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________________ वनमाथी सुतो जगावी मोटा महोत्सवे करी नली जाते घेरतेमी श्राणीने राजाए पोतानी कुंवरी| परणावी दीधी, पण एनी जात के नात कोण डे? ते वात पण कांपूबी नहीं ॥७॥ शेठ सुणी रीज्यो घणुं, चित्तमां करे विचार ॥ एदने कष्टे पामवा, नर्बु देखाड्युं बार ॥ ए॥ देश कलंक कुजाति, पाडं एदनी लाज ॥ राजा दणशे एदने, सदेजे सरशे काज ॥१०॥ जो पण जे जे में कस्यां, एदने उखनां देत ॥ ते ते सवि निष्फल थयां, मुज अनिलाष समेत ॥११॥ तोपण वाज न आवीए, मन करीए अनुकूल ॥ उद्यमथी सवि संपजे, उद्यम सुखनुं मूल ॥ १२ ॥ वैरीने वाध्यो घणो, ए मुज खणशे कंद ॥ प्रथमज दणवा एदने, करवो कोश्क फंद ॥१३॥ अर्थ-ते वात सांजलीने शेठ घणोज रीऊ पाम्यो, अने मनमा विचार करवा लाग्यो के एने । कष्टमां पारवा माटे एणे मने नबुं वारणुं देखाड्यु, कारण के एनी जाति नाति कोइ जाणतो नथी, तो ए उपाय मारा हाथमां घणो श्रेष्ठ आव्यो २ ॥ ए॥माटे हवे हुँ कोश्क कुजातिनुं कलंक दश्ने एनी लाज पाडु के जेथी राजा एने अवश्य दणी नाखशे, ने सहेजमां मारे कार्य सरी जशे ॥ १० ॥ जो पण आज पर्यंत एने जे जे में उखनां (हेत के० ) कारण कस्यां, ते ते सर्व है कारण मारा मनना अनिलाष सहित निष्फल थयां, एटले कारणनी निष्फलता थर, तो ते कारण है। सफल करवा माटे मारा मनना जे अनिलाषो हता, ते पण सर्व निष्फल थया ॥११॥तोपण वाज श्रावीए नहीं एटले सर्व हेतु निष्फल थर गया, माटे हवे उद्यम मूकी देवो एवं प्रतिकूल मन ।। करीए नहीं, परंतु उद्यम जारी राखवा माटे मनने अनुकूल करीए, कारण के उद्यम कस्याथीज सवें8| कांश संपजे, नीपजे , माटे उद्यम जे जे तेज सुखनुं मूल ॥ १५ ॥ तथा वली ए तो मारो Jain Education Intematonal For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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