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________________ श्रीरा ॥१६६॥ परिग्रहज . तथा धन, कुटुंब, घर, वामी, बाग अने बगीचा तोपण तेनी उपर जो मूळख. नथी तो ते परिग्रह न कहीए, माटे ते मूळ न राखवी तेने अकिंचनपणुं कहीए, अने साधुधर्म | ते अकिंचननेज कह्यो , माटे संसारसमुथी तरवाने नाव समान ए धर्म . ए अकिंचनपणुं| श्रादस्याथी जवनिस्तार थाय. ए दशमो अकिंचनधर्म थयो. ए दश प्रकारना यतिधर्म कह्या. एथी शुकपणे कर्मनुं शोधन थाय ॥ २४ ॥ पांच नेद खंतिना, नवयारवयार विवाग रे ॥ वचन धर्म तिहां तीन , लौकिक दो अधिक सोनाग रे ॥ लौकिक ॥ संवेग ॥२५॥ अनुष्ठान ते चार ,प्रीति नक्ति ने वचन असंग रे॥त्रण दमा दोयमां, अग्रिम दोयमां दोय चंग रे ॥ अग्रिम ॥ संवेग ॥२६॥ अर्थ-(पांच नेद ने खंतिना के ) हवे ए दश प्रकारनो जे यतिधर्म कह्यो तेमा प्रथम क्षमा-11 धर्मना पांच नेद ते कहे . तेमां एक तो जे आपणो उपकारी होय ते जे कांश कमवां वचन कहे ते खमवां पडे तेने ( उवयार के० ) उपकारदमा कहीए. बीजी श्रागलो माणस जोरावर बे, तेना उपर कांश पराक्रम चाले तेम नथी, माटे जो था माणसनी सामुं बोलशुं तो तरत तिर-31 स्कार पामझुं, एम जाणी तेनी सामुं न बोले ते वीजी (अवयार के०) अपकारदमा. श्रीजी कर्मादिकना जयथी खमवू पडे ते विपाकदमा. चोथी कोइने आकरे वचने उहवे नहीं, अने है। पोते पण कोश्नां श्राकरां वचनथी उहवाय नहीं, एम वचननो परिसह उपसर्ग सहन करवो, सावद्य वचन न बोलवू ते वचनदमा. पांचमी गजसुकुमारनी पेरे हे आत्मन् ! तारो धर्मज दमा है। ॥१६६॥ बे, माटे तुजने दमाज जोशए, आत्मधर्म दमामयज डे एवं जाणी मूल धर्ममां स्थिर रहे, संपूर्ण धर्म आराधे, तेरमा चौदमा गुणगणानी श्वा करे ते धर्मदमा जाणवी. ए पांच दमा कही. तिहां है। Jain Educati o nal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org.
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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