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________________ खंग.१ श्रीरामूलमनर्थानां, निझा श्रेयोविघातिनी ॥ निझा प्रमादजननी, निझा संसारवर्धिनी ॥ ५॥१॥ ॥१ ॥ सामग्री सवि धर्मनी, आले जे नर खोइ रे॥माखीनी परे हाथ ते, घसतां आप विगो रे ॥ चेतन ॥२॥जान लश् बहु युक्तिशु, जेम को परणवा जाय रे ॥ लगनवेला गर जंघमां, पडे घj परताय रे॥ चेतन ॥३॥ एणी पेरे देश देशना, करे नविक उपगार रे ॥ गुरु मयणाने उलखी, बोलावे तेणी वार रे ॥ चेतन ॥ ४ ॥ अर्थ-जे (नर के० ) मनुष्य धर्मनी सर्व सामग्री पामीने (आले के०) मिथ्या फोगट खोइ नाखे । | ते प्राणी मधपुमानी माखीनी पेरे हाथ घसतो पोताने विगोवे , एटले डेवट पश्चात्ताप करे ॥3 | यतः ॥ पप्पासूं परचो नहीं, ददो रहियो दूर ॥ लवासू लागी रह्यो, नन्नो रह्यो हजूर ॥१॥ हाथ घसे सुश थाहणे, जीने तालुं दीध ॥ मरणवेलाए सांजरे, हा ! में धर्म न की । ॥२॥पांचे नूलो चारे चूको, त्रिहुं न जाएयुं नाम ॥ जग ढंढेरो फेरव्यो, श्रावक महारं नाम ॥३॥२॥ तेनी उपर दृष्टांत कहे जे. जेम कोश्क पुरुष घणी मोटी युक्तिथी जान लश्ने परणवा माटे जाय, तिहां जे वारे लग्ननी वेला आवे, ते वारे तेने उघ श्रावी जाय, तेथी तेनी लग्नवेला तो उघमां जती रही, पनी जे वखत जाग्रत थाय, ते वखत घणोज पश्चात्ताप करे. तेम जे प्राणी मनुष्यजवरूप सामग्री पामीने प्रमादमा पड्यो थको धर्मकरणी नहीं करे तो पड़ी तेने पश्चात्ताप करवो पडे ॥३॥ ए रीते गुरुए धर्मदेशना श्रापी जव्यजीवोनो उपकार कस्यो, अने देशना है समाप्त थया पठी जे वारे गुरुए मयणाने उलखी, ते वारे तेणीने बोलावता हवा ॥ यतः॥ जलदो नास्करो वृक्ष,-चंडमा धर्मदेशकः ॥ एतेषामुपकाराणां, नास्ति सीमा महीतले ॥१॥४॥ Sain Educati o nal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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