SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 254
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री राम . तिहां कमलप्रना मयणा प्रत्ये एम कहे जे के हे वह ! मारा चित्तमा ए पुःख घj खंग.। बे. उःख डे ? ते श्रागल कहे ॥१॥ वींटी ने ए परचक्र, नगरी सघलोइ लोक हिल्लोलीयो जी ॥ शी गति दोशे इण गम, सुतने सुख होजो बीजो घोलीयो जी ॥२॥ घणा रे दिवस थया तास, वालिंन तुज जे गयो देशांतरे जी ॥ हजीय न आवी का शुद्धि, जीवे रे माता अखणी किम नवि मरे जी ॥ ३ ॥ मयणा रे बोले म करो खेद, म धरो रे जय मनमां परचक्रनो जी॥ नव पद ध्याने रे पाप पलाय, उरित न चारो ने ग्रह वक्रनो जी ॥४॥ अर्थ-के परचक्र जे बीजा राजानुं लश्कर तेणे श्रावीने श्रा नगरीने वीटी बे, तेथी सघलो लोक हालकलोल थक्ष रह्यो , माटे हवे या स्थानके शुं जाणीए ! आपणी शी गति थशे? आ-14 पणी तो ठीक, परंतु मारा सुतने एटले पुत्रने सुख होजो, एटले कुशल थाजो. बीजो सर्व घोल्यो एम कडं. इहां कोई पूजे के कमलप्रत्ना पोते समकितधारी ले तो ते सर्व जगतवासी जंतुने | करुणादृष्टिए जोवे , तो पोतानाने कुशल वांडे अने अपरने घोल्यो एम केम कहे ? तेने त्यां उत्तर थापे के के एणे जे घोल्यो एवो शब्द कह्यो ते स्वनिष्ठित तन, धन, ग्रहादिक आश्रयी बे, एटले पोतानी माल मिकतने गमे ते था ए अभिप्राये कह्यो । बे, परंतु बीजा कोइ नगरजनादिक श्राश्रयी घोल्यो कह्यो नथी॥ २॥ वली हे वह ! तारो वालम देशांतरे गयो , तेने घणा दिवस थ गया , पण हजी लगण कां तेनी शुद्धि ॥१५॥ श्रावी नथी, माटे हुं तेनी माता पुःखणी जीवती रहुं बुं, पण मरती केम नथी ? ॥३॥ ते सांजली मयणासुंदरी बोली के हे सासुजी ! तमे खेद म करो, अने ए परसैन्यनो जय हू। rienEducationa l .net For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy