवजो ॥१०॥ अन्य दिवसे शत सात उल्लंठे परवस्यो रे, मृगयासंगी आव्यो गहन वन राय रे॥ मुनि तिहां देखी कहे व्याधे ने पीड्यो कोढीयो रे, उ
खंठ ते मारे देश घन घाय रे॥ सनिलजो० ॥११॥ अर्थ-वली जे उर्वल पशुने मारे तेनुं पराक्रम रसातल मांहे पेसी जाउँ ! ए हिंसकपणुं तो 2 कृष्ण लेश्यानुं आकरूं परिणाम जाणवू. जेम (लीहालो के) कोयलो खातां मोटु श्याम थाय 3 तेम नूंडी करणी करीए तेथी जगतने विषे अपजश पामीए ॥ ए॥ एवां राणीए वचन कह्यां, पण राजाना चित्तने विषे कोई प्रकारनो प्रतिबोध जाग्यो नहीं. जेम (घन के० ) वरसाद वरसे थके मगसेलीयो पाषाण नीजे नहीं तेम राजाने प्रतिबोध लाग्यो नहीं. जेम मूर्खने हितशिदा 2 देतां उलटो तेने क्रोध उपजे तेम ए दृष्टांते अहीं पण जाणवू ॥ १० ॥ परी अन्यदा दिवसे सा-18 तसे नवं पुरुषे परवस्यो थको मृगया रमतो थको राजा गहन वने आव्यो. तिहां रोगे पीड्यो||॥१७॥ एवो एक मुनि कास्सग्गध्याने उनो डे, तेने जो राजा कहे , ए तो व्याधियी पीड्यो कोढीयो जे. एम कहे थके (घन के०) आकरा घाए करीने नवंठ ते साधुने मारवा लाग्या ॥११॥
CRICACANCARNALISARGACCORRORICAL
en Euch A
onal
For Personal and Private Use Only
Page #349
--------------------------------------------------------------------------
________________
जिम तामे ते मुनिने तिम नृपने हुवे रे, हास्य तणो रस मुनिमन ते रस शांत रे॥ करी उपसर्गने मृगयाथी वल्या सातसें रे, नृप साथे ते पदोता घर मन खांत रे॥सांनलजो० ॥१२॥ अन्य दिवस मृग पूंठे धायो एकलो रे, राजा मृगलो पेगेनश्तट रान रे॥नूलो नृप ते देखे नश्तट साधुने रे, बोले नश्जलमांमुनि काली कान रे॥सांनलजो॥१३॥ कांइक करुणा
आवी कढाव्यो नीरथी रे, घेर वीने राणीने कही वात रे॥सा कदे बीजानी पण हिंसा फुःख दीए रे, जनम अनंता फुःख दीए ऋषिघात रे ॥ सांजलजो० ॥ २४ ॥राजा नाखे नवि करश्युं फिरी एबुं रे, वीता केताश्क वासर जाम रे ॥ गोंख थकी मुनि दीगो फिरतो गोचरी रे, विसारी राणीनी शिदा ताम रे॥सांनलजो० ॥ १५॥ अर्थ-हवे ते नवं जेम जेम मुनिने ताडना तर्जना करे ने तेम तेम राजाने मन मांहे हास्यरस उपजे जे. अने ते मनिना मन मांडे शांतरस उपजे . ए रीते मुनिने उपसर्ग करीने सातसें जण मृगया रमीने पाला वक्ष्या. ते दर्ष पामता थका राजानी साथे घेर श्राव्या ॥ १२ ॥ वली अन्य दिवसे राजा हरण पळवाडे एकलो दोड्यो जाय . मृगलो नासीने नदीने कांग्रे रानमां पेगे, राजा नूलो पड्यो थको तिहां नदीने कांठे एक साधुने तेणे दीग. ते वारे ते मुनिने कान कालीने नदीना पाणी मांडे ऊबकोल्या ॥ १३॥ वली कांक राजाने करुणा श्रावी. तेथील मुनिने जलथी वहार काढ्या. पनी घेर आवीने ते मुनिना उपसर्गनी सर्व वात राणीने कही ते वारे राणीए कडं के हे स्वामिन् ! बीजा जीवोने हिंसा करी होय ते पण फुःख देवावाली
in Educabona international
For Personal and Private Use Only
Page #350
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंक.४
॥१३॥
श्री राथाय, तो इषिनी घात तो अनंता नव पर्यंत फुःखनी देवावाली होय तेमां तो झुंज कहे ? ॥ १४ ॥
ते वारे राजा कहेवा लाग्यो जे हे राणी ! हवे फरीथी एवं पाप कोइ वारे पण नहीं करशु.18 वली केटलाएक दिवस वीत्या पनी राजाए गोखने विषे बेग थका गोचरीए फरता एवा कोश एक मुनिने दीग. ते वारे राणीनी शिखामण विसारीने ॥ १५ ॥
नगरी विटालीनीखे कदे नृप उल्लंग्ने रे, काढो बाहिर एहने काली कंठ रे॥ राणीए दीग गोंख थकी ते काढता रे, राजाने आदेशे लागा लंठ रे॥सांनलजो० ॥१६॥ राणी रुठी राजाने कदे शुं करो रे, पोतानुं बोल्युं पालो न वचन्न रे॥ मुनि नपसर्ग सर्गे जावू दोदिलु रे, नरके जावा लाग्युं तुज मन्न रे ॥सांनलजो॥ १७॥ नृप उपशमीयो नमीयो मुनि तेडी घरे रे, राणी नाखे राजा ए अन्नाण रे ॥ मुनि उपसर्गे पाप
कघुइणे मोटकुं रे, ए बूटेते कहीए कांश विन्नाण रे॥सांनलजो० ॥२७॥ अर्थ-राजा उद्धंठ पुरुषने कहेवा लाग्यो जे था जिनुक अापणी नगरी विटाले , माटे एने । गले काली नगरीथी बहार काढी मूको. ते वारे राजाने श्रादेशे करी ते उद्धंठ पुरुष मुनिनुं गर्बु काली बहार काढे , ते राणीए गोंख थकी दीग ॥ १६ ॥ ते वारे राणी खीजीने कदेवा लागी जे हे राजन् ! श्रा तमे शुं करो बो ? पोतानुं बोट्युं वचन पोतेज पालता नथी ? अने हुं जाएं डं जे मुनिने उपसर्ग करे तेने स्वर्ग मांहे जवु दोहियं , पण तमारुं मन तो नरक मांहे जवाने |
६ ॥१३॥ लागेवू बे, एम आ तमाकं कर्मज स्पष्ट कही आपे ॥ १७॥ एवां राणीन वचन सांजली राजा | उपशांत थयो थको मुनिने घरने विषे तेडी पगे लाग्यो. ते वारे मुनिने राणी कहे जे जे था|
SALMCISCESANGALOCALSCREGISL AMICROSOCIOLOG
Jan Educati
e mational
For Personal and Private Use Only
Page #351
--------------------------------------------------------------------------
________________
CRECRUCHCHECCCCCC
राजा अज्ञानी . मुनिने उपसर्ग करवे करीने एणे मोटुं पाप कयुं बे, माटे ए पापथी बूटे एवं कांश्क ( विन्नाण के) विज्ञान एटले पाप टालवानुं प्रायश्चित्त कहो ॥ १७ ॥
सजन जे नंडं करतां रुडं करे रे. तेढनां जगमां रदेशे नाम प्रकाश रे॥
आंबो पचर मारे तेदने फल दीए रे, चंदन आपे कापे तेहने वास रे ॥सांनलजो ॥१०॥ मुनि कहे महोटा पातकनुं शुं पालणुं रे, तोपण जो होय एदनो नाव उल्लास रे॥ नव पद जपतां तपतां तेदनुं तप नर्बु रे, आराधे सिक्ष्चक्र दोय अघनाश रे॥सांनलजो० ॥२०॥पूजा तप विधि शीखी आराध्यं नृपे रे, राणी साथे ते सिक्ष्चक्र विख्यात रे ॥
जमणा मांदे आठे राणीनी सही रे, अनुमोदे वली नृपर्नु तप शत सात रे ॥ सनिलजो० ॥२१॥ अर्थ-जेमके सजन तो तेने कहीए जे जूडं करतां पण रुडं करे. तेनां नाम जगत्त्रय मांहे हैं। प्रकाशपणे रहेशे. जला माणसना गुण विषे दृष्टांत कहे . ते जेमके-यांबाने को पर मारे । तेने उलटुं थांबो फल थापे , तथा चंदनने जे कापे ने तेने चंदन पोतानो सुवास आपे । ॥ १७ ॥ हवे मुनि कहे जे के हे राणी ! मोटुं पाप कसु , ते पाप मटामवाने पालवानुं शुं कहीए ? तोपण जो ए राजानो उल्लास नाव होय तो कहुं हुं जे नव पदनो जाप जपतां थका है तथा तेनुं जयुं तप तपतां थका ते तप पण नबुं . ए सिद्धचक्रने श्राराधे थके सर्व (अघ के०) पापनो नाश थाय ॥ २० ॥ ते वारे पूजा तथा तपनो विधि शीखीने राजाए राणीनी साथे प्रगट-3 पणे ते सिद्धचक्रने श्राराध्या. तप पू थयुं ते वारे तेनुं उजमणुं कस्तूं. ते समे राणीनी श्राउ सखीउए राणीना तपनी अनुमोदना करी. वली सातसें उद्धं राजाना तपनी अनुमोदना करी ॥१॥
SACHIN
in Educati
e metionel
For Personal and Private Use Only
Page #352
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
खंम. ४
॥१४
अन्य दिवस ते गया सिंह नृप गामडे रे, नाजी ते वलीया लेश गोवग्ग रे॥केड करीने सिंदे मास्या ते मरी रे, कोढी हुआ खत्री मुनि नवसग्ग रे॥सांनलजो० ॥२२॥ पुण्यप्रनावे राजा दु श्रीकंत तुं रे, श्रीमती राणी मयणासुंदरी तुऊ रे॥कुष्ठिपणुं जलमऊन डुंबपणुं तुम्हे रे, पाम्यु ए मुनि आशातना फल गुज रे॥ सांजलजो० ॥२३॥ सिक्ष्चक्र श्रीमतीवयणे आरादीयुं रे, तेदथी पाम्यो सघलो ऋद्धिविशेष रे ॥ आठ सखी राणीनुं तप अनुमोदीयुं रे, तेणे ते लघु देवी दुश् तुज शुनवेष रे ॥सांनलजो ॥२४॥ साप खाउँ तुज आग्मीए का शोक्यने रे, तेणे सापे दंसी न टले पाप रे ॥धर्मप्रशंसा करी राणा हुआ ते सातसें रे,
घातविधुर ते सिंद लीए व्रत आप रे॥सांनलजो० ॥२५॥ अर्थ-ते वार पठी केटलाएक दिवसे ते राजा सातसें उलंठे परवस्यो सिंह राजाने गामडे गयो. ते गामने लांजीने सर्व गायोनो वर्ग लश्ने पाबा वल्या. ते वारे सिंद राजाए के करीने ते सातसेंने माख्या. ते मरीने क्षत्रियोना वंशमां उपन्या, पण मुनिने उपसर्ग कस्यो, तेथी ते सर्व कोढीया थया
॥ पुण्यना प्रजावथी श्रीकांत राजा च्यवीने तुं श्रीपाल थयो.तारी श्रीमती राणी मरीने मयणासुंदरी थर, अने कोढीयापणुं तथा जल मांद मुबवापणुं तथा डुंबपणुं जे तुं पाम्यो ते सर्व । मुनिनी आशातनानां फल ए गुह्य जाणवां ॥ ३ ॥ श्रीमती राणीने वचने करीने सिद्धचक्रनुं । थाराधन कह्यु, तेथी जिहां जिहां गयो तिहां तिहां सर्व ठेकाणे (ऋफिविशेष के) विशेष8 संपदा पाम्यो. आठ सखीए तपनी अनुमोदना करी हती, तेणे करीने तारी नानी पाठ स्त्री
॥१४॥
Jain Educati
o
nal
For Personal and Private Use Only
Page #353
--------------------------------------------------------------------------
________________
शुन वेषनी धरनारी थ॥ २४ ॥ आठमी सखीए शोक्यने कयु हतुं जे तुजने साप खाज, तेथी तेने सापे करमी, माटे पाप कस्यां ते जोगव्या विना बूटे नहीं. तारा धर्मनी प्रशंसा करी हती, तेणे करी सातसें उद्धंठ ते राणा थया. सिंह राजाए (घात के०) शस्त्रना घाते | करी सातसें उठने मास्या, ते घातथी ( विधुर के०) बीतो थको (श्राप के०) पोतानी मेले (व्रत लीए के० ) चारित्र लश्ने ॥ २५॥
मास अणसणे अजितसेन ते ढुं हु रे, बालपणे तुज राज्य दांते राण रे॥ बांधी पूरव वैरे तुज आगल धरे रे, पूरव अभ्यासे मुज आव्यु नाण रे ॥सांनलजो० ॥ २६ ॥ जाति संचारी संयम ग्रही लही उदिने रे, इहां आव्यो जेणे जेवां कीधां कर्म रे ॥ तेदने तेहवां आव्यां फल सुख ऊःख तणां रे, सद्गुरु पाखे जाणे कुण ए मर्म रे॥ सानलजो ॥ २७॥ चोथे खेमे ढाल हुइ ए आठमी रे, एदमां गायो नव पद महिमा सार रे॥ श्रीजिनविनये सुजश लहीजे एदथी रे, जगमां दोवे निश्चे जयजयकार रे॥सांनलजो० ॥॥ अर्थ-एक मास, अणसण करी तिहाथी च्यवीने हुं अजितसेन थयो. पाडले नवे तें मारु| राज्य ली, इतुं, माटे श्रा नवे में बालपणामां तारं राज्य हरी लीधुं, अने सातसें उबंटने में माख्या हता, ते पूर्व जवना वैरथी ते सातसें राणाए बांधीने मुजने तारा मुख बागल धस्यो. वली पाडले जवे में चारित्र लीधुं हतुं, ते पूर्व अन्यासथी मुजने झान उदय श्राव्युं ॥ २६ ॥ तेथी जातिस्मरणशान उपन्युं. तेना योगे पूर्व नव संजारीने संयम ग्रह्यु. ते चारित्र पालतां (5-12 हिने के०) अवधिज्ञानने पामीने यहां तारी पासे श्राव्यो, माटे जेणे जेवां कर्म कस्यां हतां
RECERAMOLCARRIAGRICARRCRACCO
cg
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #354
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥१७५॥
तेने तेवां सुख दुःखनां फल उदय श्राव्यां. सद्गुरु विना एवा मर्मने वीजो कोण जाणे ? कोइ जाणे नहीं ॥ २७ ॥ चोथा खंमने विषे ए आठमी ढाल संपूर्ण थइ. ए ढाल मांहे सारभूत रुडो नव पदनो महिमा गायो बे. श्रीजिनराजना विनयथी जलो जश पामीजे. ए सिद्धचक्रना पसायथी जगत्त्रयने विषे निश्चे जयजयकार थाय ॥ २७ ॥
॥ दोहा ॥
इम सांगली श्रीपाल नृप, चिंते चित्त मऊार ॥ प्रदो हो जवनाटके, इस्या प्रकार ॥ १ ॥ कदे गुरु प्रते दवणां नथी, मुज चारित्रनी सत्ति ॥ करी पसाय तिथे उपदिसो, उचित करण पडिवति ॥ २ ॥ वलतुं मुनि जाखे नृपति, निश्चय गति तुं जोय ॥ करम जोग फल तुज घणुं, इह जव चरण न होय ॥ ३ ॥ पण नव पद प्राराधतां पामीश नवमुं सर्ग ॥ नर सुर सुख मे अनुभवी, नवमे नव प्रपवर्ग ॥ ४ ॥ ते सुणी रोमांचित हुई, निज घर पहोतो नूप ॥ मुनि पण विदुरंतो गयो, ठाणांतर अनुरूप ॥ ५॥
अर्थ - एम ाजितसेन मुनिनी देशना सांजली श्रीपाल राजा पोताना चित्तने विषे चिंतवे बे के हो ! इति आश्चर्ये ! जे संसारनाटकमां यावा प्रकारना प्रपंच पामीए बीए ? ॥ १ ॥ हवे श्रीपाल गुरु प्रत्ये क बे जे दमणां तो मुजमां चारित्र लेवानी शक्ति नथी, माटे मारा उपर कृपा करीने मारे योग्य प्रतिपत्ति करवाने कहो, एटले मुजथी बनी यावे एवो धर्म कहो ॥ २॥ वलतुं मुनि कहे बे जे हे राजन् ! तारी निश्चये गति तुं जो के हजी पण तारे जोगववा योग्य कर्मनुं फल घणुं बाकी बे, माटे तारे या जवने विषे चारित्र उदय थशे नहीं ॥ ३ ॥ पण नव
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only)
खंग. ४
॥१७५॥
Page #355
--------------------------------------------------------------------------
________________
****
************
पदना आराधनथी तुं नवमा देवलोकने पामीश. पठी अनुक्रमे (नर के०) मनुष्यनां अने (सुर के०) देवतानां सुख (अनुन्नवी के०) जोगवीने नवमा जवने विषे (अपवग्ग के०) मोदनुं सुख पामीश
४॥ ते सांजलीने श्रीपाल राजा रोमांचित थयो थको पोताने घेर गयो, श्रने मुनि पण तिहांथी विहार करता थका (अनुरूप के० ) पोताने इनित एवा (गणांतर के०) अन्य स्थानके गया ॥५॥
॥ ढाल नवमी ॥ कंत तमाकु परिहरो॥॥ ए देशी॥ हवे नरपति श्रीपाल ते, निज परिवार संयुत्त ॥ मेरे लाल ॥ आराधे सिक्ष्चक्रने, विधि सहित ग्रही सुमुहुत्त ॥ मेरे लाल ॥ मननो मदोटो मोजमां ॥१॥ मयणसुंदरी त्यारे नणे, पूर्वे पूज्युं सिक्ष्चक्र ॥ मेरे लाल॥धन त्यारे थोडं दतुं, दवणां तुंऋदेशक॥मेरे॥मननो ॥॥धन महोटे गेटुं करे, धर्म उजमणुं तेह ॥ मेरे ॥ (पागंतर) जे करणी धर्मनुं तेद ॥ मेरे ॥ फल पूरुं पामे नहीं, म म करजो तिहां संदेह ॥ मेरे ॥ मननो ॥३॥ विस्तारे नव पद तणी, तिणे पूजा करो सुविवेक ॥ मेरे॥धननो
लादो लीजीए, राखो मोटी टेक ॥ मेरे ॥ मननो० ॥४॥ 2 अर्थ-हवे मोटा मननो धणी श्रीपाल राजा पोताना परिवारे संयुत थको विधि सहित रु मुहूर्त लश्ने मोजमां एटले आनंदमां श्रीसिद्धचक्रने श्राराधे ॥१॥ ते वारे मयणासुंदरी
श्रीपाल राजाने कहे जे जे पूर्वे श्रापणे सिझचक्रने पूज्या हता ते वारे तो आपणी पासे धन है थोडं हतुं, अने हमणां तो शझिए करीने तुं (शक के०)इंस सरिखो ॥२॥ माटे ऽव्य है।
घणुं होय श्रने धर्मनी करणी निमित्ते जे पुरुष थोडं अव्य वावरे ते प्राणी पूरुं फल पामे नहीं. तिहां कांश पण संदेह करशो नहीं ॥ ३॥ ते माटे नव पद जे जे तेनी पूजा विस्तारे करी रुका
***
***
*
Jain Educational
For Personal and Private Use Only
Page #356
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥१६॥
श्रीराम विवेक सहित करो. धन पाम्या बो तेनो लाहो ख्यो. मनने विषे मोटी टेक राखीने पूजा करो॥
खंग.४ मयणा वयणां मन धरी, गुरुनक्ति शक्ति अनुसार ॥ मेरे ॥ अरिदंतादिक नव पद नलां, आराधे ते सार ॥ मेरे ॥ मननो० ॥ ५॥ नव जिनघर नव पडिमा नली, नव जीर्णोद्धार कराव ॥ मेरे ॥ नानाविध पूजा करी, जिन आराधन शुन्न नाव॥ मेरे ॥ मननो ॥६॥ एम सिह तणी प्रतिमा तj, पूजन त्रिडं काल प्रणाम ॥ मेरे ॥ तन्मय ध्याने सिनु, करे आराधन अनिराम ॥ मेरे ॥ मननो० ॥ ७॥ आदर नगति ने वंदना, वेयावच्चादिक लग्ग ॥ मेरे ॥ शुश्रूषा विधि साचवी,
आराधे सूरि समग्ग ॥ मेरे ॥ मननो० ॥ ७॥ अर्थ-ए प्रकारे मयणानां वचन मनमां धरीने (गुरु के ) मोटी बेनक्ति जेनी एवो जे श्रीपाल राजा, ते पोतानी शक्तिने अनुसारे सारनूत जे अरिहंतादिक नलां नव पद डे तेने आराधे | ॥ ५॥ हवे श्रीपाल राजा नव पदनुं आराधन विस्तारपूर्वक करे . तेमां प्रथम अरिहंतपदनी नक्ति करे . तिहां नवनी संख्याए प्रासाद, बावन जिनालय नवां कराव्या. तेमां नव अरिहंतनां बिंब नवां नरावीने स्थाप्यां. वली नव जीर्ण प्रासादना उद्धार कराव्या. तेनी त्रण दे, पांच नेदे, श्राप दे, सत्तर नेदे, एकवीश नेदे, एकसो श्राउ नेदे, एम विविध प्रकारनी पूजा 31 करी. ए रीते शुज नावे करी जिनपद थाराधे ॥ ६॥ हवे बीजा सिझपदनुं श्राराधन करे |
ते कहे . ( एम के०) पूर्वे कहेला प्रकारे सिझनी प्रतिमाने पण त्रण काल पूजा प्रणाम करे ॥१७॥ M. चेतनने निबिम श्रानंदना उद्यमे निरावरण कर्माजनरहित एवा सिझने (तन्मय ध्याने ?
