SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानवंत ! कहो, जे कया कर्मना पसायथी बालपणे मारे शरीरे ए महा अघोर रोग उपन्यो ? वली में जन्मांतरे शुं सुकृत कडे हतुं के जेथी ते रोग मट्यो ? ॥२॥ कवण कर्मथी में सही, गम गम बहु शहि ॥ कवण कुकर्मे हुं पड्यो, गुणनिधि जलनिधि मध्य ॥ ३॥ कवण नीच कर्मे हुर्ड, डुंबपणो मुनि राय॥ मुजने ए सवि किम दुर्ज, कहीए करी सुपसाय ॥४॥ अर्थ-वली कया पुण्यना योगथी हुँ ठेकाणे ठेकाणे बहु झछि पाम्यो ? वली हे गुणनिधि ! हे गुणसमु ! हुं कया माग कर्मना योगपी (जलनिधि के०) समुरुमां पड्यो ? ॥ ३॥ वली हे मुनिराज ! कया नीच कर्मे करीने हुँ डुंवपणाना कलंकने पाम्यो ? ए सर्व मारे केम थयुं ? ते मुजने रुमो पसाय करीने कहो ॥ ४॥ ॥ ढाल आचमी ॥ सांजरीया गुण गावा मुज मन हीरना रे ॥ ए देशी॥ सांनलजो दवे कर्मविपाक कदे मुनि रे, कांच कीg कीधुं कर्म न जाय रे॥ कर्मवशे होय सघलां सुख उःख जीवने रे, कर्मथी बलीयो को नवि थाय रे॥सांनलजो ॥१॥नरतक्षेत्रमा नयर हिरण्यपुरे दुउँ रे, मदीपति महोटो ते श्रीकंत रे ॥ व्यसन तेदने लागुं आहेमा तणुं रे, कांश वारे वारे राणी एकंत रे ॥सांनलजो॥२॥ अर्थ-हवे अजितसेन राजर्षि कर्मनां फल कहे जे ते हे श्रोताजनो ! तमे सांजलजो. जे कांश कर्म कयुं होय ते नोगव्या विना जाय नहीं, माटे हे श्रीपाल ! जगत्त्रय मांहे जीवने सर्व है सुख दुःख ते कर्मना पसायथी थाय बे, पण कोइ जीव कर्मथी बलीयो नथी, माटे कर्म मोटुं ४॥ १॥ हवे मुनि कहे वे जे हे श्रीपाल ! आ जरतक्षेत्र मांहे हिरण्यपुर नामे नगरे श्रीकांत नामे E n ternational For Personal and Private Use Only
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy