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परदेशमां क्या क्या फस्या ? हंसछीपे तमे कुशले गया, पठी जहाज उपर चढ्या एवं श्रमे 2 सांजव्युं हतुं, तिहांथी हां आव्या जणा बो. वली एक काकी थक्ष, एक फूझ थश्ने घणुंज | हेज देखाडे जे के हे ना! श्रमे तारी वाट जोतां हतां ॥७॥
डुंब कहे नररायने रे, ए अम कुल आधार रे॥ चतुर ॥ रीसावी चाल्यो हतो दो लाल ॥ तुम पसाय नेलो थयो रे, सवि महारो परिवार रे ॥ चतुर ॥ नांग्यां अःख विगेदनां दो लाल ॥ ए॥राजा मन चिंते इस्युं रे, सुणी तेदनी वाच रे ॥ चतुर ॥ वात घणी विरुइ थइ दो लाल ॥ एद कुटुंब सवि एदनुं रे, दीसे परतस्क साच रे ॥ चतुर ॥ धिक मुज वंश विटालीयो दो लाल ॥ १० ॥ निमित्तियो तेडावीयो रे, में तुज वचनविशास रे ॥ चतुर ॥ पुत्री दीधी एदने हो लाल ॥ किम मातंग कह्यो नहीं रे, ते दीधो गले पाश रे ॥ चतुर ॥ निमित्तियो वलतुं कदे दो लाल ॥११॥ अर्थ-हवे ते डुंब राजाने कहे जे के हे महाराज!श्रा अमारा कुलनो श्राधार , ए श्रमाराथी रीसाश्ने चाल्यो गयो हतो ते तमारा पसायथी आज नेलो थयो. ए सर्व मारो परिवार , श्राज। श्रमारां विडोहना पुःख नांग्यां, श्रमे एने सारी रीते न उलखत, पण आ पान- बीडं श्रापवा श्राव्यो तेना मिषे अमे हवे सारी रीते लक्षणे करी उलख्यो ।ए॥ एवी रीतनी ते सर्व डुंब डुंबी-18 उनी वाणी सांजलीने राजा पोताना मनमां एवं चिंतववा लाग्यो के वात तो घणीज (विरु के माठी थ६. था डुबोनुं कुटुंब जे ते सर्व एनुंज . ए प्रत्यक्ष साचुंज देखाय , माटे धिक्कार बे एने के जेणे मारो वंश विटाल्यो !॥ १० ॥ एम चिंतवी राजाए निमित्तयाने तेमाव्यो अने कह्यु के में
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