SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 296
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीरा ॥१४६॥ चारित्र ते सिझनु थाकर्षण , वली तेज चारित्र नव जे संसार तेने निःकर्षण एटले पूर कर- खम. ४ नार , वली ते चारित्र क्रोध, मान, माया अने लोनरूप कषायना जे (गिरि के.) पर्वत , तेनुं नेदन करवाने (पवि के० ) वन समान बे, तेमज वली ते चारित्र हास्यादिक नव नोकषायरूप (दव के ) दावानल, तेने उपशमाववाने ( मेह के) मेघ समान ३ ॥ ७॥ प्रवजा गुण इम प्रदे, देखे नवजलदोष ॥ मोहमहामद मिट गयो, हुई नावनो पोष ॥॥नेदाणी बहु पापथिति,, कर्मे विवरज दीध ॥ पूरव नव तस सांजस्यो, रंगे चारित्र लीध ॥ १० ॥ अर्थ-एम ते अजितसेन राजा प्रव्रज्याना गुण ग्रहण करे डे,एटले चारित्र ए प्रकारना गुणर्नु कर्ता बे, ते विचार करतां करतां ज्ञान, दर्शन अने चारित्ररूप गुण ग्रहण करतो केवल नवजल जे संसार-13 समुन, तेनो जे दोष तेने देखे ,कारण के जेमां गुण होय तो तेना गुणनीज गवेषणा थाय ने, पण तेनी दृष्टिए अवगुण जोवामां आवे नहीं, तेम चारित्रमा गुणज , माटे गुण दीग, तेना गुण ग्रहण कख्या, तेथी विचाखु जे आत्मा ज्यां लगण चारित्र सहित थयो नश्री त्यां लगण संसार विटंबना ने, ए आत्मानो दोष बे, तेनेज देखे ,अने चितवन करे ते जे श्रात्माने अनादि मोहले, ते संसारमा जमाडे 3 बे, ज्यांसुधी समकितमोहनी, मिश्रमोहनी श्रने मिथ्यात्वमोहनी तथा अनंतानुबंधी कषायनी चोकमी, ए सात प्रकृतिनो दयोपशम नथी थयो त्यांसुधी ते आत्मा मिथ्यात्व गुणगणे जे. एवी रीते ए अजितसेनने चारित्र गुण ग्रहवे करी सात प्रकृतिनो उपशम थाते दायिक परिणाम | ॥२४६॥ वर्त्तवाना नाव थकी मोहरूप महामद जे हतो ते मटी गयो. ते वारे उपशम समकितादिक उत्तम नावनो पोष थयो, एटले उपशम समकिते औपशमिक जाव थाय, अने योपशम सम-18] किते कायोपशमिक जाव थाय, तथा दायिक समकिते क्षायिक जाव थाय. ए त्रण सम कित Sain Education International For Personal and Private Use Only
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy