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________________ तत्त्व लदे पण उल्लही, सद्दहणा जाणो संत रे॥ कोइ निज मति आगल करे, कोइ डामाडोल फिरत रे॥ कोइ० ॥ संवेग ॥ १० ॥ आप विचारे पामीए, कहो तत्त्व तणो किम अंत रे॥ आलसुआ गुरु शिष्यनो, हां। नावजो मन उत्तंत रे ॥ श्हां ॥ संवेग ॥ ११॥ अर्थ-कदापि पूर्वकृत शुज कर्मना उदयथी देशना सांजलीने धर्मनुं तत्त्व धातूं, परंतु ( संत | के) हे सङानो ! ते श्रोताने तत्वनी वात उपर सदहणा श्राववी घणीज दोहिली . शामादे जे कोश्क श्रोता तो पोताना मनथी उत्पन्न थ जे कल्पनाजाल तेथी पोतानी मति आगल करे, एटले कहे के गुरु जले श्राम कहे , पण वात तो में धारी ते प्रमाणेज हशे, तथा केटलाएक श्रोता तो मामामोल थर प्रमादमग्न थका फस्या करे, एटले प्रथम जेनी पासे जे धर्म है सांजल्यो होय ते जलो हशे के था कहे जे ते नलो हशे? एम चिंतवता फरे, पोताना महा-1 पणमा समाय नहीं, तेथी सदहणा राख्या विना सर्व नगर उपर लीपणा समान ३ ॥ १० ॥ माटे ||3| तत्त्वनी श्रझा विना तत्व केम पामीए ? आ शुन्न ते आदरवा योग्य ने अने आ अशुज ते त्यागवा योग्य , एवी वातो तो जे वारे गुर्वादिकना मुखथी सांजलीने धारे ते वारे ते तत्व पामे, परंतु कहो के (आप के० ) पोताना विचारथी तत्त्व ते केम पामीए ? जे बालसु थइ घरमां| बेसी रहे, गुरुनी पासे धर्म सांजलवा न जाय ते तत्व केम पामे ? तत्त्व तो जे बालस त्यागीने चित्तमां धर्म सांजलवानी रुचि वधारीने गुरुमुखे जिनोक्त वचन सांजले, तिहां जे शंका उपजे ते । पूबी संदेह टाली दृढता करे, ते पामे. ही कोई अन्यदर्शनी गुरु अने शिष्य ए बे जण थालसु हता, तेनो वृत्तांत मनने विषे जावजो. ते वृत्तांत कहे . को गुरु शिष्य एक नगरनी बहार फुपमी बांधी रह्या बे, वस्त्ररहित , गाममां निदा मागी उदरपूरणा करे , एवामा पोष मासना SOCIRCRACROCOCRACCECANCREASCCCTEREOSCHES Su ntematonal For Personal and Private Use Only www.sainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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