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________________ श्री०रा० ॥१७५॥ तेने तेवां सुख दुःखनां फल उदय श्राव्यां. सद्गुरु विना एवा मर्मने वीजो कोण जाणे ? कोइ जाणे नहीं ॥ २७ ॥ चोथा खंमने विषे ए आठमी ढाल संपूर्ण थइ. ए ढाल मांहे सारभूत रुडो नव पदनो महिमा गायो बे. श्रीजिनराजना विनयथी जलो जश पामीजे. ए सिद्धचक्रना पसायथी जगत्त्रयने विषे निश्चे जयजयकार थाय ॥ २७ ॥ ॥ दोहा ॥ इम सांगली श्रीपाल नृप, चिंते चित्त मऊार ॥ प्रदो हो जवनाटके, इस्या प्रकार ॥ १ ॥ कदे गुरु प्रते दवणां नथी, मुज चारित्रनी सत्ति ॥ करी पसाय तिथे उपदिसो, उचित करण पडिवति ॥ २ ॥ वलतुं मुनि जाखे नृपति, निश्चय गति तुं जोय ॥ करम जोग फल तुज घणुं, इह जव चरण न होय ॥ ३ ॥ पण नव पद प्राराधतां पामीश नवमुं सर्ग ॥ नर सुर सुख मे अनुभवी, नवमे नव प्रपवर्ग ॥ ४ ॥ ते सुणी रोमांचित हुई, निज घर पहोतो नूप ॥ मुनि पण विदुरंतो गयो, ठाणांतर अनुरूप ॥ ५॥ अर्थ - एम ाजितसेन मुनिनी देशना सांजली श्रीपाल राजा पोताना चित्तने विषे चिंतवे बे के हो ! इति आश्चर्ये ! जे संसारनाटकमां यावा प्रकारना प्रपंच पामीए बीए ? ॥ १ ॥ हवे श्रीपाल गुरु प्रत्ये क बे जे दमणां तो मुजमां चारित्र लेवानी शक्ति नथी, माटे मारा उपर कृपा करीने मारे योग्य प्रतिपत्ति करवाने कहो, एटले मुजथी बनी यावे एवो धर्म कहो ॥ २॥ वलतुं मुनि कहे बे जे हे राजन् ! तारी निश्चये गति तुं जो के हजी पण तारे जोगववा योग्य कर्मनुं फल घणुं बाकी बे, माटे तारे या जवने विषे चारित्र उदय थशे नहीं ॥ ३ ॥ पण नव Jain Educationa International For Personal and Private Use Only) खंग. ४ ॥१७५॥ www.jainelibrary.org
SR No.600197
Book TitleShripal Rajano Ras
Original Sutra AuthorShravak Bhimsinh Manek
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1917
Total Pages420
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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