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________________ श्री राणालावीने एम चिंतववा लागी के में कोश्क प्रमाद धरीने प्रजुनी श्राशातना कीधी ने ॥ १४ ॥ खंग. धिक मुज जिन जोवा तणो जी, उपनो एद अंतराय ॥ दोष सयल मुज ॥६०॥ सांसदो जी, स्वामी करी सुपसाय ॥ प्रनु० ॥१५॥दादा दरिसण दीजीए जी, ए उःख में न खमाय ॥ गेरु दोय कुरु जी, द न दाखे माय ॥ प्रनु० ॥१६॥ राय कदे वत्स सनिलो जी, दोष नहीं तुज एह ॥ दोष इहां के माहरो जी, आणी तुज पर नेह ॥ प्रनु० ॥ १७॥ वरनी चिंता चिंतवी जी, जिणहर मांदि जेण॥ ते लागी आशातना जी, बार देवाणां तेण ॥ प्रनु० ॥ १७ ॥ जिनवर तो रुषे नहीं जी, वीतराग सुप्रसि ॥ पण कोश्क अधिष्ठायके जी, ए मुज शिदा दीध ॥ प्रनु० ॥१५॥ अर्थ-माटे मारे जिनराजना मुख जोवापणाने धिक्कार बे के जे थकी ए अंतराय उपन्यो. एम पोताने निंदती थकी घणो पश्चात्ताप करती प्रजुने विनंति करे ले के हे स्वामिन् ! हुं मंदनागिणी बु.2 मारा उपर सुपसाय करीने जे में मध्य गनारामां दोष आचस्या होय, ते सर्व दोष मुजने ( सांसहो। के०) माफ करो ॥ १५ ॥ हे दादाजी ! तमे मुज पुण्यहीन दीनने दर्शन आपो. ए कुःख तो माराथी खमातुं नथी. कदापि गेरु तो कुगेरु होय, तोपण मातपिता तेने नेह देखाडे नहीं ॥ १६॥ एवी रीते ते पुत्रीने रोती थकी देखीने राजा कहे ले के हे वत्से ! तुं मारी वात सांजल के ए तारो दोष नथी, पण इहां तो मारो दोष बे, जे में तारा उपर स्नेह आणीने ॥ १७ ॥ श्रीजिनेश्वरना घर माहे तारा वरनी चिंता चिंतवी तेनी आशातना लागी, तेथी बारणां|singan देवाणां ने ॥ १७ ॥ तो हे पुत्री ! श्रीजिनवर तो निरागी सुप्रसिद्धपणे वीतराग , ते तो कोश्नी उपर रुषे नहीं, पण कोइएक अधिष्ठायिक देवताए ए मुजने शिदा दीधी ॥ १५ ॥ Sain Education International For Personal and Private Use Only
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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