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________________ त्रणेनी एकज रीत , माटे तेनी उपर दृष्टांतनो एक दोहो कहे बे॥ यतः॥मूरखने प्रतिबोधता, मति पोतानी जाय ॥ टपलो सराणे चढावतां, आरीसो नवि थाय ॥ ४॥ ते माटे सज थइ सुणो, श्रोता दीजे कान ॥ बुळे तेदने रीझवू, लद न जूले ग्यान ॥ ५॥ आगे आगे रस घणो, कथा सुणतां थाय ॥ दवे | श्रीपालचरित्रना, आगे गुण कदेवाय ॥६॥ अर्थ-ते माटे हे श्रोताजनो ! तमे सङ थर कान दइ सावधान थश्ने सांजलो. जे श्रोताजनो बुझे एटले समजे तेने ढुं रीज, एटले जे जाण होय, वेत्ता होय तेने रीजवी शकीए, कारण के है जाण होय ते नवां नवां शृंगारादिक रसमय व्याख्यान सांजलीने रीक पामे, कविनो आयास जाणे, पोताना ज्ञानथी लद जे साध्य ते नूले नहीं, श्रृंगारा।दक रस सांजलीने देयोपादेय यथायोग्य आलंबने जोडे, परंतु जे अजाण होय ते सामा वक्ताना दोषो काढे ॥५॥3 श्रा कथाने आगल पागल सुणतां थका घणो रस उत्पन्न थाय एवी , माटे हवे श्रीपालचरित्रना जे गुणो ने ते पागल कहेवाय ॥६॥ ॥ ढाल पहेली। ॥धन दिन वेला धन धमी तेह, अचिरारो नंदन जिन यदि नेटस्यां जी॥ए देशी॥ रदीयो रे आवास ज्वार, वयण सुणे श्रीपाल सोहामणो जी॥ कमलप्रना रे कहे एम, मयणा प्रति मुज चित्त ए ऊख घणो जी ॥१॥ अर्थ-हवे सोहामणो श्रीपाल कुंवर एक पहोर रात्रि गये थके माताना घरने छारे उनो रह्यो.13 तिहां पोतानी मातानुं तथा मयणासुंदरीनुं जे मांहोमांहे बोलवू थाय , ते वचन सांजले Sain Education Intematonal For Personal and Private Use Only w inelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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