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जीहो कुंवरे ते सवि राखीया, जीदो दीधी तेहने वृत्ति ॥ जीदो वाहण अढीसें माहरां, जीदो साचवजो एक चित्त ॥ सु०॥३१॥ जीदो जे पण बब्बर रायनो, जीदो नागे हतो परिवार ॥ जीदो तेदने पण तेडी करी, जीदो आदर दीए अपार ॥ सु० ॥ ३२ ॥ जीदो चोथी ढाल एणी परे, जीदो बीजे खंडे होय ॥ जीदो विनय कहे फल पुण्यनां, जीदो
पुण्य करो सहु कोय ॥सु०॥३३॥ अर्थ-ते सर्व दशे हजार सुनटोने श्रीपाल कुंवरे राखी लीधा. तेमने ( वृत्ति के०) आजी-1 विका श्रापीने कयु के मारां अढीसें वहाण ने तेने तमे एकाग्र चित्तथी साचवजो, संजाल 2 राखजो ॥ ३१ ॥ वली बब्बर देशना राजानो पण प्रथम जे कां सुजटो आदिक परिवार नासी गयो हतो ते सर्वने कुंवरे तेमी करीने उत्तम वस्त्रादिकनी पहेरामणी थापी. एवी रीते जेनो पार आवे नहीं एटर्बु श्रादर सन्मान थाप्युं ॥ ३५ ॥ आ प्रमाणे बीजा खंमने विषे चोथी ढाल पूर्ण थाय . श्री विनयविजयजी उपाध्याय कहे डे के ए सर्व पुण्यनां फल जाणवां, माटे हे नव्यो ! तमे सहु को पुण्योपार्जन करो के जेथी सुख पामो ॥ ३३ ॥
॥दोहा॥ महाकाल श्रीपालनुं, देखी जुजबल तेज ॥ चित्त चमक्यो इम विनवे, दियडे आणी देज ॥१॥ मुज मंदिर पावन करो, महेर करी महाराज ॥ - प्रगट्यां पूरव नव कयां, पुण्य अमारां आज ॥२॥
अर्थ-हवे महाकाल राजा श्रीपाल कुंवरनी जुजाना बलनुं तेज देखी पोताना चित्तमा ४ चमत्कार पाम्यो श्रको हैयामां घणुंज हेज प्राणीने थावी रीतनी विनंति करे ॥१॥
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