के) मन, वचन, कायानी एकाग्रताए करी मनोहर थाराधन करे ने ॥ ७॥ हवे त्रीजा आचार्य-||
Sain Educat
i
onal
For Personal and Private Use Only
nebog
Page #357
--------------------------------------------------------------------------
________________
पदनी जक्ति करे बे ते कहे बे. खादरनुं कर तथा जक्तिरागे वंदना द्वादशावर्त सहित साचवे बे, छाने वेयावच्चादिक मांहे ( लग्ग के० ) लग्न एटले सावधान रहे बे, तथा शुश्रूषा, पर्युपासना, सेवना, प्रशनादिक वसती प्रमुख सर्व विधि साचवीने समग्र आचार्यनी सेवना करे बे. आचार्य ते गणना रक्षक माटे तेने विशेषे राधे बे ॥ ८ ॥
अध्यापक जणतां प्रति, वसनाशन ठाण बनाय ॥ मेरे० ॥ द्विविध जक्ति करतो थको, आराधे नृप उवजाय ॥ मेरे० ॥ मननो० ॥ ए ॥ नमन वंदन निगमनथी, वसदी प्रशनादिक दान ॥ मेरे० ॥ करतो वेयावच्च राधे मुनिपद ठाणा || मेरे० ॥ मननो० ॥ १० ॥
अर्थ- हवे चोथा उपाध्यायपदनी जक्ति करे बे. तेमां घणा पांच संध्याए आगमना पाठ जएनारने धने जणावतां प्रत्ये ( वसन के० ) वस्त्र थपे वे, तथा अशन के० ) अन्न थापे बे, अने (ठाण के० ) वसवानुं स्थानक बनावी यपे डे. धर्मशाला, पवनशाला प्रमुख करावे बे. एम ( द्विविध के० ) बे प्रकारे, ते मांहे एक पूर्वे का उपचार व्यथी ने बीजी जावथी | मननी एकाग्रताए करी उपाध्यायपदनी नक्ति करतो थको पाठकपदने श्रीपाल राजा आराधे बे ॥ ए ॥ हवे पांचमा मुनिपदनी जक्ति करे बे ते कड़े बे. तेमां मुनिने ( अभिगमनथी के० ) गुरु यावे त्यारे सन्मुख जश्ने ( नमन के० ) मस्तक नमाववुं, अने वंदन ते हाथ जोकवा. एम | साधुने नमन वंदन करतां विनय गुण वधे, विनयश्री धर्मनी प्राप्ति थाय, धर्म पामवाथी ज्ञान पामे, ज्ञानथी मोक्षसुख पामे. तथा ( वसदी के० ) वसती ते रहेवानुं स्थानक अने चार प्रकारे अशन प्रमुखनुं दान आपे बे, तेथी मुनि संयममार्ग मांदे निश्चल रहे. एम घणुं वैयावच्च करतो थको मुनिपदरूप स्थानकने याराधे वे ॥ १० ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #358
--------------------------------------------------------------------------
________________
॥१७॥
श्री राम तीर्थयात्रा करी अति घणी, संघपूजा ने रहजत्त ॥ मेरे ॥ आराधे दर्शन
खंग.४ पद नर्बु, शासन उन्नति दृढ चित्त ॥ मेरे ॥ मननो० ॥११॥ सिहांत लिखावी तेहने, पालन अर्चादिक देत ॥ मेरे॥ नाणपदाराधन करे, सजाय उचित मन देत ॥ मेरे ॥ मननो ॥ १२॥ व्रत नियमादिक पालतो, विरतिनी नक्ति करत ॥ मेरे ॥ आराधे चारित्रधर्मने, रागी
जतिधर्म एकंत ॥ मेरे ॥ मननो० ॥ १३ ॥ अर्थ-हवे उठा दर्शनपदनुं श्राराधन करे ने ते कहे . ते ठेकाणे ठेकाणे अति घणी तीर्थयात्रा जक्तिए सहित करी तिहां स्नात्रपूजा, महोत्सव प्रमुख घणा कस्या, तथा संघपूजा स्वामि-15
य करे, तथा ( रहजत्त के ) रथयात्रा एटले कल्याणक प्रमुखना दिवसे प्रतिमाजीने रथमा स्थापी वाजित्रने समूहे तथा चतुर्विध संघे युक्त थको नगर मांहे गीत गायन प्रमुख र धवलमंगल सहित गमन करे तेने रथयात्रा कहीए. ए रीते शासननी उन्नति दृढ चित्ते करी घणी शोजा वधारतो थको श्रीपाल राजा नर्बु दर्शनपद धाराधे जे ॥ ११॥ हवे सातमा ज्ञान
पदनी नक्ति करे नेते कहे . ( पालन अर्चादिक हेत के०) सिझांतना पालन अर्चादिकने 8 हा विषे ने हेत जेने एवो श्रीपाल राजा सिद्धांत लखावीने तेनी फलादिके करी पूजा करे , अने||
झानना उपकरण जे पाटी, पोथी, वणी, सापमा, सापमी, वही, दस्तरी, उलीया, पूर्ग, रुमाल, है हिंगलो श्रने मषी प्रमुख मेलवी ज्ञानपदनुं श्राराधन करे . वली पोतानी योग्यताए चित्त ||॥॥ ४ दश्ने सजाय करे, एम सातमे पदे ज्ञानपदनी नक्ति करे ने ॥ १५ ॥ हवे थाउमा चारित्रपदनी
नक्ति करे नेते कहे बे. ते पोते लीधेलां वार व्रतने पालतो तथा गुरुमुखथी लीधा नियमने 8
SONOAANDOLANAM
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #359
--------------------------------------------------------------------------
________________
पालतो विरतिनी एटले गृहस्थ व्रतधारी तथा यति चारित्रीयानी अन्न वस्त्रादिके करी अव्यथी नक्ति करे, तथा लावधी स्तुति वंदनादिक करे. एम निश्चलताए एकांत यतिधर्मनो रागी थको| चारित्रधर्मने आराधे ठे ॥ १३ ॥
तजी श्चा इद परलोकनी, दुइ सघले अप्रतिवः६॥ मेरे ॥षट् बाह्य अभ्यंतर षट् करी, आराधे तवपद शु६॥ मेरे ॥ मननो० ॥१४॥ उत्तम नव पद व्य नावथी, शुज नक्ति करी श्रीपाल ॥ मेरे ॥आराधे सिचक्रने, नित पामे मंगलमाल ॥ मेरे ० ॥ मननो० ॥२५॥ इम सिक्ष्चक्रनी सेवना, करे साडा चार ते वर्ष ॥ मेरे॥ दवे उजमणाविधि
तणो, पूरे तप नपनो हर्ष ॥ मेरे ॥ मननो० ॥१६॥ अर्थ-हवे नवमा तपःपदनी नक्ति करे नेते कहे बे. ते इहलोक तथा परलोकनी इछा तजी सर्व स्थाने अप्रतिबद्धपणुं श्रादरी कर्म तपाववाने अर्थे शक्ति प्रमाणे उ प्रकारे वाह्य तप तथा 5
प्रकारे अत्यंतर तप करी "तपसा दीयते कर्म” इत्यादि वचन , माटे शुकपणे तपःपदनु । आराधन करे ॥ १४॥ एम उत्तम नव पदने ऽव्यथी तथा जावधी ए बे प्रकारे नली नक्ति। करीने श्रीपाल राजा श्रीसिकचकने आराधे . तिहां ऽव्यथी पूजानां उपकरण प्रमुख अने नावथी श्रात्मवीर्योबास युक्त श्राराधन करतो थको नित्य प्रत्ये मांगलिकनी माला पामे जे ॥ १५॥ |एम साडा चार वर्ष सुधी सिद्धचक्रनी सेवना करे, ते नव पदनुं तप जे वारे पूर्वं थयुं ते । वारे श्रीपाल राजाने उजमणानो विधि करवानो हर्ष उपन्यो, तेथी वीर्योवासपूर्वक उजमगुं| करवा मांड्युं ॥ १६ ॥
Sain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #360
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
॥१७॥
चोथे खंडे पूरी थर, ढाल नवमी चढते रंग ॥ मेरे ॥ विनय सुजश
खंम.४ सुख ते लदे, सि-चक्र थुणे जे चंग ॥ मेरे ॥ मननो० ॥१७॥ अर्थ-ए चोथा खंमने विषे नवमी ढाल चढते रंगे पूरी थइ. जे (चंग के० ) मनोहर सिकचक्रनी स्तवना करे ते विनय अने जला यशरूप सुखने पामे ॥ १७॥
॥दोहा॥ हवे राजा निज राजनी, लची तणे अनुसार ॥
उजमगुं तेह तप तणुं, मामे अतिहि नदार ॥१॥ __ अर्थ-हवे श्रीपाल राजा पोताना राज्यनी लक्ष्मीने अनुसारे ते तपर्नु उजमणुं विधिए करी|
अति मोटाइए आदर सहित बहु मानथी करवा मांमतो हवो. ते उजमणानो विधि श्रागलनी | & ढाल माहे कहे जे ॥१॥
॥ ढाल दशमी ॥ जोलीमा हंसा रे विषय न राचीए ॥ ए देशी॥ विस्तीरण जिननवने विरचीए, पुण्य त्रिवेदिक पीठ॥ . चंचंडिका रे धवल जुवनतले, नव रंग चित्र विसीह॥१॥ अर्थ-हवे उजमणानो विधि कहे . ( विस्तीरण जिननवने के०) को एक विस्तारवंत एवा है। श्रीअरिहंतना देरामां ( पुण्य के०) जाणीए पुण्यनां पीज रच्यां होय नहीं ? एवा त्रण गढरूप | Incom (त्रिवेदिक पीठ के०) त्रिवेदिका एटले त्रण पीठ स्वरूपे ( विरचीए के०) रचीए एटले रचना करे, ते त्रण वेदिका उपरा उपर समोसरणनी पेरे रचीए. ते चंडचंडिका एटले उज्ज्वल जाणीए चंडमानी ज्योतिज होय नहीं ? एवी धवल एटले उज्ज्वल नुवनतले एटले नुवननी धरती तेने
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #361
--------------------------------------------------------------------------
________________
धोने नव रंग एटले बाबा सफेद रंगनां चित्र विसीह एटले विशिष्ट जलां चित्रामण सहित ||करे. इहां प्रसंगे श्रीअरिहंतादिक नव पदना वर्ण लखीए बीए. श्रीअरिहंत धोले वणे , श्रीसिक
जगवान राते वर्णे बे, श्रीश्राचार्यजी पीले वर्णे डे, श्रीनपाध्यायजी नीले वर्षे बे, साधुजी श्याम वणे , अने शेष दर्शन, ज्ञान, चारित्र अने तप, ए चार पद उजले वर्णे ॥१॥
तप नजमणुं रे शणी परे कीजीए, जिम विरचे रे श्रीपाल ॥ तपफल वाधे रे नजमणे करी, जेम जल पंकजनाल ॥ तप० ॥२॥ पंच वरणनां रे शालि प्रमुख भलां, मंत्र पवित्र करी धान्य ॥ सिक्ष्चक्रनी रे रचना तिहां करे, संपूरण शुन्न ध्यान ॥ तप० ॥३॥ अरिहंतादिक नव पदने विषे, श्रीफल गोल ठवंत ॥ सामान्ये घृत खंम सहित सवे, नृप मन अधिकी रे खंत ॥ तप० ॥ ४ ॥ जिनपद धवलुं रे गोलक ते ग्वे, शुचि कर्केतन अ॥ चोत्रीश हीरे रे सहित विराजतुं, गिरु सुगुण गरिस
॥तप० ॥५॥ अर्थ-हे नव्य प्राणी ! तप, उजमणुं ते जेम श्रीपाल राजा ( विरचे केस ) रचे जे ते रीते , करवं, अने तप, फल पण उजमणुं करे तेथी वधे. ते केनी पेठे ? तो के (जेम जल के) पाणीए करीने जेम कमलनुं नाल वधे तेनी परे. अर्थात् जल विना जेम कमलनाल वधे नहीं तेम उजमणा विना व्रतफलप्राप्ति पण थाय नहीं ॥ २॥ पंच वर्णनां (शालि के०) चोखा प्रमुख 31 उत्तम धान्य मेलवी तेने पवित्र मंत्र मंत्रीने श्रीसिझचकनी रचना संपूर्णपणे शुज ध्याने करीने करे, एटले जे जे वर्णे जे जे पद होय ते ते वर्णनुं तिहां धान्य जरवू, एम नव पांखमीन कमल रचवें ॥३॥ अरिहंतादिक नव पदने विषे श्रीफलना गोला काढी ते मांहे घृत तथा खांम नरीने
For Personal and Private Use Only
Page #362
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंम.
श्रीराम प्रथम सामान्यपणे जे पदना जेटला गुण जे ते पदना तेटला गोलक ते श्रीपाल राजा मनने |
माविषे (अधिकी खंत के०) अधिक नजमणानी खांते (वंत के० ) मूके ॥४॥ पहेला जिन-11 ॥रणा
पद के० ) अरिहंतपदना बार गुण बे, तथा अरिहंतपद ( धवळ के० ) धोबुंडे, माटे श्वेत चंदने 2 रंगीने वार गोलक मूक्या. वली आठ महाप्रातिहार्यरूप आठ मूल गुण दे तेनां पवित्र कर्केतन|| आठ रत्न मूक्यां. वली चोत्रीश अतिशय , माटे तिहां चोत्रीश हीराए सहित शोजायमान कस्यु.. ( गिरु के० ) श्रेष्ठ, नले गुणे करी गरिह ते मोटुं जे अरिहंतपद तेनी नक्ति करे ॥५॥
सिपदे अम माणिक रातमां, वली गतीस प्रवाल ॥ घुसृण विलपित गोलक तस ग्वे, मूरति राग विशाल ॥ तप० ॥६॥ पण मणि पीत नीश गोमेदके, सूरिपदे ग्वे गोल ॥ नील रयण पचवीस पाठकपदे,
वे विपुल रंगरोल ॥ तप० ॥ ७॥ | अर्थ-हवे सिक राते वणे अने आठ गुणे सहित , माटे तिहां ( रातमां के० ) रातां आठ 3 *माणिक स्थापे. वली वीजा एकत्रीश गुण बे, माटे प्रवाला एकत्रीश (ग्वे के०) मूके. वली ( घुसूण
के० ) राता वावनाचंदने विलेपन करेला रंगीत गोलक एकत्रीश ते सिजनी (मूरति के ) स्थापना श्रागल विशाल राग धरीने मूके ने ॥६॥ हवे श्राचार्यना पांच आचार , माटे पांच पुष्कराज नामक मणि रत्न स्थापे. वली बत्रीश गुण , माटे (पीत के० ) पीला उत्रीश गोमेदक रत्ने सहित पीले रंगे रंगीत करी त्रीश गोलक घ्रत खांडे नरीमुके. वली (पाठक
के उपाध्यायपदे पचीश गुण , माटे पचीश नीला रत्न मूके, तथा नीले वर्णे रंगी पचीश गोलक (विपुल के०) घणा रंगरोले करी (ग्वे के०) मूके ॥७॥
ACANCo-CAR-ACANCCCCCC
णा
in Education International
For Personal and Private Use Only
Page #363
--------------------------------------------------------------------------
________________
रिष्ट रतन सगवीस ते मुनिपदे, पंच रायपट अंक ॥ सगसठि इगवन्न सित्तरी पंचास ते, मुगता शेष निःशंक ॥ तप० ॥ ८ ॥ ते ते वरणे रे चीरादिक वे, नवपद तणे रे उद्देश || बीजी पण सामग्री मोटकी, मांडे तेद नरेश ॥ तप० ॥ ए ॥ बीजोरां खारेक दाडिम जलां, कोहोलां सरस नारंग ॥ पूगीफलवली कलश कंचन तणा, रतनपुंज प्रति चंग ॥ तप० ॥ १० ॥ जे जे वामे रे जे ठवकुं घटे, ते ते ठवे रे नरिंद ॥ ग्रह दिक्पालपदे फल फूलडां, धरे सवरण आनंद ॥ तप० ॥ ११ ॥
अर्थ-वे मुनिपदे एटले साधुपदे सत्यावीश गुण बे, माटे रिष्ट रत्न एटले श्याम पानां ( सग(वीस के० ) सत्यावीश मूके. वली पंच महाव्रतना धणी बे, माटे पांच राजपट नामे रत्नविशेष श्याम वर्णे होय ते मूके. बली श्याम रंगे सत्यावीश गोलक ठवे. तथा दर्शनपदना ( सगस हि के० ) समसव नेद बे, अने ज्ञानपदना ( इगवन्न के० ) एकावन नेद बे, तेमज चारित्रपदना ( सित्तरी के० ) सित्तेर नेद बे, तथा तपःपदना ( पंचास के० ) पचास जेद बे, माटे दर्शनपदे समसव मोती ने सात गोलक स्थापे, तथा ज्ञानपदे एकावन मोती अने पांच गोलक स्थापे, तथा चारित्रपदे सित्तेर मोती ने पांच गोलक, तपःपदे पचास मोती ने बार गोलक निःशंकपणे मूके ॥ ८ ॥ वली नव पदना जे जे वर्ण बे ते ते वर्णे ते ते वर्णनां जलां ( चीरादिक के० ) वस्त्रादिक (ठवे के० ) स्थापे. तेने चंद्रवा उपर बांधे. आदि शब्दे पुष्पादिक जाणवां. ए रीते नव पदने उद्दशे नव पदना | उजमणाने अर्थे बीजी पण मोटी सामग्री मांडे. जे नव नव वानां कह्यां बे ते सर्व प्राणीने पदे पदे स्थापे. एम श्रीपाल राजा चित्तनी उदारताए सर्व लोकने जिनशासननी उन्नति देखाडे बे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #364
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥१८०॥
॥ ए ॥ क्ली चाटली वस्तु नव नवनी संख्याए मेले ते कहे बे के बीजोरां, खारेक, जलां दाडिम, कोहोलां, रसे सहित नारंगी, ( पूगीफल के० ) सोपारी, सोनाना कलश, अति मनोहर रत्नना पुंज ते ढगला, ए सर्व नव नवनी संख्याए मूके बे. एम जे देशमां जे फल, मेवा, सुखमी प्रमुख मले ते सर्व नव नवनी संख्याए लावीने श्री सिद्धचक्रनुं जक्तिए करी उजमणुं करे ॥ १० ॥ एम नव पदना मंडपने विषे जे जे ठेकाणे जे जे वस्तु स्थापत्री घटे ते ते स्थानके ते ते वस्तु श्रीपाल राजा स्थापे. नव ग्रह तथा दश दिक्पालने पदे फल तथा फूल यानंद सहित स्थापे. पोतपोताने वर्णे ज्यां जे जे वर्णनां घटे ते ते स्थापे ॥ ११ ॥
गुरु विस्तारे जणुं करी, न्दवण उत्सव करे राय ॥ व प्रकार रेजिनपूजा करे, मंगल अवसर थाय ॥ तप० ॥ १२ ॥ संघ तिवारे रे तिलक माला तणुं, मंगल नृपने करे || श्रीजिन माने रे संधे जे करयुं, मंगल ते शिव देइ ॥ तप० ॥ १३ ॥
- एम (गुरु विस्तारे के० ) मोटे विस्तारे उजमणुं करी उत्सवने ते श्रीपाल राजा प्रजुना बिंबने न्हवण करावे. पढी जल, चंदन, फूल, धूप, दीप, अक्षत, फल अने नैवेद्य, ए अष्टप्रकारी पूजा करी, धारति उतारी मंगलदीपक प्रगट करे. ते वखते मंगलनो अवसर थाय ॥ १२ ॥ ते वारे सर्व संघ मलीने इंडमाला पहेराववानुं कुंकुमनुं तिलक करी उपर अक्षत चोकी राजाने मंगल करे. जे इंद्रमाला पहेरावी तेज मंगल तिलक ते श्रीसंघ करे. जे श्रीसंघ करे ते तीर्थंकर पण मान्य करे. नमो विस्स. तीर्थ शब्दे संघनुं मंगल ते मोक्षपदनुं देवावालुं बे, माटे ए मंगल करवुं ॥ १३ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
ॐॐ
खंग. ४
॥१८०॥
Page #365
--------------------------------------------------------------------------
________________
CREASCALCCAR
तप जमणे रे वीर्यनल्लास जे, तेदज मुक्तिनिदान ॥ सर्व अन्नव्ये रे तप पूरां कस्यां, पण नाव्युं प्रणिधान ॥ तप० ॥१४॥ लघुकर्माने रे किरिया फल दीए, सफल सुगुरु जवएस ॥ सर होये तिहां कूपखनन घटे, नहीं तो होय किलेश ॥ तप० ॥१५॥ सफल हु सवि नृप श्रीपालने, व्य नाव जस शु६॥ मत कोइ राचो रे काचो मत लेइ, साचो विहं नय बु६ ॥ तप० ॥ १६ ॥ चोथे खंडे रे दशमी ढाल ए, पूरण हुश सुप्रमाण ॥ श्री जिन विनय सुजश नगति करी, पग पग होय
कल्याण ॥ तप० ॥१७॥
अर्थ-तपर्नु उजमणुं ते श्रात्मवीर्योल्हासनावरूप बे. वीर्योल्लास विना जे करणी ते सर्व निरर्थक 18, माटे वीर्योवास तेज (निदान के०) निश्चे मुक्ति डे, नहीं तो सर्व अनव्ये पण तप तो 3
अनंती वार पूरा कस्यां, पण समकित शुद्ध श्राव्या विना प्रणिधान शुरु आव्युं नहीं, एटले शुकोपयोगे वीर्योवास न थयो ॥ १४ ॥ लघुकर्मा जीव जे क्रिया करे ते फल आपे, जला ? गुरुना उपदेशथी ते सफल थाय. जेमके ज्यां पाणीनी सर होय तिहां कूवो खणवो घटे, पण सर न होय अने कूप खणवा जाय तो जलप्राप्ति न थाय, परंतु उलटो क्लेश थाय ॥१५॥ ते सर्व उपदेश, तपानुष्ठान उजमणुं ते श्रीपाल राजाने फल सहित थयु. जेना मनने विषे अव्य | तथा नाव ए बेनी घणी शुद्धता ने तेने सर्व शुद्ध , माटे रे जव्य प्राणी ! को काचो, एटले? जे ऽव्यश्रीज शुरू करशुं एवो मत अंगीकार करी राचशो मां. साचो ( बुद्ध के ) पंमित ते के जे ऽव्य अने जाव ए बेहु नयने साधे ॥ १६॥ ए चोथा खंडने विषे दशमी ढाल जले प्रमाणे |
R 55
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
www.ainelibrary.org
Page #366
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राम
॥१०॥
करी पूरी थ. श्रीजिननो विनय कस्याथी, नलो जश कह्याथी तप जक्तिए करी पगले पगले
खंग.४ कल्याण होय ॥ १७॥
॥दोहा॥ नमस्कार कदे एहवा, दवे गंजीर उदार ॥ योगीसर पण जे सुणी, चमके हृदय मकार ॥१॥ अथ श्री सिक्ष्चक्रनमस्कारः ॥ कवित्त ॥ जो धुरि सिरि अरिहंत, मूल दृढ पीठ पनि ॥ सिह सूरि उवकाय, साहु चिहुं पास गरिजि ॥ दसण नाण चरित्त, तवदि पडिसादा सुंदरु ॥ तत्तकर सरवग्ग, लघि गुरु पयदल उंबरू ॥ दिसिवाल जक जकिणि पमुद, सुर कुसुमेहिं अलंकि ॥ सो सिचक गुरु कप्पतरु,
अम्ह मनवंबिय फल दी ॥२॥ __ अर्थ-हवे ते श्रीपाल राजा श्रीसिद्धचक्र श्रागल गंजीर उदार वचने करी नमस्कार कहे जे. जे सांजलीने योगीश्वर सरिखा पण हृदय मांहे चमत्कार पामे ॥१॥ ते श्रीसिकचकने नम-11 |स्कार करतां कल्पवृक्षनी जपमा श्रापे के (जो धरि के) जेने धुरमा श्रीअरिहंतनी स्थापना | ते सिद्धचक्ररूप कल्पवृक्षनी दृढ मूल पीठिकानुं प्रतिष्ठान ने एटले स्थानक , अने सिक तथा सूरि, उपाध्याय अने साधु, ए चार पद, ते चारे पासे तेने (गरिहिउ के०) मोटी| | शाखारूप , वली दर्शन, ज्ञान, चारित्र अने तप, ए चार पदरूप जेने (पमिसाहा के०) प्रतिशाखा ते सुंदर लघु शाखारूप में, एटले मोटी शाखामांथी जे नीकले ते प्रतिशाखा जाणवी.18 वली तत्त्वावर ते व
तत्त्वादर ते जे झी प्रमुख बीजादर तथा (सरवग्ग के०) खर अदरनो वर्ग जे समूह
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #367
--------------------------------------------------------------------------
________________
अकारादिक, ककारादिक, जसे श्रादिक तथा ( गुरु लजि के० ) मोटी श्रठ्यावीश लब्धिरूप ते 81 सर्व (पयदल उंबरू के० ) पत्र, दलना समूह ने जेमां तथा दश दिक्पाल अने चोवीश जक्ष जहणी, वली प्रमुख शब्दे लोकपाल, विमलेश्वर देवता तथा चक्केसरी देवी अने नव ग्रह इत्यादिक सुर एटले देवतारूप (कुसुमेहिं के०) फूले करी (श्रलं कि के०) अलंकृत शोजायमान ने एवं सिद्धचक्ररूप (गुरु के०) मोटुं कल्पवृक्ष ते अमारा मनोवांछित प्रत्ये (दी के) आपो. एतावता मोक्षसुखनी वांबा , माटे मोदनुं दायक सिद्धचक्ररूप कल्पवृक्ष , एम जाणी जव्य प्राणीए तेनी सेवना करवी ॥ इति मंगलम् ॥ २॥
नमस्कार कही उच्चरी, शकस्तव श्रीपाल ॥ नव पद स्तवन कदे मुदा, स्वर पद वर्ण विशाल ॥ ३ ॥ मंगल तूर वजावते, नाचते वर पात्र ॥ गायंते बहु विधि धवल, बिरुद पढ़ते गत्र ॥४॥ संघपूजा सादमिवग्ल,
करी तेद नरनाथ ॥ शासन जैन प्रत्नावतो, मेले शिवपुरसाथ ॥५॥ I अर्थ-एम नमस्कार कहीने चैत्यवंदन करी (शकस्तव के०) नमुबुणंना पाठ उच्चारीने | श्रीपाल ( मुदा के० ) हर्ष सहित नव पद स्तवन करे . तिहां " उपन्न सन्नाण महोमयाणं "|| इत्यादिक चैत्यवंदन कहे . ते केवी रीते ? तो के स्वर ते उच्च खर तथा पद अने ( वर्ण के०) शुद्ध अदर तेणे करी ( विशाल के०) विस्तीर्णपणे कहे ॥३॥ ए रीते तिहां मांगलिकनां । |वाजिन वाजते थके, प्रधान पात्रो नाचते थके, घणा प्रकारनां (धवल के०) उज्ज्वल मंगल गावते थके अने बात्र ते जाट चारण विगेरे बिरुदावली (पढ़ते के० ) बोलते थके॥४॥श्रीपाल राजा
संघनी पूजा, खामिवात्सल्य इत्यादिक धर्मकृत्य करीने श्रीजिनशासननी प्रजावना करतो थको क( शिवपुरसाथ के०) मोदना साथने मेलवतो हवो ॥५॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #368
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥१८२॥
पटदेवी परिवार अन्य, साथै अविड राग ॥ राधे सिधचक्रने, पामे नवजल ताग ॥ ६ ॥ त्रिभुवनपालादिक तनय, मयणादिक संयोग ॥ नव निरुपम गुणनिधि हुआ, जोगवतां सुखजोग ॥ ७ ॥ गय रह सदस
नव हुआ, नवलख जच्च तुरंग ॥ पत्ति हुआ नव कोडि तस, राजनीति नवरंग ॥ ॥ राज निकंटक पालतां, नव शत वरस विलीन ॥ पतिपालने, नृप हुई नव पद लीन ॥ ए॥
- पटदेवी जे मया तथा ( अन्य के० ) बीजी राणी ने पांच सखी श्रृंगारसुंदरीनी साथे श्रीपाले परणी बे, माटे ते पण स्त्रीर्ड बे, ते परिवारनी साथे (विहरु के० ) अविचल राग धरतो बीजा पण घणा श्रावक, श्राविकार्जनी साथे सिद्धचक्रने आराधे बे, जेथी संसारसमुद्रनो ताग एटले पार पामे ॥ ६ ॥ दवे श्रीपाल राजाने संसारना ( सुखजोग के० ) विषयसुख जोगवतां थका ( मयणादिक के० ) मयणासुंदरी प्रमुख स्त्रीजना ( संयोग के० ) संयोगथी ( निरुपम के० ) कोइनी पण जेने उपमा अपाय नहीं एवा अत्युत्तम ने ( गुणनिधि के० ) गुणोना जंमाररूप | त्रिभुवनपाल जेमां मुख्य बे एवा नव तनय एटले पुत्र थया. अर्थात् पट्टराणी जे मयणासुंदरी तेने त्रिभुवनपाल नामे पुत्र थयो, छाने बीजी श्राव स्त्रीने एक एक पुत्र थयो, एम सर्व मली मनोहर नव पुत्रो थया ॥ ७ ॥ नव हजार हाथी, तथा नव हजार रथ, थाने नव लाख जातिवंत घोमा थथा तथा पायदल लश्कर नव क्रोम संख्याए ययुं. ए रीते चतुरंगिणी सेना थइ. एम श्रीपाल राजानी राजनीति सर्व नवरंगी थइ ॥ ८ ॥ ए रीते ( निकंटक के० ) शत्रु रहित राज | पालतां थका नवसो वर्ष ( विलीन के० ) वही गयां पढी मयणानो पुत्र जे त्रिभुवनपाल, तेने
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग. ४
॥१८२॥
Page #369
--------------------------------------------------------------------------
________________
BLASSSSSS
राजपाटे स्थापीने श्रीपाल राजा नव पदना ध्यान मांहे लयलीन थयो, एटले एकाग्र ध्याने ध्यातो थको नव पदनुज ध्यान स्मरण करवा लाग्यो । ए॥
॥ ढाल अगीयारम। ॥ श्रीसीमंधर साहेब आगे ॥ ए देशी ॥ त्रीजे नव वर थानक तप करी, जेणे बांध्युं जिननाम ॥ चोसहि इंडे पूजित जे जिन, कीजे तास प्रणाम रे ॥ नविका ॥ सिक्ष्चक्रपद वंदो, जिम चिर काले नंदो रे ॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥१॥ए आंकणी ॥
__अर्थ-हवे श्रीपाल राजा नव पदनुं ध्यान केवी रीते करे ? ते इहां एकेक पद पांच पांच गाथाए करी वर्णवे . तिहां प्रथम पांच गाथाए श्रीअरिहंतपदनुं वर्णन करे बे. जे नावि जिन थनार होय ते तीर्थंकरपणुं पामवानी पूर्वे त्रीजे नवे एटले शेष त्रण नव संसार रहे ते वारे (वर के०)प्रधान स्थानकनुं तप करीने एटले बधां मली श्रीअरिहंतादिक वीश स्थानक डे, तेमां को एक पदर्नु, को वे पदनु, कोश् त्रण पदनुं एम यावत् कोश्क तो संपूर्ण वीशे पदोनुं सविस्तर विधिए शुद्ध नावे आराधन करीने जेणे निकाचितपणे (जिननाम के०)श्रीतीर्थकर नामकर्म बांध्यु बे एवा, वली वीश जवनपतिना, वत्रीश व्यंतरना, बे ज्योतिषीना अने दश वैमानिकना, एम सर्व मली चोसर इस थया, तेणे पूजित वंदित एवा जे जिन एटले श्रीतीर्थंकर देव श्रीअरिहंत नगवंत प्रथम पदे ने तेने प्रणाम करीए. अरे नविजनो! तमे श्रीसिद्धचक्रपदने वंदो. जेम (चिर काले के०) घणा काल पर्यंत श्रानंदने पामो. जेणे रागहेषरूप अरि जे शत्रु तेने हण्या, माटे अरिहंत कहीए.सादिकने पूजवा योग्य थया, माटे श्रहंत कहीए. वली फरी संसारमा वीजरूप अवतरवु नथी, माटे अरुहंत कहीए. ए त्रण नाम यथार्थ थयां ने जेने एवा श्रीअरिहंत ते नव पदमा प्रथम पदे ॥१॥
SACRORSCORROCALSCRECCESCORDCROCALCCACCORROCOCCOCOM
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #370
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥१८३॥
जेहने दोय कल्याणक दिवसे, नरके पण अजुलुं ॥ सकल अधिक गुण अतिशय धारी, ते जिन नमी घटालुं रे ॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥ २ ॥
अर्थ- जेहने एटले जे श्री जिनेश्वरने एक च्यवनकल्याणक, वीजुं जन्मकल्याणक, त्रीजुं दीक्षाकल्याणक, चोथुं केवलज्ञानकल्याणक ने पांचमुं निर्वाणकल्याणक, ए पांच कल्याणकने दिवसे अंतर्मुहूर्त्त पर्यंत जिहां सर्वदा अंधकारज रहे बे एवा नरकने विषे पण अजुखालुं थाय, त्यांना सर्व जीवोने शाता थाय. वली ( सकल के० ) समस्त जे उत्तम गुण बे तेथी अधिक गुणना धारक बे. वली चोत्रीश अतिशयना धारक बे, तेनां नाम लखीए बीए. एक प्रस्वेद, मल, रोगे करी | रहित अने शुज गंध तथा अद्भुत रूप सहित शरीर होय. बीजो रुधिर घने मांस, ए बे गायना दुध जेवां उजलां होय, दुर्गंधता रहित सुगंध युक्त होय. त्रीजो श्राहार, निहार अदृश्य होय. चोथो श्वासोवास कमलना गंधनी परे सौगंधिक होय. ए चार अतिशय सहजना जन्मधीज प्रजुने होय. हवे चार घातीकर्मना कयथी वीजा अगीयार अतिशय थाय बे ते कहे बे. प्रथम मात्र एक योजन प्रमाण समवसरण होय ते मांहे त्रण भुवनना लोक समाय. वीजो मनुष्य, तिर्यंच ने देवता सर्व पोतपोतानी जाषामां प्रजुनी धर्मावबोधक वाणी समजे. तथा एक जिहां प्रभु विचरता होय तिहां चारे बाजु पचीश योजन देत्र मांहे पूर्वोत्पन्न रोग उपशमी जाय, बीजो मांहोमांहे वैरनाव मटी जाय. त्रीजो डुर्जिक दुष्काल न होय. चोथो स्वचक्र परचक्रनो जय न होय. पांचमो मारी मरकी न होय. बहो ईति ते घणा विनाशकारक जीवजंतुनी उत्पत्ति न होय. सातमो यतिवृष्टि न होय. श्राठमो अनावृष्टि न होय. ए व अतिशय प्रजुना विहारक्षेत्र
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa International
खंग. ४
॥१८३॥
Page #371
--------------------------------------------------------------------------
________________
Jain Education
श्राश्रयी कला, तेनी साथे श्रगलना वे मेलवतां दश थया, छाने गीयारमो प्रजुनी पूंठे उद्योत| मय जामंगल कलहलाट करतुं रहे. एवं अगीयार अतिशय क्षायिक जावथी होय. हवे जंगपीश अतिशय देवकृत होय ते कड़े बे. एक मणिरत्नमय सिंहासन सहचारी होय. बीजो त्रण वत्र श्री जिनेश्वरने मस्तके देखाय. त्रीजो इंद्रध्वज सदा श्रगल चाले. चोथो श्वेत चामरनां जोमां णवींज्यां वीजाय. पांचमो सर्वदा धर्मचक्र आकाशमार्गे रथं चाले. बो प्रजुना शरीरथी बार गुणुं उंचुं एवं अशोकवृक्ष प्रजुनी उपर बाया करतुं साथे रहे. सातमो चतुर्मुखे शोजती | देशना थापे श्रावमो मणि, कनक अने रौप्यमय त्रण गढ होय. नवमो नव संख्याए सुवर्णमय कमलनी उपर प्रभु चाले. दशमो कांटा अधोमुख थइ जाय. श्रगीयारमो संयम लीधा पी केश, नख ने रोम वधे नहीं. बारमो इंडियना अर्थ पांचे मनोइ होय. तेरमो सर्व तु सुखदायिनी होय. चौदमो सुगंधी पाणीनी वृष्टि होय. पंदरमो जलस्थलनां उपजेलां पांचे वर्णनां फूल ते समवसरणमा जानु लगे जंधी बीटे पथराय. सोलमो पक्षी सर्व प्रदक्षिणा देतां फरे. सत्तरमो वायु सानुकूल होय. अढारमो वृक्ष सर्व नीचां नमीने प्रणाम करतां रहे. उगणी शमो आकाशमां देवकुंडुनि वाजे. ए चार मूलना तथा अगीयार क्षायिक जावथी अने उगणीश | देवोना करेला मली चोत्रीश छातिशयना धरनार श्री अरिहंत होय, (ते जिन के०) ते श्री अरिहंत ने ( नमी के० ) नमस्कार करीने मारां जवोजवनां ( यघ के० ) पापने टालुं ॥ २ ॥
जे तिहु ना समग्ग उप्पन्ना, जोग करम खिण जाण ॥ बेइ दीक्षा शिक्षा जनने, ते नमी जिन नाणी रे ॥ नविका ॥ सि६चक्र० ॥ ३ ॥ अर्थ- वली जे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञान, एत्रण ( नाप समग्ग के० ज्ञान सहित थावीने गर्जने विषे उपन्या, एटले श्रीतीर्थंकर देव सर्वे देवगतिमांची तथा नारकी
समग्र
ational
For Personal and Private Use Only
Page #372
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
माथी आवे ते वारे त्रण झाने करी सहित श्रावे. तिहां जे स्थानकथी श्रावे ते स्थानके जेटलो अवधि
शाननो विषय होय तेटलेज विषये शहां पण तेमने अवधिज्ञान होय. ए रीते गृहस्थपणामां सर्व है। ॥१mतीर्थकरोने माहोमांडे कानमां तफावत जाणवो, माटे श्रीतीर्थकरने जवप्रत्ययी कान बे. ते जाने
करी पोतानां जोगावली कर्मनो कय जाणीने गृहस्थपणानो त्याग करी नमो तिबस्स कही करेमि|| नंते सामाश्यं उच्चरी पांच महाव्रतनो उच्चार करी दीदा लश्ने जव्य, सुल नबोधी, परीतसंसारी एवा नमक परिणामवाला जे जगनिवासी जन तेमने शिदा एटले शीखामण देवा माटे कर्म खपावी केवलज्ञान पामी घणा जीवने बोधवीज पमामी संसारसमुना पार प्रत्ये पहोंचाडे. एवा जगपकारी जे श्रीजिन नाणी एटले ज्ञाने सहित ते अरिहंतने नमीए. ए नाणी केवा बे ? तो के पोते | संसारसमुथी तस्या अने बीजाने तारे एवा जे. एवी रीतनुं श्रीपाल राजा ध्यान धरे ले ॥३॥
महागोप महामादण कदीए, निर्यामक सबवाद ॥ नपमा एदवी
जेहने गजे, ते जिन नमीए उबाद रे ॥ नविका ॥ सिक्ष्चक्र० ॥४॥ अर्थ-वली प्रनु केवा ले ? तो के महागोप, महामाहण, निर्यामक श्रने सार्थवाह, एवी चार उपमा जेने बाजे ३ ते ( जिन के० ) अरिहंतने पोताना हृदयमां घणोज उत्साह धरीने 8 नमीए एटले नमस्कार करीए एम श्रीपाल कहे . हवे ए चार उपमाना अर्थ कहे . जेमत गोप जे गोवालीया जे ते गायोने पाले बे, सर्प सावजना जयथी राखे बे, पर्वत अटवीने विषे |
॥रा घणुं तृण चरावे , वली वन मांहे पाणी पीवरावे , एवं रखोपुं करे , तेम इहां श्रीअरिहंतजी पण ब जीवनिकायरूप गायोनो समूह तेने जन्म मरणादिकना जयथी उझरी मोद नगर 8 प्रत्ये पहोंचाडे डे, माटे एमने महागोप कहीए. हवे महामाहण केवी रीते कहीए ? ते कहे| जे. साधु मुनिराज जे कायनी रक्षा करे ले ते श्रीजिनेश्वरनां वचनथी करे डे, जगजंतुने है।
CAMCACANCECACANCIAC-ACCOCACANCY
JainEducation
For Personal and Private Use Only
www.n
ary.org
Page #373
--------------------------------------------------------------------------
________________
करुणारूप ऋण जगतमां दयानो पमद वजमावे बे, माटे महामाहण एज शब्दनो निर्घोष बे, तेथी महामाहण कहीए. तथा जेम कोइ सार्थवाहना आश्रयी प्राणी ते अत्यंत कष्टे उल्लंघन करवा योग्य एवी अटवीने पण तेना कही देखाडेला मार्गथी उल्लंघीने वांबित नगरे पहोंचे डे, | तेम जवरूप घटवीमां पडेला जीव पण श्रीजिनेश्वरना उपदेशेला मार्गे करी मोक्ष नगरे पहोंचे बे, केमके वीरूप नवकांतार उल्लंघवानो मार्ग देखामनार श्रीजिनेंद्रज बे, एटले संसाररूप अटवीने विषे श्रनादिनुं जे मिथ्यात्व श्रज्ञान तेणे मोहरूप तिमिरे करी मुंजित मार्गे जीवने पाड्यो बे, ते श्रीजिने कहेला सम्यक्त्वदर्शने करी दीठो. पढी जले ज्ञाने करी पाम्यो जे चरण| सित्तरी करण सित्तरीरूप निर्वाणनो मार्ग, तेणे करी शाश्वतुं निराबाधपणुं जिहां बे एवा अज| रामर स्थानक प्रत्ये प्राणी पामे, माटे सार्थवाह समान बे. तथा जेम समुद्रमां कोइ एक वहाण परद्वीपे जाय ठे, तेमां बेठेला लोकोने ते वहाणनो चलावनार जे नाखुदो बे ते समुद्रनो पार |पमाडी चिंतित द्वीपे पहचाडे, तेम श्रीअरिहंत पण नवसमुद्रमां रहेला जव्य जीवोने जेम गर्जने परिपाके गर्ज प्रसव थाय तेम जव्यस्थितिने परिपाके अनादि मिथ्यात्वनो विरद थये | थके श्री जिनोपकारथी कर्मक्षय करावी चौदमा गुणठाणाने अंते एक समयमां सिद्धरूप पाटणे पहोंचाडे, माटे निर्यामक कहीए. ए चार उपमानो अर्थ को ॥ ४ ॥
प्रातिहार जस बाजे, पांत्रीश गुण युत वाणी ॥ जे प्रतिबोध करे जगजनने, ते जिन नमीए प्राणी रे ॥ जविका ॥ सिचक्र० ॥ ५ ॥ अर्थ- वली जे श्रीश्ररिहंतने अशोकवृक्ष, देवकुसुमवृष्टि, योजनगामिनी दिव्य वाणी, चामरयुग्म, सिंहासन, जामंगल, देवकुंडुनि ने उत्रत्रय, ए आठ महाप्रातिहार्य ते बाजे बे. वली
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #374
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥१८५॥
जेमनी पांत्रीश गुणे करी युक्त वाणी बे, ते वाणीए करीने जे जगतना जनने प्रतिबोध करे बे, हे जव्य प्राणी ! ते श्री जिनेश्वरने विशेषे करी नमीए एटले नमस्कार करीए इहां वाणीना पांत्रीश गुणनां नाम लखीए बीए. प्रथम जे स्थानके जे जाषा बोलवानो व्यवहार वे तिहां तेज जापाने बोले, अर्द्धमागधी सहित बोले. बीजो उच्च स्वरे देशना आपे, जेथी एक योजन प्रमाण समवसरणमां बेबेला लोक सर्व सांजले. त्रीजो ग्रामिक तुछ जाषा न बोले, प्रौढ जाषा बोले. चोथो मेघनी परे गर्जारव सहित गंजीर वाणी बोले. पांचमो शब्दोपेत एटले पमवृंदा सहित वाणी बोले, अने सांजलनारने निन्न जिन्न शब्द जपाई श्रावे तेम बोले. बडो सांजलनार ने | संतोषकारक मान सहित सरलता युक्त बोले. सातमो सांजलनार सहु जूदा जूदा पोतपोतानां | हृदय मांहे एम समजे जे जगवान् श्रमनेज उद्देशीने वोले बे, एम सहुने बहुमान उत्पन्न करवावाली जाषा वोले. ए सात गुण शब्दाश्रयी जाणवा. याठमो घणा पुष्ट विस्तार अर्थ सहित बोले. नवमो पूर्वापर विरोध एटले सरिखो मलतो अर्थ बोले. दशमो मोटाइनां वचन बोले के जेथी सांजलनारा एम कहे जे ए वचन एवा मोटा पुरुषयीज बोलाय, पण वीजाथी न बोलाय एम प्रशंसा करे, तथा अमित सिद्धांतोक्त बोले. अगीयारमो एवं स्पष्ट बोले के | जेथी कोइ पण सांजलनारने बिलकुल संदेह रहे नहीं. बारमो प्रभु जे श्रर्थनुं व्याख्यान करे तेने कोइ डूषण यापी शके नहीं. तेरमो जे विषय घणो सूक्ष्म अने बहु कठण होय ते विषय एवी रीते बोले के जेथी सांजलनारानां हृदय मांहे ते वात तुरत रमी जाय. चौदमो प्रस्तावो चित एटले जिहां जेवुं बोलवा योग्य होय तिहां तेवुं बोले, मांहोमांहे अर्थ मले एम बोले, वृद्धवादी गुरुने दृष्टांते. पंदरमो परमेश्वरने जे वस्तु विवक्षित बे तेज सिद्धांत लइ वोले अर्थात् षड् द्रव्य नव तत्त्व पुष्ट थवारूप अपेक्षा सहित बोले. सोलमो विषय, संबंध, प्रयोजन अने
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only)
खंग, ४
॥१८५॥
Page #375
--------------------------------------------------------------------------
________________
6
षड्
अधिकारी सहित बोले. सत्तरमो पदरचनानी अपेक्षा लइ बोले. अढारमो नव तत्त्व द्रव्यनी पटुता बोलवामां होय तेम बोले. उंगणीशमो एवी रीते स्निग्ध मधुर बोले के जेथी सांजलनारने घृत गोलथी पण मीठाश वधारे उपजे. वीशमो एवी चतुराईथी बोले के जे मांहे पारका मर्म जलाइ न यावे. एकवीशमो धर्म अर्थ प्रतिबद्ध बोले. वावीशमो उदार - पणे दीपक जेवो प्रकाशकारी अर्थ बोले. त्रेवीशमो जे मांहे परनी निंदा तथा पोतानी मोटाइ दीगमां न आवे एम वोले. चोवीशमो जे बोलवाथी लोकोने एवो जास न थाय जे या पुरुष सर्व गुण संपन्न डे एम बोले. पचीशमो कर्ता, कर्म, क्रिया, लिंग, कारक, काल
ने विक्ति सहित बोले. ववीशमो सांजलनारने विस्मय थाय, आश्चर्य उपजे एवं बोले. सत्यावीशमो स्वस्थ चित्ते यति धीरता सहित बोले, पण उतावलानी परेन बोले. यठयावीशमो | विलंब रहित बोले. उगणत्रीशमो मननी जांति रहित बोले. त्रीशमो वैमानिक, जवनपति, मनुष्य, तिर्यंच, सर्व पोतपोतानी जाषामां समजे तेम बोले. एकत्रीशमो जेम शिष्योने विशेष बुद्धि उपजवापणुं थाय तेम बोले. वत्रीशमो पदना श्रर्थने नेकपणे विशेष च्यारोपण करी बोले. तेत्री शमो सत्त्व प्रधानपणे एटले साहसिकपणे बोले. चोत्रीशमो पुनरुक्तिदोष रहित बोले. पांत्रीशमो सांजलनार ने खेद श्रम न उपजे एवं बोले. ए प्रजुनी वाणीना पांत्रीश गुण कला ॥ ५ ॥ फरसी, चरम तिभाग विशेष ॥ अवगाहन नही जे शिव पदोता, सि६ नमो ते शेष रे ॥ नविका ॥ सिदचक्र० ॥ ६ ॥
समय पर संतर
अर्थ- हवे सिद्धपदनी स्तवना पांच गाथाए करे बे. जे एक समय विना बीजो समय फरसे नहीं, तेमज चौदमा गुणगणाना अंतथी आकाशना असंख्याता प्रदेश बे, ते मध्ये जीव जे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #376
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥ ९८६ ॥
प्रदेशनी श्रेणीए प्रवर्त्तन करे तेथी बीजा प्रदेशने ( अफरसी के० ) फरसे नहीं, एटले समश्रेणीना प्रदेशने अंतरे रह्या जे वीजा प्रदेश तेमने फरस्या विना जे प्रदेशे सिद्ध थया तेज प्रदेशे समश्रेणीए एक समयमां सिद्धगति पामे. जे वारे तिहां पहोंचे ते वारे ( चरम के० ) बेल्ला शरीरनो ( तिजाग के० ) त्रीजो जाग विशेष घटे, एटले नव हाथनी काया होय तो व हाथनी काया रहे, एवी श्रवगाहना लइने सिद्धगति पाम्या ते ( अशेष के० ) समस्त सिद्ध ने नम स्कार करो ॥ ६ ॥
पूर्वप्रयोग ने गति परिणामे, बंधनवेद प्रसंग ॥ समय एक करध गति जेहनी, ते सिह समरो रंग रे || नविका ॥ सि६चक्र० ॥ ७ ॥
- एक पूर्वप्रयोग जे पूर्वे बलपणुं हतुं ते माटे, बीजुं जीवमां सहेजे गतिपरिणाम वे तेथी, त्रीजुं कर्मनो बंधनवेद थयो माटे, चोथुं अनादि प्रसंगी टब्यो, असंगी थया माटे, एक समय पर्यंत ऊर्ध्व गति बे, पठी अचल बे. हवे ए सिद्धगतिए पहोंचवाना चार दृष्टांतनो अर्थ कहे बे. तेमां धनुष्य चडावी वाण मूकवाने अवसरे पूर्वप्रयोग विधिए पपउनुं प्रेयुं जेम बाण जाय तेम श्रात्मा पूर्वे कर्म सहित हतो ते सर्व कर्मनी एकसो अठावन प्रकृतिनो बंध, उदय, उदीरणा अने सत्तानो दय थाय, ते वारे जीव उंचो जाय, सिद्ध थाय, ते जीवनुं पूर्वप्रयोगलक्षण कहीए. बीजो जेम अनि मांहेथी धूम्र नीकले ते तुरत उंचो चडे तेम आत्मा कर्मथी वेगलो थाय तो एनी गति पण उंची जवानी छे, माटे उंचो चडे तेने गतिपरिणाम स्वनाव कहीए. त्रीजो जेम एरंग वृनां फल पाके ते श्रातपने योगे सुकाया पढ़ी फाटे, ते वारे तेनुं बीज नीकले ते उंचुं उबले तेम जवरूप वन मांहे मनुष्यरूप वृक्ष बे, तेनुं समकितरूप स्थल
For Personal and Private Use Only
Jain Educationa International
खंग. ४
॥ १०६ ॥
Page #377
--------------------------------------------------------------------------
________________
A
RRAHARAS
