SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 224
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीराम ॥११॥ विषे ( रसाल के ) श्रृंगारादि रसे जरित एवी बही ढाल पूर्ण थ. श्रीसिद्धचक्रजीना यश खंम. ३ गातां थका घर घरने विषे मांगलिकनी माला थाय, एमां था रासना कर्ता श्रीयशोविजयजीए पोतानुं नाम पण यश एवं सूचव्यु ॥ ३१ ॥ ॥दोहा॥ विलसे धवल अपार सुख, सोनागी सिरदार ॥ पुण्यबले सवि संपजे, ___ वंडित सुख निरधार ॥१॥ सामग्री कारय तणी, प्रापक कारण पंच॥ इष्ट देतु पुण्यज वडं, मेले अवर प्रपंच ॥ २॥ तिलकसुंदरी श्रीपालनो, पुण्ये हुवो संबंध ॥ दवे श्रृंगारसुंदरी तणो, कहीशुं लान प्रबंध ॥३॥ अर्थ-हवे सोजागी पुरुषोनो शिरदार एवो श्रीपाल कुंवर तिहां धवल एटले उज्ज्वल एवां अपार, सुखने विलसे , जोगवे . जीवने (निरधार के०) निश्चेथी पुण्यने बले करीनेज सर्व प्रकारनां मनोवांबित सुख संपजे ॥१॥ हरेक कार्यनी सामग्रीनां प्रापक एटले प्राप्तिनां करावनारांकाल स्वन्नाव, नियति, कर्म अने उद्यम, ए पांच कारण , पण तेने मेलवी आपनार तिहां इष्ट हेतु ते एक मोटुं पुण्यज बे, जे (अवर के० ) बीजा जला प्रपंच सर्व मेलवी आपे ॥२॥ एज पुएयना योगे करीने त्रैलोक्यसुंदरी अने श्रीपालनो परस्पर संबंध थयो. हवे श्रृंगारसुंदरीना लाजनो | एटले पामवानो प्रबंध कहीशुं ॥३॥ ॥ ढाल सातमी ॥ साहिबा मोतीमो हमारो ॥ ए देशी॥ श्क दिन राजसनाए आव्यो, चर कदे अचरिज मुज मन नाव्यो॥ ॥११॥ साहिबा रंगीला हमारा ॥ मोदना रंगीला ॥ दलपत्तननो ने महाराजा, धरापाल जस पख बिहु ताजासादिबा ॥मोदना०॥ए आंकणी॥१॥ For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy