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॥ श्रीपंचपरमेष्ठिन्यो नमः॥ ॥ श्रीवीरपरमात्मने नमः॥ श्रीगौतमाय नमः ॥ ॥ अथ श्री नवपद महिमा वर्णनरूप
श्रीपाल राजानो रास ॥ प्रथम ग्रंथारं नमां ग्रंथकर्ता मंगलाचरण करता बता श्री तीर्थंकरनी वाणी जे सरस्वती देवी तेनी प्रार्थना करे .
॥दोहा॥ कल्पवेलि कवियण तणी, सरसति करि सुपसाय ॥
सिचक गुण गावतां, पूर मनोरथ माय ॥१॥ अर्थ-जेम कल्पवृक्ष युगलियाने मनोवांडित वस्तु पूरे , तेम सरस्वती देवी पण कविजने मनोवांडित पूरवाने पदानुसारिणी लब्धिरूप , माटे कवियण तणी कल्पवेली एटले कविनी कल्पवेलि एवी हे सरस्वति (माय के०) माता ! तुं मारा उपर सुपसाय एटले रुडो उत्तम प्रकारनो प्रसाद करीने सिद्धचक्रना गुण गावतां श्रका मारा मनोरथ (पूर के०) पूर्ण कर ॥१॥ अथ सरस्वतीवर्णनम् ॥ चुतविलंबितवृत्तम् ॥ प्रकटपाणितले जपमालिका, कमलपुस्तकवेणुवरा-- धरा ॥ धवलहंससमा श्रुतवाहिनी, हरतु मे छरितं जुवि नारती ॥१॥
' हवे कवि देव गुरुने नमस्कार करे बे. अलिय विघन सवि उपशमे, जपतां जिन-चोवीश ॥
नमतां निज गुरु पयकमल, जगमां वधे जगीश ॥२॥ अर्थ- चोवीश जिननो जाप जपतां थका (अलिय के० ) अलीक एटले मार्ग खोटां एवां ||
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