बे, अने व्रतरूप शाखा ने, जावनारूप प्रतिशाखा , अने घनघाती कर्मक्षयरूप फूल बे, तथा । तेरमा अने चौदमा गुणगणारूप फल ते शेष पंच्याशी प्रकृति सत्ताक्षयरूप आतपे करी आत्मा | पुद्गलथी जिन्न थयो. ते बंधननो छेद थयो. ते वारे जीवनी गति उंची थाय, तेथी सिक थाय. कर्मबंधननो वेद थयो, माटे तेने बंधनदयोग कहीए. चोथो जेम कुंजार प्रथम वेगथी चक्रने | दंडे करी नमाडे, पठे को हाथ न लगाडे तोपण ते चक्र पोतानी मेले फस्या करे, तेम जीव है असंगक्रियाने बले कर्ममल रहित थ रह्यो बे, अने उपाधिनां कारण सर्व मटी गयां , तेथी संग रहित थका जीवनी गति उंचीज होय. एम चार प्रकारे करी एक समय मांहे जेनी (ऊरध के०) उंची गति , पनी अचल २ ते सिझने तमे (रंग के०) हर्षे करी समरो, नमो ॥७॥
निर्मल सिहशिलानी नपरे, जोयण एक लोकंत ॥ सादि अनंत तिहा
स्थिति जेदनी, ते सि६ प्रणामो संत रे ॥ नविका ॥ सिइचक्र० ॥ ७ ॥ अर्थ-(निर्मल के० ) स्फटिक रत्नमयी मल रहित जातिवंत अर्जुन सोनानी जे सिकशिला ते 8 उपरे उत्सेध अंगुलने माने करी एक योजनने अंते लोकनो अंत . ते योजनना चोवीश नागर है करीए, तेमांत्रेवीश नाग हेग पमता मूकीए अने उपरले चोवीशमे नागे सर्व सिझना जीव अवगाही रह्या .तिहां अनेक प्रकारनी अवगाहना दे. कोई पलांगी वाल्या सिझ थया तेनी तेवी अवगाहना. को काउस्सग्गमुखाए सिह थया तेनी तेवी श्रवगाहना जाणवी. उत्कृष्ट पांचसे धनुष्य शरीर-| वाला सिझ थया, मध्यम सात हायना शरीरवाला अने जघन्य बे हाथना शरीरवाला सिक थया. ते जायगा उंचपणे त्रसो तेत्रीश धनुष्य, एक हाथ ने चार अंगुल प्रमाण बे. तिहां सर्व
NSARKARSASARAKAARAKAKARSA
Sain Education
international
For Personal and Private Use Only
wow.jainelibrary.org
Page #378
--------------------------------------------------------------------------
________________
४
श्रीरासिक श्राश्रयी अनादि अनंत स्थिति के अने एक सिद्ध आश्रयी सादि अनंत स्थिति ने जेनी ॥२७॥
एवा जे सिक तेने हे ( संत के०) सङान पुरुषो ! तमे प्रणाम करो. ते सिझनी अवगाहनाना अगीयार नेद आवश्यक नियुक्ति मांहे कह्या . तेमांनो अगीयारमो कर्मदयना सिझनो नेद ए| सिकने एवा सिझने नमो, जेम मोदसुखने पामो ॥७॥
जाणे पण न शके कही पुरगुण, प्राकृत तिम गुण जास ॥ उपमा विण
नाणी नव मांदे, ते सिझ दीयो उल्लास रे॥ नविका ॥ सिक्ष्चक्र ॥ ए॥ । अर्थ-वली ते सिह केवा ने ? तो के जेम (प्राकृत के ) निल्स ने ते (पुर के) नगरना गुण जाणे बे, पण मुखथी कही शके नहीं, एटले जेम को एक नगरनो राजा एकदा वक्रशिक्षित अश्वे चमी थटवीमां गयो, पठी वाग खेंचवाथी हाथ फुःखवा लाग्या ते वारे मूकी दीधी, तेथी घोडो पण उन्नो रह्यो, ते वारे राजा नीचे उतरी श्रश्वने वृदनी याए बांधी पोते पण आयामां बेठो, पण तृषा घणी लागी , एटलामा एक जिल्ह्य वनमाथी श्राव्यो, तेनी । पासेथी राजाए हाथनी संज्ञाए पाणी माग्युं. निब्बे विचाखु जे श्रा कोश्क नलो माणस देखाय 2 बे, एम धारी पाननो दमीयो करी पाणी जरी लाव्यो. राजाए पाणी पीधुं अने प्राण रह्या, तेथी खुशी थयो, एटलामां राजानी सेना पण पगले पगले चालती तिहां श्रावी पहोती, ते पण 81 राजाने जोर आनंद पामी, प्रधानादिके नोजन मुख श्रागल मूक्यु. राजा ते निबने जमामी वस्त्र पहेरावीने तेने साथे तेमी नगरमा श्राव्यो. तिहां एक मंदिरमां निबने राख्यो, घणा सेवक है। तेनी पासे राख्या, जिल्ल पण गोखमां बेसी नगरना तमासा जोया करे, मेवा मीगश्नां जोजन ? करे, चुवा चंदननां विलेपन करे, केटलाएक दिवसो पनी ते निख पोताना संबंधी पासे गयो,
OCT-5-ECORRECROCOCCARROCAUS
D
॥१७॥
SANCAR
Sain Education Intematonal
For Personal and Private Use Only
Page #379
--------------------------------------------------------------------------
________________
तेने सर्व जिल्ब मली पूवा लाग्या के तुं क्यां गयो हतो ? ते वारे तेणे कर्दा के हुँ नगरमां है गयो हतो. तेमणे पूज्यु के तिहां खावा पीवान मलतुं हतुं ? तथा नगरनां स्थानक केवा हतां ? वस्त्र केवां हतां ? एम पूबवा लाग्या, पण ते नि तेमने कांश कही शके नहीं, पोते, मनमां सर्व जाणे, पण समजावी शके नहीं, ए दृष्टांते. तथा जेम कोश्क मुंगाने गोल खवरा-18 वीने तेनो स्वाद पूबीए तो ते संझाए बतावे, पण कही शके नहीं, तेम श्रीसिझनां सुखने पण ( उपमा विण जव मांहे के०) जगत माहे कोई चीजनी उपमा दश्ने वर्णन करी शकाय| नहीं. ते सिद्धनां सुखने ( नाणी के ) केवलझानी पुरुष जाणे खरा, पण तेनुं मुखश्री वर्णन करी शके नहीं, एवा सुखनो अनुनव करनारा जे श्रीसिक नगवान् ते मुजने उल्लास प्रत्ये श्रापो ॥ ए॥ ___ ज्योतिशुं ज्योति मिली जस अनुपम, विरमी सकल उपाधि ॥ आतम
राम रमापति समरो, ते सि सहज समाधि रे॥लविका॥सिक्ष्चक्र०॥२०॥ अर्थ-वली सिक केवा ? तो के जेनी ज्योति मांहे ज्योति मली रही . एक सिझनी 12 अवगाहना मांहे (अनुपम के० ) जेनी उपमा आवेज नहीं एवी अनंता सिझनी ज्योति दीप-10 कने दृष्टांते मली रही , एटले जेम एक उरमा मांहे एक दीवानो प्रकाश समाश् रह्यो , तेमां वली बीजा अनेक दीपक करीए तो तेनो प्रकाश पण तेमांज समा जाय, ए दृष्टांते जाणवू. वली संसार संबंधी सकल उपाधि विरमी ने एवा तथा जेमना आत्माना मूल गुण सादात् प्रगट थया ने, माटे आत्मारामरूप ने ( रमा के०) मोक्षलक्ष्मी तेना (पति के०)। स्वामी एवा जे सिझ तेने ( समरो के ) स्मरण करो. ते सिझ सहज स्वगुणरूप समाधिनुं |
MSCORRECIRCRACCORROCALCONOCOLORCAME
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #380
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग.
श्रीराण स्थानक बे, जे माटे जीवने अनादि कालनां लागेला जे श्राप प्रकारनां कर्म, तेने शोषव्या,
धम्यां, तेथी सिक थया. ते सिझनां सुख केवां ले ? तो के यावन्मात्र जेटला देवताना समूह है। ॥रज्जा
ते सर्वना त्रणे कालनां सुख एकां करीए, पिंमीनूत करीने तेने वली अनंतगुणां करीए, तेथी। पण सिझनां सुख अनंतगुणां बे. एम पांच गाथाए करीने श्रीसिद्धपदनी स्तवना श्रीपाल राजाए करी ॥१०॥
पंच आचार जे सूधा पाले, मारग नाखे साचो ॥ ते आचारिज
नमीए तेदशं, प्रेम करीजे जाचो रे॥ नविका ॥ सि-चक्र० ॥ ११ ॥ | अर्थ-हवे त्रीजा श्राचार्यपदनी स्तवना पांच गाथाए करी करे बे. जे पोते ज्ञान नणे, परने ||ज्ञान नणावे, पोते ज्ञान लखे, परने ज्ञान लखवानो उद्यम करावे, पोते ज्ञानगंडारा करे, परने |ज्ञाननंमारा करावे, ज्ञानवंत देखीने तेनी उपर राग धरे, ते ज्ञानाचार कहीए. तथा पोते सम
कित पाले, बीजाने समकित पलावे, समकितथी पम्तो होय तेने वचनकथने करी फरी समहाकितमा दृढ करे, तेने दर्शनाचार कहीए. तथा चारित्र पोते पाले. बीजाने पलावे, चारित्र: पालता होय तेने अनुमोदे, ते चारित्राचार कहीए. तथा बार प्रकारनुं तप पोते करे, परने तप करावे, जे तप करतो होय तेने अनुमोदन आपे, ते तपाचार कहीए. तथा ए पूर्वोक्त झानादि चार प्रकारना श्राचारने विषे विशेष शक्ति फोरवे, पडिकमj, पडिलेहण प्रमुखने विष वीर्य 2
॥२०॥ गोपवे नहीं, ते पांचमो वीर्याचार कहीए. ए पंचविध श्राचारने जे सुधा एटले निरतिचारपणे पाले, वली श्रीजिनोक्त दयारूप पुण्यमय धर्म तेनो साचो एटले सत्य मार्ग नाखे ते श्राचार्य कहीए, तेने नमीए, श्रने ( तेहगुं के० ) तेमनी साथे धर्मनो जाचो प्रेम करीजे, केमके तेथी श्राचार पामीए ते माटे ॥११॥
AASARANASANSARKARICARSACREASANAGAR
Jan Educati
o
nal
For Personal and Private Use Only
Page #381
--------------------------------------------------------------------------
________________
वर उत्रीश गुणे करी सोदे, युगप्रधान जन मोदे ॥ जग बोदे न रदे खण कोदे, सूरि नमुं ते जोदे रे ॥ नविका ॥ सिचक्र ॥१२॥ नित अप्रमत्त धर्म उवएसे, नहीं विकथा न कषाय ॥ जेदने ते आचारिज
नमीए, अकलुष अमल अमाय रे॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥ १३ ॥ अर्थ-वली आचार्य केवा ? तो के ( वर के०) प्रधान एवंा पंचेंजियना निग्रह आदिक है उनीश गुण जे आचार्यना डे तेणे करी शोने दे. वली युगप्रधान पदवीना धरनार, छादशांगीना जाण, सर्व जनने मोह पमामनार तथा (जग बोहे के० ) सर्व जगतना जनने बोधे, एटले प्रतिबोध श्रापवामां समर्थ, तथा (न रहे खण कोहे के० ) एक क्षणमात्र पण जे क्रोधमा रहेता नथी, एटले दणमात्र पण क्रोध धरता नथी, एवा (सूरि के०) श्राचार्य, तेने (जोहे के0) परखीने हुँ नमुंडं ॥ १२ ॥ वली (नित के) निरंतर नव्य जीवने उपकारबुछिए शुछ अप्रमत्त धर्मनो उपदेश आपे , केमके प्रमाद जे बे ते जीवने संसारमा पर्यटन करावनारो , माटे प्रमादने पूर करी अप्रमादपणे प्रवर्त्तताने अंतर्मुहर्त्तमां संसारनो जय मटी जाय. तथा वली
राजकथा, देशकथा, नोजनकथा अने स्त्रीकथा, ए चार प्रकारनी विकथा अथवा सम्यक्त्व ढील-13 हाणीया अने चारित्र ढीलणीया, ए बे प्रकारनी विकथा, ते जेने करवी नथी, सर्वदा चारित्र अने
सम्यक्त्वनी पुष्टिज करे , तेमज सोल कषाय अने नव नोकषाय, ए पचीश कषाय जेने नथी, वली सर्वदा शुद्ध आचार पालवाने तत्पर रहे जे ते आचार्यने नमीए. ते केवा ने ? तो के अकबुष एटले मोलाशपणुं अर्थात् कलुष नाव तेणे करी रहित, तथा श्रमल एटले को प्रकार, श्रझामां मलिनपणुं जेने नथी, तथा अमाय एटले कपट, माया, ईर्ष्या अने मत्सर, तेणे रहित ॥१३॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #382
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री राण
॥रना
जे दीए सारण वारण चोयण, पडिचोयण वली जनने ॥ पट्टधारी गलथंन आचारय, ते मान्या मुनिमनने रे॥ नविका ॥ सिश्चक ॥१४॥ अचमीए जिनसूरज केवल, चंदे जे जगदीवो ॥ नुवनपदारथ प्रगटन पटु ते, आचारय चिरं जीवो रे॥ नविका ॥ सिक्ष्चक्र० ॥१५॥
NAGARBHANSARASWARA
अर्थ-वली जे आचार्य चार प्रकारनी शिक्षा दीए वे ते कहे . एक तो जे साधु क्रिया अनुष्ठानमा तत्पर थकाने नूल पडे तेने संजारी आपे ते सारणा कहीए. बीजी जे साधु खोटी |क्रिया करता होय तथा खोटुं नणता होय तेने वारे ते वारणा जाणवी. त्रीजी साधुउने क्रिया करवामां प्रेरणा करे ते चोयणा जाणवी. चोथी साधुने प्रमाद करता जाणी तिरस्कारपूर्वक आकरे| वचने करी विशेष प्रेरणा करे ते पमिचोयणा जाणवी. ए चार प्रकरनी शिक्षा श्रापी लोकोने | धर्मकरणीमा विशेष प्रकारे जोडे. वली पट्टधारी एटले सौधर्मपट्टपरंपराना धरनारा, तथा गछ जे गण, साधुनो समुदाय तेने थंज समान एटले गबना स्तंननूत एवा आचार्य नगवान् ते महा-12 मुनिराजोनां मनने विशेषे मान्या ॥ १४ ॥ वली श्रीयाचार्य नगवान् केवा ? तो के जेम || जगतमां सूर्यनां किरणोनो जे वारे प्रसार होय ते वारे अंधकारनां पमलो सर्व दूर थर जाय , अने जे वारे सूर्य अस्त थ जाय ते वारे चंद्रमानो प्रकाश अंधकारने दूर करे . वली कृष्ण-14 पक्षमा जे वारे चंडमानो प्रकाश पण न होय ते वारे दीपक पण अंधकारने विनाश करे , तेम। हां पण सादात् लावतीर्थंकर जे वारे विद्यमान विचरता होय ते वारे ते केवलज्ञानरूप सूर्ये |
ՈՀԵԱՆ करी रूपी अरूपी पदार्थने प्रगट करता रहे, तेथी मिथ्यात्वरूप अंधकारनो प्रसार न होय, अने 3 जे वारे (श्रमीए जिनसूरज के०) जिन जे श्रीतीर्थकर देवरूप सूर्य ते अस्त थाय, एटले |
CHCECANCHOROSCOCOCACANCLUCONOCROCHAR
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #383
--------------------------------------------------------------------------
________________
ANCHECRUC0-NCRECANCECRUCROCRACCOCKR
श्रीतीर्थकर निर्वाणपद पाम्या पनी ( केवलचंदे के० ) केवल ज्ञानना धारक सामान्य केवलीरूप]8 चंडे करी जगतमा प्रकाश रहे, अने जे वारे केवली नगवानरूप चंद्रमानो प्रकाश न होय ते । वारे (जे जगदीवो के०) जगतने विषे मिथ्यात्वरूप अंधकार दूर करवाने दीपक समान जे थाचार्य प्रजुले तेज प्रकाशकर्ता ने, एटले जगतमां अज्ञानरूप अंधकारना प्रसारने दूर करवा माटे श्रीश्राचार्य जे ने ते दीपक समान बे, माटे ते नुवनपदारथ एटले त्रण जुवनना पदार्थने 8 प्रगटन एटले प्रगट स्पष्ट (पटु के०) चतुराश्थी कहेवाने ते समर्थ डे, एवा श्रीश्राचार्य नगवान् ते ( चिरं जीवो के० ) घणा काल लगे विद्यमान रहो. ए रीते प्रामाविक शासनना शोनाकारक श्रीश्राचार्यजीनी स्तुति श्रीपाल राजा करे ३ ते पांच गाथाए कही ॥१५॥
छादश अंग सजाय करे जे, पारंग धारक तास ॥ सूत्र अरथ विस्तार रसिक ते, नमो उवकाय उल्लास रे॥नविका ॥ सिक्ष्चक्र० ॥१६॥ अर्थ सूत्रने दानविनागे, आचारय उवकाय ॥ लव त्रणे लदे जे शिवसंपद,
नमीए ते सुपसाय रे॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥१७॥ अर्थ-हवे पांच गाथाए करीने श्रीउपाध्यायपदनी स्तवना करे जे. जे श्रीश्राचारांगादि कादश अंग एटले बार अंग दे तेनुं सद्याय ध्यान निरंतर करे ले तथा ए छादशांगी जे गणि पिटक तेना अर्थना पारंगामी , अने तेना रहस्यना धारणहार , वली सूत्रथी तथा अर्थथी ते छादशांगीनो विस्तार करवाने रसिक थका पोते नणे, बीजाने जणावे, एवा श्रीउपाध्यायजीने उदास है। सहित एटले चित्तना हर्षथी नमो एटले नमस्कार करो ॥ १६ ॥ जे सूत्र अने अर्थरूप ज्ञानदाननी वहेंचणने विनागे श्रीआचार्यजी जे तीर्थकरनी पेरे अर्थनुं दान करे, अने उपाध्यायजी
CANCCOMCHOCALCOCALON-SECREACROCENCRAC
ॐ
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #384
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम सूत्रनुं दान करे. ए रीते श्राचार्य श्रने नपाध्यायनी मर्यादा जे. एवा गुणवंत विधि क्रियाकारक | खम. ४
जे श्रीश्राचार्य उपाध्याय, ते त्रण जवने अंते एटले तेहीज नवे अथवा त्रीजे नवे शिवसंपद जे3 ॥रए॥
मोक्षरूप लक्ष्मी, तेने (लहे के ) पामे. एवा.लला पसायना करनार तेने चित्तनी प्रसन्नताए त्रिविध एकाग्रपणे करी नमस्कार करीए ॥ १७ ॥
मूरख शिष्य निपाइ जे प्रनु, पहाणने पल्लव आणे ॥ते नवकाय सकल जन पूजित, सूत्र अरथ सवि जाणे रे॥ नविका ॥ सिक्ष्चक्र० ॥ १७ ॥ राजकुंवर सरिखा गणचिंतक, आचारिजपद जोग ॥ जे नवकाय सदा ते नमतां, नावे नवनय शोग रे ॥ नविका ॥ सिचक्र ॥ १५ ॥ बावनाचंदनरस सम वयणे, अदित ताप सवि टाले॥ते जवकाय नमीजे
जे वली, जिनशासन अजुआले रे॥ नविका ॥ सिचक्र ॥२०॥
अर्थ-वली जे श्रीनपाध्याय ते मूर्ख शिष्य होय तेने नणावीने पंडित करे, माटे जाणीए पत्रहारने अंकुरा आणी नवपल्लव करे . ते उपाध्याय समस्त जन पूजित एटले पूजवा योग्य, सूत्र
तथा अर्थ सर्वने जाणे एवा ने ॥ १७ ॥ वली उपाध्याय केवा ठे? तो के राजकुंवर सरिखा गणचिंतक एटले जेम राजा न होय ते वारे युवराजा होय ते राज्यनार चलावे, तेम श्रीतीर्थकरने अजावे आचार्य गणचिंतक कह्या बे,ते श्रीश्राचार्यना पद एटले पाटे थापवा योग्य एवाजे श्रीनपा
॥१ ॥ ध्यायजी तेने (सदा के०) निरंतर नमतां थका लव जे संसार तेना नयनो शोक आवे नहीं ॥१५॥ जेम पित्तविकार तापादिकनो परानव थयो होय तेने बावनाचंदनने रसे करी सिंच्यो : थको सर्व ताप दूर थ जाय, तेम श्रीउपाध्यायजी पण जे प्राणी अनादि काल मिथ्यात्व, अवि-है।
baratonal
For Personal and Private Use Only
Page #385
--------------------------------------------------------------------------
________________
रति, कषायरूप अहितना करनारा तापे तप्त थ रह्या ने तेमने वावनाचंदनना रस सदृश शीतल वचने करीने शीतलता उपजावी तेऊना श्रहितरूप सर्व तापने टाले, अने सर्वने शीतलता उपजावे, ते उपाध्यायने नमीजे. वली जे श्रीजिनशासनने अजुश्राले बे एटले उद्योत करे बे. ए| रीते पांच गाथाए करी श्रीनपाध्यायपदनी स्तुति करी ॥ २० ॥
जिम तरुफूले नमरो बेसे, पीमा तस न उपाये ॥ लइ रसने आतम संतोषे, तिम मुनि गोचरी जाये रे ॥ नविका ॥ सिक्ष्चक्र० ॥२१॥ पंच इति ने कषाय निरंधे, षटकायक प्रतिपाल ॥ संयम सत्तर प्रकारे
आराधे, वंडं तेह दयाल रे ॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥॥ अर्थ-हवे पांच गाथाए करी साधुपद वर्णवे . जेम को सुगंध वृक्षनां फूल , तेनी वास-12 नाए आग्रहतो नमरो श्रावी बेसे , पण ते नमरो फूलने पीमा न उपजावे, ते फूलमांथी थोमोक
लइने फरी बीजा फूले जश्ने ते फूलनो रस लीए, एम थोमो थोडो रस लश्ने पोताना ६ श्रात्माने संतोषे, पण फूलने किलामणा उपजावे नहीं, तेम मुनिराज पण गोचरीए जाय ते वारे वेंतालीश दोष रहित शुद्ध थाहार जोश्ने फरी फरीने घरघरथी थोमी थोमी जिदा लावे, तेथी गृहस्थने पण अंतराय न थाय, कोइ किलामणा न उपजे, अने साधु पण संयममार्गनो निर्वाह करवाने श्रर्थे आहार लइ निरस त्याज्य तुब थाहारे करी आत्मानो पोष करे ॥२१॥ वली साधु केवा ? तो के जे पंचेंघिय श्रने चार कषायने निरुंधे ने पागंतरे (पंचेंजिने जे नित्य | जीते के०) पांच इंजियने जे नित्य एटले निरंतर कीपे, तथा पृथ्वी श्रादिक बकायना जीवोनी रदा करे , माटे तेना प्रतिपालन करनारा जाणवा. तथा सत्तर प्रकारे संयमने आराधे. ते | दयाल एटले दयावंत महामुनिने हुँ वाउं बुं ॥ २५ ॥
CACCIACOCOCALCRACCASIOCLOCALCIEOS
JainEducationainternational
For Personal and Private Use Only
www.sainelibrary.org
Page #386
--------------------------------------------------------------------------
________________
खंग.४
कर
श्रीराम
अढार सहस शीलांगना धोरी, अचल आचार चरित्र ॥ मुनि महंत ॥रए॥
जयणा युत वांदी, कीजे जन्म पवित्र रे ॥ नविका ॥ सिचक्र ॥२३॥ नवविध ब्रह्म गुपति जे पाले, बारसविद तप शूरा ॥ एहवा मुनि
नमीए जो प्रगटे, पूरव पुण्य अंकुरा रे॥नविका ॥ सिक्ष्चक्र० ॥२४॥ अर्थ-वली अढार हजार शीलांग रथना धोरी एटले ते रथने चलाववाने माटे वृषन समान 8 4. एनो विस्तार पूर्वे देशनानी ढालमां कह्यो तिहाथी जाणवो. वली कोनुं चलाव्युं चाले नहीं| एवं अचल ने श्राचाररूप चरित्र जेमनुं एवा महंत एटले मोटा मुनि ते जयणा युक्त ने, केमके है मुनिराज जे जे ते क्रिया कलापमा सुतां, बेसतां, उठतां, आहार लेतां, श्रावतां, जातां, मल मूत्र पररवतां सदा जयणा सहित विचरे बे, तेमने वांदीने पोतानो जन्मारो पवित्र करीए अथवा
मुनिने जयणा युक्त वांदीने जन्म पवित्र करीए ॥२३॥ वली जे नव प्रकारे नव वामरूप ब्रह्मचर्यनी गुप्ति पाले . ते गुप्तिनां नाम कहे . प्रथम जे वस्तिमां स्त्री, पशु, पंग ते नपुंसक होय एवी वस्तिमा रहे नहीं, वीजी स्त्रीनी कथा वार्त्ताने सरागपणे सांजले नहीं, स्त्रीनी साथे एकांते ! एकलो वात न करे. त्रीजी जे नूमिकाने विषे श्रथवा मांची, पाट, पाटलो, ढोलीयो इत्यादिक जे आसन उपर स्त्री बेठेली होय ते श्रासन उपर बे घडी सुधी बेसे नहीं, तेमज जे श्रावक ब्रह्मचारी होय ते पण तिहां बे घडी लगण वेसे नहीं. चोथी स्त्रीनां अंगोपांग तथा इंजियोने सरागपणे जुवे नहीं. पांचमी नींत परिश्रच त्राटी प्रमुखने अांतरे जिहां स्त्री तथा पुरुष शयन करतां होय, हास्य विनोद करतां होय, कामनोगनी क्रीमा करतां होय तिहां रहे नहीं. उही पूर्वे संसारी अवस्थामां जे कांश स्त्रीनी साथे कामनोग विलासादिक सेव्या होय ते संजारे नहीं.
ए॥
Sain Educatio
n
al
For Personal and Private Use Only
Janelibrary.org
Page #387
--------------------------------------------------------------------------
________________
सातमी परिमित मात्र आहार करे. यामी यतिमात्रा ते सरस पुष्टिकारक थाहार लीए नहीं. अत्यंत घणो आहार करे नहीं एटले पेट जरी जमे नहीं. नवमी शरीरने विषे श्राभूषणादिक पहेरी शोजा करे नहीं. ए नव प्रकारे ब्रह्मचर्यनी वामरूप गुप्ति ने ते पाले तथा बार प्रकारनी तपस्या करवाने शूरवीर बे. एवा गुणवंत महामुनीश्वर पंचम गतिना साधक, संसारदुःखवारक, सदा धर्मध्यानमां सावधान, सर्व जीवना रक्षक तेमने नमीजे. जो पूर्व जन्मनां संचेलां पुष्यना अंकुरा प्रगटे तो एवा मुनिराजनी जोगवाइ मले ॥ २४ ॥
सोना त परे परीक्षा दीसे, दिन दिन चढते वाने ॥ संयम खप करता मुनि नमी, देश का अनुमाने रे ॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥ २५ ॥ अर्थ- वली जेनी सोनानी परे परीक्षा देखाय बे, एटले ॥ यथा चतुर्भिः कनकं परीक्ष्यते, निघर्षणच्छेदनतापतानैः ॥ जेम सोनानी परीक्षा निघर्षण ते कसोटी उपर घसकुं, बेदन कर, | तपावकुं ने हथोमादिके तामन कर, ए चार प्रकारे करीए तेम तेम चढते वाने देखाय, तेम मुनिने पण कोइ मिथ्यात्वी बेदन, नेदन, तापन, ताडनादिक करे तोपण ते दिवसे दिवसे चढते वाने देखाय, एवा देश कालने अनुमाने शुद्ध संयमनो खप करता एटले दमणांना काल | प्रमाणे श्रात्मार्थी निःशल्यवान् एवा महामुनिने नमीए. यहीं कोई कहेशे के एवाज साधु होय ते वारे तेने नमीए, सेवा करीए, पण बीजाने नहीं. त्यां तेने उत्तर कड़े बे के कदापि श्रा | कालमा कोइ क्रियाए शिथिल होय तोपण जे जे योग्य, ज्ञानवंत, शुद्ध मार्गना प्ररूपक, सावद्य योगथी दूर रहेला, व्यवहारमार्गे श्राश्रयी एवा वक्तापणाना गुण जोइने ते मुनिनी सेवा करीए, तेना मुखथी पंचांगी प्रमाणे आगम सांजलवानो खप करीए, केमके तेवा साधु उपदेश देवाने योग्य बे. एम पांच गाथाए साधुपदनी स्तवना करी ॥ २५ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #388
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम शुक्ष देव गुरु धर्म परीक्षा, सद्दहणा परिणाम ॥ जेद पामीजे तेद
नमीजे, सम्यग्दर्शन नाम रे ॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥ २६ ॥ ॥रए॥
मत उपशम दय उपशम दयथी, जे होय त्रिविध अन्नंग ॥ सम्यग्
दर्शन तेद नमीजे, जिनधर्मे दृढ रंग रे॥ नविका ॥ सिचक्र ॥२७॥ अर्थ-हवे पांच गाथाए करी सम्यक्त्वदर्शन वर्णवे बे. शुद्ध देव ते अढार दूषण रहित एवा श्रीअरिहंत जाणवा, अने शुद्ध गुरु ते पंच महाव्रतना पालक, दशविध यतिधर्मना धारक, शुद्ध मार्गना देखामनारा एवा सुसाधु जाणवा, तथा शुद्ध धर्म ते दया मूल विनय विवेक सहित 8
श्रीकेवलिजाषित जाणवो. ए त्रण तत्त्वनी परी दाने करवे करी सदहणाना एटले श्रझाना परि-है Mणाम सहित जे समकित पामीजे तेनुं नाम समकितदर्शन कहीए. ते समकितदर्शनने नमीजे
एटले प्रणमीए, कारण के एक समकित शुरू तो सर्व शुफ ने. समकित विना सर्व बार उपर लीपणा समान जाणवू ॥६॥ प्रथम मल जे मोहनीय कर्म तप मल तेनी सात प्रकृति, तेमां चार 8 प्रकृति अनंतानुबंधीनी, पांचमी मिथ्यात्व मोहनी, बही मिश्र मोहनी अने सातमी समकित मोहनी, ए सात प्रकृतिना उपशम एटले उपशमे करीने उपशम समकित थाय. बीजुं (दय उपशम है के०) ते पूर्वोक्त मोहनीय कर्मनी जे सात प्रकृति , तेमांथी जे उदय श्रावी ते वय पामी, अने जे उदय नहीं श्रावी ते उपशमी, पण प्रदेशोदयपणे . एम सात प्रकृतिना क्ष्य अने उपशमथी दयोपशम समकित कहीए. त्रीजु (वयथी के०) ए साते प्रकृतिनो संपूर्ण दय | ॥१॥ थवाथी दायिक समकित कहीए. एवी रीते सम कित ते त्रिविध एटले कोश्ने उपशम, कोश्ने । कयोपशम अने कोश्ने दायिक, ए त्रण प्रकारे अन्नंग रूपे होय. ते सम्यक्त्वदर्शनने नमीजे है
GANGANAGACASSACREGA%ANCE
in Education
International
For Personal and Private Use Only
Page #389
--------------------------------------------------------------------------
________________
एटले नमस्कार करीए. जे प्राणीनो श्रीजिनधर्मने विषे दृढ रंग होय ते प्राणी समकित चोखं । राखे. ए समकित श्राव्याथी मुक्तिनी प्राप्ति सुगम थाय. घणामां घणुं संसारमा रहे तोपण ते जीव अर्मपुजलपरावर्तनथी वधारे रहे नहीं ॥ ७ ॥
पंच वार उपशमीय लहीजे, खय उवशमीय असंख ॥ एक वार खायिक ते समकित, दर्शन नमीए असंख रे॥नविका॥सिक्ष्चक्र॥ ॥ जे विण नाण प्रमाण न होये, चारित्रतरु तवि फलीयो॥ सुख निर्वाण न
जे विण लहीए, समकितदर्शन बलीयो रे॥नविका॥सिध्चक ॥श्॥ अर्थ-ते संसार मांहे नवनी परंपरा करतां पांच वार उपशम समकित लहीजे, अने दयोपशम समकित तो असंख्यात वार आवे अने वली पाखं जाय, माटे ते असंख्यात वार लहीए,8 तेमज जे दायिक समकित ते तो श्राखी जवपरंपरामा एकज वार लहीए एटले पामीए. ए एक जीव आश्रयी कह्यु. एवा समकितदर्शन धरनारा जीव सदा सर्वदा असंख्याता पामीए, तेने नमीए एटले वंदीए ॥ ॥ वली जे समकित विना ( नाण के०) ज्ञान ते प्रमाण न होय, केमके समकित विना जे ज्ञान होय ते अज्ञानपणेज परिणमे, माटे अज्ञान जाणवू. जे कारण माटे समकित रहितने अवधिझान ते पण विनंगपणे होय. वली समकित विना चारित्ररूप (तरु| के० ) वृद ते पण फलीनूत थाय नहीं, अंगारमर्दकाचार्यनी परे निष्फल चारित्र थाय, माटे सम्यक्त्व सहित चारित्र ते तन्नव मोक्षफल आपे. जो तेम न बने तोपण सात आठ जव तो
घेज नहीं, माटे समकितज प्रधान जे. वली जे समकित विना निर्वाण जे मोद तेनां अक्षय सुख पण न पामीए. ते माटे सर्व मांहे सम्यक्त्वदर्शन ते घjज बलीयुं बे, : माटे ज्ञान, दर्शन, चारित्रमय देव, गुरु दृढतापणे करे ॥२॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #390
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रा० सडसहि बोले जे अलंकरीयुं, ज्ञान चारित्रनुं मूल ॥समकितदर्शन ते नित
खंम. प्रणमुं, शिवपंथनुं अनुकूल रे॥ नविका 0 ॥ सिक्ष्चक्र ॥ ३० ॥ नद ॥रए३॥
अन्नद न जे विण लहीए, पेय अपेय विचार ॥ कृत्य अकृत्य न जे विण लहीए, झान ते सकल आधार रे॥नविका० ॥ सिक्ष्चक्र ॥३१॥ प्रथम झान ने पी अहिंसा, श्रीसिद्धांते नाख्युं ॥झानने वंदो झान म निंदो, ज्ञानीए शिवसुख चाख्युं रे॥ नविका ॥ सिक्ष्चक्र ॥३२॥ अर्थ-वली जे समकित चार सदहणा आदिक समसठ बोले करी अलंकरीयुं एटले नूषित बे, शोजतुं , तथा ज्ञान अने चारित्रनुं मूल पण ए समकितज , कारण के समकित विना ज्ञान, चारित्र सर्व व्यर्थ ने. ते सम कितदर्शनने नित्य प्रत्ये हुं प्रणाम करुं बुं, जे माटे ते शिव-16 पंथ जे मोक्षमार्ग तेनुं अनुकूल बे, एटले तेनुं सहायनूत जे. इहां समकितना सडसठ बोलना है नाम समकित पचीशी तथा समसठ बोलनी सद्यायादिक ग्रंथोमां उपा गयां ने, माटे अहीं ।
लख्यां नथी. एम पांच गाथाए सम्यक्त्वनी स्तवना करी ॥ ३० ॥ हवे पांच गाथाए करी सातमुं
ज्ञानपद वर्णवे ने. (जद के०) खावा योग्य, निरवद्य, निषण, सचित्त मिश्र दोष रहित ते अने 8 ६ अनद ते बावीश अनदय, बत्रीश अनंतकाय प्रमुख वस्तु जाणवी. ए जहाजनो विचार ते 4 हैजे विना न लहीए एटले न जाणीए, तथा पेय ते पाणी, नाश, उध प्रमुख पीवा योग्य है
वस्तु अने अपेय ते मदिरा तामी प्रमुख न पीवा योग्य वस्तु, ते संबंधी विचार, PIR३॥ तथा कृत्य ते यति अने गृहस्थने दिनकरणी प्रमुख जे करवा योग्य डे ते, अने अकृत्य ते लोक विरुष प्रमुख न करवा योग्य जे कार्य ते ज्ञान विना न लहीए एटले न पामीए माटे ज्ञान ते ए (सकल के० ) सर्व वस्तु जाणवानो आधार बे, परंतु ज्ञान विना तो चक्कु रहित है।
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #391
--------------------------------------------------------------------------
________________
बांधला सरखा जाणवा ॥ ३१॥ वली प्रथम ज्ञान अने पढी अहिंसा, ते ज्ञाने करी ज्ञानी जाणे | ते वारे दया पाले. ज्ञान विना अहिंसानो मार्ग समजाय नहीं, एम श्रीजिनोक्त सिद्धांत एटले श्रागम मांहे जाख्युं , कर्वा . ते माटे ज्ञानने वंदो, ज्ञानने को निंदशो मां. जे ज्ञानमा लयलीन हता ते ज्ञानीएज शिवसुख एटले मोदसुख चाख्युं ॥ ३५ ॥
सकल क्रियानुं मूल ते श्रा, तेहy मूल जे कहीए ॥ तेद ज्ञान नित नित वंदीजे, ते विण कदो किम रहीए रे ॥ नविका० ॥ सिचक्र ॥३३॥ पांच ज्ञान मांहे जेह सदागम, स्वपर प्रकाशक तेह ॥ दीपक परे त्रिजुवन
उपगारी, वली जिम रवि शशी मेह रे ॥ नविका० ॥ सिक्ष्चक्र० ॥३४॥ अर्थ-समस्त क्रियानुं मूल ते श्रद्धा ने एटले प्रतीति बे, पण श्रद्धा विना क्रिया चोखी कहे-18 वाय नहीं. ते श्रमानुं मूल पण ज्ञानज कहीए, कारण के ज्ञान विना श्रघा पण बेसे नहीं. एवं
जे ज्ञान तेने नित्य नित्य वांदीजे. ते ज्ञान नवपुःखनुं बेदनार , माटे कहो के ते ज्ञान विना है एक क्षणमात्र पण केवी रीते रही शकीए ? ॥ ३३॥ ते ज्ञान पांच प्रकार, ले. एक मतिज्ञान, बीजुं श्रुतज्ञान, त्रीजु अवधिज्ञान, चोथु मनःपर्यवज्ञान अने पांचभु केवलज्ञान. ते मांहे ।। जे ( सदागम के० ) श्रुतझान डे ते सर्वमां अधिक डे, ते स्वमत अने परमतनुं प्रकाशक बे, अथवा |ए श्रुतज्ञान जे जे ते ख एटले पोतानुं अने पर एटले बीजां जे चार छान तेनुं प्रकाशक , एटले पांचे ज्ञान एनाथी जाण्यां जाय. वली दीपकनी पेरे त्रण जुवनने विषे उपकारी , एटले जेम अंधकारमां दीपक प्रगट थाय ते वारे घट पटादिक पदार्थ सर्व देखाइ श्रावे, तेम श्रुतज्ञानथी त्रण जुवनमा रह्या जे जीवाजीवादि पदार्थ ते सर्व जाणवामां श्रावे. वली जेम रवि जे । सूर्य श्रने शशी एटले चंमा तथा मेह एटले मेघ, ए त्रणे उपकारी बे, एटले सूर्य प्रकाश करे
For Personal and Private Use Only
Page #392
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम बे, चंडमा उद्योत करे जे अने शीतलता पण उपजावे , तथा मेघ वरसे बे, पण ते को प्रत्यु- खंम. ४
पकार कराववानी वांडा राखता नथी, तेम श्रुतज्ञानना आधारे जीव संसार निस्तार पामे ॥३४॥ ॥रए॥
लोक करध अध तिर्यग ज्योतिष, वैमानिक ने सि॥ लोक अलोक प्रगट सवि जेदथी, ते झाने मुज शुदि रे॥ नविका ॥ सिक्ष्चक्र ॥ ३५ ॥ देशविरति ने सरवविरति जे, गृही यतिने अनिराम ॥ ते चारित्र जगत
जयवंतुं, कीजे तास प्रणाम रे ॥ नविका० ॥ सिक्ष्चक्र० ॥ ३६॥ १ अर्थ-वली लोक ते चौद राजलोक, तेमा संनूतलाथी ऊरध एटले उंचा सात राजमां (वैमायनिक ने सिद्ध के० ) बार देवलोक, नव अवेयक, पांच अनुत्तरविमान, ए सर्व वैमानिक देव कहेवाय अने सिफशिलानी उपर सिझना जीव बे, तथा (अध के०) नीचे सात राजलोकमांडू वाणव्यंतर, व्यंतर, जुवनपति, सात नरकपृथ्वी , अने तिर्यग ते तिर्बोलोक, तेमां पीस्तालीश लाख योजनने विषे मनुष्यदेव डे तथा बीजा स्वयंनूरमण समुफ पर्यंत असंख्याता छीप, समुज ए सर्व एक राजमां बे, एमां ज्योतिषी देवो पण बे, ए सर्व लोक शब्दे चौद राजलोक जाणवा, तेमज अलोक अनंतो . तेना सर्व लाव जे ज्ञानथी प्रगट थाय एवं निर्मल शुद्ध प्रकाशक जे ज्ञान, तेणे करी मारी पण शुद्धि थाय. एवीरीते श्रीपाल राजा ज्ञाननी स्तवना करे बे. ए ज्ञानपद कयु ॥ ३५ ॥ हवे पांच गाथाए करी आठमुं चारित्रपद वखाणे बे. देशविरति चारित्र ते गृहस्थने होय, अने सर्व विरति चारित्र ते ( यतिने के० ) साधुने होय. एवां ए बे प्रकारनां
॥९एमा चारित्र ते गृहस्थ तथा मुनिने अभिराम एटले मनोहर होय, तिहां देश विरति चारित्रवालो उत्कृष्टथी । बारमा देवलोक सुधी जाय, अने सर्व विरति चारित्रवालो उत्कृष्टपणे मोके जाय.ते चारित्र जगतमांडू जयवंतुं वर्ते . जे चारित्रनी देव मनुष्य प्रमुख सेवा करे (तास के०) ते चारित्रने प्रणाम करीए ॥३६॥
Sain Educati
o nal
For Personal and Private Use Only
wainelibrary.org
Page #393
--------------------------------------------------------------------------
________________
तृण परे जे षट् खंड सुख ठंडी, चक्रवर्ती पण वरीयो॥ ते चारित्र अखय सुखकारण, ते में मन मांदे धरीयो रे॥नविका ॥ सिचक्र ॥ ३७॥दुआ रांकपणे जेद आदरी, पूजित इंद नरिंदे ॥ अशरणशरण चरण ते वंडं, पूघु झान आनंदे रे ॥ नविका॥सिचक्र० ३७ ॥बार मास पर्याये जेहने, अनुत्तरमुख अतिक्रमीए ॥ शुक्ल शुक्ल अनिजात्य
ते उपर, ते चारित्रने नमीए रे ॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥ ३॥ ४ा अर्थ-वली चक्रवर्ती सरखाए पण षट् खंमना सुखने तरणानी पेरे जमीने जे चारित्रने वस्खु ने एटले श्रादखु ते चक्रवर्ती गोचरी गया थका कोई तर्जना करे तोपण तेथी लगारमात्र खेद पामे नहीं. एवं चारित्र ते अक्षय सुख जे निराबाध मोक्षनां सुख, तेनुं कारणजूत , तेने में मारा मन मांहे धघु ॥ ३७॥ वली जे चारित्रने रांकपणे श्रादरी एटले रांक सरखा पण श्रादरीने चारित्रमा मन स्थिर करता थका संप्रति राजावत् इं अने नरिंज जे राजा तेणे पूजित एटले पूजन करेला (हुश्रा के०) थया, माटे संसारथी बीता जे प्राणी, जेने कोश् शरण नथी । एवा अशरणने शरणरूप जे ( चरण के० ) चारित्र तेने ढुं वांडं ढुं. ते चारित्र झाने सहित आनंदे पूरित डे, ते प्रत्ये वांडं दुं ॥ ३० ॥ वली जे चारित्रना पर्याय ते चढते अध्यवसाये वार मासना || जेटला समय थाय तेटलां समयस्थान उलंघ्यां, ते वारे ते चारित्रीयाने जे स्वरूपना रमणनुं सुख ६
थाय ते सुख अनुत्तरविमानना देवताना सुखने पण अतिक्रमीए एटले अतिक्रमी जाय , अर्थात् दातेना करतां पण अधिक सुख ते चारित्रीयाने थाय . पडी (ते उपर के०) ते उपरांत चारित्र ( शुक्ल शुक्ल के० ) उज्ज्वल उज्ज्वल परिणामे (अभिजात्य के० ) तरतमादि योग युक्त गुण सहित होय. ते चारित्रने नमीए ॥ ३५ ॥
SOSIAALIASSANASSAROSH
Jain Education
Interational
For Personal and Private Use Only
Page #394
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा० ॥ १९५॥
चय ते आठ कर्मनो संचय, रिक्त करे जे ते ॥ चारित्र नाम निरुत्ते जाख्युं, ते वं गुणगेदरे ॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥४०॥ जाणंता त्रिहुं ज्ञाने संयुत, ते जव मुगति जिणंद || जेद यांदरे कर्म खपेवा, ते तप शिवतरुकंद रे || विका० ॥ सिध्दचक्र० ॥ ४१ ॥ करम निकाचित पण य जाइ, खिमा सहित जे करतां ॥ ते तप नमीए जेद दीपावे, जिनशासन उजमंतां रे ॥ नविका ॥ सिचक्र० ॥ ४२ ॥
अर्थ-वे चारित्र शब्दनो अर्थ कहे बे. चय एटले ज्ञानावरणीयादिक जे आठ कर्म तेनो संचय एटले घणी प्रकृतिनुं एकतुं यतुं तेने संचय कहीए. तेने जे ( रिक्त के० ) खाली करे (तेह के० ) तेनुं नाम चारित्र कहीए. एवं नाम निर्युक्तिमां जाख्युं वे, ते चारित्रने हुं बंडु बुं. ते | चारित्र ( गुणगेह के० ) गुणनुं घर बे. ए चारित्रपद कर्तुं ॥ ४० ॥ हवे पांच गाथाए करी तपःपदनुं वर्णन करे बे. ( जिणंद के० ) श्रीतीर्थंकर देव अनंता थया, वली अनंता थशे, ते सर्व मति, श्रुत अने अवधि, ए त्रण ज्ञाने करी संयुक्त थका माताना उदरमां श्रावी उपजे बे. ते जन्म्या पठी अवधिज्ञाने करी जाणता थका बे जे श्रमे आ जवमांज मोक्ष जश्शुं तोपण जे तीर्थंकर शेष कर्मप्रकृति खपाववाने अर्थे तपने आदरे बे, अनेक प्रकारनां तप करीने सर्व कर्मने खपावे बे, एवं ए तपवे ते तप शिवतरु एटले मोक्षरूप वृनो ( कंद के० ) कांदो एटले मूलस्कंध जाणवुं ॥ ४१ ॥ वली कमाए करी सहित तप करतां थका निकाचित निविक व्याकरां जे कर्म, ते सर्व दय थ जाय, ते तपने नमीए, जे तपने ( उजमंतां के० ) एटले उजमणुं करतां थका श्री जिनशासनने दीपावे ॥ ४२ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खं ४
॥१८५॥
Page #395
--------------------------------------------------------------------------
________________
आमोसह पमुद्दा बहु लधि, होवे जास प्रजावे ॥ अष्ट महासिद्धि नव निधि प्रगटे, नमी ते तप जावे रे || जविका ॥ सि-६चक्र० ॥ ४३ ॥
अर्थ - वली (जास के० ) जे तपना प्रजावथी ( आमोसदी के० ) आमशषधि प्रमुख घणी लब्धि उपजे बे. ते लब्धि सर्व मली श्रम्यावीश बे. तेनां नाम कहे बे. प्रथम जे कृषीश्वरना हस्तपादस्पर्श मात्रे करी रोग जाय ते आमशैौषधि लब्धि जाणवी. बीजी जे मुनिराजना मल मूत्रे करी रोग जाय तेने वप्पौषधि, विट्पुरीष लब्धि कहीए. त्रीजी जे कृषीश्वरनो श्लेष्म औषधिरूप होय तेने खेलौषधि लब्धि कहीए. चोथी जे रूषीश्वरना शरीरनुं प्रखेदजल औषधिरूप होय तेने | जलौषधि लब्धि कही ए. पांचमी जे कृषीश्वरनां केश, रोम, नखादिक ए सर्व औषधिरूप होय, सर्व | प्रकारना रोग निवारवाने समर्थ होय अने सुगंध युक्त होय तेने सर्वोषधि लब्धि कहीए. बडी जे एकज वारे सघली इंद्रियोए सांजलवानी शक्ति होय अथवा एक इंद्रिये करी सर्व इंडियोना व्यापार लेवानी शक्ति होय अथवा वार योजनमां चक्रवर्त्तनुं कटक होय, ते कटकमां जे वारे एकज समये सर्व जातिनां वाजित्र वाजे ते वारे ते समकाले वाजतां एवां सर्व प्रकारनां वाजित्रोना शब्दने जूदा जूदा जाणी शके ते शक्तिने संन्निश्रोत्रलब्धि कहीए. सातमी अवधिज्ञानवालानी जे जाणवानी | शक्ति तेने अवधिज्ञानरूप लब्धि कहीए. आाठमी जेथी मनःपर्यवज्ञाने करी सामान्य मात्र जाणे, एटले था अमुक जीवे मन मांहे घट चिंतव्यो बे एटलुंज जाणे, पण ए घट केवो अने क्यांनो इतो इत्यादिक न जाणे, अथवा अढी द्वीपना मनुष्यनां मन संबंधी बादर पर्याय जाणे तेने रुजुमति लब्धि कहीए. नवमी एवं जाणे जे एणे घट चिंतव्यो बे ते सोनानो बे ने पाली पुरनो नीपन्यो बे, अथवा अढीद्वीप संबंधी मनुष्यनां जे मन, तेना सूक्ष्म पर्याय जाणे तेने विपुलमति लब्धि कहीए. दशमी चारण लब्धि बे प्रकारे बे, एक जंघाचारण अने बीजी विद्याचारण, एने चारण
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #396
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरालब्धि कहे।ए.'
