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________________ श्री०रा० ॥१६७॥ बे. ते यावी रीते के स्त्री उपर प्रीतिराग वे अने माता उपर जक्तिनो राग बे. तेम पक्किमणादिक कृत्यमां पण प्रीति जक्तिनो राग विचारवो. ते यावी रीते के एक पक्किम, बीजो काउस्सग्ग, त्रीजुं पञ्चरकाण, ए त्रणमां प्रीति अनुष्ठान बे, केमके एनी संगतथी आागल गुण वधे, माटे प्रीतिराग बे, अने एक सामायिक ते चारित्र अने बीजो चजविसको ते प्रजुने वांदवुं, तथा त्रीजां वांदणां ते गुरुने वांदणां देवां, एम चारित्रधर्म तथा देवाने गुरु, ए त्रणमां जक्ति अनुष्ठान बे, माटे ए त्रण उपर नक्तिराग बे. एम इहलोक याशे प्रीति यने परलोक श्राशे नक्ति, ए वे अनुष्ठाननो लाग होय ॥ २७ ॥ वचन ते आगम शरी, सहेजे थाये प्रसंग रे ॥ चक्रमण जिम दंथी, उत्तर तदनावे चंग रे ॥ उत्तर० ॥ संवेग० ॥ २८ ॥ विष गरल अनुष्ठान, तदेतुमृत वली दोय रे ॥ त्रिक तजवा दोय सेवा, ए पांच भेद पण जोय रे ॥ ए० ॥ संवेग० ॥ २९ ॥ अर्थ- दवे त्रीजुं वचनानुष्ठान थने चोथुं श्रसंगानुष्ठान कहे ते. जेम कुंजारना चक्रनुं चमण दंकने योगे थाय, पढी पोतानी मेले सहेजे फरया करे, तेम श्रीवीतराग जाषित आगममां जेम | ज्ञान क्रियानां वालंबन प्ररूप्यां वे ते ( श्राशरी के० ) अनुसारे श्राज्ञा प्रमाणे धर्ममां प्रव र्तन करे ते वचनानुष्ठान जाप, अने पढी उत्तर काले ( तदजावे के० ) तेने जावे पण ( चंग के० ) मनोहर होय एटले जेने कोइनुं चालंबन नहीं, पण सहेजे एवंज लढण थ रहे ते प्रसंगानुष्ठान जाणवुं ॥ २८ ॥ यतिधर्म मांहे पांच क्रिया कही वे ते कहे बे. पहेली विषक्रिया, बीजी गरल क्रिया, त्रीजी अनुष्ठानक्रिया, चोथी तद्धेतुक्रिया ने पांचमी अमृतक्रिया. ए पांच जेदे क्रिया जाणवी. ते मांहे विषक्रिया, गरल क्रिया घने अनुष्ठान क्रिया, ए (त्रिक के० ) त्रण भेद तजवा, यादवा योग्य नथी, जाणवा योग्य ठे. ते याचस्याथी चारित्रीयो चारित्र गर Jain Educationa International For Personal and Private Use Only) म. ४ ॥१६७॥ www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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