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________________ श्री० रा० ॥ ७५ ॥ यहीं घावो, नहीं कां पढी अमारो वांक काढशो के श्रमने केम कथं नहीं ? कारण के "घणुं जीव्याथी जोयुं जलुं” एम लोकमां कदेवत बे ॥ १५ ॥ एवी वात सांजलीने कुंवर पण उतावलो मांचा उपर चढ्यो, ते वारे शेठ मन मांहे आमलो एटले कपट धरीने मांचा उपरथी उतस्यो अने बेहु मित्रे बेहु पासे उजा रहीने दोरमां कापी नाख्यां कवि कहे बे के जे पापी दुष्ट प्राणी बे ते एवां नीच कर्म करतां थका जरा पण बीता नथी ॥ यतः ॥ जली करत लगत विलंब, विलंब न बूरे विचार ॥ जवन बनावत दिन लगत, ढहुत न लागत वार ॥ १ ॥ इति ॥ १६ ॥ तां सायर मांदि, ते नव पद मन धरे रे ॥ ते० ॥ सिद्धचक्र प्रत्यक्ष, के सवि संकट दरे रे ॥ के सवि० ॥ मगरमत्स्यनी पूंठ, के बेठो थिर इरे ॥ के बेो० ॥ वहाण तणी परे तेढ़, के पहोतो तट जइ रे ॥ के पहोतो० ॥ १७ ॥ औषधिने महिमाए, के जलनय निस्तरे रे ॥ के जल० ॥ सिचक्र परजावे, के सुर सानिध करे रे ॥ के सुर० ॥ त्रीजे खंडे ढाल, ए पहेली मन धरो रे ॥ ए पहेली ० ॥ विनय कदे नवि लोक, के जवसायर तरोरे ॥ के जव० ॥ १८ ॥ अर्थ- दोर काप्याथी कुंवर समुद्रमां पड्या, ते पडतां वेंतज नव पदनुं ध्यान धरता दवा, अने ए नव पद जे सिद्धचक्र ते तो संकट हरवाने प्रत्यक्षज बे, माटे पकतां वार तेज समये एक मगरमत्स्यनी पूंठ उपर पड्या, तेनी उपर स्थिर थइने बेग, ते वारे वहाणनी पेरे ते मगरमत्स्य पण एक क्षणवारमां ( तट के० ) समुद्रने कांठे जइ पहोतो ॥ १७ ॥ श्रीपाल कुंवर औषधिने महिमाए करीने जलना जयनो निस्तार पाम्या तथा वली श्रीसिद्धचक्रजीना प्रजावे करी ( सुर के० ) देवता यावी सान्निध्य करे ठे. एम त्रीजा खंमने विषे ए पहेली ढाल ते हे श्रोताजनो For Personal and Private Use Only Jain Educationa International खंग. ३ 1194 11 www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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