लब्धि कहीए. अगीयारमी जेथी दाढा विष युक्त होय तेने श्राशीविष लब्धि कहीए. ते एक है। खंग.
जातिश्राशीविष अने बीजी कर्मश्राशीविष ए बे प्रकारे . तेमां वली जातिश्राशीविष ते सर्प, ॥एए६॥
वीडी, देमकां अने मनुष्य, ए चार प्रकारे जाणवी, अने कर्मयाशीविष तो तिथंच तथा मनुष्य नेज होय, माटे तिर्यंच अने मनुष्य श्राश्रयी बे प्रकारे . ए तप अने क्रिया अनुष्ठानादिके करी| उपजे बे, ते सादिकनी पेरे सादिके करी अनेराने विणासे तेने आशीविष लब्धि कहीए. बारमी केवलज्ञानप्राप्ति तेने केवल लब्धि कहीए. तेरमी श्रीगणधरने गणधरपणानी लब्धि कहीए. चौदमी पूर्वधरने पूर्वधर अथवा श्रुतज्ञान लब्धि कहीए. पंदरमी श्रीतीर्थकरने तीर्थकर लब्धि कहीए, अथवा सभोसरणनी रचना करी तीर्थकर जेवो महिमा करी देखाडे ते ऋषीश्वरने तीर्थ-18 कर लब्धि कहीए. सोलमी जेथी चक्रवर्तीपणुं पामे, अथवा चक्रवर्तीनी राजशकि करी देखाडे तेने चक्रवर्तीपणानी लब्धि कहीए. सत्तरमी बलदेवने अथवा जे बलदेवनी शकि फोरवे तेने बलदेवपणानी लब्धि कहीए. अढारमी वासुदेवने अथवा वासुदेवनी शकि जे इषि फोरवे तेने 2 वासुदेवपणानी लब्धि कहीए. उंगणीशमी जेनी वाणीमां उध साकर करतां पण वधारे मीगश उपजे तेने कीराव तेमज मध्वाश्रव, घृताश्रव तथा कुरसाव लब्धि कहीए. वीशमी जे कषिना कोग मांहे पेटीनी परे समस्त सूत्रार्थ निश्चलरूप छिनरी होय तेने कोष्टक लब्धि कहीए. एकवीशमी पदानुसारिणी लब्धि त्रण प्रकारे . एक जेनी धुरला पदनो अर्थ अथवा धुरबुं पद । सांजलीने बेला पद पर्यंत अर्थनी विचारणाने विषे मोटी बुद्धि होय तेने अनुश्रुतपदानुसारिणी लब्धि कहीए. बीजी नेहा पदना अर्थने सांजलवे करी प्रतिकूल पदे करी धुरला पद सुधी विचा-31
॥९ए६॥ रणा करवामां जेनी चतुराश होय ते प्रतिकूलपदानुसारिणी लब्धि जाणवी. त्रीजी लेने मध्य पदा एटले वचकुं एक पद सांजलवाथी पहेला अने बेबा पदनुं विज्ञान यश् जाय तेने उजयपदानुसारिणी लब्धि कहीए. एम पदानुसारिणी लब्धि त्रण प्रकारे जाणवी. बावीशमी जेम कर्षणी
-COCCAMCHARACCIDCOSCAMCHARACROCA
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #397
--------------------------------------------------------------------------
________________
समी रीते कसायेली नूमिने विषे वीज वावे, पनी ते बीज अनेक बीजनुं श्रापनार थाय, तेम 31 ज्ञानावरणीयादिक योपशमना अतिशयश्री एक अर्थरूप वीजने सांजलवे करी अनेक अर्थ-15 रूपी बीजोनुं जाणपणुं जे लब्धिश्री होय तेने वीजबुद्धि लब्धि कहीए. त्रेवीशमी कोधना है अधिकपणाथी पोताना शत्रुने सुखे बालवाने समर्थ एवी अग्मिनी काल मूकवानी जे शक्ति तेने तेजोसेश्या लब्धि जाणवी. ते अनेक योजनने आश्रित वस्तुविशिष्टने बाले, अने षष्ठ! तपे करी पारणे कुस्माषना बाकुलानी एक मूठी अने उपर चलू जर उष्ण पाणीने लीए । तेने ब महीनामां उपजे जे. चोवीशमी आहारक शरीर करवानी जे शक्ति ते आहारक लब्धि. पचीशमी शीत एवं जे एक प्रकारचें तेज ते तेजोलेश्याने हणवाने माटे तेना उपर है मूकवानी जे शक्ति ते शीतलेश्या लब्धि जाणवी. वीशमी विष्णुकुमारनी परे वैक्रियशरीर करवानी शक्ति ते वैक्रिय लब्धि जाणवी. ते अणुत्व महत्त्व इत्यादि अनेक प्रकारे बे. सत्यावीशमी |
अंतराय कर्मना क्षयोपशमथी थोडं पण अन्न कोश्ए निक्षाए करी पाण्युं बतां ते लब्धिवंत पुरुष Mपोते जमे तो खोट श्रावे, परंतु वीजा हजारो महात्मा जो ते अन्न जमवा बेसे तो खूटे नहीं,
एवी जे शक्ति तेने श्रदीपमहानसी लब्धि कहीए. ए गौतमादिकने प्रसिद्धपणे हती. अव्या-12 वीशमी जे शक्तिथी संघ प्रमुखनुं काम पडे ते वारे चक्रवर्तीनी सेनाने पण चूर्ण करे ते पुलाक लब्धि जाणवी. ए श्रठ्यावीश लब्धि कही. वली ते तपने प्रनावे करी अणिमादिक आठ महा-- सिद्धि प्रगट थाय बे, तेनां नाम कहे . प्रथम जेथी कीणा जि मांदे पेसे, अथवा कमलना नाल मांदे पेसीने चक्रवर्तीनी का विस्तारे ते अणिमा सिद्धि जाणवी. बीजी मेरु थकी पण मोटं शरीर करवानी शक्ति ते महिमा सिकि जाणवी. त्रीजी वायुथी पण अत्यंत हलकं शरीर कर-13 वानी शक्ति ते लघिमा सिकि जाणवी. चोथी वनादिकथी पण नारे शरीर करवे करीने इंशा-3 दिकनो पण पराजय करे ते गरिमा सिकि जाणवी. पांचमी नूमि उपर बेगं थका सूर्यमंमला-12
For Personal and Private Use Only
Page #398
--------------------------------------------------------------------------
________________
S455HRSHNEWS
श्री रादिकने स्पर्श करवानी शक्ति ते कामवशाश्त्व सिद्धि जाणवी. ही जल उपर नूमिकानी पेरे खम. ४ ॥१॥ चाले, अने नूमि मांहे पाणीनी पेरे डुबकी खाय ते प्राकाम्य सिद्धि जाणवी. सातमीत्रण लोकन
उकुराश्पणुं जोगवे, अथवा तीर्थंकरनी किंवा इंजनी कि विस्तारे ते ईशित्व सिहि जाणवी. आग्मी सर्व जीवोने वश करवानी जे शक्ति ते वशित्व सिकि जाणवी. ए रीते श्राप महासिद्धि कही। . तथा ते तपना प्रत्नावथी नव निधि प्रगट थाय . तेनां नाम महापद्म, पद्म, पांमुक, नैसर्प, पिंगल, सर्वरत्नक, काल, महाकाल अने माणवक, ए प्रकारे जाणवां. ए पूर्वे कहेला पदार्थनी जे तपथी प्राप्ति थाय बे ते तपने नावे करी नमीए ॥ ४३ ॥
फल शिवसुख महोटं सुर नर वर, संपत्ति जेदन फूल ॥ ते तप सुरतरु सरिखं वंड, शम मकरंद अमूल रे॥नविका ॥सिचक्र० ॥४४॥ सर्व मंगल मांहि पदेधुं मंगल, वरणवीए जे ग्रंथे ॥ ते तपपद त्रिहुँ काल
नमीजे, वर सहाय शिवपंथे रे॥जविका ॥ सिचक्र० ॥ ४५॥ __ अर्थ-हवे तपने कल्पवृदनी उपमाए स्तवे बे. मोदनां सुख पामवां तेरूप जेनुं मोटुं फल ने तथा ( सुर के०) देवतानी गति अने (नर के०) मनुष्यनी गतिरूप जे ( वर के०) प्रधान है
संपत्ति एटले संपदा ते जेनुं फूल बे. एम ते तप ते सुरतरु एटले कल्पवृद सरिखं मनोवांबितनुं दू देना , तेने हुँ वांडं ७, नमस्कार करुं बु. ते तपरूप वृदनो (शम के०) शमतारूप अमूलक मकरंद एटले फूलनो रस एवं जे तप, ते कस्याथी घन एटले निबिम कर्मने शिथिल करे ?
॥रए॥ ॥४४॥ वली लौकिक तथा लोकोत्तर जे मांगलिकनां कारण ने, अथवा मंगल जे वे ते सर्व ।। मंगल मांहे पहे बुं मुख्य मंगल ते तप . जे सर्व ग्रंथे तप मंगलनुं वर्णन करीए बीए. जे माटे श्री आवश्यक मांहे पण डेछु तप मंगल कवू . सर्व ग्रंथ मांहे श्राय, मध्य अने अंत्य, एत्रण है
SASRASHASA RASGANSAR
E
SASS
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #399
--------------------------------------------------------------------------
________________
मंगल जोइए. तिहां श्राय मंगल ते ग्रंथनी पूर्ति माटे कराय बे ने मध्य मंगल ते ग्रंथनी स्थिरता माटे कराय बे तथा अंत्य मंगल ते परंपराए विस्तार माटे कराय बे. ते माटे तप ते मुख्य मंगल जाणवुं. ते तपःपदने मोटुं महिमावंत जाणीने नूत, जावी ने वर्त्तमान, ए त्रणे काल नमीजे. जे ( शिवपंथे के० ) मोदपंथे जतां ( वर के० ) प्रधान ( सहाय के० ) सखाइ जाएवं, एटले सहायी जाणवुं. ए पांच गाथाए तपःपद वखायुं ॥ ४५ ॥
इम नवपद् तो तिदां लीणो, हुई तनमय श्रीपाल ॥ सुजश विलास a चोथे खंडे, एद इग्यारमी ढाल रे ॥ नविका ॥ सि०६चक्र० ॥ ४६ ॥
- एम एकेका पदनी पांच पांच गाथाए करी जे रीते इहां नव पदनुं वर्णन कस्युं तेवीज रीते ए अरिहंतादिक नव पदने ( तो के० ) स्तवतो थको श्रीपाल राजा नव पदना ध्यान मांहे लीन थयो थको तन्मय थयो. ए चोथा खंगमां जला यशनोज विलास बे, अथवा श्रीयशोविजयजी कवीश्वर कहे वे के चोथा खंमने विषे ए गीयारमी ढाल पूरी थइ ॥ ४६ ॥ ॥ दोहा ॥
इम नव पद तो को, ते ध्याने श्रीपाल ॥ पायो पूरण आखे, नवम कल्प विशाल ॥ १ ॥ राणी मयणा प्रमुख सवि, माता पण शुभ ध्यान ॥ नखे पूरे तिहां, सुख जोगवे विमान ॥ २ ॥
अर्थ - ए रीते नव पदने थुणतो थको तेज ध्याने करीने ध्यानमां लयलीन थयो थको श्रीपाल राजा संपूर्ण च्याउखे ( विशाल के० ) मोटो एवो ( नवमो कल्प के० ) नवमो देवलोक तेने पाम्यो, एटले नवमा देवलोकमां जे उत्कृष्टायु बे तेने पूर्णायु कहीए, ते आखे तिहां उपन्यो ॥ १ ॥ वली मया प्रमुख सर्वे नवे राणी तथा श्रीपालनी माता कमलप्रजा, ते पण शुज ध्यानमां
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #400
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम रह्यो थकां तिहांज नवमा देवलोके पूर्ण थाउखे उपन्यां, अथवा सर्व श्रायु पूर्ण करीने तिहां खम. ४ ॥रएजा
उपन्यां. तिहां विमाननां सुख जोगवे ने ॥ ५ ॥
नरनव अंतर स्वर्ग ते, चार वार लदी सर्व ॥ नवमे नव शिव पामशे, गौतम कदे निर्गर्व ॥ ३ ॥ ते निसुणी श्रेणिक कदे, नव पद उल्लसित नाव ॥ अदो नव पद महिमा वडो, ए नवजलनाव ॥ ४ ॥ वलतुं गौतम गुरु कदे, एक एक पद नत्ति॥ देवपाल मुख सुख लह्यां, नव पद मदिम तदत्ति ॥ ५॥ किंबहुना मगधेश तुं,श्क पद नक्ति प्रत्नाव ॥ दोश्श
तीर्थंकर प्रथम, निश्चय ए मन नाव ॥६॥ | अर्थ-तिहांथी वली नरजव पामीने वली खर्गे जशे. एम चार वार देवपणुं ने चार वार मनुष्यपणुं पामी बेहो नवमो मनुष्यनव पामीने नव राणी, माता तथा पोते सर्व मली अगीयारे जण शिव जे निरुपव मोक्षस्थानक तेने पामशे. ए प्रकारे श्रेणिक राजानी। पागल गर्व रहित एवा श्रीगौतमस्वामी श्रीपालनो वृत्तांत कहेता हवा ॥३॥ ते श्रीगौतम-18
खामीनां क्चन सांजलीने नव पदने विषे उदास पाम्यो रे नाव जेनो एवो श्रेणिक राजा कहे है के श्रहो ! इति याश्चयें ! ए नव पदनो महिमा जु. केवो मोटो ? ए नव पद जे तेसंसार
समुरुमां नाव समान वे ॥ ४ ॥ वलता श्रीगौतम गुरु कहेता हवा के एकेका पदनी नक्ति करवाना महिमाथी देवपाल प्रमुखे सुख लह्यां, पाम्यां, तीर्थकरगोत्र बांध्यु. ते विचारामृतसंग्रह | ॥रए॥ ग्रंथ मांदे एकेका पदना वर्णने वीश दृष्टांत विस्तारे कथा सहित वखाण्यां ठे, एवो नव पदनो: महिमा तहत्ति एटले सत्य ॥ ५॥ हे मगधेश! एटले मगध देशना अधिपति ! किं बहुना एटसे
Jain Education infectional
For Personal and Private Use Only
Page #401
--------------------------------------------------------------------------
________________
454545445545554545454543
घणुं शुं कहीए ? तुं एक समकित पदनी नक्तिने प्रनावे करी श्रावती चोवीशीमां पद्मनान एवे नामे प्रथम तीर्थंकर थश्श. ए निश्चयथी मनने विषे नाव, पटले नावना कर ॥ ६ ॥
गौतमवचन सुणी इस्यां, मगध नरिंद ॥ वधामणी आवी तदा,
आव्या वीर जिणंद ॥ ॥ देवे समवसरण रच्युं, कुसुमष्टि तिहां कीध ॥ अंबर गाजे उंउन्नि, वर अशोक सुप्रसिद॥ ॥ सिंहासन मांड्यु तिहां, चामर उन ढलंत ॥ दिव्य ध्वनि दीए देशना, प्रनु नामंडलवंत ॥ ए॥वधामणी देवांदवा, आव्यो श्रेणिक राय ॥ वांदी बेगे परखदा, नचित थानके आय ॥ १० ॥श्रेणिक उद्देशी कहे, नव पद महिमा वीर ॥
नव पद सेवे बहु नविक, पाम्या नवजलतीर ॥११॥ अर्थ-एवां गौतमखामीनां वचन सांजलीने मगध देशनो राजा श्रेणिक तिहाथी उठ्यो.181 (तदा के० ) ते वारे वधामणी श्रावी जे श्रीवीर जिनेश्वर आव्या ॥७॥ देवताए समवसरण दू रच्युं, तथा कुसुमनी वृष्टि करी, श्राकाशमां देवउंऽनिनो गर्जारव थाय . जिहां प्रधान एवं है अशोकवृक्ष सुप्रसिक ॥ ॥ तिहां सिंहासन मांड्युं बे, चामर ढली रह्यां बे, त्रण बत्र मस्तके 2 बिराजे बे. तिहां नामंगलवंत एवा जे प्रजु ते दिव्य ध्वनिए देशना आपे . ए कुसुमवृष्टिधी 3 मामीने दिव्य ध्वनि पर्यंत प्रजुनां आठ प्रातिहार्य कह्यां ॥ ए ॥ तिहां श्रेणिक राजा पण वधा-14 मणीयाने वधामणी दश्ने प्रजुने वांदवाने माटे आव्यो. ते वांदीने पर्पदाने विषे उचित एटले योग्य स्थानके आवीने बेगे ॥ १० ॥ वीर नगवान् पण श्रेणिक राजाने उद्देशीने नव पदनोज 2 महिमा कहे ले के ए नव पद सेव्याधी घणा जव्य जीव संसारसमुजनो (तीर के०) कांगे पाम्या बे॥११॥
SALALAMOROLORSCOROSCALCULAMSALU.
