SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 341
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संसारनो पार पामे, अने मोदनी प्राप्तिपूर्वक शुझ नावपणे रहे, पण ए क्रिया श्राव्या विना ||संसारनो निस्तार थतो नथी ॥ ३३ ॥ करण प्रीति आदर घणो, जिज्ञासा जाणनो संग रे॥ शुन्न आगम निर्विघनता, ए शुभ क्रियानां लिंग रे ॥ ए० ॥ संवेग ॥ ३४ ॥ व्यलिंग अनंतां धयां, करी किरिया फल नवि तह रे ॥ शुद्ध किया तो संपजे, पुजल आवर्तने अ६ रे ॥ पुजल ॥ संवेग ॥ (पागंतर ) मारग अनुगति नाव जे, अपुनबंधकता लक्ष रे ॥ किरिया नवि उपसंपजे, पुजल आवर्तने अक्षरे ॥ पुजल ॥ संवेग ॥ ३५॥ अर्थ-हवे शुद्ध क्रियानां लक्षण कहे . जे क्रिया करवामां घणी प्रीति धरे, घणो घणो श्रादर करे, क्रियाना प्रयत्नने विषे निरंतर उद्यम करे, ( जिज्ञासा के० ) तत्त्व जाणवानी वांबना करे, तथा ( जाणनो संग के० ) जे जन शुद्ध क्रियाना जाण होय तेनो संग करे, पण विकथा अन्य-18 दर्शनी प्रमुखनो सर्वथा संग न करे, अने (शुन आगम के०) चलो जिन कथित बागम स्याछाद-13 पझतिरचनारूप रत्नवाक्यजमित एवा उत्तम सिद्धांतने विनरहितपणे श्रादरे, हजारो काम है। ४ मूकीने केवल एक बागमश्रुतपंथे खप करे, ए शुरू क्रियानां (लिंग के० ) लक्षण जाणवां ॥३४॥ हवे शुद्ध क्रिया ते केवारे प्राप्त थाय ? ते कहे . यतिना वेषे उघो, मुहपत्ति ग्रहण करवे करी ए रीते अनंती वार व्यलिंग यतिना वेषे धस्यां. मेरु पर्वत जेवो ढगलो थाय, एटला घा, मुह-18 पत्ति धस्यां, तथा क्रिया पण विशेषपणे विविध प्रकारनी करी, परंतु ते क्रियानुं फल तथा यतिपणानुं फल पाम्यो नहीं. शामाटे ? जे बोधवीज विना जेटली क्रिया, जेटलां लिंग, ते सर्व निफल ले. "नावशून्याः क्रियान फलंतीति तत्त्वम् ॥” ते माटे शुद्ध किया तो ते वारे जीव पामे के in Education International For Personal and Private Use Only
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy