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________________ खम.१ सीताजे पापरूप विघ्नो ते सर्वे उपशमी जाय, नाश पामे थने (निज गुरु के० ) पोताना गुरुना पद- ॥४॥ कमलने नमस्कार करता थका जगत महेि (जगीश के०) यश थने शोना वास पारसने वसने श्रशने, परपरिवादे प्रपंचवाचाले ॥ जिन इत्यदरयुगलं, न वदति मुग्धे वृथैवास्ति । एवी रीते देव गुरुनु नमस्काररूप मंगल करीने हवे कथानी उत्पत्ति कहे जे. गुरु गौतम राजगृही, आव्या प्रज्जु आदेश ॥ श्रीमुख श्रेणिक प्रमखने. शणि परे दे उपदेश ॥३॥ नपगा। अरिहंत प्रनु, सिह नजो नगवंत॥ आचारिज उवकाय तिम, साधु सकल गुणवंत ॥४॥दरिसण पुर्खन झानगुण,चारित्र तप सुविचार ॥ सिक्ष्चक्र ए सेवतां,पामीजे नवपार ॥५॥ अर्थ-प्रजु श्री वीर जगवाननो आदेश एटले याज्ञा लश्ने गुरु श्री गौतमखामी राजगृही नगरीने विषे पधास्या. तिहां श्रेणिक राजा प्रमुख वांदवा माटे आवेला एवा सर्व सजाजनोने (श्रीमुख के०) पोताना मुख थकी इणि परे एटले पागल कहेवाशे ते प्रमाणे उपदेश देता हवा॥३॥ के हे जव्य जनो!! तमे प्रथम पदे उपकारना करनार श्री अरिहंत प्रजुनुं अने बीजे पदे श्रीसिकनगवंतनुं जजन स्मरण करो, त्रीजे पदे श्राचार्य प्रजु, चोथे पदे श्री उपाध्यायजी तेमज पांचमे पदे (गुणवंत के) सत्यावीश गुणे करी सहित एवा ( सकल के० ) सर्व साधु जाणवा ॥४॥ बहे पदे जे पामवं| महा उर्लन डे एवं (दरिसण के०) समकित दर्शन, सातमे पदे ज्ञानगुण, थाउमे पदे चारित्रा अने नवमे पदे जे ( सुविचार के) रुमा विचारपूर्वक करवू, एटले कषायरहितपणे करवु एवं तप जाणवू. ए नव पदने सिझचक्र कहीए. ए सिद्धचक्रने सेवतां थका नव जे संसार तेनो पार पामीए॥ उक्तं च ॥ जत्तिजुत्ताण सत्ताण मण कामणं, पूरणे कप्पतरु कप्पधेणूवमं ॥ पुरक दोहग्ग दारिद |निन्नासयं, सिहचकं सया संथुणे सासयं ॥ १॥ इति ॥५॥ ॥१॥ Jain Educat i onal For Personal and Private Use Only ainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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