For Personal and Private Use Only
www.sinelibrary.org
Page #402
--------------------------------------------------------------------------
________________
B
खंग.४
ՀԱՍ
श्री राणा
आराधन- भूल जस, आतमन्नाव अवेद ॥ तिणे नव पद ने आतमा, नव पद मांदे तेद ॥१२॥ ध्येय समापत्ति हुये, ध्याता ध्यान प्रमाण ॥ तिण नव पद ने आतमा, जाणे को सुजाण ॥ १३ ॥ सही असंगक्रियाबले, जस ध्याने जिणे सिदि॥ तिणे तेहबुं पद अनुन्नव्युं, घट
मांदि सकल समृदि॥१४॥ | अर्थ-( जस के०) जेनुं एटले जे नव पदनुं मूल आराधन तो निश्चये श्रात्मनाव , एटले || ए नव पदनुं श्राराधन जे करवू तेनुं मूल बेद रहित श्रात्मजावज जाणवो. ते माटे नव पद ते 8
श्रात्माज ने, अने नव पद माहे पण एज श्रात्मा २ ॥ १५ ॥ जे वस्तु ध्याववा योग्य ले तेने ध्येय है कहीए. ते ध्येयनी समापत्ति ते संपूर्णता थये एटले सम्यक् प्रकारे पामवे करीने ध्याता जे ध्यानारो जीव, तेनुं ध्येय वस्तुनुं जे ध्यान, तेनुं प्रमाणपणुं थाय. जे माटे ध्येयपूर्ति विना ध्याननी पूर्ति नहीं, ध्याताना ध्यान- जे प्रमाण ते ध्येय समाप्ते होय. ते माटे ए नव पद तेज श्रात्मा .18 ए कोई सुजाण होय ते जाणे ॥ १३ ॥ शुक्लध्यानना चोथा पायाने ध्याने असंगक्रिया (लही के०) पामीने ते असंगक्रियाने वले करीए नव पद माहेला (जस ध्याने के० ) जे पदर आराधनथी जेणे सिकि पामी ते प्राणीए तेज पद अनुजव्युं एटले जोगव्युं, माटे निश्चय नये घटमांज सकल समृद्धि ॥१४॥
॥ ढाल बारमी॥ स्वामी सीमंधर उपदिशे ॥ ए देशी॥ अरिहंतपद ध्यातो थको, दवद गुण पजाय रे ॥
नेद व्द करी आतमा, अरिहंतरूपी थाय रे ॥१॥ | अर्थ-इहां प्रथम गौतमखामीए निश्चय नय आश्रयीने व्यवहार देशना दीधी हती, ते हवे
545OCCAAA-%EROSAROACCOCONUAR
ECHANICANSARKARIRCRACRACK
॥रएका
Sain Education
a l
For Personal and Private Use Only
Page #403
--------------------------------------------------------------------------
________________
वीर प्रजु व्यवहार आश्रयीने निश्चय देशना आपे . तिहां ए अरिहंतादिक नव पद जे बेत निश्चयथी घट मांदेज ले. तेनुं संदेपश्री वर्णन करे . तिहां प्रथम श्रीअरिहंतपदने ध्यातो थको जव्य ते अनंत चतुष्टयमय तेनुं विचारवं, तथा गुण ते ज्ञान दर्शनादिक अनंत गुण तेनं विचारवं.18
श्रने पर्याय ते अगुरुलघु आदिक पर्याय पलटन तेनुं विचारवं, ए त्रण नेदे श्रीअरिहंतने ध्यातो र पथको श्रीअरिहंतने अने पोताने जे नेदपणुं ने तेनो छेद करी अनेदपणुं पामीने ते आत्मा पोते अरिहंतरूपी श्राय ॥ १॥
वीर जिणेसर उपदिशे, सांजलजो चित्त लाइ रे ॥ आतमध्याने आतमा, शघि मले सवि आइ रे॥ वीर ॥२॥ रूपातीत स्वन्नाव जे, केवल दसण नाणी रे ॥ते ध्यातां निज आतमा, दोये सिगुण खाणी रे ॥ वीर० ॥ ३ ॥ ध्यातां आचारय नला, महामंत्र शुन्न ध्यानी रे॥ पंच
प्रस्थाने आतमा, आचारय होये प्राणी रे ॥ वीर ॥४॥ अर्थ-एम वीर जिनेश्वर ते श्रेणिक राजा प्रमुख बार पर्षदाने उपदेशे ने तेने हे नव्यो ! तमे चित्त दश सांजलजो. श्रात्माना ध्यानश्रीज आत्मानी जे ज्ञान, दर्शन, चारित्रमय शकि, ते सर्व श्रावीने मले, माटे श्रात्मध्यान धर, जेम अनर्गल संपत्ति पामीए ॥२॥ हवे श्रीसिक जगवान् । केवा ? तो के रूपातीत एटले रूप रहित अरूपी खनाव ने जेमनो एवा, वली केवलदर्शन 3 अने केवलज्ञानमय , ते श्रीसिद्धने ध्यातां थका गुणनी खाण एवो पोतानो थात्माज सिक थाय ॥३॥ महामंत्र एटले सूरिमंत्रना जपनार शुज ध्यानी एवा जला आचार्यने ध्याता पंच प्रस्थानने साधतो थको प्राणी एटले आत्माज आचार्य होय एटले थाय. हवे पांच प्रस्थाननां| नाम कहीए बीए. एक विद्यापीठ, वीजें सौजाग्यपीठ, त्रीजु लक्ष्मीपीठ, चोथु मंत्रराजप्रयोगपीठ
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #404
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री०रा०
॥१००॥
अने पांचमुं सुमेरुपीठ. दवे एनुं विवरण लखीए बीए प्रथम विद्यापीठ तेनो मंत्र बार पदनो वर्द्धमान विद्या प्रमुख सूरिमंत्र सवा कोटि जापपूर्वक जपतो साधने साधतो कोटिश्रुतनो जाए थाय. बीजुं सौजाग्यपीठ ते तेज पूर्वोक्त मंत्र विधिपूर्वक आराधवे करी सकल जनने वल्लन, यादेय वचन सूरि होय. त्रीजुं लक्ष्मीपीठ ते तेज मंत्राराधने राजादि वश होय, महिमावंत होय. चोथुं मंत्रराजप्रयोगपीठ ते मंत्र याराधने सर्व ईति ते उपद्रव, कामण, मोहन, वश्यादि होय. पांचमुं सुमेरुपीठ ते इंद्रादिकने मान्य होय, गौतमादिकनी पेरे लब्धिवंत दोय, श्रजेय होय ॥ ४ ॥
तप सा रत सदा, द्वादश अंगनो ध्याता रे ॥ उपाध्याय ए आतमा, जगबंधव जगाता रे ॥ वीर० ॥ ५ ॥ अप्रमत्ते जे नित रदे, नवि दर नविशोचे रे ॥ साधु सुधा ते यातमा, शुं मुंड्ये शुं लोचे रे ॥ वीर० ॥ ६ ॥ शम संवेगादिक गुणा, खय उपशम जे यावे रे || दर्शन तेज तमा, शुं दोय नाम धरावे रे || वीर० ॥ ॥
अर्थ- दवे चोथुं उपाध्यायपद कहे बे. तपस्या जघन्य, मध्यम अने उत्कृष्ट नेदे करवामां तथा सद्याय ध्यानमां सदा रक्त बे, राता बे, द्वादशांगीना ध्याता वे एवा जे उपाध्याय तेनुं ध्यान करतां थका ए आत्मा तेज उपाध्यायपणुं पामे. ते उपाध्याय केवा बे ? तो के जगतना वंधत्र एटले संबंधी, मित्र तुल्य छाने जगतना जाता एटले नाइ तुल्य एवा उपगारी श्रीउपाध्यायजी ते निश्चयथी श्रात्माज बे ॥ ५ ॥ हवे पांचमुं साधुपद वर्णवे बे. जे नित्य प्रत्ये श्रप्रमत्तपणे एटले सातमे गुणगणे रहे, प्रमादनी श्राचरणा न करे, वली स्तवना करवाथी हर्ष पण न करे, अने उपद्रव | करवाथी शोच पण न करे एवा सुधा साधु ते निश्चे आत्माज जाणवो, पण साधुनो वेश धारण
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग. ४
॥१००॥
Page #405
--------------------------------------------------------------------------
________________
करवाश्री तथा मुंडन करवाथी, केशलोच करवाथी शुं थाय ? एथी कांश परमार्थ नथी ॥६॥ हवे सम्यक्त्वपद वर्णवे बे. शम, संवेग, श्रादि शब्दथी निर्वेद, अनुकंपा अने आस्तिक्यता, ए पांच गुण ते दय तथा उपशमे जे श्रावे, तेथी जे सम्यक्त्वदर्शन प्रगटे तेने सम्यक्त्व
कहीए, ते थात्माज जाणवो, एम निश्चये विचार, पण थमे समकिती बीए एवं नाम धराव्याथी शुं थाय ? ॥ ७॥
झानावरणी जे कर्म , दय उपशम तस थाय रे ॥ तो दोये एवज
आतमा, ज्ञान अबोधता जाय रे॥वीर ॥७॥ जाणो चारित्र ते आतमा, निज स्वन्नाव मांदि रमतो रे ॥ लेश्या शु६ अलंकस्यो, मोदवने नवि नमतो रे ॥ वीर ॥ ए॥श्वारोधे संवरी, परिणति समता योगे रे॥
तप ते एहीज आतमा, वरते निज गुण नोगे रे॥ वीर ॥ १०॥ अर्थ-हवे ज्ञानपद वखाणे . ज्ञानावरणीय कर्म जे ते तेनी पांच प्रकृति ने. ते मांदेली केटलीएक दय थाय, केटलीएक प्रकृति उपशम थाय तो ए आत्मा तेज ( ज्ञान के० ) शान-2 रूप ( होय के० ) थाय, अने अबोधता होय ते जती रहे ॥ ७ ॥ हवे बाग्मुं चारित्रपद वर्णवे || बे. आत्मा विनावथी विरम्यो, निज खनावमां एटले पोताना आत्मस्वनावमा रमण करतो शुद्ध लेश्याए अलंकस्यो एटले शुक्ल लेश्याए विनूषित थको फरी मोहरूप वनने विषे जमतो नथी । तो तेज श्रात्मा ते चारित्र जाणवू ॥ ए ॥ हवे नवमुं तपःपद वखाणे बे. समतारूप थक्ष समताना योगमां श्रात्मानी परिणति थाय तो स्वपरिणतिने योगे संवर गुणने आदरतो श्वानो रोध करे, पोताना मूल गुणने नोगे एटले जोगववे वर्त्ततो कषायना कंडक घटामतो समता श्रने दमाना कंडक वृद्धिमंता करे तो तप ते एडीज आत्मा याणवो ॥१०॥
For Personal and Private Use Only
Page #406
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री रा०
॥२०॥
आगम नोआगम तणो, नाव ते जाणो साचो रे ॥ आतमन्नावे थिर खंग.४ होजो, परनावे मत राचो रे॥ वीर ॥ ११॥ अष्ट सकल समृधिनी, घट मांहे ऋछि दाखी रे ॥ तिम नव पद कहि जाणजो, आतमराम ठे साखी रे॥वीर० ॥ २२ ॥ योग असंख्य ने जिन कह्या, नव पद मुख्य ते जाणो रे॥ एद तणे अवलंबने, आतमध्यान प्रमाणो रे ॥ वीर ॥१३॥ ढाल बारमी एदवी, चोथे खंडे पूरी रे॥ वाणी वाचक जश तणी,
कोइ नये न अधूरी रे ॥ वीर० ॥१४॥ अर्थ-माटे आगम ते सिहांत जाणवा, ते श्रुतझान बे, अने नोवागम ते एक श्रुतज्ञान विना| चार ज्ञान जाणवां. अथवा आगम ते ज्ञानीअनुपयोगी अने नोथागम ते ज्ञानीनपयोगी एम आगम नोश्रागम ए बेना नेद जाणी ए बेनो जाव ते साचो जाणो. ते साचो जाणीने चंचलता है मटामी श्रात्मजावे थिर होजो, परनावमां राचशो मां. इहां श्रागमथी नावनिदेपो लश्ने । ए नव पद कह्यां बे. जे अरिहंतने उपयोगे ते ध्याने परिणम्यो ते जीवने शजुसूत्र नये अरिहंत कहीए. ते माटे अरिहंतपदने ध्यावतो अरिहंतपदवी नीपजावतो ते अरिहंत कहीए. एम नवे पदनी नावना करवी ॥ ११॥ माटे ( सकल के० ) सर्व जे अष्ट एटले अणिमा, लघिमा प्रमुख श्राप सिकि तेनी समृद्धि एटले परिपूर्णता ते घट मांहे ( दाखी के० ) देखामी बे, तेम ए नवा पदनी शकि पण घट मांहेज जाणजो, एनो श्रात्माराम चिदानंद सादी डे ॥ १२॥ मोक्षसाधन 31॥२०॥ करवाना तथा आत्मा शुक्र थवाना असंख्याता योग ( जिन के०) श्रीवीतराग देवे कह्या . ते
माहे ए नव पद ते मुख्य जाणो, जे माटे ए नव पदने बालंबने जे आत्मध्यान करवू तेजा।
in Education
For Personal and Private Use Only
Page #407
--------------------------------------------------------------------------
________________
प्रमाण ॥ १३ ॥ एवी चोथा खंगने विषे बारमी ढाल पूर्ण थ . ( वाचक के० ) उपाध्याय श्रीयशोविजयजी कहे जे के श्रीतीर्थकरकथित वाणी ते नैगमादिक सात नय मांदेला कोइ नये| पण अधूरी नथी, सर्व नये सम्मत ने. अथवा मारी वाणी ते कोइ नये अधूरी नथी. एम बे* प्रकारे अर्थ कवीश्वरे सूचव्यो बे. अथवा वाणी "वाचक जश तणी, कोश् थ न अधूरी रे" एवो || पाठ पण केटलीएक प्रतोमा लखेलो ३ ॥ १४ ॥
॥दोहा॥ वचनामृत जिन वीरना, निसुणी श्रेणिक नूप ॥ आनंदित पहोतो घरे, ध्यातो शुरू स्वरूप ॥१॥ कुमतितिमिर सवि टालतो, वर्षमान जिनजाण ॥ नविककमल पडिबोहतो, विहरे महियल जाण ॥२॥ ए श्रीपाल नृपतिकथा, नव पद मदिम विशाल ॥ नणे गुणे जे सांगले,
तस घर मंगलमाल ॥ ३ ॥ BI अर्थ-हवे एवां श्रीवीर जिनेश्वरनां अमृत समान वचन सांजलीने श्रेणिक राजा श्रीवीरने | 81 नमी आनंदित थको पोताने घेर पहोतो, चित्तमां शुद्ध वरूप चिदानंदघनने ध्यातो थको प्रवर्ते ।
॥१॥ अने कुमतिरूप ( तिमिर के० ) अधंकार ते सर्वने टालतो, (जिन के०) सामान्य केवलीने विषे ( जाण के०) सूर्य सरखो, संपूर्ण षडूलव्यना स्वरूपनो जाण एवो श्रीवर्षमान स्वामी ते नविकरूप कमलने प्रतिबोध देतो ( महियल के०) महीतल जे पृथ्वीतल तेने विषे विचरे ।
॥२॥ जेमां ( विशाल के ) मोटो नव पदनो महिमा डे एवी ए श्रीपाल राजानी कथा तेने जे प्राणी नणे, गुणे अने सांजले तेना घरने विषे मांगलिकनी माला थाय ॥३॥
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #408
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
खंग.
॥२०॥
॥ ढाल तेरमी ॥ राग धन्याश्री ॥ ॥ श्रुणीयो थुणीयो रे प्रनु तुं सुरपति जिन शुणीयो॥ ए देशी॥ तूगे तूगे रे मुज साहिब जगनो तूगे ॥ ए श्रीपालनो रास करतां, झान अमृतरस वूगे रे॥ मुज ॥१॥ पायसमां जिम दिनुं कारण, गोयमनो अंगुगे ॥ ज्ञान मांदि अनुनव तिम जाणो, ते विण ज्ञान ते जूठगे रे ॥ मुज० ॥२॥ उदकपयोमृतकल्पज्ञान तिहां, त्रीजो अनुनव मीगे॥ते विण सकल तृषा किम नांजे,अनुन्नव प्रेम गरीगे रे॥मुज॥३॥ अर्थ-हवे आ रासनो प्रारंज कस्यो हतो ते कार्य पूर्ण थयु. तेनो श्रानंद उपन्यो, तेथी कवीश्वर अनुजवज्ञाननी महत्तापूर्वक हर्षनां वचन कहे डे के मुजने जगतनो साहेब जे श्रीजिनेश्वर ते संतुष्ट थयो. ए श्रीपालनो रास करतां ज्ञानरूप अमृतरसनो वरसाद थयो ॥१॥ (पायसमां के) खीर मांहे जेम श्रीगौतमस्वामीनो अंगुगे वृद्धिz कारण , जेणे खीरना एक पमघामांथी पंदरसे ने त्रण तापसने जोजन कराव्यु, तेम ज्ञान मांहे पण अनुभवज्ञान ते वृद्धिनुं कारण जाणो. ते अनुजवज्ञान विना जे ज्ञान डे ते जूगे एटले मिथ्या जाणवू, माटे अनुजवज्ञान मोढें ने ॥२॥ ज्ञान त्रण प्रकार जे. एक व्याकरणादि, शब्दशास्त्र, काव्यशास्त्र ते नव रसादिकनां| शास्त्र इत्यादिक लौकिक शास्त्र तथा प्राकृत, चरित्रानुवाद, कथानक, चोपाइ, रास, नाषा प्रमुख है। ते ( उदक के ) उदककल्पज्ञान एटले पाणी सर झान जाणवू. जेम पाणी पीधे थके तृषा । मटे, पण थोमी वार पड़ी वली लागे, तेम ग्रंथ सांजले, जणे, वांचे तिहांसुधी रस उपजे, पण|8|॥॥ पली कांश नहीं. तथा बीजुं आगम सूत्र सिकांतनुं उपयोगरहितपणे ज्ञान ते पयःकल्पज्ञान एटले फुध सरखं जाणवं. जेम उधनुं पान कस्याथी तृषा अने हुधा बेहु मटी जाय, परंतु केट-18
55ॐRASANSAR
Sain Education
floral
For Personal and Private Use Only
Page #409
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेक काले फरी उदय थाय. त्रीजु अमृतकल्पज्ञान ते श्रद्धापूर्वक आगमज्ञान नेदनाव धारीने | उपयोगसहितपणे वर्तन ते जेम अमृतपान करवाथी कुधा, तृषा, रोग, शोक, उपऽव अने व्याधि | | प्रमुख सर्व पूर थर जाय, फरी पाबा उदय थावेज नहीं, तेनी समान त्रीजुं अनुजवज्ञान मी |, तेथी अनुनवज्ञान विना सकल अनादि कालनी जवज्रमणरूप तृषा किम नांजे ? माटे अनुनवनो प्रेम ते गरीगे एटले मोटो, वडेरो ॥३॥
प्रेम तणी परे शीखो साधो, जो सेलडी सांगे ॥ जिहां गांठ तिहां रस नविदीसे, जिदारस तिहां नवि गांगे रे॥ मुज४॥जिनही पाया तिनदी बिपाया, ए पण एक ने चीगे॥ अनुन्नव मेरु बिपे किम मदोटो, ते तो सघले दीगे रे ॥ मुज० ॥ ५॥ पूरव लिखित लिखे सवि ले, मसी कागल ने कागे॥ नाव अपूरव कदे ते पंडित, बहु बोले ते
बांगे रे ॥ मुज०॥६॥ अर्थ-माटे जेम सांसारिक प्रेमने जोमवू, देवं, लेवू करी एकपणुं करे, ते प्रेमनी परे अनुजवने शीखो, साधो, शेलडीना सांगनुं दृष्टांत जोश्ने. जेम शेलमीना सांग मांहे जिहां गांठ होय तिहां है रस देखाय नहीं, अने जिहां रस होय तिहां गांठ न होय. एनी परे अनुभव प्रेम पण जाणवो. एटले जिहां कर्मरूप गांव के तिहां अनुनवरस नथी, अने जिहां अनुजवरस डे तिहां कर्मरूप गांव नयी ॥ ४॥ कोश्क कहे जे के अनुजवनो रस जेणे पाम्यो तेणेज बिपाव्यो, माटे प्रगट देखाय हूँ नहीं. ए कहेवत पण एक चीगे एटले कागलनी चीठीप्राय ने, केमके अनुजवरूप मोटो मेरु पर्वत ते बिपायो केम डिपे? ते तो सघले दीगे , एटले सर्वत्र ले. एवं जिनवचनथी जाणवू. वस्तुतः दीगमां| आवे, पण जेणे पाम्यो ते तेनोज आत्मा जाणे, परंतु बीजो को न जाणे ॥५॥ मसी ते शाश,
SCIENCEOCOCOCOCOCONORMALCULOCALCHANG
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #410
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्री० रा० ॥२०३॥
कागल छाने काठो ते कलम ए त्रण चीज लइने पूरव लिखित एटले पूर्वे लखेलां जे पानां पोथां होय तेने जोइने सर्व कोइ लखी नाखे ते तो सुगम छे, पण जे पूर्व कोइए लख्या न होय एवा पूर्व जाव कहे ते पंमित जाणवो, अने जे बहु बोले एटले घणुं बोले ते लबाम जाणवो ॥ ६ ॥ वयव सवि सुंदर होय देदे, नाके दीसे चाटो ॥ ग्रंथज्ञान अनुभव विण ते, शुक जिस्यो श्रुतपाठो रे ॥ मुज० ॥ ७ ॥ संशय नवि जांजे श्रुतज्ञाने, अनुभव निश्चय जेठो ॥ वादविवाद अनिश्चित करतो, अनुजव विजय देवरे ॥ ज० ॥ ८ ॥ जिम जिम बहुश्रुत बहुजनसंमत, बहुल शिष्यनो शेठो ॥ तिम तिम जिनशासननो वयरी, जो नवि अनुनव नेवो रे ॥ मुज० ॥ ए ॥
- वली एक दृष्टांत कहे वे के ( देहे के० ) शरीरने विषे अंगोपांगादिक सर्व श्रवयव सुंदर होय अने नाके चातुं होय ते जेम खराब देखाय, एटले सर्व अवयवनी शोजा ते कुशोजा जेवी थाय, तेम ग्रंथ घणाय जाण्या होय, ग्रंथनुं ज्ञान सबल होय, परंतु अनुभव न होय तो ते कंठ - शोषनी परे निरर्थक जाणवुं. जेम ( शुक के० ) पोपट ते अज्ञानी थको मनुष्यनी प्रेरणाए अचरे अचरे राम इत्यादिक शुक पाठ करे तेम कंठशोष जाणवो ॥ ७ ॥ जेने अनुजवनुं ज्ञान न होय ते श्रुतज्ञाने करी मनना संशय जांजी शके नहीं, माटे निश्चयथी अनुजवज्ञान ते ( जेठो के० ) ज्येष्ठ मोटुं जाणवुं. वाद ते स्वधर्मनी चर्चारूप ने विवाद ते परमतखंमनरूप एवा वाद विवादमां पण अनिश्चित एटले वितंडावाद ते खोटो वाद करतां अनुभव विना दारे, देगे पडे, जोंगे पडे, अथवा सजामां नीचुं जोवुं पडे ॥ ८ ॥ जेम जेम बहुश्रुत होय एटले घणुं जयो होय, अने बहुजनसंमत एटले घणा जनने मान्य होय, तथा ( बहुल शिष्यनो के० ) घणा शिष्यनो शेठगे
