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श्रीराम
॥१७॥
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जावे श्रने जे जीवने हणवा धारे ते पर जीवने पण संताप उपजावे, ते कुल मांहे ( केत के) खंम. ४ थरिष्टसूचक केतु ग्रह सरिखो कुलना क्षय करन
करनार जाणवो ॥७॥ जा रसातल विक्रम जे उर्बल दणे रे, ए तो लेश्या कृष्णनो घन परिणाम रे॥डी करणीथी जग अपजश पामीए रे, लोदालो खातां मुख होवे ते श्याम रे ॥ सनिलजो ॥ ए॥ एहवां राणीए वयण कह्यां पण रायने रे, चित्त मांहे नविजाग्यो कोइ प्रतिबोध रे ॥घन वरसे पण नवि नींजे मगसेलीयो रे, मूरखने हित उपदेशे दोय क्रोध रे ॥ सांनवजो ॥१०॥ अन्य दिवसे शत सात उल्लंठे परवस्यो रे, मृगयासंगी आव्यो गहन वन राय रे॥ मुनि तिहां देखी कहे व्याधे ने पीड्यो कोढीयो रे, उ
खंठ ते मारे देश घन घाय रे॥ सनिलजो० ॥११॥ अर्थ-वली जे उर्वल पशुने मारे तेनुं पराक्रम रसातल मांहे पेसी जाउँ ! ए हिंसकपणुं तो 2 कृष्ण लेश्यानुं आकरूं परिणाम जाणवू. जेम (लीहालो के) कोयलो खातां मोटु श्याम थाय 3 तेम नूंडी करणी करीए तेथी जगतने विषे अपजश पामीए ॥ ए॥ एवां राणीए वचन कह्यां, पण राजाना चित्तने विषे कोई प्रकारनो प्रतिबोध जाग्यो नहीं. जेम (घन के० ) वरसाद वरसे थके मगसेलीयो पाषाण नीजे नहीं तेम राजाने प्रतिबोध लाग्यो नहीं. जेम मूर्खने हितशिदा 2 देतां उलटो तेने क्रोध उपजे तेम ए दृष्टांते अहीं पण जाणवू ॥ १० ॥ परी अन्यदा दिवसे सा-18 तसे नवं पुरुषे परवस्यो थको मृगया रमतो थको राजा गहन वने आव्यो. तिहां रोगे पीड्यो||॥१७॥ एवो एक मुनि कास्सग्गध्याने उनो डे, तेने जो राजा कहे , ए तो व्याधियी पीड्यो कोढीयो जे. एम कहे थके (घन के०) आकरा घाए करीने नवंठ ते साधुने मारवा लाग्या ॥११॥
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