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________________ अर्थ- हवे मया कहे वे के देरासरनी पासे पोसहशालामां गुणवंत गुरु बेठा बे, ते देशना आपे बे, माटे हे ( कंत के० ) जर्त्तार ! तिहां मारी साथे वो तो आपणे धर्मोपदेश सांजली ए ॥१॥ नर नारी बेहु जां, व्यां गुरुने पाय ॥ विधिपूर्वक वंदन करी, बेगं बेसा ॥ २ ॥ धर्मलाज देइ धुरे, प्राणी धर्मसनेह ॥ योग जीव दवे, धर्मक गुरु तेद ॥ ३ ॥ अर्थ- स्त्री ने जर्त्तार ए बेदु जण गुरुना पग वागल श्रावी, विधिपूर्वक वंदन करीने बेसवाने स्थान के जइ बेठां ॥ २ ॥ गुरुए पण तेमने प्रथम धर्मलाज देइ धर्मस्नेह लावी, योग्य जीव जाणी हवे धर्मोपदेश कहेवा मांड्यो ॥ ३ ॥ || ढाल सातमी ॥ वात म काढो हो व्रत ती ॥ ए देशी ॥ मतां एद संसारमा, डुलदो नरजव लाधो रे ॥ बांमी निंद प्रमादनी, आप सवारथ साधो रे ॥ चेतन चेतो रे चेतना, आणी चित्त मकार रे ॥ १२ ॥ अर्थ- हे व्यप्राणी ! या पारावार संसारमां चोराशी लाख जीवने उपजवानी योनि बे, तेने विषे जमतां थका दोहेलो मनुष्यनो जव पाजी ने निद्रा तथा प्रमाद जे आलस अथवा प्रमादनी माता जे निद्रा, तेने बांकी धर्ममार्ग यादरीने पोतानो स्वार्थ साधो; कारण के मनुष्यजव सिवाय | वली अन्य तिर्यंचादिकना जवमां धर्मसामग्री मलवी तमोने दुर्लन थशे; माटे प्राप्त थयेला मनुव्यजवने व्यर्थ न गुमावो, ए वात तमारा चित्तने विषे लावीने चेतननी चेतनाने चेतो, अथवा हे चेतन ! तमे तमारी चेतनाने चेतो. इहां “मद्या विसय कसाया " ए गाथा कहेवी ॥ तथा ॥ प्रमादः परमं द्वेषी, प्रमादः परमं विषं ॥ प्रमादो मुक्तिदस्युश्च प्रमादो नरकायनम् ॥ १ ॥ निद्रा Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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