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श्रीराणा कोढ रोगनी पीडा पामीने जोगबुं बुं. वली था तमारी पुत्रीनो जन्म मुबावीने कर्म बांधुखम. १
नहीं, माटे मने मारा रूप जेवी कोश् दासी प्रमुखनी कन्या होय तो ते परणावी आपो, नहीं की। ॥१५॥
कल्याण , श्रमे जता रहीशुं. तेमज एक तरफ कन्यानो मामो अश्रुपात करतो समजावे , एक तरफ एनी माता रूपसुंदरी अश्रुपात करती समजावे , एक तरफ कुटुंब परिवारनां लोक सर्व मली| समजावे बे, रोवे ने, खेद करे , एक वीजाने कहे के श्रा पुत्रीनो संबंध जुर्ड, केवो अयोग्य थियो !!! तोपण राजा पोताना क्रोधथी चढ्यो नहीं. घणुंज कठण मन करी बेठो ने मयणा पण तत्त्वनी जाणनारी , माटे धैर्य मूकती नथी ॥ १४ ॥
राय कहे कन्या तणे रे, कर्मे ए बल कीध ॥ घणुं कडं में एदने रे, दोष न को में लीध॥च०॥कर्म ॥१५॥रोगी रलियायत थया रे, देखी कन्या पास॥परमेसर पुरण करी रे,आज अमारी आश॥च॥कर्म॥१६॥ सुगुण रास श्रीपालनो रे, तिहां ए (तेहनी) पांचमी ढाल ॥ विनय
कहे श्रोताघरे रे, दोजो मंगलमाल ॥च॥ कर्म ॥१७॥ अर्थ-ते सांजली राजा कहेवा लाग्यो के हे उंबर ! या कन्याना कर्मे ए बल कयु , में तो एने घणुंए कह्यु, पण ए कांश मारुं कडं माने ले ? ए तो निश्चय पोताना कर्मनेज माने , माटे 8 में कोई वातनो दोष मारे माथे लीधो नश्री ॥ १५ ॥ उंबरनी पासे कन्याने देखीने रोगी पुरुष सर्व रलियायत थया एटले खुशी थया अने विचारवा लाग्या जे परमेश्वरे आज अमारी श्राशा !
॥ १५ ॥ पूर्ण करी ॥ १६ ॥ रुडा गुणे करी शोनित एवो श्रीपालनो रास तिहां ए पांचमी ढाल थर. विनय-12 विजयजी कहे डे के श्रोताने घेर मांगलिकनी माला होजो ॥१७॥
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