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________________ Jain Education श्राश्रयी कला, तेनी साथे श्रगलना वे मेलवतां दश थया, छाने गीयारमो प्रजुनी पूंठे उद्योत| मय जामंगल कलहलाट करतुं रहे. एवं अगीयार अतिशय क्षायिक जावथी होय. हवे जंगपीश अतिशय देवकृत होय ते कड़े बे. एक मणिरत्नमय सिंहासन सहचारी होय. बीजो त्रण वत्र श्री जिनेश्वरने मस्तके देखाय. त्रीजो इंद्रध्वज सदा श्रगल चाले. चोथो श्वेत चामरनां जोमां णवींज्यां वीजाय. पांचमो सर्वदा धर्मचक्र आकाशमार्गे रथं चाले. बो प्रजुना शरीरथी बार गुणुं उंचुं एवं अशोकवृक्ष प्रजुनी उपर बाया करतुं साथे रहे. सातमो चतुर्मुखे शोजती | देशना थापे श्रावमो मणि, कनक अने रौप्यमय त्रण गढ होय. नवमो नव संख्याए सुवर्णमय कमलनी उपर प्रभु चाले. दशमो कांटा अधोमुख थइ जाय. श्रगीयारमो संयम लीधा पी केश, नख ने रोम वधे नहीं. बारमो इंडियना अर्थ पांचे मनोइ होय. तेरमो सर्व तु सुखदायिनी होय. चौदमो सुगंधी पाणीनी वृष्टि होय. पंदरमो जलस्थलनां उपजेलां पांचे वर्णनां फूल ते समवसरणमा जानु लगे जंधी बीटे पथराय. सोलमो पक्षी सर्व प्रदक्षिणा देतां फरे. सत्तरमो वायु सानुकूल होय. अढारमो वृक्ष सर्व नीचां नमीने प्रणाम करतां रहे. उगणी शमो आकाशमां देवकुंडुनि वाजे. ए चार मूलना तथा अगीयार क्षायिक जावथी अने उगणीश | देवोना करेला मली चोत्रीश छातिशयना धरनार श्री अरिहंत होय, (ते जिन के०) ते श्री अरिहंत ने ( नमी के० ) नमस्कार करीने मारां जवोजवनां ( यघ के० ) पापने टालुं ॥ २ ॥ जे तिहु ना समग्ग उप्पन्ना, जोग करम खिण जाण ॥ बेइ दीक्षा शिक्षा जनने, ते नमी जिन नाणी रे ॥ नविका ॥ सि६चक्र० ॥ ३ ॥ अर्थ- वली जे मतिज्ञान, श्रुतज्ञान अने अवधिज्ञान, एत्रण ( नाप समग्ग के० ज्ञान सहित थावीने गर्जने विषे उपन्या, एटले श्रीतीर्थंकर देव सर्वे देवगतिमांची तथा नारकी समग्र ational For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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