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________________ खंग.४ श्रीरान पाम्या जेवू थयु ॥३॥ वली कदापि पूर्व जन्मना पुण्योदयथी पूर्वोक्त उत्तम कुल पाम्यो तोपण तेमां रूपवंतपणुं तथा थारोग एटले रोगरहितपणुं अने श्रायु, एटलां वानांनो (समाज ॥९५णा के ) संपूर्ण योग पामवो ते खरेखरो पुर्खन , केमके आजना काल मांहे उत्तम कुल पामीने पण घणा प्राणी रोगिष्ठ, वली घणा प्राणी रूपरहित तथा घणा प्राणी हीनायु एटले अल्पायुवाला| देखाय , माटे तेमने पुण्यकार्यमां एटली खामी रही, तेणे करी रूप न पामे, तेथी लोकोने श्ष्ट न लागे, तथा रोग सहित होय तो धर्मनां कार्य साधी शके नहीं, वली हीनायुवालाथी। पण कां सुकृत थाय नहीं. ते वारे ते जीव उत्तम कुल पाम्यो तोपण शुं ? श्रने न पाम्यो| तोपण शुं ? कांज नहीं ॥४॥ ते सवि पामे पण सही, उलदो ने सुगुरु संयोग रे ॥ सघले खेत्रे नहीं सदा, मुनि पामीजे शुभ योग रे॥ मुनि ॥ संवेग ॥५॥ __ अर्थ-ए पूर्वोक्त मनुष्यनो जव, आर्य क्षेत्र, उत्तम कुल, रूपवंतपणुं, रोगरहितपणुं अने संपूर्ण । श्रायुष्य, ए सर्व वानां पामे, पण ( सही के० ) निश्चय थकी सारुनो संयोग पामवो महा - शर्लन बे, एटले जे पंचम गतिना साधक पोते संसारना पाशथी मूकाणा ने बीजाने मूकाववा समर्थ ते गुरु मलवा उर्लन ने. ते गुरु शास्त्रमा त्रण प्रकारना कह्या , तेमां एक तो पञ्चर समान 2 ते पोते पण ब्रडे अने श्राश्रय करनारने पण ब्रमाडे, बीजा काष्ठ समान ते पोते पण आश्रय करनारने पण तारे, त्रीजा पिप्पलपत्र समान ते पोते तरे अने आश्रय करनारने बूमाडे. ए त्रण नेद मांहेला बीजा नेदवाला काष्ट समान एवा सुगुरु, उत्तम गुरु, महामुनि, अकिंचनी, इनिर्लोजी, परोपकारी, तेनो जलो योग ते सर्व देत्रने विषे था पंचम कालमां सदा सर्वदा न पा-12 मीए, केमके गुणहीन घणा होय अने गुणवंत थोमा होय ॥५॥ AAAAAAACACACANCA-GCRICCASEARCroche ॥२५ Educantematonal For Personal and Private Use Only
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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