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________________ श्री०रा० ॥१६८॥ लोक करे तिम जे करे, उठे बेसे संमूर्त्तिम प्राय रे ॥ विधि विवेक जाणे नहीं, ते न्यानुष्ठान कहाय रे ॥ ते० ॥ संवेग० ॥ ३२ ॥ तदेतु ते शुद्ध रागी, विधि शुद्ध अमृत ते दोय रे ॥ सकल विधान जे याचरे, ते दवा को रे ॥ ते० ॥ संवेग० ॥ ३३ ॥ अर्थ- दवे त्रीजी अनुष्ठान क्रिया कहे बे. जेम कोइक अज्ञानी चारित्र यो पारणा निमित्ते छा थवा ग्रहण निमित्ते क्रिया करे, ते जेम बीजा लोक उठ बेस करे तेम ते पण उठ बेस संमूर्धिमनी परे करे. एतावता को चारित्रीयो दुधित थको दीक्षा लीए तेने केवल एक अशननीज इछा रहे बे. ते मनरहित थको क्रिया करे, माटे संमूर्छिमनी उपमा दीधी, कारण के जे पोताना चित्तमां विधि विवेक कांइ जाणे नहीं या रीते बेस, या रीते उठवुं, श्रा रीते पूंजवु इत्यादिक कां विधि जाणे नहीं, तथा विवेक ते गुरु, देव, ज्ञान, धर्माचार्य प्रमुखनो विनय करवो, गुरु सामे या रीते जवुं, श्रावनुं, बेसवुं इत्यादिक सर्व विधि जाणे तेने विवेक कहीए. ते विधि तथा विवेकने जाणतो मनरहित जे क्रिया करे ते कांइ फलदायक जाणवी नहीं ॥ ३२ ॥ दवे चोथी तद्धेतुक्रिया कड़े बे. चारित्रनो लेनारो वैराग्यवंत जडकपरिणामी देशना सांजली संसारनो सर्व जाव अनित्य जाणी संसारी वर्ग थकी विरक्त थइने चारित्र लीए, ते शुद्ध रागे वधते मनोरथे क्रिया करे, पण विधिशुद्ध होय नहीं, परंतु सरवाले तेथी विधि शुद्ध थाय, | माटे ए क्रिया फलदायक जाणवी. हवे पांचमी अमृतक्रियानां लक्षण कहे बे. जे आगमोक्त विधि को वे ते प्रमाणे शुद्ध विधिए शुद्ध चित्तना श्रध्यवसायपणे करी ने ( सकल विधान के० ) समस्त क्रियाना अनुष्ठाननी याचरणा करे एवा तो संसार मांडे कोक विरला प्राणी दी से बे, | माटे पांच क्रिया मांदे अमृतक्रिया ते केवल अद्भुत सुरमणि समान बे. ए शुद्ध क्रिया यावेथी Jain Educationa International For Personal and Private Use Only खं. ४ ॥१६॥ www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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