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________________ लेक काले फरी उदय थाय. त्रीजु अमृतकल्पज्ञान ते श्रद्धापूर्वक आगमज्ञान नेदनाव धारीने | उपयोगसहितपणे वर्तन ते जेम अमृतपान करवाथी कुधा, तृषा, रोग, शोक, उपऽव अने व्याधि | | प्रमुख सर्व पूर थर जाय, फरी पाबा उदय थावेज नहीं, तेनी समान त्रीजुं अनुजवज्ञान मी |, तेथी अनुनवज्ञान विना सकल अनादि कालनी जवज्रमणरूप तृषा किम नांजे ? माटे अनुनवनो प्रेम ते गरीगे एटले मोटो, वडेरो ॥३॥ प्रेम तणी परे शीखो साधो, जो सेलडी सांगे ॥ जिहां गांठ तिहां रस नविदीसे, जिदारस तिहां नवि गांगे रे॥ मुज४॥जिनही पाया तिनदी बिपाया, ए पण एक ने चीगे॥ अनुन्नव मेरु बिपे किम मदोटो, ते तो सघले दीगे रे ॥ मुज० ॥ ५॥ पूरव लिखित लिखे सवि ले, मसी कागल ने कागे॥ नाव अपूरव कदे ते पंडित, बहु बोले ते बांगे रे ॥ मुज०॥६॥ अर्थ-माटे जेम सांसारिक प्रेमने जोमवू, देवं, लेवू करी एकपणुं करे, ते प्रेमनी परे अनुजवने शीखो, साधो, शेलडीना सांगनुं दृष्टांत जोश्ने. जेम शेलमीना सांग मांहे जिहां गांठ होय तिहां है रस देखाय नहीं, अने जिहां रस होय तिहां गांठ न होय. एनी परे अनुभव प्रेम पण जाणवो. एटले जिहां कर्मरूप गांव के तिहां अनुनवरस नथी, अने जिहां अनुजवरस डे तिहां कर्मरूप गांव नयी ॥ ४॥ कोश्क कहे जे के अनुजवनो रस जेणे पाम्यो तेणेज बिपाव्यो, माटे प्रगट देखाय हूँ नहीं. ए कहेवत पण एक चीगे एटले कागलनी चीठीप्राय ने, केमके अनुजवरूप मोटो मेरु पर्वत ते बिपायो केम डिपे? ते तो सघले दीगे , एटले सर्वत्र ले. एवं जिनवचनथी जाणवू. वस्तुतः दीगमां| आवे, पण जेणे पाम्यो ते तेनोज आत्मा जाणे, परंतु बीजो को न जाणे ॥५॥ मसी ते शाश, SCIENCEOCOCOCOCOCONORMALCULOCALCHANG Sain Education International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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