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श्री राण फरीने मारा सामो आव. हुँ तारां जे शस्त्र तथा सैन्य अने जुजाउनुं बल, तेनो ( नाद के० ) जे । खंम.
अहंकार ले तेनुं ( नीर के० ) पाणी तेने उतारं ॥ १७ ॥
जीदो तुज सरिखो जे प्राहुणो, जीदो पहोतो अम घर आय ॥जीदो सुखडली मुज हाथनी, जीहो चाख्या विण किम जाय ॥ सु०॥ १॥ जीदो महाकाल जूए फरी, जीदो दीगे एक जुवान ॥ जीदो काकानी परे जूऊतो, जीहो लदाण रूप निधान ॥ सु० ॥२०॥ जीहो तुं सुंदर सोहामणो, जीदो दीसे यौवनवेष ॥जीदो विण खुटे मरवा नणी, जीदो कांश करे उद्देश ॥ सु०॥२१॥जीदो कदे कुंवर संग्राममां, जीदो वचन किश्यो व्यापार ॥ जीदो जोधे जोध मल्या जिहां, जीहो तिहां शस्त्रे
व्यवहार ॥ सु०॥॥ है अर्थ-वली हे वीर पुरुष ! तारा सरखो प्राहुणो पुरुष जे अमारे घेर आवी पहोंच्यो ते मारा
हाथनी सुखमी चाख्या विना पालो केम जाय ? ॥ १५ ॥ एवां वचन सांजली महाकाल राजा है पाडो फरी जुए दे तो तेणे लक्षण तथा रूपना निधान सरिखो अने ( काका के०) घणा पुरु-13 षोनी परे जूऊतो एवो एक युवान पुरुष दीगे ॥ २० ॥ तेने जोश्ने महाकाल राजा कहेवा लाग्यो | के तुं तो घणो सुंदर, सोहामणो डो, अने संपूर्ण नवयौवन वेषे देखाय , तेम बतां तारं आयुष्य 3 खुट्या विना फोकट मरवानो उद्देश शामाटे करे ? ॥ २१॥ एवां राजानां वचन सांजली कुंवर है।५१॥ कहेवा लाग्यो के संग्रामने विषे वचननो व्यापार शो करवो ? जिहां योझाए योझा मले तिहां तो शस्त्रनोज व्यापार होय ॥ ॥
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