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________________ नयमां पण वली एक अपेक्षाए प्रथमना चार नय ते व्यवहारना घरना बे, अने उपरना जे त्रण नय ते निश्चयना घरना बे, घने बीजी अपेक्षाए पहेला त्रण नय व्यवहारना घरना बे, अने पाउला चार नय निश्चयना घरना बे. ते सर्वनामत जूदा जूदा बे, पण श्रीवीतरागनो मत सर्व नय सम्मत बे, एवा विविध प्रकारना रंगना नय ते एकंगा नथी, तेमां तमे ( नयपक्षकारी के० ) | उपरना निश्चयना घरना जे त्रण नय बे तेना पक्षकारी छो, तमे केवल एक अद्वितीय कर्मलेपरहित मोक्षना अधिकारी बो. एतावता हवे तमारे मोद विना बीजे क्यांइ जनुं नथी ॥ ॥ तुमेव जोगी निज गुण जोगी ॥ वि० ॥ तुमे धर्मसंन्यासी शुरू प्रकाश तत्त्वना ॥ वा० ॥ तुमे तमदरसी उपशम वरसी ॥ वि० ॥ सिंचो गुण वाडी थाये ते जाडी पुण्यशुं ॥ वा० ॥ १० ॥ - वली हे मुनीश्वर ! तमे अनुभव जे श्रात्मखनावरमण तेना योगी बो. आत्माना मूल गुणनो जे खरेखरो विचार करवो, तद्रूप अनुभव तमने प्रगट्यो बे. वली तमे अनंतज्ञान, अनंतदर्शन, अनंतचारित्र, ध्यकषायी, छावेदी, योगी, अलेशी, अतींद्रिय प्रमुख ( निज गुण के० ) पोताना गुण तेना जोक्ता बो. वली तमे श्रात्मधर्म चोथा गुणवाणाथी मंगाणो ते व्यवहार धर्म, तेमां चौदमा गुणगणानो निश्चय धर्म एवा धर्मने सम्यक् प्रकारे ( न्यास के० ) जे स्थापे बे तेने धर्मसंन्यासी कहीए. ते तमे धर्मसंन्यासी बो. वली जे मार्गथी मुक्तिपद पामीए ते तत्त्वमार्ग जाणवो. ते तत्त्वमार्गना शुद्ध प्रकाशना करनार बो. वली हे मुनीश्वर ! तमे ( श्रातमदरसी के० ) आत्माने विजाव दशाथी निवारीने खजाव दशामां स्थाप्यो, केवलज्ञान, दर्शन, चारित्ररूप श्रात्मानो मूल धर्म बे तेनेज एकांते स्थापीने आत्मगवेषणा करो एवा तमे श्रात्मदर्शी बो. वली तमे शांत रसने निकटवर्त्ती करीने खेटादिक दोषने दूर करी केवल उपशमरूप वरसादनी वृष्टिना Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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