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________________ दोजी मयणाने जिनधर्म, फलीयो बलीयो सुरतरु दो लाल ॥ होजी मुज मने मिथ्याधर्म, फलीयो विषफल विषतरु हो लाल ॥१४॥होजी एकज जलधि लप्पन्न, अमिय विषे जे आंतरो दो लाल ॥ दोजी अम बिलु बहेनी मांदि, तेह ने मत कोइ पांतरो दो लाल ॥ १५॥ दोजी मयणा निज कुललाज, उद्योतक मणिदीपिका दो लाल ॥ होजी हुं बुं कुलमलदेतु, सघन निशानी कीपिका दो लाल ॥ १६॥ होजी मयणा दी। होय, समकितशुदि सोदामणी हो लाल ॥ होजी मुज दीठे मिथ्यात, धीग होये अति घणी हो लाल ॥१७॥ | अर्थ-मयणाए श्रीजिनधर्म सेव्यो, ते तेने बलवंत एवं जे (सुरतरु के०) कल्पवृक्ष ते समान प्रत्यक्ष दृश्यमान शुजरूप फले फूले करी फल्यो, श्रने में मिथ्यात्व धर्म सेव्यो, ते मुजने जेम? विषतरु एटले विषवृक्षमा विषफल उपजे, ते समान फुःखरूप फले फूले करीने फल्यो. एटले जेवां| 8/वीज वाव्यां, तेवां फल पाम्यां ॥ १४ ॥ इहां कोई अजाण पूजे के एकज कुलमां उपनी तमे वे 8 वहेनो बो, ते मांदे एटलो फेर केम पड्यो ? तेने दृष्टांतपूर्वक उत्तर कहे ले के जेम एकज (जलधि, के०) समुष उत्पत्तिनुं स्थानक , तेमां अमृत अने विष बेहु नपजे ने, ने तेमां श्रांतरं ,IN केमके अमृत वे ते रोगापहारकपणे जीवामनार ने अने विष जे जे ते तो सर्वथा मारनारज ने, ४ तेम इहां पण श्रमो बेहु बहेनो मांहे तेटलो अंतर ठे एटले मयणा अमृत तुल्य बे, अने हुँ विष8 सरखी बुं. मत को पतिरो एटले कोइ फेरफार जाणशो नहीं॥१५॥ वली मयणा पोताना कुलनी लाजने उद्योतक एटले प्रकाश करवामां मणिदीपिका एटले मणिरत्ननी दीवी समान बे, अने हुँ। तो कुलने मलिन करवानी हेतु एटले कारण बुं. ते केवी हेतु ढुं ? तो के ( सघन निशा के) PRI***ORISSAAROSANI For Personal and Private Use Only
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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