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________________ धास्तीने लीधे सरल मार्ग मूकीने उजम जंगलमा जिहां विषम मार्ग जे ते रस्ते चालवा मांड्युं ॥७॥ जास जडो जड कांखरां रे, खाखर नाखर खोद ॥ फणिधर मणिधर जिहां फरे रे, अजगर उंदर गोद ॥ देखो० ॥ ॥जड अबला रडवडे रे, रयणी घोर अंधार ॥ चरणे खूचे कांकरा रे, वदे लोहीनी धार ॥ देखो ॥ ए॥ वरु वाघ ने वरघमां रे, सोर करे शीयाल ॥ चोर चरम ने चीतरा रे, दीये उपलती फाल ॥ देखो० ॥ १०॥ घू घू घू घूअड करे रे, वानर पामे दीक ॥ खलदल परवतथी पमे रे, नदी निकरणां नीक ॥ देखो० ॥११॥ अर्थ-(जास के० ) जे मार्गमां (जडो के०) जडुं, (जम के०) जोयां अने कांखरां घणां 8 पड्यां . वली खाखरानां काम, (जाखर के०) पथरा कांकरा तथा (खोह के ) खामा पड्या है . वली जे मार्गमा फणिना धरनार श्रने जेना मस्तकने विषे मणि रहेला ने, तेवा सर्प घणा अहीं तही ब्रमण करी रह्या बे. तेमज अजगर, बंदर ने गोह नामनां जनावर घणां विचरी रह्यां ॥ ७॥ एवी घोर अंधारी रात्रिए उजम मार्गे चालतां अबला जे स्त्री, ते रमवडे अने | तेना पगमां कांकरा खूची जाय , तेने योगे पगमाथी लोहीनी धारा ऊरे ॥ ए॥ वली जे मार्गमां ( वरु के० ) वरु, वाघ अने ( वरघमां के०) चराख तथा शीयालीयां ते सोर बकोर करे . तथा चोर अने (चरम के०) बल, चोर फासीगरा अथवा नूत तथा चीतरा जनावर तो उबलतां थका मोटी फालो मारी रह्या जे ॥ १०॥ तथा घूवर पक्षी ते घू घू घृ एवो नयंकर शब्द : करी रह्या बे, अने वानरा (हीक के०) चीसो पामी रह्या , तथा पर्वत उपरथी खलहलाट शब्द करती नदीना पाणीनां निर्धारणांनी (नीक के०) धाराऊ पर्वत उपरथी नीचे श्रावी पडे २ ॥११॥ Sain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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