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॥ ढाल नवमी॥ अर्ध मंमित गोरी नागिला रे ॥ ए देशी॥ वर वद बेहु सासु मली रे, करे वेवादण वात रे ॥ कमला रूपाने कदे रे, धन तुम कुल विख्यात रे । जु अगम गति पुण्यनी रे॥ पुण्ये वंबित थाय रे ॥ सवि उःख दूर पलाय रे॥॥जु अगम गति पुण्यनी रे॥ए आंकण। ॥ वहूए अम कुल जदयुं रे, कीधो अम उपगार रे ॥ अमने जिनधर्म बुझव्यो रे, ॥ उतास्यां सुखपार रे ॥ जु० ॥२॥ सूइ जिम दोरा प्रते रे, आणे कसीदे गम रे॥तिम वढूए मुज पुत्रनी
रे, घणी वधारी माम रे ॥ जुर्जन ॥३॥ अर्थ-हवे वर तथा वह ए बेहुनी सासु मली वन्ने वेवाणो माहोमांहे वातो करे , ते वारे । कमलप्रजा जे श्रीपालनी माता ते रूपसुंदरीने कहे जे के ( विख्यात के०) प्रसिद्धि पामेला एवाई तमारा कुलने धन्य बे. कवीश्वर कहे के हे नव्यो ! तमे जुर्म के पुण्यनी गति केवी अगम्य P? पुण्ये करी मनोवांबित कार्य सर्व सिक थाय तथा रोगादि सर्व प्रकारनां पुःख ते पलायन करी पूर जतां रहे, मादे पुण्यनी गतिनी ज्ञानी विना बीजाने गम पडे नहीं॥१॥ वहूए अमारा है कुलनो उझार कस्यो, श्रमने श्रीजिनधर्म (बुकव्यो के०) शीखव्यो-पमाड्यो, अने अमे उःखरूप समुअमां पड्यां हतां तेमांथी पार उतास्यां, मारो पुत्र नीरोगी थयो ते एना प्रजावथी थयो, ए सर्व अमारी वहूए अमारा उपर उपकार कस्यो, ए तमारी पुत्रीनो प्रनाव चिंतामणि रत्न सरखो , माटे धन्य ने तमने ! जे तमारी कुखमां आवं स्त्रीरत्न उत्पन्न थयुं ॥ यतः ॥ कार्ये दासी | रतौ रंजा, जोजने जननीसमा ॥ विपत्तौ बुद्धिदात्री च, सा नार्या नुवि उर्लना ॥१॥ इति ॥२॥
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