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जगतमां घणो यश पामीए, जो हैये विचार करी जोइए तो माणसना आचार उपरथी पण कुल जाणी शकीए, पण जेनी तेनी खोटी साची वात सांजलीने तेनो सारासार समज्या विना को अकार्य करी नाखवू नहीं अने एवा पुर्बल कानवाला थश्ए नहीं. लोकमां पण एवी कहेवत ने के "राजाने कान होय, पण शान न होय,” ए कहेवत प्रमाणे तमारे वर्तवू नहीं ॥ १४॥
कुंअरने नरपति कहे रे, प्रगट कहो तुम्ह वंश रे ॥ चतुर ॥ जिम सांसो दूरे टले हो लाल ॥ कहे कुंअर किम जच्चरे रे, उत्तम निज परशंस रे ॥ चतुर ॥ कामे कुल उलखावशुं हो लाल ॥ १५॥ सैन्य तुमारूं सज करो रे, मुज कर द्यो तरवार रे ॥ चतुर ॥ तव मुज कुल प्रगट थशे हो लाल ॥ माथु मुंडाव्या पी रे, पूढे नदत्र वार रे ॥ चतुर ॥ एद
जखाणो साचव्यो हो लाल ॥१६॥ अर्थ-एवी पोतानी पुत्रीनी वात सांजलीने राजा कुंवर प्रत्ये कहे के के हे वत्स! तमे तमारो वंश प्रगट करो. जेम ए वातनो मने संदेह ने ते पूर टली जाय. ते सांजली कुंवर हसीने कहेतो हवो के हे राजन् ! जे उत्तम पुरुष ने ते पोते पोताने मुखे पोतानी प्रशंसानो उच्चार केम करे ? माटे को मारा जेवू काम पम्शे ते वारे हुं माझं कुल तमोने उलखावीश ॥ १५ ॥ अथवा तमे || तमारं सर्व सैन्य सज करो एटले तैयार करो, अने मारा हाथमां एक तरवार आपो, जेथी। मारा हाथ तमने कुल कही देशे, ते वारे मारुं कुल प्रगट थशे. हे राजन् ! तमे तो केवु कसुं? के को पुरुष माथु मुंमावीने पढ़ी जोशीनी पासे जश् नक्षत्र वार पूबवा लाग्यो, तेने जोशीए। कडं के जाइ ! तारे नदात्र वार पूवानुं शुं काम ? त्यारे तेणे कह्यु के हुँ मस्तक मुंमावी । श्राव्यो हुँ, माटे नक्षत्र वार पूढुं बुं. ते सांजली जोशी पासे जे लोक बेठेला हता ते सर्व
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