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
खंग ४
॥२०३॥
Page #411
--------------------------------------------------------------------------
________________
एटले श्रेष्ठ स्वामी होय तेम तेम ते जिनशासननो वैरी जाणवो. जो नेट अनुनव न होय तो, माटे अनुजवनी मुख्यता ॥ ए॥
मादरे तो गुरुचरणपसाये, अनुन्नव दिल मांहि पेगे॥झवि क्षिप्रगटी घट मांहि, आतमरति हुइ बेगे रे॥ मुज० ॥ १०॥ जग्यो समकित रवि फलदलतो, नरमतिमिर सवि नागे॥ तगतगता जनय जे तारा, तेदनो बल पण घागे रे ॥ मुज० ॥ ११॥ मेरुधीरता सवि दर लीनी, रह्यो ते केवल नागे॥ दरी सुरघट सुरतरुकी शोना, ते तो माटी काठगे रे ॥ मुज ॥ १२॥ दरव्यो अनुन्नव जोर दतो जे, मोदमल्ल जग लूंगे॥
परि परि तेदना मर्म देखावी, नारे कीधो नूंगे रे॥ मुज ॥१३॥ अर्थ-मारे तो निज गुरुचरणप्रसादथी अनुजव दिल मांहि एटले चित्त मांहे पेगे, एटले प्रतिष्ठित थयो. हवे शछि थने वृद्धि सर्व मारा घट मांहे प्रगटी, तेथी यात्मरति शातामय था बेठगे. ए कविनां वचन गर्वित . वली ए, पण जाणीए बीए जे अनुनववंत जीवने होय तेज सूचव्यां हशे, पण सूत्रानुसारे एम जणातुं नथी ॥ १० ॥ जे वारे समकितरूप सूर्य ऊलहलतो. घटमां उग्यो ते वारे जमरूप ( तिमिर के० ) अंधकार जे हतो ते सर्व नागे. वली सूर्य उग्याश्री तगतगता तारानुं बल जेम घटी जाय तेम शहां (पुर्नय के०) माग नयरूप जे तारा हता तेनुं बल जे तेज ते पण (घागे के०) विघटित थयुं, एटले दय पाम्युं ॥ ११ ॥ अनुनवज्ञानीए मेरु पर्वतनी धीरता जे हती ते सर्वे हरी लीधी ते वारे ते केवल नागे एटले पर समान रह्यो, वली सुरघट जे कामकुंज तथा सुरतरु जे कल्पवृक्ष तेनी शोना पण सर्व हरी लीधी ते वारे ते सुर-IR घट तो केवल माटी समानज रह्यो, अने सुरतरु ते (कागे के०) काष्ठ समान रडुं ॥ १२ ॥
SCORROACMCANCIEOCOCOCCORROCCARMACOLOGROChi
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #412
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीरा|वली जगतमां मोहरूप मस ते (मूंगे के ) महापराक्रमी , तेनुं जे जोर हतुं ते अनुजवे हरव्यो है खंम.४
एटले हाव्यु, हावीने पड़ी ते मोहना परे परे मर्म देखावी एटले तेनां बिज हतां ते सर्व प्रगट ॥२०॥
करी देखामीने तेने नारे गूंगे कीधो, एटले अत्यंत व्रष्ट कीधो, फरी बँकडो न आवे एवो कीधो. एवो अनुनव आत्मा साथे लीन थयो जे कोश्नो पूर कस्यो पण दूर न थाय ॥ १३ ॥
अनुन्नव गुण आव्यो निज अंगे, मिट्यो रूप निज मागे ॥ साहिब सन्मुख सुनजर जोतां, कोण थाये उपरांगे रे ॥ मुज० ॥१४॥ थोडे पण दंने उःख पाम्या, पीठ अने मदापीगे ॥ अनुनववंत ते दंन न राखे, दंन धरे ते धीमे रे॥ मुज०॥१५॥ अनुन्नववंत अदंननी रचना, गायो सरस सुकंगे॥ नाव सुधारस घट घट पीयो, हुर्ज पूरण उतकंगे रे ॥ मुज० ॥ १६ ॥ अर्थ-अनुलवना गुण जे वारे पोताने अंगे आव्या ते वारे ( निज के० ) पोतानुं जे अनादि काल, नवपरंपरा करवारूप मा रूप हतुं ते मट्यु. जे वारे पोतानो साहेव ते सुनजर एटले । नली नजरे करी सन्मुख जोतां थका बीजो कोण उपरांगे एटले पराङ्मुख थाय ? ॥१४॥ थोडो पण दंन जो पीठे अने महापीठे कस्यो तो ते पुःख पाम्या, धर्ममां कपट कां तेथी स्त्रीवेदपj3 पाम्या, ते माटे जे अनुनववंत प्राणी होय ते (दंन के० ) कपट न राखे, अने जे दंन राखे ते ||
॥२०४॥ साधीगे एटले मूर्ख शठ जाणवो ॥ १५ ॥ अनुजववंत ते (श्रदंन के० ) अकपटी कपट रहित तेनी है। रचना तेने रसे करी सहित नले कंठे करी गायो. एनी मध्यगत जे नाव तप सुधारस एटले जे अमृत समान रस तेने घट घट पीयो. ते पीतां (उतकंठो के०) उत्सुक अर्थात् तरष
RECACACANCCASIC ACARROACACARICROG
Sain Education Interational
For Personal and Private Use Only
nelibrary.org
Page #413
--------------------------------------------------------------------------
________________
५२
पामेला एवा तमे पूरण एटले तृप्त था. अथवा अमृत समान रस बे तेने तमे घट घट पीयो अने पीतां पूर्ण उत्कंठित था ॥ १६ ॥
॥ कलश ॥ राग धन्याश्री ॥ ते तरीया रे जाइ ते तरीया ॥ ए देशी ॥
तपगचनंदून सुरतरु प्रगट्या, दीरविजय गुरुराया जी ॥ कवरशादे जस उपदेशे, पडद प्रमारि वजाया जी ॥ १ ॥ देम सूरि जिनशासन मुद्राए, म समान कढ़ाया जी ॥ जाचो हीरो जे प्रभु दोतां, शासन सोद चढाया जी ॥ २ ॥ तास पटे पूर्वाचल उदयो, दिनकर तुल्य प्रतापी जी ॥ गंगाजल निर्मल जस कीरति, सघले जग मांहि व्यापी जी ॥ ३ ॥ शाद सना मां वाद करीने, जनमत थिरता यापी जी ॥ बहु प्रादर जस शा दधो, बिरुद सवाई पी जी ॥ ४ ॥
अर्थ - तपगछरूप नंदनवनने विषे सुरतरु एटले कल्पवृक्ष समान श्रीहीरविजय गुरुराजजी प्रगट थया. जेमना उपदेशथी बादशाह अकबरशाहे श्रमारीनो परुह वजडाव्यो ॥ १ ॥ ते प्रभु श्रीहीरविजय सूरि तो श्रीजिनशासनरूप मुद्रा एटले वींटी तेने विषे जाचो हीरो एटले जात्यवंत हीरा समान होता हवा. जेणे जिनशासननी घणी शोना चढावी. ते वखते देम सूरि ते श्री जिनशासनरूप मुद्रामां हेम समान कहेवाणा ॥ २ ॥ ते श्रीहीर विजय सूरिना पाटरूप पूर्वाचल एटले उदय पर्वतने विषे दिनकर एटले सूर्य तुल्य प्रतापवंत एवा जेमनी कीर्त्ति गंगाजलनी परे निर्मल एवी जगतमां सर्वत्र व्यापी रही ॥ ३ ॥ वली जेमणे शाद एटले बादशाहनी सना | मांहे वाद करीने सर्व अन्य दर्शनोनुं खंकन करी एक सत्यपणे श्रीजिनमतनी स्थिरता स्थापन करी, तेथी जेमने बादशाहे घणो आदर थाप्यो, अने बिरुद सवाइ एटले जगङ्गुरुनी पदवी श्रापी ॥ ४ ॥
Jain Educationa International
For Personal and Private Use Only
Page #414
--------------------------------------------------------------------------
________________
खम.४
श्रीरा
॥२०॥
CACACACACACAN
श्रीविजयदेव सूरि तस पटधर, नदया बहु गुणवंता जी ॥ जास नाम दश दिशि ने चावू, जे मदिमाए महंता जी॥ ५॥श्रीविजयप्रन तस पटधारी, सूरि प्रतापे गजे जी॥ एह रासनी रचना कीधी, सुंदर तेदने राजे जी॥६॥ सूरि हीर गुरुनी बहु कीरति, कीर्तिविजय उवकाया जी ॥ सीस तास श्रीविनयविजय वर, वाचक सुगुण सोदाया जी॥ ७॥ विद्या विनय विवेक विचदाण, खदण वदित देदा जी ॥ सोलागी गीतारथ
सारथ, संगत सखर सनेहा जी॥७॥ अर्थ-एवा श्रीविजयसेन सूरि थया. वली तेमने पाटे बहु गुणवंत एवा श्रीविजयदेव सूरीश्वर उदय पाम्या. जेमनुं नाम दश दिशाने विषे ( चाबु के०) प्रख्यात ले तथा जे महिमाए करी महंता एटले मोटा हता, अथवा जे महिमां एटले पृथ्वीमां महंता एटले मोटा हता ॥५॥ तेमना पटधारी श्रीविजयप्रन सूरि ते सूरि एटले पंमित अने प्रतापी एटले तेजस्वी अर्थात् सूर्य जेवा तेजस्वी प्रतापे करी गजता थया. तेमना सुंदर एटले मनोहर राज्यमां था श्रीपाल राजाना रासनी रचना कीधी ॥६॥ ते पूर्वोक्त बहु कीर्तिना धरनारा सूरि श्रीहीरविजय गुरुनी साक्षात् | रूपवती बहु कीर्तिज जाणे होय नहीं ? एवा श्रीकीर्ति विजयजी उपाध्याय श्रया. तेमना ( वर के) प्रधान शिष्य (वाचक के०) उपाध्यायपणाना रुमा गुणे करी शोजायमान श्रीविनयविजयजी | थया ॥ ७॥ ते विद्याए करी, विनये करी तथा विवेके करी विचक्षण थया. जेनुं (देह के० ) शरीर ते उत्तम लक्षणे करी लक्षित हतुं. वली सौजाग्यवंत, गीतार्थना समूदने विषे सार्थकपणुं ।
जेमनुं एवा एटले गीतार्थपणाने सार्थक करनारा, वली जेनी संगत एटले सोबत ते सखर एटले सारी हती, रुडी हती, वली रुडा स्नेहवाला हता ॥ ७॥
C
CTRICAAR
॥२५॥
Jain Education
Interational
For Personal and Private Use Only
wwwinelibrary.org
Page #415
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत सत्तर अडतीसा वरसे, रही रानेर चोमासे जी ॥ संघ तणा
आग्रहथी मांड्यो, रास अधिक नल्लासे जी ॥ ॥ साई सप्त शत गाथा विरची, पहोता ते सुरलोके जी॥ तेदना गुण गावे वे गोरी, मिली मिली थोके थोके जी ॥ १० ॥ तास विश्वासनाजन तस पूरण, प्रेम पवित्र कहाया जी॥श्रीनयविजय विबुधपयसेवक, सुजशविजय उवकाया जी ॥११॥नाग थाकतो पूरण कीधो, तास वचन संकेते जी ॥ तिणे वली समकितदृष्टि जे नर, तेह तणे हित देते जी ॥१२॥ जे नावे ए जणशे गुणशे, तस घर मंगलमाला जी ॥ बंधुर सिंधुर सुंदर मंदिर, मणिमय
काकळमाला जी ॥ १३ ॥ अर्थ-ते श्रीविनयविजयजी उपाध्याये संवत् सत्तरसे ने आमत्रीशाना वर्षमां श्रीरानेर (रांदेर) गामने विषे चोमासुं रहीने श्रीसंघना थाग्रहथी था रासने अधिक उल्लासे करवा मांड्यो ॥ ए॥
तेनी ( सार्क के०) पचास अने ( सप्त शत के० ) सातसें एटले सातसें पचास गाथा (विरची ४०) रचीने श्रीविनयविजयजी उपाध्याय देवलोके पहोता. जेना गुणने (गोरी के० ) स्त्री ते
थोके थोके मल मलीने गाय ॥१०॥ ते श्रीविनयविजयजी उपाध्यायना विश्वासना नाजन-15 रूप, वली संपूर्ण प्रेमवंतनुं पवित्र बिरुद कहेवरावता एवा जे श्रीनयविजय पंमितना पदकमलना सेवक रुडा यशोविजयजी उपाध्याय ॥ ११ ॥ तेमने श्रीविनयविजय उपाध्यायजीए आ रास पूर्ण है। करवाने कहेबुं हतुं, माटे तेमना वचननो संकेत हतो, तेणे करीने तथा वली समकितदृष्टि जे 2 नर तेना हितने ( हेते के० ) कारणे श्रा रासनो जे थाकतो एटले अधूरो रहेलो नाग, ते पूर्ण
Jan Educati
e mational
For Personal and Private Use Only
.
Page #416
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
कीधो ॥ १५ ॥ ए श्रीसिद्धचक्रजीना रासने जावे करीने जे प्राणी जणशे गुणशे तेना घरने |
खंग. विषे मांगलिकनी माला थशे तथा ते ( बंधुर के) उन्नत मोटा एवा (सिंधुर के०) हाथी पामशे, ॥२६॥
( सुंदर के०) रुमां मंदिर पामशे, तथा मणिरत्ने जमाव एवा काकफमाल एटले मुकुट कुंमल| ४ानूषणादिक पामशे ॥ १३॥
देह सबल ससनेद परिबद, रंग अनंग रसाला जी ॥
अनुक्रमे तेह महोदय पदवी, लहेशे झान विशाला जी ॥१४॥ । अर्थ-वली सबल एटले बलवान् देह पामशे, स्नेहाली पर्षदा पामशे तथा अनंगपणे रसाल एवा (रंग के० ) आनंद पामशे, ते प्राणी अनुक्रमे महोदय एटले मोक्षपदवी पामशे, तथा | ( विशाला के०) मोटुं ज्ञान पामशे ॥ १४ ॥ इति श्रीमन्महोपाध्यायश्रीकीर्तिविजयगणि शिष्योपाध्यायश्रीविनयविजयगणिविरचिते श्रीश्रीपालचरित्रे प्राकृतप्रबंधे तन्मध्ये उपाध्यायश्रीयशोविजयगणिपूरितेऽयं चतुर्थः खंमः संपूर्णः ॥ तत्समाप्तौ समाप्तः श्रीपालरासः॥सर्व खंम चार, तत्र प्रथम
खंडे ढाल अगीयार, द्वितीयखंडे ढाल आठ, तृतीयखंडे ढाल आठ, ___ चतुर्थखंडे ढाल चौद, सर्व ढाल एकतालीश, तन्मध्ये गाथा ॥ १२५१॥ ग्रंथाग्रंथ श्लोक ॥ १७२५॥
॥२०॥ ॥ इति श्रीपालरासस्य बालावबोधे चतुर्थः खंमः समाप्तः ॥ ४॥ तत्समाप्तौ समाप्तोऽयं ग्रंथः ॥ बालावबोधसंख्या ७३००, मूलश्लोकसंख्या १७२५, सर्वसंख्या ॥ ए१२५ ॥ .
Sain Education International
For Personal and Private Use Only
Page #417
--------------------------------------------------------------------------
________________
8 ॥ इहां प्रसंगथी उजमणानो विधि लखीए बीए. सामा चार वर्षे एकाशी बांबिले नव उली पूर्ण|8|
थाय ते वारे जमणुं करे. ते हालना प्रवर्तन मुजब विशाल श्रीजिनेश्वरना नुवनने विषे अथवा जे|| को मोटुं विस्तारवंत उजमणुं करता होय ते पोताना घरने विषे शुरू निरवद्य विस्तारवंत मोकली जगाने सुशोजित करी तिहां श्रीसिद्धचक्रजीना मंडपनी रचना करे, ते या प्रमाणे केः-प्रथम तो! वचमां अरिहंतपदने श्वेत धान्यमय स्थापे, अने पूर्व दिशाए सिझपदने रक्त धान्यमय स्थापे, वली दक्षिण दिशे श्राचार्यपदने पीतवर्ण धान्यमय स्थापे,तथा पश्चिम दिशे उपाध्यायपदने नीलवर्ण धान्यमय स्थापे,अने उत्तर दिशाए साधुपदने श्यामवर्ण धान्यमय स्थापे.पली चार विदिशिने विषे दर्शन,झान,चारित्र अने तप, ए चार पदने श्वेतवर्ण धान्यमय स्थापे. ते मांदे उत्तर पूर्व वचे ईशान खूणे दर्शनपद स्थापq अने पूर्व दक्षिण वचे अग्नि खूणे ज्ञानपद स्थापवं, तथा दक्षिण पश्चिम वचे नैईत्य खूणे चारित्र-5 पद स्थापवू, वली पश्चिम उत्तर वचे वायव्य खूणे तपःपद स्थापq.ए रीते नव पांखमीनु कमल करी नव 3 पदनी स्थापना करीए.पली त्रण वेदिका युत पीविकानी रचना करीए.ते मांहे पहेली वेदिका रक्तवर्ण | धान्यमयी, बीजी पीतवर्ण धान्यमयी अनेत्रीजी श्वेतवर्ण धान्यमयी. तिहां पहेली वेदिकाने पांचवर्ण || धान्यना कांगरा,वीजी वेदिकाने रक्तवर्ण धान्यना कांगरा अनेत्रीजी वेदिकाने पीतवर्ण धान्यना कांगरा करे. इत्यादि प्रकारपूर्वक. वली ते उपरे नव गढ प्राकार करे, धान्यनारंग तथा पदना रंग कह्या ते रीते 31 करी मामीने जे वस्तु ढोवीए एटले चमावीए ते वस्तुनां नाम सामान्य प्रकारे नीचे लखीए बीए. । देरासर. नव धर्मशाला. नव कलश.
नव धोतीयां. नव जीर्णोछार. नव मुकुट.
नव कटोरी. नव अंगलूहणां. नव जिनबिंब. नव ऊरमर.
नव चंदनना कटका. नव मुखकोश. नव सिहचकना गटा. नव तिलक. नव केशरनां पडिकां. नव रकाबी. नव सिद्धचक्रनी पीठिका नव सिंहासन. नव वालाकूची. नव घंटमी.
in Education International
For Personal and Private Use Only
www.sainelibrary.org
Page #418
--------------------------------------------------------------------------
________________
श्रीराम
खंम.४
॥२०७॥
नव नोकरवाली. नव मासण. हवे ज्ञानना उपकरण. नव चाबखी. नव थापना.
नव हामा, नव त्रांवमी.नव श्रीपालना रास. नव वासदेपना वाटवा. नव याचमनी. नव स्थापनानां जपकरण.बीजां नव नव पुस्तको.नव वतरणां.
नव त्रांबाकुंमी. नव वाटका. गणणानी टीप नव. नव कांबी. ४ानव अष्टमांगलिक. नव अगरबत्ती. नव रुमाल, नव पा.हवे चारित्रनां जपकरण. नव भारती.
नव बरास, नव अगर.नव वणी, नव कवली.नव पात्रां. नव धूपधाणां. नव प्याला.
नव सापमा सापमी. नव पमला. नव मंगलदीपक. नव प्रजावना. नव लेखण.
नव कोली. |नव चंडवा,नव पुंठीयां. हीरा चोत्रीश. नव चाकु. नव चोलपट्टा. नव तोरण. चुनी राती एकत्रीश.नव कतरणी.
नव संथारीयां. नव वासकुंपी. पीरोजीपीले वर्णे उत्रीश.नव माबला. नव कांबली उघानी. नव कांबली.
चुनी नीली पचीश. नव माबली. नव कपमां. नव पडेमी, नव उत्र. चुनी काले वर्णे सत्या-नव खमीया. नव मांमा. नव चामर.
| वीश अथवा पांच. नव हिंगलोनां वासण.नव उंघा. |नव मोरपिटिनी. मोती नंग २३७. नव पाटली. नव मुहपत्ति.
नव वाटकी, नव कचोला. रूपानो वरग १७७. नव उलीया. नव कल्पसूत्र. |नव थाली, नव पूंजणी. सोनेरी वरग १००. नव पाटी. नव तरपणी. नवकेशरघसवानारशीया लाखीणो हार एक, नव पुस्तक राखवाना नव चरवला. नव दीवी, नव बाजोठ. श्रीफलना गोटा पंचवर्णी माबला.
नव चरवलानी मांमी. नव ध्वजा, नव घंट. नव ग्रहनी स्थापना. नव दोरा. इति उजमणानो विधि.
॥२०॥
an Education Interational
For Personal and Private Use Only
Page #419
--------------------------------------------------------------------------
________________
पार्नु
लाइन
लाइन १२
अशुद्ध साथव पोताना
३२
शुद्ध साथवा पोतानां रही
१३
सन्य
सैन्य
अशुद्ध पास्या रूपसुदरी आयुष्व पड्यो वहेंजी वेधसां पूजाए महात्म्यनुं बरकूटना पधारो
॥शुद्धि पत्रक॥ शुद्ध पार्नु पास्यो १३६ रूपसुंदरी आयुष्य १४३ पड्या १४४ वहेंची १४५
१५० पूजा १५४ माहाम्त्यन १५६ बबरकूटना १६३
पाधरो १६७
वेधसा
३४
उपकारनो परउपकारनो
जव जे मतिसार मतिसागर तश त्रीजो
त्रीजें बरतां
करतां
३०
२३
तस
रह्यो
रह्या
१६८
१६०
१६
GARCANARAATRAKAREGARCARECHES
३२
१८
जे को
१३
१७१ १७३
ममाडोल
मममोल २० आयीयो आवीयो केवलशु केलवशु
एक ३४ पुरुषने
उत्तम पुरुषने निमित्तिशास्त्र निमित्तशास्त्र
नवनिध नवविध
कुंवरीना कुंवरना १ श्रीसिद्धचक्रजीना श्रीसिद्धचक्रजीनो
सैम्यना सैन्यना २४ मीतीश मीगश साम
सामः
एप
क्रिया
चोथी क्रिया जगवन
जगवन्
जो को राणीन राणीनां अपवग्ग अपवर्ग उद्दशे उद्देशे बेला बेठेला प्रणामो
प्रणमो एटले जजमतां एटले सिगुण खाणी सिद्ध
गुणखाणी अधंकार अंधकार
१७ए
१७५
१०६ १५
१ए
२०
१२३ १३३
२०१
३२
For Personal and Private Use Only
Page #420
--------------------------------------------------------------------------
________________ // इति श्री नव पद महिमावर्णनरूप / // श्रीश्वीपाल राजानो रास समाप्त // Printed by Ramchandra Yesu Shedge, at the Nirnaya-sagar Press, 23, Kolbhat Lane, Bombay. Published by Bhanji Maya for Bhimsi Maneck, 225-231, Mandvi, Sackgalli, Bombay. Jain Education Interational For Personal and Private Use Only